ओवर ईटिंग की आदत से हैं परेशान, तो अपनाएं ये तरीके

कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाती हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाती हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाती हैं, तो पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे.

खाने में सिरका और दालचीनी डालें

खाने को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

भूख न लगने पर खाएं

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगी, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगती हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेती हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हल्की लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगी और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

धीरेधीरे खाएं

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खाना भी खाते जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगी.

स्नैक्स लेते रहें

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकती हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है, अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हल्के स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

फ्रंट डोर स्नैक

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

40 की उम्र के बाद फिट एंड हैल्दी रहने के लिए जरूर करवाएं ये टैस्ट

पुरुष हो या स्त्री सभी को अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

1. बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

2. ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

3. थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

4. ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

5. पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

6. लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

कहीं तकिया तो नहीं है बीमारी का कारण ?

आप में से कुछ लोगों को तब तक नींद नहीं आती होगी जब तक आपको तकिया न मिले. क्या आपको तकिया लेने का जितना शौक है उतना ही उसके रखरखाव का भी है. अगर नहीं, तो इस वजह से आपका यह शौक आपको धीरे-धीरे बीमार कर देगा.

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद आपको सुकून की नींद की आवश्यकता तो होगी ही. ऐसे में आरामदायक और मुलायम तकिया आपके लिए सोने में सोने पर सुहागे से कम नहीं होता. हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी तकिये का सही रखरखाव न होने के कारण यह बीमारी का जरिया भी बन जाता है.

बैक्‍टीरियल संक्रमण का खतरा

आपको भले ही आपके पुराने तकिये से लगाव हो और इसके बिना आपको नींद नहीं आती हो पर क्‍या आप ये बात जानते हैं कि आपको चैन और सुकून की नींद देने वाला ये तकिया बैक्‍टीरिया का घर भी बन जाता है. आपके पुराने तकिये में काफी बैक्टीरिया और धूल हो जाती है. घर के अंदर आने वाली धूल-मिट्टी तकिये पर जम जाती है.

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो उनके जरिये भी आपके तकिये पर बैक्‍टीरिया आ जाते हैं. ये बैक्‍टीरियाज आपकी सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अस्‍थमा जैसी श्‍वसन संबंधी बीमारी का कारण बनते हैं. इसके अलावा इनके कारण आपको एलर्जी भी हो सकती है.

दर्द का कारण

पुराने तकिये का अधिक समय तक प्रयोग करने से गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है. चूंकि हमें सोते वक्‍त थोड़े सहारे की जरूरत होती है और अगर तकिये से सही तरीके से सहारा न मिले तो रीढ़ की ह‍ड्डी पर दबाव पड़ता है और इसके कारण गर्दन या कमर में भी दर्द होने लगता है.

तकिये की जांच कैसे करें

अगर आपका तकिया पुराना हो चुका है और उसका प्रयोग अब नहीं हो सकता है तो पहले उसकी जांच कर लें. यह देख लें कि तकिये में कितनी गंदगी जमी हुई है. इसके अलावा आपको सोते वक्त इससे परेशानी तो नहीं होती, यानि आपकी रात करवट बदलते हुए तो नहीं बीत जाती और सुबह उठने पर अगर आपको गर्दन में अकड़न, पीठ, टखनों या घुटनों में दर्द महसूस हो तो समझ जाइये कि अब तकिये को बदल देने की जरूरत है.

तकिया कैसा होना चाहिए

बाजार में कई तरह के तकिये मिलते हैं, उनमें से आपके लिए सबसे बेहतर तकिये का चुनाव करना आपके लिए मुश्किल तो हो सकता है, तो ऐसे में एक बेहतर और आरामदेह तकिये की खरीद में हम आपकी मदद कर सकते हैं..

1. पालिएस्‍टर सबसे मशहूर और सस्‍ता होता है, क्‍लस्‍टर युक्‍त इन तकियों को आप वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं. इनको दो साल में बदल दीजिए.

