क्या आपको भी है डबल चिन की प्रौब्लम, हो सकती हैं ये खतरनाक बीमारियां

मोटापे से कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं. इससे शरीर के सारे अंग प्रभावित होते हैं. डबल चिन मोटापे के कारण होता है. इससे आपकी सुंदरता पर बुरा असर होता है. आम तौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते और इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं, पर परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता. इस खबर में हम आपको उन कारणों के बारे में बताएंगे जिनके चलते डबल चिन की परेशानी होती है.

1. थायराइड

थायराइड डबल चिन का एक प्रमुख कारण है. आपको बता दे कि वजन बढ़ना हाइपोथायरायडिज्म सामान्य सूचक है. लेकिन क्या यह जानते हैं कि आपके जबड़े के बढ़ने का भी यही कारण हो सकता है? यदि आपके जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित क्षेत्र में त्वचा समय के साथ फैट से भर जाती है, तो आपको डबल चिन की समस्या हो सकती है. थायराइड के बढ़ने से गर्दन में भी सूजन आ सकती है.

2. कुशिंग सिंड्रोम

कुशिंग सिंड्रोम के प्रमुक लक्षम हैं उपरी शरीर का मोटा होना और गर्दन में फैट का जमा होना. इसमें लंबे समय तक कोर्टिसोल का अधिक उत्पादन होने लगता है जिसका परिणाम पिट्यूटरी एडेनोमा के रूप में दिखता है. अगर आप एडेनोमा से पीड़ित हैं, तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है.

3. साइनस इंफेक्शन

क्रोनिक साइनसाइट के कारण लिंफ नोड्स बढ़ता है. इसके कारण आपके चेहरे और गर्दन पर मोटापा आ सकता है. इस तरह की पुरानी साइनसिसिस जो डबल चिन के लिए जिम्मेदार है उसमें एलर्जी रैनिटिस, अस्थमा, नाक की समस्याएं या स्यूनोसाइटिस शामिल हैं.

4. सलवेरी ग्लैंड इन्फ्लमेशन

कई बार लार ग्रंथी में इंफेक्शन की वजह से जबड़े वाले हिस्से में सूजन हो जाती है जिसके कारण डबल चिन हो जाती है. ओरल हाइजीन, लार की नली की समस्या, पानी में अपर्याप्त जल, पुरानी बीमारी और धूम्रपान इस सूजन के कुछ सामान्य कारण हैं.

Women Health Tips: महिलाओं को ओवरी के बारे में पता होनी चाहिए ये बातें

आम तौर पर देखा जाता है कि महिलाएं सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ पर बात करने से कतराती हैं. जबकि उन्हें कई बातों के बारे में उन्हें जानने की जरूरत है. जानकारी के अभाव में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस खबर में हम आपको महिलाओं के ओवरी (अंडाशय) के बारे में कुछ जरूरी बातें बताएंगे. ओवरी से जुड़ी ये कुछ ज़रूरी बातें हैं जो आपको पता होनी चाहिए.

1. ओवरी के साइज में बदलाव होत रहता है

शरीर के अन्य अंग भले ही एक साइज पर आकर रुक जाते हों, पर ओवरी की साइज बदलती रहती है. ये बदलाव उम्र के साथ और पीरियड्स के दौरान होता है. आपको बता दें कि जब ये अंडा बना रही होती है तो ये आकार में बढ़ जाती है. इसमे करीब 5 सेंटीमीटर तक का बदलाव होता है.

2. ओवरी को होता है स्ट्रेस

जिस समय आपकी ओवरीज अंडे बना रही होती हैं, उस वक्त को ओव्यूलेशन कहते हैं. और स्ट्रेस का इस पर बहुत असर पड़ता है. उस दौरान अगर आप वाकई बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में हैं, तो आपकी ओवरीज़ अंडे बनाना बंद कर देगी.

3. बर्थ कंट्रोल पिल से ओवरीज होती हैं प्रभावित

जानकारों की माने तो बर्थ कंट्रोल पिल्स ओवरीज़ पर सकारात्मक असर करती हैं. सुनने में ये भले ही अजीब लग रहा हो, पर ये सच है. हम बात कर रहे हैं गर्भनिरोधक गोलियों की. उनको लेने से ओवेरियन कैंसर होने का रिस्क काफी कम रहता है.

4. ओवेरियन सिस्ट अकसर अपने आप ठीक हो जाते हैं

बहुत सी औरतों के ओवरी में सिस्ट हो जाता है. ये कैविटी जैसी एक चीज है जिसमें पस भर जाता है. इसे ठीक करने के लिए कई तरह की दवाइयां और सर्जरी हैं. ओवरी के सिस्ट से घबराएं नहीं. ये तीन चार महीनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं.

नार्मल या सी-सेक्शन डिलिवरी : आपके बच्चे की सेहत के लिए क्या है बेहतर?

आज कल ज्यादातर बच्चों की डिलिवरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति यानि सी-सेक्शन से हो रही है. सेहत के जोखिम, दर्द और भी कई समस्याओं को देखते हुए लोग नार्मल डिलिवरी कराना बेहतर समझते हैं. हाल में एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि जिन बच्चों की डिलिवरी नार्मल होती है, यानि औपरेशन के बिना, वो बच्चे ज्यादा स्वस्थ होते हैं.

