Valentine’s Day को जानें कैसे मनाते है Gehraiyaan एक्टर सिद्धांत चतुर्वेदी

अगर आपने किसी चीज के लिए जी जान से मेहनत की है, तो उसका फल अवश्य मिलेगा और मैंने इसमें कोई कमी नहीं की और आज यहाँ पर पहुंचा हूँ, जहाँ मुझे दीपिका पादुकोण जैसी बड़ी अभिनेत्री के साथ काम करने का मौका मिला, कहते है 28 वर्षीय अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी. दरअसल सिद्धांत एक शांत स्वभाव के व्यक्ति है, इसलिए जब कभी उन्हें रिजेक्शन मिलता है, तो वे अपने मन को खुद ही शांत कर सोचते है कि ये फिल्म उनके लिए नहीं बनी है. वे युवा पीढ़ी से भी कहते है कि उन्होंने जो सपना देखा है, वह पूरा तभी हो सकता है, जब व्यक्ति अच्छी तरह सोचकर कदम बढाएं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे और 5 साल की उम्र में परिवार के साथ मुंबई आयें. मुंबई आकर चार्टेड एकाउंट की पढाई करते हुए ही फिल्म में उतरने की कोशिश करते रहे. इसमें देर भले हुई हो,पर उनके मन मुताबिक फिल्में मिली. उनके पिता एक चार्टर्ड एकाउंटेंट है और उनकी मां एक गृहिणी. सीए की पढाई के दौरान एक सिद्धांत को एक प्रतियोगिता में जाने का अवसर मिला और वे ‘फ्रेश फेस 2012’ का ख़िताब जीता. इसके बाद उन्होंने कुछ विज्ञापन, मॉडलिंग असाइनमेंट और फोटोशूट किए. सही काम न मिलने की वजह से सिद्धांत मुंबई में अभिनेता और लेखक के रूप में एक थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए. थिएटर ग्रुप में एक नाटक के दौरान, उन्हें फिल्म निर्देशक लव रंजन ने नोटिस किया और उन्हें टीवी शो ‘लाइफ सही है ‘ मिली. टीवी के बाद उन्हें फिल्म भी मिली, पर उन्हें सफलता गलीबॉय से मिली. साधारण कदकाठी और घुंघराले बाल होने की वजह से उन्हें बहुत रिजेक्शन सहना पड़ा. ‘गहराइयाँ’ फिल्म रिलीज़ हो चुकी है, जिसमें उन्होंने काफी इंटेंस भूमिका निभाई है. उनसे उनकी जर्नी के बारें में बात हुई आइये जाने कुछ बातें.

सवाल – दीपिका पादुकोण के साथ इंटेंस भूमिका निभाने का अनुभव कैसा था, रिलेशनशिप में आये उतार-चढ़ाव को कैसे देखते है?

जवाब– निर्देशक शकुन बत्रा से जब मैं स्क्रिप्ट के लिए मिला, तो मेरी उम्र 24 थी, जबकि उन्हें एक 30 साल का मेच्योर व्यक्ति चाहिए. उन्होंने मुझे नहीं लिया और मुझे ये फिल्म करनी थी. एक दिन मैं इशान खट्टर के साथ एक रेस्तरां में गया, वहां मेरी बात शकुन बत्रा से हुई. उन्होंने मेरी एक्टिंग गलीबॉय में देखी थी, जहाँ मैंने रणवीर सिंह की मेंटर की भूमिका निभाई थी. उन्होंने समय लिया और दो दिन बाद उन्होंने मुझे बताया कि जेन की मेरी भूमिका ट्रांसफॉर्म किया जा सकता है और उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए चुना.

