रिश्ते दिल से निभाएं या दिमाग से

बरखा जब शादी के बाद अपने ससुराल आई तो बेहद खुश थी. उसे अपनी ननद श्रेया के रूप में एक बेहद अच्छी सहेली जो मिल गई थी. बरखा के  इस नए घर में बस श्रेया ही एक ऐसी थी जो उस की हर बात को सुनती थी और अपने घर वालों की निजी बातें भी बरखा को बताती थी.

जब श्रेया ने बरखा को एक विवाहित पुरुष से अपने संबंधों के बारे में बताया तो बरखा ने उसे रोकना चाहा, परंतु श्रेया ने कहा, ‘‘भाभी प्यार तो प्यार है, आप के भी तो शादी से पहले कितने अफेयर थे क्या मैं ने कभी किसी के साथ यह बात शेयर की?’’

बरखा चुप लगा गई. बाद में जब बरखा के परिवार को यह पता चला कि श्रेया के अफेयर के बारे में बरखा पहले से जानती थी तो उसे खूब खरीखोटी सुनाई गई.

अनु की मम्मी सिंगल मदर हैं. वे घरबाहर सब संभालती हैं और अनु की हर जरूरत को पूरा करती हैं, परंतु अनु जैसे ही अपने हिसाब से कुछ करने की कोशिश करती है तो उस की मम्मी का लैक्चर शुरू हो जाता है, ‘‘मैं अकेली कमाने वाली हूं, पूरी जिंदगी तेरे कारण स्वाहा कर दी है, परंतु तू फिर भी मनमानी करने लगी है.’’

अनु के शब्दों में ऐसा लगता है कि मम्मी ने उसे पाल कर कोई एहसान किया है?

‘‘मुझे खुश होने या अपने हिसाब से काम करने का कोई हक नही है,’’ अनु अपनी मम्मी की जोड़तोड़ वाली आदत से परेशान हो चुकी है.

प्रिया के पति पंचाल जब मरजी होती है प्रिया को इग्नोर करने लगते हैं और जब इच्छा होती है प्रिया से लाड़ लड़ाने लगते हैं. प्रिया के कुछ कहने पर पंचाल का एक ही राग होता है कि प्रिया ये मेरा वर्कप्रैशर इस के लिए जिम्मेदार है.’’

पंचाल इतना अधिक विक्टिमप्ले करती है कि बहुत बार प्रिया खुद ही गिल्टी महसूस करने लगती है.

उधर राधा का हाल ही अलग है. वह हर घटना, हर चीज को अपने हिसाब से मैनीपुलेट करती हैं. अगर राधा का मन करता है तो वह रातदिन काम करती हैं और बेटेबहू के कहने पर बोलती हैं कि अरे काम करते रहने से मेरे हाथपैर चलते रहेंगे और अगर मन नहीं करता तो बेटेबहू को ताने देने लगतीं कि इस उम्र में भी उन्हें खटना पड़ रहा है.

अगर गहराई से सोचा जाए तो ऐसे लोग हमारे घरपरिवार में बड़ी आसानी से मिल जाएंगे. ऐसे लोग हर रिश्ते को जोड़तोड़ के साथ निभाने में यकीन करते हैं. उन्हें सामने वाले के दुखदर्द से कोई मतलब नहीं होता है. उन्हें मतलब होता है बस अपनेआप से. ऐसे लोग रिश्तों में इस तरह सेंध लगाते हैं कि धीरेधीरे वे खोखले हो जाते हैं.

‘‘मैं ही सबकुछ करता या करती हूं.’’

‘‘मेरे पास पैसे कम हैं न तभी तुम मुझ से कतराते हो.’’

‘‘लोग मेरे लिए नहीं, मेरे काम के लिए

रोते हैं.’’

‘‘तुम्हें तो मैं अपना सबकुछ मानती हूं.’’

इस तरह के कितने ही जैसे कितने ही जुमले हैं जो आप ने पहले भी सुने होंगे. इन्हें किस तरह से जोड़तोड़ कर के अपने फायदे के लिए यूज करे यह लोग अच्छी तरह से जानते हैं.

आप को ही बोलने का मौका देना:

अगर आप के इर्दगिर्द ऐसा कोई करीबी है तो सावधान हो जाएं. मैनीपुलेटर ज्यादा से ज्यादा आप को ही बोलना का मौका देते हैं क्योंकि जितना आप बोलेंगे उतने ही अपने दिल के राज खोलेंगे. वे आप की हर बात को बहुत ध्यान से सुनेंगे, आप को इतना खास महसूस करवाएंगे कि आप उन्हें अपना हितैषी समझ कर अपनी जिंदगी की कुछ ऐसी बातें भी उन से शेयर कर लेते हैं जो बाद में ही भारी पड़ सकती हैं.