अध्ययन की माने तो गर्भावस्था और प्रसव के दौरान माइक्रोबायोम वातावारण में गड़बड़ी, विकसित होते बच्चे के शुरुआती माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकती हैं. जिसके कारण बच्चे को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

अध्ययन में ये भी बताया गया कि सी-सेक्शन जैसी प्रसव पद्धतियां इन माइक्रोबायोम को प्रभावित करती हैं और बच्चों के इम्यून, मेटाबौलिज्म और तंत्रिक संबंधी प्रणालियों के विकास में नकारात्मक असर डालती हैं. जानकारों की माने तो शिशु के स्वास्थ्य के लिए केवल शिशु की ही नहीं, बल्कि मां के मोइक्रोबायोम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अगर मां के माइक्रोबायोट में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है तो बच्चे को दमा, मोटापा, एलर्जी जैसी कई परेशानियां हो सकती हैं.

अध्ययन में ये बात सामने आई कि सामान्य प्रसव में जन्म के तत्काल बाद मां की त्वचा का शिशु की त्वचा से संपर्क और स्तनपान जैसी पारंपरिक क्रियाएं बच्चे में माइक्रोबायोम के विकास को बढ़ाने और बच्चे के स्वास्थ्य विकास में सकारात्मक प्रभाव डालने में मदद कर सकती हैं.

हैप्पी प्रैगनैंसी के सिंपल सीक्रेट्स

मांबनने का एहसास दुनिया का सब से खूबसूरत एहसास होता है लेकिन 9 महीने की गर्भावस्था का यह समय काफी कठिन और नाजुक भी होता है. जरा सी लापरवाही से प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशंस आ सकते हैं. बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. पहली और तीसरी तिमाही काफी नाजुक होती है. इसलिए इस समय मां को अपना भरपूर ख्याल रखना चाहिए. अपनी डाइट, लाइफस्टाइल, ऐक्सरसाइज के साथसाथ मैंटल हैल्थ को ले कर भी पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए ताकि वह स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके.

हैल्दी प्रैगनैंसी के लिए इन बातों का खयाल जरूर रखें:

1- सही और पौष्टिक खानपान

गर्भावस्था के पूरे 9 महीने खानपान में कोई भी लापरवाही न बरतें. आप जो भी खाएंगी वह आप के शिशु को भी लगेगा. प्रैगनैंसी के दौरान ही नहीं बल्कि कंसीव करने से पहले और डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को अपनी डाइट का ध्यान रखना चाहिए. प्रेगनेंसी में पौष्टिक आहार लेने से उस के मस्तिष्क का सही विकास होने में मदद मिलती है और जन्म के समय शिशु का वजन भी ठीक रहता है.

संतुलित आहार से शिशु में जन्मजात विकार से भी बचाव होता है. अकसर प्रैगनैंसी के पहले महीने में कुछ महिलाओं को उलटी, मितली, भूख न लगना, थकान जैसी परेशानियां होती हैं जिस से उन्हें खाने में परेशानी आती है. मगर इस समय भी अपनी डाइट में फाइबर से भरपूर सब्जियां, फल, नट्स, दूध आदि जरूर लें.

प्रैगनैंसी के 9 महीनों में शरीर शिशु के पोषण और विकास के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा होता है. इस समय में शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है जिसे उबले अंडे, मछली, कम वसा वाला मांस, बींस जैसे राजमा, लोबिया, मूंग और साबूत मूंग, मेवे, सोया और दाल आदि से पूरा किया जा सकता है. अंडा काफी पौष्टिक होता है. उस में प्रोटीन, बायोटिन, कोलैस्ट्रौल, विटामिन डी, ऐंटीऔक्सीडैंट आदि भरपूर मात्रा में होते हैं इसलिए ये भी प्रैगनैंट महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

प्रैगनैंसी के दौरान महिलाओं को अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, पत्तागोभी और ब्रोकली को शामिल करना चाहिए. इन के अलावा फलियां जैसे बींस और सहजन भी खाना चाहिए. इन में फाइबर, प्रोटीन, आयरन और कैल्सियम की अधिक मात्रा होती है जिन की जरूरत प्रैगनैंट महिलाओं को होती है.

2- सही और संयुक्त खानपान

ज्यादा फाइबर वाली चीजों का सेवन करें. प्रैगनैंसी के दौरान कब्ज की शिकायत बढ़ जाती है, इसलिए पाचनक्रिया का ठीक होना बहुत जरूरी है. कोशिश करें कि अपने फूड्स में ज्यादा से ज्यादा फाइबर लें. इस से कब्ज होने का खतरा नहीं रहता है.

सूखा मेवा भी प्रैगनैंसी में काफी सही आहार है. आप बादाम, अखरोट और काजू अपने आहार में शामिल कर सकती हैं. इन में कई तरह के विटामिन, कैलोरी, फाइबर और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड होता है जिस की जरूरत मां और गर्भस्थ शिशु दोनों को होती है.

आप जो भी खाती हैं उस में एकतिहाई से थोड़ा ज्यादा हिस्सा कार्बोहाइड्रेट्स का होना चाहिए. सफेद के बजाय संपूर्ण अनाज वाली वैरायटी चुनें ताकि आप को पर्याप्त फाइबर मिल सके. प्रतिदिन दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करें जैसे दूध, दही, चीज, छाछ व पनीर लें. अगर आप को दूध नहीं पचता है तो कैल्सियम युक्त अन्य विकल्प जैसे छोले, राजमा, ओट्स, बादाम, सोया दूध, सोया पनीर आदि का चयन कर सकती हैं.

3- ध्यान रखें

सप्ताह में 2 दिन मछली लें. मछली में प्रोटीन, विटामिन डी, खनिज, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड आदि होते हैं जो आप के शिशु के तंत्रिकातंत्र के विकास के लिए जरूरी होते हैं. यदि आप को मछली पसंद नहीं है या आप शाकाहारी हैं तो ओमेगा-3 फैटी ऐसिड अन्य खाद्यपदार्थों से पा सकती हैं जैसे मेवे, बीज, सोया उत्पाद और हरी पत्तेदार सब्जियों से.

