हमारे रिश्तेनाते हमारा सामर्थ्य होते हैं. इन में पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के प्रति विश्वास, प्रेम और अपनेपन पर आधारित होता है. दो अजनबी प्यार में पड़ कर विवाहित होते हैं और फिर एक तरह से उन के बीच एक अटूट प्रेम का रिश्ता पनपने लगता है. इसी से ही आगे चल कर स्नेह, प्रेम और अपनेपन की भावनाओं से रिश्तों का धागा बुना जाता है.
यह अपनापन ही हमारे मन को हमेशा से उमंग देता रहता है और यही अनुभूति पतिपत्नी के रिश्तों में भी होती है. इस रिश्ते में एक मन होता है विश्वास रखने वाला तो दूसरा मन होता है समझने वाला. कई बार पत्नी अपने पति के काम के बारे में, उस की अच्छीबुरी आदतों के बारे में, उस के स्नेहशील नेचर के बारे में बातें करती रहती है. उस का पति के प्रति प्रेम का अभिमान उस के चेहरे से साफ झलकता है, तो कई बार कामयाब पति के पीछे उस की पत्नी दृढ़ निश्चय से खड़ी रहती है. लेकिन क्या एक कामयाब पत्नी के पीछे, उस की सराहना करने के लिए पुरुष वर्ग भी आगे रहता है?
सिर्फ एक स्टैंप नहीं: समीक्षा गुप्ता
हकीकत में एक कामयाब पत्नी का पति होना गर्व की अनुभूति कराता है. ऐसा ही एक अनूठा रिश्ता है ग्वालियर की मेयर समीक्षा गुप्ता और उन के पति राजीव गुप्ता का. बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से इकोनौमिक्स में स्नातक समीक्षा मूलत: मध्य प्रदेश के राजगढ़ की हैं. शादी के बाद उन्होंने कई साल एक घरेलू महिला की तरह बिताए और अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभाया. फिर उन की सासूमां ने उन्हें कौरपोरेटर का चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया तो वे कौरपोरेटर हुईं. यहीं से समीक्षा के नए सफर की शुरुआत हुई. लेकिन समीक्षा ने कभी अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा नहीं किया.
चुनाव जीतने के बाद वे एक स्टैंप न रह कर वार्ड में लोगों के रुके हुए कामों व उन की परेशानियों की तरफ ध्यान देने लगीं. ऐसा कर के ही दूसरी पारी में भी वे अपने चुनाव क्षेत्र से जीतीं. इस के बाद ग्वालियर की जनता ने उन्हें मेयर की कुरसी पर बैठाया. एक कौरपोरेटर के तौर पर उन के काम सिर्फ अपने वार्ड तक ही सीमित थे, लेकिन मेयर होते ही पूरे ग्वालियर शहर के विकास के काम धड़ल्ले से करने शुरू कर दिए.
शहर का सौंदर्यीकरण, चौड़े रास्ते, पार्क, रोड, कन्यादान जैसी योजनाओं पर उन्होंने सफलतापूर्वक काम किया. इस दौरान उन्हें लोगों का विरोध भी सहना पड़ा. पति राजीव कहते हैं, ‘‘जब समीक्षा शहर या शहर के लोगों के बारे में कोई निर्णय लेती हैं तब वे सिर्फ एक शहर की मेयर होती हैं. बाहर के काम के बारे में या किसी समस्या के बारे में वे घर पर विचारविमर्श तो करती हैं, लेकिन अंतिम निर्णय खुद ही लेती हैं.
‘‘घर आने के बाद वे 2 बेटियों की प्यारी मां होती हैं, हमारे अम्मां, बाबूजी की बहू होती हैं. हमारा परिवार संयुक्त परिवार है. वे हर एक रिश्ते का मान रखती हैं. आज समीक्षा स्त्री भू्रण हत्या के साथसाथ महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर काम कर रही हैं, इस का मुझे गर्व है.’’
घर की छांव: छाया नागपुरे
एफआरआर फोरेक्स में सीनियर मैनेजर के पद पर आसीन छाया के पति विजय के चेहरे पर अभिमान स्पष्ट रूप से झलकता है. इस परिवार का बेटा यशराज और बेटी ऐश्वर्या के साथ खुद विजय इन सभी की सफलता का संगम छाया के असीम स्नेह की छांव में ही हो सका, ऐसा उन्हें लगता है.
पहली मुलाकात, पहली तकरार, पहला गिफ्ट, सालगिरह आदि बातें आमतौर पर सिर्फ महिलाओं को ही याद रहती हैं, लेकिन विजय ने उन के प्यार को 26 साल किस दिन हुए, यह बात बहुत ही गौरव से बताई.
