रैप गायक हनी सिंह और उस की पत्नी शालिनी में अब झगड़ा वकीलों की देखरेख में अदालत में पहुंच गया है. मजेदार बाद है हनी सिंह की वकील बेहद सुलझी हुई और हयूमन राइटस के लिए लडऩे वाली रैकोका जान है और उसने भी अदालत की राय से सहमति दिखाने कि मामले को ज्यादा खुली अदालत में नहीं उछलने दिया जाए.
शालिनी अपने पति (अभी तक तो डाइवोर्स नहीं हुआ न) से 20 करोड़ का कंपनलेशन, दक्षिणी दिल्ली में एक अच्छा मकान और 5 लाख रुपए हर माह खर्च के लिए मांगा है. जैसा सभी तलाक मामलों में होता है. शालिनी ने हनी सिंह पर शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक अत्याचार का आरोप लगाया है और जज के कमरे में लंबी समझाहट के बाद भी बात नहीं बनी शालिनी को अपना सामान हनी सिंह के घर से समेट लाने की इजाजत मिली है.
तलाक लेना आज भी बहुत मुश्किल है जैसे भारतीय संस्कृति में नियम है. औरतों पर अत्याचार न हो इसलिए जो कानून बने हैं वे अब तलाक की प्रक्रिया को और बढ़ा देते है और मतभेदों के साथ कौंपलैक्स फैक्टर भी आ जाते हैं जिन से निपटने में वकीलों और जजों को वर्षों लग सकते हैं.
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अब वैसे तो विवाह संस्कार नहीं रह गया क्योंकि तोड़ा जा सकता है पर फिर भी हमारी अदालतें, पुलिस, परिवार सब मिल कर अलग होने वाले युगल इस तरह चक्की में पीसते हैं कि विवाह की कल्पना एक नाईट शेयर, बुरा सपना, बनने लगी है. बहुत से युवा इसीलिए विवाह नहीं कर रहे कि अगर तलाक हो गया तो क्या होगा.
विवाह 2 युवाओं का प्रेम पर मोहर लगाने की प्रक्रिया है. अब मेरा तुम्हारा नहीं, सब हमारा है. मेरी ङ्क्षजदगी तुम्हारी है और तुम्हारे बिना में अधूरी हूं. तुम साथ नहीं हो तो मैं न जाने क्या हो जाता हूं. जैसे भाव न जाने विवाह के बाद कब छूमंतर हो जाते हैं और तुम ऐसे, तुम वैसी हो, तुमने ऐसा क्यों किया, मुझ से पूछा नहीं, यह बात करने का तरीका है, अपनी जबान बंद रखो जैसी बातें जबरन डाली रहती है.
अफसोस यह है कि थोड़े से ही प्रयास के बाद दोनों के मांबाप, मित्र, सलाहकार हथियार डाल कर एक का पक्ष लेना शुरू कर देते हैं. एक बगुला भगत बन जाता है. दूसरा खूंखार बाज, गिद्ध. सहज संतोष की गुंजाइश ही नहीं रहती. जिस के साथ एक बिस्तर पर दिनों बिता वह दुश्मन हो जाता है. बच्चे हो गए हों तो भी फर्क नहीं पड़ता. वकीलों की मौजूदगी भी कोई राहत नहीं दिलाती क्योंकि वकील हर मामले अपने क्लाइंट को दूसरे की खामियां बढ़ाचढ़ा कर बताने की कोशिश करता है.
यह अफसोस है कि जैसे क्लाइमेंट कंट्रोल की जिम्मेदारी हर नागरिक, हर देश, हर उद्योग दूसरे पर डाल रहा, मानव जीवन की इस सब से बड़ी अहम ट्रेन के पटरी पर उतरने के मामले में सब उदासीन हैं. अदालतों में मामलों 10-15 साल तक चल सकते हैं. नरेंद्र मोदी जैसे पूरी ङ्क्षजदगी अकेले रह कर पत्नी को अकेली रहने को मजबूर कर सकते हैं. दुनिया भर में करोड़ स्त्री पुरुष तलाक के पहले की त्रासदी से जूझ रहे हैं.
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तलाक के बाद दूसरी शादी आसानी नहीं है. एक खरोंच खाए जाने से लंबी पारी, जीवन के अंत तक, खेलने का भरोसा कम रहता है. कोई भी दुनिया भर में पतिपत्नी संबंधों में नए सिरे से सोचने के बारे में प्रयास तक नहीं कर रहा. विवाह से मोटी कमाई करने वाले धर्म इस उलझन का मजा ले रहे हैं क्योंकि ज्यादातर मामलों पहले मध्यस्थ वे ही होते हैं और वकीलों की तरह वे भी कमाई कर रहे हैं.