Raksha Bandhan: मेरे भैया- क्या लिखा था उस अंतिम खत में

सावन का महीना था. दोपहर के 3 बजे थे. रिमझिम शुरू होने से मौसम सुहावना पर बाजार सुनसान हो गया था. साइबर कैफे में काम करने वाले तीनों युवक चाय की चुसकियां लेते हुए इधरउधर की बातों में वक्त गुजार रहे थे. अंदर 1-2 कैबिनों में बच्चे वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे. 1-2 किशोर दोपहर की वीरानगी का लाभ उठा कर मनपसंद साइट खोल कर बैठे थे.  तभी वहां एक महिला ने प्रवेश किया. युवक महिला को देख कर चौंके, क्योंकि शायद बहुत दिनों बाद एक महिला और वह भी दोपहर के समय, उन के कैफे पर आई थी. वे व्यस्त होने का नाटक करने लगे और तितरबितर हो गए.

महिला किसी संभ्रांत घराने की लग रही थी. चालढाल व वेशभूषा से पढ़ीलिखी भी दिख रही थी. छाता एक तरफ रख कर उस ने अपने बालों को जो वर्षा की बूंदों व तेज हवा से बिखर गए थे, कुछ ठीक किए. फिर काउंटर पर बैठे लड़के से बोली, ‘‘मुझे एक संदेश टाइप करवाना है. मैं खुद कर लेती पर हिंदी टाइपिंग नहीं आती है.’’

‘‘आप मुझे लिखवाएंगी या…’’

‘‘हां, मैं बोलती जाती हूं और तुम टाइप करते जाओ. कर पाओगे? शुद्ध वर्तनी का ज्ञान  है तुम्हें?’’

लड़का थोड़ा सकपका गया पर हिम्मत कर के बोला, ‘‘अवश्य कर लूंगा,’’ मना करने से उस के आत्मविश्वास को ठेस पहुंचने की आशंका थी.  महिला ने बोलना शुरू किया, ‘‘लिखो- मेरे भैया, शायद यह मेरी ओर से तुम्हारे लिए अंतिम राखी होगी, क्योंकि अब मुझ में इतना सब्र नहीं बचा है कि मैं भविष्य में भी ऐसा करती रहूंगी. नहीं तुम गलत समझ रहे हो. मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि शिकायत करने का हक तुम वर्षों पहले ही खत्म कर चुके हो.’’  इतना बोल कर महिला थोड़ी रुक गई. भावावेश से उस का चेहरा तमतमाने लगा था. उस ने कहा, ‘‘थोड़ा पानी मिलेगा?’’

लड़के ने कहा, ‘‘जरूर,’’ और फिर एक बोतल ला कर उस महिला को थमा दी. लड़के को बड़ी उत्सुकता थी कि महिला आगे क्या बोलेगी. उसे यह पत्र बड़ा रहस्यमयी लगने लगा था.  महिला ने थोड़ा पानी पीया, पसीना पोंछा और फिर लिखवाना शुरू किया, ‘‘कितना खुशहाल परिवार था हमारा. हम 5 भाईबहनों में तुम सब से बड़े थे और मां के लाड़ले तो शुरू से ही थे. तभी तो पापा की साधारण कमाई के बावजूद तुम्हें उच्च शिक्षा के लिए शहर भेज दिया था. पापा की इच्छा के विरुद्ध जा कर मां ने तुम्हारी इच्छा पूरी की थी. तुम भी वह बात भूले नहीं होंगे कि मां ने अपनी बात मनवाने के लिए

2 दिन खाना नहीं खाया था. जब तुम्हारा दाखिला मैडिकल कालेज में हुआ था तो मैं ने अपनी सारी सखियों को चिल्ला कर इस के बारे में बताया था और मुझे उन की ईर्ष्या का शिकार भी होना पड़ा था. एक ने तो चिढ़ कर यह भी कह दिया था कि तुम तो ऐसे खुश हो रही हो जैसे तुम्हारा ही दाखिला हुआ हो, जिस का उत्तर मैं ने दिया था कि मेरा हो या मेरे भैया का, क्या फर्क पड़ता है. है तो दोनों में एक ही खून. भैया क्या मैं ने गलत कहा था?  ‘‘फिर तुम होस्टल चले गए थे और जबजब आते थे, मैं और मां सपनों के सुनहरे संसार में खो जाती थीं. सपनों में मां देखती थीं कि तुम एक क्लीनिक में बैठे हो और तुम्हारे सामने मरीजों की लंबी लाइन लगी है. तुम 1-1 कर के सब को परामर्श देते और बदले में वे एक अच्छीखासी राशि तुम्हें देते. शाम तक रुपयों से दराज भर जाती. तुम सारे रुपए ले कर मां की झोली भर देते. तुम बातें ही ऐसी करते थे, मां सपने न देखतीं तो क्या करतीं?