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मैंने रोमांटिक फिल्में बचपन से देखी है और लगा था कि ऐसी ही कुछ शाहरुख़ खान की फिल्में जैसी रोमांटिक सीन्स होगी, क्योंकि इससे पहले मैंने इस तरह के रिश्तो के बारें में कभी सुना नहीं था. शाहरुख़ खान मेरे पसंदीदा हीरों है और मैं भी ट्रू लव ऑन स्क्रीन करना चाहता था. इस फिल्म में दीपिका पादुकोण और धर्मा प्रोडक्शन जैसी लोग जुड़े है, इसलिए इसमें मेरा सपना कुछ हद तक पूरा हो सकता है. मैं बाहर से आया हूँ और काफी दिनों तक ऑडिशन दे रहा हूँ, पर कोई अच्छा काम नहीं मिल रहा है. इसमें दीपिका पादुकोण भी है, जिस पर मेरा क्रश पहले से रहा है. मौका अच्छा है, हाँ कहने के बाद भी मैं इस भूमिका को निभाने में डर रहा था, क्योंकि मेरे हिसाब से प्यार जन्मों-जन्मों वाला होता है. जिसे आज सभी ओल्ड स्कूल थॉट कहते है. इस भूमिका के लिए मुझे कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ा. दीपिका से मिलने पर कैसे क्या करूँ, कैसे बैठू समझ नहीं आ रहा था,क्योंकि स्क्रिप्ट के अनुसार काफी इंटेंस सीन्स थे. एक से दो हफ्ते मुझे सामान्य होने में लगे थे, लेकिन दीपिका की सहयोग से ऐसा जल्दी हो पाया, क्योंकि वह बहुत साधारण स्वभाव की है और मुझे इस फिल्म को करने में काफी सहयोग दिया है. वर्कशॉप करने के बाद मैं नार्मल हो पाया, पर शुरू मैं काफी घबराया हुआ था.

सवाल–क्या इस फिल्म से क्या आपको स्टार की उपाधि मिल पाएगी?

जवाब– जब में 19 साल में हीरो बनना था. फिर मुझे लगा कि आप जो बनना चाहते है उसपर फोकस करें, स्टार बनना किसी के हाथ में नहीं होता. अगर आप स्टार किड है तो प्रोडूसर उसे स्टार बना देते है. आउटसाइडर को स्टार बनाने वाली जनता होती है. मुझे दर्शकों ने बहुत प्यार दिया है, पर इतना जरुर है कि अब मैं महंगे कपडे पहनने लगा हूँ. मेरे पेरेंट्स, पडोसी को लगता है कि मैं स्टार हूँ, पर मेरे दोस्त कुछ अतरंगी ड्रेस पहनने पर मेरा बहुत मजाक उड़ाते है. मैं इस सब चीजो के बारें में नहीं सोचता, क्योंकि इससे मेरा काम सही नहीं हो पाता. एक्शन और कट के बीच में मैं अपना दिमाग नहीं लगता. मेरा काम बारीकी से क्राफ्ट को देखना और कुछ नया लेकर आना है. अपना एक नया मार्ग बनाना है.

सवाल–आप अपनी जर्नी को कैसे देखते है? कॉलेज में आप वेलेंटाइन डेज को कैसे मनाते थे?

जवाब– मैं अपनी जर्नी से बहुत संतुष्ट हूँ. मेरी जर्नी की सफलता का पूरा श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है. कॉलेज में मुझे वेलेंटाइन डे मनाने का समय नहीं मिलता था, क्योंकि सुबह कॉलेज से निकलने के बाद चार्टेड एकाउंट की क्लास कर केवल दो से तीन घंटे के लिए दोस्तों के साथ थिएटर देखता और प्रैक्टिस करता था. रात को फिर सीए की पढाई करना पड़ता था. थिएटर की बात मेरे पेरेंट्स को पता नहीं था, ऐसे में वेलेंटाइन डे को मनाने का समय नहीं मिलता था और मेरे आसपास लड़कियां कम मंडराती थी, क्योंकि मैं साधारण दिखने वाला लड़का था. इसके अलावा मेरे पिता का कहना था कि कुछ भी करने से पहले अपने कैरियर में स्टेब्लिटी लाओं, इसके बाद जो भी करना चाहो कर सकते हो, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में अनिश्चितता बहुत है और वहां तुम्हारे कोई चाचा या ताऊ बैठे नहीं है, जो तुम्हे आसानी से काम दे देंगे.

