हमदर्द

पूर्व कथा

पति की मृत्यु के बाद एकमात्र सहारा बचा था, बिल्लू. बेटे को पालपोस कर बड़ा करना यही एकमात्र ध्येय रह गया था कावेरी के लिए.

लेकिन ज्योंज्यों बिल्लू बड़ा होता गया कावेरी ने महसूस किया कि उस के मन में मां के लिए कोई लगाव, प्यार नहीं है.

बेटा जैसा भी व्यवहार करे लेकिन मां होने के नाते वह उस का बुरा सोच भी नहीं सकती थी. अब मन में यही आशा शेष बची थी कि बहू के आने से शायद उस के घर की वीरानी दूर हो जाएगी लेकिन उस पर तब वज्रपात हुआ जब बिल्लू ने बताया कि वह कोर्ट मैरिज कर के बहू घर ला रहा है. घर की नौकरानी जशोदा जो कावेरी का पूरा ध्यान रखती थी, वह भी बिल्लू के इस रवैए को गलत ठहराती है.

बिल्लू अपनी नवब्याहता को घर लाता है. जींस टीशर्ट पहने बहू अनजान सी कमरे में घुस जाती है. कावेरी हैरान होती है कि किस तरह की लड़की है. तमीज, संस्कार कुछ भी नहीं हैं. रोज बेटाबहू नाश्ता करते और आफिस निकल जाते. अब आगे…

गतांक से आगे…

अंतिम भाग

सासबहू दोनों उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के निवासी हैं तो निकटता आएगी कहां से? जो भी हो समय रुकता नहीं, हर रात के बाद तारीख बदलती है और हर महीने के बाद पन्ना पलट जाता है. कलर बदल कर दूसरा लगा और उस के भी कई पन्ने बदल गए. तभी अचानक एक दिन कावेरी को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है. जो गाड़ी सीधी सपाट पटरी पर दौड़ रही थी वह अब झटके खाने लगी है.

जशोदा कमरे में थाली दे आती है. बेटा तो अब भी घूमने निकल कर जाता तो रात में खा कर आता है पर बहू घर में ही रहती है. कभीकभार गई तो जशोदा से बोल जाती है कि उस का खाना न रखे. बहू में कोई भी अच्छाई नहीं थी, औरतों में जो सहज गुण होते हैं वह भी उस में नहीं थे पर एक बात अच्छी थी जो कावेरी को पसंद थी. वह यह कि बहू बहुत मीठा बोलती थी. एक तो वह बोलती ही कम थी, कभी पति या जशोदा से बोली भी तो इतनी धीमी आवाज में कि अगले को सुनने में कठिनाई हो. पर अब कभीकभी बंद दरवाजे के उस पार से उस की आवाज बाहर आ कर कावेरी के कानों से टकराती. शब्द तो समझ में नहीं आते पर वह उत्तेजित है, गुस्से में है यह समझ में आता है. यह झल्लाहट भरा स्वर सीधेसीधे मनमुटाव का संकेत है. कावेरी इतना अवश्य जान जाती.

कावेरी चिंता में पड़ गई. शादी को थोड़े दिन ही हुए हैं और अभी से आपसी झगड़ा. यह कोई अच्छी बात तो नहीं है. बेटा बदमिजाज के साथ स्वार्थी भी है यह तो जानती है पर मां के साथ जैसा किया वैसा पत्नी के साथ नहीं चल सकता, इतनी सी बात वह न समझे इतना तो मूर्ख नहीं.

अरे, मां से जन्म का बंधन है, हजार अपमान सह कर भी बेटे को छोड़ कर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठेंगे लेकिन पत्नी तो औपचारिकता के बीच बंधा रिश्ता है, जब चाहे तोड़ लो. उस पर अपना रौबदाव चलाने का प्रयास करेगा तो वह क्यों सहेगी, उस पर बराबर की कमाने वाली पत्नी.