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आप के बेहद करीब होना:

ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग आप के बेहद करीब होने के लिए कुछ अपनी बेहद निजी बातें भी शेयर कर सकते हैं. वे आप को भरसक यह विश्वास दिलाने का प्रयास करेंगे कि वे आप के ऊपर कितना भरोसा करते हैं. अगर आप उन से दूरी बना कर रखना भी चाहेंगे तो भी वे ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे आप उन के साथ बहुत अन्याय कर रहे हैं. आप के अलावा उन के लिए कोई भी व्यक्ति अधिक महत्त्वपूर्ण नही है.

विक्टिम कार्ड खेलना:

मैनीपुलेटिव लोग पहले कुछ गलत करते हैं और अगर आप उन से इस बारे में सवालजवाब करते हैं तो वे लोग ऐसा बीहेव करते हैं जैसे गलत उन्होंने नहीं आप ने उन के साथ किया हो. उन से तो जो भी हुआ अनजाने में हुआ पर आप बारबार सवालजवाब कर के उन्हें परेशान करना चाहते हैं या नीचा दिखाना चाहते हैं. अंतत: ऐसे लगने लगता है कि आप ही गलत हैं और आप ही उन की माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगते हैं.

पैसिवअग्रैशन:

मैनीपुलेटिव व्यक्तियों की एक खास पहचान यह होती है कि वे कभी भूल कर भी सामने से अटैक नहीं करते हैं. अगर आप की कोई बात उन्हें बुरी लगती है या आप उन का कहना नहीं मानते है तो वे अपने में चले जाते हैं. आप चाह कर भी उन से बातचीत नहीं कर पाते हैं और न ही यह जान पाते है कि उन के दिमाग के अंदर क्या चल रहा है. ऐसे लोग एक अलग सी पावर गेम खेलते हैं, इस पावर गेम में वे चुप रह कर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं. पैसिव अग्रैशन रिश्तों के गणित के लिए ज्यादा तकलीफदेह होता है. यह चुप्पी इतना अधिक तनाव देती है कि सामने वाला इंसान खुद को ही दोषी मान कर झक जाता है.

आप तो ऐसे न थे:

अगर आप कोई काम उन के हिसाब से नहीं करते हैं या उन की बात नहीं सुनते हैं तो बारबार आप को यह एहसास दिलाया जाता है कि आप कितने बदल गए या गई हैं. यह बात इतनी बार दोहराई जाती है कि आप खुद पर ही शक करने लगते हैं. आप को लगने लगता है कि जरूर आप के अंदर ही कुछ नकारात्मक बदलाव आ गए हैं जो उन के लिए बेहद तकलीफदेह हैं.

आप के शब्द आप के खिलाफ इस्तेमाल करना:

अगर आप उन्हें किसी गलत बात पर टोकते हैं तो वे अपनी गलती मनाने के बजाय आप की कोई पुरानी बात ढूंढ़ कर ले आएंगे कि आप ने भी फलां घटना में ऐसे ही व्यवहार किया था. आप के गुस्से को भड़का कर वे खुद शांत हो जाएंगे. जब आप भड़क कर उन्हें भलाबुरा कह देंगे तो वे घडि़याली आंसू बहा कर खुद को निर्दोष साबित कर देते हैं.

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कड़वी बातों को मजाक की चाशनी में परोसना:

यह मैनीपुलेटिव लोगों का एक अनोखा गुण होता है कि कड़वी और तीखी बात कह कर वे यह बोल देते हैं, ‘‘अरे मैं तो मजाक कर रहा था या थी. तुम्हें सच लग रहा हैं तो मैं क्या करूं?’’

सामने वाले के दिल को दुखाने में उन्हें असीम आनंद आता है पर वे दिल दुखा कर भी बड़ी साफगोई से बच निकलते हैं.

ऐसे लोग दोस्त, साथी या रिश्तेदार के रूप में आप के आसपास अवश्य होंगे. जरूरत है उन की बातों या कृत्यों से खुद को दोषी न मानें. आप अपनी जगह बिलकुल सही हैं. उन के हिसाब से खुद को बदलने के उन्हें बदलने को कहें. रिश्तों को जोड़तोड़ से नहीं बल्कि समझदारी और प्यार से निभाया जाता है.

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