सुपर वूमन होती हैं हाउसवाइफ

आज के दौर में यह धारणा बढ़ रही है कि पत्नी वर्किंग होनी चाहिए तभी गृहस्थी ठीक से चल पाती है. महंगाई के साथसाथ इस की एक वजह यह भी है कि हाउसवाइफ के काम को नौकरी करने वालों के बराबर नहीं माना जाता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हाउसवाइफ का काम नौकरी कर सैलरी लाने वाले साथी से कम नहीं होता है. कोर्ट ने हाउसवाइफ के योगदान को ‘अमूल्य’ बताया है.

रुपएपैसों से नहीं तोल सकते काम

जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि परिवार की देखभाल करने वाली महिला का विशेष महत्त्व है. परिवार में उस के योगदान का रुपएपैसों से आकलन नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी मोटर दुर्घटना मामले में क्लेम को ले कर सुनवाई करते हुए की.

यह है मामला

दरअसल, 2006 में एक सड़क हादसे में उत्तराखंड की एक महिला की मौत हो गई थी. वह जिस गाड़ी में सफर कर रही थी, उस का बीमा नहीं था. परिजनों ने बीमे का दावा किया तो ट्रिब्यूनल ने महिला के पति और नाबालिग बेटे को ढाई लाख रुपए की क्षतिपूर्ति देने का फैसला किया. परिवार के अनुसार महिला को मिलने वाली बीमा राशि को ट्रिब्यूनल ने कम आंका था.

परिवार ने अधिक मुआवजे के लिए

ट्रिब्यूनल के इस फैसले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल का फैलसा सही है. महिला गृहिणी थी इसलिए मुआवजा जीवन प्रत्याशा और न्यूनतम अनुमानित आय के आधार पर तय किया गया. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में संबंधित महिला की आय किसी दिहाड़ी मजदूर से भी कम मानी थी जिस के बाद परिवार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले कर पहुंचा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस दृष्टिकोण पर नाराजगी जताई जिस में महिला की अनुमानित आय को दूसरे वर्किंग पर्सन से कम आंका गया था. कोर्ट ने कहा कि एक हाउसवाइफ की आय को किसी वर्किंग पर्सन से कम कैसे आंका जा सकता है. हम इस एप्रोच को सही नहीं मानते. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी हाउसवाइफ के काम, मेहनत और बलिदान के आधार पर उस की अनुमानित आय की गणना करनी चाहिए. यदि एक हाउसवाइफ के काम की गणना की जाए तो यह योगदान अमूल्य है. सुप्रीम कोर्ट ने 6 सप्ताह के अंदर परिवार को भुगतान करने का निर्देश देते हुए कहा कि किसी को हाउसवाइफ के मूल्य को कभी कम नहीं आंकना चाहिए.

करोड़ों गृहिणियों को मिला सम्मान

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला और टिप्पणी भारत की उन करोड़ों महिलाओं को सम्मान देने जैसा है जो निस्स्वार्थ भाव से दिनरात सिर्फ अपने परिवार की देखभाल में जुटी रहती हैं, ऐसी गृहिणियां जो अपनी सेहत की परवाह किए बिना पूरे परिवार की सेहत का ध्यान रखती हैं, जिन्हें साल में कोई छुट्टी नहीं मिलती. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की करीब 159.85 मिलियन महिलाओं ने घरेलू काम को अपनी प्राथमिकता बताया था. वहीं पुरुषों का आंकड़ा महज 5.79 मिलियन था.

रोज करती हैं 7 घंटे घरेलू काम

आइआइएम अहमदाबाद के अध्ययन के अनुसार भारत में महिलाओं और पुरुषों के बीच अवैतनिक काम के घंटों में बड़ा अंतर है. देश में 15 से 60 साल तक की महिलाएं रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू कामों में बिताती हैं. इस काम के बदले उन्हें कोई वेतन नहीं दिया जाता है. वहीं पुरुष ऐसे कामों में प्रतिदिन 2.8 घंटे बिताते हैं.

 

इन 10 आसान तरीकों को अपनाएं और बचाएं पैसे

क्या आपके पैसे वक्त से पहले खर्च हो जाते हैं, क्या आपने अब तक कुछ भी सेव नहीं किया है तो डरिये नहीं आज हम आपके लिये कुछ बहुत ही साधारण टिप्स लेकर आएं हैं जिसे अपने रोजमर्रा के जीवन में लागू कर थोड़े बहुत पैसे तो आप सेव कर ही लेंगी. चलिये आपको बताते हैं.

1. बेहतर प्लान बनाएं

आपको सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन शौपिंग पर जाते समय यह कभी डिसाइड न करें कि आपको क्या क्या खरीदना है. बेहतर है कि जब भी आपको जो सामान याद आए, उसे एक लिस्ट में अपडेट करते जाएं. और जब वो सामान आपके आस पास हो आप उसे फौरन खरीद लें.

2. शौपिंग की लिस्ट हमेशा साथ रखे

अक्सर दुकान पर पहुंच कर हमें पता चलता है कि हम लिस्ट घर पर ही भूल आएं है इसीलिए शौपिग पर जाने से पहले हमेशा याद से लिस्ट साथ रख लें. यह लिस्ट तब और भी जरूरी हो जाती है जब आपके पास सीमित समय हो और उसी दौरान आपको घर के लिए पूरा सामान अपडेट करना हो.

3. बाजार के हिसाब से लिस्ट बनाएं

हमेशा सामान को एक ग्रुप में बांट लें इससे आपको पता रहेगा कि किस दुकान में जाकर क्या लेना और आपको कुल कितनी अलग अलग दुकानों पर जाने की जरूरत है. इस बेहतर प्लानिंग से आप समय बचा सकते हैं. जैसे सब्जी के दुकान का अलग और राशन का अलग इस तरीके से आप ये लिस्ट बनाएं.

4. लिस्ट से भटकें नहीं

आपने लिस्ट किसी खास वजह से बनाई है इसलिए जरूरी है कि आप उस पर टिके रहें. अपनी लिस्ट के प्रति ईमानदार रहेंगे तो फिजूल के खर्च से बचेंगे. ऐसा नहीं की बाजार में गएं और जो मन में आया वो आप खरीदे जा रहीं हैं.

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5. सिर्फ जरूरत का सामान ही थोक में ले

अक्सर हम औफर्स, छूट जैसे लुभावने प्रस्ताव की वजह से किसी चीज को ज्यादा क्वांटिटी में खरीद लेते हैं. आपको हमेशा वैराइटी का ध्यान रखना चाहिए जिससे आप जल्दी उबेंगे भी नहीं और थोक का सामान बर्बाद भी नहीं होगा.

6. एक हफ्ते की खरीदारी मेन्यू बनाएं

रोजाना कुछ न कुछ खरीदने के लिए दुकान पर जाने से बेहतर है कि आप हफ्ते भर के सामान की लिस्ट एक साथ बना लें और उसी के मुताबिक सामान खरीदें. साथ ही, अगली शौपिंग की तारीख भी तय कर लें. इससे घर पर अचानक सामान खत्म होने की स्थिति का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा.