आप को गर्भावस्था में 2 लोगों के लिए खाने की जरूरत नहीं है. भारत में अधिकांश डाक्टर दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 अतिरिक्त कैलोरी के सेवन की सलाह देते हैं. फिर भी यह ध्यान रखें कि गर्भ में नन्हा शिशु पल रहा है और उस के लिए आप को खाना है न कि किसी बड़े व्यक्ति के लिए. प्रैगनैंसी के दौरान बहुत अधिक चाय, कौफी पीने से बचें. कौफी में मौजूद कैफीन सेहत को नुकसान पहुंचा सकती है. बेहतर है कि आप नीबू वाली चाय, हर्बल टी या कैफीन रहित ड्रिंक्स का सेवन करें.

बीचबीच में हैल्दी स्नैक्स का सेवन करें. इस के लिए आप रोस्टेड बादाम, काजू, मखाने, चने आदि खाएं. प्रैगनैंसी के दौरान कुछ चीजों के सेवन से बचना चाहिए जैसे कच्चा या अधपका मांस, कच्चा अंडा, पपीता आदि. आप उबला अंडा खा सकती हैं पर ध्यान रखें कि पीले वाला भाग अच्छी तरह से पक गया हो.

4- आयरन

शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन की जरूरत होती है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है जो शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. डाक्टर द्वारा बताए गए सप्लिमैंट्स के अलावा पर्याप्त मात्रा में आयरन से भरपूर भोजन खाएं ताकि आप का आयरन का स्तर ऊंचा रहे. अपने भोजन में आयरन से भरपूर फूड्स जैसे अनार, चुकंदर आदि को शामिल करें. फौलिक ऐसिड का सेवन भी प्रैगनैंसी के दिनों में बहुत जरूरी होता है.

सीडीसी (सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन) के अनुसार गर्भावस्था की योजना बना रही महिलाओं को कम से कम 1 महीना पहले और गर्भावस्था के दौरान प्रतिदिन 400 मिलीग्राम फौलिक ऐसिड का सेवन करना चाहिए. फौलिक ऐसिड विटामिन बी का एक रूप है जो शिशु की मस्तिष्क व रीढ़ से जुड़े जन्मदोष से बचाव कर सकता है. इसे आप हरी पत्तेदार सब्जियों, दालों, फोर्टिफाइड अनाज के सेवन से पा सकती हैं. प्रैगनैंसी के पहले 3 महीनों में आप को फौलिक ऐसिड सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत होगी क्योंकि यह भू्रण को हैल्दी रखने में मदद कर सकता है.

5- खुद को हाइड्रेटेड रखें

खुद को हाइड्रेटेड रखने की कोशिश करें. अपने साथ हमेशा एक बोतल पानी रखें और बीचबीच में पानी पीती रहें. साथ ही नारियल पानी, स्मूदी, फलों से तैयार जूस और शेक्स भी पी सकती हैं ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. डाइट में उन फलों को शामिल करें जिन में पानी की मात्रा अधिक होती है. खीरा, खरबूज, लौकी, तरबूज आदि खाएं. दिनभर में कम से कम 3 से 4 लिटर पानी और 1 से 2 गिलास जूस पीएं. ऐसा करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ शरीर से  बाहर निकल जाते हैं. पानी आप के यूरिनरी ट्रैक के संक्रमण को रोकने में मदद करता है जिस का खतरा गर्भवती महिलाओं में अधिक होता है. शरीर में पर्याप्त पानी होने से गर्भावस्था के दौरान निर्जलीकरण और सूजन से भी बचाव होता है.

6- शारीरिक रूप से ऐक्टिव रहें

प्रतिदिन रात डिनर करने के बाद 15 से 30 मिनट टहलें. इस से शरीर में ब्लडसर्कुलेशन सही बना रहेगा. इस से डिलिवरी के समय अधिक समस्या नहीं होगी. सप्ताह में कम से कम 5 दिन 30 मिनट के लिए ब्रिक्स वाक करें. इस से शरीर को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान होने वाले सभी परिवर्तनों से निबटने में मदद मिल सकती है. आप फिजिकली और इमोशनली फिट महसूस करेंगी. ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज से भी फायदा होगा. लेकिन भारी वजन उठाने वाली और कठिन व्यायाम करने से बचें. रोजाना अपनी क्षमतानुसार कुछ हलके ऐक्सरसाइज करें. नियमित रूप से हलके व्यायाम करने के बहुत फायदे हैं. आप के जरीए शिशु को भी इन का लाभ मिलेगा.

7- तनाव से दूरी

किसी बात को ले कर चिंतित या तनाव में न रहें. इस से मानसिक और शारीरिक सेहत को नुकसान पहुंच सकता है. स्ट्रैस के कारण कंसीव करने में भी दिक्कत आ सकती है. यहां तक कि प्रीमैच्योर लेबर भी हो सकता है. यही वजह है कि प्रैगनैंट महिलाओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है.

8- आराम

शरीर को पर्याप्त आराम दें. गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में महिलाएं थकान महसूस करती हैं. ऐसा उन के शरीर में स्रावित हो रहे गर्भावस्था हारमोन के उच्च स्तर की वजह से होता है. बाद में यह थकान रात में बारबार पेशाब के लिए उठने या फिर बढ़े पेट की वजह से आराम से न सो पाने का कारण बन सकती है.

