Winter Health Tips : सर्दियों में रखें दिल का खास ख्याल

Winter Health Tips : सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

नियमित जांच जरूरी

सर्दियों में लोगों को दिल का दौरा पड़ने का खतरा ज्यादा रहता है. बाईं धमनी से निकलने वाली रक्तधमनियां गिरते तापमान के साथ सिकुड़ने लगती हैं. परिणामस्वरूप दिल को रक्त प्रवाहित करने के लिए अधिक प्रयास करना पड़ता है. इस से दिल पर अधिक दबाव पड़ने लगता है और यही दिल का दौरा पड़ने का कारण बनता है. ऐसी स्थिति में उन लोगों के लिए खतरा और बढ़ जाता है, जिन्हें अपने दिल की स्थिति के बारे में पहले से जानकारी नहीं होती है.

कार्डियोवैस्क्यूलर के खतरे के बारे में जानकारी रखने के लिए नियमित जांच कराते रहना बहुत जरूरी है.

बढ़ जाता है खतरा

मौसम बदलने के साथ ही कोलैस्ट्रौल लैवल में भी व्यापक उतारचढ़ाव होता है, जिस कारण उच्च कोलैस्ट्रौल की स्थिति में पहुंच चुके व्यक्तियों को सर्दी के महीनों में कार्डियोवैस्क्यूलर रोग का खतरा बढ़ सकता है. उन के लिए कोलैस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है.

इस दौरान ज्यादा मेहनत वाला काम करने से बचें. लगातार काम करने के दौरान बीचबीच में आराम करते रहें ताकि दिल पर ज्यादा दबाव न पड़े. यही नहीं व्यायाम के तौरतरीकों में भी बदलाव लाते रहें.

ज्यादा ठंडे दिनों में सुबह की सैर करने से बचें. सामान्य खुराक से ज्यादा खाने से भी परहेज करें. लेकिन ध्यान रहे कि एक बार में ही ज्यादा मात्रा में भोजन कर लेने से भी दिल पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है. अत: ऐसा न करें, बल्कि थोड़ेथोड़े अंतराल पर थोड़ाथोड़ा खाते रहें.

सर्दी के मौसम में कभी यह सोच कर शराब का सेवन न करें कि इस से शरीर में गरमी बनी रहेगी, बल्कि यह उलटा नुकसान करती है. शराब से शरीर में गरमी बनी रहेगी, यह सोचना गलतफहमी है.

– डा. वनिता अरोड़ा
मैक्स हौस्पिटल

Winter Special: जानिए सर्दियों में होती है कितने तरह की एलर्जी, बचने के लिए करें ये उपाय

हर मौसम का अपना मजा है, लेकिन हर मौसम अपने साथ कई बीमारियां भी लेकर आता है. वसंत ऋतु की शुरूआत के साथ एलर्जी की समस्या भी शुरू हो जाती है. वैसे तो ठंड के मौसम में सर्दी, जुकाम , फ्लू जैसी समस्या होना आम है, लेकिन इन दिनों में लोग एलर्जी की शिकायत भी करते हैं. हालांकि लोग फ्लू और एलर्जी के बीच अंतर नहीं कर पाते, ऐसे में तकलीफ बढ़ जाती  है. इसलिए एलर्जी के संकेतों और इसकी रोकथाम के तरीकों से जागरूक रहना बेहद जरूरी हैं. वैसे सर्दी और एलर्जी के बीच सबसे बड़ा अंतर अवधि का है. जुकाम आमतौर पर 10 दिनों तक रहता है, जबकि एलर्जी हफ्तों या महीनों तक जारी रह सकती है. सर्दियों में एलर्जी एक नहीं बल्कि कई तरह की होती है. तो आइए आपकी मदद के लिए हम यहां आपको बताते हैं विंटर एलर्जी क्या और कितने तरह की होती है.

सर्दियों में होने वाली सामान्य एलर्जी-

धूल और प्रदूषक-

सर्दियों के मौसम में ताप की जरूरतों के कारण ऊर्जा की खपत बहुत ज्यादा होती  है, जो हवा में विषाक्त पदार्थ छोड़ती है. सर्दियों के मौसम में हवा शुष्क होती है और गर्मी के मौसम में हवा की तुलना में इसमें ज्यादा प्रदूषण होता है. हवा में मौजूद धूल और अन्य प्रदूषक लोगों में एलर्जी का कारण बन सकते हैं.

मोल्ड-

अंधेरा, ठंडा और नम वातावरण मोल्ड के लिए एक अच्छा प्रजनन स्थल  है. यह लोगों में एलर्जी पैदा करने वाले सबसे आम  कारकों में से एक  है, जो सर्दी के मौसम में बढ़ जाता है.

पालतू जानवरों की फर-

घर में पले पालतू जानवरों की रूसी और फर के कारण एलर्जी का सामना करना पड़ सकता है. यह फर जब कपड़ों और घर में कई जगह गिर जाती है, तो इससे एलर्जी का खतरा भी बढ़ जाता है.

धूल के कण-

सर्दी गर्म कपड़ों का मौसम है. हालांकि, धूल के कण कपड़ों में फंसने और घर के अंदर की हवा में जमा होने से लोग एलर्जी का शिकार हो जाते हैं.

सर्दियों में होने वाली एलर्जी से कैसे बचा जा सकता है-

– जितना हो सके, घर को धूल, मिट्टी से मुक्त रखें.

– सप्ताह में एक या दो बार कालीन को वैक्यूम क्लीन करें.

– घर के पर्दे और शेड धूल मुक्त होने चाहिए.

– घर में ज्यादा नमी से बचें. क्योंकि ज्यादा नमी से मोल्ड का विकास बहुत तेजी से होता है.

– धूम्रपान से बचना चाहिए.

– अगर आपके घर में पेट्स हैं, तो हो सके तो इन्हें घर से बाहर रखें और हफ्ते में इन्हें एक बार नहलाएं.

सर्दियों में होने वाली एलर्जी के लक्षण लगभग मौसमी एलर्जी की तरह ही दिखते हैं. ऐसे में एलर्जी की दवा लेना, नाक और साइनस की सफाई करना या फिर घरेलू उपाय लक्षणों को कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं.

Winter Special: सर्दियों में महिलाएं रखें अपनी सेहत का ख्याल, शरीर को दें बेहतर पोषण

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सर्दियों का मौसम हमारी दिनचर्या में कई तरह के बदलाव लेकर आता है. खाने-पीने से लेकर हमारी सोने तक का रूटीन बहुत गड़बड़ा जाता है, जिसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. अगर आप एक महिला हैं, तो सर्दियों के मौसम में आपको अपने परिवार के साथ खुद की देखभाल करने की भी जरूरत है. दरअसल, इस मौसम में महिलाएं अपने पोषण पर ध्यान नहीं देती . विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी व्यक्ति की पोषण संबंधी जरूरतें मौसम के आधार पर अलग होती हैं. इसलिए शरीर को हर मौसम में हर तरह के पोषक तत्व प्रदान करना आपकी जिम्मेदारी है. इसलिए अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए, जो पोषक तत्वों से भरपूर हों. यहां हम आपको ऐसे पोषण संबंधी टिप्स बता रहे हैं, जिससे शरीर में पोषण की कमी दूर हो जाएगी और आप एक खुश और स्वस्थ सर्दी का आनंद ले सकेंगे.

विटामिन -सी का सेवन करें

यह जादुई विटामिन अपनी एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है, जो सर्दियों के लिए जरूरी भी है. खट्टे फल जैसे संतरे, नींबू , कीवी, पपीता, अमरूद में पाया जाने वाला विटामिन सी हमारी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में मदद करता है. इस वंडर विटामिन का एक और फायदा यह है कि यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है. इस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए अपने आहार में विटामिन -सी का सेवन बढ़ाएं.

हरी सब्जियां खाएं

सर्दियों का मौसम हरी पत्तेदार सब्जियों के लिए जाना जाता है. हरी सब्जियां कई एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन से भरपूर होती हैं. यह हमारे शरीर के कार्य के लिए बहुत जरूरी हैं. इसमें मौजूद प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और आयरन कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का घरेलू उपचार हैं. इसलिए इन दिनों में महिलाओं को अपने आहार में हरी सब्जियों को जरूर शामिल करना चाहिए.

