अचानक दिल्ली में जब उस हवाई दुर्घटना के बारे में सुना तो एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. मैं तो बड़ी बेसब्री से कमला की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक यह हादसा हो गया.
कमला शादी के बाद पहली बार दिल्ली अपने मातापिता के पास आ रही थी. 5 साल पहले उस की शादी हुई थी और शादी के कुछ महीने बाद ही वह अपने पति के पास मांट्रियल चली गई थी. इसी बीच उस की गोद में एक बेटी भी आ गई थी. दिल्ली में उस का मायका हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर था.
मैं पिछले 8 महीने से अपने पति और बच्चों के साथ दिल्ली में ही थी. मेरे पति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे थे. कमला से मिले काफी दिन हो गए थे. मैं मांट्रियल की सब खोजखबर कमला से जानने के लिए उस की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी.
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कमला के पिता के घर हम अफसोस जाहिर करने गए. उस के मातापिता और परिवार के अन्य सदस्यों का बुरा हाल था. वे तो उसे पति के घर जाने के बाद एक बार देख भी नहीं पाए थे और अब क्या से क्या हो गया था.
कमला के पति राकेश को एअर लाइंस ने दुर्घटना स्थल तक जाने की सब सुविधाएं प्रदान की थीं. वह चाहता तो उस कंपनी के खर्चे पर भारत आ कर पत्नी और बेटी का दाहसंस्कार कर सकता था पर वह नहीं आया.
राकेश ने जब कमला के पिता को फोन किया, तब हम उन के घर पर ही थे. बेचारे राकेश से आग्रह कर के हार गए, पर वह दिल्ली आने को राजी नहीं हुआ. खैर, वह करते भी क्या. जमाई पर किस का हक होता है और अब तो उन की बेटी भी इस दुनिया में नहीं रही थी तो फिर वह उस को किस अधिकार से दिल्ली आने के लिए बाध्य करते.
एअर लाइंस के अधिकारी दुर्घटना में मरे यात्रियों के निकट संबंधियों से मुआवजे के बारे में बातचीत कर रहे थे. यह विषय कितना दुखद हो सकता है, इस का अनुमान तो वही लगा सकते हैं जो कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरे हों. कैसे किसी विधवा स्त्री को समझाया जाए कि उस के पति की मृत्यु का मुआवजा चंद हजार डालर ही है. कैसे किसी पति को सांत्वना दें कि उस की पत्नी का मुआवजा इसलिए कम होगा, क्योंकि वह अपने पति पर निर्भर थी. जो इनसान हमें प्राणों से भी प्यारे लगते हैं, उन के जीवन का मूल्य एअरलाइंस कुछ हजार डालर ही लगाती है.
राकेश से जब एअरलाइंस के अधिकारियों ने उस की पत्नी और बच्ची की मृत्यु पर मुआवजे की बातचीत की तो वह क्रोध और दुख से कांप उठा. उस ने साफसाफ कह दिया कि इस दुर्घटना के लिए हवाई जहाज का पायलट जिम्मेदार था. वह अपनी बच्ची और पत्नी की मृत्यु के लिए मुआवजे की एक कौड़ी भी नहीं चाहता परंतु वह एअरलाइंस पर मुकदमा चलाएगा, चाहे उसे इस के लिए भीख ही क्यों न मांगनी पड़े. वह कचहरी में कंपनी को हवाई दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ही रहेगा.
एअरलाइंस के अधिकारी राकेश को धीरज बंधाने की कोशिश कर रहे थे. अगर वास्तव में राकेश कानून का सहारा लेगा तो मुकदमा जीत जाने पर कंपनी की कहीं अधिक हानि हो सकती थी. कंपनी के अधिकारी उस के इर्दगिर्द घूमते रहे, पर उस ने मुआवजे के फार्म पर हस्ताक्षर नहीं किए. शेष जितने भी यात्रियों की मृत्यु हुई थी, लगभग हर किसी के परिवार के सदस्यों ने मुआवजे के फार्म भर दिए थे. शायद राकेश ही ऐसा था जो बिना फार्म भरे मांट्रियल वापस आ गया था. एअरलाइंस के मांट्रियल कार्यालय के अधिकारियों को राकेश को राजी करने का काम सौंप दिया गया था.
राकेश और कमला से हमारी मुलाकात कुछ वर्ष पहले हुई थी. कमला तो काफी खुशमिजाज थी, पर राकेश हमें अधिक मिलनसार नहीं लगा. वैसे तो उसे कनाडा में रहते हुए कई साल हो गए थे और मांट्रियल में भी वह पिछले 7 सालों से था, पर उस की यहां पर इक्कादुक्का लोगों से ही मित्रता थी.
एक बार बाजार में कमला मिल गई.
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मैं ने जब उस से कहा कि मेरे घर चलो तो वह आनाकानी करने लगी. खैर, मैं आग्रह कर के उसे अपने घर ले आई. बातों ही बातों में पता चला कि बचपन में हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वह मुझ से मिल कर बहुत खुश हुई.
यह सुन कर मुझे बहुत अजीब लगा जब कमला ने बताया कि वह जब से भारत से आई है, किसी भी भारतीय के घर नहीं गई है और न ही उस ने कभी किसी को अपने घर बुलाया है. मैं ने जब उन को अपने घर खाने का निमंत्रण दिया तो वह आनाकानी करने लगी. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, राकेशजी शाम को खाली भी होंगे या नहीं.’’
मैं ने जिद की तो वह मान गई परंतु यह कह कर कि अगर नहीं आ सके तो हम बुरा नहीं मानें. उस की बातों से लगा कि जैसे बेचारी पति की आदतों से परेशान है. पति अगर मिलनसार न हो तो पत्नी तो बेचारी बस जीवनभर घुटघुट कर ही मर जाए.
शाम को पतिपत्नी हमारे घर खाने पर आए. कमला तो बहुत खुश थी. मेरे साथ रसोई में हाथ बंटा रही थी, परंतु राकेश कुछ खिंचाखिंचा सा था. हमें ऐसा लगा कि वह कनाडा में अपनेआप को किसी विदेशी सा ही समझता है.
कमला और राकेश के यहां हमारा कभीकभार आनाजाना होने लगा. हम तो उन दोनों को पार्टियों में ही बुलाते थे, पर वे हमें बस अकेले ही सपरिवार आमंत्रित करते थे. हमारे घर की पार्टियों में उन की मुलाकात हमारे बहुत से मित्रों से होती थी. उन में से कुछ ने तो कमला और राकेश को खाने पर भी बुलाया था, पर वे नहीं गए. कोई बहाना बना कर टाल गए थे. जब उन की बच्ची पैदा हुई तो उस के लिए हमारे अलावा शायद ही किसी और ने उपहार दिया हो. हम भी बस एक ही बार जा पाए थे.
दिल्ली से जब हम मांट्रियल वापस आ रहे थे, सारे रास्ते मन उखड़ाउखड़ा सा था. इतने महीने दिल्ली में बिताने के बाद घर वालों से बिछुड़ने का दुख भी था. दिल के एक कोने में अपने घर जल्दी पहुंचने की इच्छा भी थी. कमला और उस की बच्ची रीता का खयाल भी रहरह कर दिल में उठ रहा था. बेचारा राकेश किस तरह कमला और रीता के बिना जीवन बिता रहा होगा. हमारे बच्चे तो रीता से कितना हिलमिल गए थे. उन को तो वह गुडि़या सी लगती थी.
मांट्रियल पहुंचने के अगले दिन हम दोनों राकेश से मिलने गए. मैं ने कमला के पिता का दिया हुआ पत्र राकेश को दे दिया. राकेश काफी उदास दिखाई दे रहा था. वह बेचारा बहुत कम लोगों को जानता था. थोड़े से लोग ही उस के घर पर अफसोस करने आए थे.
वह गंभीर स्वर में बोला, ‘‘हर समय कमला और रीता की याद सताती रहती है. कुछ दिल बहलेगा, इसलिए 1-2 दिन में वापस काम पर जाने की सोच रहा हूं.’’
राकेश के पास हम कुछ देर बैठ कर लौट आए.
दोचार दिन में हमारे सब मित्रों को मालूम हो गया कि हम वापस आ गए हैं. फिर क्या था, फोन पर फोन आने लगे. मेरी लगभग सभी सहेलियां मुझ से मिलने आईं. वे सब इस बात से परेशान थीं कि कनाडा के डाक कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पत्र आदि आने भी बंद हो गए हैं.
एक शाम दीपक हमारे घर आए. उन्हें अकेले देख कर मैं ने शिकायत के लहजे में कहा, ‘‘क्यों भाई साहब, अकेले ही आ गए. भाभीजी को भी साथ ले आते.’’
‘‘मैं तो राकेश के घर जा रहा था. सोचा, आप लोगों से मिलता जाऊं और दिल्ली की मिठाई भी खाता जाऊं. तुम्हारी भाभी तो मुझे मिठाई को हाथ भी नहीं लगाने देंगी.’’
‘‘मैं भी बस आप को थोड़ी सी मिठाई चखाऊंगी. मुझे भाभीजी से डांट नहीं खानी है.’’
मैं रसोई में चाय बनाने चली गई.
दीपक मेरे पति से बोले, ‘‘साहब, डाक कर्मचारियों की हड़ताल ने परेशान कर रखा है. देखिए, यह चेक देने मुझे राकेश के पास खुद ही जाना पड़ रहा है.’’
‘‘किस तरह का चेक है, भाई साहब,’’ मैं रसोई में चाय और कुछ मिठाई ट्रे में रख कर ले आई और चाय परोसने लगी.
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‘‘राकेश ने कमला के भारत जाते समय उस का हवाई अड्डे पर 2 लाख डालर का बीमा करा लिया था. यह चेक उसी बीमे का भुगतान है. कभी हाथ पर रखा है 2 लाख डालर का चेक,’’ दीपक ने मुसकराते हुए कोट की जेब से एक लिफाफा निकाला.
लगभग आधा घंटा बैठ कर दीपक राकेश को चेक देने चले गए. उस शाम हम दोनों पतिपत्नी यही सोचते रहे कि राकेश 2 लाख डालर का क्या करेगा. हमारे जानपहचान वालों में शायद ही कोई ऐसा हो जो पत्नी का हवाई यात्रा करते समय बीमा कराता हो. पुरुष तो फिर भी करा लेते हैं, पर पत्नी के लिए तो कोई भी नहीं सोचता. खैर, यह तो राकेश और कमला की अपनी इच्छा रही होगी. यह भी तो हो सकता है कि मजाक के लिए ही उन दोनों ने ऐसा किया हो, पर राकेश हंसीमजाक के लिए तो कुछ भी नहीं करता.
हम मांट्रियल में अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे. सोमवार से शुक्रवार तक काम और बच्चों का स्कूल. शनिवार को खरीदारी और पार्टियां तथा रविवार को बस आराम या कभीकभी किसी परिचित के घर चले जाते.
राकेश से कभीकभी फोन पर मेरे पति बात कर लेते थे. हालांकि उस की चर्चा पार्टियों में कभीकभी ही होती थी. हमारे मित्र हम से ही उस के बारे में पूछते थे. लगता था, जैसे वह बाकी सब लोगों के लिए एक अजनबी सा ही हो.
एक बार दीपक बातों ही बातों में कह गए थे, ‘‘राकेश अपनी बीवी और बच्ची के लिए एअरलाइंस से मुआवजे के रूप में बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहा है और जिद पर अड़ा है. अब तो उस के पास 2 लाख डालर की नकद रकम भी है. एअरलाइंस के खिलाफ मुकदमा न कर दे. वैसे कंपनी इस मामले को कचहरी तक पहुंचने नहीं देना चाहती और समझौता करने की कोशिश कर रही है. राकेश शायद हवाई दुर्घटना से पीडि़त अन्य लोगों की तुलना में कई गुना मुआवजा हवाई कंपनी से हासिल करने में सफल हो जाएगा.’’
जैसा कि होता है, हम भी कमला और रीता को भूल सा गए थे. राकेश तो कभी हम लोगों के करीब आ ही नहीं पाया था. हम ने एकदो बार उसे अपने घर बुलाया भी, परंतु वह नहीं आया, हम उस से मिलने उस के घर भी गए, पर अधिक बातें न हो सकीं.
डाक विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल काफी दिन चली. जब हड़ताल समाप्त हुई तो हमें बहुत खुशी हुई. हड़ताल खत्म होते ही डाकघरों में पड़े पुराने पत्र, टेलीफोन और बिजली आदि के बिल आने चालू हो गए.
एक दिन दिल्ली से हमारे मांट्रियल पहुंचने के पश्चात पहला पत्र आया. लिफाफा भारी लग रहा था. उस में अम्मां का काफी लंबा पत्र था. एक और लिफाफा भी था, जिसे कनाडा से ही मेरे नाम भेजा गया था. हमारे दिल्ली से चले आने के बाद वहां पहुंचा होगा, इसलिए अम्मां ने हमें भेज दिया.
मैं ने जब लिफाफा खोला तो आश्चर्यचकित रह गई. पत्र कमला का था. मेरा मन उदास हो गया क्योंकि कमला अब इस दुनिया में नहीं थी. मैं पत्र पढ़ने लगी :
प्रिय रत्ना दीदी,
आप का पत्र मिला. मेरा कुछ ऐसा कार्यक्रम बन गया है कि जब आप मांट्रियल वापस आएंगी, तब मैं दिल्ली से कानपुर पहुंच चुकी होऊंगी. मेरी माताजी से आप को मेरे दिल्ली पहुंचने की तारीख का पता चल ही गया होगा. शायद आप को यह नहीं पता कि मैं जिद कर के दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद ही कानपुर अपनी बड़ी बहन के पास चली जाऊंगी. इस का कारण यह है कि आप मुझ से मिलने अवश्य मेरी माताजी के घर आएंगी, पर मैं आप से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही हूं. अब हम शायद कभी नहीं मिल पाएंगी क्योंकि मैं अब मांट्रियल कभी नहीं लौटूंगी.
मेरे इस निर्णय का राकेश को भी पता नहीं है. हां, इस का सौ प्रतिशत उत्तरदायी वही है. हमारी शादी हुए 5 साल से ऊपर हो गए हैं, पर उस ने शायद ही कभी पति का प्यार मुझे दिया हो. राकेश ने मुझे घर की नौकरानी से अधिक कभी कुछ नहीं समझा. शादी के इतने वर्ष बीत जाने पर भी उस ने कभी मेरे लिए कोई साड़ी, गहना या छोटा सा उपहार भी नहीं खरीदा. मेरी बात को छोडि़ए रीता को भी उस ने कभी प्यार से चूमा तक नहीं, गोद में खिलाना तो दूर की बात है.
आप ने देखा ही होगा कि राकेश कितना नीरस व्यक्ति है. परंतु वास्तव में वह बहुत खुशमिजाज है, और उस की यह खुशी बस अपनी महिला मित्रों तक ही सीमित है. उस ने अपने जीवन के इस रूप से मुझे हमेशा अनजान ही रखा. खुद ऐश करने के लिए उस के पास पैसे हैं, परंतु अपनी बेटी के लिए ढंग का फ्राक खरीदने के लिए पैसे की कमी है. वह हमेशा मुझे इतने कम पैसे देता है कि घर का खर्च भी मुश्किल से चलता है.
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मैं कभी राकेश को पकड़ तो नहीं पाई परंतु जानती हूं कि कई लड़कियों के साथ उस का संपर्क है. मुझे प्रमाण तो नहीं मिल पाया, पर एक पत्नी को ऐसी बातें तो मालूम हो ही जाती हैं. मैं ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, पर हर बार उस से मार ही खाई. मेरे भारत जाने के लिए हवाई जहाज के टिकट के पैसे खर्च करने के लिए कभी वह राजी नहीं हुआ. इस बार जब पिताजी ने टिकट भेज दिया तो मैं दिल्ली आ पा रही हूं.
