गुजराती नाटक और फिल्मों से चर्चा में आये अभिनेता प्रतीक गांधी की इच्छा बचपन से डॉक्टर बनने की रही, लेकिन उन्हे अभिनय भी पसंद था, इसलिए स्कूल, कॉलेज में उन्होंने कई नाटकों में भी भाग लिया. शिक्षा को महत्व देते हुए इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और साथ में थिएटर भी करते रहे. पढ़ाई पूरी करने के बाद में उन्होंने नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल सतारा में नौकरी की. प्रतीक गांधी के माता और पिता दोनों ही टीचर है. उन दोनों ने हमेशा उनके काम के साथ सहयोग दिया है. प्रतीक को बचपन से कला का माहौल मिल है, उनके पिता एक भरतनाट्यम डान्सर और तबला वादक है, उन्होंने कई स्कूल के शोज को कोरियोग्राफ किया है. प्रतीक खुद भी तबला बजाना जानते है.
किये संघर्ष
प्रतीक को यहाँ तक पहुँचने में बहुत संघर्ष करना पड़ा. कई बार उन्हे स्किन कलर की वजह से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, टीवी इंडस्ट्री ने भी उन्हे स्वीकार नहीं किया, इतना ही नहीं उन्हें कहा गया कि उनका चेहरा रिच नहीं लगता, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं माना. स्किल, ऐक्टिंग पर फोकस किया, थिएटर करते रहे और खुद को मोटिवेट करते रहे, जिसका परिणाम उन्हे आगे चलकर मिला और उनकी वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ कि देश में ही नहीं विदेश में भी दर्शकों ने पसंद किया. अभी उनकी कॉमेडी फिल्म ‘दो और दो प्यार’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनके काम को आलोचकों ने काफी पसंद किया है.
चुनौती है पसंद
प्रतीक को वेबसीरिज ‘स्कैम 1992’ के लिए पहचाना जाता है. इस वेब सीरिज में उन्होंने हर्षद मेहता का किरदार निभाया था. यह वेब सीरिज जबरदस्त हिट हुई और इसमें प्रतीक गांधी के अभिनय को लोगों ने जमकर सराहा. इस वेबसीरिज से प्रतीक गांधी को एक नई पहचान मिली. प्रतीक को हर तरह की अलग – अलग फिल्मों में अलग – अलग चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाना पसंद है. वे कहते है कि जब तक हर किरदार में दर्शक मुझे पसंद न करने लगे, मैँ संतुष्ट नहीं हो सकता.
मिला सहयोग
प्रतीक की पत्नी भामिनी ओझा भी ऐक्टिंग फील्ड से है, काम के दौरान दोनों का प्यार हुआ और शादी की, दोनों की एक बेटी मिराया है. दोनों एक ही क्षेत्र में होने की वजह से परिवार के साथ काम का सामंजस्य बैठाने में उन दोनों को कभी समस्या नहीं आई. वे कहते है कि हम हर काम को शेयर कर लेते है, साथ थिएटर करते है, एक दूसरे के आलोचक है साथ ही एक दूसरे को डायरेक्ट भी कर लेते है. इससे हम दोनों मे दोस्ती अच्छी हो चुकी है, किसी प्रकार की असुरक्षा हम दोनों में नहीं रहती, क्योंकि कोई एक दूसरे की भूमिका नहीं निभा सकता. सफलता की बात करें, तो मैंने जॉब के साथ थिएटर, फिल्म सब करता रहा. जब मुझे पत्नी के साथ समय बिताने की जरूरत थी, तब मैंने थिएटर में काम किया करता था, क्योंकि वही मेरे लिए खाली समय था.
मेरी पत्नी ने कभी मुझपर इस बात से आरोप नहीं लगाया. देखा जाय, तो उसके सहयोग के बिना यहाँ तक पहुंचना मेरे लिए संभव नहीं था. इसके अलावा हम दोनों एक दूसरे को बराबर समझते है, फिर चाहे वह घर का काम हो या बाहर का काम या पेरेंटिंग का काम हो, दोनों आपस में बाँट लेते है. बेटी के होने के बाद मैंने पेरेटिंग में हमेशा साथ दिया है, मेरी कोशिश यह रहती है कि हम दोनों एक दूसरे को पति – पत्नी न समझकर दो व्यक्ति समझे, जो साथ रहते है.
