दीवाली पर घर की साफ सफाई के दौरान रागिनी ने अपनी कामवाली को एक पुराना सूटकेस यह कहते हुए दिया कि “ले जा तेरे काम आएगा.” एक सप्ताह बाद वही सूटकेस सोसाइटी के कचरे के अटाले के ढेर में पड़ा देखकर रागिनी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस दिन से उसने आगे से अपनी मेड को कुछ भी न देने का निश्चय कर लिया.
एक सप्ताह तक फ्रिज में रखी रहने के बाद भी जब घर के किसी सदस्य ने मिठाई नहीं खायी तो गीता ने वह मिठाई अपनी काम वाली को दे दी, कामवाली ने अपनी मालकिन से तो कुछ नहीं कहा परन्तु गेट के बाहर जाकर कुत्तों को खिला दी.
इसी प्रकार रजनी ने घर के कुछ पुराने कपड़े अपने ही घर के सर्वेन्ट क्वार्टर में रहने वाले नौकर को दिए. कुछ दिनों बाद उसी नौकर की पत्नी को उन्हीं पुराने कपड़ों के बदले स्टील के बर्तन खरीदते देखकर उसे बहुत क्रोध आया और उसने अपने नौकर को खूब खरी खोटी सुनायीं.
कामगारों और मालिकों के बीच इस प्रकार की घटनाएं होना बहुत आम बात है जब मालिक का मन रखने के लिए कामवाले उनके द्वारा दिया गया सामान ले तो लेते हैं परन्तु प्रयोग करने के स्थान पर उसे फेंक देते हैं. क्योंकि उन्हें अक्सर वह सामान दिया जाता है जो प्रयोग करने के लायक ही नहीं होता.
क्या कहते हैं कामगार
एक सोसाइटी के कई घरों में काम करने वाली सीमा कहती है, “मेहनत हम चार पैसे कमाने के लिए करते हैं परन्तु घर का कबाड़ देकर मालिक हमें नौकर होने का अहसास कराते हैं आखिर हम भी तो उन्हीं की तरह एक इंसान हैं.”
अनेक घरों में खाना बनाने का काम करने वाली रजनी कहती है,”10 दिन से मैं खुद उस मिठाई को फ्रिज में रखा देख रही थी और 11 वें दिन मालकिन ने वह मिठाई उठाकर मुझे दे दी,”तेरे बच्चे खा लेंगे”.मानो मेरे बच्चे इंसान नहीं जानवर हों.
आमतौर पर कामगारों को दिये जाने वाले सामान में खाद्य पदार्थ, पहनने के कपड़े और घरेलू सामान होता है. अक्सर उन्हें वह सामान दिया जाता है जो हमारे लिए अनुपयोगी होता है परन्तु कोई भी सामान देने से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि वह सामान एकदम बेकार और कचरे में फेंकने योग्य तो नहीं है.
ध्यान रखने योग्य बातें
-पुराने कपड़े देते समय यह सुनिश्चित करें कि वह मैला, कुचला, फटा न हो. यदि कहीं से सिलाई खुली है तो उसे सिलकर, धो और प्रेस करा कर ही दें.
-कई दिनों तक फ्रिज में रखने के बाद कोई भी खाद्य पदार्थ देने के स्थान पर उपयोग करने के बाद अगले दिन ही उन्हें दे दें ताकि समय रहते वे उसे प्रयोग कर सकें.
-सदैव ध्यान रखें जिस खाद्य पदार्थ को आप स्वयम नहीं खा सकते उसे उन्हें भी क्यों देना क्योंकि वे भी आपकी तरह ही एक इंसान ही हैं.
-कोई भी घरेलू सामान यदि एकदम टूटी फूटी हालत में है तो उसे कामगारों को देने के स्थान पर कचरे में फेंक दें.
-अरे ये तो सब खा लेते हैं या सब पहन ओढ़ लेते हैं जैसी ओछी बातें सोचकर उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाएं.
-किसी भी सामान को उन्हें देने से पूर्व उनसे पूछें कि वह उनके काम का है भी या नहीं.
-सबसे जरूरी बात कि आप उन्हें भी अपने जैसा ही एक इंसान समझें और उसी अनुरूप उनसे व्यवहार भी करें.
सदियों के बाद हमारे समाज के कामगार वर्ग को आज थोड़ा ही सही पर वो सम्मान प्राप्त होने लगा है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं..इसे वे स्वयम तो आसानी से नहीं जाने देंगे परन्तु हम मालिकों कभी दायित्व है कि उनके इस सम्मान को बरकरार रखें.