बीबीसी टेलीफिल्म ‘शार्प्स पेरिल’ से अभिनय क्षेत्र में उतरने वाली अभिनेत्री पायल घोष (Payal Ghosh) ने 17 साल की उम्र में अपने माता-पिता को बताये बिना कोलकाता से मुंबई आ गयी और अपने रिश्तेदार के यहाँ रहने लगी. प्रदीप घोष और अजंता घोष के घर में जन्मी पायल को बचपन से ही अलग-अलग तरह के एक्टिंग आईने के सामने खड़ी होकर करना पसंद था, इसमें साथ दिया उसके दोस्तों और कजिन्स ने, जिन्होंने हमेशा उसे अभिनय के क्षेत्र में कोशिश करने की सलाह दी. मुंबई आने के बाद पायल ने एक्टिंग का कोर्स किया और वही से काम मिलने लगा. फिल्म ‘पटेल की पंजाबी शादी’ पायल घोष (Payal Ghosh) की हिंदी फिल्म है, जिसमें उसके काम की काफी सराहना मिली. हिंदी के अलावा पायल ने तमिल, तेलगू और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. हंसमुख और शांत स्वभाव की पायल लॉक डाउन में कई फिल्मों को देखना और वेब सीरीज के स्क्रिप्ट पढ़ रही है, उनसे बात करना रोचक था, पेश है अंश.
सवाल-फिल्मों में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
एक्टिंग का ख्याल मुझे कभी आया नहीं था, क्योंकि मेरा परिवार बहुत कंजरवेटिव है. हिंदी फिल्में देखना बहुत पसंद था. मैं माधुरी दीक्षित की फिल्में देखना पसंद करती थी. उनकी हर बात मुझे अच्छी लगती है. 17 साल की होने पर कुछ अलग करने की इच्छा हुई, क्योंकि हमारे परिवार में लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाने पर शादी कर दी जाती है. मैं ऐसा नहीं करना चाहती थी और 12 वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद मैं मुंबई अपनी कजिन के पास आ गयी. मैंने किसी को बताये बिना ही मुंबई आ गयी थी, क्योंकि मैं दिखने में सुंदर थी और मेरी शादी हो जाएगी, ऐसा सोचकर मैंने कोलकाता से भागने का प्लान कजिन के साथ मिलकर किया. मैं दिखने में अच्छी हूं, इसका पता मुझे स्कूल के दिनों से ही लग गया था. मुझे स्कूल में 700 से 800 कार्ड्स वेलेंटाइन डे पर मिलते थे. कजिन्स पैसे लेकर मैंने फ्लाइट की टिकट ली और रात को जब सब सो रहे थे मैं दबे पाँव घर से निकल गयी और मुंबई अपने रिश्तेदार के पास आ गयी. किसी को भी पता नहीं चला था. सब मुझे कोलकाता में ढूंढ रहे थे, मुंबई पहुंचकर मैंने घरवालों को बताया. सभी के लिए ये न्यूज़ शाकिंग थी. पिता ने 6 महीने तक मुझसे बात भी नहीं की थी. असल में मेरी माँ बचपन में गुजर चुकी है, पिता ने ही हम दो बहनों को बड़ा किया है. वे कोलकाता कंस्ट्रक्शन से जुड़े हुए है.
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इसके बाद मैंने किशोर नमित की एक्टिंग क्लासेज ज्वाइन किया और उसके तुरंत बाद मुझे बीबीसी की टेलीफीचर फिल्म मिल गयी थी. छोटी भूमिका थी, पर सबने पसंद किया. इसके बाद मुझे तेलगू फिल्म मिली, इस तरह से मेरा कैरियर शुरू हो गया.
सवाल-आपका संघर्ष कितना रहा?
मुझे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि आते ही मैंने एक्टिंग क्लास ज्वाइन कर लिया था, इससे मुझे 8 दिनों के अंदर पहला प्रोजेक्ट मिल गया था, इसके बाद साउथ की फिल्म ‘प्रायानम’ मिली. मैं इस विषय पर अपने आप को लकी मानती हूं. मैं अपने दोस्त के साथ ऑडिशन देखने गयी थी और निर्देशक को मैं पसंद आ गयी और मुझे काम मिल गया. उसके बाद काम मिलता गया. अभी पिता भी मेरे काम से बहुत खुश है.
सवाल-ग्लैमर इंडस्ट्री के बारें में आपकी सोच पहले से कितनी बदली है?
पहले मैंने सुना था कि इंडस्ट्री में लोग अच्छे नहीं होते, लकिन जब मैंने साउथ में काम करना शुरू किया मुझे किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आई. पहली फिल्म हिट होने के बाद काम मिलना शुरू हो गया. साउथ में एक्टर्स को बहुत अधिक मान दिया जाता है. मैंने काम के साथ-साथ अपनी पढाई भी पूरी की है. पढाई पूरी करने के बाद मैं मुंबई पूरी तरह से शिफ्ट हो गयी हूं.
