सास-बहू के झगड़े

सासबहूओं के झगड़ों में ज्यादा झगड़े इस बात को ले कर होते हैं कि सास ने बहू के मैके में जा कर क्या बोल दिया या किसी और की शादी के दौरान उस ने जमी मंडली से बहू या उस ने पीहर वालों के बारे में कोई कमेंट क्यों कर दिया. इस पर बड़ा हंगामा खड़ा हो जाता है. बहू भी आसान पट्टी ले कर पड़ जाती है और उस के पीहर वाले भी घर पर आ कर खरीखोटी सुनाने लगते हैं कि ऐसावैसा कहा क्यों गया.

यही काम पौराणिक धारावाहियों से ज्ञान प्राप्त करे सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के लोग संसद में कर रहे हैं. राहुल गांधी ने लंदन में कुछ भाषणों में सवाल पूछ जाने पर कह डाला था कि भारत का लोकतंत्र डांवाडोल है और इस का असर दुनिया के सभी लोकतंत्रों पर पड़ सकता है, राहुल गांधी ने यह भी कह दिया था कि संसद में माइक बंद कर के विपक्षी नेताओं का भाषण ही बंद करा दिया गया है.

भारतीय जनता पार्टी को इस तरह के व्यक्तव्यों पर गहरी आपत्ति है. उस की नाराजगी यह नहीं है कि झूठ बोला गया है. उस की नाराजगी है कि यह सच लंदन में जा कर क्यों बोला गया. वे इस जिद पर अड़े हैं कि जब तक राहुल गांधी माफी नहीं मांगेगे सदन नहीं चलने दिया जाएगा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी परोल रूप से इस मांग का समर्थन कर रहे हैं. सासबहू के से झगड़े में संसद नहीं चल रही, घर में कलह मची हुई है.

सासबहू के इस तरह के झगड़े कि तुम ने उस से क्यों ऐसा कहा बहुत आम हैं, अगर बात घर के पैसे को ले कर हो, खाने की चीजों को ले कर हो, दहेज पर हो, सपत्ति के बंटवारे को ले कर हो तो समझा जा सकता है कि मतभेद होंगे पर सिर्फ बोल देने से घर की या देश की प्रतिष्ठïा धूल में मिल गई, यह बात समझ नहीं आती.

भारत की आजकल विश्व घटना पर 2 खासियतें हैं एक तो ये सब से बड़ी आबादी  वाला देश है. दूसरी जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से उस की अर्थव्यवस्था बड़ी है और विश्वभर के उत्पादकों के लिए अच्छाखासा व्यापार है, क्या ह्यूमन राइटस ले लें, हंगर इंडैक्स तो लें, फ्रीडम इंडैक्स ले लें, हैप्पीनैंस इंडैक्स ले लें, हंगर इंडैक्स ले ले, फ्रीडम इंडैक्स ले लें, हैप्नीनैस इंडैक्स ले ले सब में भारत नीचे से 5-10 देशों में नजर आएगा. ऐसा कुछ नहीं राहुल गांधी ने कहा तो पश्चिमी देशों को मालूम नहीं था. वह कोई ऐसे सीक्रेट नहीं बता कर आया. न ही उस के लहजे में शिकायत थी, न यह कि दूसरे देश दखल दें. उस से पूछा गया, उस ने साफसाफ कह दिया. सासबहू के झगड़ों की तरह भाजपा सांसद अब इसी बात को ले कर हल्ला मचाए जा रहे हैं उन के लिए यह मौका भी ठीक है क्योंकि अगर संसद चलेगी तो अडानी गु्रप का मसला उठाया जाएगा जो भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहती कि संसद में उठे.

जब तक यह शब्द आप तक पहुंचेंगे, मामला ठंडा पड़ चुका होगा पर यह निशानी छोड़ जाएगा कि राजनीति सासबहू की लड़ाई की तरह होती है जिस में कभी सास शेरनी होती है तो कभी बहू. इसीलिए स्मृति ईरानी जो सास भी कभी बहू थी धारावाही से प्रसिद्ध हुई थी, इस लड़ाई की संसद में भारतीय जनता पार्टी ही ओर से मुख्य सूत्रधार है.

क्या बहू-बेटी नहीं बन सकती

लेखक- डा. अर्जनिबी युसुफ शेख

कमरे से धड़ाम से प्लेट फेंकने की आवाज आई. बैठकरूम में टीवी देख रहे भाईबहनों के बीच से उठ कर आसिम आवाज की दिशा में कमरे में चला गया. आसिम के कमरे में जाते ही उस की बीवी रजिया ने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया. यह आसिम की शादी का दूसरा ही दिन था.

आसिम की बीवी रजिया देखने में बड़ी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती और बातों पर फिदा हो कर ही आसिम ने उस से शादी के लिए हां भर दी थी. वैसे वह आसिम की भाभी की बहन की बेटी थी. बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. घर में नई भाभी के आ जाने से आसिम के भाई और आसिम के मामू के बच्चे यानी मुमेरे भाईबहन भी बहुत खुश थे.

आसिम के घर में सगे और ममेरे भाईबहनों के बीच कोई भेद नहीं था. एक बाड़े में भाईबहन के अलगअलग घर थे परंतु साथ ऐसे रहते थे जैसे सब एक ही घर में रहते हों.

सब साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ मेले में जाते थे. फूप्पी भाई के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह संभाला करती और भाभी भी ननद के बच्चों को अपने बच्चों जैसा ही प्यार करती. वास्तव में बच्चों ने भेदभाव देखा ही नहीं था. इसलिए उन्हें यह कभी एहसास हुआ ही नहीं

कि वे सगे भाईबहन नहीं बल्कि मामूफूप्पी के बच्चे हैं.

अगले दिन शाम के समय जब फिर सब भाईबहन टीवी देखने बैठे तो आसिम कमरे में ही रहा. वह सब के बीच टीवी देखने नहीं आया. इस के अगले दिन फिर सब एकत्रित अपनी पसंद का सीरियल देखने साथ बैठे ही थे कि आसिम की बीवी दनदनाती आई और रिमोट से अपनी पसंद की मूवी लगा कर देखने बैठ गई.

आसिम की अम्मीं ने जब यह देखा तो वे बहू से कहने लगीं, ‘‘बेटा, सब जो सीरियल देख रहे हैं वही तू भी थोड़ी देर देख ले. सीरियल देखने के बाद चले जाते हैं बच्चे.’’

बातबात पर लड़ाई

दरअसल, आसिम के मामू के यहां टीवी नहीं था और न ही उन्हें अलग से टीवी लेने की जरूरत महसूस हुई कभी. एक टीवी के ही बहाने अपना पसंदीदा सीरियल या कोई खास मूवी देखने सब एक समय बैठक में नजर आते थे. अगले दिन फिर जब सब उसी वक्त टीवी देखने बैठे तो आसिम की बीवी रजिया ने आ कर टीवी बंद कर दिया. सब चुपचाप बाहर निकल गए. धीरेधीरे सब की समझ में आ गया कि रजिया भाभी को सब का बैठना अखरता है.

दोपहर के समय पार्टी मामू के यहां जमती थी. रजिया को आसिम का मामू के यहां बैठना भी अखरता. वह बुलाने चली जाती. आसिम उठ कर नहीं आता तो उस की बड़बड़ शुरू हो जाती. सुबह देर तक सोना, उठ कर सास द्वारा बना कर रखा हुआ खाना खाना और कमरे में चले जाना. न 2 देवरों की उसे कोई फिक्र थी न सासससुर से कुछ लेनेदेने की परवाह.

कुछ समय बाद छोटे भाई की शादी हुई. नई बहू ने धीरेधीरे घर को संभाल लिया. हर काम में सब की जबान पर छोटी बहू अमरीन का ही नाम रहता. अमरीन के साथ घर के सदस्यों का हंसनाबोलना रजिया को अखरने लगा. वह बातबात पर अमरीन से झगड़ने लगती.

सास को लगा समय के साथ या औलाद होने पर रजिया सुधर जाएगी. वह 3 साल में 2 बेटियों की मां बन गई, लेकिन उस के व्यवहार में कोई उचित परिवर्तन नहीं हुआ. किसी न किसी बात से रोज किसी न किसी से लड़ना, इस की बात उस से कहना और तिल का पहाड़ बना देना उस की आदत बन चुकी थी. झगड़ा भी खुद करती और अपनी मां को घंटों फोन पर जोरजोर से सुनाने बैठ जाती. पूरा घर उस की बातबात पर लड़ाई से परेशान हो चुका था.

अच्छी है समझदारी

अयाज एक पढ़ालिखा लड़का है. औनलाइन वर्क में वह थोड़ाबहुत कमा लेता है. घर में 2 भाभियां हैं. दोनों के 3-3 बच्चे हैं. छोटी बहू का छोटा बच्चा बहुत छोटा है, इसलिए वह सासससुर को चायनाश्ता जल्दी दे नहीं पाती. बड़ी बहू अपने 3 बच्चों के साथ सासससुर और देवर का भी ध्यान करती है. वालिदैन ने चाहा अब छोटे की शादी करवा देनी चाहिए ताकि बड़ी बहू के काम में कुछ आसानी हो जाए. काफी लड़कियां अयाज को दिखाई गईं. लेकिन उसे एक भी पसंद नहीं आई.

2 महीने बाद एक दोस्त ने फिर एक लड़की दिखाई. वह गांव में बेहद गरीब परिवार से थी. अयाज को वह पसंद आ गई. अयाज ने लड़की को एक मोबाइल दिला दिया. दोनों घंटों बातें करते. रिश्ता पक्का हुआ ही था कि कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया. अयाज जल्दी शादी के लिए उत्सुक था. लौकडाउन में जरा सी ढील मिलते ही अयाज के साथ मां और दोनों भाई गए और दुलहन को निकाह पढ़ा कर ले आए. दुलहन के वालिदैन गरीब थे, इसलिए कुछ भी साथ न दे सके. रस्मों और विदाई का छोटा सा खर्च भी अयाज को ही करना पड़ा.

अयाज के वालिदैन यह सोच कर खुश थे कि अयाज की बीवी रेशमा गरीब घर से होने के कारण यहां खातेपीते घर में खुश रहेगी. वैसे भी घर में है ही कौन? 2 बड़ी बहुएं, वे भी अलगअलग. तीनों बेटियां अपनेअपने घर. इस छोटी बहू से उम्मीद थी कि उस के आने से काम में थोड़ी आसानी हो जाएगी.