7. पीक आवर्स में शौपिंग न करें

हमेशा शौपिंग ऐसे समय पर ही करने जाएं जब भीड़ कम हो और पेमेंट के लिए लाइन छोटी हो. साथ ही आपके पास भी फुर्सत हो. हमें कोशिश करनी चाहिए कि शाम, रात और रविवार की दोपहर में शौपिंग पर न जाएं. इस समय ज्यादातर लोग खरीदारी के लिए इकट्ठा होते हैं और समय का अभाव होने पर अक्सर कुछ न कुछ लेना छूट जाता है.

8. एक्सपायरी डेट चेक करें

जब भी कोई प्रोडक्ट खरीद रहे हों तो एक्सपायरी डेट चेक करें. इस बात को भी चेक करें कि पैकिंग में कोई खराबी न हो. कई बार कुछ चीजें जो छूट या कम रेट पर बेची जाती हैं वे अपनी एक्सपायरी डेट के नजदीक हो सकती हैं या उनकी पैकिंग में कोई खराबी हो सकती है. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि उस चीज की क्वालिटी के साथ समझौता किया गया है.

9. किसी फ्रेंड के साथ शौपिंग पर जाएं

जहां तक मुमकिन हो अपनी किसी ऐसी सहेली या पड़ोसन के साथ खरीददारी करने जाएं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और हेल्दी फूड में विश्वास रखती हो. शौपिंग के दौरान जंक फूड के औप्शन आसानी से आपको ललचा देते हैं. खासकर जब जंक फूड के साथ ‘बाय वन गेट वन फ्री’ जैसे औफर मिलते हैं. ऐसे समय में ये फ्रेंड्स ही आपको ऐसी खरीदारी करने से रोकते हैं.

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10. लेबल्स समझें

कई प्रोडक्ट्स के पैक पर लो फैट जैसे शब्द लिखे होते हैं. अधिकतर इनको ढंग से समझ नहीं पाते हैं. अधिकतर लो फैट फूड्स में शुगर या नमक भरपूर मात्रा में होता है जो उसमें स्वाद के लिए डाला जाता है. खाने का सामान खरीदते समय उसमे मौजूद कैलोरीज के लिए न्यूट्रीशनल लेबल्स जरूर पढ़ें. कोई चीज कम कैलोरी वाली है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह हेल्दी भी है. आपको कैलोरी वैल्यू के लिए नहीं, बल्कि क्वालिटी वैल्यू के लिए खाना चाहिए.

स्मार्ट वाइफ: सफल बनाए लाइफ

पतिपत्नी का रिश्ता बहुत संवेदनशील और भावनात्मक होता है. पहले जब संयुक्त परिवारों का चलन होता था तो उस समय इस रिश्ते में थोड़ा उतारचढ़ाव चल जाता था. मगर अब संयुक्त परिवारों के टूटने के बाद से पूरे परिवार का बोझ केवल पति और पत्नी के ऊपर ही आ गया है. ऐसे में अब पत्नी का छुईमुई बने रहना घरपरिवार के लिए ठीक नहीं होता है. आज के समय में पत्नी की जिम्मेदारियां पति से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं.

पति के पास सही मानों में केवल पैसा कमा कर लाने का ही काम होता है. पैसे का सही ढंग से उपयोग कर के घरपरिवार, बच्चे, नातेरिश्तेदार और पड़ोसियों तक से सहज रिश्ता रखने का काम पत्नी का होता है. स्मार्ट पत्नी महंगाई के इस दौर में पति के कमाए पैसों को सहेज कर रखने का और बचत की नईनई योजनाओं की जानकारी देने का भी काम करती है. आज की स्मार्ट वाइफ केवल हाउसवाइफ बन कर रहने में ही संतोष महसूस नहीं करती, वह अच्छी हाउस मैनेजर भी बन गई है.

गृहस्थी की गाड़ी की सफल ड्राइवर

भावना और भूपेश शादी के बाद रहने के लिए अपने छोटे से शहर गाजीपुर से लखनऊ आए थे. यहां भूपेश को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली थी. करीब ₹15 हजार उसे वेतन मिलता था. भूपेश ने ₹2 हजार प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिया. 1-2 महीने बीतने के बाद भावना को लगने लगा कि किराए के मकान में रहना समझदारी का काम नहीं है. मगर वह भूपेश से कुछ कहते हुए संकोच कर रही थी. वह पढ़ीलिखी थी. अत: उस ने सरकारी योजनाओं में मिलने वाले मकानों पर नजर रखनी शुरू कर दी. अपने आसपास के लोगों को भी इस बारे में जानकारी देने के लिए कहा.

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1 माह में ही भावना को पता चल गया कि सरकार की आवास योजना में कई मकान ऐसे हैं, जिन्हें कुछ लोगों ने बुक तो करा दिया था, लेकिन उन्हें वे खरीद नहीं पाए. सरकार ऐसे मकानों को दोबारा बेचने के लिए तैयारी कर रही थी. उस के लिए मकान की कुल कीमत का 25 फीसदी पहले देना था. बाकी की रकम किश्तों में अदा की जा सकती थी.

भावना ने भूपेश को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘सब से छोटे मकान की कीमत ₹3 लाख से ऊपर है. इस हिसाब से हमें ₹75 हजार तत्काल देने होंगे. इस के बाद हर माह किश्त अलग से देनी होगी. इतना पैसा कहां से आएगा?’’

इस पर भावना बोली, ‘‘परेशानी केवल शुरू के 75 हजार की है. इस के बाद की मासिक किश्त तो केवल ₹2 हजार के आसपास आएगी. इतना तो किराया हम अभी भी देते ही हैं. 75 हजार की व्यवस्था में 50 हजार का इंतजाम मैं कर सकती हूं. ₹25 हजार का इंतजाम तुम कर लो तो हमारा भी इस शहर में अपना एक मकान हो जाएगा.’’

भूपेश ने भावना की बात मान ली. कुछ ही दिनों में उन का अपना मकान हो गया. नए मकान को थोड़ा सा ठीक करा कर दोनों रहने लगे.

एक दिन भूपेश और भावना को एक शादी की पार्टी में जाना था. भावना को बिना गहनों के तैयार होता देख कर जब भूपेश ने पूछा कि तुम्हारे गहने कहां गए? तो भावना बोली कि उन्हें बेच कर ही तो मकान के लिए ₹50 हजार का इंतजाम किया था. यह सुनते ही भूपेश ने भावना को बांहों में भर लिया. उसे लगा कि सही मानों में भावना ही स्मार्ट वाइफ है.