2. लैटैक्स तकिये बहुत आरामदायक होते हैं, इनको तो आप 10-15 साल तक प्रयोग कर सकते हैं.

3. मेमोरी फोम तकिये भी बहुत ही आरामदेह होते हैं, क्‍योंकि ये लेटने पर सिर और गर्दन की शेप खुद ही बना लेते हैं. गर्भवती महिलाओं को इन तकियों का ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

4. पानी वाले तकिये में पानी के पाउच जैसा सपोर्ट होता है, ये तकिये नर्म होते हैं और हाइपो-ऐलर्जिक भी होते हैं, हां पर ये थोड़ा आरामदेह नहीं होते हैं.

इन बातों का रखें विशेष ध्‍यान :

अगर आप तकिया को लंबे समय तक इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए..

1. अगर आपके बाल गीले हों तो तकिये पर न लेटें, क्‍योंकि गीली और गंदी जगह पर बैक्टीरिया जल्‍दी और ज्‍यादा पनपते हैं.

2. तकिये के साथ-साथ इसके कवर का भी ध्‍यान रखें. तकिये का कवर ऐसा हो जिससे धूल-मिट्टी अंदर तक न पहुंचे. अगर मुमकिन हो सके तो अपने बेडरूम में डी-ह्यूमिडफायर लाकर रख लें.

3. इन सुझावों और उपायों को ध्‍यान में रखेंगे तो आपकी नींद के बीच में आपका तकिया नहीं आयेगा. आपको चैन की नींद भी आएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे.

भूलकर भी न करें पैरों मे हो रहे जलन को नजरअंदाज

पैरों में जलन की समस्या को आमतौर पर अधिकतर लोग नजरअंदाज करते हैं. उसे गंभीरता से नहीं लेते और सोचते हैं कि अपनेआप ठीक हो जाएगी. लेकिन जानकारों का मानना है कि इस में लापरवाही बरतना ठीक नहीं है. यह समस्या शरीर के बाकी हिस्सों में भी परेशानी पैदा कर सकती है.

रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार हमें आने वाली बीमारी के बारे में कतई एहसास नहीं हो पाता और वह बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती है जिस की वजह से घातक नतीजे भुगतने पड़ते हैं. ऐसी ही एक समस्या है पैरों में जलन. पैरों में जलन का मुख्य कारण है शरीर में विटामिन बी, फोलिक एसिड या कैल्शियम की कमी होना.

यह परेशानी न केवल एक खास आयुवर्ग के लोगों में होती है बल्कि यह किसी को भी अपना का शिकार बना सकती है.

क्या हैं कारण

पैरों में जलन हलकी, तेज और गंभीर हो सकती है. अकसर यह जलन तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी या शिथिलता के कारण होती है.

न्यूरोपैथी बीमारी भी पैरों की जलन का कारण हो सकती है, क्योंकि न्यूरोपैथी का असर सभी नसों पर पड़ता है. इसलिए यह मुख्य रूप से सभी अंगों और तंत्रों को प्रभावित कर सकती है. इस में पैरों में जलन, दर्द और चुभन काफी संवेदनशील तरीके से महसूस होती है.

विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र सहित हमारे शरीर के कई कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

पैरों में जलन हाईब्लडप्रैशर के कारण भी हो सकती है. हाईब्लडप्रैशर के कारण ब्लड सर्कुलेशन में भी परेशानी होती है. इस से त्वचा के रंग में बदलाव, पैरों की पल्सरेट और हाथपावों के तापमान में कमी रहती है, जिस से पैरों में जलन महसूस होती है.

किडनी संबंधी बीमारी होने पर भी पैरों में जलन होना मुमकिन है.

पैरों में जलन का प्रमुख कारण डायबिटीज होता है. इन लोगों में इस बीमारी के निदान के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं होती. और डाक्टर तुरंत इस पर नियंत्रण कर लेता है.

थायरायड हार्मोन का लैवल कम होने से भी पैरों में जलन की समस्या होती है.