अयाज का निकाह होना था कि वह जैसे सब को भूल गया. दूसरे दिन से अयाज के कमरे का दरवाजा अकसर लगा रहने लगा. अयाज आवाज देने पर बाहर आता. भाभी का बनाया हुआ खाना कमरे में ले जाता और दोनों बड़ी बैठ कर खाना खाते.

बात का बतंगड़

15 दिन बीत चुके थे. अयाज ने भाभी से कह दिया कि उन दोनों का खाना न बनाए. वह दोनों के लिए बाहर से खाना ले आता और सीधा  कमरे में चला जाता. वालिदैन बड़ी बहू के भरोसे बैठे रहते, लेकिन अयाज पूछता तक नहीं.

शायद अयाज की बीवी रेशमा को डर था  कि वह सब से छोटी बहू होने के कारण सासससुर की जिम्मेदारी उसी पर न पड़ जाए. वह कमरे के बाहर भी नहीं निकलती. एक बार सास ने जरा सा कह दिया कि ऐसे तौरतरीके नहीं होते. खानदानी बेटियां ससुराल में अपने मांबाप का नाम रोशन करती हैं. यह सुनना था कि रेशमा ने बड़बड़ शुरू कर दी. अयाज के सामने सास की मुंहजोरी करने लगी.

अयाज ने उसे चुप करने की कोशिश की, लेकिन रेशमा को यह बुरा लग रहा था कि अपनी मां को कुछ कहने की जगह अयाज उसे चुप बैठने का बोल रहा है.

सास चुप हो गई थी, लेकिन रेशमा और अयाज में ठन गई. अयाज ने गाली देते हुए रेशमा को चुप होने के लिए कहा. लेकिन रेशमा ने उसी गाली को दोहराते हुए कह दिया, ‘‘होंगे तुम्हारे मांबाप.’’

गाली को प्रत्युत्तर में सुनते ही अयाज ने रेशमा को तमाचा जड़ दिया. थप्पड़ बैठते ही रेशमा गुस्से से लालपीली हो गई. उस ने तपाक से दरवाजा बंद किया और फल काटने के लिए रखा चाकू उठा कर खुद के हाथ की नस काटने की कोशिश करने लगी. अयाज चाकू छीनने लगा.

रेशमा गुस्से में बड़बड़ा रही थी, ‘‘अब एक को भी नहीं छोड़ूंगी. सब जाएंगे जेल.’’ बाहर भाभियां, दोनों भाइयों, सासससुर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें. अंदर से छीनाझपटी की आवाजें उन्हें परेशान कर रही थीं. छोटे बच्चे रोने लगे. दोनों भाइयों ने दरवाजा तोड़ दिया.

अयाज ने रेशमा के हाथ से चाकू छीन लिया, लेकिन इस छीनाझपटी में हलका सा चाकू उस के हाथ पर लग गया था जिस से खून निकल रहा था. सब ने राहत की सांस ली कि शुक्र है उस के हाथ की नस नहीं कटी. शादी के 20 ही दिन में इस हादसे से पूरा परिवार सहम और डर गया था. ऐसा झगड़ा उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था.

मन में डर

समीर बड़ी मेहनत व मशक्कत से अपने परिवार को संभाल रहा था. दोनों बड़े भाई उसी के पास काम करते थे. वालिदैन, 3 भाई, 2 बड़ी भाभियां, उन के 4 बच्चे और 4 बहनों से परिपूर्ण परिवार में गरीबी थी पर सुकून था. अब तक 3 बहनों की शादी वे कर चुके थे. बड़ी बहन घर की जिम्मेदारी निभा रही थी, इसलिए उसे पहले अपनी छोटी बहनों की शादी करनी पड़ी. समीर हर एक काम बहन से सलाह ले कर करता. दिनबदिन तरक्की करते हुए वह अब ग्रिल वैल्डिंग ऐंड फिटिंग का बड़ा कौंट्रैक्टर बन गया.

रोज रात में सोने से पहले वह आंगन में जा कर किसी से बात करता है यह सब जानते थे. धीरेधीरे पता चला कि समीर किसी काम के सिलसिले में नहीं बल्कि किसी लड़की से बात करता है. समीर समझदार है वह किसी में यों ही नहीं फंसेगा, यह सोच कर किसी ने समीर से कुछ नहीं पूछा.

3 साल बीत गए. समीर के वालिद समीर की शादी के पीछे पड़ गए. समीर ने यह बात लड़की को बता दी. अब उस के फोन घर के नंबर पर भी आने लगे. वह दूर प्रांत से थी. घर के लोग चाहते थे समीर यहीं कि किसी अच्छी लड़की से शादी कर ले. समीर निर्णय नहीं ले पा रहा था. उसे डर था कि उस लड़की को वह करीब से जानता नहीं.

अगर उस की बात मान कर उस से शादी कर ले और बाद में वह इस से खुश न रहे तो? यह एक सवाल था जो समीर के मन को सशंकित किए हुए था और उसे उस लड़की से शादी करने से रोक रहा था. घर के लोग लड़की देख रहे थे और समीर हर किसी में कमी बताते हुए रिजैक्ट करता जा रहा था.

समीर की बड़ी बहन समीर के दिलोदिमाग को जानती थी. वह जानती थी कि किसी अन्य लड़की से शादी कर के समीर खुश नहीं रह पाएगा. 3 साल तक जिस से सुखदुख की हर बात शेयर करता रहा, उसे भुला देना आसान नहीं होगा समीर के लिए. उस ने फरहीन नामक उस लड़की से बात की और उसे साफतौर से कह दिया कि हमारे यहां और तुम्हारे यहां के माहौल में बहुत अंतर है. हमारे यहां लड़की जल्दी घर से बाहर नहीं निकलती. एक खुले माहौल में रहने के बाद बंद वातावरण में रहना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा.

मगर फरहीन रोरो कर गिड़गिड़ाती रही, ‘‘बाजी मैं सब एडजस्ट कर लूंगी. किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

तब समीर की बहन ने उस से कह दिया, ‘‘मैं कोशिश करती हूं घर के लोगों को समझने की, लेकिन वादा नहीं करती.’’

2 दिन बाद समीर की बहन ने समीर को समझने की कोशिश की और कहा उसी लड़की से शादी करनी होगी तुझे, जिसे तू ने अब तक आस में रखा. घर के सभी सदस्यों को राजी कर समीर के घर से 4 बड़े लोगों ने जा कर शादी की तारीख तय की.

हां और न की मनोस्थिति में समीर ने शादी कर ली. फरहीन दुलहन बन घर आ गई. लेकिन समीर फिर भी खुश नहीं था. फरहीन ज्यादा खूबसूरत नहीं थी और वह जानता था इस से भी अच्छी लड़की उसे आसानी से मिल सकती थी. किंतु यह भी तय था कि अगर फरहीन किए वादे निभाती है तो वह अपने दिमाग से यह सोच निकाल देगा.

समीर बाहर से आ कर थोड़ी देर बहन के पास बैठता था. यह उस की हमेशा की आदत थी. फरहीन को यह अखरने लगा. घर में किसी से भी जरा सी बात कर लेने पर उस का मुंह फूल जाता. बड़ी भाभी काम करती और वह आराम फरमाती. उसे सब में कमियां दिखाई देतीं और किसी न किसी की बात को पकड़ कर बड़बड़ाती रहती. जरा सी बात का बतंगड़ बना देती और इतनी जोरजोर से बोलती कि घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद करने पड़ते.

अपने ही घर में पराए

घर के लोग अपने ही घर में पराए हो गए. उन्हें आपस की बात भी उस से छिप कर करनी पड़ती. इन हालात से तंग आ समीर ने तय कर लिया कि उसे मायके भेज कर फिर वापस नहीं लाना. लेकिन फरहीन के मायके जाने से पहले मालूम हुआ कि वह प्रैगनैंट है. समीर इस गुड न्यूज से खुश नहीं हुआ बल्कि उसे लगा कि वह फंस चुका है. ससुराल के लोगों को समीर से दूर रखने की कोशिश में फरहीन समीर के दिल से दूर होती जा रही थी.

वह नाममात्र के लिए ससुराल में थी दिलदिमाग उस का मायके में ही रहता. वह अपने भाईभाभियों को वालिदैन की ओर ध्यान देने की हिदायत करती. उन की समस्याएं सुनती, उन्हें समझती. अकसर वहां की खुशी और दुख उस के चेहरे से साफ समझे जा सकते थे.

समय के साथ फरहीन मां बन गई. लेकिन उस की आदतें नहीं बदलीं. बच्चे की जिंदगी बरबाद न हो यह सोच कर उसे सहना समीर

की जिंदगी का हिस्सा बन गया. वह ये सब अकेले सह भी लेता, किंतु खुद की बीवी द्वारा अपने घर के लोगों का चैनसुकून बरबाद होते देखना उस की मजबूरी बन चुकी थी. फरहीन

को एक शब्द कहना मतलब बड़े तमाशे के लिए तैयार होना था.

सवाल अहम है

सवाल यह है कि बेटी को क्या यही सीख मायके से मिलती है? ससुराल में आते ही घर की एकता को तोड़ने की कोशिश से क्या वह बहू अपना दर्जा और सम्मान पा सकती है? शौहर पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है यह समझना यानी शादी कर के क्या वह बहू शौहर को खरीद लेती है? क्या एक बेटी अपनी ससुराल में किए गए गलत व्यवहार से अपने पूरे गांव, गांव की सभी बेटियों को बदनाम नहीं करती?

जो बेटी ससुराल में रहते हुए अपने भाईभाभियों को वालिदैन का खयाल रखने की ताकीद करती है वह खुद अपने कर्मों की ओर ध्यान क्यों नहीं देती? एक बेटी जिस तरह निस्स्वार्थ रुप से परिवार के प्रत्येक सदस्य का सुखदुख समझ लेती है, घर को एकजुट और आनंदित रखने का प्रयास करती है तो क्या बेटी बहू बन ससुराल के घर में बेटी सा वातावरण

नहीं रख सकती? ससुराल में पदार्पण करते ही बेटी स्वार्थी बन अपना कर्तव्य, अपनी सार्थकता क्यों भूल जाती है? क्या बहू बेटी नहीं बन सकती?

