खुश रहेंगी, तभी दूसरों को खुश रख पाएंगी

गृहिणी हूं और एक लेखिका भी. मैं सुबह 5.30 बजे उठती हूं. पति के लिए चाय बनाती हूं, और फिर हर सुबह एक भाग का काम मैं ब्रेकफास्ट से पहले कर लेती हूँ. 10.30 बजे नाश्ता करने के बाद फिर से काम पर लग जाती हूं.  आप सोच रही होंगी मैं आपको अपनी डेली रूटीन किसलिये बता रही हूं? क्योंकि मैंने दोस्तों को कहते सुना है, कि वे काम और घर में बराबर ध्यान नहीं दे पा रहीं हैं और शायद ये आपकी भी समस्या हो सकती है, इसलिए निराश ना हों.

1. खुद को दोषी मानना बंद करें

अगर काम और घर के बीच सामंजस्य सम्भव नहीं है, तो खुद को अपराधी मानने की जरूरत नहीं. आप काम कर रहे हैं यह कोई गलत बात नहीं है, इसके लिए सबसे पहले आप घर में हो रही समस्याओं के लिए खुद को दोषी मानना बंद करें.

2. बनाएं टाइमटेबल

खुद के लिए एक टाइम टेबल बनाएं. दिन में 24 घंटे होते हैं, और अगर आप सही तरीके से टाइम-टेबल के हिसाब से चलेंगे, तो सारे काम आराम से हो जाएंगे. पर एक समय सीमा के हिसाब से चलना जरूरी है, अगर किसी एक काम पर आप जरुरत से ज्यादा वक्त जाया करेंगे, या सुस्ती दिखाएंगे, तो संतुलंत कभी नहीं बना पाएंगे.

3. आपसी समझ है जरूरी

जो काम ज्यादा जरूरी हैं, उसे पहले करें. अगर सुबह आपको औफिस में प्रोजेक्ट सबमिट करना है, तो पहले उसका काम खत्म करें, क्योंकि आप वर्किंग वुमन हैं, अगर बच्चों को ऐसी स्थिति में आप कम समय दे पा रहीं हैं तो, घर के सदस्यों के मदद लें, और प्यार और सहयोग के साथ अपना कार्य पूर्ण करने के बाद बच्चों और परिवार के साथ समय व्यतीत करें. हां एक बात का ध्यान रखें, कार्य बढ़ने की स्थिति में अपने परिवार के जिम्मेदार लोगों को सूचित करें, और आपसी समझ से घर परिवार की जिम्मेदारी निभाएं.

4. अपने मनपसंद काम को दे ज्यादा समय

आपको क्या चाहिए ये तय करें. ज्यादा पैसों के लिए ज्यादा काम करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में आप जो काम पसंद से कर रही हैं वही करें. अगर घर में ज्यादा वक़्त देने से आप को ख़ुशी मिल रही है, तो उसे अधिक महत्व दें.

5. मन से करें काम

काम से प्रेम होना बहुत ज़रूरी है. कम काम करें लेकिन अच्छा काम करें, तो आप खुश रहेंगी, मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगी.

6. खुद के लिए निकालें समय

खुद के लिए समय रखें. अपने लिए समय होना भी ज़रूरी है, इस वक़्त में आप सिर्फ वह करें, जो आपको अच्छा लगता हो. ये आराम का वक़्त भी हो सकता है. इस समय अन्य कोई कार्य न करें.

7. आसान तरीका ढूंढे

यह ध्यान रखें, की आप वर्किंग होते हुए सभी जिम्मेदारियों को नहीं निभा सकती, ऐसी स्थिति में आप वही जरूरी कार्य करें जो आप के अलावा और दूसरा नहीं कर सकता, आधुनिकता के दौर में औनलाइन शौपिंग का महत्त्व समझें, घर के समान आर्डर करना, कपडे खरीदना, बिल जमा करना आदि कार्य आप औनलाइन भी कर सकती हैं. इससे आप थकेंगी कम, और वही समय आप परिवार को दे सकती हैं.

अगर सोचें, तो ऐसा कोई क्षेत्र  नहीं, जहां महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो.अपनी लगन, मेहनत, और दृढ़ता से महिला खुद में साफ़ सोच लाती हैं, जिससे वह फैसला ले पाती है. तभी आज हमारे बीच इंद्रा नूई (सी इ ओ पेप्सिको),  हेलेन केलर, और बुला चौधरी जैसी महान महिलाएं हैं.

ऐसी महिलाएं हमें भविष्य में भी प्रेरित करती रहेंगी. खुद खुश रहेंगी, तभी दूसरों को खुश रख पाएंगी. अपनी सोच समझ पर टिके रहे. इस तरह से आप अपनी सभी जिम्मेदारियों को सही से निभा पाएंगी.

पिता के अमीर दोस्त, मां के गरीब रिश्तेदार

रिश्तों की अपनी अहमियत होती है. बिना रिश्तेदारों के जिंदगी नीरस हो जाती है व अकेलापन कचोटने लगता है. जिंदगी में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब रिश्तों के महत्त्व का एहसास होता है.

अकसर देखने में आता है कि किशोरकिशोरियां उन रिश्तेदारों को ज्यादा अहमियत देते हैं जो आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न होते हैं और गरीब रिश्तेदारों की उपेक्षा करने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते, गरीब रिश्तेदारों को अपने घर बुलाना उन्हें अच्छा नहीं लगता. वे खुद भी उन के घर जाने से कतराते हैं. भले ही बर्थडे पार्टी या शादी हो, अगर जाते भी हैं तो बेमन से.

आज के किशोरकिशोरियों में एक बात और देखने को मिलती है. वे अपने पिता के अमीर दोस्तों का दिल से स्वागत करते हैं. अपने मातापिता की बर्थडे पार्टी या मैरिज ऐनिवर्सरी में वे उन्हें खासतौर से इन्वाइट करते हैं. उन की पसंद की चीजें बनवाते हैं, लेकिन मां के गरीब रिश्तेदारों को बुलाना जरूरी नहीं समझते. यदि मां के कहने पर उन्हें बुला भी लिया, तो उन के साथ उन का बिहेवियर गैरों जैसा रहता है.

सुरेश के मम्मीपापा की मैरिज ऐनिवर्सरी थी. सुरेश और उस की बहन सुषमा एक महीना पहले ही तैयारियों में जुट गए थे. दोनों ने मिल कर मेहमानों की लिस्ट तैयार की और अपनी मम्मी को दिखाई.

लिस्ट में पिता के सभी अमीर दोस्तों का नाम शामिल था. मां को लिस्ट देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ. वे बोलीं, ‘‘अरे, तुम दोनों ने अपने मामामामी, मौसामौसियों के नाम तो लिखे ही नहीं. केवल मुंबई वाले मौसामौसी का ही नाम तुम्हारी लिस्ट में है.’’

यह सुनते ही सुरेश का चेहरा तमतमा उठा. वह बोला, ‘‘मैं आप के गरीब रिश्तेदारों को बुला कर अपनी व पापा की नाक नहीं कटवाना चाहता. न उन के पास ढंग के कपड़े हैं न ही उन्हें पार्टी में मूव करना आता है. क्या सोचेंगे पापा के दोस्त?’’

यह सुन कर मम्मी का चेहरा उतर गया. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का बेटा ऐसा सोचता होगा. उन की मैरिज ऐनिवर्सरी मनाने की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी.

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सुरेश के पिता ने भी सुरेश और सुषमा को बहुत समझाया कि बेटे रिश्तेदार अमीर हों या गरीब, अपने होते हैं. हमें अपने हर रिश्तेदार का सम्मान करना चाहिए.

सुरेश ने मातापिता के कहने पर मम्मी के रिश्तेदारों को इन्वाइट तो कर लिया पर मैरिज ऐनिवर्सरी वाले दिन जब वे आए तो उन से सीधे मुंह बात तक नहीं की. वह पापा के अमीर दोस्तों की आवभगत में ही लगा रहा.

सुरेश की मम्मी को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर रंग में भंग न पड़ जाए, इसलिए वे शांत रहीं और स्वयं अपने भाई, भाभी और अन्य रिश्तेदारों की खातिरदारी करने लगीं.

मेहमानों के जाने के बाद सुरेश और सुषमा मम्मीपापा को मिले गिफ्ट के पैकेट खोलने लगे. उन्होंने मामामामी के गिफ्ट पैकेट खोले तो उन्हें यह देख कर बड़ा ताज्जुब हुआ. उन के दिए गिफ्ट सब से अच्छे व महंगे थे. रोहिणी वाले मामामामी ने तो महंगी घड़ी का एक सैट उपहार में दिया था और पंजाबी बाग वाली मौसीमौसा ने मम्मीपापा दोनों को एकएक सोने की अंगूठी गिफ्ट की थी, जबकि पापा के ज्यादातर अमीर दोस्तों ने सिर्फ बुके भेंट कर खानापूर्ति कर दी थी.

सुरेश व सुषमा ने अपने मम्मीपापा से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘हमें माफ कर दीजिए. हम गलत थे. जिन्हें हम गरीब समझ कर उन का अपमान करते थे, उन का दिल कितना बड़ा है, यह आज हमें पता चला. आज हमें रिश्तों का महत्त्व समझ आ गया है.’’

ऐसी ही एक घटना मोहित के साथ घटी जब उसे गरीब रिश्तेदारों का महत्त्व समझ में आया. मोहित के पापा बिजनैस के सिलसिले में मुंबई गए हुए थे. एक दिन अचानक उस की मम्मी को सीने में दर्द उठा. मम्मी को दर्द से तड़पता देख मोहित ने पापा के दोस्त हरीश अंकल को फोन मिलाया और अस्पताल चलने को कहा तो उन्होंने साफ कह दिया, ‘‘बेटा, रात को मैं कार ड्राइव नहीं कर सकता, तुम किसी और को बुला लो.’’

मोहित ने पापा के कई दोस्तों को फोन किया, पर सभी ने कोई न कोई बहाना बना दिया. मोहित की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. अचानक उसे मम्मी के चचेरे भाई का खयाल आया जो पास में ही रहते थे. उस ने उन्हें फोन पर मम्मी का हाल बताया तो वे बोले, ‘‘बेटा, तुम परेशान मत हो, मैं तुरंत आ रहा हूं.’’

चाचाजी तुरंत मोहित के घर पहुंच गए. वे अपने पड़ोसी की कार से आए थे. वे मोहित की मम्मी को फौरन अस्पताल ले गए. डाक्टर ने कहा कि उन्हें हार्टअटैक पड़ा है. अगर अस्पताल लाने में थोड़ी और देर हो जाती तो उन्हें बचाना मुश्किल था.

