मौनसून का सुहावना मौसम, झमाझम बारिश में लौंग ड्राइव पर जाने व गरमगरम पकौड़े खाने का जो मजा होता है, वह किसी और मौसम में नहीं होता. यह मौसम दिल को छू जाता है, क्योंकि चिपचिपी व उमसभरी गरमी से राहत जो मिलती है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मौसम जितना आप को तरोताजा व रिलैक्स फील करवाता है, उतना ही इस मौसम में स्किन ऐलर्जी का भी डर बना रहता है. ऐसे में अगर स्किन की प्रौपर केयर नहीं की जाती तो यह हमारी सुंदरता को खराब करने का काम कर सकता है.
तो आइए जानते हैं इस संबंध में फरीदाबाद के ‘एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज’ के डर्मैटोलौजिस्ट डाक्टर अमित बांगा से:
कौनकौन सी स्किन ऐलर्जी का डर
मौनसून में स्किन ऐलर्जी एक बड़ी समस्या है. जानिए, कौनकौन सी स्किन ऐलर्जी का डर इस मौसम में हो सकता है और कैसे इन से बचा जा सकता है:
ऐक्जिमा
यह एक ऐसा रोग है, जिस में स्किन पर ज्यादा पसीना आने, टैंपरेचर के बढ़ने, स्किन की प्रोटैक्टिव लेयर डैमेज होने व मौइस्चर खत्म होने के कारण स्किन पर रैडनैस, जलन, सूजन, खुजली व स्किन पर पपड़ी बन कर निकलने के कारण स्किन से खून भी निकलने लगता है.
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ऐसी स्थिति में घरेलू ट्रीटमैंट्स व सैलून का रुख करने के बजाय डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह लेनी चाहिए ताकि स्थिति और खराब न हो, क्योंकि इस में असहनीय दर्द व खुजली आप की स्किन की खूबसूरती को बिगाड़ने का काम करती है. इस मौसम में आमतौर पर डाईशिदरोटिक ऐक्जिमा होता है, जिस में स्किन के अंदर छोटेछोटे छाले पड़ जाते हैं.
कौनकौन से टैस्ट: ऐक्जिमा का पता लगाने के लिए पैच टैस्ट, ऐलर्जी टैस्ट व खाने से कुछ चीजें हटाई जाती हैं ताकि ऐलर्जी के सही कारणों के बारे में पता लगाया जा सके.
क्या है ट्रीटमैंट: स्किन को हमेशा मौइस्चराइज रखें. हमेशा माइल्ड सोप व क्रीम्स का ही चयन करें. इस बात का ध्यान रखें कि इन में ड्राई व परफ्यूम न हो. डर्मैटोलौजिस्ट टैस्टेड क्रीम्स लगाएं. स्थिति ज्यादा खराब होने पर डाक्टर ऐंटीबायोटिक दवाएं भी देते हैं.
किन चीजों से बचें: इस दौरान बहुत गरम पानी से नहाने से बचें, साथ ही बहुत ही हार्श साबुन, क्रीम्स व मौइस्चराइजर का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये स्किन के मौइस्चर को चुराने के साथसाथ स्किन को और ड्राई बना देते हैं.
अत: अपनी स्किन को क्लीन व मौइस्चराइज रखें ताकि उस पर पसीना न जमने पाए. नायलौन के कपड़े पहनने के बजाय कौटन के खुलेखुले कपड़े पहनें और कभी इन्फैक्शन वाली जगह न खुरचें.
रिंगवर्म
बदलते मौसम में स्किन पर रिंगवर्म यानी दाद की समस्या होना आम है खासकर सैंसिटिव स्किन पर, क्योंकि बारिश के बाद मौसम में बढ़ती उमस व चिपचिपापन फंगस को बढ़ाने के लिए अनुकूल माना जाता है.
इस में शुरुआत में स्किन पर छोटे व लाल रंग के निशान पड़ने शुरू होते हैं, जिन के बारबार कपड़े से टच होने पर इन्फैक्शन बढ़ जाता है.
क्या है ट्रीटमैंट: लूज कौटन के कपड़े पहनें. जब भी बाहर से आएं तो नहाएं जरूर ताकि स्किन पर जमी गंदगी व पसीना शरीर पर चिपकने न पाए. स्किन को मौइस्चराइज रखें.