बचत से संवरती है जिंदगी

महंगाई के इस युग में गृहस्थी की गाड़ी चलाने का मूलमंत्र बचत ही है. जिन परिवारों में अनापशनाप पैसा आता है, वहां भी पैसों की बचत का पूरा खयाल रखना चाहिए. एक स्मार्ट वाइफ को वित्तमंत्री की तरह अपने घर का बजट तैयार करना चाहिए. पूरा माह होने वाले खर्चों को एक जगह लिखना चाहिए ताकि माह के अंत में यह पता चल सके कि माह में कितना खर्च हुआ. इस से यह भी पता चल जाता है कि कहां पर खर्च कम कर के पैसा बचाया जा सकता है. हर माह एक निश्चित रकम इमरजैंसी में होने वाले खर्चों के लिए बचा कर जरूर रखनी चाहिए ताकि इमरजैंसी में होने वाले खर्च के समय परेशानी न उठानी पड़े.

हर माह तय रकम बैंक या डाकघर में जरूर जमा करें. सालभर के बाद इसे बैंक में फिक्स डिपौजिट कराया जा सकता है. आजकल म्यूचुअल फंड में भी जमा कर के अच्छा रिटर्न हासिल किया जा सकता है. स्मार्ट वाइफ हर माह के तय खर्च में भी कुछ न कुछ बचत कर के दिखा देती है. इस तरह वह पति को सहयोग भी दे देती है.

पति, परिवार और बच्चों की सेहत अच्छी रहती है तो दवा का खर्च भी कम हो जाता है. यह भी एक तरह की बचत होती है. बहुत सारी बीमारियों को साफसफाई के द्वारा दूर रखा जा सकता है. घर की खरीदारी समझदारी से करें तो भी बचत हो सकती है. पूरी खरीदारी एक बार में ही करें. सामान ऐसी जगह से खरीदें जहां कम कीमत पर अच्छा मिलता हो. आजकल मौल कल्चर आने से कई तरह का सामान सस्ता मिल जाता है.

स्मार्ट वाइफ बनाए समाज में पहचान

अब बहुत सारे लोग शहरों में अपने नातेरिश्तेदारों से अलग रहते हैं. ऐसे में उन के पास दोस्तों से मिलने का समय ज्यादा होता है. इन्हीं लोगों के बीच दुखदर्द और हंसीखुशी का बंटवारा भी होता है. आपस में मिलनेजुलने के लिए लोग पार्टियों का आयोजन किसी न किसी बहाने करते रहते हैं. यहां पर पत्नियों के बीच एक अघोषित प्रतिस्पर्धा सी होती है, जिस के चलते एकदूसरे के बारे में कई तरह के सवाल भी उठते रहते हैं. किस की पत्नी कैसी दिख रही है? उस ने किस तरह के कपड़े पहन रखे हैं? उस का व्यवहार कैसा है? उस के बच्चे कितने अनुशासित हैं? स्मार्ट पत्नी वही कहलाती है जो इन सवालों पर खरी उतरे.

पार्टी में जान डालने के लिए पार्टी के तौरतरीकों को समझना और उन के हिसाब से काम करना पड़ता है. इस तरह की पार्टियों में कई बार बहुत अच्छे रिश्ते भी बन जाते हैं, जो आगे बढ़ने में भी मदद करते हैं. स्मार्ट पत्नी को काफी सोशल होना चाहिए. कई बार पति चाहते हुए भी सोशल रिश्तों को बेहतर ढंग से नहीं निभा पाता है.

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स्मार्ट पत्नी इस कमी को पूरा कर के पति को तरक्की की राह में आगे बढ़ने में मदद करती है. स्मार्ट वाइफ को पति के दोस्तों, औफिस के सहयोगियों की घरेलू पार्टियों में जरूर जाना चाहिए. इस से आपस में बेहतर रिश्ते बनते हैं. आजकल आपस में बातचीत करते रहना मोबाइल, इंटरनैट और फोन के जरीए और भी आसान हो गया है. इस का लाभ उठाना चाहिए. हर जगह रिश्तों की मर्यादा का पूरा खयाल रखना चाहिए. कभीकभी रिश्ते बनते कम और बिगड़ते ज्यादा हैं.

घरेलू काम: न मान, न दाम

क्या घरेलू कामकाज थैंकलैस जौब है? जी हां, यह सच है. अगर ऐसा नहीं होता तो हिंदुस्तान में कामगार के तौर पर महिलाओं की इज्जत पुरुषों से ज्यादा होती, क्योंकि वे पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा काम करती हैं. उन का काम हर समय जारी रहता है, केवल सोने के समय को छोड़ कर. यह बात एनएसएसओ यानी नैशनल सैंपल सर्वे और्गेनाइजेशन के सालाना राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण से सामने आई है. 68वें चक्र के इस सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं चाहे शहरों में रहती हों या गांवों में, वे पुरुषों से कहीं ज्यादा काम करती हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 68वें चक्र के आंकड़े एक और गलतफहमी दूर करते हैं कि शहरी महिलाएं शिक्षित होने के नाते अधिक कामकाजी होती हैं. आंकड़ों से मालूम होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र की महिलाएं गैरमेहनताने वाले घरेलू कार्य में अधिक व्यस्त रहती हैं. एनएसएसओ के 68वें चक्र के अनुसार, 64% महिलाएं जो 15 वर्ष या उस से अधिक आयु की हैं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का यह प्रतिशत 60 है.

अगर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की बहस को छोड़ दें तो इन आंकड़ों से मालूम होता है कि ज्यादातर महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं, जिस का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता है. इन आंकड़ों से भी इस मांग को बल मिलता है कि घरेलू कामकाज को श्रम माना जाए और महिलाओं को उस का मेहनताना दिया जाए. गौरतलब है कि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में लगभग 92% महिलाएं अपना ज्यादातर समय घरेलू काम में व्यतीत करती हैं.

बहरहाल, प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में 1 लाख घरों को इस सर्वे में शामिल किया गया, जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि शहरी क्षेत्र की अधिकतर महिलाएं कहती हैं कि वे घरेलू काम अपनी व्यक्तिगत इच्छा के कारण करती हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का कहना है कि वे घरेलू काम इसलिए करती हैं, क्योंकि उसे करने के लिए कोई और सदस्य उपलब्ध नहीं है.

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जुलाई, 2011 से जून, 2012 तक के इस 68वें चक्र से यह भी जाहिर होता है कि चूंकि शहरों में छोटे परिवार ज्यादा हो गए हैं, इसलिए घरेलू जिम्मेदारियों को बांटने के लिए सदस्यों की कमी रहती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी स्थिति नहीं है.

दिलचस्प बात यह है कि लगभग 34% ग्रामीण महिलाओं ने इस बात की इच्छा व्यक्त की कि अगर उन्हें घर पर ही कोई अन्य काम दिया जाए तो वे उसे खुशीखुशी स्वीकार लेंगी, जबकि 28% शहरी महिलाओं ने ही घर पर रह कर कोई अन्य काम करने की इच्छा व्यक्त की. दोनों क्षेत्रों में मात्र 8% महिलाएं ही ऐसी हैं, जिन्हें अपना ज्यादातर समय घरेलू काम करते हुए गुजारना नहीं पड़ता.