दूध और चाय में करें मसालों का उपयोग

केसर, हल्दी, दालचीनी और इलायची जैसे भारतीय मसाले सर्दियों के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं. इन सभी मसालों की तासीर गर्म होती है, जिसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है. इसके अलावा सर्दी और फ्लू जैसी सामान्य मौसमी बीमारियों से बचने के लिए इन मसालों का सेवन जरूरी है. इनका इस्तेमाल आप चाय या हल्दी के दूध में मिलाकर कर सकते हैं.

सूखे मेवे खाएं-

सूखे मेवे भी ठंड और शुष्क मौसम में गर्मी पाने करने का बेहतरीन तरीका है. वैसे खजूर और अंजीर भारत में सर्दियों में सबसे ज्यादा खाए जाते हैं. इन दोनों में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. ये सर्दियों में सुस्त हो रहे शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं. वैसे गर्म दूध के साथ इनका सेवन करना अचछा माना जाता है.

आहार में शामिल करें घी –

कड़ाके की ठंड हमारी त्वचा और बालों को बेजान और सूखा बना देती है. इसलिए शरीर को भीतर से पोषण देने के लिए उपाय करना जरूरी है. खुद को भीतर से पोषित रखने के लिए ठंड के दिनों में रोजाना घी का अच्छा सेवन करना चाहिए. घी इस मौसम में आपके शरीर को गर्माहट देता है. इसलिए हो सके, तो इसे अपने आहार में जरूर शामिल करें.

यहां बताए गए खाद्य पदार्थों के सेवन न केवल शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होगी, बल्कि अपनी सेहत को अनदेखा करने वाली महिलाएं बिना बीमार पड़े सर्दियों का आनंद ले पाएंगी.

मेरे घुटने में दर्द रहता है, इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. मैं जब भी बैठने वाले काम करती हूं तो उठते वक्त मेरे घुटनों में दर्द होने लगता है. दर्द के कारण मुझे हर काम में समस्या होती है. ऐसा क्यों हो रहा है और इस से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब

नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं. सामूहिक भोजन करना हो, घर का कामकाज करना हो या आपस में बातें करनी हों इन सभी कामों में घुटने मोड़ कर ही बैठना पड़ता है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है, जिस से कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है.

आप को अपने बैठने का तरीका बदलना चाहिए. समस्या को हलके में न लें क्योंकि धीरेधीरे आप का चलनाफिरना तक दूभर हो सकता है. इस समस्या से बचने का सब से अच्छा तरीका व्यायाम है. व्यायाम से जोड़ों की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं, उन का लचीलापन बना रहता है और जोड़ों को उन से सपोर्ट भी मिलती है. वजन कम होने से जोड़ों पर दबाव भी कम पड़ता है. इस के अलावा शरीर को विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. पैर मोड़ कर बैठने से बचें, आलथीपालथी मार कर न बैठें. लंबे समय तक खड़े होने से बचें.

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मैं 26 वर्षीय इंजीनियर हूं. मुझे दौड़नाभागना और खेलनाकूदना काफी पसंद है बावजूद इस के मेरे घुटनों में अभी से दर्द की समस्या होने लगी है. भागते वक्त ऐसा लगता है जैसे मेरे घुटनों के कप टूट जाएंगे. ऐसा क्यों है और इस का समाधान क्या है?

आप को रनर्स नी यानी पैटेलोफेमोर पेन सिंड्रोम की समस्या हो गई है, जो घुटनों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण होती है. जो लोग बहुत ज्यादा कसरत करते हैं उन के घुटने की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं जिस के कारण घुटनों में दर्द उठता है. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ अभ्यास से न सिर्फ इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है बल्कि इस का इलाज भी संभव है. ऐसे में आप को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की आवश्यकता है.

बर्फ को कपड़े में लपेट कर 2-3 दिन घुटनों की अच्छे से सिकाई करें. इस के अलावा आप क्रीप बैंडेज यानी गरम पट्टी भी बांध कर रख सकते हैं. यदि बावजूद इस के समस्या में राहत नहीं मिल रही है तो आप किसी अच्छे डाक्टर या फिजियोथेरैपिस्ट से परामर्श ले सकते हैं.

-डा. अखिलेश यादववरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जौइंट रिप्लेसमैंट, सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर, गाजियाबाद. 