अंडरआर्म्स पर ऐंटीफंगल पाउडर अप्लाई करें. इस बात का ध्यान रखें कि सैल्फ ट्रीटमैंट व कैमिस्ट से इस की दवा न लें, क्योंकि उस में स्टेराइड्स होते हैं, जो स्थिति को और खराब कर सकते हैं.
किन चीजों से बचें: जिस जगह पर इन्फैक्शन हुआ है, उस पर इरिटेशन होने पर भी उसे रगड़े नहीं और न ही बारबार टच करें, क्योंकि इस से इन्फैक्शन और अधिक बढ़ने की संभावना रहती है. साथ ही पसीना आने पर शरीर को साफ करती रहें वरना इस इन्फैक्शन को और अधिक बढ़ने के लिए माहौल मिलने से आप के लिए परेशानी बढ़ सकती है.
हाइपरपिगमैंटेशन
ज्यादा उमस के कारण मौनसून में हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या भी आम है. इस में चेहरे की स्किन डल व उस पर डार्क पैचेज नजर आने लगते हैं. यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब सूर्य के सीधे संपर्क में आने से मेलोनौसाइट्स अति सक्रिय हो जाते हैं.
मौनसून के मौसम में कभीकभी सूर्य के प्रकाश का बहुत तीव्र न होने पर भी मैलानिन का अधिक उत्पादन होता है, जिस से स्किन पर हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या पैदा हो जाती है. जिन लोगों की ऐक्ने प्रोन व सैंसिटिव स्किन होती है, उन्हें इस मौसम में यह समस्या ज्यादा परेशान करती है.
क्या है ट्रीटमैंट: आप अभी तक विटामिन ए का इस्तेमाल ऐजिंग को रोकने के लिए करती होंगी. लेकिन बता दें कि इसे हफ्ते में 3 दिन चेहरे पर अप्लाई करने से यह हाइपरपिगमैंटेशन की समस्या का भी जड़ से निदान करने का काम करता है. ‘जर्नल औफ कुटेनियस एवं ऐस्थेनिक सर्जरी’ में प्रकाशित शोध के अनुसार, हाइड्रोक्विनोन हाइपरपिगमैंटेशन का बेहतरीन उपचार है.
वहीं विटामिन सी युक्त क्रीम में ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज होने के कारण यह कोलेजन के उत्पादन को बढ़ा कर दागधब्बों को दूर कर के पिगमैंटेशन को दूर करने में सहायक होती है. आप इस मौसम में लाइट वेट, जैल व वाटर बेस्ड, नौन औयली व नौन कमेडोजेनिक सनस्क्रीन खरीदें, क्योंकि यह पोर्स को ब्लौक नहीं करता है.
किन चीजों से बचें: सूर्य के सीधे संपर्क में आने से बचें और अगर जरूरी होने पर घर से बाहर निकलना पड़े तो सनस्क्रीन लगा कर व खुद को कवर कर के ही निकलें. स्किन को बारबार छूने की आदत से बचें.
स्कैबीज
यह एक संक्रमण बीमारी है. वैसे तो इस बीमारी का शिकार कोई भी बन सकता है, लेकिन इस का शिकार ज्यादातर बच्चे बनते हैं. यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैल जाती है. यह एक छोटे कीट के कारण होती है, जिस से स्किन पर जलन, खुजली, लाल निशान इत्यादि पड़ जाते हैं.
यह सोफा, फर्नीचर इत्यादि जगह पर भी 4-5 दिनों तक जीवित रहता है और जब कोई इसे टच कर लेता है, तो वह भी संक्रमित हो जाता है. इस में आमतौर पर खुजली रात के समय ज्यादा होती है और जब हम उसे खुजलाते हैं तो वहां घाव बनने से स्थिति और खराब हो जाती है. इसलिए तुरंत इस के लक्षण दिखाई देने पर डाक्टर को दिखाएं.
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क्या है ट्रीटमैंट: डर्मैटोलौजिस्ट आप को परमेथ्रिन क्रीम लगाने की सलाह देते हैं, जो कीट व उस के अंडों को नष्ट करने का काम करती है. वहीं 1% जीबीएचपी क्रीम लगाने को भी कहा जाता है.