गलती बहू की ही है यह कौन जाने? और जान कर होगा भी क्या? उन का जीवन वे जी रहे हैं, अपना जीवन कावेरी जी रही है. यही तर्क दे कर अपने मन को शांत करती. पर यह एक कांटा उस के मन को चुभता रहता कि पल्ला झाड़ लेने से समस्या का समाधान नहीं होता…बहू सुंदर एकदम नहीं, उसे पसंद भी नहीं, चेहरामोहरा जैसा भी हो कावेरी को उस की आंखें पसंद थीं. बड़ीबड़ी 2 उजली आंखों में जीवन का सपना भरा रहता था. अब वह आंखें बुझीबुझी सी हो गई हैं. ऐसा क्यों हुआ? यह तो प्रेमविवाह है. एकदूसरे को जांचपरख, समझबूझ कर दोनों विवाह तक पहुंचे हैं. थोपी हुई शादी नहीं थी कि एकदूसरे को समझने का अवसर नहीं मिला. फिर ऐसा क्यों हुआ? 2 साल भी नहीं हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षण ही समाप्त हो गया. अभी तो सामने पूरा जीवन पड़ा है. ऐसे क्या ये सारा जीवन काटेंगे. अपनीअपनी धुन पर चलने लगे तो जीवन की गाड़ी चलेगी कैसे? विराग, विद्वेष का कारण क्या है पता चले तो समझाया भी जा सकता है पर अंधेरे में वह तीर चलाएगी किधर?

जशोदा से कुछ कहना बेकार है. वह तो पहले से ही जलीभुनी बैठी है. रोज एक बार यह जरूर कहती है कि आंटी, इन को अपने घर से भगाओ. इन से तो किराएदार भले जो किराया भी देंगे, देखभाल भी करेंगे.

पहले ही दिन से उस ने बहू से एक दूरी बना ली थी और उसे बराबर बना कर रखा था. सोचा था नई बहू है, दूरी को मिटाने के लिए पहल करेगी पर नहीं, अब तक उस ने दूरी मिटाने की पहल करना तो दूर उस दूरी की दीवार पर पक्के पलस्तर की परत चढ़ा दी. लेकिन हालात ने करवट ली, बहू की दूरी मिटाने के लिए उसी को पहल करनी पड़ी. वह रोज सुबह पार्क से घंटे भर में टहल कर लौट आती है पर उस दिन पार्क के लिए श्रमदान का कार्यक्रम चल रहा था इसलिए लौटने में 3 घंटे लग गए. घर के अंदर पैर रखते ही मन धक्क सा कर उठा, एक अनजान आशंका से पीडि़त हो उठी वह. वैसे तो उस का घर शांत ही रहता है पर आज उसे घर के अंदर अजीब सा सन्नाटा लगा.

बेटे के कमरे का दरवाजा पूर्व की भांति बंद है पर जशोदा का पता नहीं कि वह कहां है.

पहले कावेरी ने कमरे में जा कर कपड़े बदले फिर चाय के लिए जशोदा को खोजती हुई पीछे के बरामदे में आई तो देखा जशोदा वहां छोटी चौकी पर सिर पकड़े बैठी थी. उसे देखते ही वह रो पड़ी, ‘‘घर बरबाद हो गया, मांजी.’’

सन्न रह गई कावेरी.

‘‘क्या हुआ? रो क्यों रही है?’’

‘‘भैया घर छोड़ गया.’’

‘‘क्या? क्या दोनों चले गए?’’

‘‘नहीं…केवल भैया गया है. वह रानीजी तो कमरे में सो रही हैं. आंटी, आप के जाने के बाद दोनों में खूब झगड़ा हुआ. भैया अपने कपड़े 2 अटैचियों में भर कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया.’’

अब कावेरी भी उसी चौकी पर बैठ गई.