ताकि न टूटे बसी बसाई गृहस्थी

पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आ जाए तो आपसी विश्वास खत्म हो जाता है और रिश्तों को दरकते देर नहीं लगती. अगर ‘वो’ सास हो या अपनी ही मां जो छोटीछोटी बातों का बतंगड़ बनाए तो भी बसीबसाई गृहस्थी को आग लगते देर नहीं लगती. ऐसे कई परिवार हैं जहां पतिपत्नी के बीच संबंध आपसी तकरार की वजह से नहीं टूटते बल्कि सास या मां की बेवजह की रोकटोक, जरूरत से ज्यादा हुक्म जताने और परिवार के बीच फूट डालने से टूटते हैं. सास और मां का कहर बाहरी औरत से ज्यादा ही होता है.

जरूरी नहीं हमेशा सास ही गलत हो और यह भी जरूरी नहीं कि हमेशा बहू की ही गलती हो. आखिर अधिकतर मामलों में इन के रिश्ते सुल?ो हुए क्यों नहीं होते? क्यों बहू अपनी सास को मां का दर्जा नहीं दे पाती और सास अपनी बहू को बेटी का दर्जा देने से कतराती हैं?

क्योंकि सास सास होती है

आजकल लड़कियों के मन में पहले से ही ससुराल के प्रति नकारात्मक छवि बना दी जाती है. अब मांएं समझदार हो गई हैं पर फिर भी एक मां का अपने बेटे की चिंता रहती है. मन में कई सवाल दौड़ रहे होते हैं कि पता नहीं मेरी बहू कैसी होगी, कहीं कुछ समय बाद हमें अलग न कर दे, कहीं बेटा बदल न जाए आदि. शादी के बाद वह बेटे को बातबात पर भड़काने लगती है यह उस से बहू की छोटीछोटी शिकायतें करने लगती है.

बेटी की गृहस्थी में मां बनी विलेन

सास और बहू के अलावा लड़की की मां का भी अहम किरदार होता है. हर मां चाहती है कि उस की बेटी राजकुमारी बन कर रहे. जब मां अपनी बेटी को ससुराल में थोड़ाबहुत काम करते देखती या सुनती है, तो उसे लगता है कि उस के पैसे बरबाद हो गए, शादी में जितना पैसा खर्च किया था वह बेटी के लिए ही तो किया था कि वह राजकुमारी बन कर रहे. मगर वहां तो उसे नौकरानी बना कर रखा हुआ है. ये सब देख कर वह बेटी को यह सिखाती है कि किस तरह ससुराल में अपना रुतबा बनाना है.

अब श्रेया को ही देख लीजिए. मांबाप की इकलौती बेटी श्रेया की शादी बहुत अच्छे परिवार में हुई. वह अपनी शादी से बहुत खुश थी. उस की मां अकसर उस का हालचाल पूछने के लिए फोन करती रहती थी.

एक दिन मां ने श्रेया को फोन किया. उस वक्त श्रेया कहीं जाने की तैयारी में थी. बोली, ‘‘हैलो, हां मां.’’

‘‘कैसी हो तुम? क्या चल रहा

है वहां?’’

‘‘मैं ठीक हूं मां, कपड़े प्रैस कर रही हूं.’’

‘‘कपड़े प्रैस? क्यों तुम्हारे घर में धोबी नहीं आता क्या?’’

‘‘नहीं, मां यहां सब अपने कपड़े खुद प्रैस करते हैं और टाइम भी ज्यादा नहीं लगता. फिर वैसे भी धोबी के प्रैस किए कपड़े किसी को पसंद नहीं आते. इसलिए हम प्रैस खुद ही कर लेते हैं.’’

‘‘अरे, तुम ने तो यहां कभी कपड़े प्रैस नहीं किए और वहां तुम प्रैस करने लगी हुई हो. यहां तुम रानी बन कर रहती थी?’’

अब श्रेया की मां ने अपनी बेटी के मन में ससुराल वालों के प्रति गांठ डालने का काम शुरू कर दिया.

याद आती हैं मां की बातें

उस दिन के बाद से श्रेया जब भी कपड़े प्रैस करती उसे अपनी मां की बात याद आने लगती, जिस से उसे कपड़े प्रैस करना अखरने लगा. सिर्फ कपड़े प्रैस करना ही नहीं वरन घर के दूसरे काम करने के लिए भी मुंह बनाने लगी. उस के व्यवहार में बदलाव शुरू हो गया. अब श्रेया जब भी कोई काम करती तो चिड़चिड़ी हो कर. इस से उस की सास और उस के बीच संबंध खराब होने लगे. जब उस का पति उसे समझने की कोशिश करता तो वह अपनी ससुराल और मायके के बीच तुलना करने लगती. अपनी पत्नी के बदले व्यवहार से पति भी तंग आ गया और फिर दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं.

अकसर इस तरह की छोटीछोटी बातें आपस में कटुता पैदा कर देती हैं. कपड़े प्रैस करना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. लेकिन श्रेया की मां ने उसे इतना बड़ा काम बता दिया जैसे श्रेया अपनी ससुराल में कोई मजदूरी का काम कर रही हो. अगर श्रेया की मां चाहती तो वह अपनी बेटी के इस काम से खुश हो सकती थी क्योंकि जिस लड़की ने अपने मायके में कोई काम नहीं किया, वह आज अपनी जिम्मेदारी समझ रही है. लेकिन यहां तो उलटा ही देखन को मिला.

दूसरों की बात में न आएं

ऊष्मा की मां ने भी उस की गृहस्थी में कुछ ऐसे ही जहर घोला. ऊष्मा और उस की सास में बहुत बनती थी. घर में 2 नौकरानियां थीं. ऊष्मा की सास खाना बहुत अच्छा बनाती है, इसलिए ज्यादातर खाना वही बनाती थी. खाना बनाते समय ऊष्मा अपनी सास की मदद कर देती थी. एक दिन ऊष्मा की मां ने वीडियोकौल की और ऊष्मा बात करतेकरते रसोई में चली गई.

‘‘चाय तुम बना रही हो? लगता है आज तुम्हारी मेड नहीं आई.’’

‘‘नहींनहीं मां, मेड आई है, लेकिन सामान लेने बाजार गई है.’’

‘‘अरे काम के समय बाजार चली गई. उसे तो इस समय रसोई में होना चाहिए था. मैं जब भी तुम्हें फोन करती हूं, तुम हमेशा बिजी मिलती हो. तुम से 2 मिनट बात करना भी मुश्किल हो गया है. क्या यही दिन देखने के लिए इतना पैसा खर्च कर के हम ने तुम्हारी शादी इतने बड़े परिवार में की थी?’’

‘‘क्या मौम कुछ भी बोलती रहती हो. यहां सब लोग मु?ो बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘तुम्हारी सास को तो पूरा आराम है. खूब ऐश कर रही है न?’’

‘‘अरे मां, ऐसे क्यों बोल रही हो? वे भी तो कुछ न कुछ करती रहती हैं.’’

‘‘अच्छा तुम्हें उन का पक्ष लेने की ज्यादा जरूरत नहीं है. वह महारानी की तरह ऐसी में बैठ कर आराम फरमाए और तुम नौकरानी बन कर रसोई में लगी रहो. मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये लोग तुम्हें अपने पैरों तले रखेंगे. तुम ने अपने घर पर आज तक एक पानी का गिलास नहीं उठाया और वहां सभी के लिए चाय बना रही हो?’’

‘‘अरे मौम…’’

‘‘मैं तुम्हारी मां हूं ऊष्मा. तुम्हारे भले के लिए बोल रही हूं.’’

ऊष्मा की हंसतीखेलती गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया. उस की मां ने चिनगारी जो लगा थी.

सासबहू के बीच बढ़ती है दरार

एक दिन ऊष्मा ने अपने पति से बंटवारे की बात कह दी. उस का कहना था कि वह और उस का पति अलग रहेंगे. यह सुन कर सब हक्काबक्का रह गए. सास और बहू के बीच बढ़ती दरार को देख उस के पति ने अलग होने का फैसला ले लिया.

यहां ऊष्मा की ससुराल वालों की कोई गलती नहीं थी. उस की ससुराल वाले ऊष्मा को बेटी की तरह मानते थे. थोड़ाबहुत घर का काम तो हम सभी करते हैं और करना भी चाहिए. इस का मतलब यह नहीं कि आप नौकरानी हो. ऊष्मा की सास सब के लिए खाना बनाती थी. आज ऊष्मा खुद अपने और अपने पति के लिए अकेले खाना बनाती है और घर के दूसरे सब काम भी खुद करती है. ऊष्मा का पति उस के साथ रहता तो है, लेकिन दोनों के बीच अब पहले जैसा प्यार नहीं है.

जब पति घुन की तरह पिसने लगे

आजकल ससुराल में नई शादीशुदा लड़कियां छोटीछोटी बातों का इशू बना लेती हैं. यदि सास या ननद किसी भी बात पर थोड़ा भी कुछ कह दे तो वे झट से मायके फोन कर देती हैं और ससुराल की शिकायतें मां से करने लगती हैं. ऐसे मामलों में पति बेचारा चक्की के दो पाटों में पीसा जाता है.

घर पर लड़के की मां अपने लड़के को बहू के खिलाफ भड़काती है. यदि बेटा जरूरत से ज्यादा समय बीवी को देता है तो इस में भी मां को दिक्कत होने लगती है. उसे लगता है कि बेटा हाथ से निकल रहा है. दोनों ही स्थितियों में पति की स्थिति दयनीय बन जाती है. वह बीवी और घर के बीच पिस कर रह जाता है.

सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे

सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे मतलब रिश्तों के बीच कड़वाहट भी खत्म हो जाए और रिश्ते भी न टूटें. बेटे की शादी के बाद अकसर मां में बेटे को ले कर ज्यादा पजैसिवनैस आने लगती है. ऐसे में बेटे को अपनी मां को पहले की ही तरह समय देना चाहिए. जिन बातों को वह अपनी मां से शेयर करता था उन्हें शादी के बाद भी शेयर करते रहना चाहिए. यदि मां को अपने बेटे में थोड़ा भी बदलाव दिखता है तो उस का सीधा निशाना उस की बीवी बनती है और फिर सासबहू के बीच दरार आने लगती है.

बहू को भी अपनी सास को मां की तरह पूरा सम्मान देना चाहिए. पति को अपनी बीवी को घर के सभी सदस्यों की पसंदनापसंद के बारे में बताना चाहिए ताकि वह उन्हें आसानी से समझ सके और सभी के दिल में जगह बना सके.