यह सुनते ही मोहित की आंखों में आंसू आ गए. उसे आज रिश्तों का महत्त्व समझ में आ गया था. पिछले दिनों इन्हीं चाचाजी की बेइज्जती करने से वह नहीं चूका था.

किशोरकिशोरियों को रिश्तों के महत्त्व को समझना चाहिए. अमीरगरीब का भेदभाव भूल कर सभी रिश्तेदारों से अच्छी तरह मिलना चाहिए. उन्हें पूरा सम्मान देना चाहिए.

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रिश्तों में मिठास घोलें

रिश्ते अनमोल होते हैं. किशोरकिशोरियों को मां के गरीब रिश्तेदारों को भी इज्जत देनी चाहिए. उन के यहां अगर कोई शादी या अन्य कोई फंक्शन हो तो जरूर जाना चाहिए. ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए कि उन्हें अपनी बेइज्जती महसूस हो. चाचाचाची, मामामामी, मौसामौसी से समयसमय पर फोन पर या उन के घर जा कर हालचाल लेते रहना चाहिए, इस से रिश्तों में मिठास घुलती है और रिश्तेदार हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं.

रिश्तेदारों के बच्चों से भी बनाएं संपर्क

किशोरकिशोरियों को चाहिए कि वे अपने गरीब रिश्तेदारों से न केवल संपर्क बनाए रखें बल्कि उन के बच्चों से भी दोस्त जैसा व्यवहार रखें. उन से फेसबुक, व्हाट्सऐप द्वारा जुड़े रहें. परिवार के फोटो आदि शेयर करते रहें. उन्हें कभी इस बात का एहसास न कराएं कि वे गरीब हैं. चचेरे व ममेरे भाईबहनों से भी अपने सगे भाईबहन जैसा ही व्यवहार करें. इस से उन्हें भी अच्छा लगेगा. आजकल वैसे भी एकदो भाईबहन ही होते हैं. कहींकहीं तो एक भी भाई या बहन नहीं होता. ऐसे में कजिंस को अपना सगा समझें और उन के साथ लगातार संपर्क में रहें.

छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाएं

स्कूल की छुट्टियों में अपने मम्मीपापा के साथ रिश्तेदारों के घर जरूर जाएं. खासतौर से मम्मी के गरीब रिश्तेदारों के घर. जब आप उन के घर जाएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा. उन के बच्चों यानी अपने कजिंस के लिए कोई न कोई गिफ्ट जरूर ले जाएं. इस से आपस में प्यार बढ़ता है.

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9 टिप्स: जौइंट फैमिली में कैसे जोड़ें रिश्तों के तार

तापसी की शादी संयुक्त परिवार में हुई थी. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक रहा पर बाद में तापसी को घुटन महसूस होने लगी. हर बार कहीं जाने से पहले पुनीत का अपने मातापिता से पूछना, कोई भी कार्य उन से पूछे बिना न करना, इन सब बातों से तापसी के अंदर एक मौन आक्रामकता सी आ गई. पुनीत के यह कहने पर कि वह ये सब मम्मीपापा के सम्मान के लिए कर रहा है, तापसी के गले नहीं उतरता. वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत थी पर अपने सासससुर के कारण कभी किसी लेट नाइट पार्टी में शामिल नहीं होती थी.

कपड़े भी बस सूट या ज्यादा से ज्यादा जींसकुरती पहन लेती थी. अपने सहकर्मियों

को हर तरह की ड्रैस पहने और लेट नाइट पार्टी ऐंजौय करते देख कर उसे बहुत गुस्सा आता था. तापसी ने पुनीत से शादी की पहली वर्षगांठ में तोहफे के रूप में अपने लिए एक अलग घर मांग लिया.

उधर तापसी के पति के साथसाथ उस के सासससुर को भी सम झ नहीं आ रहा था कि आखिर तापसी ऐसा क्यों चाहती है. बहुत सम झाने के बाद भी जब कोई हल न निकला तो पुनीत ने अलग फ्लैट ले लिया. तापसी कुछ दिन बेहद खुश रही. उस ने फ्लैट को अपने तरीके से सजाया. ढेर सारी अपनी पसंद के कपड़ों की शौपिंग करी पर एक माह के भीतर ही घरदफ्तर संभालते हुए थक कर चूर हो गई. काम पहले भी नौकर ही करते थे पर सासससुर के घर पर रहने से सारे काम समय से और सही ढंग से होते थे. अब पूरा घर बेतरतीब रहता था.

तापसी ने गहराई से सोचा तो उसे यह भी सम झ आया कि उस ने कभी अपने सासससुर से लेट नाइट पार्टी, दोस्तों को घर बुलाने के लिए या अपनी पसंद के कपड़े पहनने के लिए पूछा ही नहीं था. उस के मन में सासससुर को ले कर एक धारणा थी जिस वजह से तापसी कभी उन के करीब नहीं जा पाईर् थी. अब चाह कर भी वह किस मुंह से उन के पास जाए.

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अगर आप इस उदाहरण पर गौर करें तो एक बात सम झ आएगी कि तापसी ने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि उसे अपने सासससुर के मुताबिक जिंदगी जीनी पड़ेगी पर उस ने इस बाबत कभी किसी से बात नहीं करी. उधर पुनीत ने भी कभी तापसी के भीतर बसे डर को सम झने की कोशिश नहीं

करी. बस यह सोच कर आजकल की पत्नियां ऐसी ही होती हैं, वह अलग फ्लैट में शिफ्ट हो गया था.

उधर नितिन की जब से शादी हुई थी उस के मम्मीपापा की बस यही शिकायत रहती थी कि वह अपना सारा समय और ध्यान अपनी पत्नी चेतना को ही देता है, जबकि असलियत में ऐसा कुछ नहीं था. नितिन की कंपनी में

बहुत वर्क प्रैशर था. इस वजह से वह घर में कम समय दे पाता था, इसलिए जो समय वह पहले अपने मातापिता को देता था अब चेतना को देता था. उस के मम्मीपापा उसे सम झ नहीं पाएंगे, ऐसी उसे उम्मीद नहीं थी. उन के व्यवहार से आहत हो कर 2 माह के भीतर ही वह अलग हो गया.

अब नितिन के मम्मीपापा को एहसास हो रहा था कि नितिन और चेतना के साथ रहने से कितने ही छोटेछोटे काम जो चुटकियों में हो जाते थे अब पहाड़ जैसे लगने लगे हैं.

संयुक्त परिवार के फायदे भी हैं तो थोड़ेबहुत नुकसान भी हैं और यह बहुत नैचुरल भी है, क्योंकि जब चार बरतन एकसाथ रहेंगे तो खटकेंगे भी. मगर जहां बच्चे लड़ते झगड़ते भी अपने मातापिता के साथ मजे से जिंदगी गुजार लेते हैं वहीं उन्हीं बच्चों के विवाह के बाद रिश्तों का समीकरण बदल जाता है. जो बच्चे कभी जान से भी अधिक प्यारे थे वे अब अजनबी लगने लगते हैं.

साथ रहना क्यों नहीं मंजूर

आइए, पहले बात करते हैं उन कारणों की, जिन की वजह से शादी के बाद कोई भी युवती संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती है फिर भले ही शादी से पहले वह खुद भी संयुक्त परिवार में रह रही थी.

1. पर्सनल स्पेस

यह आजकल के युवाओं के शब्दकोश में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है. शादी के तुरंत बाद पतिपत्नी को अधिक से अधिक समय एकसाथ बिताना पसंद होता है, क्योंकि उस समय वे एकदूसरे को सम झ रहे होते हैं पर इस नाजुक और रोमानी वक्त पर बड़ों की अनावश्यक टोकाटाकी चाहे उन के फायदे के लिए ही क्यों न हो एक बंधन जैसी प्रतीत होती है.

2. रस्मों रिवाज का जाल

जब नईनवेली दुलहन को सास के साथ रहना होता है, तो उसे न चाहते हुए भी बहुत सारी रस्में जैसे नहा कर ही रसोई में जाना, पूर्णमासी का व्रत रखना, गुरुवार को बाल न धोना, ससुराल पक्ष में किसी के आने पर सिर को ढक कर रखना इत्यादि मानना पड़ता है, जिस के कारण उसे घुटन महसूस होने लगती है.

3. आर्थिक आजादी

संयुक्त परिवार में कभीकभी यह भी देखने को मिलता है कि बेटेबहू को पूरी तनख्वाह सासससुर के हाथ में देनी होती है और अगर तनख्वाह नहीं देनी होती है, तो घर की पूरी आर्थिक जिम्मेदारी बेटेबहू के कंधों पर डाल दी जाती है. ऐेसे में उन्हें अपने हिसाब से खर्च करने की बिलकुल मोहलत नहीं मिलती है.

4. घरेलू राजनीति

सासबहू की राजनीति केवल एकता कपूर के सीरियल तक ही सीमित नहीं होती है. यह वास्तव में भी संयुक्त परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है. एकदूसरे के रिवाजों या रहनसहन के तरीकों पर छींटाकशी, खुद को दूसरे से बेहतर साबित करने की खींचतान के चक्कर में कभीकभी सास और बहू दोनों ही बहुत निचले स्तर तक चली जाती हैं.

5. कैसे बनेगी बात

बस जरूरत है बड़ों को थोड़ा और दिल बड़ा करने की और छोटों को अपने

स्वभाव में थोड़ी सहनशीलता लाने की. अगर दोनों ही पीढि़यां इन छोटेछोटे पर काम के सु झावों पर ध्यान दें तो आप का घर संवर सकता है:

6. खुल कर बातचीत करें

बेटे की शादी के बाद उस के वैवाहिक जीवन को ठीक से पनपने के लिए उन्हें प्राइवेसी अवश्य दें. अगर आप को अपनी परवरिश पर भरोसा है तो आप का बेटा आप का ही रहेगा. अगर आप लोग नए जोड़े को पर्सनल स्पेस या प्राइवेसी देंगे तो  वे भी अवश्य आप का सम्मान करेंगे. कोई  बात अच्छी न लगी हो तो मन में रखने के  बजाय बेटे और बहू को एकसाथ बैठा कर  सम झा दें पर उन की बात सम झने की भी  कोशिश करें और फिर एक सा झा रास्ता भी निकाल लें ताकि आप लोग बिना किसी शिकायत के उस रास्ते पर चल सकें.

