औफिस से आते ही महाशय शर्ट उतार कर ऐसे फेंकते हैं जैसे वह शर्ट न हो गेंद हो. जूते कभी शू रैक में नहीं मिलेंगे. वे या तो सोफे के नीचे पड़े होंगे या फिर बैड के नीचे सरका दिए जाते हैं. औफिस बैग भी आते ही इधरउधर फेंक दिया जाता है. कपड़े भी अलमारी में कम दरवाजे के पीछे ज्यादा टंगे मिलते हैं. कुछ खाएंगे तो महाशय कूड़ा डस्टबिन में डालने के बजाय बाहर ही फेंक देंगे. यह हालत किसी एक पुरुष की नहीं वरना ऐसा करीबकरीब सभी करते हैं और फिर उन के फैले सामान को या तो नौकरानी की तरह उन की मां समेटती है या फिर पत्नी.
ऐसे पुरुष विरले ही होते हैं, जो घर के हर काम में पत्नी की मदद करते हैं. मदद तो छोडि़ए कम से कम पति अपना सामान ही समेट ले वही काफी है.
क्या कभी आप ने सोचा है पुरुष के काम न करने के पीछे क्या वजह है? आखिर काम करना पुरुष को अखरता क्यों है? क्यों वह काम से जी चुराता है?
महिलाएं हैं जिम्मेदार
पुरुष की इस आदत के पीछे मांएं जिम्मेदार हैं. घर में रहने की वजह से घर के सारे काम की जिम्मेदारी समझ लेती हैं. पूरा दिन घर के काम करते निकल जाता है. लेकिन औफिस या स्कूल से आते ही फिर सामान बिखर जाता है. उसे समेटने वाली मां अकेली जान होती है. अकेले ही सारा काम करती है. विवाह बाद पत्नी यह काम करने लगती है. पति को कभी यह नहीं बोलती कि आप फलां काम कर दो या सामान न फैलाओ. अकसर महिलाएं बेटों से काम नहीं करातीं. मां के यही डायलौग होते हैं- ‘छोड़ बेटा तू मत कर, मैं कर लूंगी,’ ‘मेरा तो रोज का काम है.’ मां की इसी आदत की वजह से बेटा धीरेधीरे काम से जी चुराने लगता है, जिस के चलते वह और काम करना तो दूर की बात अपना खुद का सामान संभालना भी बंद कर देता है.
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पति कामचोर, पत्नी की आफत: मां के साथ रहतेरहते आदत इतनी खराब हो जाती है कि उस का परिणाम पत्नी को भुगतना पड़ता है. पूरा दिन घर का सामान समेटतेसमेटते निकल जाता है. कर चूर होने के बावजूद खाना बनाती है, जबकि पति आते ही सामान फैला देते हैं और खाना खा कर सो जाते हैं. पति की यह आदत सविता को बहुत अखरती है.
वरना बढ़ेगी तकरार: अगर आप के लाड़ले की आदत ऐसी ही रही तो घर में पतिपत्नी के बीच तकरार बढ़ेगी. आएदिन झगड़े होंगे, क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है. नौकरानी बन कर काम करना किसी को पसंद नहीं. कई बार देखा गया है कि पुरुष अपने अंदरूनी वस्त्र भी ऐसे ही छोड़ कर चले जाते हैं. उन को भी या तो मां धोती है या फिर बीवी, यह सरासर गलत है.
मां बच्चे की पहली पाठशाला: कहा जाता है कि मां बच्चे की पहली पाठशाला होती है. मां से ही बच्चा सब चीजें सीखता है- बोलना, चलना, हंसना आदि. लिहाजा अपने बच्चे में शुरू से ही अपने काम करने की आदत डालें.
बेटी के साथसाथ बेटे को भी सिखाएं: सिर्फ बेटी को ही घर का काम न सिखाएं, बल्कि बेटे को भी सिखाएं. खाना बनाना, पेड़पौधों को पानी देना, घर की साजसज्जा करना ताकि उस का इंटै्रस्ट बना रहे और भविष्य में होने वाली परेशानी से बचा जा सके.
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सास भी संभल जाए जरा: अगर बेटा बहू की काम में मदद करता है, तो सास चिढ़े नहीं. कई मामलों में देखा जाता है कि सास बहू को ताना मारने से बाज नहीं आती. अगर बेटा घर के काम में मदद कर रहा है तो कौन सा आसमान टूट पड़ा? सास बहू को बेटी समान समझे. काम लादने के बजाय उस की मदद करे ताकि वह हर काम खुशीखुशी निबटा सके. अगर काम का बोझ ज्यादा होगा तो काम उस के लिए तनाव बन जाएगा.
बातबात पर न करें गुस्सा: अगर आप पति की आदतों से परेशान हैं तो बातबात पर गुस्सा न करें. गुस्से को काबू करना सीखें. अगर आप को अपने पति की आदतें पसंद नहीं हैं तो पति को प्यार से समझाएं. बेहतर होगा कि अकेले में समझाएं, क्योंकि प्यार से बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है. लड़ाई करने से कुछ हासिल नहीं होगा.