उन की जिंदगी में छाया के आने के बाद सब अच्छा ही होता गया, ऐसा बताते हैं विजय. उन्होंने बताया कि छाया ने अपनी पढ़ाई बहुत ही प्रतिकूल हालात में पूरी की है. घर में ट्यूशन पढ़ा कर बी.एससी. पूरी की. उस के बाद विजय के अनुरोध पर उन्होंने लेबर स्टडीज विषय पर एम.एस. किया.
पहली ही नौकरी में उन्हें कामगारों द्वारा की गई हड़ताल की समस्या सुलझाने के लिए सिल्व्हासा में भेजा गया. उस वक्त वे अपनी छोटी बेटी और पति को साथ ले कर गई थीं. वहां पर कामगारों ने उन के साथ अच्छा बरताव नहीं किया था. ‘एक औरत हमारी समस्याएं क्या हल करेगी.’ यही भाव उस वक्त उन के चेहरों पर थे. तब छाया ने वहां का माहौल हलका करने के लिए कहा कि मैं अपने पति और बेटी को ले कर आप के शहर आई हूं. आप का शहर कैसा है यह तो दिखाइए. यह कहने के बाद वहां का माहौल हलका हुआ और मालिक और कामगारों के बीच का तनाव कम हुआ.
विजय कहते हैं कि आज भी परिवार के सगेसंबंधी अपनी समस्याएं ले कर छाया के पास आते हैं तब छाया उन्हें ‘मैं जो कहती हूं वह करना ही चाहिए’ न कह कर उस बात के फायदे और नुकसान के विकल्प उन के सामने रखती हैं. इस से अपनी समस्याओं का हल उन्हें वहीं मिल जाता है. कभीकभी सामने वालों से डीलिंग करते वक्त उन्हें कठोर कदम भी उठाना पड़ता है. इस बारे में छाया खुद कहती हैं, ‘‘आखिर मैं ह्यूमन रिसोर्स यानी व्यक्तियों के साथ डील करती हूं. हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता.
संवाद साधने वाली: लीना
लीना प्रकाश सावंत. लीना यानी नम्र. लेकिन नाम में नम्रता होते हुए भी कहां पर नम्र होना है और कहां पर प्रतिकार करना है, इस की जानकार लीना सावंत के पति कंस्ट्रक्शन के बिजनैस में हैं. कौमर्स से स्नातक लीना नौकरीपेशा प्रकाश सावंत के साथ शादी होने के बाद जब गोवा, पूना घूम रही थीं, तो वहां भी वे समय का सदुपयोग करने के लिए छोटीमोटी नौकरी कर रही थीं.
लेकिन प्रकाश ने जब नौकरी छोड़ कर बिजनैस करने का फैसला कर लिया तब लीना ने उन की कल्पनाओं को साकार करने में मदद की और खुद भी बिजनैस में ध्यान देने लगीं. इस के बारे में प्रकाश ने कहा कि सब से पहले हमें वोडाफोन के ग्लो साइन एडवरटाइजमैंट का कौंट्रैक्ट मिला था. तब आर्थिक प्रबंधन व बाकी सभी कामों की जिम्मेदारी लीना ने स्वयं ही अपने कंधों पर ली थी. इंटरनैशनल क्रिएशन नाम की उन की कंपनी ग्लो साइन बोर्ड में टौपर कंपनी है.
आज उन के घर का इंटीरियर हो या बच्चों का कमरा, हर एक चीज उन्होंने अपनी बेहतरीन कल्पना से डिजाइन की है. आज उन का बड़ा बेटा प्रसाद यूएस में शिक्षा ले कर उन के बिजनैस में मदद कर रहा है, तो दूसरा बेटा केदार इकोल मोंडेल जैसे मशहूर स्कूल में पढ़ रहा है. बच्चों की पढ़ाई घर की जिम्मेदारियां संभालते हुए लीना आज बिजनैस में पति की खूब मदद कर रही हैं.
बदलते समय के कदमों को भांप कर 2006 में प्रकाश सावंत ने कंस्ट्रक्शन के कारोबार में कदम रखा तब लीना उन के पीछे खड़ी रहीं. आज भी कारोबार की रूपरेखा तय करते वक्त सब से पहले लीना के सुझाव ध्यान में रखे जाते हैं.
कई बार हंसीमजाक में कहा जाता है कि आप सुखी हैं या शादीशुदा हैं? लेकिन इन पतियों का उन के बैटर हाफ के बारे में झलकता हुआ प्यार, विचार और विश्वास देख कर हम कह सकते हैं कि कामयाब महिलाओं के कारण ही उन का जीवन अधिकतम समृद्ध और खुशहाल हो पाया.