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7. क्योंकि सास भी कभी बहू थी

अपने वैवाहिक जीवन की तुलना भूल कर भी अपने बेटेबहू के जीवन से न करें. आप के बेटे के जीवन में हर तरह का तनाव है. बारबार यह ताना न मारें कि वह ससुराल के रस्मोंरिवाजों को नहीं निबाह रही है. जमाना बदल गया है और जीवनशैली भी. आप के बच्चे तनावयुक्त जीवन जी रहे हैं. अगर बच्चे खुद आप के पास नहीं आते तो आप खुद उन के पास जा कर एक बार प्यार से उन के नए रिश्ते और काम के बारे में पूछ कर तो देखें, उन्हें आप की आप से ज्यादा जरूरत है.

8. साथी हाथ बढ़ाना

घर एक संगठित इकाई की तरह ही होता है. आप सिर्फ नौकरी से रिटायर हुए हैं, जीवन से नहीं. अगर आप के बच्चे घर की लोन की किस्त भरते हैं तो आप फलदूध या राशन का सामान ला सकते हैं. घर के कार्यों में यथासंभव योगदान करें. अपने पोतेपोती की देखभाल करने से आप नौकर नहीं बन जाएंगे. मगर उतनी ही जिम्मदारी लें जितनी लेने की आप की सेहत इजाजत दे.

9. खुले दिल से तारीफ करें

अगर आप को अपने बेटे या बहू की कोई बात बुरी लगती है तो उसे पास बैठा कर खुल कर बात करें. इसी तरह उन की अच्छी बातों की भी तारीफ कर अकसर यह देखने में आता है कि कमी निकालने में हम एक क्षण की भी देरी नहीं करते पर तारीफ हम दिल में ही रख लेते हैं. अत: खुले दिल से हर अच्छे कार्य की तारीफ करेंगे तो उन के साथसाथ आप का मन भी खिल उठेगा.

बेटियों को ही नहीं, बेटों को भी संभालें

मेरी सहेली ने एक बार मुझे एक वाकया सुनाया. जब वह अपनी 8 वर्षीया बेटी रिचा को अकेले में ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में बता रही थी, तब बेटी ने उस से कहा था, ‘मम्मी, ये बातें आप भैया को भी बता दो ताकि वह भी किसी के साथ बैड टचिंग न करे.’

सहेली आगे बताती है, ‘‘बेटी की कही इस बात को तब मैं महज बालसुलभ बात समझ कर भूल गई. मगर जब मैं ने टीवी पर देखा कि प्रद्युम्न की हत्या में 12वीं के बच्चे का नाम सामने आया है तो मैं सहम उठी. इस से पहले निर्भया कांड में एक नाबालिग की हरकत दिल दहला देने वाली थी. अब मुझे लगता है कि 8 वर्षीया रिचा ने बालसुलभ जो कुछ भी कहा, आज के बदलते दौर में बिलकुल सही है. आज हमें न सिर्फ लड़कियों के प्रति, बल्कि लड़कों की परवरिश के प्रति भी सजग रहना होगा. 12वीं के उस बच्चे को प्रद्युम्न से कोई दुश्मनी नहीं थी. महज पीटीएम से बचने के लिए उस ने उक्त घटना को अंजाम दिया.’’

आखिर उस वक्त उस की मानसिक स्थिति क्या रही होगी? वह किस प्रकार के मानसिक तनाव से गुजर रहा था जहां उसे अच्छेबुरे का भान न रहा. हमारे समाज में ऐसी कौनकौन सी बातें हैं जिन्होंने बच्चों की मासूमियत को छीन लिया है. आज बेहद जरूरी है कि बच्चों की ऊर्जा व क्षमता को सही दिशा दें ताकि उन की ऊर्जा व क्षमता अच्छी आदतों के रूप में उभर कर सामने आ सकें.

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आज मीडिया का दायरा इतना बढ़ गया है कि हर वर्ग के लोग इस दायरे में सिमट कर रह गए हैं. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि हम अपने बच्चों को मीडिया की अच्छाई व बुराई दोनों के बारे में बताएं. एक जमाना था जब टैलीविजन पर समाचार पढ़ते हुए न्यूजरीडर का चेहरा भावहीन हुआ करता था. उस की आवाज में भी सिर्फ सूचना देने का भाव होता था. मगर आज समय बदल गया है. आज हर खबर को मीडिया सनसनी और ब्रेकिंग न्यूज बना कर परोस रहा है. खबर सुनाने वाले की डरावनी आवाज और चेहरे की दहशत हमारे रोंगटे खड़े कर देती है.

घटनाओं की सनसनीभरी कवरेज युवाओं पर हिंसात्मक असर डालती है. कुछ के मन में डर पैदा होता है तो कुछ लड़के ऐसे कामों को अंजाम देने में अपनी शान समझने लगते हैं. अफसोस तो इस बात का भी होता है कि मीडिया घटनाओं का विवरण तो विस्तारपूर्वक देती है परंतु उन से निबटने का तरीका नहीं बताती.

कुछ मातापिता हैलिकौप्टर पेरैंट बन कर अपने बच्चों पर हमेशा कड़ी निगाह रखे रहते हैं. हर वक्त हर काम में उन से जवाबतलब करते रहते हैं. इसे आप भले ही अपना कर्तव्य समझते हों परंतु बच्चा इसे बंदिश समझता है. कई शोधों में यह सामने आया है कि बच्चे सब से ज्यादा बातें अपने मातापिता से ही छिपाते हैं, जबकि हमउम्र भाईबहनों या दोस्तों से वे सबकुछ शेयर करते हैं.

आज के बच्चे वर्चुअल वर्ल्ड यानी आभासी दुनिया में जी रहे हैं. वे वास्तविक रिश्तों से ज्यादा अपनी फ्रैंड्सलिस्ट, फौलोअर्स, पोस्ट, लाइक, कमैंट आदि को महत्त्व दे रहे हैं. वे किसी भी परेशानी का हल मातापिता से पूछने के बजाय अपनी आभासी दुनिया के मित्रों से पूछ रहे हैं. वे अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, साथ ही, उन का आत्मविश्वास भी वर्चुअल इमेज से ही प्रभावित हो रहा है. बच्चों को यदि सोशल मीडिया तथा साइबर क्राइम से संबंधित सारी जानकारी होगी और अपने मातापिता पर पूर्ण विश्वास होगा, तो शायद वे ऐसी हरकत कभी नहीं करेंगे.

एकल परिवारों में बच्चे सब से ज्यादा अपने मातापिता के ही संपर्क में रहते हैं. ऐसे में वे अपने अभिभावक की नकल करने की कोशिश भी करते हैं. बच्चों में देख कर सीखने का गुण होता है. ऐसे में अभिभावक उन्हें अपनी बातों द्वारा कुछ भी समझाने के बजाय अपने आचरण से समझाएं तो यह उन पर ज्यादा असर डालेगा. उदाहरणस्वरूप, नीता अंबानी अपने छोटे बेटे अनंत को मोटापे से छुटकारा दिलाने के लिए उस के साथसाथ खुद भी व्यायाम तथा डाइटिंग करने लगी थीं.

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प्रौढ़ होते मातापिता अपने किशोर बेटों से बात करते समय उन से बिलकुल भी संकोच न करें. मित्रवत उन से लड़कियों के प्रति उन की भावनाओं को पूछें. रेप के बारे में वे क्या सोचते हैं, यह भी जानने की कोशिश करें. यदि कोई लड़की उन्हें ‘भाव’ नहीं दे रही है तो वे इस बात को कैसे स्वीकार करते हैं, यह जानने की अवश्य चेष्टा करें.

आमतौर पर यदि खूबसूरत लड़की किसी लड़के को भाव नहीं देती तो लड़का इसे अपनी बेइज्जती समझता है और इस बारे में जब वह अपने दोस्तों से बात करता है तो वे सब मिल कर उसे रेप या एसिड अटैक द्वारा उक्त लड़की को मजा चखाने की साजिश रचते हैं. एसिड अटैक के मामलों में 90 प्रतिशत यही कारण होता है. इसलिए, ‘लड़कियां लड़कों के लिए चैलेंज हैं’ ऐसी बातें उन के दिमाग में कतई न डालें.

निर्भया कांड में शामिल नाबालिग युवक या प्रद्युम्न हत्याकांड में शामिल 12वीं के छात्र का उदाहरण दे कर बच्चों को समझाने का प्रयास करें कि रेप और हत्या करने वाले को समाज कभी भी अच्छी नजर से नहीं देखता. कानून के शिकंजे में फंसना मतलब पूरा कैरियर समाप्त. सारी उम्र मानसिक प्रताड़ना व सामाजिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ता है.

मातापिता अपने बच्चों को अच्छा व्यक्तित्व अपनाने के लिए कई बार समाज या परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए उन पर एक दबाव सा बना देते हैं, जो बच्चों के मन में बगावत पैदा कर देता है. मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार, ‘‘जब हम किसी को भी डराधमका कर या भावनात्मक दबाव डाल कर अपनी बात मनवाना चाहते हैं तो यह एक प्रकार की हिंसा है.’’

बच्चे में किसी भी तरह की मानसिक कमियां हैं तो अभिभावक उसे छिपाएं नहीं, बल्कि स्वीकार करें और उसी के अनुसार उस की परवरिश करते हुए उस के व्यक्तित्व को संवारें. दिल्ली के निकट गुरुग्राम के रायन इंटरनैशनल स्कूल के प्रद्युम्न की हत्या करने वाला 12वीं का छात्र अपराधी नहीं था, बल्कि एक साइकोपैथ था. यह एक ऐसा बच्चा है जिसे सही मौनिटरिंग व सुपरविजन की जरूरत है यानी उसे परिवार के प्यार व मातापिता के क्वालिटी टाइम की जरूरत है. समय रहते यदि उस की मानसिक समस्याओं का निवारण किया गया होता तो शायद प्रद्युम्न की जान बच सकती थी. जिस तरह शरीर की बीमारियों का इलाज जरूरी है उसी तरह मानसिक बीमारियों की भी उचित इलाज व देखभाल की आवश्यकता होती है. इसे ले कर न ही मातापिता कोई हीनभावना पालें और न ही बच्चों को इस से ग्रसित होने दें.

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सास अगर बन जाए मां

मेरी सहेली शिखा की सास बहुत प्रोटैगनिस्ट है. उस ने अपनी बहू को नौकरानी बना रखा है और शिखा का पति अपनी माताजी का आज्ञाकारी बेटा है, जो अपनी मां के अमानवीय व्यवहार पर भी एक शब्द तक नहीं बोलता और न ही अपनी पत्नी के पक्ष में खड़ा दिखता. यदि शिखा शिकायत भी करती है तो वह उसी को 4 बातें सुना देता. हमेशा जवाब होता कि रहना है तो रहो वरना फौरेन चली जाओ. परेशान हो कर शिखा अपने मायके आ गई. लेकिन समाज के लिए फिर भी शिखा ही गलत है. क्यों? क्योंकि गलती हमेशा बहू की ही होती है.