अब सवाल यह है कि घरेलू काम के अतिरिक्त घर पर रहते हुए महिलाएं किस किस्म के काम को करने को अधिक प्राथमिकता देती हैं? सर्वे से मालूम पड़ता है कि सिलाई का काम महिलाओं को अधिक पसंद है. दोनों क्षेत्रों में 95% महिलाएं नियमित आधार पर कार्य करने को प्राथमिकता देती हैं. महिलाओं की दिलचस्पी स्वरोजगार में भी है, बशर्ते उन्हें व्यापार करने के लिए रिआयती व आसान दर पर ऋण दिया जाए.

दिलचस्प बात यह है कि इस सिलसिले में भी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिशत (41), शहरी महिलाओं के प्रतिशत (29) से कहीं ज्यादा है. इस के अलावा 21% ग्रामीण महिलाओं और 27% शहरी महिलाओं ने कहा कि अपनी इच्छा का कार्य करने के लिए वे पहले ट्रेनिंग लेना पसंद करेंगी.

2011-12 के सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान शहरी क्षेत्र में घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में लगभग एक सा ही रहा है. घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत 2004-05 में जहां 45.6 था, वहीं 2009-10 में बढ़ कर 48.2% हो गया, लेकिन 2009-10 और 2011-12 के बीच वह लगभग समान ही रहा है.

दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में घरेलू कामों में जुटी महिलाओं का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जा रहा है. मसलन, 61वें चक्र में यह प्रतिशत 35.3% था जो 66वें चक्र में बढ़ कर 40.1% हो गया और वर्तमान चक्र में यह 42.2% है. अगर क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो उत्तरी राज्यों खासकर पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में महिलाएं घरेलू काम में अधिक जुटी हुई हैं. दक्षिण व उत्तरपूर्व राज्यों में यह स्थिति कम है.

जरूरी है अर्थिक स्वतंत्रता

बहरहाल, जहां घरेलू काम को ‘उत्पादक श्रम’ की श्रेणी में शामिल करने की मांग बढ़ती जा रही है, वहीं एनएसएसओ से यह भी आग्रह किया जा रहा है कि वह ‘समय प्रयोग सर्वे’ को लागू करे. इस का एक फायदा यह होगा कि शोधकर्ताओं को मालूम हो जाएगा कि घर पर रहने वाली महिला कितना समय आर्थिक दृष्टि से उत्पादक गतिविधि में व्यतीत करती है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि समाज में महिलाओं की स्थिति उसी सूरत में मजबूत हो सकती है जब वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों. जाहिर है, इस के लिए जरूरी है कि महिलाओं द्वारा किए जा रहे घरेलू कार्य को श्रम माना जाए और उन्हें इस का आर्थिक मेहनताना मिले. इस के अलावा यह भी जरूरी है कि महिलाओं की संपूर्ण स्थिति को सामने लाने के लिए एनएसएसओ उन से आधुनिक संदर्भों पर भी सवाल करे जैसे- क्या वे घर से बाहर कोई वेतन कार्य करना पसंद करेंगी या घरेलू काम के बोझ को वे किसी दूसरे के साथ बांटना चाहेंगी आदि.

किसी भी विकसित देश की तमाम अलगअलग परिभाषाओं में एक महत्त्वपूर्ण परिभाषा या फिर कहें उस के विकसित होने को साबित करने वाली स्थिति यह होती है कि उस देश की तमाम महिलाएं उस देश के पुरुषों की ही तरह कामकाजी होती हैं. कामकाजी होने से यहां आशय पुरुषों के बराबर महत्त्व वाले घर से बाहर के कामकाजों में हिस्सेदारी करना और उन्हीं के बराबर वेतन पाना है. जिन देशों में ऐसी स्थितियां नहीं हैं वे कम से कम विकसित देशों की सूची में नहीं आते. इसलिए भी हिंदुस्तान को अभी लंबा सफर तय करना है, क्योंकि हमारे यहां श्रम के मामले में महिलाएं यों तो पुरुषों से कहीं ज्यादा श्रम करती हैं, लेकिन उन के श्रम को उतना पारितोष नहीं मिलता जितना पुरुषों को मिलता है.

अगर 2020 तक भारत को एक बड़ी आर्थिक ताकत बनना है तो हमें अपने देश की महिलाओं के श्रम की महत्ता को समझना होगा. लेकिन समझने से आशय महज मुंहजबानी शाबाशी देना या यह कहना कि सब कुछ तुम्हारा ही तो है, से नहीं है, बल्कि इस से आशय महिलाओं के श्रम को आर्थिक दृष्टि से बराबर का सम्मान देना है और उन्हें तमाम आर्थिक गतिविधियों का अनिवार्य व बराबर की ताकत वाला महत्त्व देना है.

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सवाल जो सर्वे में नहीं पूछे गए

यह सच है कि नैशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों से बहुत कुछ पता चलता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर इस सर्वेक्षण को सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बनाना है, तो इस में हर उस सवाल को शामिल करना जरूरी होगा जो महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को विस्तार से बयां कर सके, क्योंकि महत्त्वपूर्ण होते हुए भी इस सर्वे की कई खामियां हैं और वे आमतौर पर न पूछे गए जरूरी सवालों को ले कर ही हैं.

मसलन, सर्वे में महिलाओं से इस संबंध में सवाल नहीं किया गया कि क्या वे घर से बाहर के कामकाज में शामिल होना चाहेंगी? यह प्रश्न इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि घर पर रह कर घरेलू काम करने वाली महिलाओं में से बहुत कम ही ऐसी होंगी जो घर के बाहर जा कर काम करते हुए वेतन लेने की इच्छुक न हों. महिलाएं इस बात से भी काफी आहत रहती हैं कि पुरुषों के मुकाबले काफी ज्यादा काम करने के बावजूद उन के काम से ठोस रूप में घर वेतन नहीं आता, इसलिए उन के काम को महत्त्व नहीं दिया जाता.

यही नहीं, न सिर्फ महिलाओं के श्रम को नकद वेतन मिलने वाले श्रम के मुकाबले कम महत्त्व दिया जाता है, बल्कि उस श्रम की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बहुत कम है. महिलाएं इस पीड़ा से अकसर दोचार होती रहती हैं. मगर इस सर्वेक्षण में उन की इस पीड़ा को व्यक्त करने वाला कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इस लिहाज से भी यह सर्वेक्षण की एक बड़ी खामी है.