बेटी को मां और सास दोनों को बराबर मानसम्मान देना चाहिए. पति के विश्वास के साथसाथ घरपरिवार का विश्वास जीतने की कोशिश भी करनी चाहिए. ससुराल में जितना जरूरी पति का प्यार है उतना ही जरूरी बाकी सदस्यों का भी है.

हमारे समाज में सास और बहू के रिश्ते को हमेशा नकारात्मक रूप से दिखाया जाता है. फिर चाहे वह सीरियल हों या हिंदी सिनेमा. ऐसे कई सीरियल्स और फिल्में हैं, जिन में सास को विलेन के रूप में दिखाया गया है, जिस से हमारी मानसिकता वैसी ही हो गई है. हम यही मानते हैं कि सास मां की जगह कभी नहीं ले सकती. इसलिए हम रिश्ते से तो उन्हें अपना मान लेते हैं, लेकिन दिल से मानने में बहुत वक्त लग जाता है. ऐसा सिर्फ सास और बहू के बीच ही नहीं, बल्कि मां और बेटी के बीच भी होता है, जिस से रिश्ते में कड़वाहट आने लगती है और दूरियां बढ़ने लगती हैं.

सास बहू के रिश्ते में किस काम की ऐसी रस्में

अमला और सुयश का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया. घर में बहुत ही हंसीखुशी का माहौल था. सुयश की मां माया और पति अमला सासबहू कम, मांबेटी ज्यादा लग रही थीं.  सारे मेहमान चले गए तो माया ने कहा, ‘‘अमला, अब फ्री हुए हैं. आ जाओ, हिसाब  कर लें.’’

अमला कुछ समझी नहीं. बोली, ‘‘कैसा हिसाब? मांजी, मैं समझी नहीं.’’

‘‘अरे, वह जो तुम्हें मुंहदिखाई में कैश मिला है. सब ले आओ.’’

अमला अपना पर्स ले आई. सारा कैश निकाल कर माया को पकड़ा दिया. अमला ने सोचा, देख रही होंगी कि किस ने क्या दिया है. फिर उसी को पकड़ा देंगी.  सारा कैश गिन कर माया ने अपने पर्स में रख लिया तो अमला के मुंह से निकल गया, ‘‘मांजी, इन्हें आप रखेंगी?’’

‘‘हां, और क्या? इतने सालों से सब को दे ही तो रही हूं. यह मेरा दिया हुआ ही तो वापस आया है.’’

‘‘पर यह तो बहू का होता है न.’’

‘‘नहीं अमला, इस पर सास का हक होता है, क्योंकि मैं ही तो दे रही हूं सालों से, न देती तो कौन दे कर जाता?’’

नईनवेली बहू अमला चुप रही, पर मन ही मन सास पर इतना गुस्सा आया कि कई रिश्तेदारों, परिचितों से इस बात की शिकायत कर दी. माया को पता चला तो अमला पर बहुत गुस्सा हुईं.

रिश्ते में दरार

मांबेटी जैसा प्यार धरा का धरा रह गया. शुरुआती दिनों में ही दिलों में ऐसी कटुता जन्मी कि रिश्ता फिर मधुर हो ही नहीं पाया. माया सब से कहती कि अमला को खुद ही ये पैसे ‘उन्हीं का हक है’ कह कर खुशीखुशी दे देने चाहिए थे. उधर अमला का कहना था कि यह उन की मुंहदिखाई का उपहार है, पैसे उसे ही मिलने चाहिए थे.

एक रस्म ने सासबहू के रिश्ते में उपजी मिठास को पल भर में खत्म कर दिया. 4 दिन में ही इस रिश्ते में जो प्यार व सम्मान दिखाई दे रहा था, पैसे की बात आई तो दरार पड़ गई. माया और अमला दोनों ही सासबहू के रिश्ते को प्यार  व सम्मान से निभाने की तैयार कर रही थीं पर फिर ऐसी दरार उभरी जो कभी न भर पाई. आज  3 साल बाद भी माया और अमला को किसी के भी विवाह के समय यह बात याद आ जाती है तो आज भी बहस छिड़ जाती है.

बढ़ती हैं दूरियां

सुशीला ने अपनी बड़ी बहू नीता जो साधारण परिवार से आई थी और दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी, उसे मुंहदिखाई में  100 रुपए पकड़ा दिए थे. छोटी बहू नताशा अमीर परिवार की लड़की थी जो अपने साथ बहुत  कुछ लाई थी, उस की मुंहदिखाई में सुशीला ने उसे सोने का सैट दिया तो नीता को बहुत दुख हुआ.

उस ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा पर सास के इस भेदभाव ने उस का मन इतना आहत कर दिया कि वह उन से धीरेधीरे दूर होती चली गई. नताशा के समय मुंहदिखाई का पैसा भी सुशीला ने नहीं लिया जबकि नीता से 1-1 रुपया ले लिया था. यह बात सुशीला के बड़े बेटे रमेश ने भी नोट की तो उसे मां का यह भेदभाव अच्छा नहीं लगा. मन में दूरियां बढ़ती चली गईं.

ऐसी रस्मों से फायदा ही क्या जो किसी का मन दुखा दें. विवाह का अवसर घर में, जीवन में खुशियां लाता है पर कुछ रस्में घर के आपसी संबंधों में कटुता उत्पन्न करती हैं. हमारा समाज आडंबरों, रीतिरिवाजों से घिरा है और आजकल तो परिवार में गिनेचुने ही लोग होते हैं. उन में भी अगर ऐसी रस्मों के चलते कड़वाहट भर जाए तो ऐसी रस्में जीवन भर कचोटती हैं. कोई भी रिश्ता किसी रस्म के चंद पैसों से बढ़ कर नहीं है.

सास को अपनी कमाई कब दें कब नहीं

भले ही सासबहू के रिश्ते को 36 का आंकड़ा कहा जाता हो पर सच यह भी है कि एक खुशहाल परिवार का आधार सासबहू के बीच आपसी तालमेल और एकदूसरे को समझने की कला पर निर्भर करता है.

एक लड़की जब शादी कर के किसी घर की बहू बनती है तो उसे सब से पहले अपनी सास की हुकूमत का सामना करना पड़ता है. सास सालों से जिस घर को चला रही होती हैं उसे एकदम बहू के हवाले नहीं कर पातीं. वे चाहती हैं कि बहू उन्हें मान दे, उन के अनुसार चले.

ऐसे में बहू यदि कामकाजी हो तो उस के मन में यह सवाल उठ खड़ा होता है कि वह अपनी कमाई अपने पास रखे या सास के हाथों पर? बात केवल सास के मान की ही नहीं होती बहू का मान भी माने रखता है. इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले कुछ बातों का खयाल जरूर रखना चाहिए.

बहू अपनी कमाई सास के हाथ पर कब रखे

जब सास हों मजबूर:

यदि सास अकेली हैं और ससुर जीवित नहीं हों तो ऐसे में एक बहू यदि अपनी कमाई सास को सौंपती है तो सास उस से अपनापन महसूस करने लगती हैं. पति के न होने की वजह से सास को ऐसे बहुत से खर्च रोकने पड़ते हैं जो जरूरी होने पर भी पैसे की तंगी की वजह से नहीं कर पातीं. बेटा भले ही अपने रुपए खर्च के लिए देता हो पर कुछ खर्चे ऐसे हो सकते हैं जिन के लिए बहू की कमाई की भी जरूरत पड़ सकती. ऐसे में सास को कमाई दे कर बहू परिवार की शांति कायम रख सकती है.

सास या घर में किसी और के बीमार होने की स्थिति में:

यदि सास की तबीयत खराब रहती है और इलाज पर बहुत रुपए लगते हैं तो यह बहू का कर्तव्य है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों पर रख कर उन्हें इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद करे.

अपनी पहली कमाई:

जैसे एक लड़की अपनी पहली कमाई को मांबाप के हाथों पर रख कर खुश होती है वैसे ही यदि आप बहू हैं तो अपनी पहली कमाई सास के हाथों पर रख कर उन का आशीर्वाद लेने का मौका न चूकें.

यदि आप की सफलता की वजह सास हैं:

यदि सास के प्रोत्साहन से आप ने पढ़ाई की या कोई हुनर सीख कर नौकरी हासिल की है यानी आप की सफलता में आप की सास का प्रोत्साहन और प्रयास है तो फिर अपनी कमाई उन्हें दे कर कृतज्ञता जरूर प्रकट करें. सास की भीगी आंखों में छिपे प्यार का एहसास कर आप नए जोश से अपने काम में जुट सकेंगी.

यदि सास जबरन पैसे मांग रही हों:

पहले तो यह देखें कि ऐसी क्या बात है जो सास जबरन पैसे मांग रही हैं. अब तक घर का खर्च कैसे चलता था? इस मामले में अच्छा होगा कि पहले अपने पति से बात करें. इस के बाद पतिपत्नी मिल कर इस विषय पर घर के दूसरे सदस्यों से  विचारविमर्श करें. सास को समझएं. उन के आगे खुल कर कहें कि आप कितने रुपए दे सकती हैं. चाहें तो घर के कुछ खास खर्चे जैसे राशन, बिल, किराए आदि की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें. इस से सास को भी संतुष्टि रहेगी और आप पर भी अधिक भार नहीं पड़ेगा.

यदि सास सारे खर्च एक जगह कर रही हों:

कई परिवारों में घर का खर्च एक जगह किया जाता है. यदि आप के घर में भी जेठ, जेठानी, देवर, ननद आदि साथ रह रहे हैं और पूरा खर्च एक ही जगह हो रहा है तो स्वाभाविक है कि घर के प्रत्येक कमाऊ सदस्य को अपनी हिस्सेदारी देनी होगी.

सवाल यह उठता है कि कितना दिया जाए? क्या पूरी कमाई दे दी जाए या एक हिस्सा दिया जाए? इस तरह की परिस्थिति में पूरी कमाई देना कतई उचित नहीं होगा. आप को अपने लिए भी कुछ रुपए बचा कर रखने चाहिए. वैसे भी घर के प्रत्येक सदस्य की आय अलगअलग होगी. कोई 70 हजार कमा रहा होगा तो कोई 20 हजार, किसी की नईनई नौकरी होगी तो किसी ने बिजनैस संभाला होगा. इसलिए हर सदस्य बराबर रकम नहीं दे सकता.

बेहतर होगा कि आप सब इनकम का एक निश्चित हिस्सा जैसे 50% सास के हाथों में रखें. इस से किसी भी सदस्य के मन में असंतुष्टि पैदा नहीं होगी और आप भी निश्चिंत रह सकेंगी.

यदि मकान सासससुर का है:

जिस घर में आप रह रही हैं यदि वह सासससुर का है और सास बेटेबहू से पैसे मांगती हैं तो आप को उन्हें पैसे देने चाहिए. और कुछ नहीं तो घर और बाकी सुखसुविधाओं के किराए के रूप में ही पैसे जरूर दें.

यदि शादी में सास ने किया है काफी खर्च:

अगर आप की शादी में सासससुर ने शानदार आयोजन रखा था और बहुत पैसे खर्च किए थे, लेनदेन, मेहमाननवाजी तथा उपहारों आदि में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, बहू और उस के घर वालों को काफी जेवर भी दिए थे तो ऐसे में बहू का भी फर्ज बनता है कि वह अपनी कमाई सास के हाथों में रख कर उन्हें अपनेपन का एहसास दिलाए.

ननद की शादी के लिए:

यदि घर में जवान ननद है और उस की शादी के लिए रुपए जमा किए जा रहे हैं तो बेटेबहू का दायित्व है कि वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दे कर अपने मातापिता का सहयोग करें.

जब पति शराबी हो:

कई बार पति शराबी या निकम्मा होता है और पत्नी के रुपयों पर ऐय्याशी करने का मौका ढूंढ़ता है. वह पत्नी से रुपए छीन कर शराब या गलत संगत में खर्च कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपने रुपयों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि आप ला कर उन्हें सास के हाथों पर रख दें.

कब अपनी कमाई सास के हांथों में न रखें

जब आप की इच्छा न हो. अपनी इच्छा के विरुद्ध बहू अपनी कमाई सास के हाथों में रखेगी तो घर में अशांति पैदा होगी. बहू का दिमाग भी बौखलाया रहेगा और उधर सास बहू के व्यवहार को नोटिस कर दुखी रहेंगी. ऐसी स्थिति में बेहतर है कि सास को रुपए न दिए जाएं.

जब ससुर जिंदा हो और घर में पैसों की कमी न हो:

यदि ससुर जिंदा हैं और कमा रहे हैं या फिर सास और ससुर को पैंशन मिल रही है तो भी आप को अपनी कमाई अपने पास रखने का पूरा हक है. परिवार में देवर, जेठ आदि हैं और वे कमा रहे हैं तो भी आप को कमाई देने की जरूरत नहीं है.

जब सास टैंशन करती हों:

यदि आप अपनी पूरी कमाई सास के हाथों में दे रही हैं इस के बावजूद सास आप को बुराभला कहने से नहीं चूकतीं और दफ्तर के साथसाथ घर के भी सारे काम कराती हैं, आप कुछ खरीदना चाहें तो रुपए देने से आनाकानी करती हैं तो ऐसी स्थिति में सास के आगे अपने हक के लिए लड़ना लाजिम है. ऐसी सास के हाथ में रुपए रख कर अपना सम्मान खोने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि अपनी मरजी से खुद पर रुपए खर्च करने का आनंद लें और दिमाग को टैंशनफ्री रखें.

जब सास बहुत खर्चीली हों:

यदि आप की सास बहुत खर्चीली हैं और आप जब भी अपनी कमाई ला कर उन के हाथों में रखती हैं तो वे उन रुपयों को 2-4 दिनों के अंदर ही बेमतलब के खर्चों में उड़ा देती हैं या फिर सारे रुपए मेहमाननवाजी और अपनी बेटियों और बहनों पर खर्च कर देती हैं तो आप को संभल जाना चाहिए. सास की खुशी के लिए अपनी मेहनत की कमाई यों बरबाद होने देने के बजाय उन्हें अपने पास रखें और सही जगह निवेश करें.

जब सास माता की चौकी कराएं:

जब सासससुर घर में तरहतरह के धार्मिक अनुष्ठान जैसे माता की चौकी वगैरह कराएं और पुजारियों की जेबें गरम करते रहें या अंधविश्वास और पाखंडों के चक्कर में रुपए बरबाद करते रहें तो एक पढ़ीलिखी बहू उन की ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बनने या आर्थिक सहयोग करने से इनकार कर सकती है. ऐसा कर के वह सास को सही सोच रखने को प्रेरित कर सकती है.

बेहतर है कि उपहार दें

इस संदर्भ में सोशल वर्कर अनुजा कपूर कहती हैं कि जरूरी नहीं आप पूरी कमाई सास को दें. आप उपहार ला कर सास पर रुपए खर्च कर सकती हैं. इस से उन का मन भी खुश हो जाएगा और आप के पास भी कुछ रुपए बच जाएंगे. सास का बर्थडे है तो उन्हें तोहफे ला कर दें, उन्हें बाहर ले जाएं, खाना खिलाएं, शौपिंग कराएं, वे जो भी खरीदना चाहें वे खरीद कर दें. त्योहारों के नाम पर घर की साजसजावट और सब के कपड़ों पर रुपए खर्च कर दें.

पैसों के लेनदेन से घरों में तनाव पैदा होता है पर तोहफों से प्यार बढ़ता है, रिश्ते संभलते हैं और सासबहू के बीच बौंडिंग मजबूत होती है. याद रखें रुपयों से सास में डौमिनैंस की भावना बढ़ सकती है जबकि बहू के मन में भी असंतुष्टि की भावना उत्पन्न होने लगती है. बहू को लगता है कि मैं कमा क्यों रही हूं जब सारे रुपए सास को ही देने हैं. इसलिए बेहतर है कि जरूरत के समय सास या परिवार पर रुपए जरूर खर्च करें पर हर महीने पूरी रकम सास के हाथों में रखने की मजबूरी न अपनाएं.

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जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

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जब पत्नी हो कमाऊ

आजकल के विवाह विज्ञापनों से पता चलता है कि नौजवान कमाऊ पत्नी ही चाहते हैं. ऐसे लोग पतिपत्नी की कमाई से शादी के बाद जल्दी साधनसंपन्न होना चाहते हैं. अगर कमाऊ लड़की को शादी करने के बाद अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलगअलग होने की वजह से उस को नए माहौल में ढलना पड़ता है. वह स्वावलंबी होने के साथसाथ अगर स्वतंत्रतापसंद होगी, तो उसे जीवन में नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. कुछ परिवारों में सभी कमाऊ सदस्य अपनीअपनी कमाई घर के मुखिया को सौंपते हैं. मुखिया घरेलू खर्च को वहन करता है. ऐसी स्थिति में कमाऊ नववधू को भी अपनी पूरी कमाई घर के मुखिया को सौंपनी पड़ेगी. लेकिन स्वतंत्र स्वभाव वाली युवती ऐसा नहीं करना चाहेगी. उस अवस्था में नववधू और परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा होगा. पति और पत्नी के बीच मनमुटाव भी हो सकता है, जो उन के जीवन में जहर घोल देगा. ऐसे जहर को विवाहविच्छेद में परिवर्तित होते देखा गया है.

क्या करे पति

अगर परिवार वाले अपनी कमाऊ बहू से उस की कमाई नहीं लेते तो कमाऊ नववधू खुश रहती है और स्वतंत्ररूप से अपने दोस्तों के साथ घूमती है. अगर पतिपत्नी के विचारों में समन्वय होता है तब तक जीवन की गाड़ी ठीक चलती है, लेकिन अगर कहीं पति अपनी पत्नी को शक की निगाह से देखने लगे तो समस्या गंभीर बन जाती है. शादी के पहले कोई लड़का अपनी होने वाली कमाऊ पत्नी से नहीं पूछता कि वह अपनी कमाई उसे देगी या नहीं. अगर पूछ ले तो शादी के बाद कोई समस्या खड़ी न हो. एक प्राचार्य ने एक लैक्चरर से शादी की. प्राचार्य की इतनी कमाई थी कि घर का खर्च आराम से चलता था. ऐसी स्थिति में लैक्चरर पत्नी ने अपनी कमाई अपने पति को नहीं दी और कहा कि घर का खर्च तो आराम से चल ही रहा है. धीरेधीरे प्राचार्य को शक होने लगा कि उस की पत्नी अपने साथियों को खिलानेपिलाने में खर्च कर रही है और उसे एक नया पैसा नहीं दे रही है. अत: धीरेधीरे मनमुटाव ने विकराल रूप धारण कर लिया और उन दोनों में विवाहविच्छेद हो गया.

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ऐसा भी होता है

कुछ गुलछर्रे उड़ाने के लिए ही कमाऊ पत्नी चाहते हैं. ऐसे लड़के अपनी कमाई और अपनी बीवी की कमाई को मिला कर ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. शादी के पहले ऐसे लड़कों का पता नहीं चलता. लेकिन शादी के बाद वे गुल खिलाने लगते हैं. कई बार तो अपनी बीवी की कमाई भी उन के लिए कम पड़ने लगती है. पतिपत्नी के बीच पैसों के लिए झगड़ा होने लगता है. कुछ अधिक संपन्न लड़कियां स्त्रीशासित परिवार बनाने के लिए अपने से कमाई में कमजोर पर प्रसिद्ध पुरुषों को उन की पत्नी से तलाक दिला कर शादियां करती हैं ताकि ऐसा पुरुष उन का जीवन भर कहना मानता रहे. ऐसी लड़कियां दकियानूसी परिवार के सदस्यों के साथ समझौता नहीं कर सकतीं.

होना क्या चाहिए

कमाऊ बहू या तो परिवार के सदस्यों की भावनाओं से समझौता करे या शांति से पतिपत्नी अपने परिवार से अलग रहें. इतना ही नहीं पुरुषशासित समाज में जहां पुरुषों की चलती है वहां कमाऊ बहू नाराज रहेगी इसलिए समाज के बदलते आयाम में कमाऊ बहू को घर के सभी आर्थिक खर्चों में राय देने का अधिकार होना चाहिए. आजकल पति और पत्नी को समान अधिकार है, इसलिए दोनों को अपने परिवार के माहौल में मिलजुल कर रहना चाहिए अन्यथा पारिवारिक परिवेश में अशांति रहेगी. 

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इकलौते लड़के से शादी

जैसे ही किसी की बेटी की शादी इकलौते लड़के से तय होती है, त्योंही उसे सुखसमृद्धि की गारंटी मान लिया जाता है. एक दंपती ने जब अपनी बेटी की शादी के कार्ड बांटे तो हर किसी से अपनी बेटी के ससुराल में लड़के के इकलौते होने की चर्चा जरूर की. एक संबंधी ने कहा कि तब तो उन के यहां हमारे घर जैसी रौनक नहीं होगी. हमारे यहां तो मामूली अवसर पर भी इतने लोग इकट्ठा हो जाते हैं कि घर में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. फिर भी वे इकलौते लड़के के गुण गाते रहे तो उस रिश्तेदार ने आक्रोश में कहा कि अगर इतना ही इकलौतेपन का क्रेज है तो अपने बेटे को भी इकलौता रहने दिया होता. तब किसी और परिवार को भी आप के इस सुख जैसा सुख मिलता.

सब कुछ इस का है

अकसर शादी की बात चलते ही लड़की वाले इसी बात को अहमियत देते हैं और लड़के वाले भी पसंद की जगह बात बनाने के लिए इस बात का सहारा लेते हैं. भले ही यह बात सच है पर इस तरह की अपेक्षा पालना अकसर अनाधिकार चेष्टा को जन्म देता है. शैलेंद्र व सीता दंपती ने जब एक ट्रस्ट बनाया तो सब दंग थे. लेकिन उन्होंने बेटे को ट्रस्टी न बनाया तो उस ने रिश्तेदारों पर अपने मातापिता को समझाने का दबाव बनाया. तब मातापिता की बातों से स्पष्ट हुआ कि बेटाबहू तो सब कुछ उन का है यह मान कर बैठे हैं. इन की कमाई बहुत है फिर भी ये हारीबीमारी तक में नहीं पूछते. पता नहीं हमारे पालनपोषण में कहां कमी रह गई. हम अपना पूरा पैसा गरीबों की शिक्षा व संस्कार पर खर्चेंगे. खैर, समय रहते बेटाबहू सुधरे तो मांबाप ने अपनी वसीयत थोड़ी बदली. उन्होंने बेटाबहू के लिए गुंजाइश निकाली, लेकिन ट्रस्ट वाला मुद्दा नहीं बदला.

सब कुछ अपना मान लेने की मानसिकता फर्ज अदायगी में बाधक है. कुमार अच्छा कमाने के बावजूद जबतब मांबाप से मोटी रकम वसूलते रहते हैं. कुछ कहने पर कहते हैं कि आगे लूं या पीछे, इस से क्या फर्क पड़ता है. सब कुछ तो मेरा ही है. मांबाप को यह पसंद नहीं. उन्होंने अब दूसरी तरह सोचना शुरू कर दिया है.

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लड़की वाले हावी

ज्यादातर परिवारों में लड़के का छोटा परिवार होने के कारण लड़की के पीहर वाले हावी हो जाते हैं. इन के यहां है ही कौन हम ही तो हैं, यही सोचते हैं वे. ऐसी स्थितियां लड़की की ससुराल में उत्साह भंग करने वाली होती है. कुसुम को बारबार सुनना पड़ता है कि हमारे घर में उसी के घर वाले नजर आते हैं. कोई मौका हो तो पूरी फौज हाजिर हो जाती है. कुसुम ने पीहर वालों को जब ताकीद कराया कि बुलाने का मतलब यह नहीं कि उन के यहां अड्डा ही जमा लिया जाए तो कहीं बात बनी. बहुत से इकलौते लड़के के मांबाप बड़े परिवार में रिश्ता कर के खुश होते हैं. उन की इच्छा रहती है कि वकत पर वे लोग उन के पास आएंजाएं. क्योंकि छोटे परिवार की कमी वे  देख चुके होते हैं. फिर भी उन के यहां डेरा जमाना कुछ लड़की वालों को नहीं जंचता. उन्हें लगता है कि लड़के वालों की पहल तथा इच्छा से उन के यहां आनाजाना अच्छा व सम्मानजनक रहता है. साथ ही बेटी या बहन को ताने या चुहलबाजी का सामना नहीं करना पड़ता.

उस पर अगर इकलौता लड़का अपनी ससुराल से ज्यादा जुड़ जाता है तो उसे अपने करीबी लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं. विजय के चचेरे भाईबहन उसे इसीलिए खरीखोटी सुनाते हैं, ‘यार अब हम हैं ही क्या? अब तो तुम्हें सिर्फ ससुराल वाले ही दिखते हैं.’ विजय को पत्नी पर गुस्सा आता है. पत्नी को पीहर वालों पर.

इकलौते नहीं रहे

एक दंपती ने इकलौते बेटे की सगाई करते ही उस से कह दिया कि अब उन्हें एक बेटी भी मिल गई है. अब वह अपनेआप को इकलौता न समझे. ये दंपती कहते हैं कि ऐसा उन्होंने बेटे की मानसिकता को ध्यान में रख कर किया. वह किसी और बच्चे को हमारी गोद में बैठा देख कर उसे मारता, रुलाता था. उस की चीजें तोड़फोड़ देता था. हम ने इस का इलाज भी कराया, फिर भी उस में वह भावना कुछ बची हुई है. एक दंपती कहते हैं कि हमारा बेटा ऐसी मनोवृत्ति का शिकार है कि उसे हमारा उसी के बेटाबेटी से प्यार करना अच्छा नहीं लगता. हम उसे कैसे ठीक करें, यह समझ में नहीं आ रहा. उसे समझाना आसान नहीं. हमारे घर में बातबात पर कलह आम बात है.

केयरिंग शेयरिंग की आदत नहीं

अकेले लड़के से शादी करना मखमली या फूल जैसी नहीं, बल्कि चुनौतीपूर्ण है. एक तो ऐसे लड़के वैसे ही नाजों से पाले जाते हैं, उस पर इकलौते लड़कों की तो बात ही क्या है. चूंकि उन्हीं की केयर ज्यादा की जाती है, इसलिए वे दूसरों की केयर करने में उतने उत्सुक या जागरूक नहीं होते. चूंकि उन्हें सब कुछ बहुतायत में मिलता है, इसलिए शेयर करने की आदत उन में नहीं आती. इसीलिए पत्नी के रूप में ही सही, उन की ही इच्छा से कोई उन के जीवन में प्रवेश करता है, तो भी वे उतने मन से उस का स्वागत नहीं कर पाते. ऐसे व्यक्ति के जीवन में स्पेस बनाना पत्नी के लिए चुनौती होता है. एक इकलौते व्यक्ति की पत्नी बताती है कि इन्हें तो रात के अलावा मेरा कमरे में रहना तक पसंद नहीं. बस इन का मन या गरज हो तभी. भावनाओं की कद्र करना तो आता ही नहीं इन्हें. ये तो लोगों को वस्तु समझते हैं.

ऐसी ही एक और इकलौती बहू कहती है कि मैं भरेपूरे परिवार से आई और यहां एकदम अकेली पड़ गई. इन्हें ही क्या, इन के मातापिता तक को मेरा किसी से शेयर करना अच्छा नहीं लगता. किसी से बोलनाबतियाना उन्हें मुंह लगाना लगता है, लेनादेना आफत मोल लेना तथा रिश्तों की कद्र करना लिफ्ट देना. मैं ने साफ कहा कि हम अपनेअपने अंदाज से जीएं. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी कोई सोच है. इन्हें यह सब अच्छा तो नहीं लगता पर सहन करना सीख गए हैं.

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हर इकलौता एक सा नहीं

गुड्डू भरेपूरे ससुराल को पा कर खुश है. वह मानता है कि उस के ससुराल वालों ने उस के जीवन की कमी को पूरा किया है. अपनी सालियों और पत्नी के चचेरेममेरे भाइयों तक को अपने परिवार का हिस्सा मानता है. उन से मिलने के लिए पार्टी के बहाने ढूंढ़ता है. सब उसे जीजूभाई, जीजूदादा, जीजूचाचा, जीजूमामा आदि कह कर खूब लाड़ करते हैं. उस की पत्नी इसे बावलापन समझती है. उस के सासससुर कहते हैं कि गुड्डू शुरू से ही मिलनसार है. इस ने कभी अकेला होना नहीं चाहा. बचपन में जब भी अस्पताल के सामने से निकलता, हम पर जोर देता कि जाओ, मेरे लिए खूब सारे भाईबहन ले कर आओ. हम से बारबार अकेलेपन का दुख कहता. हम ने अन्य संतानों की कोशिश की पर सफलता नहीं मिली. हमें तो पछतावा है. हम ने किसी अनाथ लड़की को गोद ले लिया होता. गुड्डू की जिंदगी में इकलौतापन मजबूरीवश आया. वह मन से इकलौता नहीं है.

इकलौतेपन को लौटरी न मान कर सहज भाव से लिया जाए. सब कुछ अपना मान कर चलना दुख बढ़ाता है. अधिकार के साथसाथ कर्तव्य भाव जिम्मेदार बनाता है. इकलौते लड़केलड़की की शादी देखने में भले अच्छी लगे पर कांटों भरे ताज जैसी होती है. क्योंकि उन्हें सहज रिश्तों में भी एकदूसरे तथा एकदूसरे के परिवारों की उपेक्षा का भाव अनुभव होता है. लड़की को इकलौते लड़के से शादी कर के केवल पत्नी बन कर ही नहीं रहना पड़ता, बल्कि उस की मां, बहन, रिश्तेदार, दोस्त व सहेली सब कुछ बन कर रहने का दायित्व भी वहन करना पड़ता है. इकलौते लड़के के नखरे भी उठाने पड़ सकते हैं. उस के मूड के अनुसार चलना पड़ सकता है. उस की इच्छाओं के आगे झुकना पड़ सकता है. पत्नी बन कर हम उस पर कब्जा नहीं जमा सकते. उस के स्वेच्छाचारी मन को जीतने के लिए कुछ खास जतन करने के लिए भी अपनेआप को तैयार करना पड़ सकता है. तभी इकलौते लड़के से शादी अच्छी तरह चल व निभ सकती है.

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अहंकार से टूटते परिवार

पुरानी मान्यताओं के हिसाब से बेटी की शादी करने के बाद मातापिता उस की जिम्मेदारियों से पल्ला झड़ लेते थे. लड़की की मां चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी. लड़के की मां को ही पतिपत्नी के बीच तनाव का कारण माना जाता था. मगर आधुनिक युग में बेटी के प्रति मातापिता की सोच बहुत बदली है. ज्यादातर घरों में पति से ज्यादा पत्नी का वर्चस्व नजर आने लगा है. इसलिए बेटी की ससुराल में होने वाली हर छोटीबड़ी बात में उस की मां का हस्तक्षेप बढ़ने लगा है.