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पिता की बात सही थी,ग्रेजुएशन के बाद मैंने सीए की प्रवेश परीक्षा को भी क्लियर किया, उसकी पढाई भी शुरू कर दी. उस दौरान थिएटर में भी मुझे कई अवार्ड मिलने लगे थे. मुझे समझना मुश्किल हो रहा था कि मैं क्या करूँ? मुझे जॉब भी मिल गया,पूरा दिन काम करने के बाद थिएटर नहीं कर पा रहा था. मुझसे थिएटर छूटता जा रहा था. काम से आने पर पिता देखते थे कि मैं अपने काम से खुश नहीं हूँ. इसके अलावा मैं और मेरे पिता हर फ्राइडे एक नई फिल्म देखते थे. मेरी हालत देखकर उन्होंने एकदिन कहा कि सीए की फाइनल कभी भी दे सकते हो इसलिए अब ऑडिशन देना शुरू करो, लेकिन मै किसी को जानता नहीं था इसलिए थिएटर के दोस्तों के साथ ऑडिशन देता रहा. काम किसी एड में भी नहीं मिला, क्योंकि मेरा चेहरा किसी हीरो की तरह नहीं है . मेरे कर्ली बाल है, आँखे छोटी है. रिजेक्शन के बाद दुखी होकर घर आने पर पिता दिलासा देते थे. फिर मैंने सीए की अंतिम परीक्षा दी, लेकिन क्लियर नहीं कर पाया. अब मैंने जी जान से ऑडिशन देने लगा और पहला शो टीवी का मिला और आज यहाँ पहुंचा हूँ. मैं संघर्ष के दर्द को समझता हूँ.

सवाल – आपके रिलेशनशिप में सबसे अधिक नजदीक किसके रहे?

जवाब – सबसे अधिक नजदीक मैं अपने पिता के रहा हूँ,उन्होंने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया है और सही रास्ता बताया.

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रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः धर्मा प्रोडक्शंस,वायकाम 18 और जोउस्का फिल्मस

निर्देशनः शकुन बत्रा

लेखनःआयशा देवित्रे , सुमित रॉय , यश सहाय और शकुन बत्रा

कलाकारः दीपिका पादुकोण,अनन्या पांडे,सिद्धांत चतुर्वेदी,धैर्य करवा ,नसिरूद्दीन शाह व अन्य.

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमजान प्राइम वीडियो

शहरों में रह रही अंग्रेजीदां युवा वर्ग जिस तरह से अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए रिश्तें के हर मापदंड को दरकिनार करती जा रही है,वह जिस तरह बचपन की दोस्ती,प्यार के रिश्ते व संबंधों को पैसे व महत्वाकांक्षा की तराजू पर तौलने लगी है,उसी का चित्रण करने वाली,अति बोल्ड दृश्यों की भरमार व अति धीमी गति वाली फिल्म ‘‘गहराइयां’’ लेकर फिल्मकार शकुन बत्रा आए हैं,जो कि ग्यारह फरवरी से अमेजान प्राइम पर स्ट्रीम हो रही है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में दो चचेरी बहने आलिशा(दीपिका पादुकोण ) और टिया(अनन्या पांडे ) हैं. इनके पिता सगे भाई व व्यापार में भागीदार थे. इनका अलीबाग में भी बंगला है. मगर जब टिया व आलिशा छोटी थीं,तभी कुछ रिश्तें में आयी एक जटिलता के चलते आलिशा के पिता(नसिरूद्दीन शाह) सब कुछ छोड़कर पूरे परिवार के साथ नाशिक रहने चले गए थे तथा वह की आलिशा मां को दोषी मानते रहे. अंततः घुटघुटकर जिंदगी जीने की बजाय एक दिन आलिशा की मां ने खुदकुशी कर ली थी. इसका आलिशा के मनमस्तिक पर गहरा असर पड़ा. बादा में टिया पढ़ाई करने अमरीका चली जाती है. जहां उसकी मुलकात अतिमहत्वाकांक्षी जेन से होती है और दोनो रिश्ते में बंध जाते हैं. इधर महत्वाकांक्षी आलिशा योगा शिक्षक है और अपने प्रेमी करण के साथ मुंबई में रहती है. उसकी तमन्ना अपना योगा का ऐप शुरू करने का है. करण एक एड एजंसी की नौकरी छोड़कर किताब लिख रहा है. उस पर लेखक बनने का भूत सवार है.