अधूरी तसवीर

इस सर्वेक्षण में एक और जरूरी पहलू पर महत्त्वपूर्ण राय नहीं पता चल पाई कि अगर इस सर्वेक्षण में घर पर रहने वाली महिलाओं से यह सवाल किया जाता कि उन्हें सवेतन संबंधी काम करने के लिए आखिर किस चीज की ज्यादा जरूरत है- अच्छी क्वालिफिकेशन की, शुरू से घर से बाहर काम करने की मानसिकता के तहत की जाने वाली परवरिश की, अपना काम शुरू करने के लिए नकद पैसों की, परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन की या महिलाओं को घर के बाहर के कामकाज को बढ़ावा देने वाली संस्कृति की? यह जानना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सामूहिक रूप से किसी विस्तृत राय के अभाव में हम लोग महज अनुमान लगाते हैं कि महिलाएं किस बात या चीज की कमी के चलते खुद को कोल्हू के बैल माफिक मानती हैं.

इस सवाल के अभाव में हम तार्किक रूप से यह भी नहीं जान सकते कि महिलाएं क्या सोचती हैं कि जब वे घर का काम नहीं करेंगी तो फिर उन की नजर में यह काम किसे करना चाहिए? जैसे आज की स्थिति में तमाम घर के काम उन के जिम्मे हैं क्या कल वे भी इसी तरह घर के तमाम कामों को पुरुषों के सिर पर डालना चाहती हैं? या फिर पुरुषों ने भले उन के साथ बराबरी का व्यवहार न किया हो और बाहर का काम करने के बाद भी उन से घर के पूरे काम की अपेक्षा करते हों, वे प्रोफैशनल कामकाजी होने के बाद घर के काम के लिए बराबरी के बंटवारे पर भरोसा करती हैं?

यह भी जानना जरूरी था कि महिलाएं नौकरी करना ज्यादा पसंद करती हैं या अपना काम? अगर अपना काम करना पसंद करती हैं, तो इस क्षेत्र में उन्हें सब से बड़ी बाधा फिलहाल क्या लगती है? इन जरूरी सवालों के अभाव में यह सर्वेक्षण महिलाओं के कामकाज की स्थिति और उन के आर्थिक आकलन की एक तसवीर तो पेश करता है, मगर यह तसवीर कुल मिला कर अधूरी ही है.

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‘‘फिटनैस से आत्मविश्वास बढ़ता है’’: पद्मप्रिया

पद्मप्रिया

सैकंड रनरअप, मिसेज इंडिया यूनिवर्स

कहते हैं न कि जहां चाह वहां राह यानी जिस ने सच्चे मन व लगन से जो पाने की इच्छा रखी हो वह पूरी हो जाती है. अपनी मेहनत के दम पर पद्मप्रिया ने ‘मिसेस इंडिया यूनिवर्स’ प्रतियोगिता में सैकंड रनरअप का खिताब अपने नाम कर के न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि अपने राज्य का भी नाम रोशन किया है. इस दौरान उन के सामने मुश्किलें भी आईं लेकिन उन के जनून ने उन्हें हारने नहीं दिया और उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया.

गृहशोभा का साथ आया काम

पद्मप्रिया का जन्म कर्नाटक के बैंगलुरु में हुआ. वहीं वे बड़ी हुईं और उन्होंने अपनी पढ़ाई की. उन के पिता डाक्टर हैं और मां होममेकर, जिन की प्रेरणा पद्मप्रिया के बहुत काम आई. उन के हौसले को पंख तब और मिले जब उन्होंने गृहशोभा का साथ पकड़ा. वे हाई स्कूल के दिनों से ही इस पत्रिका की फैन रही हैं. वे इस पत्रिका में प्रकाशित होने वाले फैशन पेजेस से बहुत प्रभावित थीं और मन ही मन ये ठान चुकीं थीं कि एक दिन वे भी इस में छपने वाली मौडल्स की तरह ही बनेंगी ताकि वे भी अपनी खास पहचान बना सकें.

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पहले बड़े मौके ने बढ़ाया हौसला

स्कूल के दिनों से ही मीडिया में नाम पाने की चाह के कारण जब उन्होंने ‘सिनेमा में महिला कलाकारों की जरूरत वाले विज्ञापन को देखा तो उन्होंने इस के लिए मशहूर कन्नड़ निर्देशक एन चंद्रशेखरजी से हीरोइन के रोल के लिए संपर्क किया. वे स्क्रीन टैस्ट में पास भी हो गईं. लेकिन निर्देशक की शर्त थी कि उन्हें शूट के लिए फोरेन लोकेशंस पर जाना पड़ेगा. इतने बड़े मौके को जिसे वे हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं, पेरैंट्स भी इस के लिए राजी हो गए. लेकिन जब सगेसंबंधियों ने सलाह दी कि अभी से फिल्म लाइन में जाने से हायर स्टडी चौपट हो सकती है तब पेरैंट्स ने उन की बात को तवज्जो देते हुए उन्हें इस औफर को ठुकराने को कहा और हायर स्टडी की खातिर उन्हें इस औफर को मना करना पड़ा. लेकिन मन में विश्वास था कि एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी.

वूमन टी बैग की तरह

पद्मप्रिया का मानना है, ‘‘वीमेन टी बैग की तरह होती है. वैवाहिक जीवन में बंधना मेरे लिए आसान न था, क्योंकि मैं मल्टी नैशनल कंपनी में सौटवेयर डैवलपर भी थी. लेकिन परिवार के सहयोग के कारण मैं अपनी प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ में बैलेंस बना पाई. अपनी फैमिली कंप्लीट होने के बाद मैं फैशन इंडस्ट्री के प्रति और ऐक्टिव हो गई, जिस कारण मु झे मुकाम हासिल करने में आसानी हुई.

छोटी शुरुवात ने दिलाई बड़ी पहचान

‘‘मैं धीरेधीरे लोकल फैशन शोज में भाग लेने के साथसाथ टीवी सीरियल्स और स्टेज परफौरर्मैंस भी देने लगी. फिर एक दिन मेरी नजर उस विज्ञापन पर पड़ी, जिस में विवाहित महिलाओं के लिए ‘मिसेस इंडिया यूनिवर्स फैशन शो’ में भाग लेने का मौका था. मन में प्रबल इच्छा थी कि इस प्रतियोगिता में भाग लूं और फि र मैं प्रथम चरण के औनलाइन औडिशन में सभी प्रश्नों के उत्तर देने में सफल हो गई. मेरी इसी सफलता ने मु झे गोवा फैशन शो में भाग लेने का मौका दिया.

मन में उत्साह भी और डर भी

‘‘यह प्रतियोगिता गोवा में आयोजित हुई. सभी चयनित प्रतिभागियों को 10 दिन पहले ही आयोजनस्थल पर पहुंचना था. सभी राज्यों से

1-1 प्रतियोगी था. 10 दिनों तक 2 अलगअलल राज्यों के प्रतियोगियों को एक रूम में ही रहना था और यही सब से बड़ी परीक्षा थी कि आपस में किस तरह तालमेल बैठा कर रहें. रोज हमें नई थीम दी जाती थी, जिसे हमें तैयार करना होता था. सैल्फ मेकमअप, ड्रैसिंग मेकओवर, विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों पर अलगअलग तरह से अपने हुनर का प्रदर्शन करना हमारे लिए एक बड़ा चैलेंज था.

‘‘आखिरी दिन यानी 10वां दिन हमारे फाइनल प्रदर्शन का दिन था. इस राउंड में 5-6 प्रतिभागी ही पहुंचे थे, जिन्हें अब सब से मुश्किल चैलेंज का मुकाबला करना था और इस में मैं ने ‘मिसेज इंडिया यूनिवर्स’ सैकंड रनरअप का खिताब अपने नाम कर ही लिया.

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फिटनैस का भी ध्यान रखें

‘‘मेरा उन सभी महिलाओं से जो इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेने की इच्छा रखती हैं यही कहना है कि वे अपनी फिटनैस का खासतौर पर ध्यान रखें. क्योंकि जब हम खुद को फिट रखते हैं तो हमारा कौन्फिडैंस काफी बढ़ जाता है. अपने आउटफिट्स का खास ध्यान रखें, क्योंकि इस तरह के फैशन शोज में इन पर काफी ध्यान दिया जाता है. कभी डरें नहीं बल्कि मौका मिलने पर इन प्रतियोगिताओं में पूरी हिम्मत से आगे बढ़ें.’’

थोड़ा ब्रेक तो बनता है : घर संभाल रही गृहिणी को भी दें स्पेस

गृहिणी पूरे परिवार की धुरी होती है. खुद की परवाह किए बिना वह अपने पति, सासससुर और बच्चों की देखरेख में लीन रहती है. सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह सारे घर में घूमती और सब का ध्यान रखती गृहिणी के पास अपने लिए वक्त ही कहां होता है कि वह अपनी मनमरजी से थोड़ा वक्त निकाल कर अपना मनपसंद काम कर सके.

सारे परिवार की अपेक्षाएं पूरी करतेकरते उस की सारी जिंदगी बीत जाती है. अगर वह अपनी मनमरजी करने लगे तो यह सभी को अखरने लगता है. क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं? उस की अपनी इच्छाएं या आकांक्षाएं नहीं हो सकतीं? सब के लिए जीने वाली को क्या थोड़ा समय भी अपने लिए जीने का हक नहीं?

पति का एकाधिकार

हर पति की चाह होती है कि वह जब औफिस से घर आए तो पत्नी उस का पूरा खयाल रखे और अकसर हर पत्नी यह करती भी है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह पति के सोने तक हाथ बांध कर उस की जीहुजूरी करती रहे. विभा जो एक गृहिणी हैं उन की यही शिकायत है कि उन के पति का शादी के दूसरे दिन से यही रवैया है. उन्हें विभा का हर वक्त अपने आगेपीछे घूमना और जरूरत के वक्त उन की हर चीज हाजिर करना जरूरी है. यहां तक कि उन के सो जाने के बाद भी अगर वह कुछ पढ़नालिखना चाहे या संगीत सुनना चाहे तो उसे अगले दिन ताना सुनने को मिल जाता है.

इस सब से तंग आ चुकी विभा झल्ला कर कहती है कि मुझे जीने दो. मेरा अपना भी कोई वजूद है, अपनी इच्छाएं हैं, मुझे भी स्पेस चाहिए. मैं उन की पत्नी हूं कोई गुलाम नहीं.

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बच्चों की मनमानी

संगीता को पुराने हिंदी गीत सुनने का बेहद शौक है. वह अकसर अपने मोबाइल पर पुराने गीत, गजलें डाउनलोड कर के सुनना पसंद करती है. पर बच्चों को ये गीत बोरिंग लगते हैं. वे आपत्ति करते हैं तो संगीता का दिल टूट जाता है, पर जब पति और बच्चे घर में नहीं होते तो वह अपनी मनमरजी से जीती है, पुराने गीत सुनते हुए खुशीखुशी सारे काम करती है. पति और बच्चों के घर में न रहने पर उसे लगता है कि वह आजाद है. अपनी मरजी से अपना समय व्यतीत कर सकती है.

वह कहती, ‘‘सारे दिन में बस यही कुछ घंटे होते हैं जब मैं अपनी मनमरजी से जी सकती हूं. इस तन्हाई का भी अलग ही मजा होता है.’’

बच्चों की पढ़ाई

आजकल कंपीटिशन का जमाना है. सभी अभिभावक अपने बच्चों को सब से आगे देखना चाहते हैं. ऐसे में गृहिणी की जिम्मेदारी सब से ज्यादा अहम मानी जाती है. बच्चे का अच्छा या खराब प्रदर्शन गृहिणी की ही जिम्मेदारी मानी जाती है वरना यह सुनने को मिलता है कि सारा दिन करती ही क्या हो. बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दो. खासकर परीक्षा के दिनों में तो गृहिणी को ऐसा लगता है जैसे उसी की परीक्षा चल रही है और इस परीक्षा में अव्वल आने का पूरा दबाव उस के ऊपर होता है. इन दिनों तो वह सब से ज्यादा बंध जाती है.

परिवार का स्वास्थ्य

अगर बच्चे बीमार हो गए तो यह भी गृहिणी की गलती मानी जाती है कि उस ने ध्यान नहीं रखा. अगर वह रोज सादा खाना बनाए तो भी किसी को पसंद नहीं आता और अगर उस ने कभी कुछ स्पैशल बनाया और सब के पेट खराब हो गए तो भी उसे ही सुनने को मिलता है कि यह बनाने की क्या जरूरत थी. ऐसे में गृहिणियां कभीकभी उलझन में पड़ जाती हैं. एक तो सुबहशाम रसोई से छुट्टी नहीं मिलती ऊपर से कोई बीमार हो जाए तो भी उन्हीं की गलती.

अगर पति को अपने दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती का हक है और बच्चों को भी पर्याप्त स्पेस मिल जाती है, तो गृहिणी को क्यों नहीं? कुछ पल तो उसे भी अपने लिए जीने का पूरा हक है. उसे भी स्पेस चाहिए.

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इन 8 टिप्स को फौलो कर आप भी बन सकती हैं सफल गृहिणी

एक साथ कई काम करने के चक्कर में आप अवसाद से न घिरे इसलिए इन बातों को जिंदगी में जरूर अपनाइए:

1. प्रतिक्रिया दें:

जो कुछ भी आप के चारों ओर घट रहा है, उस के प्रति अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें. सब कुछ चुपचाप रोबोट की तरह न स्वीकारें. परिवर्तन की प्रक्रिया से उत्पन्न अपनी भावनाओं को स्वीकार करें. याद रखें, आप की भावनाओं को आप से बेहतर और कोई नहीं जान सकता. क्षमता से अधिक काम न करें: घर हो या दफ्तर, अच्छा बनने के चक्कर में न पड़ें. याद रखें, यदि आप अपनी क्षमता से बढ़ कर काम करेंगी तो आप को कोई मैडल तो मिलेगा नहीं, बल्कि लोगों की अपेक्षाएं और बढ़ जाएंगी. दूसरे-गलतियों का खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा. आज का जमाना टीम वर्क का है. इस से दूसरे के बारे में जानने या समझने में तो मदद मिलती ही है, थकान व तनाव से भी राहत मिलती है. घर के काम में भी घर वालों की मदद लें.