करवट ले कर सोने की आदत डालें. तीसरी तिमाही में करवट ले कर सोने से शिशु तक रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है. करवट ले कर सोने से मृत शिशु के जन्म का खतरा पीठ के बल सोने की तुलना में कम होता है.

जब तक शिशु सुरक्षित तरीके से जन्म नहीं ले लेता तब तक अपने डाक्टर के संपर्क में बनी रहें. जब भी आप को शरीर में किसी तरह की परेशानी या बेचैनी अथवा कोई और समस्या नजर आए तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें. डाक्टर आप के घर के करीब का हो तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि जरूरत पड़ने पर आप तुरंत उन के पास पहुंच जाएंगी.

घर पर ऐसे बनाएं सरसो पालक कटलेट, बेसन बाटी और चावल की बड़ी

बच्चों के लिए घर पर कुछ टेस्टी और हेल्दी बनाना मुश्किल का काम है. लेकिन आज हम आपको सरसों पालक कटलेट की रेसिपी बताएंगे, जिसे आसानी से बनाकर आप अपने फैमिली को खिलाकर तारीफें पा सकती हैं.

1- सरसों पालक के कटलेट

सामग्री

–  2 कप पालक कटा

–  2 कप सरसों कटी

–  1 छोटा टुकड़ा अदरक

–  1 हरीमिर्च कटी

–  2 ब्रैडस्लाइस

–  1/2 कप पनीर

–  2 बड़े चम्मच मक्खन

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पालक और सरसों को स्टीम कर लें. फिर इसे अदरक और हरीमिर्च के साथ मिक्सी में पीस लें. ब्रैडस्लाइस का मिक्सी में चूरा कर लें. फिर ब्रैड चूरा, पनीर, पालक व सरसों का पेस्ट और नमक मिला लें. टिकियां बना कर गरम तवे पर मक्खन के साथ दोनों तरफ से सेंक कर सौस के साथ गरमगरम परोसें.

2- बेसन की बाटी

सामग्री

– 11/2 कप बेसन

– 1/2 कप मक्के का आटा

–  2 बड़े चम्मच घी

–  1/2 कप पनीर

–  1 हरीमिर्च कटी

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  तलने के लिए तेल

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

मक्के के आटे को छान कर बेसन, घी और नमक मिला कर गूंध लें. उबलते पानी में आटे की लोइयां बना कर 8-10 मिनट पकाएं. पानी से निकाल कर अच्छी तरह मसल कर छोटीछोटी बौल्स बनाएं. पनीर को मसल कर उस में धनियापत्ती, हरीमिर्च और नमक मिलाएं. आटे की छोटीछोटी बौल्स के बीच पनीर का मिश्रण भर कर अच्छी तरह बंद कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें, सरसों के साग के साथ सर्व करें.

3- चावल की बड़ी

सामग्री

– 1 कप चावल

–  1 हरीमिर्च

–  1/2 कप फूलगोभी कसी

–  1/2 चम्मच अदरक कसा

–  2 बड़े टमाटर

– 1/4 चम्मच हलदी

–  1/4 चम्मच जीरा

– 1 चम्मच धनिया पाउडर

– 1/4 चम्मच गरममसाला

– 1/4 चम्मच लालमिर्च पाउडर

– चुटकीभर हींग

– 1 बड़ा चम्मच घी

– तलने के लिए तेल

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

चावलों को पानी में 1/2 घंटा भिगो कर महीन पीस लें. फिर इस में अदरक, फूलगोभी, हरीमिर्च और नमक मिला कर अच्छी तरह फेंट लें. कड़ाही में तेल गरम कर मिश्रण की छोटीछोटी बडि़यां बना कर तल लें. एक कड़ाही में घी गरम कर जीरा, हलदी, धनिया पाउडर, लालमिर्च पाउडर और हींग डालें. इस में टमाटरों को मिक्सी में पीस कर डाल अच्छी तरह भून लें. 1 कप पानी और बडि़यां डाल कर 8-10 मिनट हलकी आंच पर पकने दें. फिर धनियापत्ती डाल कर परांठों के साथ परोसें.

टीनएज में जिम जाने के फायदे

जब से लौकडाउन हुआ, 12 वर्षीया निया घर के अंदर कभी लैपटौप तो कभी मोबाइल के साथ व्यस्त रही. वह कभी चिपस के पैकेट खाली करती रहती तो कभी किचेन में जा कर मैगी, पास्ता बना कर ले आती, ‘मौम, प्लीज टेस्ट.’ वर्तिका भी थोड़ाबहुत खा लेती और बेटी की तारीफ भी कर देती. उन्होंने यह ध्यान ही नहीं दिया कि निया का वेट कितना बढ़ता जा रहा है.

सालडेढ़साल तक तो निया फूल कर डब्बा बन चुकी थी. अब उन्होंने निया के खानेपीने पर रोकटोक लगानी शुरू की तो वह उन से उल?ा पड़ती क्योंकि बढ़ती उम्र और दिनभर खाते रहने की उसे आदत पड़ चुकी थी. मां वर्तिका परेशान रहतीं लेकिन उन के मन में यह धारणा थी कि इस उम्र में जिम जाने से निया की ग्रोथ प्रभावित होगी और उस की लंबाई नहीं बढ़ पाएगी.

वर्तिका बेटी के बढ़ते मोटापे को देख कर चिंतित रहती थीं. एक दिन उन की सहेली शैलजा आई जो स्वयं इस समस्या से दोचार हो चुकी थी. उस ने बेटी को आउटडोर गेम्स के साथ डाइट कंट्रोल की सलाह दी. लेकिन इन सब के बाद भी कुछ फायदा नहीं दिखा तो उन के पति ने बेटी को जिम जौइन करवाया.