दवाओं का दुष्प्रभाव, एचआईवी की दवाएं लेने और कीमोथेरैपी से भी पैरों में जलन हो सकती है.

जांच अवश्य कराएं

इलैक्ट्रोमायोग्राफी :  ईएमजी टैस्ट के लिए मांसपेशियों में सूई डाली जाती है और इस की क्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है.

लैबोरेटरी टैस्ट :  पैरों में जलन के कारणों का पता लगाने के लिए लैबोरेटरी में ब्लड, यूरिन और रीढ़ का लिक्विड टैस्ट किया जाता है.

नर्व बायोप्सी :  गंभीर परिस्थितियों में इस टैस्ट को भी किया जाता है. इस में डाक्टर शरीर से नर्व टिशू का एक टुकड़ा निकाल कर माइक्रोस्कोप से उस की जांच करते हैं.

घरेलू उपचार

पैरों की जलन से तुरंत राहत देने में सेंधा नमक कारगर है. मैग्नीशियम सल्फेट से बना सेंधा नमक सूजन और दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है. इस के लिए एक टब कुनकुने पानी में आधा कप सेंधा नमक मिला कर पैरों को 10 से 15 मिनट तक उस में डुबो कर रखें. इस उपाय को कुछ समय तक नियमित करते रहें. सेंधा नमक के पानी का इस्तेमाल डायबिटीज, हाईब्लडप्रैशर या हार्ट डिजीज वालों के लिए सही नहीं है. इस के इस्तेमाल से पहले अपने डाक्टर से सलाह अवश्य लें.

सिरका भी पैरों की जलन से आराम दिलाता है. एक गिलास गरम पानी में 2 चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्र्ड सिरका मिला कर पिएं. ऐसा करने से पैरों की जलन दूर हो जाएगी.

इस बीमारी के दौरान शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए. दूध, दही, पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का उन्हें नियमित सेवन करना चाहिए. जबकि मांसाहारियों को अंडे, मछली, रैडमीट, चिकन और सी फूड से विटामिन बी12 भरपूर मात्रा में मिलता है.

लौकी को काट कर उस का गूदा पैरों के तलवों पर मलने से भी जलन दूर होती है.

पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से भी लाभ होता है.

हलदी में भरपूर मात्रा में पाए जाने वाला करक्यूमिन पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है. हलदी में मौजूद एंटीइनफ्लेमेटरी गुण पैरों की जलन और दर्द को दूर करने में मददगार साबित होता है. हल्दी को दूध के साथ भी ले सकते हैं.

Weight Loss Tips : बिना एक्सरसाइज और डाइटिंग के आसानी से कम करें वजन

वजन कम करने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते. एक्सर्साइज और डाइटिंग के लिए नए नए पैंतरों को आजमाते हैं. पर बहुत कम लोग ही होते हैं कि उन्हें इस परेशानी से निजात मिलती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव कर आप कैसे अपना वजन कम कर सकती हैं. तो आइए जानें उन टिप्स के बारे में.

1. खूब करें फलों और सब्जियों का सेवन

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप ताजे और हरे साग, सब्जियों और फलों का सेवन करें. फ्रूट चाट के मुकाबले ताजे फलों का सेवन अधिक फायदेमंद होता है. इससे शरीर को भरपूर मात्रा में फाइबर मिलता है, जिससे डाइजेशन बेहतर बनता है.

2. समय पर सोएं

ज्यादातर कामकाजी लोग अपने नींद को लेकर गंभीर नहीं होते. पर पूरी नींद ना लेने से आपकी सेहत बुरी तरह से प्रभावित होती है. अगर आप स्वस्थ रहना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप पूरी नींद लें.

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3. चिप्स या तले हुए खाद्य पदार्थों से रहें दूर

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है हम तले हुए चीजों की ओर तेजी से बढ़ने लगे हैं. अपने काम के बीच हम चिप्स जैसी चीजों को खाते रहते हैं जो हमारी सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. आपको बता दें कि सभी पैकेट वाली चीजों में प्रिजर्वेटिव पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ वजन भी बढ़ाते हैं.