‘‘और मैं देखती कि मैं सजीधजी बैठी हूं. एक बहुत ही उच्च घराने से सुंदर, सुशिक्षित वर मुझे ब्याहने आया है. तुम अपने हाथों से मेरी डोली सजा रहे हो और विदाई के वक्त फूटफूट कर रो रहे हो.

‘‘पिताजी हमें अकसर सपनों से जगाने की कोशिश करते रहते थे पर हम मांबेटी नींद से उठ कर आंखें खोलना ही नहीं चाहती थीं, क्योंकि तुम अपनी मीठीमीठी बातों से ठंडी हवा के झोंके जो देते रहते थे.

‘‘मां ने साथसाथ तुम्हारी शादी के सपने देखने भी शुरू कर दिए थे. उन्हें एक सुंदरसजीली दुलहन, आंखों में लाज लिए, घर के आंगन में प्रवेश करते हुए नजर आती थी. मां का पद ऊंचा उठ कर सास का हो जाता था और घर उपहारों से उफनता सा नजर आता था.

‘‘होस्टल से आतेजाते मां तुम्हें तरहतरह के पकवान बना कर खिलाती भी थीं और बांध कर भी देती थीं. पता नहीं ये सब करते समय मां में कहां से ताकत व हिम्मत आ जाती थी वरना तो सिरदर्द की शिकायत से पूरे घर को वश में किए रखती थीं.

‘‘सपने पूरे होने का समय आ गया था. तुम ने अपनी डिगरी हासिल कर ली थी और होस्टल छोड़ कर घर आने की तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक तुम्हें एक प्रस्ताव मिला. प्रस्ताव एक सहपाठिन के पिता की ओर से था- विवाह का. तुम ने मां को बताया. मां को अपने सपने दूनी गति से पूरे होते नजर आने लगे. मां ने सहर्ष हामी भर दी. मैं आज तक नहीं समझ पाई कि मां ने स्वयं को इतनी खुशहाल कैसे समझ लिया था. इठलातीइतराती घरघर समाचार देने लगीं कि डाक्टर बहू आएगी हमारे घर.

‘‘तुम्हारा विवाह हो गया. अब सब को मेरे विवाह की चिंता सताने लगी थी. मां बहुत खुश थीं. उन्होंने जो थोड़ाबहुत गहने मेरे लिए बनवाए थे उन्हें दिखाते हुए तुम से कहा था कि बेटा इतना तो है मेरे पास, कुछ नकद भी है, तू कोई अच्छा वर तलाश कर बाकी इंतजाम भी हो जाएगा. अब तू यहां रहेगा तो क्या चिंता है. समाज में मानप्रतिष्ठा भी बढ़ेगी और आर्थिक समृद्धि भी आएगी.

‘‘सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन भाभी ने घोषणा कर दी कि अभी यहां क्लीनिक खोलने से लाभ नहीं है. इतना पैसा तो है नहीं आप लोगों के पास कि सारी मशीनें ला सकें. नौकरी करना ही ठीक रहेगा. मेरे पिताजी ने हम दोनों के लिए सरकारी नौकरी देख ली है, हमें वहीं जाना होगा.

‘‘और तुम चले गए थे. उस के बाद तुम जब भी आते तुम्हारे साथ भाभी की फरमाइशों व शिकायतों का पुलिंदा रहता था पर पापा की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अब तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी कर पाते. उन्हें अन्य भाईबहनों की भी चिंता थी. भैया उन दिनों मैं ने तुम्हारे चेहरे पर परेशानी व विवशता दोनों का संगम देखा था. तुम्हारी मुसकराहट न जाने कहां गायब हो गई थी. हर वक्त तनाव व चिड़चिड़ाहट ने तुम्हारे चारों ओर घेरा बना लिया था. भाभी को मां गंवार, मैं बोझ और पापा तानाशाह नजर आने लगे थे. तुम ने बहुत कोशिश की कि मां कुछ ऐसा करती रहें कि भाभी संतुष्ट रहे, परंतु न मां में इतनी सामर्थ्य थी, न ही भाभी में सहनशक्ति. धीरेधीरे तुम भी हमें भाभी की निगाहों से देखने लगे थे. कुछ तुम्हारी मजबूरी थी, कुछ तुम्हारा स्वार्थ. एक दिन तुम ने मां से कहा कि मां, मुझे दोनों में से एक को चुनना होगा, आप सब या मेरा निजी जीवन.

‘‘मां ने इस में भी अपना ममत्व दिखाया और तुम्हें अपने बंधन से मुक्त कर के भाभी  के सुपुर्द कर दिया ताकि तुम्हारा वैवाहिक जीवन सुखमय बन सके.

‘‘उस दिन के बाद तुम यदाकदा घर तो आते थे पर एक मेहमान की तरह और अपनी खातिरदारी करवा कर लौट जाते थे. पापा ने मेरा रिश्ता तय कर दिया और शादी भी. इसे मेरा विश्वास कहो या नादानी अभी भी मुझे यही लगता था कि यदि तुम मेरे लिए वर ढूंढ़ते तो पापा से बेहतर होता और मैं कई दिनों तक तुम्हारा इंतजार करती भी रही थी. पर तुम नहीं आए. शादी के वक्त तुम थे परंतु सिर्फ विदा करने के लिए. सीधेसादे पापा ने अपने ही बलबूते पर सभी भाईबहनों का विवाह कर दिया. करते भी क्या. घर का बड़ा बेटा ही जब धोखा दे जाए, हिम्मत तो करनी ही पड़ती है.

‘‘मैं पराई हो गई थी. जब भी मैं मां से मिलने जाती मां की सूनी आंखों में तुम्हारे इंतजार के अलावा और कुछ नजर नहीं आता था. मां मुझ से कहतीं कि एक बार भैया को फोन मिला कर पूछ तो सही कैसा है, वह घर क्यों नहीं आता. कहो न उस से एक बार बस एक बार तो मिलने आए. तुम ने घर आना बिलकुल बंद कर दिया था. पापा पुरुष थे, उन्हें रोना शोभा नहीं देता था, परंतु मायूसी उन के चेहरे पर भी झलकती थी. मां के पास सब कुछ होते हुए भी जैसे कुछ नहीं था. तुम मां के लाड़ले जो चले गए थे मां से रूठ कर. पर मां को अपना दोष कभी समझ नहीं आया. वे अकसर मुझ से पूछतीं कि क्या मुझे उसे पढ़ने बाहर नहीं भेजना चाहिए था या मैं ने उस का यह रिश्ता कर के गलती की? अंत में यही परिणाम निकलता कि सारा दोष मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखना ही था. सिर्फ खर्चा और कुछ न मिलने की आस से ही यह हुआ था.

‘‘पापा ने आस छोड़ दी थी पर मां के दिल को कौन समझाता? पापा से छिपछिप कर अपनी टूटीफूटी भाषा में तुम्हें चिट्ठी लिख कर पड़ोसियों के हाथों डलवाती रहती थीं और उन की 5-6 चिट्ठियों का उत्तर भाभी की फटकार के रूप में आता था कि हमें परेशान मत करो, चैन से जीने दो.

‘‘मां का अंतिम समय आ गया था. पर तुम नहीं आए. तुम से मिलने की आस लिए मां दुनिया छोड़ कर चली गईं और किसी ने तुम्हें भी खबर कर दी. तुम आए तो सही पर अंतिम संस्कार के वक्त नहीं, क्योंकि शायद तुम्हें यह एहसास हो गया था कि अब मैं इस का हकदार नहीं हूं.

‘‘जीतेजी मां सदा तुम्हारा इंतजार करती रहीं और मरते वक्त भी तुम्हारा हिस्सा मुझ से बंधवा कर रखवा गई हैं, क्योंकि वे मां थीं और मैं ने भी उन्हें मना नहीं किया, क्योंकि मैं भी आखिर बहन हूं पर तुम न बेटे बन सके न भाई.

‘‘भैया, क्या इनसान स्वार्थवश इतना कमजोर हो जाता है कि हर रिश्ते  को बलि पर चढ़ा देता है? तुम ऐसे कब थे? यह कभी मत कहना ये सब भाभी की वजह से हुआ है, क्या तुम में इतना भी साहस नहीं था कि  अपनी इच्छा से एक कदम चल पाते? यदि  तुम्हारे जीवन में रिश्तों का बिलकुल ही महत्त्व नहीं है, तो मेरी राखी न मिलने पर विचलित क्यों हो जाते हो? और किसी न किसी के हाथों यह खबर भिजवा ही देते हो कि अब की बार राखी नहीं मिली.

‘‘भैया, क्या सिर्फ राखी भेजने या बांधने से ही रक्षाबंधन का पर्व सार्थक सिद्ध हो जाता है? क्या इस के लिए दायित्व निभाने जरूरी नहीं? आज 25 साल हो गए. इस बीच न तो तुम मुझ से मिलने ही आए और न ही मुझे बुलाया. इस बीच मेरे द्वारा भेजी गई राखी एक नाजुक सेतु की तरह थी जोकि अब टूटने की कगार पर है, क्योंकि अब मेरा विश्वास व इच्छाशक्ति दोनों ही खत्म हो गए हैं.

‘‘भैया, बस तुम मुझे एक बात बता दो कि यदि हम बहनें न होतीं तो क्या तुम मम्मीपापा को छोड़ कर नहीं जाते? क्या तुम्हारे पलायन का कारण हम बहनें थीं? हम तुम्हें कैसे विश्वास दिलातीं कि हम तुम से कभी कुछ अपेक्षा नहीं रखेंगी, तुम एक बार अपनी विवशता कहते तो सही. हो सके तो इस राखी को मेरी अंतिम निशानी समझ कर संभाल कर रख लेना, क्योंकि मेरे खयाल से तुम्हारे दिल में न सही, घर में इतनी जगह तो होगी.’’

लिखवातेलिखवाते वह महिला उत्तेजना व दुखवश कांपने लगी, पर उस की आंखों से आंसू नहीं छलके. शायद वे सूख चुके थे, पर टाइप करने वाले लड़के की आंखें नम हो गई थीं.  काम पूरा हो गया था. उस महिला ने लड़के से कहा, ‘‘तुम इस की एक प्रतिलिपि निकाल कर मुझे दे दो ताकि मैं यह संदेश अपने भैया तक पहुंचा सकूं. तुम जानते हो आज 25 वर्षों बाद मैं यह सब लिखने का साहस कर पाई हूं. मैं सदा छोटी बहन बन कर ही रही. ‘‘हां, एक कष्ट और दूंगी तुम्हें. इस संदेश को इंटरनैट द्वारा ऐसे ब्लौग पर डाल दो जहां से ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढ़ें. हो सकता है दुनिया में ऐसे और भी भाई हों, जिन में आत्मनिर्णय व आत्मसम्मान की कमी हो. उन को इस पत्र से कुछ लाभ हो जाए. यह संदेश मैं अपनी मां को अपनी अंतिम श्रद्धांजलि के रूप में देना चाहती हूं ताकि जो दुख वे अपने सीने में दबाए इस दुनिया से विदा हो गईं, उस से उन्हें कुछ राहत मिल सके.’’

Raksha Bandhan: घर पर ही करें सरप्राइज पार्टी, भाईबहन के लिए यादगार होगा ये फैस्टिवल

अब दौर नई तरह की पार्टियों का है. हर त्यौहार में सेलीब्रेशन का स्टाइल बदल रहा है. रक्षाबंधन में भी अब सरप्राइज पार्टियों का सिलसिला युवाओं को पंसद आने लगा है. इसकी वजह यह है कि आज के युवाओ को फैस्टिवल में धूमधड़ाका पसंद आता है. जिसमें डांस, म्यूजिक, फोटो और सोशल मीडिया पर अपडेट करने वाला सैलीब्रेशन हो.

सजावट हो खास:

रक्षाबंधन की थीम पार्टी की सजावट खास हो. इसमें सबसे पहले जिस जगह पर सेलीब्रेशन हो रहा हो वहां की सजावट थीम के हिसाब से हो. रक्षाबंधन भाईबहन का त्यौहार होता है. इसकी सजावट उसी तरह से हो. यह बरसात के सीजन में होता है तो जरूरी है कि सजावट में बरसात की झलक भी मिले. आजकल रंगबिरंग छाते बाजार में मिलते है. सजावट वाले छाते अलग से आते है. हरा और पीला रंग का प्रयोग हो. चुनरी प्रिंट के कपडे का प्रयोग भी डेकोरेषन में कर सकते है. बैलून का प्रयोग भी कर सकते है.

रक्षाबंधन के दिन सरप्राइज पार्टी:

इस पार्टी का आयोजन रक्षाबंधन के दिन हो. घर के एक कमरे को सजा ले. इस बात की जानकारी भाई को न हो. चाहे तो भाई के दोस्तों को भी बुला ले. जिनको राखी बांधी जा सकती हो. अपनी दोस्त और उसके भाई को भी बुला ले. जिससे एक साथ एक ही जगह पर कई सारी बहने अपने भाईयों को राखी बांध सके. जिन भाई बहनों के राखी बांधने वाला कोई न हो उनको भी पार्टी में बुला ले. जिससे वह भी अकेलापन अनुभव न करे.

ट्रेडिशनल ड्रेस कोड:

रक्षाबंधन की इस पार्टी में ड्रेस कोड ट्रेडिशनल रखा जाये. जो देखने में अच्छा लगेगा. इसके रंग भी खिले हुये हो.