वहां पर ट्रेनर ने बताया कि 12-13 साल की उम्र में हड्डियां और अंग मजबूत हो जाते हैं. इस समय घर में ऐक्सरसाइज और बाहर साइक्ंिलग, स्विमिंग या गेम्स खेल कर शरीर की हड्डियों को मजबूती मिलती है परंतु यदि यह सुविधा नहीं प्राप्त है तो जिम में ट्रेनर की देखरेख में हलकी ऐक्सरसाइज करनी चाहिए. 14-15 वर्ष की उम्र में शरीर का लचीलापन समाप्त हो जाता है और इसी उम्र में जिम जाना शुरू कर देना चाहिए.

अपनी लुक और फिटनैस को ले कर हर यंगस्टर क्रेजी है लेकिन टीनएजर में आजकल यह क्रेज ज्यादा देखा जा रहा है. जहां लड़कियां जीरो फिगर और स्लिम लुक के लिए जिम जाना चाहती हैं वहीं लड़के सिक्सपैक एब्स, मसल्स और बौडी को ले कर परेशान रहते हैं. कई पेरैंट्स अपने बच्चों को छोटी उम्र में ही जिम भेजने लगते हैं. इस से उन्हें नुकसान पहुंच सकता है. जिम जाने की सही उम्र क्या है, इस की जानकारी होनी जरूरी है, तभी हम जिम का सही लाभ उठा सकते हैं.

हमारे शरीर का विकास जन्म से ही होना शुरू हो जाता है. 2-4 महीने का बच्चा भी हाथपांव मारने लगता है, यहीं से उस की कसरत शुरू हो जाती है. जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता है, उस के चलने, दौड़ने और खेलनेकूदने से उस की हड्डियों में मजबूती आने लगती है. 5 से 8 साल के बच्चों को घरेलू खेल खेलने के लिए खेल के मैदान में भेजना चाहिए, जिस से उन के शरीर का विकास अपनेआप होने लगेगा.

आजकल बदलती लाइफस्टाइल और खानपान की आदतों के कारण बच्चा शुरुआत से ही सेहत से जुड़ी कई समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है, जिन में मोटापा बड़ी समस्या है. बच्चे लगातार टीवी या लैपटौप के सामने बैठे रहते हैं, उन का खेलनेकूदने पर ध्यान ही नहीं जाता. इस कारण से उन्हें अनेक बीमारियां घेरने लगती हैं. आजकल बच्चों के लिए जिम और ऐक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है.

जरूरत के मुताबिक बच्चे को करवाएं जिम : ज्यादा वर्कआउट बच्चे के शारीरिक विकास को रोक भी सकता है,  इसलिए बच्चे के शरीर की जरूरत के अनुसार ही उसे जिम भेजें.

कुछ मांबाप बच्चों को वजन कम करने के लिए लंबाई बढ़ाने या बौडी बनाने के लिए जिम भेजते हैं. इन सब चीजों के लिए अलगअलग वर्कआउट प्रक्रिया है, इसलिए ट्रेनर की देखरेख में ही करवाएं.

प्रौपर डाइट दें :

बच्चे को यदि जिम भेज रहे हैं तो उस की डाइट का ध्यान भी रखें. अगर बच्चा बराबर पसीना बहा रहा है और उसे प्रौपर डाइट नहीं मिलेगी तो वह कमजोर हो जाएगा.

जिम जाने की सही उम्र क्या है, इस विषय में लोगों के मन में अनेक संशय के साथ पुरानी धारणाएं हैं. जिम एक्सपर्ट शिशिर कुमार का कहना है कि आप किसी अच्छे जिम और एक्सपर्ट की देखरेख में 9 वर्ष की उम्र में जिम शुरू कर सकते हैं, परंतु यह विशेष रूप से ध्यान रखना होगा कि आप को ट्रेनर की बताई गई ऐक्सरसाइज ही करनी है. शुरूशुरू में आप को लाइटवेट ऐक्सरसाइज ही करनी है. 13 साल की उम्र तक आप को नौर्मल या लाइटवेट ऐक्सरसाइज ही करनी है. आप को रौड, डंबल या मशीन के साथ ऐक्सरसाइज नहीं करनी है.

13 साल की उम्र के बाद आप को सभी ऐक्सरसाइज के बारे में पता चल जाता है. आप को इस बारे में मालूम हो जाता है कि कौन सी ऐक्सरसाइज किस बौडी पार्ट के लिए है. किस ऐक्सरसाइज से नुकसान और किस से शरीर की ग्रोथ होती है. लेकिन ध्यान रखें कि आप को एनर्जी सप्लीमैंट नहीं लेना है.

कम उम्र में जिम जाने से हाइट बढ़ना नहीं रुकती है बल्कि आप के शरीर की ग्रोथ अच्छी होती है. ग्रोथ रुकने का कारण आप का सही डाइट न लेना होता है. जिम जाने के साथसाथ भोजन का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है.

यदि जिम में आप गलत तरीके से ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप की हाइट रुक सकती है. इसलिए सही ट्रेनर जरूरी होता है.

जिन लोगों को ऐसा लगता है कि उन को हाइट की प्रौब्लम हो सकती है उन्हें अपनी ऐक्सरसाइज की अपेक्षा डाइट पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि देखा जाता है कि लोग सोचते हैं कि एक घंटा जिम करने से बौडी ग्रो कर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं है. हमें हमारी बौडी को ज्यादा से ज्यादा सही पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है क्योंकि जब हम ऐक्सरसाइज करते हैं तो हमारी बौडी के मसल फाइबर टूटते हैं और उन को रिपेयर करने के लिए पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है.