‘यह घटना तो सोच के बाहर की है. पढ़ने, सुनने और देखने में यही आता है कि बहू को घर से निकाला गया है पर पत्नी को घर में रख कर पति घर छोड़ गया, ऐसी घटना तो कभी देखी या सुनी नहीं.’ जशोदा चाय का पानी रखते हुए बड़बड़ा रही थी, ‘बेचारा करेगा भी क्या? यह औरत है ही पूरी मर्दमार.’

कावेरी ने डांटा, ‘‘चुप कर. यह मर्दमार हो या न हो पर वह पूरा शैतान है.’’

‘‘यह उस का घर है, वह क्यों जाएगा घर छोड़ कर. तुम इसे निकालो घर से तब भैया लौटेगा. न रंग, न रूप, न अदब न कायदा…आसमान पर पैर धर कर चलती है.’’

‘‘अब तू चुप भी करेगी या नहीं? कुछ खाया इन लोगों ने?’’

‘‘नहीं, पहले लड़ते रहे फिर भइया चला गया.’’

‘‘चाय बना कर खाना तैयार कर. 11 बजने को हैं. चाय 2 कप बनाना.’’

टे्र में 2 प्याली चाय ले कर कावेरी अंदर आई और स्टूल पर टे्र रख दी. कावेरी को देखते ही रीटा ने सिर झुका लिया. आज कावेरी ने इतने दिनों में पहली बार बहू को नजर भर देखा. इतने दिन मन में इतना विराग था कि मुंह देखने की इच्छा ही नहीं हुई. आज मैक्सी पहने, सिर झुका कर बैठी बहू बड़ी असहाय और मासूम लग रही थी. कावेरी के मन में टीस उठी. कुछ  भी हो, कैसे भी घर की बेटी हो पर उस का बेटा इसे पत्नी का दर्जा दे कर घर लाया है, उस की पुत्रवधू है और यह परिचय समाज ने स्वीकार भी कर लिया है तो कितनी भी अलगथलग रहे, है तो उस के परिवार का हिस्सा ही…और चूंकि वह इस परिवार की मुखिया है तो परिवार के हर सदस्य के सुखदुख का दायित्व उस का ही है.

कावेरी ने पहली बार बहू के सिर पर अपना हाथ रखा और नरम स्वर में बोली, ‘‘चाय पी लो, बेटी.’’

उस की आंखें डबडबा गईं. रुलाई रोकने के लिए दांतों तले होंठ दबाया, पर चाय उठा ली और धीरेधीरे पीने लगी. कावेरी ने अपना कप उठा लिया और उस के पास बिस्तर पर बैठ गई और बहू की तरह पैर लटका कर वह भी चाय पीने लगी. चाय समाप्त कर दोनों ने कप टे्र में रख दिए. तब कावेरी बोली, ‘‘बताओगी कि तुम दोनों का झगड़ा क्या है?’’

यह सुन कर उस का सिर और झुक गया.

‘‘चिंता मत करो,’’ कावेरी ने बहू को समझाते हुए कहा, ‘‘ऐसा कभीकभी हो जाता है. बिल्लू को गुस्सा जल्दी आता है तो उतर भी जल्दी जाता है. देखना कल ही आ जाएगा.’’

वह इतना सुन कर सुबक उठी और बोली, ‘‘अब वह नहीं आएगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’ चौंकी कावेरी, ‘‘लौटेगा क्यों नहीं?’’

‘‘झगड़ा तलाक को ले कर हो रहा था.’’

‘‘तलाक, पर क्यों?’’

‘‘वह मांग रहा था और मैं दे नहीं रही थी इसलिए.’’

‘‘क्या कह रही हो? तुम दोनों ने तो अपनी पसंद से शादी की थी. क्या तुम्हारे बीच प्यार नहीं था?’’

‘‘प्यार तो था तभी तो भरोसा किया था. पर उस के आफिस में एक नई रिसेप्शनिस्ट आई है और अब बिल्लू उसे पसंद करने लगा है. कह रहा था कि मुझ से तलाक ले कर उस से शादी करेगा.’’