आजकल की बेटियों का तो कुछ पूछो ही नहीं. अपने घर की हर बात अपनी मां को फोन से बताती रहती हैं. छोटेछोटे झगड़े या मनमुटाव जो कुछ देर बाद अपनेआप ही सुलझ जाता है उसे भी वे मां को बताती हैं. मांपिता को पता लग जाने मात्र से बखेड़ा शुरू हो जाता है.

बहू के घर वाले खासकर उस की मां उसे समझने के बदले उस की ससुरालवालों से जवाब तलब करने लगती है, जिसे लड़के के घर वाले अपने सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं और अपने लड़के को सारी बातें बता कर उसे बीच में बोलने के लिए दबाव बढ़ाने लगते हैं.

पति को अपने मातापिता से जब अपनी ससुराल वालों के दखलंदाजी की बातें मालूम होती हैं, तो वह इसे अपने मातापिता का अपमान समझ कर गुस्से में आ कर पत्नी से झगड़ पड़ता है. उधर पत्नी भी अपने मातापिता के कहने पर उन के सम्मान के लिए भिड़ जाती है. मातापिता के विवादों की राजनीति में पतिपत्नी के बीच बिना बात झगड़ा और तनाव बढ़ता है.

छोटीछोटी बातों का बतंगड़

हर मातापिता जब अपने बच्चों की शादी करते हैं तो उन की खुशहाली ही चाहते हैं. फिर भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण अपने ही बच्चों की जिंदगी बरबाद कर देते हैं. आजकल बेटी की मां को लगता है कि वह बराबर कमा रही है तो किसी की कोई बात क्यों सुने? यह बात भी सही है, गलत बात का विरोध करना चाहिए, अत्याचार नहीं सहना चाहिए, पर अत्याचार या कोई गलत व्यवहार हो तब न.

अकसर छोटीछोटी बातों का ही बतंगड़ खड़ा होता है. जरूरी नहीं है कि हर बात के लिए उद्दंडता से ही बात की जाए. अगर कोई बात पसंद नहीं आती हो तो बड़ों का अपमान करने के बदले शांति से समझ कर भी बातें की जा सकती हैं. बातबात पर उलझ कर यह बताना कि हम बराबर कमाते हैं, इसलिए हम किसी से कम नहीं, मेरी ही सारी बातें सही हैं जैसी बातें करना गलत है.

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लड़कियों में इस तरह की बढ़ती स्वेच्छाचारिता उन की स्वत्रतंता को नहीं दर्शाती है, बल्कि उन की उद्दंडता को ही दर्शाती है. किसी भी चीज का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से भी समझ कर किया जा सकता है. लड़की को भी समझना चाहिए कि यह उस का घर है और घर की भी अपनी एक मर्यादा होती है.

बेवजह की बातें

मेरे पड़ोस में रिटायर बैंक कर्मचारी रहते हैं. उन का बेटा एक सरकारी औफिस में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उन की बहू भी बेटे के औफिस में नौकरी करती है. हाल ही में उन्हें पोता हुआ, तो उन्होंने कोरोना को देखते हुए कुछ अती करीबी लोगों को ही बुलाया.

लड़के की बूआ बहू को बच्चे की बधाइयां देते हुए बोली, ‘‘समय से पहले ही बच्चे का बर्थ हो जाने से बच्चा बहुत कमजोर है. लगता है बहू कोल्डड्रिंक और फास्टफूड ज्यादा खाती थी तभी बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया.’’

तुरंत लड़के की मां ने विरोध किया, ‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है दीदी… बस हो जाता है कभीकभी.’’

पास में बैठी बहू की बहन ने सुन लिया. तुरंत रिएक्ट करते हुए बोली, ‘‘अच्छी बात है जिस के मन में जो आता है वही बोल जाता है. दीदी तुम ने विरोध क्यों नहीं किया, यों ही कब तक घुटघुट कर जीती रहोगी.’’

संयोग से तब तक बूआजी बगल वाले कमरे में चली गई थीं.

तुरंत बहू की मां ने रिएक्ट किया, ‘‘जिसे पूछना है मुझ से पूछे, दामादजी से पूछे, यों मेरी बेटी को जलील करने का उन्हें कोई हक नहीं है. वह कोई गंवार लड़की नहीं है, दामादजी के बराबर कमाती है.’’

लड़के की मां दौड़ी आईं, ‘‘कुछ मत बोलिए, वह घर की सब से बड़ी है. जो भी कहना हो बाद में मुझ से कह लीजिएगा.’’

तुरंत बहू बोली, ‘‘मेरी मां ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो आप लोग उसे चुप कराने लगे?’’

फिर से बहन बीच में पड़ी, ‘‘इस सब में सब से ज्यादा गलती तो जीजाजी की है. वे अपनी बूआ से क्यों नहीं पूछते हैं कि वह इस तरह का ऊटपटांग बातें क्यों करती है.’’

तुरंत लड़़के की मां बोली, ‘‘मेरे बेटे के बाप की तो हिम्मत ही नहीं है कि अपनी बहन से सवाल पूछे. फिर मेरा बेटा क्या पूछेगा? अपने घर में हम अपने से बड़ों से उद्दंडता से बातें नहीं करते.’’

छोटी सी बात थी मगर

एक 80 साल के बुजुर्ग की बातों को ले कर दोनों परिवारों में कितने दिनों तक ठनी रही. लड़की के मातापिता अपनी बेटी को कहते कि उस की ससुराल में उन का अपमान हुआ है. वे लड़के वाले हैं तो क्या हुआ, मेरी बेटी उन के घर में इस तरह की उलटासीधी बात क्यों सुनेगी. लड़के की बूआ माफी मांगे वरना हम लोग लीगल ऐक्शन भी ले सकते हैं.’’

जब बहू ने ये सब बातें अपनी ससुराल में बोलीं तो लड़के के मातापिता बिगड़ गए, लड़के की मां बोली, ‘‘अच्छी जबरदस्ती है. मेरे घर की हर बात में टांग अड़ाते हैं, उलटे हमें धमकियां भी देते हैं. जो करना है करें, इतनी सी बात के लिए कोई माफी नहीं मांगेगा. इतना गुमान है तो रखें अपनी बेटी को अपने घर.’’

यह छोटी सी बात इतनी बढ़ी कि लड़की की मां अपनी बेटी को अपने घर ले गईं. न चाहते हुए भी पतिपत्नी, एकदूसरे से अलग हो गए. अपनेअपने मातापिता की प्रतिष्ठा बचातेबचाते बात तलाक तक पहुंच गई. बड़ी मुश्किल से लड़के के दोस्तों ने बीच में पड़ कर बात को संभाला.

गलत सलाह कभी नहीं

वंदना श्रीवास्तव एक काउंसलर है के अनुसार मातापिता के बेटी की ससुराल में छोटीछोटी बातों में दखल देने और लड़के के मातापिता के अविवेकी गुस्से और नासमझ भरी जिद्द से आज परिवार तेजी से टूट रहे हैं. वंदनाजी के अनुसार, उन के पास ज्यादातर ऐसे ही मामले आते हैं, जिन में मां की गलत सलाह के कारण बेटियों के घर टूटने के कगार पर होते हैं.

मेरे पड़ोस में एक सिन्हा साहब रहते हैं. उन्होंने अपनी इकलौती संतान अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से की. बहू को बेटी का मान देते थे. बहू भी बहुत खुश रहती थी और आशाअनुरूप सब से काफी अच्छा व्यवहार करती थी.

1 महीने बाद बेटा बहू के साथ दिल्ली लौट गया. वह वहीं जौब करता था. बहू भी वहीं जौब करती थी. जब बहू गर्भवती हुई बेटा मां को अपने पास बुला लाया, पर यह बात बहू की मां को पसंद नहीं आई. पहले वह समधन को यह कर घर लौटने की सलाह देती रही कि अभी से रह कर क्या कीजिएगा, समय आने पर देखा जाएगा. जब वह नहीं लौटी तो वह बेटी को समझने लगी कि जरूर तुम्हारी सास के मन में कुछ है, उन के हाथों का कुछ भी मत खानापीना.

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जैसे ही लड़के की मां की समझ में यह बात आई, वह वहां से जाने को तैयार हो गई, लेकिन बेटे के काफी अनुरोध करने पर उस की मां को वहां रुकना ही पड़ा. जब बच्चे का जन्म हुआ बहू की मां भी आ गई. फिर तो वह बच्चे को दादीदादा को छूने ही नहीं देती थी. बहू का व्यवहार अपनी मां को देख बदलने लगा. सीधीसादी सास उसे कमअक्ल नजर आने लगी. अपनी मां का साथ देते हुए सास से बुरा व्यवहार करने लगी. फिर अपनी मां के साथ अचानक मायके चली गई.

सासूमां और ससुरजी पटना लौट आए. तब से वे लोग बेटे के घर नहीं जाते हैं. बेटा खुद अपने मातापिता से मिलने आता है. रोज फोन भी करता है. बहू को ये सब पसंद नहीं है इसलिए घर में हमेशा तनाव बना रहता है. बहू के मां के कारण एक खुशहाल परिवार तनाव में जीता है.

अगर अपनी बेटी को सुखी रखना है तो खासकर लड़की की मां को बेटी का रिश्ता ससुराल में मजबूत बनाने में मदद करने के लिए उसे अच्छी सलाह देनी चहिए ताकि अपने अच्छे आचारविचार से वह सब का दिल जीत कर सब का प्यार और सम्मान पा सके. मां की जीत तभी है जब बेटी की ससुराल वाले उस पर नाज करें. तभी उस की बेटी खुद भी शांति से रहेगी और दूसरे को भी शांति से रहने देगी.

वहीं लड़के के मातापिता को बहू के मायके वालों की बातों को अपने सम्मान का विषय न बना कर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों का घर छोटीछोटी बातों से न टूटे वरना मातापिता के अहं की लड़ाई में बिना कारण बच्चों के घर टूटते रहेंगे.

