romantic story in hindi
romantic story in hindi
लेखिका- डा. के. रानी
तभी फोन की घंटी से रीमा के विचारों का प्रवाह टूट गया.
”हैलो“ के साथ ही नरेन की आवाज सुनाई दी.
”कैसे हो?” रीमा ने पूछा.
”तुम्हारी याद आ रही थी.”
”काम कब तक खत्म हो जाएगा?”
”शायद 3-4 दिन और लग जाएंगे. सौरी रीमा.”
”ठीक है,” कह कर रीमा ने उस के साथ हलकीफुलकी बातें की और फोन रख दिया.
काम खत्म न हो पाने के कारण नरेन अभी 3-4 दिन तक वापस आने में असमर्थ था.
अगली सुबह नई ताजगी के साथ रीमा अपने काम में जुट गई. सुबह के समय किसी की उपस्थिति या अनुपस्थिति का रीमा पर कोई फर्क नहीं पड़ता. सिर्फ शाम के समय अवसाद से उबरने के लिए किसी का पास होना उसे अनिवार्य लगता.
नरेन के घर से बाहर रहने पर वह अकसर मां के पास चली जाती थी. मां भी इन दिनों भाई के पास मुंबई गई हुई थीं. आजकल रीमा की परेशानी का मुख्य कारण यही था. बहुत सोचने के बाद रीमा ने अनिल को फोन किया. अनिल घर पर नही थे. रीमा की आवाज सुन कर चौंक गए, ”क्या बात है, सब ठीक तो है?“
”अकेले घर पर मन नहीं लग रहा था. सोचा कि आप से ही बात कर के मन हलका कर लूं,“ रीमा बोली.
”अच्छा. आप फोन रखिए. मैं 10 मिनट में आप के घर पहुंच रहा हूं. मै यहां नजदीक ही हूं,“ कह कर अनिल ने रीमा की बात सुने बगैर फोन काट दिया.
रीमा अपने इस व्यवहार से असमंजस में पड़ गई. उसे समझ नहीं आया कि उस ने अनिल को फोन कर के अच्छा किया या बुरा.
अनिल की ओर बढ़ते अपने झुकाव को वह स्वयं महसूस कर रही थी. कुछ ही देर में वह रीमा के पास पहुंच गया. 2-3 घंटे बातों में गुजारने के बाद अनिल जाने के लिए उठे और रीमा को धन्यवाद देते हुए बोले, ”आप की रुचियों से मैं प्रभावित हुआ हूं. नरेन भाग्यशाली है, जो उसे आप जैसी सुशील और सभ्य पत्नी मिली है. निःसंदेह अब मुझे भी शाम को आप की कमी खलेगी.“
अपनी तारीफ सुन कर रीमा फूली न समाई. उस के जाने के बाद घूमफिर कर खीज फिर नरेन पर उतरी.
ये भी पढ़ें- यह क्या हो गया: नीता की जिद ने जब तोड़ दिया परिवार
”अगर मेरी परवाह होती तो क्या वह इतने दिन घर से बाहर रहते?“
दूसरे ही पल मन से आवाज उठी, “क्या हुआ? नरेन न सही अनिल ने तो उस की कद्र की है.“
विचारों का सिलसिला बहुत देर तक चलता रहा. विचार अब केंद्रबिंदु से हट कर लहरों के रूप में फैलने लगे थे. इसी कारण नरेन के प्रति रीमा की खीज धीरेधीरे कम होने लगी थी और अनिल के प्रति आकर्षण को वह रोक नहीं पा रही थी.
कंपनी के मैनेजर राजन शर्मा के घर रविवार की शाम को पार्टी थी. इस की सूचना नरेन ने रीमा को फोन पर ही दे दी थी और रीमा से आग्रह किया था कि वह पार्टी में अवश्य शामिल हो जाए.
