रेटिंग: 3 स्टार
निर्माता: सोनी पिक्चर्स और विक्रम मल्होत्रा
निर्देशक: अनू मैनन
कलाकार : विद्या बालन, जिस्सू सेन गुप्ता, सान्या मल्होत्रा, अमित साध और आदि चुघ
अवधि : 2 घंटे 7 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म – अमेजॉन प्राइम
‘ह्यूमन कंप्यूटर’ के रूप में मशहूर रही गणितज्ञ ,ज्योतिषाचार्य व लेखक शकुंतला देवी के जीवन व कृतित्व पर फिल्म ‘शकुंतला देवी’ एक बायोपिक फिल्म है. यह एक अलग बात है कि फिल्म की शुरुआत में ही इसे कुछ सत्य घटनाक्रमों पर आधारित बताया गया है. यानी कि लेखक निर्देशक ने सिनेमाई स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग किया है. इस रहा लेखक व निदेशक ने मशहूर गणितज्ञ शकुंतला देवी के साथ अन्याय ही किया है.
कहानी:
फिल्म की कहानी शुरू होती है शकुंतला देवी की बेटी अनुपमा बनर्जी ( सान्या मल्होत्रा) द्वारा अपनी मां के खिलाफ लंदन में अपराधिक मामला दर्ज कराने से. फिर कहानी अतीत में शकुंतला के बचपन से शुरू होती है. 6-7 वर्ष की उम्र में शकुंतला देवी द्वारा गणित के प्रश्नों को चुटकी में हल करने की बात उजागर होने पर शकुंतला के पिता शकुंतला के शो आयोजित कर पैसा कमाने लगते हैं . शकुंतला की बड़ी बहन शारदा की मौत के बाद शकुंतला अपने माता-पिता से नाराज होती है और नफरत करने लगती हैं. युवावस्था में पहुंचते ही शकुंतला देवी ( विद्या बालन ) अकेले लंदन जाकर ताराबाई (शीबा चड्ढा) के गेस्ट हाउस में रहते हुए करतार (आदि चुप) और स्पेन के नागरिक अवेयर (लुका कालवानी) के संपर्क में आती हैं. लंदन सहित कई शहरों में वह अपने गणित के शो करती हैं .धन व शोहरत कमाती है. वापस मुंबई आ जाती है, जहां एक पार्टी में परितोष बनर्जी (जिस्सू सेन गुप्ता) से मुलाकात होती है. दोनों शादी कर लेते हैं. एक बेटी अनुपमा को जन्म देने के बाद फिर लंदन चली जाती है.कुछ समय बाद पति से झगड़े हो जाते हैं, बेटी अनुपमा को लेकर वह लंदन चली जाती हैं.अनुपमा की परवरिश एक कड़क मां के रूप में करती है, जिसके चलते अनुपमा के मन में अपनी मां शकुंतला के खिलाफ नफरत जन्म लेती है.जब अनुपमा अपने प्रेमी अजय अभय कुमार (अमित साध) से शादी करने का निर्णय लेती है तो शकुंतला विरोध करती है.जब अनुपमा भी एक बेटी की मां बन जाती है, उसके बाद उन्हें पता चलता है कि शकुंतला देवी ने आर्थिक रूप से उन्हें पूरा बर्बाद कर दिया है. तब वह अपनी मां के खिलाफ अपराधिक मुकदमा दर्ज कराती हैं. जब अनुपमा और शकुंतला मिलती है, तो दोनों के बीच जमी नफरत की बर्फ पिघलती है और दोनों की समझ में आता है कि मां को सिर्फ मां नहीं एक औरत की तरह भी देखना चाहिए.
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लेखन व निर्देशन:
यह फिल्म बायोपिक होते हुए भी बायोपिक नहीं है. लेखक व निर्देशक अनू मेनन ने सिनेमाई स्वतंत्रता लेते हुए इस कहानी में शकुंतला देवी के अपने माता पिता, अपने पति और बेटी से तनाव के साथ शकुंतला देवी ने एक गांव से निकलकर जिस तरह अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की, उसको दिखाते हुए शकुंतला को अहंकारी , खुद की जिंदगी बेझिझक जीने वाली औरत के रूप में ही पेश किया है.
एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व पुरस्कृत हस्ती के ग्रे / स्याह पक्ष के चित्रण पर कुछ लोगों का एतराज हो सकता है. अनु मेनन का लेखन और निर्देशन दोनों बहुत सतही है. कहानी के वर्तमान से अतीत में जाने और फिर वर्तमान में आने में काफी कंफ्यूजन पैदा करती है.
फिल्म में शकुंतला देवी के गणितज्ञ के रूप में स्थापित होने को ज्यादा जगह नहीं दी गयी है, बल्कि निजी रिश्तो पर ज्यादा केंद्रित किया गया है ,यह भी लेखन व निर्देशन की कमी है. अनु मेनन ने शकुंतला देवी के कई अहम घटनाक्रमों को नजरअंदाज कर अन्याय किया है.
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अभिनय :
अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली, अपने पति के होमोसेक्सुअलिटी को स्वीकार करने वाली महान गणितज्ञ शकुंतला देवी के किरदार को निभाते हुए विद्या बालन ने शानदार अभिनय किया है.
वह पूरी फिल्म को अकेले अपने कंधों पर लेकर चलती हैं और दर्शकों का मन मोह लेती हैं. स्वतंत्र ,सशक्त व आत्मनिर्भर नारी को जिस तरह से पर्दे पर विद्या बालन ने अपने अभिनय से संवारा है, उसके लिए वह तारीफ के काबिल हैं.
इसके अलावा जिस्सु सेनगुप्ता, अमित साध, सान्या मल्होत्रा ने भी प्रभावशाली अभिनय किया है.ताराबाई के छोटे किरदार में शिवा चड्ढा प्रभाव छोड़ जाती हैं. नील भूपालन, आदि चुप के किरदार काफी छोटे हैं.
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