जिम जाने के फायदे

–     मसल्स मजबूत होती हैं.

–    शरीर का स्टैमिना बढ़ता है.

–     पेट की चरबी कम होती है.

–    पर्सनैलिटी में सुधार होता है.

–     इम्यूनिटी पावर बढ़ता है.

–    पाचनतंत्र मजबूत होता है.

–    मेटाबौलिज्म सही रहता है.

–    चेहरे पर नैचुरल ग्लो आता है.

 

जानें एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी के फिटनेस मंत्र

हिंदी, तमिल, तेलगू, कन्नड़ फिल्मों में काम करने के अलावा ऑल्ट बालाजी की सबसे बोल्ड वेब सीरीज ‘गंदी बात’ के 5वें सीजन से धमाल मचाने वाली ग्लैमरस एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. अक्सर अपनी बोल्ड और सेक्सी फोटोज शेयर करती रहती है. हाल ही में उन्होंने वीमेंस डे के मौके पर महिलाओं को फिट रहने के अपने पर्सनल सीक्रेट्स शेयर किए है. उनके फिट रहने का राज क्या है बताते है उन्ही की जुबानी.

एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी का फिटनेस मंत्र-

1.वीमेंस डे आने वाला है इस मौके पर महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है?

मैं ये ही कहना चाहती हूं महिलाएं बहुत ही स्ट्रांग है , सुपर वीमेंस है. अपने आप को किसी के कहने पर कभी कम मत समझना, सारे आदमियों की जितनी भी पोस्ट है उन पर कब्जा करना, सबको दिखा देना आप कितना अच्छा कर सकती हो. यंग लड़कियों के लिए इंस्प्रेशन बनना. महिलाओं के लिए वर्क लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ दोंनो को बैलेंस करना आसान नही है बिग सेल्यूट आल द वीमेंस.

2.आपकी नजर में महिलाओं के लिए हेल्थ अवेरनेस होना कितना जरूरी है?

मेरे नजरिए में महिलाओं, पुरुषों और बच्चों , सभी के लिए हेल्थ अवेरनेस होना जरूरी है. पहले  हमारे समय में प्ले ग्राउंड होते थे उस समय बच्चे खेलते थे. पर अब सब चेंज हो चुका है. आजकल के बच्चे अपना  समय मोबाइल या फिर गेम पर ज्यादा बिताते  है. इसलिए  बहुत जरूरी है कि बच्चों को अधिक से अधिक एक्टिवेटी में शामिल करें. महिलाएं अगर अपने लिए टाइम नहीं निकाल पा रहीं हैं तो वह घर के काम करके भी अपने को फिट रख सकती हैं. अपने घर को साफ करके जो वर्क आउट होता है उससे बढ़िया कुछ हो ही नहीं सकता.

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3.महिलाओं को ऐसी कौन सी 5 चीजें स्ट्रांग बनाती है?

मुझे 5 चीजे तो नही पता बट महिलाएं, आदमियों के मुकाबले ज्यादा स्ट्रांग है. मेरी मम्मी कहती है आदमियों को जब स्ट्रेस होता है तो उन्हें कुछ न कुछ सहारे की जरूरत होती है वो स्ट्रेस में सिगरेट और शराब का सहारा लेते है लेकिन महिलाओं को इन सब चीजों की जरूरत नहीं होती है. हमारी नानी, दादी, मां और बहनों ने कम पैसों में भी घर चलाया है. बहुत सारे बच्चों को एक साथ एजुकेट किया है. महिलाएं बनी ही स्ट्रांग है. जो अपने अंदर से एक बच्चे को निकाल सकती है वो कुछ भी कर सकती है. उसकी लाइफ में कुछ भी हो जाए वो दोबारा उसे फिर से शुरू कर सकती है. महिलाओं की स्ट्रेंथ ही उसकी खूबसूरती है.

4- लॉक डाउन बहुत लंबा सफर रहा जिसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत पड़ा है आप इससे बाहर कैसे निकली?

लॉक डाउन लंबा सफर जरूर था थैंकफुली मैं अपना ऐप चला रही थी तो मैं मेंटली काफी बिजी थी. मैंने बहुत सारे लोगों को एडवाइज जरूर दी जिन्हें डिप्रेशन हुआ, अकेलापन महसूस हुआ. आजकल की लाइफ डिजिटल ज्यादा हो गई है लोग आपस में कम मिलते है डिजिटली फोन पर सोशल मीडिया के जरिए ज्यादा टच में रहते है तो लॉक डाउन एक क्रेच कोर्स था. हमें ये रिलाइज करने के लिए की ह्यूमेन इमोशन को मत भूले एक दूसरे से मिलना, गले लगाना सिंपल सी चीज है इसमें कितनी हीलिंग है.

मेरी 3 चीजे जो लॉक डाउन से रिलेटेड है जिससे आपको जिंदगी में किसी भी चीज से मेंटल स्ट्रेस नही होगा. एक तो मीठा खाएं, मीठा खा कर अपना गम भूल जाएं, जो मीठा खाता है तो हैप्पी हार्मोन्स आते है. दूसरा अच्छा गाना लगाएं तो आटोमेटेकली आपको लगेगा कि अच्छे गाने पर डांस करू और जो आदमी डांस करेगा तो वह बिना स्माइल किये रहेगा नही,  उसे डिप्रेशन होएगा नही और तीसरा अच्छे दोस्तों से बात करना यानी खुशमिजाज दोस्त जो पॉजिटिव वाइवज वाले हो, आज के समय मैं हंसी, ख़ुशी और मुस्कुराहट ही सबसे बड़ा खजाना है जिससे आपके दिमाग में निगेटिव ख्याल ही नही आते है.