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फिल्म वहां से शुरू होती है, जब अलीशा खन्ना खुद को जीवन में एक चैराहे पर पाती हैं. उसे लग रहा है कि उसका छह वर्ष का करण के साथ लंबा रिश्ता नीरस हो गया है. उसके करियर में काफी बाधाएं आयीं और अब उसने इस वास्तविकता को अपरिवर्तनीय मान लिया है. तभी उसकी चचेरी बहन बहन टिया अपने मंगेतर जेन के साथ मंुबई वापस आती है और आलीशा व करण को अपने साथ अलीबाग चलने के लिए कहती हैं. यहीं से इन चारों के बीच के रिश्ते में काफी उथल पुथल मचने लगती है. अतीत के घटनाक्रम भी सामने आते हैं. रिश्तों का बांध टूटता है. आलीशा व जेन के बीच एक रिश्ता विकसित होता है,जिसका दुःखद अंत सामने आता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.  दो वर्ष के अंतराल के बाद आलिशा व टिया पुनः मंुबई में तब मिलते हैं,जब करण,अनिका से सगाई कर रहा होता है.

लेखन व निर्देशनः

पूरे छह वर्ष बाद फिल्म सर्जक शकुन बत्रा ने फिल्म ‘‘गहराइयां’’ से वापसी की है. लेकिन कहानी में कुछ भी नया नही है. सब कुछ वही बौलीवुड फिल्मो की घिसी पिटी व हवा हवाई बातें.  जी हॉ! अति धीमी गति से आगे बढ़ने वाली इस फिल्म में मनोरंजन व रोमांच का घोर है. फिल्मकार ने रिश्तों में बनावटी जटिलता,बनावटी प्यार,बनावटी बेवफाई के साथ ही अविश्वसनीय घटनाक्रमों का मुरब्बा परोसा है. नकली-बनावटी किरदार, दिखावे की यॉट से लेकर फाइव स्टार होटल, महंगी शराब, चिकने बाथटब, गद्देदार बिस्तर, करोड़ों-करोड़ की हाई-फाई बातें फिल्म को उठाने की बजाय गहराईयों में डुबाने का ही काम करती हैं. लेखक व निर्देशक ने दर्शकों को मूर्ख बनाने का ही काम किया है. इसीलिए कहानी मुंबई व अलीबाग में चलती है. सभी जानते हैं कि मुंबई में किसी भी इंसान को मूर्ख कहने के लिए कहा जाता है-‘अलीबाग से आया है क्या?’

फिल्म हिंदी भाषा में है,मगर ठेठ हिंदी भाषी दर्शकों के सिर के उपर से यह गुजरती है. क्योंकि मोबाइल से आदान प्रदान किए जाने वाले संदेशों के अलावा काफी संवाद अंग्रेजी भाषा में हैं. लेखक व निर्देशक यह कैसे भूल जाते हैं कि उनका असली दर्शक आज भी हिंदी भाषी ही है,जो कि अच्छी बौलीवुड फिल्मों के अभाव में हिंदी में डब की गयी दक्षिण भारत की अच्छी मनोरंजक फिल्में देखता हुआ पाया जाता है. वैसे शकुन बत्रा से यह उम्मीद करना कि वह भारतीयों और हिंदी भाषियों के लिए कहानी लिखेंगे या फिल्म बनाएंगे,बेमानी है. क्योंकि उन्हें तो हिंदी भाषी पत्रकारों से बात करना भी गवारा नही होता. वह तो चाहते हैं कि पत्रकार उनसे वही बात करे,जो वह चाहते हैं.