लेकिन इसे खुद से ट्राई न करें, बल्कि डाक्टर इसे कैसे व कब लगाना है अच्छी तरह से गाइड करते हैं. प्रौपर ट्रीटमैंट आप को 15-20 दिनों में ठीक कर देता है. लेकिन अगर आप खुद से इस का इलाज करती हैं तो यह बीमारी महीनों या फिर सालोंसाल खिंच जाती है.
किन चीजों से बचें: जिन जगहों पर इन्फैक्शन हुआ है, उन्हें खुजलाएं नहीं और न ही टच करें. अगर टच करें भी तो हाथों को तुरंत वाश करें, क्योंकि इस से दूसरी जगह संक्रमण की संभावना नहीं रहती है. जिस भी साबुन, क्रीम व औयल का इस्तेमाल करें, उस में नीम ट्री ऐक्सट्रैक्ट हो. यह कीट को मारने में काफी कारगर होता है.
साथ ही आप ऐसैंशियल औयल जैसे क्लोव औयल या लैवेंडर औयल प्रभावित जगह पर लगाएं. यह कीट को मारने के साथसाथ स्किन को ठंडक पहुंचाने का भी काम करता है. वहीं ऐलोवेरा जैल स्किन की जलन व इचिंग को दूर करने में मदद करता है.
हीट रैश
उमस, पसीने व साफसफाई का ध्यान नहीं रखने की वजह से स्किन के पोर्स बंद हो जाते हैं, जिस के कारण शरीर के अंदर छोटेछोटे छाले पड़ जाते हैं, जिन में परेशान करने वाली जलन व खुजली होती है. असल में उमस के कारण आने वाला पसीना स्किन के कौंटैक्ट में जब ज्यादा देर रहता है, तो स्किन पर उस का रिएक्शन रैशेज के रूप में सामने आता है, जिस के लिए समय पर सही ट्रीटमैंट की जरूरत होती है.
क्या है ट्रीटमैंट: घर में आते ही कपड़े बदलें व शरीर का तापमान सामान्य होने के बाद ठंडे पानी से बाथ लें. फिर स्किन पर सेलामाइन लोशन में थोड़ा सा ऐलोवेरा जैल डाल कर लगाएं. यह स्किन इरिटेशन को दूर कर के रैशेज की प्रौब्लम से राहत दिलवाने का काम करता है. साथ ही कौटन के कपड़े पहनें.
किन चीजों से बचें: ऐसे समय में तब बाहर निकलने से बचें जब बहुत ज्यादा गरमी हो. ऐसी ऐक्सरसाइज करने से बचें, जिस से बौडी बहुत ज्यादा वार्म हो जाती हो. ढीले व कंफर्ट कपड़े पहनने के साथसाथ बौडी को ठंडा व हाइड्रेट रखें.
टिनिया कैपिटिस
यह एक ऐसी बीमारी है, जो फंगल इन्फैक्शन के कारण स्कैल्प, बांहें और पलकों पर होती है, जिस में हेयर शौफ्ट और फोलिकल्स पर अटैक करने की क्षमता होती है. यह बीमारी मौइस्चर वाली जगह पर पनपनी है, इसलिए जिन्हें ज्यादा पसीना आता है, उन्हें आसानी से अपना शिकार बना लेती है.
इस के कारण बाल टूटने की समस्या, जिस से वह एरिया गंजा लगने लगता है. मवाद से भरे घाव, सूजन, स्किन का लाल पड़ना, जलन, पैची स्किन इत्यादि अन्य परेशानियां शामिल हैं.
अगर समय पर इलाज नहीं करवाया जाता तो हमेशा के लिए दाग पड़ने के साथसाथ गंजेपन की भी समस्या हो सकती है. इसलिए तुरंत डाक्टर को दिखाने की जरूरत होती है.
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क्या है ट्रीटमैंट: लाइट वेट औयल, मौइस्चराइजर युक्त शैंपू व कंडीशनर लगाने की सलाह दी जाती है. हाइजीन का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि यह बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. अगर कोई भी संक्रमित व्यक्ति का हेयरब्रश, पर्सनल सामान इस्तेमाल करता है तो उसे भी इस बीमारी के होने का डर रहता है.