महिलाओं ने सालों से सुन्दरता को बनाये रखने के लिए अपने शरीर और केशों का प्रयोग किसी न किसी रूप में किया है. इसके लिए वे अपनी शारीरिक कष्ट को नहीं, बल्कि सुन्दरता के पैमाने को अधिक महत्व दिया है. ये केवल भारत में नहीं, बल्कि विश्व की सभी देशों में किसी न किसी रूप में देखने को मिलता है. चीन में ‘फुट बाइंडिंग’ की प्रथा सालों पहले थी, जहाँ छोटे पांव वाली महिलाओं को सुंदर माना जाता था, इसलिए लड़कियां अपने पांव के साइज़ से आधी साइज़ के जूते पहना करती थी, जिसके लिए छोटी उम्र से उनके पांव को बैंडेज से लपेट कर छोटे शूज पहनाये जाते थे, हालाँकि बाद में इस पर बैन लगा दिया गया है, क्योंकि इससे कई शारीरिक समस्याएं महिलाओं को होने लगी थी. फिर भी कुछ महिलाएं आज भी चोरी-छुपे फुट बाइंडिंग करवाती है, क्योंकि उन्हें ये पसंद है. इतना ही नहीं अफ्रीका और म्यांमार की महिलाएं अपनी गर्दन की सुन्दरता को बढाने के लिए छोटी उम्र से नेक रिंग पहनाती है, ताकि उनके गर्दन स्ट्रेच होकर पतली हो जाय और उसका नाम खूबसूरत महिलाओं की श्रेणी में आ जाय और उन्हें अच्छा पार्टनर मिले.
कुछ इसी तरह विश्व की सुंदरियां और मॉडल्स भी रैंप पर वाक करते समय या किसी अवार्ड शो में भाग लेते समय अपने ‘बैक बटक्स’ को हाईलाइट कर चलती है, क्योंकि ये लुक उन सुन्दरियों या मॉडल्स के लिए सैक्सी और सुन्दर होने का प्रतीक है. कई देशों में ‘बटक्स’ को हाईलाइट करने के लिए कॉस्मेटिक ब्यूटी का सहारा लिया जाता है, जिसमे एक इंजेक्शन के द्वारा ‘बटक्स’ को हाईलाइट कर दिया जाता है. इसे अफ्रीका से लेकर अमेरिका, यूरोप, भारत आदि सभी देशों की महिलाएं सैक्सी मानती है, लेकिन अधिक दिनों तक गलत पोस्चर के साथ रहने पर कई प्रकार के बैक पैन, कमर दर्द, स्लिप डिस्क आदि की समस्या हो सकती है.
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इस बारें में मुंबई की अपोलो स्पेक्ट्रा के इंटरवेंशनल स्पाइन & पैन मेनेजमेंट स्पेशलिस्ट डॉ. कैलाश कोठारी कहते है कि शरीर में कुछ जगहों पर नार्मल कर्व होते है, नेक की कर्व आगे की तरफ होती है, जबकि कॉनकेव पीछे की तरफ होती है. इसके अलावा चेस्ट वाली हड्डी को काइफोसिस और सरवाईकल वाली कर्व को लोर्डोसिस कहते है, लेकिन जब मॉडल्स और एक्ट्रेसेस जरुरत से अधिक हाई हील पहनती है या वेट लॉस पर अधिक ध्यान देती है, तो उनके कर्व नार्मल से एक्सेस हो जाती है. उसे ही हाइपर लोर्डोसिस कहते है, जिसमें जरुरत से अधिक कर्व होता है. ये कर्व कई बार अधिक मोटापे की वजह से भी होता है, क्योंकि फैट सेल्स अधिकतर लोअर बैक पोर्शन में जमा हो जाते है. कई बार किसी-किसी में कर्व कम भी होता है, उसे लॉस ऑफ़ लोर्डोसिस कहते है. बैक मसल्स के कमजोर हो जाने पर मांसपेशियों में ऐठन, स्लिपडिस्क या आर्थराइटिस की वजह से होता है, ऐसे में वे मसल्स हड्डियों को खीच लेते है. नार्मल कर्व लॉस हो जाती है. किसी प्रकार की गलत संरचना शरीर में होने पर महिला में होने पर उसे ठीक करना जरुरी है. बैक बटक्स को ऊँचा कर चलना गलत स्ट्रक्चर का प्रतीक है, सुन्दरता नहीं. नियमित इसी तरह चलने से स्पाइन का शेप भी वैसा हो जाता है, हाईपर लोर्डोसिस में कर्व पीछे की तरफ अधिकतर लोअर बैक में होता है. हाइपर लोर्डोसिस और लॉस ऑफ़ लोर्डोसिस दोनों ही स्पाइन के नार्मल कंडीशन नहीं होते. ये जन्म से नहीं बल्कि, बाद में गलत पोस्चर, विटामिन की कमी या किसी प्रकार की इंज्यूरी से होती है. ये ब्यूटी किसी भी हालत में नहीं है पर ऐसे चलने पर महिला सुंदर दिखती है, इसलिए इसे सभी फोलो करते रहते है. हाइपर लोर्डोसिस में टाइट और टेन्स मसल्स शरीर के अग्रिम भाग में होता है और वीक मसल्स बैक की तरफ होता है. ऐसी कर्वेचर से महिलाओं के स्पाइन, कमर, घुटने और बैक पोर्शन में दर्द, आर्थराइटिस आदि बढ़ जाती है. उम्र के बढ़ने के साथ-साथ ये समस्याएं भी विकसित हो जाती है.
इसके आगे डॉक्टर कैलाश कहते है कि इस पोस्चर में लगातार रहने पर ही इसका प्रभाव पता चलता है, क्योंकि ये स्लो पाइजन का काम करती है. लगातार हाई हील पहनना और गलत पोस्चर में चलने से ये समस्या आती है. कई बार ये समस्या एक साल बाद तो कई बार 6 साल या 10 साल बाद भी होता है. उम्र के साथ हड्डियों, स्पाइन, और शरीर का डिजनरेशन होता रहता है,जिससे आर्थराइटिस प्रॉब्लम, मसल्स स्टिफनेस, घुटनों में समस्या आदि होने लगती है. कई बार यंग मॉडल्स में भी स्पोंडीलाईटिस की समस्या होती है.
हाइपर लोर्डोसिस होने पर आदतों को बदलना पड़ता है. कुछ स्पेशल व्यायाम करना पड़ता है, फिजियोथेरेपी की सहायता से उनके मसल्स को मजबूती दी जाती है, इससे स्पाइन धीरे-धीरे अपने पोस्चर में आ जाता है. जितना समय व्यक्ति अपने पोस्चर को बिगाड़ने में लगाया है उतना ही समय उसे ठीक करने में भी लगता है.
इसके आगे डॉक्टर कहते है कि ब्यूटी को लेकर किये गए प्रयोग को महिलाएं छोड़ नहीं सकती, इसलिए कुछ बातें एक्ट्रेसेस और मॉडल्स को ध्यान में रखने की जरुरत है. हाई हील पहनने वालों के एड़ी और पाँव ऊपर की तरफ होते है, जिससे घुटनों की हड्डियाँ घूम जाती है और घुटनों पर इसका प्रभाव सीधा पड़ता है. इससे लिगामेंट इंज्यूरी, स्प्रेन, एन्केल स्वेलिंग और ओस्टो आर्थराइटिस हो सकती है. इसके अलावा कई महिलाएं पांव पर इंज्यूरी होने पर भी हील पहनती रहती है. क्रोनिक प्रॉब्लम अलग होती है. पांव के हिसाब से छोटे जूते पहनने पर प्लान्टर फेसियाटिस यानि पैर के नीचे के भाग की फेसिया में इन्फ्लेमेशन हो जाता है और ये सालो साल तक चलता है.
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अपने अनुभव के बारें में डॉ. कैलाश कहते है कि कई एक्ट्रेसेस और मॉडल्स मेरे पास गर्दन दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द की शिकायत लेकर आती है, लेकिन वे बहुत देर से मेरे पास आती है, क्योंकि हड्डी की कोई समस्या शुरू में पता नहीं चलता. कुछ समय गुजर जाने के बाद वे डॉक्टर्स के पास आती है, ऐसे में उन्हें फिजियोथेरेपी, रेडियो फ्रीक्वेंसी ऑपरेशन और दवा आदि कई प्रकार के इलाज से ठीक किया जाता है. गलत पोस्चर से निकलने के कुछ सुझाव निम्न है,
- हाई हील को स्पेशल अवसर के लिए रखें, ताकि किसी प्रकार की समस्या बाद में न हो. स्पेशल पार्टी या अवसर पर पहुंचकर ही हील पहने. मॉडल और एक्ट्रेसेस को इसे फोलो करना बहुत आवश्यक है. बाकी समय में फ्लैट चप्पल या शूज पहने. डेढ़ इंच से अधिक हील पहनने से बचे. डेढ़ इंच की हील से पोस्चर ख़राब नहीं होगा.
- हाइपर लोर्डोसिस की शिकार महिलाओं को नियमित स्ट्रेच करना, योगा, लोअर बॉडी वर्कआउट, मसल्स बिल्डिंग आदि करें, तो उसे ठीक किया जा सकता है.
- जितना हो सके सही पोस्चर में चलने की कोशिश करें.
- वजन न बढे इसका ख्याल रखे, संतुलित भोजन लें.
- विटामिन की कमी न हो इसकी जाँच समय-समय पर करवाते रहे.