4. नाश्ता कभी ना करें स्किप

नाश्ता दिनभर का सबसे जरूरी आहार है. अगर आप वजन कम करना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप नाश्ता कभी ना छोड़ें. जो लोग नाश्ता नहीं करते, दूसरे वक्त में अधिक खाना खाते हैं. इस चक्कर में आपका वजन बढ़ जाता है.

5. खूब पीएं पानी

वजन कम करने के लिए जरूरी है कि आप अधिक पानी का सेवन करें. अगर आप सौफ्ट ड्रिंक की शौकीन हैं तो ये आपके लिए परेशानी की बात हो सकती है. कोल्ड ड्रिंक्स में कैलोरीज की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो तेजी से वजन बढ़ाती हैं. वजन कम करने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक्स की जगह ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करें.

क्या है ब्रेन स्ट्रोक, जानें इससे बचने के उपाय

पक्षाघात यानी ब्रेन स्ट्रोक दिमाग के किसी भाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने या कम होने से होता है. दिमाग में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों की कमी से ब्लड वैसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं के बीच ब्लड क्लोटिंग की वजह से उस की क्रियाएं बाधित होने लगती है, इस कारण दिमाग की पेशियां नष्ट होने लगती है जिस से दिमाग अपना नियंत्रण खो देता है, जिसे स्ट्रोक सा पक्षाघात कहते हैं. यदि इस का इलाज समय पर नहीं कराया जाए तो दिमाग हमेशा के लिए डैमेज हो सकता है. व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.

आज विश्व में करीब 80 मिलियन लोग स्ट्रोक से ग्रस्त हैं, 50 मिलियन से ज्यादा लोग स्थाई तौर पर विकलांग हो चुके हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार 25% ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की उम्र 40 वर्ष है. इस बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्तूबर को ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य स्ट्रोक की रोकथाम, उपचार और सहयोग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

मुंबई के अपैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के वरिष्ठ मस्तिष्क रोग स्पैशलिस्ट एवं न्यूरोलौजिस्ट डा. मोहिनीश भटजीवाले बताते हैं कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक को मौत का तीसरा बड़ा कारण माना जा रहा है. केवल भारत में हर 1 मिनट में 6 लोगों की मौत हो रही है, क्योंकि यहां ब्रेन स्ट्रोक जैसी मैडिकल इमरजैंसी की स्थिति में इस के लक्षणों, कारणों, रोकथाम और तत्काल उपायों के प्रति जनजागरूकता का बहुत अभाव है जबकि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को तत्काल उपचार से उन के अच्छे होने के चांसेस 50 से 70% तक बढ़ जाते हैं.

प्रमुख कारण

डा. भटजीवाले के अनुसार, आज की भागदौड़ की जिंदगी में मानसिक तनाव, लाइफस्टाइल, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग, हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, मोटापा इत्यादि ब्रेन स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार हैं. इन के अलावा आरामदायक या लगातार बैठ कर काम करने की शैली भी दिमाग और हृदय संबंधित बीमारियों को न्योता दे रही है. इन्हीं कारणों के चलते युवाओं में यह बीमारी तेजी से फैल रही है.

इन सभी कारणों के अलावा जो 80% लोगों को नहीं पता है वह है वातावरण और मौसम में असामान्य परिवर्तन, जो हमारी स्किन और ब्रेन को विपरीत ढंग से प्रभावित कर रहे हैं. इस के परिणाम आने वाले दिनों में घातक सिद्ध हो सकते हैं. इस के लिए पेड़ों की कटाई मुख्यतौर से जिम्मेदार है.’’

डा. सिद्धार्थ खारकर, न्यूरोलौजिस्ट, वक्हार्ड्ट हौस्पिटल, मीरा रोड के अनुसार, ‘‘ब्रेन स्ट्रोक को आमतौर पर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि हर 6 में से 1 व्यक्ति जिंदगी में कभी न कभी इस की चपेट में आता ही है. सर्दियों के मौसम में इस की आशंका और अधिक बढ़ जाती है. हार्ट अटैक, कैंसर और डायबिटीज जैसी बीमारियों को जितनी गंभीरता से लिया जाता है उतनी गंभीरता से ब्रेन स्ट्रोक को नहीं लिया जा रहा है. टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों में इस का खतरा ज्यादा रहता है. हाई ब्लड प्रैशर और हाइपरटैंशन के मरीज इस की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन और कोलैस्ट्रौल का बढ़ता स्तर भी ब्रेन स्ट्रोक को निमंत्रण देता है.’’

ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण

पूरे शरीर में दिमाग का काम बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है. ऐसे में यदि शरीर की अन्य बीमारियों को नजरअंदाज किया गया तो ये हमारे दिमाग को विपरीत ढंग से प्रभावित करती हैं. ब्रेन स्ट्रोक के संकेत के तौर पर मुंह, हाथ व पैर का टेड़ा होना, चक्कर आना, सिरदर्द, आंखों से धुंधला दिखाई देना, बोलने और चलने में समस्या, पीठ दर्द इत्यादि प्रमुख लक्षण होते हैं. स्ट्रोक नौनब्लीडिंग व ब्लीडिंग दोनों तरह का होता है जिस में दिमाग की नसों में सूजन हो जाती है या फिर नसें फट जाती हैं.

स्ट्रोक के प्रकार के अनुसार इलाज

डा. भटजीवाले के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक में तत्काल चिकित्सा बहुत जरूरी है. यह उपचार स्ट्रोक शुरू होने के 3-4 घंटों के अंदर किया जाए, तो दिमाग की क्षति और संभावित परेशानियों को कम किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर 3 घंटे के अंदर क्लोट बस्टिंग दवा देनी जरूरी होती है. इस के बाद डाक्टर द्वारा पूरी जांच यानी सीटीस्कैन, एमआरआई इत्यादि करने के बाद स्ट्रोक का इलाज शुरू किया जाता है, जिस का उद्देश्य दिमाग की क्षति को रोकना होता है.

यदि स्ट्रोक दिमाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने के कारण हुआ है तो उस के उपचार निम्नलिखित हैं:

  • नौनब्लीडिंग ब्रेन स्ट्रोक होने के 3 घंटों के अंदर क्लोट बस्टिंग ड्रग का इंजैक्शन दिया जाना बहुत जरूरी होता है, साथ ही ब्लड को पतला करने की दवा भी दी जाती है ताकि ब्लड न जमे. इस के अलावा सर्जरी भी की जाती है, जिस में गरदन की संकुचित ब्लड वैसेल्स को खोला जाता है.
  • यदि ब्लीडिंग के कारण ब्रेन स्ट्रोक हुआ हो तो ऐसी दवा दी जाती है जो नौर्मल ब्लड क्लोटिंग को बनाए रखने में मदद करती है. दिमाग से ब्लड को हटाने या दबाव कम करने के लिए सर्जरी की जाती है. टूटी ब्लड वैसेल्स रिपेयर करने के लिए सर्जरी की जाती है. ब्लीडिंग को रोकने के लिए क्वाइल यानी तार का इस्तेमाल किया जाता है. दिमाग में सूजन होने से बचने या रोकने के लिए दवा दी जाती है. इस के अलावा दिमाग के खाली हिस्से में ट्यूब डाल कर दबाव कम करने का प्रयास किया जाता है.

अफेसिया होने का खतरा

स्ट्रोक के बाद मरीज में शारीरिक और मानसिक अक्षमता होने की आशंका अधिक होती है, जो स्ट्रोक से प्रभावित हिस्से और आकार पर निर्भर करती है. नैशनल अफेसिया ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, 25 से 40% ब्रेन स्ट्रोक के मरीज अफेसिया की चपेट में आ जाते हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जो मरीज के बोलने, लिखने और व्यक्त करने की क्षमता को प्रभावित करती है, जिसे ‘लैंग्वेज डिसऔर्डर’ भी कहा जाता है. यह बीमारी ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन इन्फैक्शन, अल्जाइमर इत्यादि के कारण होती है. कई मामलों में अफेसिया को ऐपिलैप्सी व अन्य न्यूरोलौजिकल डिसऔर्डर के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है.

