मेरे पति ‘मम्माज बौय’ हैं, जिसके कारण मैं बहुत परेशान हूं?

सवाल-

28 वर्षीय महिला हूं. पिछले साल ही शादी हुई थी. शादी के बाद ससुराल आई तो 2-3 दिन में ही सम झ गई कि पति ‘मम्माज बौय’ हैं. वे अपनी मां से पूछ कर ही कोई काम करते हैं और मेरी एक भी बात नहीं मानते. खाने से ले कर परदे के रंग तक का चयन मेरी सास ही करती हैं और मेरी बातों को जरा भी अहमियत नहीं देतीं. इस से मैं काफी तनाव में रहती हूं. सम झ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब-

अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप के पति सम झदार हैं और इसीलिए वे नहीं चाहते होंगे कि अचानक मां को नजरअंदाज कर आप की बातों को उन के सामने ज्यादा तवज्जो दें. इस से घर में अनावश्यक ही तनाव भरा माहौल हो जाएगा.

आप को धीरेधीरे समय के साथ घर में अपनी जगह बनानी चाहिए. बेहतर होगा कि आप अपनी सास को सास नहीं मां सम झें. उन के साथ खाली वक्त में साथ बैठें, टीवी देखें, शौपिंग करने जाएं, उन की पसंद की ड्रैस खरीद कर उन्हें दें. घर के कामकाज में उन की सहायता करें.

जब आप की सास को यह यकीन हो जाएगा कि अब आप अच्छी तरह से गृहस्थी संभाल सकती हैं, तो धीरेधीरे वे आप को पूरी जिम्मेदारी सौंप देंगी.

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नेहा की नई-नई शादी हुई है. वह विवाह के बाद जब कुछ दिन अपने मायके रहने के लिए आई तो उसे अपने पति से एक ही शिकायत थी कि वह उस का पति कम और ‘मदर्स बौय’ ज्यादा है. यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है? उस का जवाब था कि वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए मां पर निर्भर है. वह उस का कोई काम करने की कोशिश करती तो वह यह कह कर टाल देता कि तुम से नहीं होगा, मां को ही करने दो.

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आखिर तुम दिनभर करती क्या हो

मुझे आज से अधिक सुंदर वह कभी न लगी. उस की कुछ भारी काया जो पहले मुझे स्थूल नजर आती थी आज बेहद सुडौल दिखाई दे रही है. बालों का वह बेतरतीब जूड़ा जिस की उलझी लटें अकसर उस के गालों पर ढुलक कर मेरे झल्लाने की वजह बनती थीं आज उन्हें हौले से सुलझाने को जी चाह रहा था. उस का वह सादा लिबास जिस को मैं कभी फूहड़, गंवार की संज्ञा दिया करता था आज सलीकेदार लग रहा था.

मैं अचंभित था अपनी ही सोच पर क्योंकि मेरे दो बच्चों की मां, मेरी वह पत्नी आज मुझे बेहद हसीन लग रही थी. भले ही आप को यह अतिश्योक्ति लगे पर मुझे कहने से गुरेज नहीं कि वह मुझे किसी कवि की कल्पना की खूबसूरत नायिका सी आकर्षक प्रतीत हो रही थी जिस का रूपसौंदर्य बड़ेबड़े ऋषिमुनियों की तपस्या को भंग करने की ताकत रखता था. आज उसे प्रेम करने की अभिलाषा ने मेरे अंतरमन को हुलसा दिया था.

ऐसा नहीं था कि पत्नी के प्रति विचारों ने पहली बार मेरे दिल पर दस्तक दी थी. 12 वर्ष पूर्व जब छरहरी सुंदर देहयष्टि वाली नंदिनी मेरी संगिनी बनी थी तो मैं अपनी किस्मत पर फूला न समाया था. कजिन की शादी में होने वाली भाभी की सांवलीसलोनी बहन के कमर तक लहराते केशों को देखते ही मैं अपनी सुधबुध खो बैठा था और स्वयं ही मां के हाथों उस के घर विवाह प्रस्ताव भिजवा दिया था.

जिंदगी की गाड़ी बड़ी खुशीखुशी चल रही थी कि दोनों बच्चों के जन्म के बाद उस की प्राथमिकताएं जैसे बदलने लगीं. मेरी बजाय अब वह बच्चों को काफी वक्त देने लगी. अपनी ओर से बेपरवाह हो कर अकसर वह घर के कामों में लगी रहती. धीरेधीरे उस के शरीर में आते परिवर्तन ने भी उस के प्रति मेरी विरक्ति को बढ़ा दिया.