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2. पौजिटिव सोच:

गलतियों के लिए आप जिम्मेदार हैं, इस भावना को दिल से निकाल दें. इसी तरह दफ्तर में कोई प्रोजैक्ट हाथ से निकल गया हो, तो ‘‘यह काम तो मैं कर ही नहीं सकती’’ या ‘‘मैं इस काम के लायक ही नहीं हूं’’ जैसे नकारात्मक विचार दिमाग में न आने दें.

3. बनिए निडर:

कई बार मातापिता से मिले व्यवहार की जड़ें इतनी गहरी हो जाती हैं कि वयस्क होने पर भी उन से छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. कुछ महिलाएं असंतुष्ट रिश्तों को सारी उम्र इसलिए बनाए रखती है, क्योंकि वे डरती हैं कि इन रिश्तों को तोड़ने से समाज में बदनामी होगी. लेकिन सच तो यह है कि आज के इस मशीनी युग में लोगों को इतनी फुरसत ही कहां है, जो दूसरों के बारे में सोचें. सभी अपनी दुनिया में जी रही हैं. इसी तरह यदि दफ्तर में भी अपने बौस से तालमेल न बैठा पा रही हों, तो तबादला दूसरे विभाग में करा लें.

4. कुदरत से जुड़ें:

सुबह सूर्योदय से पहले उठें तथा घूमने जाएं. घूमने के लिए वे स्थान चुनें जहां हरियाली हो. नदी, तालाब, झरने, समुद्र, बागबगीचों में घूमने से मनमस्तिष्क को राहत महसूस होगी.

5. समाधान ढूंढ़ें:

कितनी भी परेशानी हो उसे सहजता से लें. हड़बड़ी से परेशानी और बढ़ जाती है. धैर्य रख कर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करें. उन पहलुओं पर विचार करें, जिन से आप की समस्या का समाधान मिल सकता है.

6. दिनचर्या बदलें:

रोजरोज आप एक ही काम कर के थक गई हैं, औफिस में भी बोरियत महसूस कर रही हैं, तो कुछ दिन बाहर घूमने जाएं या परिवार समेत पिकनिक पर जाएं. स्पा लें, पार्लर जाएं. कभीकभी छोटा सा ‘गैटटुगैदर’ भी मन को राहत देता है.

7. अच्छी श्रोता बनें:

यदि आप दूसरों की बात से सहमत नहीं हैं, तो भी बिना निर्णय लिए दूसरों की बात सुनें. वह क्या कह रहा है, उसे समझने की कोशिश करें और उसे एहसास दिलाएं कि आप उस की बात ध्यान से सुन रही हैं.

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8. फिट रहें:

स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें. अपना रूटीन चेकअप करते रहने से आप कई समस्याओं से बची रहेंगी. अंत में सारे काम किए जा सकते हैं, लेकिन सारे काम एक बार में नहीं किए जा सकते. स्त्री परिवार की केंद्र भी है और परिधि भी. उसे मां, पत्नी और वर्किंग वूमन बनने की जरूरत है, सुपर वूमन बनने की नहीं.

वर्किंग वुमन से कम नहीं हाउस वाइफ

टीवी पर आप ने एक विज्ञापन देखा होगा, जिस में 2 सहेलियां बहुत दिनों बाद मिलती हैं. पहली दूसरी से पूछती है, ‘‘क्या कर रही है तू?’’

दूसरी गर्व से कहती हैं, ‘‘बैंक में नौकरी कर रही हूं और तू?’’

पहली कुछ झेंपते हुए कहती है, ‘‘मैं… मैं तो बस हाउसवाइफ हूं.’’

यह विज्ञापन दिखाता है कि हमारे समाज में हाउसवाइफ को किस तरह कमतर आंका जाता है या यों कहें कि वह स्वयं भी खुद को कमतर समझती है, जबकि उस का योगदान वर्किंग वुमन के मुकाबले कम नहीं होता है. एक हाउसवाइफ की नौकरी ऐसी नौकरी है जहां उसे पूरा दिन काम करना पड़ता है, जहां उसे कोई छुट्टी नहीं मिलती, कोई प्रमोशन नहीं मिलती, कोई सैलरी नहीं मिलती.

हजारों रुपए ले कर भी यह काम कोई उतने लगाव से नहीं कर पाता

आज महानगरों में ही नहीं, छोटेछोटे शहरों में भी घरेलू कार्यों के लिए हजारों का भुगतान करना पड़ता है. साफसफाई करने वाली नौकरानी इस मामूली से काम के भुगतान के रूप में क्व500 से क्व1000 तक लेती है. खाना बनाने के लिए और ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं. ऐसे ही बच्चों के लिए ट्यूशन की बात हो या फिर घर में बीमार मांबाप की सेवा की, कपड़े धोने की बात हो या फिर 24 घंटे परिवार के सदस्यों की सेवा के लिए खड़े होने की, हाउसवाइफ द्वारा किए जाने वाले कामों की लिस्ट लंबी है.

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पत्नी को अर्द्धांगिनी कहा जाता है, पर वह उस से बढ़ कर है. तमाम मामलों में पति के लिए पत्नी की वही भूमिका होती है, जो बच्चे के लिए मां की. प्रतिदिन सुबह उठें तो चाय चाहिए, नहाने के लिए गरम पानी चाहिए या फिर नहाने के बाद तौलिया, जिम जाते समय स्पोर्ट्स शूज की जरूरत या फिर औफिस जाते समय रूमाल की, हर कदम पर पत्नी की दरकरार.

बच्चे के सुबह उठते ही दूध पिलाने से ले कर नहलाने, खाना खिलाने, स्कूल के लिए तैयार करने या फिर बच्चे के स्कूल से लौटने पर होमवर्क कराने और उस के साथ बच्चा बन कर खेलने तक की जिम्मेदारी हाउसवाइफ ही निभाती है. सब से अहम बात यह है कि हाउसवाइफ मां के रूप में बच्चे को जो देती है, वह लाखों रुपए ले कर भी कोई नहीं दे सकता.

पत्नी के सहयोग से ही मैं अपने काम में सफल हूं: एक टीचर जो सचिन को सचिन, शिवाजी को शिवाजी या विवेकानंद को विवेकानंद बनाती है क्या आप उस की फाइनैंशियल वैल्यू निकाल सकते हैं? नहीं न? तो फिर बच्चे को पूरा समय दे कर उसे भावनात्मक रूप से पूर्ण बनाने वाली, अच्छे संस्कार देने वाली हाउसवाइफ का मूल्यांकन आप धन से कैसे कर सकते हैं? यह कहना है अंजू भाटिया का, जिन्होंने अपने आईटी हैंड पति की व्यस्त दिनचर्या देख कर अपनी मल्टीनैशनल कंपनी की नौकरी इसीलिए छोड़ी, ताकि अपने वृद्ध सासससुर की देखभाल और दोनों बच्चों की परवरिश भली प्रकार कर सके.