माना कि लेखक व निर्देशक ने फिल्म में इस बात का सटीक चित्रण किया है कि वर्तमान समय में शहरी मध्यमवर्गीय अंग्रेजीदां युवा पीढ़ी किस तरह अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के साथ-साथ पैसा कमाने के लिए रिश्तांे का दुरुपयोग करती है. आज की युवा पीढ़ी अपनी महत्वाकांक्षा व स्वार्थपूर्ति के लिए प्यार के रिश्ते को भी कपड़े की तरह बदलती है,इसका भी चित्रण बहुत ही उपरी सतह पर किया गया है. क्या वर्तमान शहरी मध्यमवर्गीय युवा पीढ़ी महज बिना किसी रोक-टोक के शारीरिक संबंधों @इंटीमसी में यकीन करती हैं? रिश्तों की जटिलता को लेकर फिल्मकार एक परिपक्व व गंभीर फिल्म लेकर आए हैं,मगर इसमें कहीं भी परिपक्वता नजर नही आती.  शकुन बत्रा यह भी भूल गए कि उन्होेने फिल्म हिंदी में हिंदी भाषियों  के लिए बनाया है. फिल्म का क्लामेक्स भी काफी गड़बड़ है. फिल्मसर्जक ने सेक्सी बोल्ड दृश्यों को परोसने में कोई कंजूसी नही दिखायी. शायद सही वजह है कि फिल्म का प्रचार भी इस तरह किया गया, जैसे कि ‘कामसूत्र’ का विज्ञापन किया जा रहा हो. वास्तव में शकुन बत्रा ने एडल्ट फिल्म बना डाली,मगर उनके अंदर इस तरह के विषय व परिपक्वता का घोर अभाव है.

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इंसान का अतीत किस तरह उसका पीछा करता है, इसका कुछ हद तक सही चित्रण है. फिल्म में एक जगह अंग्रेजी में नसिरूद्दीन शाह का संवाद है- ‘‘अतीत से भागने की जरुरत नहीं,उसे स्वीकार करो. ’

इस फिल्म में दो चरित्र विभाजित परिवार यानी कि डिस्फंक्ंशनल परिवार से हैं. मगर फिल्मकार इस बात को सही ढंग से रेखांकित करने में असफल रहे है कि माता पिता के बीच के संबंधो व डिस्फंक्शनल परिवार के बच्चांे पर  कैसा असर पड़ता है.

निर्देशक ‘शकुन बत्रा ने इसफिल्म के माध्यम से इस बात की ओर भी इशारा किया है कि भले ही 21वीं सदी की युवा पीढ़ी रिश्तों में किसी भी तरह के मापदंडों में यकीन न करती हो,मगर वह रिश्ते में स्थायित्व व भरोसे की तलाश में भटकती रहती है.

अभिनयः

‘गहराइयां’की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी अनन्या पंाडे ही हैं. अनन्या पंाडे को अभी अपने अभिनय में निखार लाने के लए काफी मेहनत करने की जरुरत है. उनके चेहरे पर एक्सप्रेशन भाव नजर ही नही आते. आलीशा के किरदार के माध्यम से इंसानी मन की द्विविधा व असमंजसता  को काफी बेहतर तरीके से दीपिका पादुकोण ने अपने अभिनय से उकेरा है. आलीशा के दिमाग मे बचपन की घटना के चलते बनी ग्रंथी,आलीशा के चरित्र की जटिलता,उसके मनोभावों,रिश्तें में भरोसेे की तलाश आदि को दीपिका पादुकोण ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. मगर फिल्मों का चयन करते समय दीपिका को सावधान रहने की जरुरत है. ‘गहराइयां’ जैसी फिल्म को उनका बेहतरीन अभिनय भी दर्शक नही दिला सकता. अनन्या पांडे के बाद महत्वाकांक्षी जेन के किरदार में सिद्धांत चतुर्वेदी भी कमेजार कड़ी हं. उनका अभिनय निराश ही करता है. वह अपने हाव भाव या बौडी लैंगवेज या अभिनय से दर्शक को आकर्षित करने में विफल रहे हैं. धैर्य करवा व नसिरूददीन शाह के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही.

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जानें कैसा लाइफ पार्टनर चाहती हैं एक्ट्रेस Ananya Panday, पढ़ें इंटरव्यू

फ़िल्मी परिवेश में जन्मी और पली – बड़ी हुई 24 साल की यंग एक्ट्रेस अनन्या पांडे ने अपनी कोमलता और खूबसूरती से इंडस्ट्री में एक जगह बना ली है. उनमे हर नई किरदार को करने में एक जुनून है, जो उन्हें बाक़ी नई एक्ट्रेस से अलग बनाती है. सोशल मीडिया पर छाने वाली अनन्या के फोलोअर्स काफी है. चंकी पांडे और भावना पांडे की इस बेटी ने फिल्म स्टूडेंट ऑफ़ द इयर 2 से इंडस्ट्री में कदम रखी और एक के बाद एक अलग-अलग फिल्मों में नजर आ रही है. फिल्मों के अलावा अनन्या ने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. इसकी वजह उनका सौम्य स्वभाव है.

अभिनय के साथ-साथ वह युनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफोर्निया, लोस एन्जिलोस में फैशन डिजाईनिंग की कोर्स भी कर चुकी है. अनन्या का फैशन स्किल काफी अच्छा है और वह अपने हिसाब से पोशाक का चयन करती है. इसके अलावा अनन्या को घूमना और जिम जाना बहुत पसंद है, इसलिए वह कई बार पैपराज़ी फोटोग्राफर का शिकार हो जाती है.हिंदी सिनेमा जगत में अनन्या अपने बोल्ड लुक और हॉट पर्सनालिटी के लिए जानी जाती है. बॉलीवुड में इस एक्ट्रेस की एक्टिंग को काफी सराहनीय माना जाता है, जिसे अनन्या ने हर फिल्म में काफी मेहनत कर संभव बनाई. उनकी फिल्म ‘गहराइयाँ’ रिलीज पर है,उन्होंने कुछ बातें अपनी जर्नी की शेयर की, आइये उन बातों को जानते है.

जरुरी है रिलेशन को बनाए रखना

रिलेशनशिप के बारें में अनन्या बताती है कि प्यार मेरे लिए दोस्ती है, जिसे मैंने अपने पेरेंट्स से सीखा है. 24 साल की शादीशुदा जिंदगी बिता लेने के बाद भी वे अच्छे फ्रेंड्स है. उनमें आपस में झगड़े भी होते है, पर वे दोनों साथ में खुश रहते है. मेरे लिए वही व्यक्ति मेरा जीवनसाथी बन सकता है, जिसके साथ मैं कोम्युनिकेट अच्छी तरह से कर सकूँ और वह मुझे हमेशा हंसाए. उसे मेरे पिता की तरह होने की आवश्यकता है. रियल लाइफ में मेरा पेरेंट्स के साथ सबसे गहरा रिश्ता है.

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पसंद है चुनौतीपूर्ण फिल्में

गहराइयाँ फिल्म में अनन्या ने काफी चुनौती पूर्ण भूमिका निभाई है,जो उनकी उम्र से बड़ी भूमिका है. उनका कहना है कि मैं इसे बोल्ड चरित्र नहीं, बल्कि मैच्योर, इमोशनल चरित्र कहना पसंद करुँगी, जिसे करने सेपहले मैं घबराई हुई थी, लेकिन मुझे इसे करना भी था, क्योंकि ये मेरी विशलिस्ट के डायरेक्टर शकुन बत्रा की है. उन्होंने किसी फिल्म को फ़िल्मी से अधिक रियल दर्शाने की कोशिश की है. इसलिए निर्देशक शकुन बत्रा के साथ बैठकर मेरे किरदार को समझना पड़ा. केवल मैं ही नहीं बल्कि मेरे को स्टार सिद्दांत चतुर्वेदी को भी अपनी भूमिका के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. इस फिल्म से मैंने बहुत सारी बातें सीखी है, जिसमें अगर कोई दुखी है, तो भले ही वह जोर से रोये नहीं, उसके आंसू न बहे , लेकिन उसके अंदर उसका इमोशन तो है और उसे पर्दे पर सजीव करना आसान नहीं होता. वैसे ही अगर आप दुखी होने पर हँसते है, तो उसमे ख़ुशी नहीं, बल्कि उस दबी हुई दुःख का एहसास होता हो,ऐसे कई मुश्किल अभिनय मैंने दीपिका से सीखे है. ये भाग मेरे लिए बहुत कठिन था. इसके अलावा किसी भी रिश्ते की गहराई में जाने पर अगर आपको धोखा मिलता है, तो उसे बिना छुपाये बाहर निकाल देना और शेयर करना जरुरी होता है, क्योंकि अपने अंदर किसी स्ट्रेस को रखकर मैं कुछ अलग नहीं सोच सकती और ये सभी के लिए लागू होती है.भले ही कोई कुछ कहे पर मुझे अपने रिश्ते को सच्चाई से जीना पसंद है.