मेरे सारे कार्य वह अब भी सुचारु रूप से किया करती. लेकिन मुझे अब उस में वह कशिश दिखाई न देती और मैं उस से चिढ़ाचिढ़ा सा रहता. घरगृहस्थी के कामों से फुर्सत हो जब रात को बिस्तर पर वह मेरा सानिध्य चाहती तो उस के अस्तव्यस्त कपड़ों से आती तेलमसालों की गंध मुझे बेचैन कर देती और मैं उसे बुरी तरह झिड़क देता.

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अब किसी फंक्शन या पार्टी में भी उसे अपने साथ ले जाने से मुझे कोफ्त होती, क्योंकि अपने दोस्तों की फैशनेबल, स्लिमट्रिम व स्मार्ट बीवियों की तुलना में वह मुझे गंवार दिखाई देती जिसे न कपडे़ पहनने की तमीज थी और न ही सजने का सलीका. कभीकभी मैं उस पर झल्ला पड़ता कि दूसरों की बीवियों को देखो कैसे सजसंवर कर कायदे से रहती हैं और एक तुम हो कि तरीके से कभी बाल भी नहीं बनातीं. आखिर घर पर बैठेबैठे दिनभर तुम करती क्या हो?

अगर मुझे मालूम होता कि तुम इतनी आलसी होगी तो तुम से शादी कर मैं अपनी जिंदगी कभी बर्बाद नहीं करता. मेरी झल्लाहट पर उस की आंखों के कटोरे छलकने को हो आते और उस के होंठों पर चुप्पी की मुहर लग जाती. तब मैं गुस्से से पैर पटकता बाहर निकल जाता और यहां वहां बेवजह भटकता देर रात ही घर में दाखिल होता और वह चेहरे पर बगैर कोई शिकन लाए मेरा खाना गरम कर मुझे परोस देती.

ऐसा नहीं कि उस ने मेरे मुताबिक अपने आप को कभी ढालने की कोशिश नहीं की. लेकिन जब भी वह ऐसा कुछ करती मुझे वह और भी गईगुजरी नजर आती. धीरेधीरे मेरे रवैए से दुखी हो कर उस ने अपने आप को बच्चों की परवरिश व घर की जिम्मेदारियों में समेट लिया और उस के साथ ही शादी को मैं अपनी फूटी किस्मत मान अपने भाग्य को कोसता रह गया.

इसी बीच आया कोरोना

इस बीच कोरोना के कहर से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा उठी. आमजन की सुरक्षा के मध्यनजर सरकार द्वारा लौकडाउन की घोषणा कर दी गई. इसे भी नियति का एक कुठाराघात समझ मैं ने दुखी मन से स्वीकार किया, क्योंकि अब 24 घंटे अपनी फूहड़ पत्नी के साथ उस का चेहरा देखते हुए बिताना था. कुछ दिन यों ही गुजर गए. कुछ देर टीवी देख कर और कुछ देर बच्चों के साथ मस्तीमजाक में मैं अपना वक्त बिताता. यारदोस्तों के साथ मोबाइल पर बात कर के भी मेरा थोड़ा समय बीत जाता.

शाम का वक्त मुझे अपनी मां के साथ बिताना अच्छा लगता. पर उन के ऊपर नंदिनी

ने न जाने क्या जादू कर रखा था कि वे हमेशा उस की तारीफों के पुल बांधा करतीं और मैं अनमना हो कर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ जाता जहां रात से पहले नंदिनी का प्रवेश न के बराबर होता.

2 दिन से मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. हलकी हरारत के साथ शरीर में टूटन थी. हालांकि रात को क्रोसिन लेने से बुखार तो फिलहाल ठीक था पर सिर दर्द से जैसे फटा जा रहा था. रात में अच्छे से नींद न आने के कारण भी शरीर निस्तेज जान पड़ता था.

