जंगल बुक का शेरखान गायों की हत्या कर रहा है. जबकि बल्लू गुरु के मुताबिक गाय इंसानों की बस्ती में माता यानी होली काऊ है. शेरखान जब छिप-छिप कर गौहत्या कर रहा है तो इंसान भी एक शिकारी को उसका एनकाउन्टर करने के लिए हायर करते हैं.
मोगली फिल्म का यह खान-गाय वाला स्टेटमेंट बहुत कुछ कहता है. इसे मात्र संयोग कहा जाए या नहीं, ये आप पर छोड़ता हूं. लेकिन मजेदार और मौजू तथ्य यह है हिंदुत्व के नशे में चूर भाजपा के भगवा ड्रेस कोडर योगी आदित्यनाथ भले ही आज हनुमान को दलित बता रहे हों लेकिन जंगल बुक के क्रियेटर रूडयार्ड किपलिंग योगी से सालों पहले यानी साल 1894 में ही अपने ऐन्टैगनिस्ट शेर का धर्म बता चुके हैं. आप उस बंगाली टाइगर को शेरखान के नाम से जानते हैं. यों तो जंगल में जानवरों का धर्म तो नहीं होता लेकिन योगी बन्दर को दलित और रूडयार्ड शेर को खान बताते हैं तो समझ आ ही जाता है कि दुनिया के हर कोने में जाति-धर्म और साम्प्रदायिक मानसिकता से ग्रसित लोग है, थे और रहेंगे. अब जैसे हम बौर्डर पार लोगों को मुस्लिम और जगह को पाकिस्तान कहते हैं तो अमेरिका भी मैक्सिको को कुछ इसी नस्ल-क्षेत्रवाद वाले चश्मे से देखता है.
बहरहाल कोई भी फिल्म दो सतहों पर चलती है. पहली स्टोरी लाइन पर, यानी जो परदे पर प्ले हो रहा है. दूसरा उस कहानी में छिपे उसके अंडरलाइन मैसेज, जो संवादों, दृश्यों और किरदारों के जरिए मिलते रहते हैं. वैसे तो ये सन्देश सांकेतिक होते हैं लेकिन जरा सा भी दिमाग रखकर देखेंगे तो आप भी उनका मर्म पकड़ लेंगे.
इस फिल्म में ऐसा बहुत कुछ है जो आपने जौन फेव्रू समेत कई जंगल बुक के ऐडोपटेड वर्जन में नहीं देखा होगा. मसलन शेरखान की गौहत्या वाले प्रकरण के अलावा पर्यावरण से छेड़छाड़ करती इंसानी बस्तियों का विस्तार और जंगलों के सिमटने का स्टेटमेंट. इंसानों की मैनूप्लेशन थ्योरी. अवैध शिकार, खाल और हाथी दांतों की तस्करी का प्रसंग, भविष्यवाणी, मुखिया बनने की रेस और क्षेत्रवाद की सीमाएं आदि स्टेटमेंट्स काबिलेगौर हैं.
कुल मिलाकर ओटीटी- नेटफ्लिक्स की फिल्म मोगली: लीजेंड औफ द जंगल में ऐसे बहुत सारे स्टेटमेंट्स हैं जो जंगल में घट रहे हैं लेकिन उनका वास्ता आज के समाज से है.
बात फिल्म की करें तो निर्देशक एंडी सरकिस ने इस मोशन कैप्चर फिल्म को पुरानी जंगल बुक परम्परा से हटके जरा डार्क, बोल्ड, हिंसक और डरावना बनाया है. यहां जानवर मासूमियत से गुदगुदाते नहीं हैं बल्कि जिन्दगी के असली फलसफे समझाते हैं. इस बार जानवर, जानवर ही बने रहते हैं, इन्सान बनने की एनेमेटेड कोशिश नहीं करते. हालांकि यही वजह फिल्म को उसके प्रमुख दर्शक वर्ग यानी बच्चों, महिलाओं से दूर करती है. लेकिन नेटफ्लिक्स को इसकी कोई खास परवाह रही नहीं क्योंकि उसकी अपनी तरह की एडल्ट आडियंस है और उसकी यूएसपी भी लीक से हटकर कुछ नया करने की है.
दरअसल कहानी के हिसाब से फिल्म में नया कुछ नहीं है लेकिन इसके सब-प्लाट इसे कई बार सीक्वल, प्रीक्वल और स्पिन औफ सरीखा अनुभव देते हैं. इंसान का एक बच्चा (मोगली) भेडियों के बीच पल रहा है, सब जानते हैं. लेकिन बघीरा (अभिषेक बच्चन) ने वुल्फ पैक मेंबर निशा (माधुरी दीक्षित) को मोगली क्यों सौंपा होगा, इसका जवाब पहली बार आपको इस फिल्म में मिलेगा. इसी तरह बल्लू (अनिल कपूर) के किरदार को इस बार कौमिक लेयर से बाहर निकालकर कुछ वजन और रोजगार दिया गया है, उसके पीछे भी लौजिक है. शेरखान (जैकी श्रोफ) विलेन है, और इसे मारना ही चाहिए, इसका भी जस्टिफिकेशन है. वरना पुराने संस्करणों में शेरखान को सिर्फ बुरा बता दिया जाता रहा है. का (करीना कपूर) की मौजूदगी को भी विस्तार मिला है. क्यों वह मोगली को बार-बार जिन्दा छोडती है, इसका जवाब भी है. डिज्नी ने इस बार जंगल बुक में नया किरदार (भूत) भी जोड़ा है. और हां, इसके एक्सप्रेशन देखकर कई बड़े एक्टर शरमां जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं.
शेरखान विलेन है और इस बार उसकी एंट्री लंगड़ाते हुए होती है. याद आता है गूफी पेंटल का किरदार शकुनी. जिसके बार में खुद गूफी पेंटल ने कहा था कि जब अचानक उन्हें यह किरदार मिला तो इसमें विलेनियस पुट डालने के लिए उन्होंने 2 सुझाव दिए. पहला यह कि उसे काले कपड़े पहनाओ क्योंकि काला रंग बुराई का प्रतीक है. (हालांकि इस अंधविश्वासी तर्क के लिए इसके लिए रजनीकांत का दलित ‘काला’, रावण का काला, काला जादू, काली बिल्ली और काली परछाई जैसे अतार्किक पहलू दोहराए जाते हैं). दूसरा सुझाव यह कि इसकी चाल लंगड़ी कर दो, जिस से शकुनी की धूर्तता उसकी चाल से ही जाहिर हो जाए. जाहिर है उनका यह प्रयोग सफल रहा. और शेर खान के ओपनिंग सीन में उसका लंगड़ा कर आना ऐसा ही इम्पैक्ट छोड़ता है. आपको भी इस तरह से कई विलेन क्रिपल लुक में याद आ जाएंगे.
निर्देशक एंडी लार्ड औफ ड रिंग्स और प्लैनेट औफ द एप्स सीरीज जैसी फिल्मों में मोशन कैप्चर तकनीक का जादू देख चुके हैं, लिहाजा इस फिल्म में बतौर निर्देशक उनका अनुभव दिखता है. फिल्म लाइव एक्शन एनीमेशन फिल्म है. ऐसी फिल्म जिसमें जानवरों के किरदारों के चेहरों के भाव पकड़ने के लिए इंसानों पर मोशन कैप्चर का इस्तेमाल होता है और बाद में असली अभिनेताओं को इस मोशन पिक्चर से बने ग्राफिक्स के साथ जोड़ दिया जाता है.
लेकिन इसमें आप भारतीय कलाकारों के एक्सप्रेशन मत ढूंढने लग जाएं क्योंकि आप डबिंग वर्जन देख रहे हैं. हां, अगर क्रिचियन बेल (बघीरा), बेनेडिक्ट (शेर खान), केट ब्लैंचेट (का), टौम होलैंडर (तबाकी, एंडी सर्किस (बल्लू), नाओमी हैरिस (निशा), आदि विदेशी अभिनेताओं का काम दे देख चुके हैं तो कुछ जाना-पहचाना दिखेगा. मोगली का किरदार रोहन चांद ने निभाया है और उम्दा काम है उनका. बाकी किरदार मोशन कैप्चर तकनीक के जरिये मूल अभिनेताओं ने ही निभाये हैं.
इस फिल्म में कोई भी किरदार क्यूट नहीं है. सिवाए भूत के. सबका अपना एजेंडा है. मोगली इस डिलेमा से जूझ रहा है कि वह भेड़िया है इंसान. इस बार वह चड्ढी पहनकर फूल नहीं खिला रहा है बल्कि शिकारी है और कच्चा मांस खाता है. गुरु बघीरा स्ट्रिक्ट है अपनी पोजीशन के प्रति. शेर खान अपने शिकार के लिए फोकस्ड है. वुल्फ पैक की टोली के अपने संघर्ष हैं. मोगली और भूत के सीन्स इमोशनल हैं तो बघीरा और बल्लू का फाईट सीक्वेंस ड्रामाई टर्न देता है. हाथी वाला सीन बेहद अहम् है. जहां हाथी एक इंसान की इंसानों द्वारा अपने लिए बिछाए जाल से बाहर निकालने में मदद करता है. और हां, बघीरा के किरदार को स्पिन ऑफ कर एक नयी फिल्म भी बनाई जा सकती है. उसके फ्लैशबक में इसके सूक्ष्म संकेत हैं. जंगल उतना चमकदार और खूबसूरत नहीं है जितना पहली की फिल्मों में होता था लेकिन दक्षिण अफ्रीका के जंगल डार्क थीम तो दे ही देते हैं. हालांकि असली किस्सा मध्य प्रदेश के जंगलों में घटता है. कैली क्लोव्स की पटकथा बिलकुल फ्लो में है. एंड क्रेडिट रोल में इकलौते भारतीय ओरिजिनल कास्ट मेंबर नितिन साहनी का नाम बतौर संगीतकार आता है.
फिल्म में शिकार और शिकारी का रोल प्ले कई बार उभरता है. मोगली की ट्रेनिंग और वुल्फ का रेसिंग कॉम्पटीशन सीन रोमांचक है. मोगली से इतर इंसानी किरदार जोड़ने से कैनवास भी बढ़ गया है. कुछ संवाद भी याद रह जाते हैं. मसलन लकड़बग्घा की पूंछ आग से झुलस जाती है तो वह कहता है, “तुमरी जात वाले काला जादू करते हैं पिल्ले.” वहीँ शेरखान ओपनिंग सीन में कहता है, “ ये पिल्ला (मोगली) मेरा है, इसकी मां का खून अब भी मेरी दाढ़ में है. इस पर मेरा हक है.”
बाकी मोगली को जिस तरह नेटफ्लिक्स हर जॉनर को एडल्ट और मेच्योर टर्न देकर स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म में उतार रहा है, वही ट्रीटमेंट उसने इस एनीमेशन श्रेणी के साथ किया है. जो कइयों को पसंद नहीं आयेगी लेकिन जो बचपन में दूरदर्शन वाले मोगली को देखकर बड़े हो चुके हैं उन्हें शायद अच्छा लगे कि उनका मोगली भी बड़ा और मेच्योर हो गया है. बहरहाल यह फ़िल्म कुछ चुनिंदा थियेटर में रिलीज हुई है, बाकी आप नेटफ्लिक्स पर कभी भी देख सकते हैं.
उम्मीद तो यह भी है कि आगे चलकर मोगली अब फ्रेंचाइजी ब्रांड के तौर पर और बड़ा होकर इंसानों के बढ़ते लालच और सिकुड़ते जगलों के खिलाफ नया युद्ध छेड़ेगा.