एन्जॉयड द शूट

अनन्या को इस चरित्र को निभाने के बाद में कुछ समस्या भी आई.अनन्या कहती है कि निर्देशक के अनुसार मैं टिया खन्ना की तरह हूँ, इसलिए मुझे अधिक मेहनत करने की जरुरत नहीं है, लेकिन रियल लाइफ में मैं वैसी लड़की नहीं. दर्शक मुझे अनन्या नाम से नहीं, बल्कि टिया के रूप में याद रखेंगे और मेरे लिए ये डरावनी बात थी, पर मैंने खुद को इस डर से निकाला और शूट को एन्जॉय किया, लेकिन ये सही है कि मैं इस

पॉजिटिव सोच है जरुरी

अनन्या हर फिल को खुद चुनती है और अगर कुछ गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदारी खुद को ही समझती है. उनके पेरेंट्स अनन्या की इस मैच्योरिटी को पसंद करते है. वह हमेशा सकारात्मक सोच रखना पसंद करती है. इतना ही नहीं अनन्या ने साल 2019 में सो पॉजिटिवएक संस्था ‘डिजिटल सोशल रेस्पोंसिबिलिटी’ को ध्यान में रखकर की है. वह कहती है कि मैं एक सेफ कम्युनिटी डिजिटल पर बनाना चाहती थी. केवल मेरे साथ ही नहीं हर किसी के साथ ऐसा होने पर, खासकर इन्स्टाग्राम पर लोग एक दूसरे को नफरत की निगाह से देख रहे थे, पर हर इंसान चुप था, जबकि एक बातचीत शुरू होने की जरुरत थी, जिसके साथ भी ऐसा होता है, वह व्यक्ति कैसे और कहाँ कॉम्प्लेन करें. सो पॉजिटिवने एक स्ट्रीम लाइन और गाइडबुक बनाई है, जहाँ परेशान व्यक्ति कहाँ और कैसे शिकायत करें. पिछले साल कोविड की दूसरी लहर के समय मैंने एक सीरीज बनाई थी, जो सोशल मीडिया फॉर सोशल गुड के नाम से था. मैंने 10 यंग लोगों से उनके काम के बारें में बात किया तो पता चला कि वे सोशल मिडिया पर अच्छे काम के लिए जुड़े है, जिसमें बीमार को एम्बुलेंस मुहैय्या करवाना, जरुरतमंदों को ऑक्सिजन सिलिंडर दिलवाना, स्ट्रीट जानवरों को सुरक्षा देना आदि कई काम कर रहे है, लेकिन इस काम के पीछे कौन व्यक्ति एक्टिव है, उसे बताने की कोशिश की है. इसका अनुभव भी मेरे साथ अच्छा हुआ है. जब मैं दूसरे शहर में भी किसी यूथ से मिलती हूँ तो यूथ इस मुहीम की तारीफ़ करते है और इस मुहीम से जुड़ने के बाद वे खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते.

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पेरेंट्स का मिला सहयोग

अनन्या आगे कहती है कि मैं पिता के बहुत करीब हूँ. मेरे पिता परिवार की एक मजबूत इंसान है. उन्होंने हमेशा समझाया है कि जीवन में सफलता और असफलता से अधिक प्रभावित नहीं होना चाहिए, दोनों ही परिस्थिति में न्यूट्रल रहने की जरुरत है. असफलता से सफलता को हैंडल करना अधिक मुश्किल है. इसके अलावा मेरे पिता ने कभी मुझे किसी बात पर टोका नहीं, लेकिन जरुरत के समय हमेशा मेरे साथ रहे.

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