जैसेतैसे फै्रश हो कर मैं ने चाय पी और थोड़ा सा नाश्ता किया. मेरी तबियत खराब जान नंदिनी मेरे सिरहाने बैठ कर मेरा सिर दबाने लगी. न जाने क्यों अरसे बाद उस के हाथों का स्पर्श मुझे बहुत अच्छा लग रहा था या इतने दिनों से घर पर रहने के कारण शायद उस के प्रति मेरा नजरिया बदल रहा था. कारण कोई भी हो, उस की इस जादुई छुवन ने मेरा सिरदर्द काफी हद तक कम कर दिया और कुछ ही देर में मुझे गहरी नींद आ गई. इस वक्त नंदिनी ने मेरा बहुत ध्यान रखा. इस बीच उस के स्नेहसिक्त सामीप्य ने मुझ में जैसे एक नई शक्ति का संचार कर दिया था. उसे सहज रूप से तल्लीनतापूर्वक घर के काम करते देख मुझे अच्छा लगने लगा था.

खुद से हुआ शर्मिंदा

आज शाम कुछ देर पहले अपने दोस्तों से फोन पर मेरी बात हुई थी. आश्चर्य की बात थी उन में से ज्यादातर अपनी पत्नियों से दुखी थे और जल्द से जल्द लौकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. वे बता रहे थे कि किस तरह बाईयों के न आने से उन की पत्नियों ने उन का जीना दूभर कर दिया है. घर के ज्यादातर काम उन्हें थमा कर वे स्वयं टीवी या मोबाइल पर अपना पूरा समय बिताती हैं. न समय पर खाना बनता है और न ही बच्चों पर ध्यान दिया जाता है.

उन से बात करतेकरते अचानक मेरी नजर नंदिनी पर जा टिकी जो मेरी मां और बच्चों के साथ हौल में बैठी राजा, मंत्री, चोर, सिपाही खेल रही थी. कभी राजा बन कर वह सब पर हुकुम चलाती तो कभी चतुर मंत्री बन चोर को झट से पकड़ लेती. कभी सिपाही की पर्ची मिलते ही मुसकरा उठती तो कभी चोर बन कर मंत्री को बरगलाने की पूरी कोशिश करती. उस वक्त सभी के खिलखिलाते चेहरे देख कर मेरे मन को कैसा सुकून मिला, मैं बता नहीं सकता.

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थोड़ी देर बाद बच्चे अपनी दादी से कहानी सुनने में व्यस्त हो गए और मेरी नजर चौके में चाय बनाती अपनी पत्नी पर फिर जा टिकी. आखिर उस की गलती ही क्या थी. अपने आप को भूल कर उस मासूम ने मेरे घरपरिवार और बच्चों को संभाला था. मेरी बीमार मां की तनमन से सेवा की थी. अगर उस वक्त मैं ने थोड़ा भी उस का हौसला बढ़ाया होता तो शायद वह आज अपने प्रति भी जागरूक रहती.

हलके पीले रंग के सलवारकुरते में उसे देख मुझे बचपन के अपने घर के बगीचे का ध्यान हो आया. जिस में बने लौन के चारों किनारों पर मांपापा ने सूरजमुखी के पेड़ लगा रखे थे जिन पर लगे बड़े पीले फूल मुझे खासा आकर्षित करते थे. जिन्हें मैं दिनभर इस उत्सुकता से निहारा कराता था कि वे सूरज के जाने की दिशा में ही अपना मुंह कैसे घुमाए जाते हैं. आज मेरे बावरे नयन भी पत्नी का अनुसरण करते उसे निहारने की कोशिश में लगे थे. सोचते हुए अनायास ही मेरे मुख पर मुसकान आ गई.

सब के साथ चाय पीने की लालसा में मैं बालकनी से उठ कर हौल में चला आया. मेरी चोर नजरें अभी भी उस का पीछा कर रही थीं. आडंबर विहीन उस के सादगी भरे सौंदर्य ने मुझे अभिभूत कर दिया था. मुझे अपने ऊपर तरस आ रहा था कि सालों तक उस की इस अंदरूनी खूबसूरती को मैं कैसे न देख पाया, कैसे अपनी सुलक्षणा पत्नी के गुणों को न पहचाना और जानेअनजाने उस के निश्छल हृदय को अपने व्यंग्यबाणों से पलपल बेधता रहा.

आज उन सभी गलतियों के लिए मन ही मन शर्मिंदा हो उस से क्षमायाचना हेतु मैं उठ खड़ा हुआ आने वाले सभी लम्हों को उस के साथ जीने के लिए. लौकडाउन में मिले फुर्सत के क्षणों ने मुझे मेरी जीवनसंगिनी लौटा दी थी और मैं लौटा देना चाहता था उसे उस के चेहरे की वह मुसकान जो मेरी सच्ची खुशी की परिचायक थी.

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