यह सुन कर जलभुन गई कावेरी.

‘‘शादी मजाक है क्या और मेरा घर भी होटल नहीं कि जब जिसे चाहे ले कर आ जाए. अब गया कहां है.’’

‘‘तलाक नहीं मिला तो किराए पर एक फ्लैट लिया है. वे दोनों वहीं लिव टू गेदर करेंगे.’’

कावेरी के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई.

‘‘बिना विवाह किए ही साथ रहेंगे?’’

‘‘आजकल बहुत से युवकयुवतियां इस तरह साथ रह रहे हैं.’’

दोनों देर तक चुप रहीं. फिर रीटा बोली, ‘‘आप से एक प्रार्थना है.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘आप मां हैं पर मैं ने आप को कभी सम्मान नहीं दिया. मां कहने का अधिकार भी नहीं लिया पर आप से विनती है कि कुछ दिन मुझे अपने घर रहने देंगी?’’

‘‘यह…यह तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मांजी, मेरे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है. खोजने में थोड़ा समय लगेगा…तब तक…’’

‘‘तुम्हारे मातापिता?’’ कावेरी ने बीच में उस की बात काटते हुए पूछा.

‘‘मैं अनाथ आश्रम में पली हूं. मातापिता कौन हैं? हैं भी या नहीं, मुझे नहीं पता. आश्रम अच्छे स्तर का था. मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी तो ट्रस्ट ने मुझे पढ़ाया. स्कालरशिप भी मिलती थी. बी.एससी. के बाद कंप्यूटर की डिगरी ली. चाहती थी डाक्टर बनना पर ट्रस्ट ने इतनी लंबी पढ़ाई की जिम्मेदारी नहीं ली. इस के बाद मुझे यह नौकरी मिल गई. मुझे 20 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है सो कहीं भी किराए पर घर ले सकती हूं पर डर लगता है सुरक्षा कौन देगा. मैं लड़कियों के किसी होस्टल की तलाश में हूं, मिलते ही चली जाऊंगी. बस, तब तक…’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो. तुम इस घर में ब्याह कर आई हो. इस घर की बहू हो तो मेरे रहते तुम अकेले किराए के घर में रहोगी?’’

इतनी देर में झरझर रो पड़ी रीटा. कावेरी का मन ममता से भर उठा. उसे लगा कि वह उस की अपनी बेटी है. उस ने रीटा को स्नेह से सीने से लगा लिया और बोली, ‘‘रोना नहीं. कभी मत रोना. आंसू औरत को कमजोर करते हैं और कमजोर पर पूरी दुनिया हावी हो जाती है, चाहे वह पति हो या बेटा. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम मेरे पास ही रहोगी, कहीं नहीं जाओगी.’’

रीटा ने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘अगर बिल्लू लौट आया और घर छोड़ने को बोला तो?’’

‘‘बेटी, यह घर मेरा है, उस का नहीं. इस में कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा इस का फैसला मैं करूंगी. हां, शराफत के साथ लौटे और हमारे साथ समझौता कर के रहना चाहे तो वह भी रहे.’’

‘‘मांजी, मैं उसे कभी तलाक नहीं दूंगी, यह तो तय है.’’

‘‘कभी मत देना. देखो, उस ने मेरा बहुत अपमान, अनादर किया है पर मैं ने उसे घर से नहीं निकाला. जानती हो क्यों? वह इसलिए कि 2 प्राणियों का परिवार, एक गया तो बचेगा क्या? अब वह खुद घर छोड़ गया है. अब लौटना है तो हमारी शर्तों पर लौटेगा नहीं तो जाए.’’

‘‘पर वह जबरदस्ती…’’

‘‘घर में फोन है और पुलिस थाना भी दो कदम पर है. चलो उठो, नहाधो कर खाना खाओ.’’

रीटा अपनी सास से लिपट गई. आज उसे पहली बार महसूस हुआ कि मां का प्यार व स्नेह क्या होता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें