नाराजगी: बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

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नाराजगी- भाग 3: बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

शाम को संध्या अपने हाथों से खाना बनाती. बाकी सारी व्यवस्था आशा ही देखतीं.आशा महसूस कर रही थीं कि संध्या का व्यवहार वाकई बहुत अच्छा है. भले ही वह सुमित से उम्र में बड़ी थी लेकिन हर जगह पर पति का पूरा मान और खयाल रखती थी. वह कभी उस से बेवजह उल झती न थी. कुछ ही दिनों में आशा के मन में उस के प्रति कड़वाहट कम होने लगी थी. वे सोचने लगीं दुनिया वालों का क्या है? कुछ दिन बोलेंगे, फिर चुप हो जाएंगे. आखिर जिंदगी तो उन दोनों को एकसाथ बितानी है. उन का आपस में सामंजस्य ठीक रहेगा, तो परिवार की खुशियां अपनेआप बनी रहेंगी.शाम के समय अकसर संध्या खिड़की से खड़े हो कर नीचे ग्राउंड में बच्चों को खेलते हुए देखती रहती.

एक मां होने के कारण आशा उस की भावनाओं से अनभिज्ञ न थी. उसे अपना बेटा अर्श बहुत याद आता था लेकिन उस ने कभी भी अपने मुंह से उसे साथ रखने के लिए नहीं कहा था. एक दिन आशा ने ही पूछ लिया.‘‘तुम्हारा बेटा कैसा है?’’‘‘मम्मीजी, आप का पोता ठीक है.’’‘‘तुम्हें उस की याद आती होगी?’’ आशा ने पूछा तो संध्या ने मुंह से कुछ नहीं बोला लेकिन उस की आंखें सजल हो गई थीं. आशा सम झ गईं कि वह कुछ बोल कर उन का दिल नहीं दुखाना चाहती, इसीलिए कोई उत्तर नहीं दे रही.‘‘तुम उसे यहीं ले आओ. इस से तुम्हारा मन उस के लिए परेशान नहीं होगा,’’ आशा ने यह कहा तो संध्या को अपने कानों पर विश्वास न हुआ. उस ने चौंक कर आशा को देखा.‘‘मैं ठीक कह रही हूं. मैं भी एक मां हूं और सोच सकती हूं तुम्हारे दिल पर क्या बीतती होगी?’’

संध्या ने आगे बढ़ कर उन के पैर छूने चाहे तो आशा ने उसे गले लगा लिया, ‘‘बीती बातें भूल जाओ और नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करो.’’सुमित ने सुना तो उसे भी बहुत अच्छा लगा. वह तो पहले भी उसे अपने साथ लाना चाहता था लेकिन संध्या ने उसे रोक लिया था.दूसरे दिन वे अर्श को साथ ले कर आ गए. अर्श ने अजनबी नजरों से आशा को देखा तो संध्या बोली, ‘‘बेटे, ये तुम्हारी दादी हैं, इन के पैर छुओ.’’ अर्श ने आगे बढ़ कर उन के पैर छुए. आशा ने पूछा, ‘‘कैसे हो अर्श?’’‘‘मैं अच्छा हूं, दादी.’’  उस के मुंह से दादी शब्द सुन कर आशा को बहुत अच्छा लगा. सीमा भी खुश थीं कि अर्श को अपनी मम्मी मिल गई थी. सुमित और आशा के बड़प्पन के आगे संध्या के मायके वाले सभी नतमस्तक थे. उन्होंने कभी सोचा भी न था कि एक बार संध्या की जिंदगी में इतना बड़ा हादसा हो जाने के बाद उस के जीवन में इस तरह से फिर से खुशियों की बहार आ सकती है.

आशा ने परिस्थितियों से सम झौता कर के सबकुछ स्वीकार कर लिया था. अपने दिल से उन्होंने संध्या के प्रति सारी शिकायतें दूर कर दी थीं. सुमित खुश था कि उस ने अपनी मम्मी की ममता के साथ अपने प्यार को भी पा लिया था.आशा अर्श का भी बहुत अच्छे से खयाल रखती थीं. वह भी उन के साथ घुलमिल गया था. उस के दिन में स्कूल से आने पर वे उसे प्यार से खाना खिलातीं और होमवर्क करा देतीं. शाम को वह बच्चों के साथ खेलने चला जाता. आशा पार्क में बैठ कर बच्चों को खेलते देखती रहती. सबकुछ सामान्य हो गया था. तभी एक दिन अचानक आशा के पेट में बहुत दर्द हुआ और उस के बाद उन्हें ब्लीडिंग होने लगी. यह देख कर संध्या और सुमित घबरा गए.

