गृहिणी पूरे परिवार की धुरी होती है. खुद की परवाह किए बिना वह अपने पति, सासससुर और बच्चों की देखरेख में लीन रहती है. सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह सारे घर में घूमती और सब का ध्यान रखती गृहिणी के पास अपने लिए वक्त ही कहां होता है कि वह अपनी मनमरजी से थोड़ा वक्त निकाल कर अपना मनपसंद काम कर सके.
सारे परिवार की अपेक्षाएं पूरी करतेकरते उस की सारी जिंदगी बीत जाती है. अगर वह अपनी मनमरजी करने लगे तो यह सभी को अखरने लगता है. क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं? उस की अपनी इच्छाएं या आकांक्षाएं नहीं हो सकतीं? सब के लिए जीने वाली को क्या थोड़ा समय भी अपने लिए जीने का हक नहीं?
पति का एकाधिकार
हर पति की चाह होती है कि वह जब औफिस से घर आए तो पत्नी उस का पूरा खयाल रखे और अकसर हर पत्नी यह करती भी है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह पति के सोने तक हाथ बांध कर उस की जीहुजूरी करती रहे. विभा जो एक गृहिणी हैं उन की यही शिकायत है कि उन के पति का शादी के दूसरे दिन से यही रवैया है. उन्हें विभा का हर वक्त अपने आगेपीछे घूमना और जरूरत के वक्त उन की हर चीज हाजिर करना जरूरी है. यहां तक कि उन के सो जाने के बाद भी अगर वह कुछ पढ़नालिखना चाहे या संगीत सुनना चाहे तो उसे अगले दिन ताना सुनने को मिल जाता है.
इस सब से तंग आ चुकी विभा झल्ला कर कहती है कि मुझे जीने दो. मेरा अपना भी कोई वजूद है, अपनी इच्छाएं हैं, मुझे भी स्पेस चाहिए. मैं उन की पत्नी हूं कोई गुलाम नहीं.
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बच्चों की मनमानी
संगीता को पुराने हिंदी गीत सुनने का बेहद शौक है. वह अकसर अपने मोबाइल पर पुराने गीत, गजलें डाउनलोड कर के सुनना पसंद करती है. पर बच्चों को ये गीत बोरिंग लगते हैं. वे आपत्ति करते हैं तो संगीता का दिल टूट जाता है, पर जब पति और बच्चे घर में नहीं होते तो वह अपनी मनमरजी से जीती है, पुराने गीत सुनते हुए खुशीखुशी सारे काम करती है. पति और बच्चों के घर में न रहने पर उसे लगता है कि वह आजाद है. अपनी मरजी से अपना समय व्यतीत कर सकती है.
वह कहती, ‘‘सारे दिन में बस यही कुछ घंटे होते हैं जब मैं अपनी मनमरजी से जी सकती हूं. इस तन्हाई का भी अलग ही मजा होता है.’’
बच्चों की पढ़ाई
आजकल कंपीटिशन का जमाना है. सभी अभिभावक अपने बच्चों को सब से आगे देखना चाहते हैं. ऐसे में गृहिणी की जिम्मेदारी सब से ज्यादा अहम मानी जाती है. बच्चे का अच्छा या खराब प्रदर्शन गृहिणी की ही जिम्मेदारी मानी जाती है वरना यह सुनने को मिलता है कि सारा दिन करती ही क्या हो. बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दो. खासकर परीक्षा के दिनों में तो गृहिणी को ऐसा लगता है जैसे उसी की परीक्षा चल रही है और इस परीक्षा में अव्वल आने का पूरा दबाव उस के ऊपर होता है. इन दिनों तो वह सब से ज्यादा बंध जाती है.
परिवार का स्वास्थ्य
अगर बच्चे बीमार हो गए तो यह भी गृहिणी की गलती मानी जाती है कि उस ने ध्यान नहीं रखा. अगर वह रोज सादा खाना बनाए तो भी किसी को पसंद नहीं आता और अगर उस ने कभी कुछ स्पैशल बनाया और सब के पेट खराब हो गए तो भी उसे ही सुनने को मिलता है कि यह बनाने की क्या जरूरत थी. ऐसे में गृहिणियां कभीकभी उलझन में पड़ जाती हैं. एक तो सुबहशाम रसोई से छुट्टी नहीं मिलती ऊपर से कोई बीमार हो जाए तो भी उन्हीं की गलती.
अगर पति को अपने दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती का हक है और बच्चों को भी पर्याप्त स्पेस मिल जाती है, तो गृहिणी को क्यों नहीं? कुछ पल तो उसे भी अपने लिए जीने का पूरा हक है. उसे भी स्पेस चाहिए.