पुरुषों को ही नहीं, महिलाओं को भी बदलने की जरुरत है- निर्देशक राहुल चित्तेला

प्रोड्यूसर मीरा नायर के साथ क्रिएटिव और प्रोड्यूसिंग पार्टनर के रूप में काम कर कर चुके निर्देशक राहुल चित्तेला एक इंडिपेंडेंट राइटर, प्रोड्यूसर है. वे फिल्म ‘आजाद’ के राइटर और डायरेक्टर है, जिसे पहली बार किसी भारतीय फिल्म को ‘प्रेस्टीजियस प्रेस फ्रीडम डे फोरम’ पर UNESCO द्वारा स्क्रीनिंग की गई थी, इस फिल्म ने कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड जीते है. राहुल हमेशा रियल कहनियों और रिलेटेबल कहानियों को कहना पसंद करते है. फिल्म ‘गुलमोहर’ भी ऐसी ही एक कहानी है, जो आज की पारिवारिक परिस्थिति को बयां करती है. जिसे उन्होंने बहुत ही खुबसूरत तरीके से दर्शकों तक पहुँचाने की कोशिश की है. ये फिल्म 3 मार्च को ओटीटी प्लेटफॉर्म डिजनी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज होने वाली है. उन्होंने इस फिल्म की मेकिंग और राइटिंग पर बात की और बताया कि ये फिल्म सभी उम्र के लिए है, जिसे सभी एन्जॉय कर सकते है.

कहानी 3 पीढ़ी की

राहुल कहते है कि पिछले 3 साल पहले मैं जब पहली बार पिता बना, उस वक्त इस कांसेप्ट की शुरुआत हुई थी. परिवार और उनके संबंधों को लेकर लिखना शुरू किया था, धीरे-धीरे चरित्र सामने आते गए और मैंने उसे कहानी में पिरोता गया, लेकिन बेसिक बात मैंने अपने मन में रखा था कि इसमें 3 जेनरेशन को दिखाया जायेगा. इसमें ये 3 जेनरेशन आज के समय को कैसे देखते है, उनमे जो बदलाव दिख रहा है, इसका अर्थ सभी के लिए क्या है आदि कई प्रसंगों को बयां करती हुई है. ऐसी कहानिया केवल एक परिवार की नहीं है, बल्कि कई परिवारों की कहानिया है. जो मैंने ऑब्जरवेशन के बाद लिखा है. हमेशा से मुझे हर उम्र के लोगों से बात करना पसंद है. फिल्म के दौरान अभिनेत्री शर्मीला टैगोर के साथ बात करना बहुत अच्छा लगा, उनकी बातें मुझे यंग फील करवाती है. मनोज बाजपेयी से बात करने पर परिवार पर उनकी धारणा को देखा और इसे जानने की उत्सुकता हुई. सभी पीढ़ी के कलाकारों के साथ काम करना मुझे बहुत अच्छा लगा.

 

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बदलना है महिलाओं को भी

महिलाओं में आगे बढ़ने की चाहत में हो रही समस्या के बारें में राहुल कहते है कि इसमें समाज में सभी की नजरिये को बदलने की जरुरत है. इसमें सिर्फ पुरुषों को ही नहीं, महिलाओं को भी बदलने की जरुरत है. इसमें उन्हें समझना है कि महिलाएं न तो पुरुषों से कम है और न ही अधिक है. दोनों को समान दर्जा प्राप्त है. इसी सोच को मैं अपने अंदर रखता हूँ. मैं ये मानता हूँ कि औरते पुरुषों से अधिक अकलमंद होती है, लेकिन पुरुषसत्तात्मक समाज ने पुरुषों को ही सबसे ऊपर रखा है. पुरुषों को ब्रेड अर्नर का दर्जा है, वे बाहर जाकर कमाएंगे. महिलाएं घर सम्हालेगी. बच्चे से पेरेंट्स के बारें में पूछे जाने पर वे भी पिता को ऑफिस और माँ को किचन में देखते है.

 

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आसपास है स्ट्रोंग महिलाएं

अनुभवी मीरा नायर के साथ काम करने के बाद राहुल ने कई चीजे फिल्मों से सम्बंधित सीखा है. वे कहते है कि मैं मीरा नायर के साथ काम कर खुद को लकी मानता हूँ, इस कहानी की लेखक अर्पिता भी है, जो न्यूयार्क में रहती है. इस फिल्म के साथ जुड़े अधिकतर महिलाएं है. पहले मैंने मीरा नायर जैसी महिला के साथ काम किया है और मेरी पत्नी मैथिलि भी एक स्ट्रोंग महिला है.

मेरी माँ विजया भी एक मजबूत महिला है, उन्होंने बाहर जाकर काम नहीं किया और ये जरुरी भी नहीं होता, पर उनकी सोच में बदलाव रहा. उन्होंने घर में सेंस ऑफ़ इक्वलिटी को हमेशा बनाये रखा. मैं खुद लिखता हूँ, प्रोड्यूस करता हूँ और निर्देशन भी करता हूँ. इसके फिल्म के लिए 2 से 3 साल लगे है, इसलिए जो कहानी मुझे उत्साहित करें, उसे करता हूँ. आगे मैं मनोहर कहानियों के लिखने पर एक शो बना रहा हूँ.

महिलाओं के लिए खास मैसेज

मेरा सभी महिलाओं से कहना है कि सेंस ऑफ़ इक्वलिटी के इमोशन के लिए रुके नहीं. कोई इसे आपको दिला नहीं सकता, इसे आपको खुद के लिए क्रिएट करना पड़ेगा. उसे पहले दिमाग से लाना पड़ता है, ये वुमन्स वर्ल्ड है और वे ही इस समाज और परिवार को बनाने वाली है. बच्चे के पीछे काम को न छोड़े. बच्चों को छोड़कर काम करने पर मन में अपराध बोध न लायें. साहिर मेरा बेटा है और वह जानता है कि मेरे माता और पिता दोनों ही काम करते है. इसके अलावा घर पर रहने वाली महिलाएं भी काम करती है, खाना पकाना घर की देखभाल करना भी एक काम है. इसलिए उन्हें रेस्पेक्ट ऑफ़ इक्वलिटी सभी को देना बहुतजरुरी है.

कुछ बातें सह-कलाकारों की फिल्म गुलमोहर में काव्या सेठ और उत्सवी झा ने भी भूमिका निभाई है, उनसे हुई बातचीत कुछ इस प्रकार है,

काव्या सेठ

दिल्ली की काव्या सेठ जो अब मुंबई में रहती है और एक एक्टर, डांसर और कोरियोग्राफर है. इस फिल्म में दिव्या की भूमिका निभा रही है. इससे पहले भी कावेरी ने कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन इस फिल्म में कावेरी को मौका मिलना एक बड़ी बात है, क्योंकि इस फिल्म की भूमिका उनसे काफी मेल खाती है. वह कहती है कि इस फिल्म से मुझे सीख मिली है कि कई बार सभी को खुश रखने की चाहत में व्यक्ति अपनी ख़ुशी को भूल जाता है, लेकिन फिल्म में दिव्या की जो चाहत पति के साथ रहते हुए है, उसे वह कर पाती है. इस फिल्म  में सबके साथ एक टीम में काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा है. वह फिल्म में भी दिखेगा. शर्मीला टैगोर और मनोज बाजपेयी के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. उन दोनों ने सच में एक परिवार बना लिया था. शर्मीला के एक इंटेंस सीन को देखकर मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैं अपने पैर हिलाने लगी, लेकिन शर्मीला ने देखा और मुझे इसे करने से मना किया. इससे मुझे अपने परिवार की याद आई. ये सारी यादें अब मुझे अच्छा अनुभव करवा रही है.

उत्सवी झा

मुंबई की उत्सवी झा फिल्म ‘गुलमोहर’ में अमृता बत्रा की भूमिका निभाई है. रियाल लाइफ में वह एक सिंगर और सोंग राइटर है, उन्होंने एक्टिंग कभी नहीं की है और कभी सोचा भी नहीं था. ये उनकी डेब्यू फिल्म है. इस फिल्म के ऑफर आने पर पहले उन्हें विश्वास नहीं हुआ, कॉन्ट्रैक्ट साईन करने के बाद उन्हें लगा कि वह एक्टिंग करने वाली है. वह कहती है कि मेरे परिवार के अलावा किसी को भी मेरी एक्टिंग के बारें में पता नहीं था. परिवार और दोस्तों ने मेरे इस काम में बहुत सहयोग दिया है. इस फिल्म में काम करना बहुत अच्छा लगा, क्योंकि मैं एक बड़े परिवार में रहती हूँ और इसमें भी मुझे एक बड़ा परिवार मिला है.

ये एक फॅमिली ड्रामा है, जिसमे रिश्तों और उनके संबंधों को दिखाने की कोशिश की गई है और आज हर वर्ग और उम्र के व्यक्ति खुद से इसे रिलेट कर सकेंगे. मैं रियल लाइफ में भी मैं अमृता की तरह ही हूँ, जिसे जो करना है वह अवश्य कर लेती है. इसके अलवा इस फिल्म में ये भी मेसेज है कि परिवार से अनबन कितनी भी हो, लेकिन मुश्किल वक्त में वे हमेशा साथ देते है और परिवार का महत्व हर किसी को देने की जरुरत है.

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