थिएटर में काम करना जरूरी
ऐक्टिंग के क्षेत्र में आने के लिए थिएटर में काम करना सबसे जरूरी माना जाता है, आपने थिएटर भी बहुत किये है, इससे आपको कितना फायदा ऐक्टिंग में मिला पूछने पर वे बताते है कि किसी भी ऐक्टर के लिए प्रैक्टिस एरिया थिएटर होता है, जहां ऐक्टिंग के ईमोशन्स को बार – बार अलग – अलग तरीके से दिखाने का मौका मिलता है. साथ ही थिएटर में लोगों की प्रतिक्रियाँ तुरंत पता जाता है, जिससे खुद को इम्प्रूव करने का मौका मिलता है, जबकि फिल्मों में अभिनय सम्हल कर करना पड़ता है, क्योंकि इसमें दर्शकों की रुझान बाद में पता लगता है.
आगे वे कहते है कि फिल्म में किसी कलाकार को कुछ समय तक काम करने का मौका मिलता है. फिल्म के सेट पर वार फील्ड जैसी हालात होती है, जहां हर मोमेंट के लिए पैसे लगे होते है, हर चीज को बहुत ही बारीकी से उस समय शूट कर लिया जाता है और अगर किसी ने उसे ठीक तरीके से नहीं किया, तो अगला प्रोजेक्ट मिलना कठिन हो जाता है, क्योंकि ये बड़ी प्रोजेक्ट होती है, मौका भी बहुत मुश्किल से ही मिलता है. ऐसे में सही ऐक्टिंग की सभी बारीकियों को थिएटर सिखाती है, यही वजह है कि सारे बड़े कलाकार फिल्म के साथ थिएटर करना भी पसंद करते है. मैँ जब छोटे – छोटे शहरों में अपने ग्रुप के साथ जाता हूँ, तो देखता हूँ कि इन शहरों में भी बहुत सारे प्रतिभावान कलाकार है, पर उन्हे एक मौका नहीं मिलता. बदलती है सफलता का अर्थ प्रतीक को सफलता काफी मेहनत के बाद ‘स्कैम 1992’ से मिली, इस सफलता को अपने कैरियर का सबसे अच्छा समय मानते है. उनका कहना है कि मैंने 16 से 17 साल तक ऐक्टिंग के लिए मेहनत की है, उस दौरान मैंने थिएटर और रीजनल फिल्मों में काम करता रहा. उसके बाद मेरा समय बदला तो वह मेरे लिए अच्छी बात रही, इस वेब सीरीज को केवल देश में ही नहीं विदेश में
भी काफी सराहना मिली. असल में सफलता का अर्थ हर समय बदलता है जब मैँ सूरत में थिएटर कर रहा था, तब लगता था कि मुंबई से शो आने पर दर्शकों की भीड़ सूरत में इतनी कैसे हो जाती है, वे क्या अलग कर लेते है, लेकिन जब मुंबई आया तो पता लगा कि मुंबई में ऐक्टिंग के अलावा शो भी ग्लैमरस होता है. हिन्दी फिल्मों मे काम करने का भी मेरा अनुभव ऐसा ही है और मैँ अपनी सफलता को दूसरों की आँखों में देखता हूँ. एक हिन्दी फिल्म मिल जाना सफलता नहीं है, जब दर्शक मुझे अलग – अलग भूमिका में पसंद करने लगेंगे तब मैँ खुद को कुछ हद तक सफल मान सकता हूँ. इसके अलावा सफलता का अर्थ हर व्यक्ति के लिए अलग होता है. मेहनताना पाने को लेकर सफलता का आकलन करना ठीक नहीं. अगर किसी कहानी को करते हुए निर्माता, निर्देशक मेरे बारें में सोचने लगेंगे, तो मैँ सफल कलाकार हूँ. कलाकार सफल होने पर मेहनताना भी अच्छा ही मिल जाता है, ऐसा मुझे गुजराती थिएटर्स और जॉब करते हुए महसूस हुआ है.