समाज का यह दोहरा चेहरा क्यों

अकसर खबरें मिलती हैं कि बहू अच्छी नहीं थी बेटे ने उस के कहने पर आ कर मां को घर से निकाल दिया. सोचने वाली बात है हर समय बहू ही गलत क्यों?

जब बीवी की बातों में आ कर मां को तंग करना गलत है, तो मां के सम्मान की खातिर उस की गलत बातों पर चुप रहना सही कैसे हो सकता है?

2 शब्द सासों से

मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं मां दुनिया का सब से प्यारा लफ्ज है और सब से ही अनोखा बंधन. वह अद्भुत प्यारा सा एहसास जिस में. मां को सब से करीब देखा जाता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मां गलत हो ही नहीं सकती. गलत को गलत कहने में कौन सा गुनाह है? वह भी तब जब अकसर बेटे की मां, सास बनने के बाद जानबूझ कर यह गुनाह करती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि सास बनने के बाद मांएं बहुत ही निस्स्वार्थ भाव से की गई ममता का मोल चाहती हैं. इनसिक्योर फील करती हैं. कड़वी सचाई तो यह है कि सास बनने के बाद मांएं स्वार्थी हो जाती हैं. अपने बेटे के अलावा उन्हें कुछ नहीं दिखता, बहू तो बिलकुल भी नहीं, बल्कि बहू को तो वे अपनी प्रतिस्पर्धी समझती हैं, दुश्मन मानती हैं जो उन का बेटा छीन रही हैं.

शायद इसलिए कि उन्होंने उसे जन्म दिया है, पालापोसा है. तो भई बहू को क्या उस की मां सड़क से उठा कर लाई थी? उसे भी उन्होंने जन्म दिया है और पालपोस कर इस लायक बनाया है कि वह आप के घर की शान बन सके. उसे एक मौका तो दीजिए.

तो क्या इस वजह से बेटा जिंदगी जीना छोड़ दे और हमेशा मां की जीहुजूरी में लगा रहे. मां जब गलत कहे, गलत करे तो भी वह चुप रहे?

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दोहरे मानदंड

यह घोर नाइंसाफी है. अगर अक्ल पर परदा पड़ गया हो तो ऐसी सासें जरा उस वक्त को सोचें जब वे भी बहू थीं. तब वे चाहती थीं कि उन का पति अपनी मां का नहीं, सिर्फ और सिर्फ उन का खयाल रखे. आप की भी तो कोई बेटी होगी. यदि उस की सास भी वैसे ही करे जैसा आप करती हैं तब आप को कैसा लगेगा? आप भी तो यही चाहेंगी न आप का दामाद बस आप की बेटी का खयाल रखे, अपनी मां का नहीं. क्यों हैं दोहरे मानदंड बेटी के लिए कुछ और बेटे के लिए कुछ और?

कैसी सियासत

अजीब सी सियासत है यह रिश्तों की. हमारे भारतीय समाज में एक ओर से मां अपने शास्त्र और शस्त्रों के साथ बेटे को अपनी ओर खींचती है तो दूसरी ओर से पत्नी विचारों और भावनाओं के साथ निशाना साधती रहती है. पुत्र एक रणभूमि में परिवर्तित हो जाता है.

व्यर्थ जाती ऊर्जा

सासबहू के बीच प्रत्यक्ष रूप से भावनात्मक रक्तपात होता रहता है. बेटा 2 पाटों में पिस जाता है और बिना अपना दिमाग लगाए मां का साथ देता है, क्योंकि उसे उस के दूध का कर्ज जो चुकाना होता है. न जाने कितने ऐसे बेटे हैं, जिन के जीवन का अच्छाखासा समय इन दोनों के संतुलन कायम करने में व्यर्थ जाता रहता है.

सड़ेगले मूल्य

सासूजी छोड़ो अपने इन सड़ेगले मूल्यों को. जब आप नहीं बदलेंगी तो अपने खिलाफ बगावत तो पाएंगी ही. न करो अपनी बहू को बगावत के लिए बाध्य. अपनी खुद की मुक्ति ढूंढ़ो. एक नई वैश्विक व्यवस्था का रास्ता आप को स्वयं ही एक औरत और मां की सोच को समझ लेना होगा. लेकिन इस के लिए आप को बहू की मां बनना होगा. आप को अपने अंदर की उस सृजनात्मकता को जगाना होगा जो सिर्फ बच्चे, पति और परिवार तक सीमित न रहे, बल्कि उस बेचारी पराई बेटी की मां भी बन सके.

यह है कारण

असल में हमारे देश में मां के प्रेम का अनावश्यक और अतिरंजित महिमामंडन कुछ ज्यादा ही होता है. मां बनना एक शुद्ध जैविक भूमिका है. चाहे वह जानवरों में हो या इंसानों में, चाहे किसी भी देश में, किसी भी धर्म या जाति में. वह बच्चे को अपने गर्भ में रखती है और जन्म के बाद उसे पोषण देती है. जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता और खुद से अपना भोजन नहीं जुटा पाता, मां उस की देखभाल करती है. पशुओं में मातृत्व ज्यादा संयमित, ज्यादा संतुलित और ज्यादा व्यावहारिक होता है. उस में एक स्वाभाविक मैत्री और करुणा है और एक स्वाभाविक उपेक्षा भी है, जो हम इंसानों के लिए क्रूरता का पर्याय है.

जानवर बेहतर हैं

प्यार का महिमामंडन करतेकरते हम कहीं न कहीं पाखंडी, स्वार्थी और प्रेम विहीन हो जाते हैं. अब पशुओं को ही देखो जब तक बच्चा अपने पैरों से चलने नहीं लगता तभी तक मां उस का खयाल रखती है. कुछ भी बदले में नहीं चाहिए. कितना पवित्र ममत्व है.

मानव शिशु अपनी मां पर निर्भर जैविक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों से रहता है और यह सफर पढ़नालिखना, बड़ा होना, शादी करना और न जाने क्याक्या जीवनपर्यंत चलता रहता है. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उस में मानसिक और मनोवैज्ञानिक संस्कार ऐसे गहरे बैठ जाते हैं कि वह आजीवन मांबाप पर और मांबाप उस पर लदे रहते हैं. यह हमारे सामाजिक जीवन की सचाई है. मां और पिता का जरूरत से ज्यादा प्रेम और संरक्षण बच्चे की सांस ही रोक देता है. अवसर आने पर वह अपनी पत्नी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता.

मेरे पड़ोस में रहने वाले माथुरजी की पत्नी सिर्फ इसलिए छोड़ गई, क्योंकि जब भी वह फैक्टरी से घर आते थे उन की माताजी उन से कहती थीं कि वह उन के साथ ही बैठे. माथुर साहब माता के प्रेम में डूब कर उन की बात मानते रहे और नतीजा यह हुआ कि उन की पत्नी यह कह कर उन्हें छोड़ गई कि आप ममाज बौय हैं. अपनी मां के साथ ही रहें.

आत्मप्रेम

ऐसे बहुत से केस रोज आप के सुनने में आते होंगे कि प्रेम चाहे जिस का हो, स्वार्थी होता है. मां का प्रेम कोई अलग किस्म का होता है, यह सोचना बहुत बड़ी बेवकूफी हो सकती है. हर प्रकार का प्रेम अंतत: आत्मप्रेम ही होता है. मेरा बेटा…’ इस अभिव्यक्ति में पूरा जोर ‘मेरा’ पर होता है, ‘बेटा’ दुबका रहता है.

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सुखी घरपरिवार का आधार है मधुर रिश्ते. शादी के बाद हर मां को यही लगता है कि उस का बेटा बदल गया है और वह अब सिर्फ अपनी पत्नी की बात ही सुनता है. ऐसे में मां इस बात पर बेटे या बहू को ताने देने लगती है तो रिश्ते में खटास आना स्वाभाविक है. घर में बहू जितनी भी अच्छी क्यों न हो सास की आदत होती है कि वह दूसरों की बहुओं की तुलना अपनी बहू से करती है. इस वजह से भी घर में कलह रहती है.

रिलेशनशिप काउंसलर का कहना है, ‘‘मैं केवल सास को दोषी नहीं ठहराऊंगी. मैं तो समस्या की जड़ पर बात करूंगी. आप दिल पर हाथ रख कर एक बात बताएं कि क्या हो जाता है शादी के बाद? क्यों शादी के बाद औरत कभी सास के रूप में, कभी बहू के रूप में, कभी ननद के रूप में, कभी पत्नी के रूप में ऐसी परिस्थिति पैदा कर देती है कि एकसाथ रहना दूभर हो जाता है और ठीकरा फूटता है पुरुष के सर? आप सब कहते हैं बेटियां अच्छी होती हैं, मैं भी यही कहती हूं कि बेटियां तो सभी अच्छी ही होती हैं, लेकिन क्या वही बेटियां अच्छी सास, अच्छी बहू, अच्छी पत्नी भी होती हैं? देखा जाए तो परिवार टूटने के मूल में है महिलाओं का आपसी सामंजस्य का अभाव, घर की महिला का खराब स्वभाव और रिश्तों में अत्यधिक अपेक्षाएं.’’

सोच कर देखें

महिलाओं में जितने क्लेश होते हैं पुरुषों में उतने नहीं होते. 2 अलगअलग घरों के लोग एक ही छत के नीचे मिलते हैं तो उन की सोच में फर्क होना लाजिम है. अगर सास अपने स्तर पर मन में पहले से ही यह मान ले कि इस नए रिश्ते की शुरुआत प्यार और दोस्ती के साथ करनी है, तो रिश्ता यकीनन मजबूत ही बनेगा. सास इस बात को समझे कि नई बहू आज के जमाने की लड़की है. घर की बेटियों के लिए मानदंड अलग और बहुओं के लिए अलग नहीं होने चाहिए.

बंद करें ड्रामा

अपने स्त्री होने का गलत फायदा उठाना बंद करें और अपने आंसुओं को हथियार न बनाएं. ईमानदारी से विरोध करना सही है, लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर केवल बहू मात्र का नहीं. एक औरत जो मानसिक हिंसा करती है, वह कतई माफ करने लायक नहीं. लिहाजा जरूरत मानसिकता बदलने की है.

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जब मां बाप ही लगें पराए

रीतेश अपनी क्लास का मेधावी छात्र था. पर पिछले दिनों उस का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया. इस से उस की योग्यता का ग्राफ तो गिरा ही दिनप्रतिदिन के व्यवहार पर भी बहुत असर पड़ा. खासतौर पर मां और भाई के प्रति उस का आक्रामक व्यवहार इतना बढ़ गया कि उसे मनोचिकित्सालय में भरती कराना पड़ा. उस के साथसाथ घर वालों की भी पर्याप्त काउंसलिंग की गई. तब 3 महीने बाद यह मनोरोगी फिर ठीक हुआ. उस के मांबाप को बच्चों के साथ बराबर का व्यवहार करने की राय दी गई.