5.बॉडी को फिट रखने के लिए दिन की शुरुआत किस तरह करतीं है?

मेरे दिन की शुरुआत बुलेट कॉफी से होती है. आप भी सोच रहें होंगे कि आख़िर  बुलेट कॉफी है क्या? तो मैं आपको बता दूं कि ये नॉर्मल ब्लैक कॉफी का

थोड़ा हाईटेक वर्जन है, जिसमें घी और कोकोनेट  ऑयल डाला जाता है . ये पीने में बहुत टेस्टी होता है. मैं इसे अपने तरीके से टेस्टी बनाती हूं. इसको पीने के बाद काफी देर तक भूख नहीं लगती क्योंकि ये हैवी होती है.पर  मैं जब शूट पर होती हूं तो एक कड़क मसाला चाय पीती हूं.

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6.योग या एक्सरसाइज में क्या करना पसंद करती है?

ये मेरे मूड पर डिपेंड करता है उस समय स्ट्रेसफुल डे है कैसा दिन है. मुझे डांस करना पसंद है. अगर मैं  शूट पर होती हूं तो शॉट के बीच में डायलॉग याद करते हुए चलती रहती हूं इससे मेरी वॉक होती रहती है.

7- फिट रहने के लिए रुटीन फालो करने के क्या नियम है?

फिट रहने के लिए रूटीन को फॉलो करना बहुत जरूरी होता है पर लोग ऐसा नहीं कर पाते. अकसर देखने को  मिलता है कि न्यू ईयर पर लोग फिट रहने का रेसलूशन लेते हैं पर थोड़े दिन बाद ब्रेक हो जाता है. ऐसा ना हो इसके लिये बहुत जरूरी है कि रूटीन को ब्रेक ना होने दें.

8.आप वेजिटेरियन है या नॉन वेजिटेरियन डाइट में क्या लेती है. डाइट प्लान क्या है?

वैसे तो मैं नॉन वेजिटेरियन हूं मगर मुझे वेजिटेरियन खाना बहुत पसंद है. अगर मुझे ऑप्शन दिया जाए तो मैं वेजिटेरियन खाना ही पसंद करती हूं. मुझे लगता है कि यह बहुत कंपलीट खाना है. वैसे अभी तो मैं स्ट्रिक्ट डाइट पर हूं तो चिकन और सैलिड बहुत जरूरी है मेरी डाइट में. वेजिटेरियन में अगर  मुझे ऑप्शन दिया जाए तो मैं इडली की बहुत बड़ी फैन हूं.

बच्चे को बचाएं Allergy से

बच्चों में विभिन्न प्रकार की ऐलर्जी होने की प्रवृत्ति होती है और ऐलर्जी उत्पन्न करने वाले कारण कई होते हैं. जैसे- धूल के कण, पालतू जानवर की रूसी और कुछ भोज्य पदार्थ. कुछ बच्चों को कौस्मैटिक्स मिलाए जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों, कपड़े धोने वाले साबुन, घर में इस्तेमाल होने वाले क्लीनर्स से भी ऐलर्जी हो जाती है. ऐलर्जी अकसर जींस के कारण भी पनपती है. लेकिन आप अगर इस के उपचार का पहले से पता लगा लें तो इस की रोकथाम कर सकती हैं.

ऐलर्जी के लक्षण

लगातार छींकें आना, नाक बहना, नाक में खुजली होना, नाक का बंद होना, कफ वाली खांसी, सांस लेने में परेशानी और आंखों में होने वाली कंजंक्टिवाइटिस. अगर बच्चे की सांस फूलती है या सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगे तो वह श्वास रोग का शिकार हो सकता है.

ऐलर्जी का इलाज

यदि बच्चे में 1 हफ्ते से अधिक समय तक ये लक्षण नजर आएं अथवा साल में किसी एक खास समय में लक्षण दिखाई दें तो डाक्टर की सलाह लें. डाक्टर आप से इन लक्षणों के बारे में कुछ प्रश्न पूछेगा और उन के जवाब पर बच्चे के शारीरिक परीक्षण के आधार पर उसे दवाएं देगा. अगर जरूरत पड़े तो ऐलर्जी के विशेषज्ञ डाक्टर से परामर्श व दवा लेने के लिए कहेगा या रेफर करेगा.

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ऐलर्जी की तकलीफ का वास्तव में कोई इलाज नहीं है. लेकिन इस के लक्षण को कम कर के आराम मिल सकता है. मातापिता को अपने बच्चों को ऐलर्जी से मुकाबला करने के लिए शिक्षित करना होगा और उन के शिक्षकों, परिवार के सदस्यों, भाईबहन, दोस्तों आदि को इन के लक्षणों से अवगत करा कर निबटने की अनिवार्य जानकारी देनी होगी.

ऐलर्जी से बचाव

अपने बच्चों के कमरे से पालतू जानवर को दूर रखें और ऐसे कौस्मैटिक्स वगैरह को भी दूर रखें, जिन से ऐलर्जी की संभावना हो. कालीन को हटाएं जिस से मिट्टी न जमा हो. ज्यादा भारी परदे न टांगें जिन में धूल जमा हो. तकिया के सिरों को ठीक से सिल कर रखें. जब पराग का मौसम हो तो अपने कमरे की खिड़कियां बंद रखें. बाथरूम को साफ और सूखा रखें और उन्हें ऐसे खाद्यपदार्थ न दें जिन से उन्हें ऐलर्जी होती हो.