उस के पति कहते हैं, ‘‘पत्नी के सहयोग से मैं अपने हर काम में सफल हूं. अगर वह इतना सब न करती तो न मेरा कैरियर संभलता और न ही घरपरिवार.’’

पूर्व में मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर कहती हैं कि माताओं को दुनिया में सब से ज्यादा सैलरी मिलनी चाहिए. उन के अनुसार, महिलाओं के द्वारा किए गए कामों की न तो प्रशंसा होती है और न ही उन्हें उस के लिए तनख्वाह मिलती है.

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की डार्क रिपोर्ट के अनुसार, एक औसत भारतीय महिला दिन में करीब 6 घंटे ऐसे काम करती हैं, जिन के लिए उसे मेहनताना नहीं मिलता. यदि ये काम बाहर से किसी से कराएं जाएं तो इन की एक निश्चित कीमत होगी.

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कुछ वर्ष पूर्व महिला एवं बाल कल्याण मंत्री रहीं कृष्णा तीरथ ने कहा था कि महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घर के काम का मौद्रिक आंकलन किया जाना चाहिए और इस के बराबर मूल्य उन्हें अपने पतियों द्वारा मिलना चाहिए.

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भले ही गृहिणी को काम के लिए कोई मेहनताना न मिलता हो, मगर उस के द्वारा किया गया काम भी आर्थिक गतिविधियों में शामिल होता है और इसे भी राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाना चाहिए. ऐसा न कर हम आर्थिक विकास में महिलाओं की हिस्सेदारी कम कर रहे हैं.

हाउसवाइफ की फाइनैंशियल वैल्यू के संदर्भ में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी गौरतलब है. कोर्ट के अनुसार, एक हाउसवाइफ के काम को अनुत्पादक मानना महिलाओं के प्रति भेदभाव को दर्शाता है और यह सामाजिक ही नहीं, सरकारी स्तर पर भी है.

कोर्ट ने एक रिसर्च की भी चर्चा की, जिस में भारत की करीब 36 करोड़ हाउसवाइफ के कार्यों का वार्षिक मूल्य करीब 612.8 डौलर आंका गया है घरेलू काम की कीमत न आंके जाने के कारण ही महिलाओं की स्थिति उपेक्षित रही है. अत: इस ओर हर किसी को ध्यान देने की जरूरत है.

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कैसा हो हाउसवाइफ का वर्क मैनेजमैंट

शीला एक हाउसवाइफ है. उस की समस्या यह है कि वह कभी फ्री ही नहीं होती. उस की कामवाली बाई सुबह 9 बजे आती है पर 9 बजे तक वह न तो डस्टिंग कर पाती है न ही रसोई क्लीन कर के बरतन धोने के लिए रख पाती है. इस से कामवाली भी झुंझला जाती है. पर कामावाली बहुत फुरती से सारे काम कर के चली जाती है. सारे दिन घर के कामों में उलझी शीला समझ ही नहीं पाती कि आखिर उस का वक्त जाता कहां है?

शीला की ही तरह बहुत सी ऐसी हाउसवाइफ होंगी जिन की समस्या यही होगी कि घर पर ही रह कर घर के काम निबटाना कोई मुश्किल काम नहीं. बस जरूरत है थोड़े से वर्क मैनेजमैंट की.

सोशल साइट्स पर बिजी न रहें

जब शीला ने अपने पति से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि सुबहसुबह मोबाइल पर तुम्हारा बहुत वक्त बरबाद होता है. शीला को अपने पति की बात सही लगी. दरअसल, शीला की आदत थी कि सुबहसुबह सोशल साइट्स पर लाइक्स, कमैंट्स देखने और उन का जवाब देने में इतनी बिजी हो जाती कि उसे वक्त का पता ही नहीं चल पाता था.

जब शीला को उस की गलती मालूम हुई तो उस ने तुरंत वह सुधार किया और अब वह सुबह के बजाय सारा काम खत्म होने के बाद ही सोशल मीडिया पर ऐक्टिव होती है. अब उस का सारा काम समय पर होता है और वह पूरा दिन फ्री रहती है.

टाइमटेबल से बनेगी बात

मीनल के घर में कामवाली नहीं आती पर फिर भी उस का सारा काम 12 बजे तक खत्म हो जाता है, क्योंकि उस ने हर काम का समय तय कर रखा है कि उसे कितने वक्त में कौन सा काम निबटाना है. टाइमटेबल के हिसाब से किया गया काम हमेशा वक्त पर होता है और सारा दिन फ्री हो कर आप अपने लिए काफी वक्त निकाल सकती हैं. ऐक्स्ट्रा टाइम होने पर आप घर बैठे अपना कोई छोटामोटा होम बिजनैस भी शुरू कर सकती हैं.

सुबह जल्दी उठें

बहुत सी हाउसवाइफ की आदती होती है कि सुबह देर से उठती हैं या बच्चों को स्कूल भेज कर आलस में लेट जाती हैं जिस से कभीकभी गहरी नींद आ जाती है और बहुत देर हो जाती है. सुबह अगर देरी से काम शुरू होता है तो सारा दिन उलझन और झुंझलाहट के साथ बीतता है और खुद के लिए वक्त निकालना मुश्किल सा लगता है. इसलिए जल्दी उठने की आदत डालें और उठ कर वापस न सोएं तो आप के पास वक्त ही वक्त होगा.

ऐक्स्ट्रा कामों के लिए अलग से वक्त

रोज के काम के अलावा कुछ काम ऐसे भी होते हैं जो गृहिणी के लिए चुनौती होते हैं. बीना की आदत है कि वह जल्दी उठ कर जल्दीजल्दी अपना काम खत्म कर लेती है. बच्चों के स्कूल से आने के पहले जो वक्त उस के पास बचता है उस वक्त में वह ऐक्स्ट्रा काम जैसे वार्डरोब की सफाई कपड़ों को इस्तरी करना, हिसाबकिताब देखना जैसे काम करती है. इस से बिना अतिरिक्त लोड के सब काम हो जाता है और उस का घर कभी बिखरा हुआ नहीं रहता. चाहे किसी भी वक्त घर में मेहमान आएं वह हमेशा अपटूडेट रहती है.

काम सौंपना सीखें

यह केवल आप का घर नहीं है. सारा काम खुद पर न ओढ़ें. अपने पति और बच्चों को थोड़थोड़ा काम सौंप कर मदद लें. जैसे डस्टिंग के लिए या बाहर से कुछ सामान लाने को आप उन्हें कह सकती हैं. छुट्टी वाले दिन हाउसवाइफ पर काम का अतिरिक्त लोड होता है. ऐसे में सब को काम पर लगा कर मदद लेंगी तो बिना थके वक्त पर सब काम पूरे होंगे और आप परिवार के साथ खुल कर छुट्टी का मजा ले सकेंगी.

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