रिहैबिलिटेशन होता है सहायक

ब्रेन स्ट्रोक के कारण हुई क्षति को दूर करने में रिहैबिलिटेशन यानी पुनरुद्धार बहुत हद तक मदद करता है. रिहैबिलिटेशन से बहुत से मरीजों का स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है. हालांकि कुछ पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं. डैड स्किन सैल्स, नर्व सैल्स को ठीक या प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है, लेकिन मनुष्य का दिमाग फ्लैक्सिबल होता है. इस में मरीज हानिरहित ब्रेन सैल्स का उपयोग कर काम करने के नए तरीकों को सीख सकता है. ऐसे मरीजों के जीवन को सही देखभाल, साथ और प्रोत्साहन के जरीए सार्थक बनाया जा सकता है.

कहीं आप भी तो नहीं हो गए हैं डिप्रेशन का शिकार, इन 6 टिप्स से लगाएं पता

तनाव या कहें तो स्ट्रेस आज लोगों के बीच आम हो चुका है. अगर समय रहते इस समस्या को काबू नहीं किया गया तो इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं. स्ट्रेस के कारण ना सिर्फ मानसिक अशांति होती है, बल्कि भूख, और नींद पर भी इसका असर होता है. इस खबर में हम आपको उन संकेतों के बारे में बताएंगे जिनसे आप स्ट्रेस के बारे में समझ पाएंगे.

आइए जाने उन संकेतों के बारे में…

1. नींद ना आना

जब आप तनाव में होते हैं, नींद नहीं आती. कई बार आप सोना चाहते हैं पर आपको नींद नहीं आती. रातभर जागना, मोबाइल फोन का अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से लोग पूरी नींद नहीं ले पाते है और इसका असर शरीर पर दिखता है.

2. वजन का बढ़ना

जब आप ज्यादा तनाव में होते हैं, आपके हार्मोंस पर असर पड़ता है. इसका ये नतीजा ये होता है कि वजन बढ़ने लगता है.

3. पेट में दर्द और जलन

अगर आप ज्यादा बाथरूम जाते हैं. चिंता और तनाव की वजह से होता है कि आपको बार बार बाथरुम का चक्‍कर लगाना पड़ता है। पेट में दर्द होना और हार्ट बर्न होना भी इसकी समस्‍या है.

4. चिड़चिड़ाहट

तनाव में चिड़चिड़ाहट बेहद आम है. मरीज को छोटी छोटी बातों से काफी उलझन होती है. किसी से सही तरीके से बात नहीं करते है और हर छोटी सी बात पर परेशान हो जाते हैं. अगर लंबे समय तक आपको ऐसी परेशानी हो रही है तो सतर्क हो जाइए.

 

5. गैरजरूरी बातों को सोचते रहना

अगर आप लगातार गैर जरूरी बातों को सोचते रहते हैं, तो समझ जाइए कि आप तनाव में हैं. ऐसा इस लिए होता है क्योंकि इस दौरान आप बहुत ज्यादा सोचने लगते हैं, आप चीजों पर फोकस नहीं कर पातें, जिसके बाद आपके दिमाग में गैरजरूरी बातें आने लगती हैं, आपका कौंफिडेंस भी कम होने लगता है.

6. सख्त होने लगते हैं मसल्स और ज्वाइंट्स

अक्सर ज्यादा स्ट्रेस लेने से कंधों में, जोड़ो में परेशानी होने लगती है. कभी कभी सर से ले कर पांव में एंठन होती है. ये सब ज्यादा तनाव के कारण होता है.