भारी मन से रीमा पार्टी में अकेले चली गई थी. नरेन के बगैर उसे यह पार्टी फीकी लग रही थी. दूर से रीमा की नजर अनिल पर पड़ी. नरेन के बारे में सोचना छोड़ वह उसे ही निहारने लगी. रीमा की नजरों से बेखबर वह अपने साथिर्यो से बातें करने में मशगूल था.
रीमा खड़ेखड़े उस की प्रभावशाली भाषा शैली की कल्पना करते हुए उस में ही उतरनेतैरने लगी. काफी देर बाद अनिल की नजर भी रीमा पर पड़ी. दोस्तों से अलग हो कर वह रीमा के पास आ गया. आदतानुसार अनिल ने हाथ जोड़ दिए. उस की नजरें कह रही थीं, ‘रीमाजी आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं.’ लेकिन बात जबान पर न आ सकी. रीमा और अनिल थोड़ी देर तक माहौल के अनुरूप औपचारिक बातें करते रहे. खाना खाने के बाद सहसा रीमा ने पूछा, ”क्या आप कार ले कर आए हैं ? यदि आप को कोई परेशानी न हो तो मुझे भी घर तक छोड़ दें.“
”परेशानी कैसी? यह तो मेरी खुशकिस्मती है कि आप ने मुझे इस लायक समझा और मुझ पर विश्वास किया.“
अनिल ने सब से विदा ली और रीमा के साथ कार में बैठ गए. कार अनिल खुद चला रहे थे. साथ में बैठी रीमा कभी कनखियों से अनिल पर नजर डाल लेती. हर बार जब भी रीमा अनिल से मिलती उस के व्यक्तित्व में एक नई बात जरूर ढूंढ़ लेती.
ये भी पढ़ें- शिणगारी: आखिर क्यों आज भी इस जगह से दूर रहते हैं बंजारे?
रीमा महसूस कर रही थी कि अनिल जिस काम को भी करते हैं पूरी तरह से उसी में डूब कर बड़ी तन्मयता से करते हैं. इस समय भी अनिल का पूरा ध्यान कार ड्राइव करने पर था, जैसे वह रीमा की उपस्थिति से बेखबर हो. सामने तेजी से आती हुई गाड़ी से बचने के लिए जैसे ही अनिल ने स्टेयरिंग घुमाया, रीमा अनिल के ऊपर लुढ़क गई. अनिल को छूते ही रीमा के शरीर में एक लहर सी उठी. तुरंत अपने को संयत कर वह अनिल से दूरी बनाते हुए सचेत हो कर बैठ गई.
रीमा ने कनखियों से अनिल को देखा, मन में आवाज उठी, “कहीं अनिल ने जानबूझ कर तो स्टेयरिंग नहीं घुमाया था?“
अनिल को पहले की तरह कार चलाते देख कर रीमा का संशय मिट गया. कुछ पल पहले का अनुभव उसे फिर से रोमांचित कर गया.
घर पहुंच कर रीमा ने उस से एक कप चाय पीने का आग्रह किया. अनिल मात्र धन्यवाद कह कर बाहर से ही लौट गए.
रीमा की आंखों से आज नींद कोसों दूर थी. रीमा के अंदर की स्त्री कहीं अपने दर्प के टूटने से नदी आहत थी. रहरह कर वह फुफकारने लगती, ‘एक विवाहिता हो कर भी अनिल की छुअन से उस ने इतना रोमांच अनुभव किया, फिर अविवाहित होने पर भी क्या अनिल उस के स्पर्श से रोमांचित नहीं हुआ होगा?’
रीमा अपने विचारों को जितना रोकने की कोशिश करती, उतना ही वे प्रबल हो जाते. पार्टी के माहौल में तो कम से कम अनिल रीमा की खूबसूरती की तारीफ कर सकता था. फिर उस ने ऐसा क्यों नहीं किया? सारी रात इसी उधेड़बुन में कट गई. सुबह जा कर कहीं रीमा की आंख लगी. सुबह फोन की घंटी से रीमा की आंख खुली. नरेन का फोन था.
”हैलो रीमा, मैं आज की फ्लाइट से वापस आ रहा हूं. शाम तक आ जाऊंगा.“
ये भी पढे़ं- सुसाइड: क्या पूरी हो पाई शरद की जिम्मेदारियां
नरेन शाम को ठीक समय पर घर आ गए. रीमा की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए रीमा के लिए उपहार ले कर आए थे. आशा के विपरीत शिकवे भूल कर रीमा ने प्यार से नरेश का स्वागत किया.
”क्या बात है? तबीयत तो ठीक है?“ नरेन ने पूछा.
”क्यों? मुझे क्या हुआ?“ नरेन का आशय समझ कर भी अनजान बनते हुए रीमा बोली.
”चलो फिर तुम्हारा बर्थडे अभी सैलिब्रेट कर लेता हूं,“ इतना कह कर नरेन ने रीमा को बांहों में भर लिया. रीमा ने कोई प्रतिकार नहीं किया. यही सोच कर नरेन खुश हो गया.
आगे पढें- पूरी शाम नरेन की बातों में ही…
लेखिका- डा. के. रानी
आते ही नरेन ने पिछले दिनों के अनुभव रीमा को सुनाने शुरू कर दिए. रीमा को अपने पर ही आश्चर्य हो रहा था कि आज नरेन की बातों में उसे यदि रस नहीं आ रहा था तो खिन्नता भी नहीं हो रही थी. वह नरेन की बातों को सुन कर भी नहीं सुन रही थी. उस का ध्यान कहीं और था. वह सोच रही थी, ”अनिल जब बात करते हैं तो दूसरे की रुचि का पूरा ध्यान रखते हैं. उन की बातें कहीं से भी साथ वाले की रुचि का अतिक्रमण नहीं करतीं और नरेन? वे तो सिर्फ अपनी इगो को तुष्ट करने वाली बातें ही करते हैं, दूसरे की रुचि उस में हो या न हो.
पूरी शाम नरेन की बातों में ही गुजर गई. रात को बिस्तर पर लेटे हुए भी रीमा अनिल के स्पर्श को भूल नहीं पा रही थी. नरेन के साथ ढेर सारा प्यार बांटते हुए भी कहीं अनिल की याद उस की योजना को बढ़ा रही थी.
दूसरे दिन जब नरेन औफिस से लौटे तो साथ में अनिल भी थे. अनिल को देख कर रीमा का चेहरा खिल उठा. तभी अनिल बोल उठे, ”नरेन, मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में यहां आता रहा हूं. मैडम ने बता ही दिया होगा. तुम्हें बुरा तो नहीं लगा.“
रीमा ने घूर कर अनिल को देखा, जैसे उस की चोरी पकड़ ली गई हो. नरेन ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. अनिल व नरेन घंटों औफिस की बातें करते रहे. दूर बैठी रीमा अनिल के सामीप्य के लिए तरसती रही. अनिल की स्पष्टवादिता ने रीमा के अंतर्मन को कहीं शांत भी कर दिया था. अनिल का मान उस की नजर में पहले से अधिक बढ़ गया. वह सोचने लगी, ‘यह व्यक्ति जीवन में किसी को धोखा नहीं दे सकता.’
ये भी पढ़ें- नाक: रूपबाई के साथ आखिर क्या हुआ
रीमा के अंदर कई सवाल उमड़तेघुमड़ते रहे, लेकिन पथ प्रदर्शक के अभाव में वे भी दिशाहीन भटकते रहे. रीमा जानती थी कि उस के हर प्रश्न का उत्तर अनिल के पास था. कई बार रीमा ने चाहा कि वह अपने उद्गार अनिल के सामने व्यक्त कर दे. अपना जीवन उसी के हवाले कर दे, फिर ठिठक गई.
बातचीत में अनिल और नरेन का साथ कभी रीमा भी दे देती. अनिल रीमा की बातों को पूरा सम्मान देते, पर मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं करते थे.
अनिल के प्रति बढ़ते आकर्षण को रीमा रोक नहीं पा रही थी. उसे यकीन था कि अनिल भी उसे पसंद करते हैं. शायद झिझक के कारण अपने को व्यक्त नहीं कर पा रहे. रीमा ने निश्चय कर लिया कि वह अनिल को इस कृत्रिम आवरण से मुक्त करा कर ही रहेगी.
2 हफ्ते बाद नरेन को एक दिन के लिए टूर पर बाहर जाना था. रीमा शरीर से तो नरेन के जाने की तैयारी में लगी रही, पर मन था कि आज सबकुछ अनिल से कह देने को आतुर था. पहले की बात होती तो आज सुबह से ही उस का मूड खराब हो जाता, लेकिन आज वह नरेन के जाने का इंतजार कर रही थी.
शाम को नरेन के जाते ही रीमा ने अनिल को फोन किया, “हैलो अनिल, मुझे आप से जरूरी काम है. प्लीज, 8 बजे तक घर आ जाइए.“
फोन रखते हुए एक बार रीमा का हाथ कांप उठा. अंतर्मन का विरोध क्षणभर को मुखरित हो गया.
‘एक विवाहिता हो कर भी परपुरुष के बारे में इस हद तक सोचना न तो नीतिसंगत है और न ही मर्यादित.’
‘मैं ने ऐसा कोई काम अभी तक नहीं किया. मैं तो सिर्फ उसे महसूस करना चाहती हूं, जिस से मुझे यकीन हो सके कि वह विचारों से भी मुझ से अलग नहीं. आखिर विदेशों में भी तो लोग शादीशुदा होते हुए भी एकदूसरे के अच्छे दोस्त होते हैं,’ रीमा ने खुद को समझाया.
वह आने वाले समय की कल्पना मे खो गई. अनिल अविवाहित है. अगर उसे मुझ से सच्चा प्यार होगा, तो इस रिश्ते को जीवनभर निभाएगा. फिसलन भरी राह के पहले कदम पर ही वह अनिल को अपने कदमों पर झुका देगी. सबकुछ दांव पर लगा कर उसे यही तो एक सुखद एहसास मिल सकता था. तभी उस के विवेक ने उसे झकझोरा,
”वह ये क्या कर रही है? अनिल को झुकाने के लिए क्या खुद को इतना नीचे गिराना जरूरी है? क्या जवाब देगी वह अपने पति नरेन को?“
अपनी गलती का एहसास होते हीे वह निराशा में घिरने लगी. इस वक्त उसे नरेन की कमी बहुत खल रही थी. रीमा मन ही मन घबराने लगी थी. कैसे सामना करेगी वह उस का? कहीं उसे उस की नीयत पर शक हो गया तो…?
‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. उसे अभी अनिल से बात करनी होगी.’
फोन उठाते ही उस के हाथ ठिठक गए.
‘नहीं, वह अब कभी उसे अकेले में घर नहीं बुलाएगी. खुद उस के घर जा कर उसे किसी रेस्त्रां में ले जाएगी,’ अपनेआप से लड़ते हुए उस ने घड़ी पर नजर डाली. अभी 7 बज रहे थे. उस ने तुरंत एक टैक्सी पकड़ी और अनिल के घर पहुंच गई. उस वक्त अनिल किसी से फोन पर बातें कर रहे थे. शंका से भरा मन कान लगा कर उन की बातें सुनने लगा.
“नरेन की बीवी को पता नहीं क्या परेशानी रहती है? जब वह घर पर नहीं होता, तो दूूसरे मर्दों को घर पर बुला लेती है. मुझे तो ऐसी औरतों से बहुत डर लगता है.“
रीमा ने अपने बारे में यह सब सुना, तो सन्न रह गई.
वह आगे बोला, ”ठीक है, मैं अभी मिलता हूं तुम से,“ इतना कह कर अनिल ने फोन रख दिया.
यह सुनते ही रीमा वहीं से वापस मुड़ गई और कुछ दूरी बना कर अनिल की गाड़ी के पीछे चल पड़ी. कुछ दूरी पर वह एक रेस्त्रां के बाहर ही एक खूबसूरत युवती उस का इंतजार कर रही थी. हाथ में हाथ डाल कर उस के साथ अनिल को कार में बैठता देख रीमा के होश उड़ गए. कहनेसुनने की सारी शक्ति जवाब देने लगी.
कुछ ही देर में वह उसे कार में छोड़ कर रीमा के घर पहुंच गया. रीमा ने भी टैक्सी कुछ दूरी पर रुकवा दी. अनिल ने डोर बैल बजाई. कोई उत्तर न पा कर उस-ने फोन मिलाया, “मैडम, आप कहां हैं? आप ठीेक तो हैं. दरवाजा नहीं खुला, तो मैं डर गया.“
ये भी पढ़ें- घोंसला: सारा ने क्यों शादी से किया था इंकार
“मुझे जरूरी काम से अचानक कहीें जाना पड़ा. आई एम सौरी. मैं ने आप को बेवजह परेशान किया.“
“कोई बात नहीं मैडम. नरेन की गैरहाजिरी में आप की जरूरत का खयाल रखना मेरा फर्ज है…“
अनिल की बात सुनने से पहले ही रीमा ने फोन काट दिया. वह तुरंत खुशीखुशी वापस लौट गया.
उसे लौटता देख कार में बैठी युवती का चेहरा खिल उठा.
लुटीपिटी सी किसी तरह घर में घुसतेे ही रीमा का धैर्य जवाब दे गया. वह फूटफूट कर रोने लगी. कहां
अनिल एक अस्फुट से दिशाहीन बादलों की उमड़घुमड़ के बीच चमकने वाली दामिनी और कहां स्वच्छ आकाश में चमकते हुए सूर्य की तरह नरेन?दोनो के स्पर्श में कितना फर्क है, यह रीमा कोे आज महसूस हो रहा था. वक्त अभी उस के हाथ से फिसला नहीं था. अपनी ओछी सोच पर रीमा बहुत पछता रही थी. इस के अलावा उस के पास और कोई रास्ता भी नहीं बचा था. इस समय उसे नरेन की बहुत याद सता रही थी. बहते आंसू पोंछ कर अब वह बेसब्री से नरेन के आने का इंतजार करने लगी.
लेखिका- डा. के. रानी
गाड़ी की आवाज सुन कर रीमा ने खिड़की से बाहर झांका. सामने नरेन की कार दिखाई दे रही थी. वह अनमने मन से उठी और यंत्रवत सी किचन में आ कर चाय बनाने लगी. यह उस का रोज का नियम था.
चाय ले कर वह ड्राइंगरूम में आ गई. कमरे में नरेन की जगह अनिल को देख कर अचकचा गई.
”हैप्पी बर्थडे मैडम,“ हाथ जोड़ कर सुर्ख लाल रंग के गुलाब के फूूूलों से बना बड़ा सा बुके थमाते हुए अनिल बोला.
”थैंक यू. नरेन कहां हैं?“ रीमा ने इधरउधर देखते हुए पूछा. उसे वह कहीं नजर नहीं आया.
”उन्होंने ही मुझे यहां भेजा है. अचानक उन्हें औफिस के काम से शहर से बाहर जाना पड़ा.“
”यह बात तो वे फोन पर भी बता सकते थे,“ रीमा ने रूखा सा जवाब दिया.
”दरअसल, वे आज के दिन आप को दुखी नहीं करना चाहते थे. कुछ मजबूरी ऐसी आ गई कि…“
”आप नरेन की तरफदारी मत कीजिए. मैं उसे अच्छे से जानती हूं,“ रीमा बात को बीच में ही काटते हुए बोली.
थोड़ी देर के लिए वातावरण में चुप्पी छा गई. फिर रीमा थोड़ा सहज हो कर बोली, ”आप को कैसे पता कि आज मेरा जन्मदिन है?“
ये भी पढ़ें- विकलांग: क्या हुआ था फ्लैट में ऐसा
”नरेन ने कहा था कि रीमा डिनर पर मेरा इंतजार कर रही होगी. तुम जा कर खाने पर उस का साथ भी दे देना और मेरी मजबूरी भी बता देना. तभी तो मैं यहां आया हूं, अन्यथा यह बात मैं भी आप को फोन से कह सकता था.“
”आई एम सौरी. बैठिए,“ उस के जन्मदिन पर भी नरेन के न आने से रीमा थोड़ी देर के लिए शिष्टाचार भी भूल गई थी. चाय का प्याला अनिल को थमा कर वह भी सोफे पर बैठ गई.
“मैं आप की परेशानी समझ सकता हूं. आप मुझे देख कर नाराज होंगी. फिर भी मैं यहां चला आया. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मैडम,“ अपने को दोषी मानते हुए अनिल बोला.
आज के दिन रीमा अपना मूड खराब नहीं करना चाहती थी. बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ते हुए वह बोली, ”आप का परिवार भी इसी शहर में रहता होगा. कभी उन्हें भी साथ ले कर आइए.“
”अभी तक मैं ने शादी नहीं की,“ बड़ी सहजता से अनिल ने जवाब दिया.
रीमा ने ध्यान से अनिल को देखा. वह सोचने लगी, ‘लंबा कद, सांवला किंतु आकर्षक व्यक्तित्व और अच्छा पद. ऐसे व्यक्ति ने अभी तक शादी क्यों नहीं की होगी?“
अनिल नरेन के साथ कभीकभी घर आ जाता था. वक्तबेवक्त नरेन के साथ उस के सहकर्मियों का आना रीमा को बड़ा खटकता था. तभी तो आज तक उस ने अनिल से खुल कर बातें नहीं की थीं. आज मजबूरी में ही सही अपने कुछ देर पहले के रूखे व्यवहार की स्मृति धूमिल करने के लिए रीमा अनिल के साथ बड़ी सहज हो कर बातें करने लगी. बातों ही बातों में रीमा ने महसूस किया कि अनिल की पकड़ व्यवसाय तक ही सीमित नहीं है, उसे आध्यात्मिक, राजनीति व ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान है. उसे ताज्जुब हुआ कि नरेन और अनिल के बौद्धिक धरातल में इतना अंतर होते हुए भी दोनों के बीच दोस्ती कैसे हो गई?
अनिल ने डिनर की खूब तारीफ की. डिनर खत्म करने के बाद रीमा से अनिल की तारीफ किए बिना न रहा गया .वह बोली,
”आप का व्यवहार व सेंस औफ ह्यूमर वाकई तारीफ के काबिल है.“
“थैंक यू,“ कहते हुए अनिल ने रीमा से विदा ली.
नरेन के आज के दिन भी घर न आने पर रीमा का मन पहले बहुत खिन्न था, पर अनिल से बातें कर के उस की खिन्नता कुछ कम हो गई थी. केवल नरेन पर केंद्रित सोचने का बिंदु अब बारबार सरक कर अनिल तक पहुंच जाता. रात को नरेन का फोन आया, ”सौरी रीमा, मैं आज के दिन भी तुम्हारे साथ मिल कर जन्मदिन न मना सका.“
”कोई बात नहीं,“ रूखा सा जवाब दे कर रीमा ने जरा देर बात कर फोन रख दिया.
दूसरे दिन सुबह रीमा अपने को काफी हलका महसूस कर रही थी. शाम होते ही फिर अकेलापन उसे सालने लगा. वह फिर से नरेन पर झुंझलाने लगी.
”क्या इनसान के लिए केवल तरक्की और पैसा ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गए हैं? नरेन का समय तो भौतिक सुखसुविधाएं जुटाने व जुगत लगाने में कट जाता है. वह सारा दिन खाली बैठे क्या करे?”
समय काटने के लिए नौकरी करना उसे खुद ही पसंद नहीं था.
तभी कालबैल बजी. रीमा ने दरवाजा खोला. सामने अनिल एक चपरासी के साथ खड़े थे. असमय अनिल को यहां देख कर रीमा एक क्षण को अपनी खीज भूल गई.
कल साथ बैठ कर गुजारा हुआ समय फिर साकार हो गया. हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए चपरासी बोला, ”मैडम, साहब औफिस की एक जरूरी फाइल घर पर ही छोड़ गए थे. मैं उसे लेने आया हूं.“
ये भी पढे़ं- पहला निवाला: क्या हुआ था घनश्याम के साथ
रीमा नरेन के स्टडीरूम में गई. वहां पर कई सारी फाइल रखी थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन सी फाइल चपरासी को दे. तभी अनिल की आवाज सुनाई दी.
”आप की परेशानी कम करने के लिए ही मैं इस के साथ आया हूं. लाइए, मैं फाइल ढूंढ़ देता हूं,“ कह कर उस ने फाइल के ढेर से एक फाइल खींच कर चपरासी को थमा दी. वह नमस्ते करते हुए चला गया. अनिल भी लौटने ही वाले थे कि रीमा ने उन्हें रोक लिया.
”एक कप चाय पी कर जाइए.“
”धन्यवाद. फिर कभी आ कर नरेन के साथ चाय पी लूंगा.“
”दरअसल, चाय तो एक बहाना है. मैं कुछ समय अपना अकेलापन दूर करने के लिए आप के साथ बैठ कर गपशप करना चाहती हूं,“ रीमा ने मन की बात साफसाफ बतला दी. वे दोनों बातों में मशरूफ होे गए. समय का अंदाज तब लगा, जब अचानक अनिल की नजर घड़ी पर पड़ी, ”अरे, 8 बज गए. अब मुझे चलना चाहिए.“
मन से तो रीमा अभी अनिल के साथ और देर तक बैठना चाहती थी, पर सामाजिक मर्यादा का ध्यान आते ही अनिल को गुड नाइट कह कर तुरंत इजाजत दे दी.
अनिल के जाने के बाद रीमा एक समीक्षक की तरह उस के व्यक्तित्व की समीक्षा करने लगी. उस का बात करने का ढंग, कपड़ों का चयन, शब्दों पर पकड़ और विषय की गहराई व सार्थक ज्ञान ये सब मिल कर उसे एक सामान्य व्यक्तियों की भीड़ से एकदम अलग खड़ा कर देते थे.
न चाहते हुए भी रीमा अनिल के व्यक्तित्व की तुलना नरेन से करने लगी. उसे लगा, नरेन बहुत कोशिश कर के भी अनिल का मुकाबला नहीं कर सकता, जबकि व्यावहारिकता में नरेन का पलड़ा अनिल से भारी था. यह व्यवहार की कमी ही तो थी कि अनिल का नरेन के घर पिछले एक साल से आनाजाना था, फिर भी रीमा के साथ मात्र औपचारिकता निभाने के अलावा उस ने कभी बात करने की कोशिश भी नहीं की. अनिल के व्यक्तित्व की इसी कमी पर रीमा झुंझला उठी.
”ये कैसा इनसान है…? जो तरक्की के लिए अपनाए जाने वाले शार्टकट को भी इस्तेमाल नहीं करता. अनिल चाहता तो रीमा पर अपनी विद्वता की छाप कभी भी छोड़ सकता था.“
आगे पढ़ें- काम खत्म न हो पाने के कारण…