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Top 10 Best Relationship Tips in hindi: रिश्तों की प्रौब्लम से जुड़ी टौप 10 खबरें हिंदी में

Relationship Tips in hindi: रिश्ते हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है. हर व्यक्ति किसी न किसी रिश्ते से जुड़ा होता है. चाहे वह माता-पिता हो या पति पत्नी. ये रिश्ते हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. लेकिन कई बार रिश्तों में खटास आ जाती है, जिसके चलते हमारा सपोर्ट सिस्टम टूट जाता है. इसीलिए आज हम आपको गृहशोभा की 10 Best Relationship Tips in Hindi के बारे में बताएंगे. इन Relationship Tips से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है रिश्तों से जुड़ी टिप्स जाननी है तो पढ़िए Grihshobha की Best Relationship Tips in Hindi.

1. 10 टिप्स: ऐसे मजबूत होगा पति-पत्नी का रिश्ता

Relationship Tips in hindi

जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है. छोटी-छोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं. मुश्किल के समय में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता है. कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है. जैसे…

1 मैसेज पर नहीं बातचीत पर निर्भर रहे…

ब्राइघम यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जो दंपत्ति जीवन के छोटे-बड़े पलों में मैसेज भेज कर दायित्व निभाते हैं जैसे बहस करना हो तो मैसेजेज, माफी मांगनी हो तो मैसेज, कोई फैसला लेना हो तो मैसेज, ऐसी आदत रिश्तों में खुशी और प्यार कम करती है. जब कोई बड़ी बात हो तो जीवनसाथी से कहने के लिए वास्तविक चेहरे के बजाय इमोजी का सहारा न लें.

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2. शादी के बाद धोखा देने के क्या होते हैं कारण

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धोखा देना इंसान की फितरत है फिर चाहे वह धोखा छोटा हो या फिर बड़ा. अकसर इंसान प्यार में धोखा खाता है और प्यार में ही धोखा देता है. लेकिन आजकल शादी के बाद धोखा देने का एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बाद बदले लेने के लिए. इतना ही नहीं कई बार शादी के बाद धोखा देने का कारण होता है असंतुष्टि. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि शादी के बाद धोखा देना कहां तक सही है, शादी के बाद धोखे की स्थिति को कैसे संभालें. क्या करें जब आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है.

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3. जानें कैसे करें लव मैरिज

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राशि और अमन का अफेयर पिछले 2 साल से चल रहा है. अब उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया, लेकिन वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि उन के पेरैंट्स इस रिश्ते के सख्त खिलाफ होंगे और वे चाह कर भी घर वालों की रजामंदी से शादी नहीं कर पाएंगे. इसलिए उन्होंने कोर्टमैरिज के बारे में सोचा, लेकिन कोर्ट में शादी की क्या औपचारिकताएं होती हैं, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था. उन्होंने अपने एक कौमन फ्रैंड राजेश से बात की जिस ने अभी कुछ साल पहले ही कोर्टमैरिज की थी, लेकिन उस से भी उन्हें आधीअधूरी जानकारी ही मिली.

ऐसा कई जोड़ों के साथ होता है, वे शादी करना तो चाहते हैं, लेकिन उस का क्या प्रोसीजर है, इस के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं होता और संकोचवश वे खुद इस की जांचपड़ताल करने से हिचकिचाते हैं. आइए जानें कि अगर पेरैंट्स राजी नहीं हैं और आप शादी के फैसले तक पहुंच गए हैं, तो आप विवाह कैसे कर सकते हैं.

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4. सास-बहू के रिश्तों में बैलेंस के 80 टिप्स

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

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5. KISS से जानें साथी का प्यार

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रिलेशनशिप में जैसेजैसे समय बीतता जाता है वैसेवैसे रिश्ता और गहरा होता जाता है और प्यार में पड़ कर जब लोग छोटीछोटी हरकतें करते हैं, तो उस से उन की पर्सनैलिटी के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है.

अगर आप को पता करना है कि आप का रिश्ता कितना गहरा और अटूट है तो आप यह तरीका अपना सकते हैं.

जब शब्द हमारी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते, तो लोग अलगअलग तरीके से अपने प्यार को जाहिर करने की कोशिश करते हैं. अपने प्यारभरे संदेश को पार्टनर तक पहुंचाने के लिए किस से बेहतर तरीका और क्या हो सकता है. किसिंग किसी भी रिश्ते का अहम हिस्सा है और इस में कोई शक नहीं कि लोग दुनियाभर में अलगअलग तरीके से किस करते हैं.

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6. जब मायके से न लौटे बीवी

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पेशे से मैकैनिक 22 साल का शफीक खान भोपाल की अकबर कालोनी में परिवार के साथ रहता था. उस की कमाई भी ठीकठाक थी और दूसरी परेशानी भी नहीं थी. लेकिन बीते 18 अक्तूबर को उस ने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली. ऐशबाग थाने की पुलिस ने जब मामला दर्ज कर तफतीश शुरू की तो पता चला कि शरीफ की शादी कुछ महीने पहले ही हुई थी और उस की बीवी शादी के बाद पहली बार मायके गई तो फिर नहीं लौटी.

शरीफ और उस के घर वालों ने पूरी कोशिश की थी कि बहू घर लौट आए. लेकिन कई दफा बुलाने और लाने जाने पर भी उस ने ससुराल आने से इनकार कर दिया तो शरीफ परेशान हो उठा और वह तनाव में रहने लगा. फिर उसे परेशानी और तनाव से बचने का बेहतर रास्ता खुदकुशी करना ही लगा.

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7. Married Life में क्या है बिखराव के संकेत

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Married Life में प्रेम की ऊष्मा जब कम होने लगती है तब पतिपत्नी के जीवन में ऐसी छोटीछोटी बातें होने लगती हैं, जो इस बात की ओर संकेत करती हैं कि उन के बीच दूरियां बननी शुरू हो रही हैं. अधिकतर दंपती इन संकेतों पर ध्यान नहीं देते या फिर वे समझ नहीं पाते हैं. समय रहते इन संकेतों पर ध्यान न दिया जाए तो उन के बीच प्यार, अपनापन, समर्पण की भावना कम होती जाती है और फिर एक दिन उन का दांपत्य जीवन टूट जाता है. इन संकेतों के प्रति संवेदनशील रह कर संबंधों के बीच पनप रही खाई को गहरा होने से रोका जा सकता है. बिखराव के ये संकेत दांपत्य जीवन के हर छोटेबड़े पहलू से जुड़े हो सकते हैं.

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8. शादी किसी से भी करें, आपका हक है

दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में रहने वाले प्रतीक (29) ने जब अपने घर में सिया (25,बदला नाम) के बारे में बताया तो मानो घर में पहाड़ टूट पड़ा हो. सिया के बारे में सुनते ही प्रतीक के घरवाले खुद को दोतरफा चोट खाया हुआ महसूस करने लगे. एक, सिया उन के अपने राज्य उत्तराखंड से नहीं थी, वह यूपी से ताल्लुक रखती थी. दूसरी व बड़ी बात यह कि वह जाति से भी अलग थी. दरअसल प्रतीक और सिया काफी समय से एकदुसरे से प्रेम कर रहे थे. साथ में समय बिताते हुए दोनों के बीच आपसी अंडरस्टेंडिंग काफी अच्छी हो गई थी. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन उन दोनों के प्रेम सम्बन्ध और शादी के बंधन के बीच उन की जाति आड़े आ रही थी. जहां प्रतीक ऊंची जाति से था वहीँ सिया कथित नीची जाती से थी.

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9. मिलन की पहली रात जरूरी नहीं बनाएं बात

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दूध का गिलास लिए दुलहन कमरे में प्रवेश करती है. कमरा सुंदर रंगबिरंगे फूलों और लाइट से सजा व मंदमंद खुशबू से महक रहा होता है और माहौल में नशा सा छाया होता है. दूल्हा बेसब्री से दुलहन के आने का इंतजार कर रहा होता है. उस के आते ही वह दूध का गिलास लेने के बहाने उस को बांहों में भरने के लिए लपकता है. वह भी लजातीसकुचाती हुई उस की बांहों में समा जाती है. इस के बाद पतिपत्नी के प्यार से कमरा सराबोर हो उठता है. यह दृश्य है हिंदी फिल्मों के हीरोहीरोइन पर फिल्माई गई मिलन की पहली रात का. विवाह और यौन संबंध बेहद नाजुक विषय है. पतिपत्नी का शारीरिक मिलन तभी सफल माना जाएगा, जब दोनों इस के लिए तैयार हों. अगर ऐसा न हो तो उसे एकतरफा भोग कहा जाएगा. विवाह के बाद पतिपत्नी अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं. ऐसे में दोनों का एकदूसरे पर भरोसा और आपसी संवाद उन के आपसी संबंध को अधिक मजबूत बनाता है.

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10. डोमिनेशन: पत्नी का हो या पति का, रिश्तों में पैदा करता है दरार

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आप दोनो कामकाजी हैं. आपका बच्चा बीमार है. आपके पति बच्चे की देखरेख के लिए छुट्टी न ले पाने की अपनी मजबूरी बताते हैं और उम्मीद करते हैं कि आपको उसकी देखभाल के लिए छुट्टी लेनी होगी. ऐसे में आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है? दूसरी और आपके पति आपको आॅफिस से घर लौटकर आकर बताते हैं कि कल रात उन्होंने अपने दोस्तों को डिनर के लिए आमंत्रित किया है. ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है? इस तरह की स्थितियां अकसर विवाहित पति पत्नी के जीवन में आती ही हैं और उस दौरान इनके जवाब किस तरह दिये जाते हैं. इसी से पता चलता है कि पति और पत्नी दोनो में से कौन डोमिनेटिंग हैं. सवाल पैदा होता है ये डोमिनेशन क्या है? डोमिनेशन का मतलब है अपने पार्टनर की इच्छाओं का सम्मान न करना, जबरन उसपर अपनी मर्जी थोपना. यह पति और पत्नी दोनो पर ही लागू होता है. कंसलटेंट साइकेट्रिक्ट डाॅ. समीर पारिख, डोमिनेशन को शारीरिक, वित्तीय, वरबल और साइकोलाॅजिकल इन तमाम श्रेणियों में विभाजित करते हैं. मसलन पति का यह कहना कि तुम आज किट्टी पार्टी के लिए नहीं जा सकती; क्योंकि तुम्हें मेरी मां को डाॅक्टर के पास लेकर जाना है. इस कथन के द्वारा पति अपनी इच्छा या अपेक्षा को जबरदस्ती पत्नी पर थोपता है. कई घरों में ऐसा भी देखा गया है कि पत्नी पति के इजाजत के बगैर अपने माता-पिता से मिल नहीं सकती.

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