  1. क्यों पड़ी यह जरूरत

डा. विकास कुमार कहते हैं, दरअसल किसी भी मनोरोग की जड़ हमेशा रोगी के मनमस्तिष्क में नहीं होती. परिवार, परिवेश और परिचित से भी उस का जुड़ाव होता है, उस का असर अच्छेभले लोगों पर पड़ता है. हम औरों की दृष्टि से नहीं सोच पाते.

अकसर मनोचिकित्सकों के पास ऐसे केस आते रहते हैं. ‘सिबलिंग राइवलरी’ बहुत कौमन है. ऐसा छोटेछोटे बच्चों में भी होता है, जिन बच्चों में उम्र का अंतर कम होता है उन में खासतौर पर. यदि मांबाप वैचारिक या अधिकार अथवा व्यवहार में बच्चों में ज्यादा भेद करें तो भाईबहनों में यह प्रवृत्ति आ जाती है.

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  1. मां-बाप हैं इस की जड़

छोटेछोटे बच्चे छोटे होने के बावजूद भाईबहनों को स्वाभाविक रूप से प्यार करते हैं. अकेला बच्चा मांबाप से पूछता है, औरों के भाईबहन हैं पर उस के नहीं. उस को भाई या बहन कब मिलेंगे? बच्चा बहुत निर्मल मन से उन का स्वागत करता है पर धीरेधीरे वह देखता है कि उस के भाईबहन को ज्यादा लाड़प्यार दिया जा रहा है, ज्यादा अटैंशन दी जा रही है तो अनजाने ही वह पहले उस बच्चे को और फिर मांबाप को अपना शत्रु समझने लगता है. फिर अपनी बुद्धि के अनुसार बदला लेने लगता है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना कहती हैं, ‘‘अकसर मांबाप बच्चों को चीजें बराबर दिलाते हैं, खिलातेपिलाते एकजैसा हैं पर वे मन के स्तर पर एकरूपता नहीं रख पाते. जैसे किसी बच्चे की ज्यादा प्रशंसा करेंगे, उसे भविष्य की आशा बताएंगे, अपने सपनों को साकार करने वाला बताएंगे. वे यह भूल जाते हैं कि हर एक बच्चे का बौद्धिक व भावनात्मक स्तर भिन्न होता है. इसलिए मांबाप को चाहिए कि वे बच्चों के साथ डेटूडे व्यवहार में चौकस रहें. उन से बराबरी का व्यवहार करें वरना एक बच्चा कुंठित, झगड़ालू, ईर्ष्यालु और हिंसक तक हो सकता है. इस के दुष्परिणाम हत्या, आत्महत्या, तोड़फोड़ मनोरुग्णता जैसे कई रूपों में हो सकते हैं.’’

  1. पेरैंटिंग सब से बड़ी चुनौती

गृहिणी राजू कहती हैं, ‘‘बच्चों को पैदा करने से ज्यादा मुश्किल है प्रौपर पेरैंटिंग. यह आज की सब से बड़ी चुनौती है. पहले बच्चा संयुक्त परिवार में पलता था, उस की भीतरी, आंतरिक और भावनात्मक शेयरिंग के लिए दादादादी, बूआ, चाचाताऊ आदि थे. उन के पास बच्चों के लिए अवसर था. फिर अभाव भी थे तो बच्चे थोड़े में संतुष्ट थे परंतु आज का बच्चा जागरूक है. मीडिया के माध्यम से सबकुछ घर में देखता है, इसलिए वह मांबाप से अपने अधिकार चाहता है. वह तर्कवितर्क करता है, बहस में जरा भी संकोच नहीं करता. ऐसे में मांबाप को चाहिए कि वे सजग हो कर पेरैंटिंग करें. पैसा खर्च कर के कर्तव्य की इतिश्री न करें.’’

मांबाप अकसर बच्चों के प्रति सोचविचार कर व्यवहार नहीं करते. किशोर बबली कहती है, ‘‘मेरे मांबाप मेरी टौपर बहन पर जान छिड़कते हैं. मैं घर के सारे काम करती हूं, दादी का ध्यान रखती हूं. उन्हें इस से कोई मतलब नहीं. दीदी तो पानी तक हाथ से ले कर नहीं पीतीं. ऐसे में मैं टौपर बनूं तो कैसे?’’

दादी उस के मनोभावों का उद्वेलन शांत करती हैं पर मांबाप की ओर से वह खास संतुष्ट नहीं है. वह उन से अपने काम का रिटर्न और प्यार चाहती है.

  1. शेयरिंग है जरूरी

रमन मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर हैं. मांबाप का खूब खयाल रखते हैं. उन की बैंक मैनेजर पत्नी भी पूरा ध्यान रखती है. पर उन को यह बड़ा ही शौकिंग लगा जब माता-पिता ने छोटे बेटे के साथ रहने का निर्णय लिया. छोटा बेटा मांबाप पर खास ध्यान भी नहीं देता, न ही उस के बच्चे. उस की घरेलू पत्नी भी अपने में ही मगन थी. मांबाप के इस निर्णय पर रमन व उन की पत्नी बहुत नाराज हो गए. फूटफूट कर रोए. एक पड़ोसिन ने रमन के मांबाप को यह बात बताई तो मांबाप को लगा सचमुच उन से गलती हो गई.

वे रमन और उन की पत्नी को अपनी ओर से श्रीनगर घुमाने ले गए. वहां उन्होंने बताया कि छोटा लड़का कम कमाता है. उस की बीवी भी नौकरी नहीं करती. दोनों के बच्चे भी आज्ञाकारी नहीं हैं. ऐसे में वे साथ रहेंगे तो उन्हें कुछ आर्थिक मदद भी मिल जाएगी और बच्चों की पढ़ाईलिखाई व पालनपोषण भी अच्छा रहेगा. भले ही उन्हें रमन के साथ सुख ज्यादा है पर 8-10 साल भी हम जी गए तो उस की गृहस्थी निभ जाएगी वरना रोज की चिकचिक से मामला बिगड़ जाएगा.

रमन व उन की पत्नी ने काफी हलका महसूस किया, साथ ही हकीकत जान कर उन का छोटे भाई के प्रति नजरिया भी बदला. उन्होंने भी आर्थिक स्तर के चलते जो दूरियां आने लगी थीं उन्हें समय रहते पाट दिया.

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  1. पैसा ही सबकुछ नहीं

डा. जय अपने माता-पिता को हर माह खर्च के लिए अच्छी राशि देते हैं पर उन्हें लगता है कि उन के मांबाप रिश्तेदारों में छोटे भाई का गुणगान ज्यादा करते हैं जिस ने कभी उन की हथेली पर कुछ नहीं रखा. इस के चलते परिवार में 2 गुट होने लगे. तब जय के माता-पिता ने स्पष्ट किया कि बेटा, पैसे की मदद बहुत बड़ी है पर तुम्हारे छोटे भाई का पूरा परिवार भी कम मदद नहीं करता, राशनपानी लाना, कहीं लाना, ले जाना, छोड़ना, सामाजिकता निभाने में मदद करना. अगर हम इन्हीं कामों को पैसे से तौलें तो तुम्हारे पैसे से ज्यादा ही रहेगी यह मदद. कोई नापने में समझता है तो कोई तौलने में. डा. जय को भी लगा कि यह बात तो सही है कि पैसे देने के बाद वे माता-पिता की खैरखबर नहीं ले पाते. उन को पिता के हार्टअटैक के समय छोटे भाई के ससुराल वालों की दौड़भाग भी याद आई.

  1. नजरिए का विस्तार

सुरंजय और संजय मांबाप से खूब लड़ते हैं. उन के मंझले भाई अजय इन दोनों से अलग हैं. अजय शराब नहीं छूते. वे आज्ञाकारी व मांबाप के सहायक हैं. फिर भी मांबाप उन दोनों को भी बराबर प्यार देते हैं. उस के अच्छे होने का फायदा ही क्या? अजय के इस कौन्फ्लिक्ट पर मांबाप ने समझाया, ‘शरीर का कोई अंग जब तक ठीक होने लायक हो तब तक उस की पूरी परवा की जाती है. उन की संगत ठीक नहीं थी, हमारे प्यार से वह सुधरी, आगे और भी सुधार संभव है. तुम पर जो नाजविश्वास हमें है, उस का तो कहना ही क्या पर हम इन दोनों को नजरअंदाज नहीं कर सकते तुम्हारी मांग जायज होने के बावजूद. अजय की शिकायत काफी कम हो गई. वे समझ सके कि सब को बराबर प्यार देना मांबाप की जिम्मेदारी है. यही उन के भाइयों को भी करना चाहिए पर वे अपरिपक्व हैं.

  1. कमजोर बच्चे की ओर झुकाव

मांबाप का मन अकसर छोटे और कमजोर बच्चों की ओर ज्यादा रहता है. वे सब बच्चों को समान व स्तरीय देखना चाहते हैं. ऐसे में कभीकभी भेदभाव जैसा व्यवहार लगता है पर असल में उन का भाव वैसा नहीं होता. बड़े बच्चों के साथ मांबाप दोस्ताना होते हैं. वे उन्हें जिम्मेदार समझ कर उन से उम्मीद करते हैं कि वे छोटे भाईबहनों का भी ध्यान रखें.

  1. सही सलाह भी जरूरी

प्रकाश वैसे आईआईटी का छात्र है पर उसे लगता है कि उस के विकलांग भाई के पीछे मांबाप पागल हैं. अगर उस पर इस से आधा भी प्यार लुटाते तो वह 2 चांस नहीं गंवाता. उसे उस के दोस्तों ने समझाया, ‘तुम समर्थ हो, सबल हो. तुम्हारा बड़ा भाई हर काम के लिए उन पर निर्भर है. इसलिए अगर वे राधूराधू करें तो तुम परेशान मत हुआ करो. तुम्हारे पास बाहर की पूरी दुनिया है. राधू के पास व्हीलचेयर, किताबें, टीवी और इक्कादुक्का लोगों के अलावा कौन है? इतने पराधीन जीवन में मांबाप ही उस का साथ नहीं देंगे तो वह जी ही नहीं पाएगा.’ प्रकाश को लगा कि उस की सोच भी दोस्तों जैसी परिपक्व व सकारात्मक होनी चाहिए.

  1. देने-लेने में फर्क

चाहे किसी के पास कितना ही धन हो पर अधिकार की प्राप्ति सब बराबर चाहते हैं. एक प्रोफैसर मां कहती हैं, मेरे बेटे का 5 लाख रुपए महीने का पैकेज है पर फिर भी वह छोटीछोटी बातों पर लड़ता है. उस के भाई को 20 हजार रुपए मिलते हैं. दो पैसा उसे दे दूं तो रूठ कर मेरी चीज मेरे सामने ही रख जाता है. तब मेरी सखी ने समझाया, ‘इस व्यवहार से तुम बेटेबहू दोनों खो दोगी.’ तब मैं ने समझा पैसे से भी ज्यादा जरूरी है भावनात्मकता व्यक्त करना. अब से मैं होलीदीवाली सब को बराबर देती हूं. भाईभाई आपस में कन्सर्न रख कर अब कुछ तरक्की पर हैं. बड़े भाई ने छोटे भाई के बिजनैस को प्रौफिटेबल बनाने में भी मदद की. होड़ और ईर्ष्या की जगह अच्छे अनुकरण ने ली.

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बलवीर कहते हैं, ‘‘मेरे बड़े बेटे के पास अकूत दौलत है. मैं ने अपनी प्रौपर्टी बांटी तो हिस्सा उस के हाथ से कराया. उस ने यादगार के तौर पर मामूली चीजें लीं बाकी भाईबहनों को दे दीं. उन सब में प्रेम भी खूब है. छोटा बेटा नशे का शिकार था उसे भी संभाला.’’ मनोचिकित्सक डा. विकास कहते हैं, ‘‘एकजैसी परवरिश पाने पर लगभग सब बच्चे एकजैसे योग्य निकल सकते हैं. उन में 19-20 का अंतर होता है. यह नैचुरल व ऐक्सेप्टेबल होता है.’’

बच्चे घर आएं तो न समझें मेहमान

पढ़ाई व नौकरी के सिलसिले में काफी बच्चे घर से बाहर रहने चले जाते हैं. मातापिता बच्चों  के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें भेज तो देते हैं लेकिन उन्हें हमेशा बच्चों के आने का इंतजार रहता है खासकर मां को. जब वे आते हैं तो मातापिता उन के लिए तरहतरह की तैयारियां करते हैं. बच्चों की हर इच्छा पूरी की जाती है. कभीकभी तो ऐसा भी होता है कि जब बच्चे आते हैं तब मातापिता इतना ज्यादा ध्यान रखने लगते हैं कि बच्चे को घर में ऊबन होने लगती है. वे चिड़चिड़ा व्यवहार करने लगते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली सपना कहती हैं, ‘‘जब मैं घर जाने वाली होती हूं तब 3-4 दिनों पहले से ही मेरी मम्मी फोन पर पूछने लगती हैं, क्या बनाऊं, तुझे क्या खाना है, कब आ रही है. जब मैं घर पहुंचती हूं तो हर 10 मिनट पर कहती रहती हैं ये खा लो, वो खा लो, अभी ये कर लो. 1-2 दिनों तक तो मुझे अच्छा लगता है, लेकिन फिर मुझे गुस्सा आने लगता है. गुस्से में कईर् बार मैं कह भी देती हूं कि क्या मम्मी, आप हमेशा ऐसे करती हैं, इसलिए मेरा घर आने का मन नहीं करता.’’

बच्चों के आने की खुशी में मांएं अकसर ऐसा करती हैं. यह ठीक है कि आप अपने बच्चे से बहुत प्यार करती हैं, घर आने पर उसे हर सुखसुविधा देना चाहती हैं लेकिन कईर् बार इस स्पैशल अटैंशन की वजह से बच्चे बिगड़ भी जाते हैं. उन्हें लगने लगता है कि वे घर जाएंगे तो उन की हर इच्छा पूरी होगी तो वे इस बात का फायदा उठाने लगते हैं. कभीकभी तो वे झूठ बोल कर चीजें खरीदवाने लगते हैं. बात नहीं मानने पर वे मातापिता से गुस्सा हो जाते हैं और घर नहीं आने की धमकी देने लगते हैं. इसलिए, जरूरी है कि आप संतुलन बना कर रखें. बच्चों के साथ सामान्य व्यवहार करें ताकि उन्हें यह न लगे कि वे अपने घर के बजाय किसी गैर के यहां मेहमान के रूप में रहने आए हैं.

क्या न करें

1. हर समय इर्दगिर्द रहने की कोशिश न करें

जब बच्चे घर आएं, उन से चिपके न रहें. हर समय उन के आसपास रहने की कोशिश न करें. इस बात को समझने की कोशिश करें कि अब आप के बच्चे अकेले रहते हैं, उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने की आदत हो गई है. ऐसे में अगर आप रोकाटोकी करेंगी और हर बात के लिए पूछती रहेंगी कि क्या कर रहे हो, किस से चैट कर रहे हो, कौन से दोस्त से मिलने जा रहे हो, तो उन्हें अजीब लगेगा. वे आप के साथ रहना पसंद नहीं करेंगे. आप से कटेकटे रहेंगे. इसलिए उन्हें थोड़ा स्पेस दें. लेकिन हां, इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वे आप से छिपा कर कोई गलत काम न कर रहे हों.

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2. गुस्से के डर से न भरें हामी

कई बच्चे ऐसे भी होते हैं कि जब पेरैंट्स उन की बात नहीं मानते तो वे गुस्सा हो जाते हैं, खानापीना छोड़ देते हैं. बच्चों की इन आदतों के चलते मातापिता उन की हर बात मान लेते हैं. वे नहीं चाहते कि छुट्टियों में बच्चे आए हैं तो किसी बात के लिए वे नाराज हों या गुस्सा करें और घर का माहौल खराब हो.

कई बार तो गुस्से के डर से मातापिता वैसी चीजों के लिए भी हामी भर देते हैं जो उन्हें पता है कि उन के बच्चे के लिए सही नहीं है. अगर आप ऐसा करते हैं तो करना बंद कर दें क्योंकि आप के ऐसा करने से बच्चे इस का फायदा उठा कर अपनी मनमानी करने लगते हैं.

3. हर वक्त खाना न बनाते रहें

बच्चे जब घर आते हैं तो मांएं सोचती हैं कि ज्यादा से ज्यादा चीजें बना कर खिलाएं. इसी वजह से वे अपना पूरा समय किचन में खाना बनाने में बिता देती हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि वे कई तरह की डिशेज बनाती हैं लेकिन बच्चे कुछ भी नहीं खाते. ऐसे में वे उदास हो जाती हैं कि पता नहीं, क्यों नहीं खा रहा है, पहले तो रोता था ये चीजें खाने के लिए. लेकिन आज एक भी चीज नहीं खा रहा है.

उन का इस तरह से सोचना गलत है क्योंकि बाहर रहने पर बच्चों की खाने की आदत में थोड़ा बदलाव आ जाता है. वे एक बार में कई तरह की चीजें नहीं खा पाते हैं. इसलिए, बहुत सारी डिशेज बनाने के बजाय एक ही डिश बनाएं ताकि सब खा भी पाएं और वे अपने बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकें.

4. गलतियां कर के सीखने दें

घर आने पर बच्चों को राजकुमार या राजकुमारी की तरह न रखें, बल्कि उन्हें तरहतरह के काम करने दें ताकि गलतियां करें और सीखें. यह न सोचें कि 4 दिनों के लिए आए हैं और आप ऐसी चीजें करवा रही हैं, बल्कि अगर वे आप के सामने काम करते हुए गलतियां करते हैं तो आप उन्हें सिखा सकती हैं. जरा सोचिए अगर वे अकेले में ऐसी गलतियां करेंगे तो क्या होगा. इसलिए, बेहतर है कि उन्हें छोटेछोटे काम करना सिखाएं.

5. तारीफ न करते रहें

अगर आप का बच्चा किसी कालेज में पढ़ाई कर रहा है या किसी अच्छी कंपनी में जौब करता है तो इस का यह मतलब नहीं है कि आप सब के सामने हमेशा उस की तारीफ करते रहें. ऐसा करने से बच्चों के अंदर घमंड आ जाता है.

6. भावनाएं न दिखाएं बारबार

बच्चे से कभी भी न कहें कि हम सब तुम्हें बहुत याद करते हैं, तुम्हारी मां तुम्हारे जाने के बाद रोती रहती है, कोई नहीं होता जिस से वे बात कर सकें. अगर कभी बच्चा भी अपनी किसी समस्या के बारे में बताता है तो उस से न कहें कि घर वापस आ जा, क्या जरूरत है परेशान होने की. इस से बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं. ऐसा करने से आप भी दुखी होती हैं और बच्चे भी.

7. समय को ले कर न हों पाबंद

घर में हर काम समय पर किया जाता है लेकिन जरूरी नहीं है कि बच्चे भी वही टाइमटेबल अपनाएं. इसलिए उन पर ऐसा कोई दबाव न डालें कि सुबह 6 बजे उठना है, देररात में घर से बाहर नहीं निकलना है, रात में टीवी नहीं देखना है आदि. बल्कि, उन्हें घर पर रिलैक्स होने दें.

8. बच्चों में न करें फर्क

ऐसा न करें कि बड़े बच्चे के आते ही छोटे बच्चे को भूल जाएं. वह कुछ भी कहें तो यह न कह दें कि तुम  घर में ही रहते हो, तुम्हारी बहन इतने दिनों के बाद आई है. आप के ऐसा करने से बच्चों के बीच में दूरी आने लगती है. वे सोचते हैं कि इस के आते ही इसे तो स्पैशल ट्रीटमैंट मिलने लगता है और मुझ पर कोई ध्यान नहीं देता.

क्या करें

गलती करें तो हक से डांटें  :  बच्चे जब गलती करते हैं तब आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप उसे अधिकारपूर्ण डांटे, क्योंकि आप की एक छोटी सी भूल या हिचक उस के आगे की जिंदगी खराब कर सकती है. इतना ही नहीं, अगर उस की कुछ गलत आदतों के बारे में आप को पता चले तो सोचने न बैठ जाएं कि आप का बच्चा गलत रास्ते पर चला गया है अब क्या करें. सोचने में समय बरबाद करने के बजाय उसे समझाने की कोशिश करें.

1. क्वालिटी टाइम दें

ऐसा न हो कि आप के बच्चे घर आएं तो भी आप अपने कामों में ही व्यस्त रहें, औफिस से देर से घर आएं, मेड से कह दें कि बच्चों का ध्यान रखें. ऐसा न करें क्योंकि आप के ऐसा करने से बच्चों को लगने लगता है कि घर आने से बेहतर तो वे वहीं रह लेते. इसलिए, बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. बेशक आप 1 घंटा ही समय साथ बिताएं, लेकिन उन के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करें ताकि वे आप के साथ एंजौय करें.

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2. जो बने वही खिलाएं

हर दिन कुछ स्पैशल बना कर बच्चों की आदत न बिगाड़ें. 1-2 दिन तो ठीक है लेकिन अगर आप हर समय स्पैशल खिलाती रहेंगी तो बच्चे की आदत बिगड़ जाएगी. जब वह वापस जाएगा तो वहां उसे ऐडजस्ट करने में समस्या होगी. उसे वहां का खाना अच्छा नहीं लगेगा.

3. पति की उपेक्षा न करें

बच्चे जब घर आते हैं तो सारा ध्यान इसी बात पर रहता है कि क्या बनाना है, बच्चों को क्या चाहिए. इन सब के बीच अगर पति कुछ कहते हैं तो आप का जवाब होता है कि हमेशा तो आप के लिए ही करती हूं, अभी तो मुझे मेरे बेटे के लिए करने दो. कुछ महिलाएं तो पति को पूरी तरह से इग्नोर कर देती हैं. आप ऐसा करने के बजाय दोनों को समय दें.

अगर आप अपने बच्चे को खास मेहमान समझती हैं तो इस के कई नुकसान हैं जिन के बारे में शायद ही आप का ध्यान कभी जाता होगा.

4. बच्चे होते हैं भावनात्मक रूप से कमजोर

घर पर मातापिता बच्चों को ढेर सारा प्यार देने की कोशिश करते हैं लेकिन वास्तव में वे ऐसा कर के बच्चों को भावनात्मक रूप से कमजोर बनाते हैं. जब बच्चे उन्हें छोड़ कर वापस जाते हैं तब उन का मन नहीं लगता. वे हर समय घर के बारे में ही सोचते रहते हैं. वे हर चीज की तुलना घर से करते हैं. ऐसे में उन्हें ऐडजस्ट करने में समस्या होती है.

5. बिगड़ता है बजट

बच्चों के आने पर उन के लिए तरहतरह के पकवान बनाती हैं, उन्हें शौपिंग करवाने ले कर जाती हैं, उन की पसंदीदा चीजें खरीदती हैं, लेकिन, इन सब चीजों से आप का बजट बिगड़ता है और बाद में आप को परेशानी होती है. कुछ मातापिता तो ऐसे भी होते हैं जो अपने बच्चों को खास ट्रीटमैंट देने के लिए पैसे उधार ले लेते हैं और बाद में उधार चुकाने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

कुल मिला कर बच्चे जब बाहर से आएं तो उन्हें समय दें, प्यार दें लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं. उन्हें मेहमान न बनाएं, न उन्हें मेहमान समझें ताकि वे अनुशासित ही रहें और उन में व आप के बीच स्नेह और भी बढ़े.

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एक बच्चे की अभिलाषा

“अनिक 10 साल का लड़का था . वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान  था . अनिक के पापा काफी व्यस्त बिजनेसमैन थे, जो अपने बेटे के साथ समय नहीं बिता पाते थे. वे अनिक के सोने के बाद घर आते और सुबह अनिक के जागने से पहले ऑफिस चले जाते . अनिक अपने पापा का ध्यान पाने के लिए तरस जाता . वह पार्क जाकर अपने दोस्तों की तरह ही अपने पापा के साथ खेलना था.

एकदिन अनिक अपने पापा को शाम को घर पर देखकर बहुत हैरान था.

“पापा, आपको घर पर देखकर बहुत अच्छा लगा ,” अनिक ने कहा.

“हाँ बेटा, मेरी मीटिंग कैंसिल हो गयी है. इसलिए मैं घर पर हूं लेकिन दो घंटे बाद मुझे एक फ्लाइट पकड़नी है , ”उसके पापा  ने जवाब दिया.

“आप वापिस कब आओगे?”

“कल दोपहर”

अनिक कुछ समय के लिए गहरी सोच में था.  फिर उसने पूछा, “पापा, एक साल में आप कितना कमाते हैं?”

उन्होंने कहा, “मेरे प्यारे बेटे, यह एक बहुत  बड़ी राशि है और आप इसे समझ नहीं पाएंगे.”

“ठीक है पापा , क्या आप जो कमाते हैं उससे खुश हैं?”

“हाँ मेरे बेटे मैं बहुत खुश हूं, और वास्तव में मैं कुछ महीनों में अपनी नई ब्रांच और एक नया बिज़नेस शुरू करने की योजना बना रहा हूं.

यह बहुत अच्छा है पापा मैं यह सुनकर खुश हूँ.

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क्या मैं आपसे एक सवाल पूछ सकता हूं? ”

“हाँ बेटा”

“पापा, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप 1 घंटे में कितना कमाते हैं?”

“अनिक, आप यह सवाल क्यों पूछ रहे हो?” अनिक के पापा  हैरान थे.

लेकिन अनिक लगातार पूछ रहा था , “PLEASE मुझे जवाब दो. क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं? ”

अनिक के पापा ने जवाब दिया, ” यह लगभग 4000 रुपये/- प्रति घंटे होगा. ”

अनिक अपने कमरे में ऊपर चला गया और अपने गुल्लक के साथ नीचे आया जिसमें उसकी बचत थी.

“पापा , मेरे गुल्लक में 500 रुपए हैं.क्या आप इतने पैसो में ही मेरे लिए दो घंटे का समय दे सकते हैं? मैं आपके साथ बहार घूमने जाना चाहता हूं और शाम को आपके साथ खाना खाना चाहता हूँ.क्या आप मेरे लिए थोड़ा टाइम निकाल सकते है.

अनिक के पापा अवाक थे!”

दोस्तों ये सिर्फ एक घर की ही कहानी नहीं है. आजकल ये लगभग सभी घरों की कहानी बन चुकी है .एक तो हम दिनभर अपने कामों में व्यस्त रहते है और अगर हमारे पास टाइम रहता भी है तो हम अपने  स्मार्टफोन में लगे रहते  है . हम अपने बच्चे से कायदे से बैठ कर बात भी नहीं कर पाते और न ही ये जानने की कोशिश करते है की उनके मन में क्या चल रहा है या वो हमारे बारे में क्या सोचते है .

शायद कल को ऐसा दिन आएगा की हर बच्चा ये सोचेगा कि “काश मै एक SMARTPHONE होता “ .

“वो सोचेगा कि अगर मैं smartphone बन जाऊ तो घर में मेरी एक ख़ास जगह होगी और सारा परिवार मेरे आस पास रहेगा. जब मैं बोलूँगा तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे.पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद भी मेरे साथ बैठेंगे. मम्मी को जब तनाव होगा तो वो मुझे डाटेंगी नहीं बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी. मेरे बड़े भाई-बहन  मुझे अपने पास रखने के लिए झगडा करेंगे, और हाँ phone के रूप में मैं सबको ख़ुशी भी दे पाऊँगा.”

कहीं ये किस्सा आपके बच्चे की भी तो नहीं ?

दोस्तों आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए बहुत कम टाइम मिल पाता है और अगर हम ये भी सिर्फ tv देखने, mobile पर खेलने और facebook में गंवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पाएंगे

पैसा सब कुछ नहीं खरीद सकता है. एक स्वस्थ्य भविष्य की शुरूआत एक स्वस्थ्य मन से होती है .एक अभिभावक अपने बच्चे को जो सबसे बड़ा उपहार दे सकता है वह है ‘समय’.

मेरी आपसे गुज़ारिश है कि जिस जिसने भी इस लेख को पढ़ा है वो केवल इसे पढ़े  नहीं बल्कि  इस पर अमल भी करें.

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ताकि याद रहे मेहमाननवाजी

यह सच है कि भारतीय त्योहारों व शादी में रस्में बहुत धूमधाम से मनाई जाती हैं. मेहमानों का आना भी अच्छा लगता है. मगर मेहमानों के खानेपीने और रहने का विशेष प्रबंध होना चाहिए ताकि वे वापस जा कर यह कहते न थकें कि आप की मेहमाननवाजी बहुत ही अच्छी रही. जबरदस्त मेजबानी हुई. मेहमानों को कैसे करें ऐसा कहने को मजबूर इस के लिए प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स:

रहने की व्यवस्था

आप सब से पहले आने वाले मेहमानों की लिस्ट बनाएं. इस में यह भी देखें कि कितने सीनियर सिटीजंस है और कितने यंग. बड़ी उम्र के मेहमानों के लेटनबैठने की व्यवस्था के लिए बैड, कुरसी आदि का इंतजाम हो. उन्हें अपना सामान रखने के लिए एक छोटी मेज हो, ताकि उन्हें झुकना न पड़े. यंग लोग तो जमीन पर भी गद्दा आदि लगा कर रह सकते हैं. यदि बैठने का इंतजाम ऊपर व नीचे की मंजिल पर हो और लिफ्ट न हो तो सीनियर सिटीजंस को हमेशा नीचे की मंजिल पर रखें और टौयलेट भी पास हो. गरमी का मौसम है तो किराए पर ही एयर कंडीशनर या कूलर लगवा लें ताकि मेहमान गरमी से बेहाल न हों.

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खाने-पीने की व्यवस्था

शुरुआत चाय से होती है. अत: मीठी और फीकी चाय का इंतजाम हो. साथ में बिस्कुट भी अवश्य होने चाहिए. जिन के बच्चे छोटे हों और दूध पीते हों उन के लिए दूध की भी व्यवस्था हो. इस सब के साथसाथ नीबूपानी, कुनकुने पानी का भी इंतजाम हो.

स्नैक्स में डीप फ्राई चीजों जैसे पकौड़ों, कचौड़ी, हलवा आदि का प्रबंध हो तो साथ में सैंडविंच, पोहा, उपमा, दलिया, इडली, सांभर चटनी आदि का भी प्रबंध रखें, ताकि जो मेहमान तला नाश्ता नहीं करते हो वे नाश्ता कर सकें.

इसी तरह लंच और डिनर का भी समय सही रखने का प्रयास करें. खाना बहुत स्पाइसी न बनवाएं. अपने परिवार के मेहमानों के बारे में जानते हुए 1-2 सब्जियां हलके नमक की अवश्य रखें. उबले आलू, दही, सलाद फ्रिज में अवश्य रखें. दही खट्टा न हो. छाछ, नारियल पानी आदि भी अवश्य रखवाएं.

जब भी कोई मेहमान आए पानी के साथ मिठाई अवश्य दें. सब से मिलते रहें और एकदूसरे से परिचय कराते रहें, ताकि मेहमान आपस में भी घुलतेमिलते रहें.