वे तुरंत उन्हें ले कर नर्सिंगहोम पहुंचे. आशा की हालत बिगड़ती जा रही थी, यह देख संध्या बहुत परेशान थी. उस ने तुरंत अपनी मम्मी को फोन मिलाया.कुछ ही देर में सीमा अपने बेटे अशोक के साथ वहां पहुंच गईं. संध्या की घबराहट देख कर उस की मम्मी सीमा बोलीं, ‘‘संध्या, धीरज रखो. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘पता नहीं मम्मीजी को अचानक क्या हो गया? मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’ ‘‘हिम्मत से काम लो, डाक्टर उन की जांच कर रहे हैं. अभी कुछ देर में रिपोर्ट आ जाएगी. तब पता चल जाएगा कि उन्हें क्या हुआ है?’’ अशोक बोले.डाक्टर ने उन्हें भरती कर के तुरंत जांच की और बताया, ‘‘इन के गर्भाशय में रसौली है. उस का औपरेशन करना जरूरी है, वरना मरीज को खतरा हो सकता है.’’ ‘‘देर मत कीजिए डाक्टर साहब. मम्मी को कुछ नहीं होना चाहिए,’’ संध्या बोली. पूरा दिन इसी भागदौड़  में बीत गया था. संध्या ने अर्श को मम्मी के साथ घर भेज दिया था और वह खुद उन्हीं की देखरेख में लगी  हुई थी. शाम तक औपरेशन हो गया.

औपरेशन के बाद आशा को कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. अभी उन्हें ठीक से होश नहीं आया था. सुमित बोला, ‘‘संध्या, तुम घर जाओ. मैं मम्मी की देखभाल कर लूंगा.’’ ‘‘नहीं, तुम घर जाओ. उन की देखभाल के लिए किसी औरत का होना जरूरी है. मैं यहां रुकूंगी.’’ संध्या के आगे सुमित की एक न चली और वह वहीं रुक गई. एक हफ्ते तक संध्या ने आशा की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह दोपहर में थोड़ी देर के लिए कालेज जाती. उस के बाद घर आ कर अपने हाथों से आशा के लिए खाना तैयार करती और फिर नर्सिंगहोम पहुंच जाती. शाम को सुमित मम्मी के साथ रहता. इतनी देर में संध्या घर आ कर खाना तैयार करती और उसे ले कर नर्सिंगहोम आ जाती. फिर दूसरे दिन सुबह घर लौटती.संध्या ने सास की सेवा में रातदिन एक कर दिया था. इस मुश्किल घड़ी में भी वह घर, औफिस और आशा का पूरा खयाल रख रही थी. सुमित यह सब देख कर हैरान था. आशा को अपने से ज्यादा संध्या की चिंता होने लगी थी. संध्या की मम्मी, भाई, भाभी और करीबी रिश्तेदार उन को देखने रोज नर्सिंगहोम पहुंच रहे थे.संध्या की देखभाल से हफ्तेभर में आशा की सेहत में सुधार हो गया था.

वे 8 दिनों बाद घर आ गईं. संध्या की सेवा से आशा बहुत खुश थीं. घर आते ही उन्होंने इधरउधर नजर दौड़ाई और पूछा, ‘‘अर्श कहां है?’’ ‘‘वह नानी के पास है.’’‘‘उसे यहां ले आती.’’‘‘अभी आप को आराम की जरूरत है. वह कुछ दिनों बाद यहां आ जाएगा,’’ संध्या बोली.संध्या के भैया, भाभी और मम्मी सभी ने अपनी ओर से उन की  सेवा और देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.संकट की यह घड़ी भी बीत गई थी, लेकिन अपने पीछे कई सुखद अनुभव छोड़ गई थी. आशा की बीमारी के कारण दोनों परिवार बहुत नजदीक आ गए थे. सीमा अशोक और उस की पत्नी रिया के साथ आशा को देखने उन के घर पहुंचे. वे अपने साथ ढेर सारे फल ले कर आए थे.‘‘इन सब की क्या जरूरत थी? आप अपने साथ हमारे लिए सब से कीमती दहेज तो लाए ही नहीं हैं,’’ आशा बोली तो वे सब चौंक गए.सीमा ने डरते हुए पूछा, ‘‘आप किस दहेज की बात कर रही हैं?’’‘‘हमारे लिए तो सब से कीमती दहेज हमारा पोता अर्श है. मैं उस की बात कर रही हूं,’’ आशा बीमारी की हालत में भी हंस कर बोलीं तो माहौल हलकाफुलका हो गया. आशा की सारी नाराजगी दूर हो गई थी.

नाराजगी- भाग 1: बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

सुमित पिछले 2 सालों से मुंबई के एक सैल्फ फाइनैंस कालेज में पढ़ा रहा था. पढ़नेलिखने में वह बचपन से ही अच्छा था. लखनऊ से पढ़ाई करने के बाद वह नौकरी के लिए मुंबई जैसे बड़े शहर आ गया था. उस की मम्मी स्कूल टीचर थीं और वे लखनऊ में ही जौब कर रही थीं.

मम्मी के मना करने के बावजूद सुमित ने मुंबई का रुख कर लिया था.यहां के जानेमाने मैनेजमैंट कालेज में वह अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था. वहीं उसी विभाग में उस के साथ संध्या पढ़ाती थी. स्वभाव से अंतर्मुखी और मृदुभाषी संध्या बहुत कम बोलने वाली थी. सुमित को उस का सौम्य व्यवहार बहुत अच्छा लगा. सुमित की पहल पर संध्या उस से थोड़ीबहुत बातें करने लगी और जल्दी ही उन में अच्छी दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती प्यार में बदलने लगा था. संध्या को इस बात का एहसास होने लगा था. सुमित जबतब यह बात उसे जता भी देता. संध्या अपनी ओर से उसे जरा भी बढ़ावा न देती. वह जानती थी कि वह एक विधवा है. उस के पति की 7 साल पहले एक ऐक्सिडैंट में मौत हो गई थी.

उस का 8 साल का एक बेटा भी था. सुमित को उस ने सबकुछ पहले ही बता दिया था. इतना सबकुछ जानते हुए भी उस ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया. एक दिन उस ने संध्या के सामने अपने दिल की बात कह दी.‘‘संध्या, मु झे तुम बहुत अच्छी लगती हो और तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम्हें मैं पसंद हूं?’’ उस की बात सुन कर संध्या को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वह चेतनाशून्य सी हो गई. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह सुमित से क्या कहे. किसी तरह से अपनेआप को संयत कर वह बोली, ‘‘आप ने अपनी और मेरी उम्र देखी है?’’ ‘‘हां, देखी है. उम्र से क्या होता है? बात तो दिल मिलने की होती है. दिल कभी उम्र नहीं देखता.’’ ‘‘यह सब आप ने किताबों में पढ़ा होगा.’’ ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा संध्या. मैं सच में तुम्हें अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहता हूं.’’ ‘‘प्लीज, फिर कभी ऐसी बात मत कहना. सबकुछ जान कर भी मु झ से यह सब कहने से पहले आप को अपने घरवालों की रजामंदी लेनी चाहिए थी.’’‘‘

उन से तो मैं बात कर ही लूंगा, पहले मैं तुम्हारे विचार जानना चाहता हूं.’’ ‘‘मैं इस बारे में क्या कहूं? आप ने तो मु झे कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा,’’ संध्या बोली. उस की बातों से सुमित इतना तो सम झ गया था कि संध्या भी उसे पसंद करती है लेकिन वह उस की मम्मी को आहत नहीं करना चाहती. उसे पता है, एक मां अपने बेटे के लिए कितनी सजग रहती है. सुमित के पापा की मौत तब हो गई थी जब वह मात्र 2 साल का था. उस के पिता भी टीचर थे और उस की मम्मी उस के पिता की जगह अब स्कूल में पढ़ा रही थीं.सुमित की मम्मी आशा की दुनिया केवल सुमित तक सीमित थी. वह खुद भी यह बात अच्छी तरह से जानता था कि मम्मी इस सदमे को आसानी से बरदाश्त नहीं कर पाएंगी, फिर भी वह संध्या को अपनाना चाहता था.

संध्या सोच रही थी कि वह भी तो अर्श की मां है और अपने बच्चे का भला सोचती है. भला कौन मां यह बात स्वीकार कर पाएगी कि उस का बेटा अपने से 7 साल बड़ी एक बच्चे की मां से शादी करे.यही सोच कर वह कुछ कह नहीं पा रही थी. दिल और दिमाग आपस में उल झे हुए थे. अगर वह दिल के हाथों मजबूर होती है तो एक मां का दिल टूटता है और अगर दिमाग से काम लेती है तो सुमित के प्यार को ठुकराना उस के बस में नहीं था. इसीलिए उस ने चुप्पी साध ली. सुमित उस की मनोदशा को अच्छी तरह से सम झ रहा था. संध्या की चुप्पी देख कर वह सम झ गया था कि वह भी उसे उतना उसे पसंद करती है जितना कि वह. 

संध्या के लिए इतनी बड़ी बात अपने तक सीमित रखना बहुत मुश्किल हो रहा था. घर आ कर उस ने अपनी मम्मी सीमा को यह बात बताई. सीमा बोली, ‘‘यह क्या कह रही हो संध्या? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’मम्मी, मु झे दुनिया वालों की परवा नहीं. आखिर दुनिया ने मेरी कितनी परवा की है? मु झे तो केवल सुमित की मम्मी की चिंता है. वे इस रिश्ते को कैसे स्वीकार कर पाएंगी?‘‘संध्या, तुम्हें अब सम झदारी से काम लेना चाहिए.’’‘‘तभी मम्मी, मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. मैं चाहती हूं कि पहले वह अपनी मम्मी को मना ले.’’ ‘‘तुम ठीक कह रही हो. ऐसे मामले में बहुत सोचसम झ कर कदम आगे बढ़ाने चाहिए.’’

संध्या की मम्मी सीमा ने उसे  नसीहत दी.कुछ दिनों बाद सुमित ने फिर संध्या से वही प्रश्न दोहराया-‘‘तुम मु झ से कब शादी करोगी?’’ ‘प्लीज सुमित, आप यह बात मु झ से दूसरी बार पूछ रहे हो. यह कोई छोटी बात नहीं है.’’ ‘‘इतनी बड़ी भी तो नहीं है जितना तुम सोच रही हो. मैं इस पर जल्दी निर्णय लेना चाहता हूं.’’ ‘‘शादी के निर्णय जल्दबाजी में नहीं, अपनों के साथ सोचसम झ कर लिए जाते हैं. आप की मम्मी इस के लिए राजी हो जाती हैं तो मु झे कोई एतराज नहीं होगा.’’उस की बात सुन कर सुमित चुप हो गया. उस ने भी सोच लिया था अब वह इस बारे में मम्मी से खुल कर बात कर के ही रहेगा. सुमित ने अपनी और संध्या की दोस्ती के बारे में मम्मी को बहुत पहले बता दिया था.‘‘मम्मी, मु झे संध्या बहुत पसंद है.’’‘‘कौन संध्या?’’‘‘मेरे साथ कालेज में पढ़ाती है.’’‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. तुम्हें कोई लड़की पसंद तो आई.’’‘‘मम्मी. वह कुंआरी लड़की नहीं है. एक विधवा महिला है. मु झ से उम्र में बड़ी है.’’‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’‘‘मैं सच कह रहा हूं.’’‘‘और कोई सचाई रह गई हो तो वह भी बता दो.’’‘‘हां, उस का एक 8 साल का बेटा भी है.’

’ सुमित की बात सुन कर आशा का सिर घूम गया. उसे सम झ नहीं आ रहा था उस के बेटे को क्या हो गया जो अपने से उम्र में बड़ी और एक बच्चे की मां से शादी करने के लिए इतना उतावला हो रहा है. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे संध्या ने सुमित  पर जादू कर दिया हो जो उस के प्यार में इस कदर पागल हो रहा है. उसे दुनिया की ऊंचनीच कुछ नहीं दिखाई दे रही थी.‘‘बेटा, इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हें वही विधवा पसंद आई.’’‘‘मम्मी, वह बहुत अच्छी है.’’‘‘तुम्हारे मुंह से यह सब तारीफें मु झे अच्छी नहीं लगतीं,’’ आशा बोलीं.वे इस रिश्ते के लिए बिलकुल राजी न थीं. उन्हें सुमित का संध्या से मेलजोल जरा सा पसंद नहीं था. इसी बात को ले कर कई बार मम्मी और बेटे में तकरार हो जाती थी.

नाराजगी- भाग 2: बहू को स्वीकार क्यों नहीं करना चाहती थी आशा

दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे. संध्या का नाम सुनते ही आशा फोन काट देतीं.शाम को सुमित ने मम्मी को फोन मिलाया.‘‘हैलो मम्मी, क्या कर रही हो?’’‘‘कुछ नहीं. अब करने को रह ही क्या गया है बेटा?’’ आशा बु झी हुई आवाज में बोलीं.‘‘आप के मुंह से ऐसे निराशाजनक शब्द अच्छे नहीं लगते. आप ने जीवन में इतना संघर्ष किया है, आप हमेशा मेरी आदर्श रही हैं.’’‘‘तो तुम ही बताओ मैं क्या कहूं?’’‘‘आप मेरी बात क्यों नहीं सम झती हैं? शादी मु झे करनी है. मैं अपना भलाबुरा खुद सोच सकता हूं.’’‘‘तुम्हें भी तो मेरी बात सम झ में नहीं आती. मैं तो इतना जानती हूं कि संध्या तुम्हारे लायक नहीं है.’’‘‘आप उस से मिली ही कहां हो जो आप ने उस के बारे में ऐसी राय बना ली? एक बार मिल तो लीजिए. वह बहू के रूप में आप को कभी शिकायत का अवसर नहीं देगी.’’‘

‘जिस के कारण शादी से पहले मांबेटे में इतनी तकरार हो रही हो उस से मैं और क्या अपेक्षा कर सकती हूं. तुम्हें कुछ नहीं दिख रहा लेकिन मु झे सबकुछ दिखाई दे रहा है कि आगे चल कर इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’‘‘प्लीज मम्मी, यह बात मु झ पर छोड़ दें. आप को अपने बेटे पर विश्वास होना चाहिए. मैं हमेशा से आप का बेटा था और रहूंगा. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनी पसंद आप के सामने व्यक्त की है.’’‘‘वह मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है. तुम इस बात को छोड़ क्यों नहीं  देते बेटे.’’‘‘नहीं मम्मी, मैं संध्या को ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. मु झे उस के साथ ही जिंदगी बितानी है. मैं जानता हूं मु झे इस से अच्छी और कोई नहीं मिल सकती.’’

आशा में अब और बात सुनने का सब्र नहीं था. उस ने फोन कट कर दिया. सुमित प्यार और ममता की 2 नावों पर सवार हो कर परेशान हो गया था. वह इस द्वंद्व से जल्दी छुटकारा पाना चाहता था. उस ने कुछ सोच कर कागजपेन उठाया और मम्मी के नाम चिट्ठी लिखने लगा.‘मम्मी, ‘आप मु झे नहीं सम झना चाहतीं, तो कोई बात नहीं पर यह पत्र जरूर पढ़ लीजिएगा. पता नहीं क्यों संध्या में मु झे आप की जवानी की छवि दिखाई देती है.‘आप ने जिस तरीके से जिंदगी बिताई है वह मु झे याद है. उस समय मैं बहुत छोटा था और यह बात नहीं सम झ सकता था लेकिन अब वे सब बातें मेरी सम झ में आ रही हैं. परिवार की बंदिशों के कारण आप की जिंदगी घर और मु झ तक सिमट कर रह गई थी.

आप का एकमात्र सहारा मैं ही तो था जिस के कारण आप को नौकरी करनी पड़ रही थी और लोगों के ताने सुनने पड़ते थे. यह बात मु झे बहुत बाद में सम झ  में आई.‘जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो मु झे लगता मेरी मम्मी इतनी सुंदर हैं फिर भी वे इतनी साधारण बन कर क्यों रहती हैं? पता नहीं, उस समय आप ने अपनी भावनाओं को कैसे काबू में किया होगा और कैसे अपनी जवानी बिताई होगी? समाज का डर और मेरे कारण आप  ने अपनेआप को बहुत संकुचित कर  लिया था. संध्या बहुत अच्छी है. वह मु झे पसंद है. मैं उसे एक और आशा नहीं बनने देना चाहता.

मैं उस के जीवन में फिर से खुशी लाना चाहता हूं. जो कसर आप के जीवन में रह गई थी मैं उसे दूर करना चाहता हूं. हो सके आप मेरी बात पर जरूर ध्यान दें.‘आप का बेटा, सुमित.’पत्र लिखने के बाद सुमित ने उसे पढ़ा और फिर पोस्ट कर दिया. आशा ने वह पत्र पढ़ा तो उन के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने तो कभी ऐसा सोचा तक न था जो कुछ सुमित के दिमाग में चल रहा था. उसे याद आ रहा था कि सुमित की दादी जरा सा किसी से बात करने पर उन्हें कितना जलील करती थीं. किसी तरह सुमित से लिपट कर वे अपना दर्द कम करने की कोशिश करती थीं.आज पत्र पढ़ कर रोरो कर उन की आंखें सूज गई थीं. उन्हें अच्छा लगा कि उन का बेटा आज भी उन के बारे में इतना सबकुछ सोचता है. बहुत सोच कर उन्होंने सुमित को फोन मिलाया.

‘‘हैलो बेटा.’’उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो मम्मी?’’मां की आंसुओं में डूबी आवाज सुन कर वह सम झ गया कि उस की चिट्ठी मम्मी को मिल गई है.‘‘बेटा. मैं मुंबई आ रही हूं तुम से मिलने…’’ इतना कहतेकहते उन  की आवाज भर्रा गई और उन्होंने फोन रख दिया. यह सुन कर सुमित की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने यह बात संध्या को बताई तो वह भी खुश हो गई. एक हफ्ते बाद वे मुंबई पहुंच गई. आशा ने संध्या से मुलाकात की. दोनों के चेहरे देख कर उस का मन अंदर से दुखी था. उम्र की रेखाएं संध्या के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं और उस के मुकाबले सुमित एकदम मासूम सा लग रहा था. दिल पर पत्थर रख कर आशा ने शादी की इजाजत दे दी.

यह जान कर संध्या के परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे. उस के बड़े भैया अशोक ने संध्या से पहले भी कहा था कि संध्या तू कब तक ऐसी जिंदगी काटेगी. कोई अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर ले. अर्श की खातिर तब उस ने दूसरी शादी करने का खयाल भी अपने जेहन में नहीं आने दिया था. इधर सुमित की बातों और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित हो गई थी. आशा की स्वीकृति मिलने पर उस ने शादी के लिए हां कर दी.संध्या की मम्मी सीमा ने जब यह बात सुनी तो उन्हें भी बड़ा संतोष हुआ, बोलीं, ‘‘संध्या, तुम ने समय रहते बहुत अच्छा निर्णय लिया है.’’‘‘मम्मी, मेरा दिल तो अभी भी घबरा रहा है.’’‘‘तुम खुश हो कर नए जीवन में प्रवेश करो बेटा. अभी कुछ समय अर्श को मेरे पास रहने दो.’’ ‘‘यह क्या कह रही हो मम्मी?’’‘‘मैं ठीक कह रही हूं बेटा. तुम्हारी दूसरी शादी है, सुमित की नहीं. उस के भी कुछ अरमान होंगे. पहले उन्हें पूरा कर लो, उस के बाद बेटे को अपने साथ ले जाना.’’ बहुत ही सादे तरीके से संध्या और सुमित की शादी संपन्न हो गई थी. आशा एक हफ्ते मुंबई में रह कर वापस लौट गई थीं.

अभी उन के रिटायरमैंट में 4 महीने का समय बाकी था. संध्या ने उन से अनुरोध किया था, ‘मम्मीजी, आप यहीं रुक जाइए.’ तो उन्होंने कहा था कि वे 4 महीने बाद आ जाएंगी जब तक वे लोग भी अच्छे से व्यवस्थित हो जाएंगे. वे अभी तक इस रिश्ते को मन से स्वीकार नहीं कर पाई थीं. इकलौते बेटे की खातिर उन्होंने उस की इच्छा का मान रख लिया था. 4 महीने यों ही बीत गए थे. सुमित बहुत खुश था और संध्या भी. वह शाम को रोज अर्श से मिलने चली जाती और देर तक अपनी मम्मी व बेटे से बातें करती. अर्श मम्मी को मिस करता था. सुमित के जोर देने पर वह कुछ दिनों के लिए मम्मी के पास आ गई थी ताकि अर्श को पूरा समय दे सके.रिटायरमैंट के बाद आशा के मुंबई आ जाने से संध्या की घर की जिम्मेदारियां कम हो गई थीं. उस ने अपना घर पूरी तरह से आशा पर छोड़ दिया था.

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