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मेरे पति सैक्स के दौरान हिंसक हो जाते हैं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है. दरअसल, पति सैक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सैक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभी-कभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं. हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते. अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं. सिर्फ इतना ही कहा कि धीरेधीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सैक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सैक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सैक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सैक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है. हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सैक्स के दौरान सब भूल जाते हैं. आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी. ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है. सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें. बेहतर होगा कि किसी अच्छे सैक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

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क्या मोटापे के कारण प्रैग्नेंसी में प्रौब्लम आ सकती है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 28 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 4 इंच और वजन 85 किलोग्राम है. मैं और मेरे पति फैमिली प्लान करना चाहते हैं. क्या मोटापे के कारण गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सही है कि मोटापे के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं न ही आप को प्रयास करना चाहिए. अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटी हैं तो आप को कम से कम 1 साल पहले अपनी प्रैगनैंसी प्लान करना चाहिए ताकि गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान जटिलताएं न हों और आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, प्रतिदिन 100-200 कैलोरी का इनटेक कम कर दें, इस से 1 वर्ष में आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 5 से 10 किलोग्राम तक वजन कम कर लेंगी. अगर कोई महिला मोटापे से छुटकारा पाने के लिए वेट लौस सर्जरी करना चाहती है, तो यह जरूरी सुझाव है कि इसे गर्भधारण की योजना बनाने से कम से कम 18 महीने पहले कराएं.

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गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

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ओवर ईटिंग की आदत से हैं परेशान, तो अपनाएं ये तरीके

कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाती हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाती हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाती हैं, तो पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे.

खाने में सिरका और दालचीनी डालें

खाने को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

भूख न लगने पर खाएं

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगी, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगती हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेती हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हल्की लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगी और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

धीरेधीरे खाएं

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खाना भी खाते जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगी.

स्नैक्स लेते रहें

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकती हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है, अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हल्के स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

फ्रंट डोर स्नैक

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

40 की उम्र के बाद फिट एंड हैल्दी रहने के लिए जरूर करवाएं ये टैस्ट

पुरुष हो या स्त्री सभी को अपने सेहत का ख्याल रखना चाहिए. पर देखा जाता है कि घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती. खास तौर पर जो महिलाएं 40 के पार की होती हैं, वो अपनी सेहत को ले कर काफी लापरवाह होती हैं. जबकि इसी दौरान जरूरी होता है कि आप अपने सेहत को ले कर ज्यादा सजग रहें. क्योंकि इस दौरान स्वास्थ्य की समस्याओं की संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. स्वास्थ्य के बारे में पता लगाने के लिए आपको समय रहते कुछ टेस्ट करवा लेनी चाहिए. ये टेस्ट आपके शरीर को स्वस्थ और हेल्दी रखने में मदद करती हैं और यदि किसी प्रकार की कोई समस्या होती है तो उसकी जानकारी भी दे देती है.

1. बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट

40 के बाद महिलाओं को ये टेस्ट कराते ही रहना चाहिए क्योंकि ये बीमारी हार्मोन एस्ट्रोजेन के घटते स्तर के कारण होती है. हड्डियों के सुरक्षा में हार्मोन एस्ट्रोजेन की भूमिका अहम होती है. इसलिए इस टेस्ट को कराते रहना जरूरी है.

2. ब्लड प्रेशर

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि समय समय पर आप बल्ड प्रेशर नापते रहें. ब्लड प्रेशर संबंधी परेशानी उम्र के किसी पड़ाव पर हो सकती है. सही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिकेशन की मदद से आप अपने बल्ड प्रेशर को नियंत्रित रख सकती हैं.

3. थायरायड टेस्ट

आजकल महिलाओं में थायरायड की शिकायत तेज हुई है.  इसके कारण उनमें वजन का बढ़ना या घटना, बालों का झड़ना, नाखून के टूटने की शिकायत होती है. इसका कारण थायरायड है. यह ग्रंथि हार्मोन टी 3, टी 4 और टीएसएच को गुप्त करता है और शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है. इसलिए हर 5 सालों में आपको ये टेस्ट कराते रहना चाहिए.

