तापस ने मानसी से कहा, “वह एक ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता जो शादी से पहले ही अपनी इज्जत गंवा बैठी हो, वह उस के क्या, किसी की भी पत्नी बनने के लायक नहीं है. जो अपनी मानमर्यादा और सम्मान की रक्षा नहीं कर सकती, शादी से पहले मां बनने वाली हो, वह उस के कुल की प्रतिष्ठा का क्या मान रख पाएगी.”
इतना सब तापस से सुनने के बाद मानसी में इतनी शक्ति ही नहीं बची कि वह कुछ कहे या सुने, मानसी रोती हुई खुद को और उस क्षण को कोसती हुई अपने फ्लैट लौट आई जब उस ने अपना सर्वस्व तापस को समर्पित कर दिया था.
मानसी ने अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया. कभी उस का जी मर जाने को करता तो कभी तापस को जान से मार देने को. वह अभी खुद को संभाल नहीं पाई थी कि मानसी की मां का फोन आ गया और उन्होंने मानसी को बताया कि तापस के मातापिता ने रिश्ता तोड़ दिया है और कारण ठहराया है मानसी का वर्जिन नहीं होना.
मानसी की मां भी उसे समझने या संबल देने के बजाय उस पर ही सवालों की झड़ी लगा दी और मानसी को ही बुरा कहने लगी कि उस ने उन्हें समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा, अपनी इज्जत गंवा बैठी और ना जाने क्या क्या…? मानसी चुपचाप सुनती रही और फिर उस ने फोन रख दिया.
अगली सुबह मानसी के मातापिता बैंगलुरु उस के फ्लैट पर आ पहुंचे और उसे एबौर्शन के लिए मजबूर करने लगे लेकिन मानसी इस के लिए तैयार न हुई. एबौर्शन के लिए राजी न होने पर मानसी के मातापिता उस से यह कह कर नागपुर लौट गए कि उन्हें समाज में रहना है तो समाज के बनाए नियमों के अनुरूप ही चलना पड़ेगा और समाज बिन ब्याही मां को स्वीकार नहीं करता, उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता और न ही उस से जुड़े लोगों को. इसलिए यदि वह एबौर्शन करा सकती है तो वह नागपुर अपने घर आ सकती है वरना उसे अपनी सूरत दिखाने की जरूरत नहीं.
मानसी को सच्चे दिल से प्यार करने की, खुद से ज्यादा अपने होने वाले जीवनसाथी पर विश्वास करने की सज़ा मिली थी. आज वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी. सब ने उस का साथ छोड़ दिया था. वह अब यह जान चुकी थी कि समाज के ठेकेदारों के संग यह उस की अपनी लड़ाई है. समाज के बनाए नियमों के खिलाफ उसे अकेले ही लड़ना पड़ेगा. पगपग पर उसे बेइज्जत, लज्जित और गिराया जाएगा लेकिन उसे फिर खुद उठना होगा, खड़ा होना होगा और अपने व अपने बच्चे के लिए लड़ना होगा.
दुनिया और समाज से अकेली लड़ती हुई मानसी ने बेटे को जन्म दिया. मानसी के मातापिता उस से मिलने तक को नहीं आए. वक्त बीतता गया और फिर धीरेधीरे मानसी की बात अपने मातापिता से फोन पर होने लगी. मानसी का काम और व्यवहार इतना अच्छा था कि उस के व्यक्तित्व के आगे लोग झुकने लगे. औफिस में उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा. मानसी का प्रमोशन भी हो गया और वह दिल्ली आ गई.
यों ही 5 साल बीत गए. मानसी का बेटा विवान 3 साल का हो गया. तापस ने फिर कभी मानसी की ओर मुड़ कर भी न देखा. इस बीच मानसी की सचाई को जानतेसमझते हुए उसे शादी के कुछ रिश्ते भी आए लेकिन मानसी फिर कभी किसी रिश्ते में नहीं बंधी. एक दिन अचानक सुबहसुबह डोरबैल बजी. दरवाजा खोलते ही मानसी हैरान रह गई. 5 सालों बाद आज पहली बार उस के मातापिता सामने खड़े थे. मानसी की आंखें नम हो गईं और वह झट से अपनी मां के गले लग गई लेकिन अगले ही पल तापस और उस के मातापिता को देख मानसी का खून खौल उठा. तभी मानसी की मां ने झट से उस का हाथ थाम लिया और बोली, “बेटा, सुन तो ले हम यहां क्यों आए हैं. तापस तुझ से कुछ कहना चाहता है.”
इतना सुन कर मानसी दरवाजे से हट गई और सब अंदर आ गए. तापस अपने दोनों हाथों को जोड़ कर बोला, “मानसी, मुझे माफ़ कर दो. मैं अपनी गलती सुधारना चाहता हूं. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं अपने बेटे को अपना का नाम देना चाहता हूं. तुम तो जानती हो उस बच्चे का कोई भविष्य नहीं होता जिस के साथ पिता का नाम नहीं जुड़ा होता.”
यह सुन मानसी बड़े शांतभाव बोली, “अचानक यह हृदय परिवर्तन क्यों? अखिर ऐसा क्या हुआ कि तुम वाल्मीकि बनने चले? तुम इतने दिनों बाद आज क्यों अपनी गलती सुधारना चाहते हो? मुझे और मेरे बच्चे को अब क्यों अपनाना चाहते हो? क्या आज तुम्हें अपनी मान, मर्यादा और कुल की प्रतिष्ठा का ख़याल नहीं है या यह भूल गए हो कि मैं वर्जिन नहीं हूं एक बिनब्याही मां हूं.”
तापस सिर झुकाए सबकुछ सुनता रहा. उस के पास मानसी को देने के लिए कोई जवाब नहीं था. तभी तापस की मां बोली, “मानसी बेटा, इसे माफ कर दो. इसे अपने किए की सज़ा कुदरत ने दे दी है. एक सड़क दुघर्टना में यह अपना सबकुछ गवां चुका है, यहां तक कि अपना पुरुषत्व भी. अब यह कभी भी पिता नहीं बन सकता. तुम्हारा बेटा हमारे घर का चिराग है. उसे हमें लौटा दो. तुम्हें भी तापस से शादी के बाद तुम्हारा खोया हुआ मानसम्मान मिल जाएगा और तुम्हारे बेटे को पिता का नाम.”
होंठों पर मुसकान लिए मानसी बोली, “शादी कर के मुझे झूठा मानसम्मान नहीं चाहिए और रही बात पिता के नाम की, तो ऐसा है जब एक गीतकार गीत बनाता है तो उसे अपना नाम देता है, चित्रकार जब चित्र बनाता है उस के नीचे अपना नाम लिखता है और एक लेखक जब कोई रचना लिखता है तो उस के नीचे भी वह अपना ही नाम लिखता है. हर रचना रचनाकार के नाम से जानी जाती है तो फिर जब एक मां नौ महीने अपने बच्चे को अपने गर्भ में रखती है, गर्भ में रह कर ही बच्चा अपना आकार पाता है, स्वरूप पाता है तो जन्म लेते ही उस बच्चे के साथ पिता का नाम क्यों जरूरी हो जाता है. एक बच्चा अपनी मां के नाम से क्यों नहीं जाना जा सकता…? मेरा बेटा मेरे ही नाम से जाना जाएगा. उसे किसी पिता के नाम की जरूरत नहीं, आप सब जा सकते हैं.”
इतना कह कर मानसी दरवाजे के पास आ कर खड़ी हो गई. किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. सब सिर झुकाए घर से बाहर निकल गए और मानसी ने अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया.