Diwali Special: फेस्टिवल में हो घर-घर पार्टी

आज के दौर में सभी पर काम का बोझ अधिक है. ऐसे में औफिस या बिजनैस से त्योहार के दिन भी छुट्टी मिलनी मुश्किल होती है. दीवाली या दशहरा में 1-2 दिनों की छुट्टी ही मिल पाती है. ऐसे में सभी का आपस में मिलना संभव नहीं होता. अगर पूरे फैस्टिवल सीजन में अलगअलग जगहों पर पार्टियों के आयोजन हों तो बहुत सारे लोग आपस में मिल सकते हैं. एक ही जगह पर पार्टी होने से लोगों की संख्या ज्यादा हो जाती है. पार्टी का बोझ भी बढ़ जाता है. अगर छोटीछोटी पार्टियां घरघर में आयोजित हों तो ज्यादा लोगों के आपस में मिलने का अवसर मिलता है.

त्योहारों में कई तरह के संगठनों में मुलाकातें हो जाती है. परेशानी की बात यह है कि ये संगठन जातीय समुदाय के नाम पर बने होते हैं. ऐसे में बाहरी लोगों का इन के साथ तालमेल नहीं रहता. जरूरत इस बात की है कि बिना जातीय या समुदाय की सोच के केवल आपसी दोस्ती के आधार पर यह पार्टी आयोजित की जाए. अलगअलग आयोजनों के होने से एक लाभ यह होता है कि दोस्तों और रिश्तेदारों से बारबार मुलाकात होने लगती है, जिस से कई बार बिगडे़ हुए रिश्ते भी सहज हो जाते हैं.

1. हर घर पार्टी

आज के दौर में घरों में इतनी जगह रहती है कि वहां पर छोटी पार्टी का आयोजन हो सके. ऐसे में बहुत खर्च भी नहीं आता. घर वालों को इस में लगने की जरूरत नहीं होती. खाना बनाने वाले या ऐसे काम करने वाले लोग खाने से ले कर सजावट तक सब मैनेज कर देते हैं. अगर त्योहार में केवल एक बार पार्टी का आयोजन होता है तो आपसी मुलाकात भी एक बार ही हो पाती है. अगर बारबार ऐसे आयोजन होते हैं तो आपसी मुलाकातें बारबार होने की संभावना रहती है.

बारबार मिलने से एकदूसरे के दुखदर्द का ज्यादा पता चलता है. आज के समय में आपस में मिलनाजुलना बेहद कम हो गया है. ऐसे में फैस्टिवल पार्टी के बहाने एकदूसरे से जल्दीजल्दी मिलना हो जाता है. जब बारबार मिलना होता है तो केवल औपचारिक बातें नहीं होतीं, और भी बातें होती हैं.

इस से आपसी संबंध मजबूत होते है. एकदूसरे के घरपरिवार, बच्चों का भी पता चलता है. जिस से केवल दोस्तीभरे रिश्ते ही मजबूत नहीं होते बल्कि कई बार आपस में रिश्तेदारी करने में भी मदद मिल जाती है. आपसी मेलजोल से यह भी पता चलता है कि किस के बच्चे शादी के लायक हो गए हैं, कौन किस से शादी कर सकता है.

2. कारोबार ही नहीं, नातेरिश्ते भी

मेलजोल से कारोबार की संभावनाएं भी पनपने लगती हैं. आज के समय में कारोबार में भरोसेमंद लोगों का मिलना मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आपसी मेलजोल अधिक होता है तो बिजनैस पार्टनर के साथ करीबी रिश्ते बनाने में मदद मिलती है. देखने में यह फैस्टिवल पार्टी केवल सामान्य पार्टी जैसी ही दिखती है पर असल में यह आपसी तालमेल को लंबे समय तक बनाए रखने का काम कर सकती है. ऐसी पार्टियों में आपसी औपचारिकता को न रखा जाए ताकि इस में शामिल होने वाले को किसी भी तरह की हिचक न हो.

पार्टी को रोचक बनाने के लिए कुछ गेम्स तैयार किए जा सकते हैं. ये हर उम्र को ध्यान में रख कर तैयार किए जाएं. कोशिश हो कि इस में हर उम्र के लोग शामिल हो सकें. कुछ गेम्स ऐेसे भी हों जिन में महिला और पुरुष एकसाथ हिस्सा ले सकें. इस से आपस में एक अलग किस्म का भरोसा बढ़ता है.

आज के समय में महिलाएं बड़ी संख्या में बिजनैस में हैं. वे केवल बिजनैस में रहती ही नहीं, उस का पूरा हिस्सा होती हैं. उन के फैसलों को पूरा सम्मान मिलता है. अब बिजनैस में महिलाओं की भूमिका रबरस्टैंप से अधिक की हो गई है. ऐसे में महिलाओं को पार्टी में जरूर शामिल किया जाए. महिलाओं को धूम्रपान और ड्रिंक से परेशानी होती है इसलिए पार्टी में इस का प्रयोग न ही किया जाए.

3. धूम्रपान और ड्रिंक से दूरी

महिलाओं के साथ पार्टी में गलत व्यवहार धूम्रपान और ड्रिंक से ही शुरू होता है. ऐसे में इस को पूरी तरह से पार्टी से बाहर किया जाना जरूरी होता है. पार्टी में खाने का मैन्यू भी इस तरह से तैयार हो कि सभी को पसंद आए. यह न हो कि कुछ खाने की चीजें ऐसी हों जो लोग  पसंद न करें. आमतौर पर आज के समय में लोग अपनी हैल्थ को ले कर ज्यादा जागरूक हो गए हैं. जिस से वे तलाभुना या ज्यादा मसालेदार चीजें कम खाते हैं. ऐसे में इन बातों का पूरा ध्यान रखना जरूरी होता है.

मसला परिवार का होता है, ऐसे में युवा और बच्चे भी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. बच्चे बडे़ लोगों के साथ सही से एंजौय नहीं कर पाते. ऐसे में उन के लिए कुछ गेम्स की तैयारी कर के रखनी जरूरी होती है. छोटे बच्चे भी अपने हिसाब से खेलते हैं. उन के लिए भी कुछ मनोरंजन का अलग से इंतजाम हो ताकि उन के पेरैंटस बिना किसी चिंता के आपस में भेंटमुलाकात का मजा ले सकें.

पार्टी का समय इस तरह से रखा जाए जिस में ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हो सकें. कई बार समय का चुनाव ठीक से नहीं होता तो लोग पूरी संख्या में शामिल नहीं हो सकते. बेहतर होता है कि छुट्टी के दिन इस को रखें. इस से सभी लोग पार्टी का हिस्सा बन सकते हैं.

4. खर्चा घटाएं, मजा बढ़ाएं

मिलजुल कर त्योहार मनाने से त्योहार में होने वाला खर्च घटता है जबकि मजा बढ़ता है. अपने घरपरिवार से दूर रह कर भी घर जैसे मजे लिए जा सकते हैं.

आज के समय में ज्यादातर लोग अपने शहर और घर से दूर कमाई के लिए दूसरे शहरों में रहते हैं. अपने घर जाने के लिए उन को छुट्टी लेनी होती है. कई बार छुट्टियों में घर जाने के लिए रेलवे, बस और हवाई जहाज के महंगे टिकट लेने पड़ते हैं. मुसीबत उठा कर अपने घर जाना कई बार परेशानी का सबब बन जाता है.

ऐसे में त्योहारों की पार्टी घरघर होने से सब आपस में मिल लेते हैं. इन का आयोजन मिलजुल कर भी कर सकते हैं. इस से सभी लोगों की हर तरह से भागीदारी रहती है और कोई अपने को बोझ नहीं समझता. कम खर्च में अच्छा आयोजन हो जाता है. परिवार के साथ रहने से पति भी दोस्तों के साथ शराब और जुए जैसे खेलों से परहेज करता है.

ऐसे आयोजन होने से त्यौहार का मजा दोगुना हो जाता है. सभी धर्मों के बीच रहने वाले लोग भी इस का हिस्सा बन जाते हैं. इस से अलगअलग जगहों की संस्कृति व खानपान का मजा भी मिलता है.

जिस तरह से आज आपस में दूरियां बढ़ रही हैं उसे कम करने का यह सब से अच्छा माध्यम है कि त्योहारों की खुशियां मिलजुल कर मनाएं. केवल रैजीडैंशियल कौंप्लैक्स में ही नहीं, कसबों, महल्लों, शहरों और गांवों में भी उत्सव के आयोजन मिलजुल कर किए जाने चाहिए. इस से समाज में एक नया प्यार और सौहार्द्र का माहौल बनेगा.

असमान पड़ोस में कैसे निभाएं

विनय एक डाक्टर है. उस की प्रैक्टिस अच्छी चलती है. लेकिन इन दिनों वह एक अजीब समस्या से परेशान है. कुछ वर्षों पहले उस ने एक सरकारी कालोनी में घर बनाने के लिए भूखंड खरीदा था. उस समय वहां अधिक बसावट नहीं थी, इसलिए वह अपने पिता के साथ अपने पैतृक घर में ही रह रहा है. अब चूंकि नई कालोनी में बसावट होने लगी है तो उस ने भी वहां घर बनाने का निश्चय किया.

नक्शा बनवाने के लिए जब विनय सिविल इंजीनियर के साथ साइट पर गया तो सड़क के दूसरी तरफ बने घरों को देख कर उस का माथा ठनक गया. वे मकान बेहद छोटे आयवर्ग के थे. विनय मन ही मन उन के और अपने रहनसहन की तुलना करने लगा. हालांकि उसे यह तुलना करना बहुत ही ओछा काम लग रहा था लेकिन मन था कि सहज हो ही नहीं पा रहा था.

“आजकल किसे फुरसत है आसपड़ोस में बैठने की. वे अपना कमाएखाएंगे, हम अपना. आप नाहक परेशान हो रहे हैं,” पत्नी ने समझाया.

“इसे बेच कर दूसरा प्लौट खरीदना आसान काम नहीं है. फिर तुम्हें इतनी फुरसत भी कहां है. बेकार ही दलालों के चक्कर में उलझ जाओगे. बहू ठीक कहती है. इसी जमीन पर बनवा लो,” पिता ने भी राय दी तो विनय बुझेमन से घर बनवाने के लिए तैयार हुआ.

अभी मकान का काम चलते कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन सड़क के दूसरी तरफ वाले किसी घर से एक व्यक्ति आया.

ये भी पढ़ें- बच्चों का खेल नहीं पेरैंटिंग

“अच्छा है. पड़ोस में कोई डाक्टर होगा तो रातबेरात काम आएगा,” उस ने विनय को नमस्कार करते हुए कहा. सुनते ही विनय का मूड फिर से उखड़ गया.

जैसेजैसे मकान का काम पूर्णता की तरफ बढ़ रहा था वैसेवैसे विनय का उत्साह फीका पड़ता जा रहा था. जब भी वह अपनी कार किसी पेड़ के नीचे खड़ी करता, कई सारे बच्चे उस के आगेपीछे घूमने लगते. कोई उसे छू कर देखता तो कोई सहला कर. विनय मन ही मन डरता रहता कि कहीं कोई शैतान बच्चा महंगी कार पर खरोंच न लगा दे.

विनय के मित्ररिश्तेदार बनते हुए मकान को देखने आते तो उस के पड़ोस को देख कर व्यंग्य से मुसकरा देते. कुछ तो ‘मखमल में टाट का पैबंद’ कह कर हंस भी देते.

“कहीं हमारे बच्चे भी इन की आदतसंस्कार न सीख लें,” एक दिन पड़ोस के बच्चों को आपस में झगड़ते देख कर पत्नी ने चिंता जाहिर की तो विनय का रहासहा उत्साह भी मर गया. उस ने उसी दिन एक दलाल से कह कर उस मकान को बेचने की बात कर ली.

सानिया की समस्या भी कुछ कम नहीं है. जब भी वह वैस्टर्न ड्रैस पहने अपनी कार चलाती हुई सोसाइटी से बाहर निकलती है तो कई जोड़ी आंखें उस की पीठ पर चिपक जाती हैं. उस के साथ आने वाले दोस्तों में भी आसपास के लोग खासी दिलचस्पी रखते हैं. कई बार तो बीच पार्टी में पडोसी का कोई बच्चा किसी न किसी बहाने से भीतर आने की कोशिश भी करता है. ताकझांक करती ये आंखें उसे दोस्तों के सामने शर्मिंदा कर देती हैं. सानिया मन ही मन घुटती रहती है क्योंकि न तो इस फ्लैट को बेच कर दूसरा खरीदना हो रहा है और न ही निजता का यह अतिक्रमण सहन हो रहा है.

विनय और सानिया जैसी स्थिति किसी के भी सामने आ सकती है. लेकिन घर बेचना या घुटघुट कर जीना इस समस्या का समाधान नहीं है. अनेक आवासीय कालोनियों में इस तरह का असमान भूखंड वितरण देखने में आता है जहां एक तरफ बड़े साइज़ तो उसी के सामने छोटे आकार के भूखंड होते हैं. इसी तरह बड़े शहरों की सोसाइटियों में भी वन बीएचके से ले कर थ्रीफोर बीएचके तक के फ्लैट्स होते हैं.

यह कोई बुरी बात नहीं है. समाज में सभी आयवर्ग के लोग होते हैं और सभी को एक अच्छी आवासीय कालोनी या सोसाइटी में रहने का अधिकार है. हालांकि यह भी सच है कि हर व्यक्ति अपने सामाजिक स्तर, शौक, स्वभाव और आय के अनुसार अपने मित्र चुन लेता है लेकिन फिर भी इस तरह की असमानता कई बार परेशानी का कारण बन जाती है. न केवल उच्च आयवर्ग के लिए बल्कि निम्न या मध्य आयवर्ग के लिए भी.

क्या होती हैं परेशानियां

1. यदि पड़ोस में आप से कम आयवर्ग के लोग रहते हैं तो उन्हें देख कर आप से मिलने आने वाले मित्ररिश्तेदार नाक चढ़ाते हैं. कई बार बातों ही बातों में ताने भी कसते हैं.

2. चूंकि पड़ोस में यही बच्चे हैं तो आपस में खेलेंगे भी. और खेलखेल में झगड़ामनमुटाव होना भी स्वाभाविक है. ऐसे में एकदूसरे की आदतें, संस्कार आदि का स्थानान्तरण होना लाज़िमी है.

3. असमान स्टेटस के कारण उच्च आयवर्ग के लोगों के घर में होने वाली पार्टी आदि निम्न आयवर्ग के लिए कौतुक का विषय होते हैं. जिज्ञासावश लोग ताकझांक करने की कोशिश भी करते हैं जो निजता में सेंध सी लगती है.

4. इस तरह के समारोह में जब बच्चे अपने अन्य मित्रों के साथ आसपड़ोस के दोस्तों को भी आमंत्रित करते हैं तो विचित्र सी स्थिति पैदा हो जाती है. दोनों ही वर्गों के बच्चे आपस में घुलनेमिलने में संकोच करते हैं. नतीजतन, एक अदृश्य खिंचाव सा उत्पन्न हो जाता है.

कैसे निभाएं

1. यहां मकसद किसी को छोटा या निम्न दर्शाना नहीं है. लेकिन, यह सत्य है कि हर आयवर्ग का अपना लिविंग स्टेटस होता है. बेहतर है कि अपने पडोसी को उस की सीमारेखा स्पष्ट जतला दी जाए.

2. यदि पड़ोसी को सचमुच आप की मदद की आवश्यकता है तो बिना किसी पूर्वाग्रह के आगे आएं और यथासंभव उस की मदद करें. इस से आप की इज्जत में इजाफ़ा ही होगा.

ये भी पढ़ें- पति जब मां मां करे, तो क्या करें पत्नियां

3. यदि आप के परिवार में होने वाला समारोह वृहद स्तर पर हो रहा है तो बिना किसी शर्मशंका के अपने पड़ोसियों को भी अवश्य आमंत्रित करें.

4. पड़ोसियों द्वारा दिए गए उपहारों या लिफाफे को तुरंत खोल कर उन को असहजता की स्थिति में न लाएं. इस में आप का ही बड़प्पन है.

5. यदि बच्चे पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलते हैं तो उन्हें मना न करें. समय के साथ बच्चे अपने साथी अपने अनुसार चुन लेते हैं.

आयवर्ग के अनुसार रहनसहन के स्तर में असमानता न केवल आसपड़ोस बल्कि परिवार में भी देखी जा सकती है. यह शाश्वत सत्य है कि इस तरह की असमानता समाज का हिस्सा है और इसे स्वीकार करने में ही समझदारी है. जिस तरह से पारिवारिक रिश्तों को निभाने में कभी झुकना तो कभी झुकाना पड़ता है वैसी ही व्यावहारिकता आसपड़ोस में भी दिखानी चाहिए.

पड़ोसी के झगड़े में क्यों दें दखल

आ ए दिन पड़ोस से आती लड़ाईझगड़े की आवाजें सुरभि को परेशान कर देती थीं. उस दिन भी सुरभि झगड़ने की आवाजें सुन कर परेशान हो उठी. कुछ दिनों पहले ही एक जोड़ा पड़ोस के घर में किराए पर रहने आया था. 2-3 बार मुलाकात भी हुई थी सुरभि से उन की. वे पढ़ेलिखे सभ्य नागरिक जान पड़ते थे. दोनों की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. दोनों ही नौकरी करते थे. पत्नी होटल में रिसैप्शनिस्ट व पति मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर था. सुरभि को विश्वास करना मुश्किल हो रहा था कि आवाजें उन के घर से ही आ रही हैं. परेशान हो कर उस ने शाम को अपने पति रचित से बात की तो उस ने घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए पड़ोसी होने के नाते कोई कदम उठाने की आवश्यकता जताई.

रात को सुरभि रचित के साथ उस कपल के घर जा पहुंची. वंशिका और गौरव नाम के ये पतिपत्नी किसी भी सामान्य जोड़े की तरह खुश दिख रहे थे. उन के विवाह को 2 वर्ष हुए थे और अभी कोई संतान नहीं थी. वंशिका जब चाय बनाने किचन में गई तो सुरभि ने बातचीत के दौरान उस से गौरव के साथ हो रही अनबन के विषय में जान लिया. इसी दौरान रचित ने गौरव को विश्वास में लेते हुए उस की वंशिका के प्रति शिकायतों का अंदाज लगा लिया. इस के बाद कुछ दिनों तक वे वंशिका तथा गौरव से बराबर मिलते रहे और उन के विश्वासपात्र बन उन के विषय में काफी कुछ जान गए.

इस बीच वे उन दोनों की बताई समस्याओं पर चर्चा करते रहते. वंशिका व गौरव द्वारा एकदूसरे की शिकायतों से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वास्तविक समस्या दोनों में आपसी समझ की है. छोटेछोटे मुद्दों को ले कर दोनों के बीच बहस छिड़ जाती और फिर उग्र होने लगते. दोनों अपनीअपनी जगह स्वयं को सही समझते हुए एकदूसरे को सुधरने की शिक्षा देने लगते. अपने को सही दिखाने के लिए दोनों गुस्से का सहारा लेते. दोनों में से कोई भी झगड़े को निबटाने का प्रयास नहीं करता था. गौरव अपने गुस्सैल स्वभाव के कारण जल्द ही आपा खो देता और फिर वंशिका पर हाथ उठा देता.

ये भी पढ़ें- 9 टिप्स: ऐसे रहेंगे खुश

सुरभि और रचित ने अपने कुछ परिचितों से पड़ोसी जोड़े की पहचान छिपाते हुए उन की समस्याओं पर बातचीत की और हल खोजने के लिए उन सभी के विचार जाने. सही मौका पा कर एक दिन उन दोनों ने वंशिका व गौरव को उन के बीच उपज रही भ्रांतियों को दूर करने के लिए कुछ सुझाव दिए.

पहला व सब से महत्त्वपूर्ण सुझाव यह था कि घरेलू हिंसा से गौरव को पूरी तरह दूर रहना होगा. यदि वह अपने वैवाहिक जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से जीना चाहता है और नहीं चाहता कि उस का और वंशिका का साथ कभी छूटे तो उसे गुस्सा आने पर हाथ उठाने की अपनी आदत को पूरी तरह से छोड़ना होगा. एक अन्य सुझाव के रूप में दोनों से कहा गया कि उन्हें अब अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर एकदूसरे के अनुसार ढलने की कोशिश करनी होगी.

कुछ अन्य मुद्दों पर सुझाव

समस्या: गौरव जब कभी औफिस में देर तक काम कर घर लौटता तो वंशिका उसे घर के प्रति लापरवाह कहते हुए तंज कस दिया करती. ऐसे में गौरव बुरी तरह तिलमिला उठता.

सुझाव: प्रतियोगिता के इस युग में प्राइवेट कंपनियां एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ में अपने कर्मचारियों पर दबाव डालती हैं. ऐसे में टारगेट पूरा करने के लिए वर्कर्स को औफिस में अतिरिक्त समय देना ही पड़ता है. गौरव का व्यस्त रहना उस के उत्तरदायित्व को दर्शाता है. लेकिन गौरव को यह नहीं भूलना चाहिए वह कंपनी का मैनेजर होने के साथसाथ एक पति भी है. उसे अब अपना समय वंशिका को भी देना चाहिए और निश्चित समय पर औफिस से घर आने का प्रयास करना चाहिए. मजबूरी में यदि रुकना पड़े तो इस की जानकारी विनम्र शब्दों में वंशिका को देनी चाहिए.

समस्या: वंशिका की शिकायत थी कि गौरव लोगों का हमदर्द बनता है, मित्रों की सहायता को सदैव तत्पर रहता है, लेकिन उस पर हमेशा रोब गांठता है. इतना ही नहीं कभीकभी वह दोस्तों व रिश्तेदारों के सामने भी वंशिका को बेइज्जत कर देता है. गौरव की अपमानित करने की आदत से हताश वंशिका यद्यपि सब के सामने तो उसे अपमानित नहीं करती थी, किंतु अकेले में गौरव से उस बात की शिकायत करते हुए वह उत्तेजित हो जाती. इस का परिणाम यह होता कि गौरव का गुस्सा बढ़ जाता और फिर वंशिका मारपीट की शिकार हो जाती.

सुझाव: विवाह के बाद पतिपत्नी दोनों को यह सोचना चाहिए कि एकदूसरे का सम्मान करना न केवल एक कर्तव्य है, अपितु यह समाज में उन की प्रतिष्ठा भी बढ़ाता है. इस के अलावा यह दोनों के बीच प्रेम उपजाने का कार्य भी करता है. गौरव जैसे पतियों को यह समझना होगा कि जो लोग गौरव पत्नी पर भड़कता देख उस समय चुप रहते हैं, वे बाद में उस के स्वभाव की निंदा अवश्य करते होंगे. दूसरों के सामने पत्नी पर गुस्सा दिखाने से कोई भी समस्या सुलझने के बजाय बढ़ती ही जाएगी. लोगों के सामने अपने रिश्ते का तमाशा बनाने से बेहतर है कि अकेले में अपने मन की बात जीवनसाथी के समक्ष रख हल खोजा जाए.

समस्या: वंशिका को जब गौरव अपने बौस या किसी कुलीग के दुर्व्यवहार से जुड़ी कोई बात बताता तो वंशिका बहुत कुछ पूछने लगती, जबकि गौरव सीमित शब्दों में अपनी बात समाप्त कर किसी भी प्रकार की चर्चा से दूर ही रहना चाहता था. ऐसे में वह वंशिका की बात बीच में काट देता और वहीं चर्चा खत्म करने को कहता. अगली बार जब गौरव ऐसी कोई समस्या बताने लगता तो वंशिका सुनने से इनकार कर देती.

सुझाव: कुछ लोग स्वभाव से कम बोलने वाले होते हैं, तो कुछ बहुत बोलते हैं. गौरव हर बात सीमित शब्दों में कहने वाला व्यक्ति था. वंशिका की प्रवृति हर बात की तह तक जाने व किसी भी विषय को समझ कर विस्तार से अपने विचार प्रकट करने की थी. स्वभाव के इस अंतर को स्वीकार कर दोनों को आपसी तालमेल विकसित करना चाहिए. गौरव द्वारा चर्चा को आगे न बढ़ाए जाने का एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है.

कभीकभी व्यक्ति केवल अपनी समस्या बता कर मन हलका करना चाहता है. गौरव भी ऐसे समय में केवल इतना ही चाहता था कि वंशिका उस की प्रौब्लम को समझे और उस की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगा पाए. वंशिका जजमैंटल हो जाए, ऐसा वह नहीं चाहता था.

ये भी पढ़ें- अगर मुझे अपनी बेटी ही बनाये रखना था तो मुझे किसी की पत्नी क्यों बनने दिया?

ऐसे में वंशिका को उस समय केवल गौरव की बात सुनने व किसी अन्य अवसर पर उस विषय में अपने विचार प्रकट करने की सलाह दी गई.

समस्या: गौरव वंशिका की कभी प्रशंसा नहीं करता था, जबकि वंशिका छोटी सी बात में भी उस का शुक्रिया अदा कर तारीफ के दो शब्द बोल ही देती थी. उस के हाथ के बने खाने में तो गौरव अकसर कमियां ही निकालता रहता था.

सुझाव: पार्टनर की कमियों को नजरअंदाज कर प्रशंसा करने के कई लाभ होते हैं. एक तो इस से एकदूसरे में गुणों को ढूंढ़ने की आदत पड़ती है और दूसरा इस से पार्टनर को खुशी मिलती है. इस प्रकार एकदूसरे को स्पैशल फील करवाने से प्रेम का बढ़ना तय होता है.

समस्या: वंशिका को तब बहुत खराब लगता था जब गौरव उस की सीधीसादी बात का गलत मतलब निकाल लेता था. इस संबंध में वंशिका ने एक घटना का जिक्र भी किया. गौरव को अपनी प्रमोशन पर औफिस के साथियों द्वारा दिए गए उपहारों में से वंशिका को एक मग का सैट बहुत सुंदर लगा था. उस में एक मग को पुरुष तो दूसरे को स्त्री का रूप दिया गया था. इस सैट को ‘ओपन माइंडेड कपल’ का नाम दिया गया था. जब वंशिका ने पूछा कि उसे वह मग सैट किस ने दिया, तो गौरव का जवाब था किसी दोस्त ने.

वंशिका द्वारा दोस्त का नाम पूछे जाने पर गौरव ने उस पर आरोप मढ़ दिया कि वह उसे संदेह की नजर से देख रही है और इसे किसी स्त्री द्वारा दिया हुआ गिफ्ट समझ रही है. जब वह उस के सभी मित्रों को जानती ही नहीं तो यह प्रश्न पूछना इस ओर ही इशारा कर रहा है.

सुझाव: पतिपत्नी का रिश्ता केवल विश्वास पर ही टिका रह सकता है. यदि वंशिका ने कभी भी गौरव पर उस के चरित्र को ले कर कोई आरोप नहीं लगाया तो गौरव को सोचना चाहिए कि उस के मन में गौरव के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है. उसे वंशिका की बातों का गलत अर्थ निकाल कर विश्वास की नींव को हिलाना नहीं चाहिए. उस समय गौरव को उपहार देने वाले मित्र का परिचय वंशिका को देना चाहिए था.

समस्या: कभीकभी गौरव औफिस से सीधा किसी काम या पार्टी अथवा फंक्शन में चला जाता. वंशिका को उस समय वह फोन करना भी जरूरी नहीं समझता था.

सुझाव: यदि वंशिका भी ऐसा ही करने लगे तो गौरव कैसा महसूस करेगा? इसी प्रश्न के माध्यम से वंशिका की मानसिक स्थिति गौरव के सामने रखी तो उस ने भी स्वीकार किया कि भविष्य में फोन या मैसेज द्वारा वंशिका को औफिस से कहीं और जाने की सूचना देना सही कदम होगा.

समस्या: गौरव को वंशिका से एक शिकायत यह थी कि उस की रखी गई वस्तुओं को वह उठा कर किसी अन्य जगह रख देती है, जिस से उसे अकसर असुविधा होती है.

सुझाव: वंशिका सफाईपसंद स्त्री थी, किंतु जरूरत से कुछ अधिक ही. गौरव की मेज पर सामान देख वह उसे अलमारी में रख देती और फिर गौरव ढूंढ़ता रह जाता. वंशिका को समझाया गया कि यदि मेज पर सामान बिखरा हो तो खराब लगेगा, किंतु करीने से लगा सामान सफाई का ही अंग समझा जाएगा.

ये भी पढ़ें- औफिस में इन 5 चीजों को करें इग्नोर

अंत में दोनों से कहा गया कि पतिपत्नी के विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक है. विभिन्न विचारधाराएं अपने अलग अस्तित्व की पहचान हैं. वैवाहिक जीवन में अलगअलग सोच एकाकार हो जीवन में संपूर्णता ला सकती है. लेकिन जिस समय विचार टकराएं व दोनों में से किसी को गुस्सा आ रहा हो तो दूसरे को उस समय बहस को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए. यह सुझाव दोनों के लिए था.

अब सुरभि को पड़ोस के उस घर से पहले की तरह मारपीट और लड़ाईझगड़े की जगह हंसीठहाकों की आवाजें आती हैं, तो उन्हें सुन सुरभि और रचित मुसकरा देते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें