इकलौते लड़के से शादी

जैसे ही किसी की बेटी की शादी इकलौते लड़के से तय होती है, त्योंही उसे सुखसमृद्धि की गारंटी मान लिया जाता है. एक दंपती ने जब अपनी बेटी की शादी के कार्ड बांटे तो हर किसी से अपनी बेटी के ससुराल में लड़के के इकलौते होने की चर्चा जरूर की. एक संबंधी ने कहा कि तब तो उन के यहां हमारे घर जैसी रौनक नहीं होगी. हमारे यहां तो मामूली अवसर पर भी इतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं कि घर में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. फिर भी वे इकलौते लड़के के गुण गाते रहे तो उस रिश्तेदार ने आक्रोश में कहा कि अगर इतना ही इकलौतेपन का क्रेज है तो अपने बेटे को भी इकलौता रहने दिया होता. तब किसी और परिवार को भी आप के इस सुख जैसा सुख मिलता.

सब कुछ इस का है

अकसर शादी की बात चलते ही लड़की वाले इसी बात को अहमियत देते हैं और लड़के वाले भी पसंद की जगह बात बनाने के लिए इस बात का सहारा लेते हैं. भले ही यह बात सच है पर इस तरह की अपेक्षा पालना अकसर अनाधिकार चेष्टा को जन्म देता है. शैलेंद्र व सीता दंपती ने जब एक ट्रस्ट बनाया तो सब दंग थे. लेकिन उन्होंने बेटे को ट्रस्टी न बनाया तो उस ने रिश्तेदारों पर अपने मातापिता को समझाने का दबाव बनाया. तब मातापिता की बातों से स्पष्ट हुआ कि बेटाबहू तो सब कुछ उन का है यह मान कर बैठे हैं. इन की कमाई बहुत है फिर भी ये हारीबीमारी तक में नहीं पूछते. पता नहीं हमारे पालनपोषण में कहां कमी रह गई. हम अपना पूरा पैसा गरीबों की शिक्षा व संस्कार पर खर्चेंगे. खैर, समय रहते बेटाबहू सुधरे तो मांबाप ने अपनी वसीयत थोड़ी बदली. उन्होंने बेटाबहू के लिए गुंजाइश निकाली, लेकिन ट्रस्ट वाला मुद्दा नहीं बदला.

सब कुछ अपना मान लेने की मानसिकता फर्ज अदायगी में बाधक है. कुमार अच्छा कमाने के बावजूद जबतब मांबाप से मोटी रकम वसूलते रहते हैं. कुछ कहने पर कहते हैं कि आगे लूं या पीछे, इस से क्या फर्क पड़ता है. सब कुछ तो मेरा ही है. मांबाप को यह पसंद नहीं. उन्होंने अब दूसरी तरह सोचना शुरू कर दिया है.

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लड़की वाले हावी

ज्यादातर परिवारों में लड़के का छोटा परिवार होने के कारण लड़की के पीहर वाले हावी हो जाते हैं. इन के यहां है ही कौन हम ही तो हैं, यही सोचते हैं वे. ऐसी स्थितियां लड़की की ससुराल में उत्साह भंग करने वाली होती है. कुसुम को बारबार सुनना पड़ता है कि हमारे घर में उसी के घर वाले नजर आते हैं. कोई मौका हो तो पूरी फौज हाजिर हो जाती है. कुसुम ने पीहर वालों को जब ताकीद कराया कि बुलाने का मतलब यह नहीं कि उन के यहां अड्डा ही जमा लिया जाए तो कहीं बात बनी. बहुत से इकलौते लड़के के मांबाप बड़े परिवार में रिश्ता कर के खुश होते हैं. उन की इच्छा रहती है कि वकत पर वे लोग उन के पास आएंजाएं. क्योंकि छोटे परिवार की कमी वे  देख चुके होते हैं. फिर भी उन के यहां डेरा जमाना कुछ लड़की वालों को नहीं जंचता. उन्हें लगता है कि लड़के वालों की पहल तथा इच्छा से उन के यहां आनाजाना अच्छा व सम्मानजनक रहता है. साथ ही बेटी या बहन को ताने या चुहलबाजी का सामना नहीं करना पड़ता.

उस पर अगर इकलौता लड़का अपनी ससुराल से ज्यादा जुड़ जाता है तो उसे अपने करीबी लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. विजय के चचेरे भाईबहन उसे इसीलिए खरीखोटी सुनाते हैं, ‘यार अब हम हैं ही क्या? अब तो तुम्हें सिर्फ ससुराल वाले ही दिखते हैं.’ विजय को पत्नी पर गुस्सा आता है. पत्नी को पीहर वालों पर.

इकलौते नहीं रहे

एक दंपती ने इकलौते बेटे की सगाई करते ही उस से कह दिया कि अब उन्हें एक बेटी भी मिल गई है. अब वह अपनेआप को इकलौता न समझे. ये दंपती कहते हैं कि ऐसा उन्होंने बेटे की मानसिकता को ध्यान में रख कर किया. वह किसी और बच्चे को हमारी गोद में बैठा देख कर उसे मारता, रुलाता था. उस की चीजें तोड़फोड़ देता था. हम ने इस का इलाज भी कराया, फिर भी उस में वह भावना कुछ बची हुई है. एक दंपती कहते हैं कि हमारा बेटा ऐसी मनोवृत्ति का शिकार है कि उसे हमारा उसी के बेटाबेटी से प्यार करना अच्छा नहीं लगता. हम उसे कैसे ठीक करें, यह समझ में नहीं आ रहा. उसे समझाना आसान नहीं. हमारे घर में बातबात पर कलह आम बात है.

केयरिंग शेयरिंग की आदत नहीं

अकेले लड़के से शादी करना मखमली या फूल जैसी नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है. एक तो ऐसे लड़के वैसे ही नाजों से पाले जाते हैं, उस पर इकलौते लड़कों की तो बात ही क्या है. चूंकि उन्हीं की केयर ज्यादा की जाती है, इसलिए वे दूसरों की केयर करने में उतने उत्सुक या जागरूक नहीं होते. चूंकि उन्हें सब कुछ बहुतायत में मिलता है, इसलिए शेयर करने की आदत उन में नहीं आती. इसीलिए पत्नी के रूप में ही सही, उन की ही इच्छा से कोई उन के जीवन में प्रवेश करता है, तो भी वे उतने मन से उस का स्वागत नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्ति के जीवन में स्पेस बनाना पत्नी के लिए चुनौती होता है. एक इकलौते व्यक्ति की पत्नी बताती है कि इन्हें तो रात के अलावा मेरा कमरे में रहना तक पसंद नहीं. बस इन का मन या गरज हो तभी. भावनाओं की कद्र करना तो आता ही नहीं इन्हें. ये तो लोगों को वस्तु समझते हैं.

ऐसी ही एक और इकलौती बहू कहती है कि मैं भरेपूरे परिवार से आई और यहां एकदम अकेली पड़ गई. इन्हें ही क्या, इन के मातापिता तक को मेरा किसी से शेयर करना अच्छा नहीं लगता. किसी से बोलनाबतियाना उन्हें मुंह लगाना लगता है, लेनादेना आफत मोल लेना तथा रिश्तों की कद्र करना लिफ्ट देना. मैं ने साफ कहा कि हम अपनेअपने अंदाज से जीएं. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी कोई सोच है. इन्हें यह सब अच्छा तो नहीं लगता पर सहन करना सीख गए हैं.

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हर इकलौता एक सा नहीं

गुड्डू भरेपूरे ससुराल को पा कर खुश है. वह मानता है कि उस के ससुराल वालों ने उस के जीवन की कमी को पूरा किया है. अपनी सालियों और पत्नी के चचेरेममेरे भाइयों तक को अपने परिवार का हिस्सा मानता है. उन से मिलने के लिए पार्टी के बहाने ढूंढ़ता है. सब उसे जीजूभाई, जीजूदादा, जीजूचाचा, जीजूमामा आदि कह कर खूब लाड़ करते हैं. उस की पत्नी इसे बावलापन समझती है. उस के सासससुर कहते हैं कि गुड्डू शुरू से ही मिलनसार है. इस ने कभी अकेला होना नहीं चाहा. बचपन में जब भी अस्पताल के सामने से निकलता, हम पर जोर देता कि जाओ, मेरे लिए खूब सारे भाईबहन ले कर आओ. हम से बारबार अकेलेपन का दुख कहता. हम ने अन्य संतानों की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. हमें तो पछतावा है. हम ने किसी अनाथ लड़की को गोद ले लिया होता. गुड्डू की जिंदगी में इकलौतापन मजबूरीवश आया. वह मन से इकलौता नहीं है.

इकलौतेपन को लौटरी न मान कर सहज भाव से लिया जाए. सब कुछ अपना मान कर चलना दुख बढ़ाता है. अधिकार के साथसाथ कर्तव्य भाव जिम्मेदार बनाता है. इकलौते लड़केलड़की की शादी देखने में भले अच्छी लगे पर कांटों भरे ताज जैसी होती है. क्योंकि उन्हें सहज रिश्तों में भी एकदूसरे तथा एकदूसरे के परिवारों की उपेक्षा का भाव अनुभव होता है. लड़की को इकलौते लड़के से शादी कर के केवल पत्नी बन कर ही नहीं रहना पड़ता, बल्कि उस की मां, बहन, रिश्तेदार, दोस्त व सहेली सब कुछ बन कर रहने का दायित्व भी वहन करना पड़ता है. इकलौते लड़के के नखरे भी उठाने पड़ सकते हैं. उस के मूड के अनुसार चलना पड़ सकता है. उस की इच्छाओं के आगे झुकना पड़ सकता है. पत्नी बन कर हम उस पर कब्जा नहीं जमा सकते. उस के स्वेच्छाचारी मन को जीतने के लिए कुछ खास जतन करने के लिए भी अपनेआप को तैयार करना पड़ सकता है. तभी इकलौते लड़के से शादी अच्छी तरह चल व निभ सकती है.

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बदतमीज ससुर से नाता तोड़ कर सुखी रहें

32 साल की मीना बहुत दिनों से गौर कर रही थी कि उस के ससुर की नजरें सही नहीं. वे कभी उसे चोर निगाहों से देखते रहते हैं, कभी जानबूझ कर हाथ छूने का प्रयास करते हैं तो कभी कुछ इशारे भी करते हैं. कई दफा ससुर खुले आंगन में कच्छा पहन कर नहाते हुए उधर से गुजरती मीना को घूरघूर कर देखने लगते. मीना एकदम से अंदर कमरे में छिप कर बैठ जाती.

मीना की शादी को अभी 1 साल भी पूरे नहीं हुए थे. घर में नई थी और पितातुल्य ससुर के बारे में ऐसी बात सोचना भी उस के लिए आसान नहीं था. मगर अब उसे अक्सर ही यह एहसास होने लगा था कि ससुर उसे बेटी की नजरों से नहीं देखते, उन की नजरों में और हरकतों में कहीं न कहीं बदतमीजी झलकती है.

एक दिन उस ने अपनी मन की बात अपने पति से कहीं तो पति उसे चुप कराते हुए बोला,” यह क्या कह रही हो? जानती भी हो वे मेरे पिता हैं. गोद में खिलाया है उन्होंने मुझे. तुम्हारे भी तो पिता ही हुए न. इस उम्र में उन पर ऐसे इल्जाम कैसे लगा सकती हो?”

“मैं इल्जाम नहीं लगा रही सुजय. मुझे ऐसा लगा.”

“पर ऐसा क्यों लगा तुम्हें ? सारी बात बताओ मीना. ”

“जब भी मैं उन्हें चाय देने जाती हूं तो वह चाय लेते वक्त जानबूझ कर मेरे हाथ छूने की कोशिश करते हैं और अजीब तरह से मेरी तरफ देखते हैं. एक दिन तो कहने लगे कि जरा कंधे पर तेल मल दो. ऐसा कह कर वे कपड़े उतारने लगे पर काम का बहाना बना कर मैं बाहर भाग आई.”

“देखो मीना हो सकता है यह तुम्हारा भ्रम हो. उन्हें सच में कंधे में दर्द हो रहा हो या फिर चाय लेते समय बुजुर्ग होने की वजह से उन के हाथ कांप जाते हों और तुम्हें लगता है कि वे स्पर्श करने का प्रयास कर रहे हैं,” सुजय ने समझाना चाहा.

” सुजय मैं एक औरत हूं और पुरुष की नजरों को अच्छी तरह पढ़ सकती हूँ. मुझे डर है कि तुम ने अभी ध्यान नहीं दिया तो बाद में कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए,” मीना का ससुर की नियत पर संदेह कायम था.

“तुम क्या चाहती हो मीना? मैं क्या करूँ ? पिताजी से लडूं?”

” नहीं लड़ने के बजाय हमें चुपचाप उन से अलग हो जाना चाहिए.”

मीना की आंखों का दर्द देख कर सुजय को महसूस हुआ कि वह झूठ नहीं बोल रही. वह गंभीर होता हुआ बोला,

“पर मीना हम पिताजी को अकेला छोड़ कर भी तो नहीं जा सकते न.”

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“अकेला क्यों सुजय? भैयाभाभी हैं न. वे ऊपर के फ्लोर पर ही तो रहते हैं . फिर पिताजी का सालों पुराना नौकर भी उन के साथ है.”

“चलो मैं देखता हूं क्या किया जा सकता है. पर सच कहता हूं लोग तुम्हें ही ब्लेम देंगे कि बहू ने आते ही बाप को बेटे से अलग कर दिया.”

“तुम दोनों को अलगअलग करना मेरी मंशा नहीं. मैं तो बस सुकून से जीना चाहती हूं सुजय.”

“ठीक है मीना मैं कोशिश करता हूं.” कह कर सुजय अपने काम में लग गया और बात आईगई हो गई.

उस दिन मीना छत पर कपड़े सुखा रही थी कि अचानक से सामने ससुर आ कर खड़े हो गए और उस की तरफ ललचाई नजरों से देखते हुए कहने लगे,” कभी मेरे करीब आ कर देख. दुनिया बदल दूंगा तेरी. तुझे वह खुशी दूंगा जो शायद सुजय ने भी नहीं दी होगी. एक नई दुनिया देखेगी तू.”

मीना आंखें फाड़ कर उन की तरफ देखती रह गई. बाप जैसा शख्स उस के साथ खुलेआम ऐसी बातें कर रहा था.खुल कर ऐसी बदतमीजी कर रहा था. वह सोच भी नहीं सकती थी. एकदम से भागती हुई वह नीचे अपने कमरे में आई और दरवाजा बंद कर लिया. ससुर पीछे से आवाज देता रहा. शाम तक मीना कमरे से नहीं निकली. शाम में जैसे ही सुजय घर लौटा तो मीना उस के सीने से लग कर फफकफफक कर रोने लगी. मीना को इतना घबराया हुआ देख कर सुजय ने कारण पूछा तो मीना ने हर बात साफसाफ बता दी.

सुजय के लिए अपने पिता पर लगे इल्जाम पर यकीन करना बहुत कठिन था मगर पत्नी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी तो उसी की थी. अगले ही दिन उस ने ट्रांसफर की अर्जी डाल दी और 10- 12 दिनों के अंदर शहर बदल लिया.

जाते समय सुजय पिता से बस इतना ही कह सका,” पिताजी यह आप के लिए भी अच्छा है और हमारे लिए भी कि हम अलग रहें”.

उस के पिता कुछ भी न बोल सके. किस मुंह से बोलते कि शराब के नशे में उन्होंने बहू के साथ जो बदतमीजी कर डाली उस का हश्र यही तो होना था. इधर ससुर से अलग हो कर मीना की जान में जान आई.

इन घटनाओं पर भी गौर करें;

हाल ही में (अप्रैल 2019 ) गुरुग्राम में एक 61 साल के ससुर को अपनी 28 वर्षीया बहू के साथ छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया. पुलिस के आगे बुजुर्ग ने अपना अपराध स्वीकार किया. सेक्टर 5 की वह विधवा महिला अपने डेढ़ साल के बच्चे के साथ रहती थी. उस का ससुर कुछ महीनों से उस का पीछा और बदसलूकी कर रहा था.

कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के धुलतरा में एक विधवा की संपत्ति हड़पने व अवैध संबंध बनाने से मना करने पर भड़के ससुरजेठ द्वारा उस पर तेजाब डालने का मामला सामने आया था.

किसी तरह उस ने अपने तीन साल के बच्चे के साथ भाग कर जान बचाई जिस में उस का बेटा भी एसिड से झुलस गया.

इस तरह के मामले अक्सर हमारे आसपास सुननेदेखने को मिल जाते है. दरअसल कई दफा अपने ही घर के पुरुष चाहे वह ससुर हो, देवर या जेठ हो या फिर नंदोई हो, घर में आई नई बहू पर गलत नजर डाल सकते हैं या बदतमीजी से बात कर सकते हैं. ऐसे लोग घर के सम्माननीय सदस्य हो कर भी द्विअर्थी और अश्लील बातें करने से नहीं चूकते. घर की बहू समझ नहीं पाती कि वह इन के साथ कैसे निभाए. जेठ और ससुर बहू के लिए रिश्ते में पिता या बड़े भाई के समान हैं. मगर जब उन के द्वारा ऐसी बदतमीजी की जाती है और रिश्ते की पवित्रता व सम्मान पर चोट पहुंचाई जाती है तो इन रिश्तो को निभाते रहना गलत है. क्यों कि ऐसे लोग कभी भी कोई बड़ा कुकर्म तक कर सकते हैं. रिश्ते की मर्यादा लांघ कर की बहू की अस्मिता को तारतार कर सकते हैं.

कुछ घरों में ससुर और जेठ स्वभाव से ही बदतमीज होते हैं. उन्हें महिलाओं के साथ बोलने या बात करने की तमीज नहीं होती. ये दूसरों के आगे कभी भी ऐसी बातें कर जाते हैं जिस से बहू को शर्मिंदगी महसूस हो. घर आई बहू की सहेलियों या रिश्तेदारों के साथ भी उन का व्यवहार बदतमीजी भरा होता है.

बदतमीजी कई तरह की हो सकती है;

1. गलत नजर रखना, इज्जत पर हाथ डालना
2. गंदे इशारे करना या अश्लील हरकतें करना
3. गलत लहजे में बात करना
4. बहू के प्रति अपने रिश्ते की मर्यादा भूल कर गलत तरह से छूना या बदतमीजी करना
5. बहू से ऊंचे स्वर में बात करना, मारनापीटना
6. बहू को भद्दे शब्द कहना या गालियां देना
7. छेड़छाड़ करना
8. दहेज के नाम पर मार पीट या अभद्रता

1. आवाज उठाएं चुप न रहें

आप भले ही बहू हैं, घर में नई हैं, ससुर या जेठ के देखे उम्र में बहुत कम हैं मगर याद रखें गलत के खिलाफ आवाज उठाने का हक आप को पूरा है. जब ससुर या जेठ बदतमीजी करें तो शुरूआत से ही इस का विरोध करना चाहिए ताकि वे आप को उपलब्ध न समझें और उन के हौसले न बढ़े. कभी भी उन का कोई व्यवहार आप को खटके तो उसी वक्त यह बात उन के आगे जाहिर करें. उन्हें खबरदार करें और फिर पति या सास को विश्वास में ले कर जेठ या ससुर की हर गलत हरकत के बारे में विस्तार से बात करें. वस्तुस्थिति से अवगत कराएं.

2. सबूत इकट्ठे करें

इस तरह के मामलों में सब से जरूरी है कि आप अपनी बात सबूतों के साथ रखें ताकि सामने वाला मामले की हकीकत समझ सके. आज के समय में यह काम कठिन नहीं है. हर मोबाइल में कैमरे और वॉइस रिकॉर्डर होते हैं. आप जेठ या ससुर की आपत्तिजनक बातें, या बदतमीजी भरे व्यवहार को कैप्चर कर सकती हैं. इस से जब आप घरवालों के सामने इस मुद्दे को लाएंगी तो आप का पक्ष मजबूत रहेगा.

3. नजर रखें और सावधान रहें

अपने ससुर या जेठ पर नजर रखें. उन्हें कोई मौका न दें. उन के द्वारा कोई गलत चेष्टा की जाए उस से पहले ही उन्हें खबरदार करें. उन के साथ कभी अकेले कमरे में, छत पर या कहीं सूनी जगह पर न जाएं ताकि उन्हें कुछ गलत करने का मौका न मिले. उन के कमरे में जाना भी पड़े तो घर के बच्चों को साथ ले जाएं या बच्चों के द्वारा ही उन का काम करा लें. पति या घर के दूसरे सदस्यों को कहीं बाहर जाना पड़ा हो तो तुरंत अपनी किसी सहेली या रिश्तेदार को घर में बुला लें. उन के साथ अकेले न रहें.

4. पति को हर बात बताएं

अपने पति को अंधेरे में न रखें. उन्हें अपने साथ हो रही हर घटना के बारे में बताएं. हो सकता है कि पति शुरू में आप को ही गलत माने. मगर जब आप हर सबूत दिखाएंगी, हर बात स्पष्ट रूप से बताएंगी तो उन्हें भी समझ आने लगेगा कि गलत कौन है. आप उन्हें सबूत भी दिखाएं.

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5. डरे नहीं डट कर सामना करें

कभी भी गलत का सामना करने से न डरें. यदि आप सही हैं मगर सामने वाला आप से बदतमीजी कर रहा है तो उसे साफ शब्दों में ऐसा करने से रोकें. कुछ महिलाएं महीनोंसालों जुल्म और बदतमीजियां सहती रहती हैं और अंत में अपनी जिंदगी से हार जाती हैं. ऐसा रवैया कतई न रखें. मजबूत बनें.

6 . ससुर के इमोशनल ड्रामा का पर्दाफ़ाश करें

कई बार जब बहुएं घर में अपनी समस्या बताती हैं या बेटेबहू अलग होने का फैसला लेते हैं तो ससुर इमोशनल ड्रामा शुरु कर देते हैं. सास भी ऐसे मामलों में अपने पति का ही साथ देती हैं और बहू को अलगथलग कर दिया जाता है. इसलिए जरूरी है कि आप पहले से ही ऐसे ड्रामों के लिए पति को तैयार करें और दोनों अलग होने का फैसला कठोरता से लें ताकि भविष्य में पछताना न पड़े. ससुर की ड्रामेबाजी से आप कमजोर न पड़ें.

7. अपनी बात स्पष्ट रूप से कहें.

इन मामलों में भयभीत होने या घबराने की जरूरत नहीं. जो बात है उसे डंके की चोट पर कहें. अपनी समस्या, ससुर व जेठ की बदतमीजी या गलत व्यवहार से जुड़ा हर कच्चा चिट्ठा खोल कर रखें. झिझकें नहीं. बोलते हुए कांपें भी नहीं क्योंकि कमजोर को ही दबाया जाता है. अपनी बात में किसी शक की गुंजाइश न रहने दें.

8. अपनी शक्ति बढ़ाएं

आर्थिक मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनें. खुद को न्याय दिलाना है, गलत इंसान को सामने लाना है या फिर अपनी अस्मिता की सुरक्षा करनी है, इस के लिए आप का अंदर से मजबूत होना जरूरी है. अपनी काबिलियत बढ़ाएं. दीनदुनिया की खबरें और स्त्रियों से जुड़े कानूनों से अवगत रहें. छुईमुई का फूल बनने के बजाय जूडोकराटे जैसी चीजें सीखें. यदि आप पढ़ीलिखी हैं तो नौकरी करें. इस से 10 लोगों से मिलने का मौका मिलता है और आप की जानकारियां बढ़ती हैं. आप पैसे कमाती हैं तो आप का आत्मविश्वास भी बढ़ता है और आप हर बदतमीजी का सामना बेहतर ढंग से कर पाने में समर्थ होती हैं.

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