प्रतियोगिताओं का आयोजन

शादी में सिर्फ बातचीत से काम नहीं चलता. अत: शादी के माहौल को मजेदार और यादगार बनाने के लिए यंग जैनरेशन सीनियर सिटीजंस के बीच अंत्याक्षरी आदि प्रतियोगिताएं रखें. पुरुषों में साड़ी जल्दी कौन तह करता है तो स्त्रियों में रखें कि साड़ी कौन जल्दी बांधती हैं. किसी महिला वाले पोस्टर पर स्त्रीपुरुष दोनों माथे पर कौन सही जगह बिंदी लगाता है प्रतियोगिता रखें.

इस सीजन में फल बहुतायत में आते हैं. अत: लड़कियों और महिलाओं के बीच जल्दी फल को काटनेछीलने की प्रतियोगिता रखें. इस से एक और फायदा यह होगा कि सभी मेहमानों को फल खाने को मिलेंगे और वे कट भी जाएंगे. प्रतियोगिता जीतने वाले के लिए पहले से ही इनाम तय रखें. तंबोला भी खिला सकते है. डांस का भी आयोजन कर सकते हैं.

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यंग बनाम सीनियर सिटीजंस.

शादी व त्योहार को यादगार बनाने के लिए प्रत्येक मेहमान के साथ ज्यादा से ज्यादा क्वालिटी टाइम बिताने की कोशिश करें. गिफ्ट सब को बराबर दें. इस तरह मेहमानों को एहसास होता है कि वे वाकई खास हैं. वे कभी आप की मेजबानी नहीं भूल पाएंगे.

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रोशनी का त्योहार दीवाली हो या कोई और उत्सव, जब तक 10-20 लोग मिल कर धूम न मचाएं आनंद नहीं आता. सैलिब्रेशन का मतलब ही मिल कर खुशियां मनाना और मस्ती करना होता है. पर मस्ती के लिए मस्तों की टोली भी तो जरूरी है.  आज बच्चे पढ़ाई और नौकरी के लिए घरों से दूर रहते हैं. बड़ेबड़े घरों में अकेले बुजुर्ग साल भर इसी मौके का इंतजार करते हैं जब बच्चे घर आएं और घर फिर से रोशन हो उठे. बच्चों से ही नहीं नातेरिश्तेदारों और मित्रों से मिलने और एकसाथ आनंद उठाने का भी यही समय होता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन बनाएं शानदार

पड़ोसियों के साथ सैलिब्रेशन:  इस त्योहार आप अपने सभी पड़ोसियों को साथ त्योहार मनाने के लिए आमंत्रित करें. अपनी सोसाइटी या महल्ले के पार्क अथवा खेल के मैदान में पार्टी का आयोजन करें. मिठाई, आतिशबाजी और लाइटिंग का सारा खर्च मिल कर उठाएं. जब महल्ले के सारे बच्चे मिल कर आतिशबाजी का आनंद लेंगे तो नजारा देखतेही बनेगा. इसी तरह आप एक शहर में रहने वाले अपने सभी रिश्तेदारों और मित्रों को भी सामूहिक सैलिब्रेशन के लिए आमंत्रित कर सकते हैं.

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डांस पार्टी:  भारतीय वैसे भी डांस और म्यूजिक के शौकीन होते हैं तो क्यों न प्रकाशोत्सव के मौके को और भी मस्ती व उल्लास भरा बनाने के लिए मिल कर म्यूजिक डांस और पार्टी का आयोजन किया जाए.  पूरे परिवार के साथसाथ पड़ोसियों को भी इस में शरीक करें ताकि यह उत्सव यादगार बन जाए. बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों के चाहें तो अलगअलग ग्रुप बना सकते हैं ताकि उन के मिजाज के अनुसार संगीत का इंतजाम हो सके. बुजुर्गों के लिए पुराने फिल्मी गाने तो युवाओं के लिए आज का तड़कताभड़कता बौलीवुड डांस नंबर्स, अंत्याक्षरी और डांस कंपीटिशन का भी आयोजन कर सकते हैं.

स्वीट ईटिंग कंपीटिशन

प्रकाशोत्सव सैलिब्रेट करने का एक और बेहतर तरीका है कि तरहतरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएं. मसलन, स्वादिष्ठ मिठाईयां बनाने की प्रतियोगिता, कम समय में ज्यादा मिठाई खाने की प्रतियोगिता, खूबसूरत रंगोली बनाने की प्रतियोगिता आदि. आप चाहें तो जीतने वाले को इनाम भी दे सकते हैं. इतना ही नहीं, कौन जीतेगा यह शर्त लगा कर गिफ्ट की भी मांग कर सकते हैं.

वन डे ट्रिप

आप त्योहार का आनंद अपने मनपसंद  शहर के खास टूरिस्ट स्थल पर जा कर भी ले सकते हैं. सभी रिश्तेदार पहले से बुक किए गए गैस्ट हाउस या रिजौर्ट में पहुंच कर अलग अंदाज में त्योहार मनाएं और आनंद उठाएं. त्योहार मनाने का यह अंदाज आप के बच्चों को खासतौर पर पसंद आएगा.

तनहा लोगों की जिंदगी करें रोशन 

आप चाहें तो त्योहार की शाम वृद्घाश्रम या अनाथालय जैसी जगहों पर भी बिता सकते हैं और अकेले रह रहे बुजुर्गों या अनाथ बच्चों की जिंदगी रोशन कर सकते हैं. पटाखे, मिठाई और कैंडल्स ले कर जब आप उन के बीच जाएंगे और उन के साथ मस्ती करेंगे तो सोचिए उन के साथसाथ आप को भी कितना आनंद मिलेगा. जरा याद कीजिए ‘एक विलेन’ फिल्म में श्रद्घा कपूर के किरदार को या फिर ‘किस्मत कनैक्शन’ फिल्म में विद्या बालन का किरदार. ऐसे किरदारों से आप अपनी जिंदगी में ऐसा ही कुछ करने की प्रेरणा ले सकते हैं. इनसान सामाजिक प्राणी है. अत: सब के साथ सुखदुख मना कर ही उसे असली आनंद मिल सकता है.

सामूहिक सैलिब्रेशन के सकारात्मक पक्ष

खुशियों का मजा दोगुना

जब आप अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों के साथ सामूहिक रूप से त्योहार मनाते हैं तो उस की खुशी अलग ही होती है. घर की सजावट और व्हाइटवाशिंग से ले कर रंगोली तैयार करना, मिठाई बनाना, शौपिंग करना सब कुछ बहुत आसान और मजेदार हो जाता है. हर काम में सब मिल कर सहयोग करते हैं. मस्ती करतेकरते काम कब निबट जाता है, पता ही नहीं चलता. वैसे भी घर में कोई सदस्य किसी काम में माहिर होता है तो कोई किसी काम में. मिल कर मस्ती करते हुए जो तैयारी होती है वह देखने लायक होती है.

मानसिक रूप से स्वस्थ त्योहारों के दौरान मिल कर खुशियां मनाने का अंदाज हमारे मन में सिर्फ उत्साह ही नहीं जगाता वरन हमें मानसिक तनाव से भी राहत देता है.  यूनिवर्सिटी औफ दिल्ली की साइकोलौजी की असिस्टैंट प्रोफैसर, डा. कोमल चंदीरमानी कहती हैं कि त्योहारों के समय बड़ों का आशीर्वाद और अपनों का साथ हमें ऊर्जा, सकारात्मक भावना और खुशियों से भर देता है. समूह में त्योहार मनाना हमारे मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. इस से हमारा सोशल नैटवर्क और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच बढ़ती है, जीवन को आनंद के साथ जीने की प्रेरणा मिलती है.  हाल ही में अमेरिका में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों का समाजिक जीवन जितना सक्रिय होता है उन के मानसिक रोगों की चपेट में आने की आशंका उतनी ही कम होती है. शोध के अनुसार, 15 मिनट तक किया गया सामूहिक हंसीमजाक दर्द को बरदाश्त करने की क्षमता को 10% तक बढ़ा देता है.  अपने होने का एहसास: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अकसर हमें अपने होने का एहसास ही नहीं रह जाता. सुबह से शाम तक काम ही काम. मिल कर त्योहार मनाने के दौरान हमें पता चलता है कि हम कितने रिश्तेनातों में बंधे हैं. हम से कितनों की खुशियां जुड़ी हैं. तोहफों के आदानप्रदान और मौजमस्ती के बीच हमें रिश्तों की निकटता का एहसास होता है. हमें महसूस होता है कि हम कितनों के लिए जरूरी हैं. हमें जिंदगी जीने के माने मिलते हैं. हम स्वयं को पहचान पाते हैं. जीवन की छोटीछोटी खुशियां भी हमारे अंदर के इनसान को जिंदा रखती हैं और उसे नए ढंग से जीना सिखाती हैं.

बच्चों में शेयरिंग की आदत

आप के बच्चे जब मिल कर त्योहार मनाते हैं तो उन में मिल कर रहने, खानेपीने और एकदूसरे की परवाह करने की आदत पनपती है. वे बेहतर नागरिक बनते हैं.

बच्चे दूसरों के दुखसुख में भागीदार बनना सीखते हैं. उन में नेतृत्व की क्षमता पैदा होती है. घर के बड़ेबुजुर्गों को त्योहार पर इकट्ठा हुए लोगों को अच्छी बातें व संस्कार सिखाने और त्योहार से जुड़ी परंपराओं और आदर्शों से रूबरू कराने का मौका मिलता है.

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गिलेशिकवे दूर करने का मौका 

उत्सव ही एक ऐसा समय होता है जब अपने गिलेशिकवों को भूल कर फिर से दोस्ती की शुरुआत कर सकता है. त्योहार के नाम पर गले लगा कर दुश्मन को भी दोस्त बनाया जा सकता है. सामने वाले को कोई तोहफा दे कर या फिर मिठाई खिला कर आप अपनी जिंदगी में उस की अहमियत दर्शा सकते हैं. सामूहिक सैलिब्रशन के नाम पर उसे अपने घर बुला कर रिश्तों के टूटे तार फिर से जोड़ सकते हैं.

कम खर्च में ज्यादा मस्ती

जब आप मिल कर त्योहार मनाते हैं, तो आप के पास विकल्प ज्यादा होते हैं. आनंद व मस्ती के अवसर भी अधिक मिलते हैं. इनसान सब के साथ जितनी मस्ती कर सकता है उतनी वह अकेला कभी नहीं कर सकता. एकल परिवारों के इस दौर में जब परिवार में 3-4 से ज्यादा सदस्य नहीं होते, उन्हें वह आनंद मिल ही नहीं पाता जो संयुक्त परिवारों के दौर में मिलता था. सामूहिक सैलिब्रेशन में मस्ती और आनंद ज्यादा व खर्च कम का फंडा काम करता है.

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