4. ब्लड शुगर

असंतुलित आहार के कारण ब्लड शुगर का खतरा काफी बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद ब्लड शुगर टेस्ट कराया जाए. इसे हर साल करनाना चाहिए ताकि आप अपने ब्लड में शुगर की मात्रा से हमेशा अपडेट रह सकें.

5. पेल्विक टेस्ट

महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा काफी अधिक रहता है. इस लिए जरूरी है कि 40 की उम्र के बाद आप स्त्री रोग विषेशज्ञ के संपर्क में रहें.

6. लिपीड प्रोफाइल टेस्ट

ट्राइग्लिसराइड और बैड कोलेस्ट्रौन के स्तर की जांच के लिए ये टेस्ट जरूरी है. कोलेस्ट्रौल एक मोटा अणु है, जो उच्च स्तरों में उपस्थित होने से रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है और आपके दिल, रक्त वाहिकाओं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए हर 6 महीने पर इसकी जांच जरूर करवाएं.

फेशियल हेयर हैं इन गंभीर बीमारियों के संकेत, जरूर करवाएं ये टेस्ट

महिलाओं में हलके और मुलायम फेशियल हेयर होना सामान्य बात हो सकती है, लेकिन जब बाल कड़े और मोटे होते हैं तो यह हारमोन असंतुलन का संकेत है, जिस के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं. इस समस्या को हिर्सुटिज्म के नाम से जाना जाता है.

महिलाओं में मध्य रेखा, ठोड़ी, स्तनों के बीच, जांघों के अंदरूनी भागों, पेट या पीठ पर बाल होना पुरुष हारमोन ऐंड्रोजन के अत्यधिक स्रावित होने का संकेत है, जो एड्रीनल्स द्वारा या फिर कुछ अंडाशय रोगों के कारण स्रावित होता है. इस प्रकार की स्थितियां अंडोत्सर्ग में रुकावट डाल कर प्रजनन क्षमता को कम कर देती हैं. पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी ही स्थिति है, जो महिलाओं में बालों के अनचाहे विकास से संबंधित है. यह डायबिटीज व हृदयरोगों का प्रमुख खतरा भी है.

जार्जिया हैल्थ साइंसेस यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार, पीसीओएस महिलाओं में हारमोन संबंधी गड़बड़ियों का एक प्रमुख कारण है और यह लगभग 10% महिलाओं को प्रभावित करता है.

हिर्सुटिज्म से पीड़ित 90% महिलाओं में पीसीओएस या इडियोपैथिक हिर्सुटिज्म की समस्या पाई गई है. अधिकतर मामलों में ऐस्ट्रोजन के स्राव में कमी और टेस्टोस्टेरौन के अत्यधिक उत्पादन के कारण यह किशोरावस्था के बाद धीरेधीरे विकसित होता है.

निम्न कारक ऐंड्रोजन को उच्च स्तर की ओर ले जाते हैं, जो हिर्सुटिज्म का कारण बनते हैं:

आनुवंशिक कारण: इस स्थिति का पारिवारिक इतिहास होने से खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है. त्वचा की संवेदनशीलता एक और आनुवंशिक कारण है, जो टेस्टोस्टेरौन का स्तर कम होने पर भी कड़े और मोटे बालों के विकास का कारण बन जाता है.

पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: जो महिलाएं पीसीओएस से ग्रस्त होती हैं, उन के चेहरे पर बालों का अत्यधिक विकास होता है और यह प्रजनन स्वास्थ्य में कमी का सब से प्रमुख कारण हो सकता है. पीसीओएस के कारण अंडाशय में कई छोटीछोटी गांठें बन जाती हैं. पुरुष हारमोन के अत्यधिक उत्पादन के कारण अनियमित अंडोत्सर्ग, मासिकचक्र से संबंधित गड़बड़ियां और मोटापे की समस्या हो जाती है.

अंडाशय का ट्यूमर: कुछ मामलों में ऐंड्रोजन के कारण होने वाला अंडाशय का ट्यूमर, हिर्सुटिज्म का कारण बन जाता है, जिस के कारण ट्यूमर तेजी से विकसित होने लगता है. इस स्थिति के कारण महिलाओं में पुरुषों के समान गुण विकसित होने लगते हैं जैसे आवाज में भारीपन आना. इस के अलावा योनि में क्लाइटोरिस का आकार बढ़ जाना.

एड्रीनल से संबंधित गड़बड़ियां: एड्रीनल ग्रंथियां, जो किडनी के ठीक ऊपर होती हैं, ऐंड्रोजन का निर्माण भी करती हैं. इन ग्रंथियों के ठीक प्रकार से काम न करने से हिर्सुटिज्म की समस्या हो जाती है.

महिलाओं में चेहरे के बालों का विकास उन की प्रजननतंत्र से संबंधित जटिलताओं जैसे पीसीओएस, कंजेनिटल एड्रीनल हाइपरप्लेसिया (सीएएच) आदि का संकेत होता है, जो गर्भावस्था को रोकने के सब से प्रमुख रिस्क फैक्टर्स में से एक होता है.

ऐसे में डाक्टर संबंधित जटिलताओं को सुनिश्चित करने के लिए निम्न मूल्यांकन करेगा:

स्थिति का पारिवारिक इतिहास

डाक्टर यह जांचेगा कि यौवन किस उम्र में प्रारंभ हुआ, बालों के विकास की दर क्या है (अचानक है या धीरेधीरे). दूसरे लक्षण जैसे अनियमित मासिकचक्र, स्तनों में ऊतकों की कमी, सैक्स करने की प्रबल इच्छा होना, वजन बढ़ना और डायबिटीज का इतिहास. इस बात की भी जांच की जाती है कि पेट में कोई पिंड तो विकसित नहीं हो रहा है.

कई सीरम मार्कर टैस्ट भी किए जाते हैं जैसे-

टेस्टोस्टेरौन: अगर इस का स्तर सामान्य से थोड़ा बढ़ जाता है, तो यह पीसीओएस या सीएएच का संकेत है. अगर इस के स्तर में परिवर्तन सामान्य से बहुत अधिक होता है, तो यह ओवेरियन ट्यूमर का संकेत हो सकता है.

प्रोजेस्टेरौन: यह टैस्ट मासिकचक्र के प्रारंभिक चरण में किया जाता है, सीएएच के संकेत के रूप में.

हारमोंस का उच्च स्तर पीसीओएस का संकेत देता है. अगर प्रोलैक्टिन हारमोन का स्तर बढ़ा होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि मरीज हाइपरप्रोलैक्टीमिया से पीड़ित है.

सीरम टीएसएच: थायराइड को स्टिम्युलेट करने वाले हारमोन का स्तर कम होने से हाइपरथायरोडिज्म की समस्या हो जाती है, जो महिलाओं में प्रजनन संबंधी समस्याओं का कारण बनती है.

पैल्विक अल्ट्रासाउंड: यह जांच ओवेरियन नियोप्लाज्मा या पौलिसिस्टिक ओवरीज का पता लगाने के लिए की जाती है.

उपचार

मामूली हिर्सुटिज्म के अधिकतर मामलों में और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए उपचार कराने की आवश्यकता नहीं होती है. हिर्सुटिज्म का उपचार बांझपन से संबंधित है. इस में प्रजनन स्वास्थ्य का उपचार करने को प्राथमिकता दी जाती है. इसीलिए उपचार उस समस्या पर केंद्रित होता है जो इस का कारण बनी है.

अगर कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है, तो ऐंड्रोजन के स्तर को नियमित करने के लिए दवाएं दी जाती हैं, जिन का सेवन रोज करना होता है. ये टेस्टोस्टेरौन के स्तर को कम करने और प्रजनन क्षमता फिर से पहले जैसी करने में सहायता करती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

(गाइनोकोलौजिस्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली)

कहीं तकिया तो नहीं है बीमारी का कारण ?

आप में से कुछ लोगों को तब तक नींद नहीं आती होगी जब तक आपको तकिया न मिले. क्या आपको तकिया लेने का जितना शौक है उतना ही उसके रखरखाव का भी है. अगर नहीं, तो इस वजह से आपका यह शौक आपको धीरे-धीरे बीमार कर देगा.

पूरे दिन की भागदौड़ के बाद आपको सुकून की नींद की आवश्यकता तो होगी ही. ऐसे में आरामदायक और मुलायम तकिया आपके लिए सोने में सोने पर सुहागे से कम नहीं होता. हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी तकिये का सही रखरखाव न होने के कारण यह बीमारी का जरिया भी बन जाता है.

बैक्‍टीरियल संक्रमण का खतरा

आपको भले ही आपके पुराने तकिये से लगाव हो और इसके बिना आपको नींद नहीं आती हो पर क्‍या आप ये बात जानते हैं कि आपको चैन और सुकून की नींद देने वाला ये तकिया बैक्‍टीरिया का घर भी बन जाता है. आपके पुराने तकिये में काफी बैक्टीरिया और धूल हो जाती है. घर के अंदर आने वाली धूल-मिट्टी तकिये पर जम जाती है.

अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो उनके जरिये भी आपके तकिये पर बैक्‍टीरिया आ जाते हैं. ये बैक्‍टीरियाज आपकी सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अस्‍थमा जैसी श्‍वसन संबंधी बीमारी का कारण बनते हैं. इसके अलावा इनके कारण आपको एलर्जी भी हो सकती है.

दर्द का कारण

पुराने तकिये का अधिक समय तक प्रयोग करने से गर्दन और पीठ में दर्द हो सकता है. चूंकि हमें सोते वक्‍त थोड़े सहारे की जरूरत होती है और अगर तकिये से सही तरीके से सहारा न मिले तो रीढ़ की ह‍ड्डी पर दबाव पड़ता है और इसके कारण गर्दन या कमर में भी दर्द होने लगता है.

तकिये की जांच कैसे करें

अगर आपका तकिया पुराना हो चुका है और उसका प्रयोग अब नहीं हो सकता है तो पहले उसकी जांच कर लें. यह देख लें कि तकिये में कितनी गंदगी जमी हुई है. इसके अलावा आपको सोते वक्त इससे परेशानी तो नहीं होती, यानि आपकी रात करवट बदलते हुए तो नहीं बीत जाती और सुबह उठने पर अगर आपको गर्दन में अकड़न, पीठ, टखनों या घुटनों में दर्द महसूस हो तो समझ जाइये कि अब तकिये को बदल देने की जरूरत है.

तकिया कैसा होना चाहिए

बाजार में कई तरह के तकिये मिलते हैं, उनमें से आपके लिए सबसे बेहतर तकिये का चुनाव करना आपके लिए मुश्किल तो हो सकता है, तो ऐसे में एक बेहतर और आरामदेह तकिये की खरीद में हम आपकी मदद कर सकते हैं..

1. पालिएस्‍टर सबसे मशहूर और सस्‍ता होता है, क्‍लस्‍टर युक्‍त इन तकियों को आप वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं. इनको दो साल में बदल दीजिए.

2. लैटैक्स तकिये बहुत आरामदायक होते हैं, इनको तो आप 10-15 साल तक प्रयोग कर सकते हैं.

3. मेमोरी फोम तकिये भी बहुत ही आरामदेह होते हैं, क्‍योंकि ये लेटने पर सिर और गर्दन की शेप खुद ही बना लेते हैं. गर्भवती महिलाओं को इन तकियों का ही प्रयोग करने की सलाह दी जाती है.

4. पानी वाले तकिये में पानी के पाउच जैसा सपोर्ट होता है, ये तकिये नर्म होते हैं और हाइपो-ऐलर्जिक भी होते हैं, हां पर ये थोड़ा आरामदेह नहीं होते हैं.

इन बातों का रखें विशेष ध्‍यान :

अगर आप तकिया को लंबे समय तक इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों को ध्‍यान में रखना चाहिए..

1. अगर आपके बाल गीले हों तो तकिये पर न लेटें, क्‍योंकि गीली और गंदी जगह पर बैक्टीरिया जल्‍दी और ज्‍यादा पनपते हैं.

2. तकिये के साथ-साथ इसके कवर का भी ध्‍यान रखें. तकिये का कवर ऐसा हो जिससे धूल-मिट्टी अंदर तक न पहुंचे. अगर मुमकिन हो सके तो अपने बेडरूम में डी-ह्यूमिडफायर लाकर रख लें.

3. इन सुझावों और उपायों को ध्‍यान में रखेंगे तो आपकी नींद के बीच में आपका तकिया नहीं आयेगा. आपको चैन की नींद भी आएगी और आप हमेशा स्वस्थ्य रहेंगे.

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