-डा. अरविंद कुमार

 एचओडी, पीडिएट्रिक्स विभाग, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग 

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सुंदरता और स्वास्थ्य चाहिए तो दालचीनी का इस्तेमाल है फायदेमंद

देश की ज्यादातर रसोइयों में दालचीनी मसाले के तौर पर इस्तेमाल होता है. पर क्या आप इसके सेहत पर होने वाले फायदों के बारे में जानती हैं? आपको बता दें कि दालचीनी एक पेड़ की छाल होती है, जिसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने में होता है. इसमें एंटी इंफ्लेमेंट्री, संक्रामक विरोधी जैसे कई गुण पाए जाते हैं. इसके अलावा इसमें एंटी-औक्सीडेंट, मैंगनीज, फाइबर जैसी जरूरी तत्व भी होते हैं. कई तरह की बामारियों में शरीर को स्वस्थ रखने में ये बेहद कारगर है. इस खबर में हम आपको दालचीनी से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बताएंगे.

1. सर्दी जुकाम में है असरदार 

सर्दी जुकाम में भी ये काफी असरदार . दालचीनी के पाउडर को पानी में उबाल लें. अर्क को छान कर रख लें. फिर इस पानी में शहद मिला कर पिएं. जल्दी आपको आराम मिलेगा.

2. वजन कम करने के लिए है फायदेमंद

वजन कम करने के लिए दालचीनी को पानी में उबाल कर पानी को छान लें. उसमें नींबू का रस मिला कर पिएं. कुछ ही दिनों में आपको अंतर दिखेगा. गैस या पेट दर्द संबंधी समस्याओं में दालचीनी को शहद में मिला कर खाने से काफी राहत मिलती है.

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3. जोड़ों के दर्द में करें इस्तेमाल

जोड़ों के दर्द में दालचीनी एक बेहतर विकल्प है. पहले दालचीनी को पीस कर पाउडर बना लें. एक कप गर्म पानी में इस पाउडर और शहद को मिला कर पीने से दर्द में काफी आराम मिलता है.

4. हेयरफौल की परेशानी में करें इस्तेमाल

हेयरफौल की परेशानी में ये काफी फायदेमंद होता है. जैतून के तेल में शहद और दालचीनी का पेस्ट बना कर रख लें. नहाने से पहले 30 मिनट तक इसे लगा कर रखें, फिर बाल धो लें. बालों के झड़ने की समस्या में ये काफी फायदा पहुंचाएगा.

5. सुंदरता बरकरार रखने है फायदेमंद

सुंदरता बरकरार रखने में भी ये बेहद कारगर है. मुहांसों की परेशानी में दालचीनी को नींबू के रस में मिलाकर लगाने से काफी फायदा मिलता है.

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Bollywood Dietitian से जानें जुकाम, खांसी और फ्लू को दूर भगाने के 7 घरेलू उपाय

कोरोना वायरस महामारी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में फैल चुकी हैं. दिन-प्रति दिन इस महामारी से जूझने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में इस वायरस से बचने के लिए इम्युनिटी को स्ट्रांग रखना व इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए हैलदी डाइट बहुत  ज़रूरी है, जो इस हालात में खांसी, जुकाम और फ्लू से हमें बचा सके.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए अभी हाल ही में सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने सर्दी-खांसी और फ्लू से बचने के कुछ घरेलू उपाय बताए हैं.

न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने पोस्ट में लिखा है कि हमारे किचन व दादी मां के टाइम-टेस्ट्ड ज्ञान को फिर से रोशनी में आने के लिए किसी महामारी की जरूरत नहीं है.  इन चीजों को एक्सप्लोर करें, खुद भी खाएं और आने वाले जेनरेशन को भी इन चीजों को खाने के लिए प्रोत्साहित करें,  ठीक उसी तरह जैसे बचपन में आपकी दादी-नानी आपको प्यार से खिलाया करती थीं.

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आइए जानते हैं रुजुता दिवेकर के क्या हैं 7 उपाय, जिसको  आप अपनी डाइट में शामिल कर सकती है-

1. घी, सूखी अदरक या  सोंठ, हल्दी, गुड़ को एक समान मात्रा में मिलाकर सुबह और रात में खाएं.

2. ब्रेक फ़ास्ट में रागी की खिचड़ी और डोसा का सेवन करें.

3. मीड मॉर्निंग में काजू और गुड़ का सेवन करें.

4. लंच में मूंग दाल के साथ हर रोज चावल और घी को अपनी डाइट में शामिल करें.

5. इवनिंग स्नैक में गुड़, पोहा और दूध या फिर, टोस्ट के साथ अंडा अथवा घर में जमाई हुई दही के साथ पोहा खाएं.

6.  डिनर में दाल खिचड़ी, या फिर चावल के साथ फिश और घी खाएं.

7. इसके अलावा, नींबू, लेमन ग्रास और शहद से बनी चाय पिएं. आप चाहें तो केसर, अदरक और बादाम युक्त कश्मीरी कहवा का सेवन दिन में किसी भी समय कर सकते हैं.

बॉलीवुड में सलेब्स की फिटनेस को फिट करने के लिए रुजुता दिवेकर एक जाना – पहचाना नाम है जो  करीना, करिश्मा, अर्जुन कपूर, अनिल कपूर, सोनम कपूर, आलिया और तमाम फ़िल्मी हस्तियों की डाइटीशियन गाइड  हैं.  लेकिन  रुजुता को असली पहचान बेबो यानी करीना कपूर को जीरो साइज़ फिगर के बाद मिली. करीना के जीरो फिगर का श्रेय रुजुता दिवेकर को भी जाता है. रुजुता मानती हैं कि यदि उनकी ज़िंदगी में करीना कपूर न होतीं तो वे आज इतना बड़ा नाम न होतीं.

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