सवाल-फिल्मों में इंटिमेट सीन्स करने में आप कितनी सहज है?
मेरा परिवार अभी भी मुझे शोर्ट ड्रेस में देखना पसंद नहीं करता. छोटे हो या बड़े सभी सदस्यों को ऐतराज होता है, पर मैं सबकुछ पहनती हूं. मैंने अभी तक कोई ग्लैमर एक्टिंग नहीं की है. अभी मैंने कुछ बोल्ड शूट एक मैगज़ीन के कवर के लिए किया है और ये मेरा पहला असाइनमेंट है. मैंने पहले ऐसी किसी भी फिल्म में ऐसे रिविलिंग शूट नहीं किया, इसके बाद से मुझे ऐसा लगा है कि थोडा ग्लैमर मुझे अडॉप्ट करना है. हमेशा घरेलू अभिनय करना ठीक नहीं, थोडा बोल्ड होना पड़ेगा, क्योंकि इससे अलग-अलग भूमिका करने का मौका मिलेगा. वेब सीरीज मैंने अभी तक नहीं किये है, क्योंकि पहले वेब सीरीज में इंटिमेट सीन्स और स्किन शो अधिक था, लेकिन अब उसमें भी काफी परिवर्तन आया है. आजकल कांसेप्ट पर अधिक जोर दिया जा रहा है. सब लोग इसे देख सकते है. आगे कई वेब सीरीज करने वाली हूं.
सवाल-कोई प्रोजेक्ट मिलने पर उसकी तैयारी कैसे करती है?
मैं सबसे पहले स्क्रिप्ट अच्छी तरह से पढती हूं. उर्दू के मेरे गुरु है, जो मुझे एक्सेंट सिखाते है. मेरे संवाद की प्रैक्टिस करती हूं. मैं मैथड एक्टर नहीं हूं, इसलिए मुझे अधिक प्रैक्टिस करनी पड़ती है. बंगाली होने की वजह से मुझमें बंगाली एक्सेंट है, इसलिए उसे अच्छी तरह से हटाती हूं, ताकि संवाद ओरिजिनल लगे. एक्टिंग मैं अधिक प्रैक्टिस नहीं करती.
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सवाल-बांग्ला फिल्म नहीं किया, इसकी वजह क्या रही?
मैंने बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री से काम नहीं किया है, इसलिए वहां के लोगों को जानती नहीं और किसी ने आजतक कोई ऑफर भी नहीं दिया अगर मौका मिला तो अवश्य बांग्ला फिल्म करुँगी. मेरे पिता भी चाहते है कि मैं बंगाल के लिए कोई फिल्म करूँ.
सवाल-बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री की रौनक कम हो गयी है, अभी वहां पर स्टार फैक्टर भी नहीं है, इसकी वजह क्या मानती है?
बचपन में मैंने सुचित्रा सेन और उत्तमकुमार की फिल्में देखी है. पहले बांग्ला फिल्म बनती थी और लोग उसकी कॉपी हिंदी में करते थे. अब वे हिंदी कि कॉपी करने लगे है. असल में बांग्लादेश के मार्केट को पकड़ने के लिए वे अपनी सोच में फर्क करने लगे है, इससे ओरिजिनल कहानियां अब नहीं रही और इसे इंडस्ट्री भुगत रही है. सत्यजीत रे की फिल्म आज भी मैं देख सकती हूं.
सवाल-इस समय क्या-क्या कर रही है?
मैं फिल्में देखती हूं, जो मुझे बहुत पसंद है. कुछ नयी कांसेप्ट देखना पसंद करती हूं. खाना बनाना पड़ता है. यही सब चल रहा है.
सवाल-क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?
रविन्द्रनाथ टैगोर की कहानी ‘चारुलता’ जिसे सत्यजीत रे ने बांग्ला में बनायीं थी. उसे कोई हिंदी में बनाये और मैं उसमें अभिनय करने की इच्छा रखती हूं.
सवाल-आपके सपनो का राजकुमार कैसा हो?
मुझे समझने वाले, अच्छी बातचीत करने वाले, सम्मान देने वाले, शिक्षित, प्रेजेंटेबल आदि होने चाहिए.
सवाल-लॉक डाउन में मेसेज क्या देना चाहती है?
मैं सभी नागरिकों से कहना चाहती हूं कि सभी लोग जो हमारी हिफाजत के लिए बाहर इस समय काम कर रहे है, जिसमें हेल्थ वर्कर्स, पुलिस और सफाई कर्मी सभी शामिल है. उनकी मेहनत को समझे और घर पर रहकर उनकी समस्या को न बढायें. उनको मारे पीटे नहीं, उनका सम्मान करें.
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