प्रत्येक लड़की के मातापिता अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा वर खोजने की कोशिश करते हैं. मेरे मातापिता ने भी इतना दहेज दिया था कि राकेश के घर वाले खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. मेरे दहेज की सारी चीजों और नकद रुपयों से उन्होंने थोड़े दिनों बाद ही राकेश की छोटी बहन की शादी कर दी थी.
राकेश ने अपने घर वालों के दबाव में आ कर मुझ से शादी की थी. उसे मैं कभी भी अपने लायक नहीं लगी, क्योंकि मैं एक सीधीसादी आकर्षण- रहित महिला हूं. मुझे कहीं अपने साथ ले जाने में भी उसे आपत्ति होती थी. बेचारी रीता भी रंगरूप में मुझ पर गई है. इसी कारण उसे कभी राकेश से पिता का प्यार नहीं मिला.
मैं तो शायद किसी भी साधारण व्यक्ति को पति के रूप में पा कर प्रसन्न रहती. कम से कम मेरे जीवन में हीन- भावना तो न घर कर पाती. राकेश मेरे लिए उपयुक्त वर भी न था. उस ने मुझ से शादी खूब सारा दहेज पाने के लिए की थी. वह उसे मिल गया. उस के बाद उस के जीवन में मेरा कोई महत्त्व न था. शारीरिक आवश्यकताएं तो वह घर के बाहर पूरी कर ही लेता था. मैं तो बस रीता के लिए ही उस के साथ विवाहित जीवन की परिधि में असहाय की तरह जीवन बिताने का प्रयास कर रही थी.
अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि जब विवाहित हो कर भी अविवाहिता का ही जीवन बिताना है तो क्यों न अपने मातापिता के पास ही रहूं. कम से कम उन का प्यार और सहयोग तो मुझे मिलेगा ही. मुझे मालूम है, मेरे मातापिता मुझे समझाने की कोशिश करेंगे, पर जब मैं उन्हें अपनी पीठ पर उभरे राकेश की मार के काले निशान दिखाऊंगी तो वे शायद कुछ न कहेंगे. मेरे जीवन के पिछले 5 साल कैसे बीते हैं, यह मेरा दिल ही जानता है. पर उन दिनों आप ने जो मुझे प्यार और स्नेह दिया, उस ने मुझे मानसिक संतुलन खो देने से बचा लिया. मैं जीवन भर आप की आभारी रहूंगी.
आप की कमला.
कमला का पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. राकेश का जो रूप कमला के पत्र से प्रकट हुआ, उस की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. मांट्रियल आने के बाद राकेश से हम 2-3 बार मिले थे.
हमेशा ऐसा ही लगा, जैसे उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है. यह सब क्या उस का दिखावा था, ताकि वह एअरलाइंस से अधिक मुआवजा वसूल कर सके. 2 लाख डालर तो उस की
जेब में आ ही चुके थे. अभी पता नहीं उसे मुआवजे के रूप में और कितने मिलेंगे?
कितना दुखभरा जीवन था कमला और उस की बच्ची का. जब तक जीवित रहीं छोटीछोटी चीजों के लिए तरसती रहीं क्योंकि राकेश आमदनी का अधिक भाग अपनी ऐयाशी पर खर्च कर देता था. मृत्यु के बाद भी दोनों राकेश के लिए आशातीत मुआवजे की रकम का प्रबंध कर गईं.
कह नहीं सकती कि राकेश एकांत के क्षणों में कमला और रीता की मृत्यु पर दुखी होता है अथवा प्रसन्न. उस का निजी जीवन पहले की तरह चल रहा है या कमला के रास्ते से हमेशा के लिए हट जाने के कारण वह और भी अधिक ऐशोआराम में डूब गया है.
वैसे राकेश जैसे व्यक्ति के बारे में मैं सोचना नहीं चाहती. कमला और उस की बेटी तो शायद राकेश का अतीत बन गई होंगी, पर उन दोनों की स्मृति मेरे मन से कभी नहीं जाएगी.
राकेश को तो मुआवजा मिल ही जाएगा, पर वह जीवन भर कमला का कर्जदार रहेगा. उसे कमला के जीवन के दुख भरे वर्षों का मुआवजा कभी न कभी किसी न किसी रूप में तो चुकाना ही पड़ेगा.
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