Holi 2024: इन बातों का रखें ख्याल, होली होगी और भी मजेदार

होली उमंग, उल्लास, उधम-कूद, भाग दौड़ का त्योहार है. मस्ती के इस मौके पर हमारी एक छोटी सी लापरवाही से किसी का बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में हम आपको कुछ खास बाते बताने वाले हैं, जिनको ध्यान में रख कर आप बेहतर ढंग से होली का लुत्फ उठा सकती हैं.

शुगर पर रखें काबू

इस बात का ख्याल रखना खासा जरूरी है. खास कर के जो लोग शुगर के मरीज हैं. त्योहारों में तेल और शक्कर से बने हुए पकवानो की भरमार होती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तेल और चीनी, दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. मौज मस्ती में इन पकवानो का अधिक सेवन बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इस लिए जरूरी है कि आप अपने खानपान पर अत्धिक ध्यान रखें और संयामित हो कर कुछ भी खाएं.

आंखों का रखें ख्याल

होली में खेले जाने वाले रंग रसायन से मिल कर बने होते हैं. अगर ये आंख में चले जाएं तो तेज जलन और कौर्निया को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जो लोग लेंस लगात हैं, वो रंग खेलते वक्त अपने लेंस उतार लें. ऐसा ना करना उनकी आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है.

दिल का रखें ध्यान

दिल की बीमारी झेल रहे लोगों को मिठाइयों, तेल के पकवानो से दूरी बनानी चाहिए. होली पर बनने वाले पकवान उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. भारी खानपान से बेहतर कुछ हल्का फुल्का खाएं. त्योहार के उत्साह में कुछ भी ऐसा ना करें जिससे दिल पर जोर पड़े या धड़कन तेज हो जाए. अपनी दवाइयों को लेना ना भूलें.

किसी के नाक में ना जाए रंग

होली खेलते हुए हमें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि रंग किसी की नाक में ना जाए. ये रंग आर्टिफीशियल होते हैं और तरह तरह के रसायनो से बने होते हैं. ऐसे में अगर रंग नाक में जाएगा तो गंभीर परेशानियां हो सकती हैं.

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होली मौज-मस्ती, हर्ष-उल्लास, उधम-कूद, भागा-दौड़ी का त्योहार है. वसंत ऋतु में आने वाले इस पर्व की अलग की रौनक होती है. इस दौरान बनने वाले खास खाने, मिठाइयां, ठंडई, पकवान इसे और अधिक खास बनाते हैं.

अक्सर इस मौज मस्ती में लोग अपने और अपनो का ख्याल रखने से चूक जाते हैं. रंगों की मौज मस्ती में, खाने पीने में बहुत सी ऐसी लापरवाहियां हो जाती हैं जो होली के उमंग को फीका कर देती हैं. ऐसे में हम होली खेलने के दौरान और खानपान के बारे में कुछ खास टिप्स बताएंगे जिनको ध्यान में रख कर आप इस होली को यादगार और मजेदार बना सकती हैं. तो आइए शुरू करें

1. बचें सिंथेटिक रंगों से

होली में सिंथेटिक रंगों से बच कर रहें. इनमें लेड आक्साइड, मरकरी सल्फाइड ब्रोमाइड, कापर सल्फेट आदि भयानक केमिकल मिले होते हैं जो कि आंखों की एलर्जी, त्वचा में खुजली और अंधा तक बना देते हैं. इन रंगों के दूरी बनाने की कोशिश करें.

2. एलर्जी के मरीज रहें सतर्क

बहुत से लोगों को रंगों से एलर्जी होती है. उन्हें खास कर के इन रंगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा जिन लोगों को त्वचा संबंधित परेशानियां हैं उन्हें भी इससे दूर रहना चाहिए. एक और जरूरी बात, रंग खेलने से पहले शरीर पर नारियल या सरसो का तेल लगा लें. इससे त्वचा पर रंग नहीं चिपकेगा और आप सुरक्षित रहेंगी.

3. अपने चोट-घाव को बचाएं

जिन लोगों को पहले से चोट या घाव लगी हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से चोट के बढ़ने का खतरा होता है. ऐसे में अपने चोट पर एंटीसेप्टिक लगा कर रहें.

4. तेल लगाना ना भूलें

रंग खेलते वक्त बालों में खूब तेल लगा लें और सिर को रुमाल या स्कार्फ से ढंक लें. सिंथेटिक रंग आपकी बालों के लिए हानिकारक होते हैं.

5. भांग पीने से बचें

इस मौके पर कोशिश करें कि आप ज्यादा पानी में भींगे नहीं. इससे आपको बुखार, जुकाम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

6. गुब्बारे वाली होली ना खेलें

गुब्बारे वाली होली ना खेलें. इससे आपकी आंखे चोटिल हो सकती हैं.

अपनी डाइट में शामिल करें ये चीजें, कैंसर का खतरा होगा कम

दुनियाभर में लोगों के हो रहे मौत के कारणों में कैंसर प्रमुख कारणों में से एक है. ये 100 से भी अधिक तरह की होती है. दुनियाभर की एक बड़ी आबादी कैंसर के चपेट में है. इसके होने वाले तमाम कारणों में खानपान प्रमुख है. आप जो भी खाते पीते हैं इसका सीधा असर आपकी सेहत पर होता है.

इस खबर में हम आपको कुछ खास चीजों के बारे में बताने वाले हैं जिनके सेवन से आप कैंसर के खतरे को कम कर सकेंगी.

1. अखरोट

अखरोट में कई तरह के स्वास्थवर्धक तत्व पाए जाते हैं. कुछ स्टडीज के मुताबिक अखरोट खाने से ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता है. इसके अलाव प्रोस्टेट कैंसर में भी ये काफी असरदार होता है. इसके साथ ही डीएनए की सुरक्षा में भी ये काफी असरदार होता है.

2. क्रैनबेरिज

क्रैनबेरिज फाइबर, विटामिन-सी और एंटीऔक्सिडेंट का प्रमुख स्रोत होता है. इससे शरीर में पैदा होने वाले कैंसर के तत्व समाप्त हो जाते हैं.

3. सेब

सेब कई तरह की बीमारियों में बेहद लाभकारी होता है. इसके एंटीऔक्सिडेंट और  एंटी इंफ्लामेट्री गुण कैंसर के खतरे को काफी कम कर देते हैं. खासकर के कोलोरक्टल कैंसर में ये काफी प्रभावी है. अधिकतर लोग सेब के छिलके को छील कर खाते हैं, पर इससे आपका काफी नुकसान हो जाता है. अगर आप अपनी ये आदत बदल लें तो आपकी सेत के लिए ये काफी फायदेमंद हो जाता है. इसके छिलके में बहुत से गुणकारी तत्व होते हैं. कोलोरेक्टल कैंसर के अलावा सेब फेफड़ों, ब्रेस्ट और पेट के कैंसर से भी बचाव करता है.

4. ब्लू बैरीज

ब्लू बेरीज में कई तरह के गुणकारी तत्व पाए जाते हैं. इसमें फाइटोकेमिकल, एलेजिक एसिड, युरोलिथिन जैसे कई खास गुण पाए जाते हैं. ये हमारे डीएनए को हमारे शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स से सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे कैंसर का खतरा काफी कम  हो जाता है. आपको बात दें कि ब्लू बैरीज के सेवन से मुंह, ब्रेस्ट, कोलोन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम होता है.

5. ग्रीन टी

पुराने समय में कई तरह के रोगों का इवलाज करने के लिए चाय का सहारा लिया जाता था. आपको बता दें कि ग्रीन टी और ब्लौक टी में कई तरह के फायदेमंद तत्व पाए जाते हैं. स्टडी के मुताबिक, ग्रीन टी के सेवन से शरीर में कोलोन, लिवर, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाएं बन नहीं पाती हैं. वहीं कई दूसरी स्टडी में बताया गया है कि ग्रीन टी फेफड़ों, स्किन और पेट के कैंसर से भी सुरक्षित रखता है.

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