सिगल भाई बहन का रखे ध्यान:

आज कल कई ऐसे लडका लडकी होते है जिनके कोई भाईबहन नहीं होता है. जब पार्टी में वह भी शामिल होगे तो उनको सरप्राइज के साथ राखी बंधवाने का अवसर भी मिलेगा.

होटलों में भी कम लोगो की पार्टी:

अब होटल और रेस्ंत्रा में भी कम लोगों के लिये पार्टियांे का आयोजन होने लगा है. इसके लिये तय जगह पर एक पार्टी का आयोजन किया जा सकता है. घर के मुकाबले यहां अधिक इंज्वाय हो सकता है.

लाइव म्यूजिक और गेम्स:

फेस्टिवल का सैलीब्रेशन करने के लिये लाइव म्यूजिक और गेम्स को रखा जा सकता है. युवाओं को यह खूब पसंद आता है.

केक का प्रयोग:

वैसे तो रक्षाबंधन ट्रेडिशनल  फेस्टिवल है. आजकल हर पार्टी में केक का प्रयोग नया रंग भरता है. ऐसे में रक्षाबंधन की सरप्राइज पार्टी में भी केक का प्रयोग किया जा सकता है. डिजाइनर केक बनवाया जाये जो रक्षाबंधन की थीम पर बना हो.

फोटो शूट और वीडियो:     

सोशल मीडिया के इस दौर में किसी भी पार्टी की तैयारी तब तक पूरी नहीं होती जबतक फोटो शूट और वीडियो न बने. यह फोटो और वीडियों की पार्टी की जान होते है. जब यह सोशल मीडिया पर लाइव और पोस्ट होते है हजारो लाइक और कमेंटस मिलते है.

Raksha Bandhan: इस बार मार्केट से खरीदने के बजाए घर पर ही आसान तरीके से सजाएं राखी की थाली

अगर रक्षाबंधन में राखी की थाली सजी-संवरी रहती है, तो भाई का मन खुश हो जाता है और उसे अपने स्‍पेशल होने का एहसास भी होता है. आजकल बाजार में रेडी मेड राखी की थाली भी आने लगी है, लेकिन अगर आप अपने प्‍यारे भाई के लिये खुद ही थाली सजाएं तो सोचिए कैसा रहेगा. तो आइये आज हम आपको बताते हैं कि राखी की थाली को किस तरह से सजाया जाए कि भाई का मन खुश हो जाए.

स्टेप-1: सबसे पहने एक थाली लें, वह थाली प्‍लास्‍टिक की भी हो सकती है और या फिर स्‍टील की भी. अब इस थाली को क्राफ्ट पेपर से ढंक दें, यह पेपर पीला या फिर लाल रंग का हो तो थाली की खूबसूरती निखर कर आएगी.

स्टेप-2: पेपर पर कांच चिपकाकर उसे और आकर्षक बना सकती हैं. या फिर कुंदन, स्टोन्स, जरदोजी, सितारे आदि लगाकर भी अलग तरह का वर्क किया जा सकता है.

स्टेप-3: अब पेपर के बीचो बीच में एक बड़ा सा डिजाइन बनाएं. इसके बाद उसी डिजाइन के बीचो बीच एक मिट्टी का डेकोरेटेड दिया रखें, जिसमें तेल और बाती होना चाहिये.

स्टेप-4: अब थाली में कुछ छोटी-छोटी कटोरियां रख लें. आप चाहें तो इन कटोरियों को अपने मन-पसंद रंगो से रंग सकती हैं. फिर उन्‍हीं कटोरियों में कुमकुम, हल्‍दी, चावल, दही आदि रखें.

स्टेप-5: थाली के बाएं ओर, राखी रखें. थाली के दाहियने ओर अपने भाई की फेवरिट मिठाई रखें. अपनी फेवरिट मिठाई देख आपका भाई और भी खुश हो जाएगा.

Raksha Bandhan: तोबा मेरी तोबा- अंजली के भाई के साथ क्या हुआ?

मेरे सिगरेट छोड़ देने से सभी हैरान थे. जिस पर डांटफटकार और समझानेबुझाने का भी कोई असर नहीं हुआ वह अचानक कैसे सुधर गया? जब मेरे दोस्त इस की वजह पूछते तो मैं बड़ी भोली सूरत बना कर कहता, ‘‘सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है, इसलिए छोड़ दी. तुम लोग भी मेरी बात मानो और बाज आओ इस गंदी आदत से.’’

मुझे पता है, मेरे फ्रैंड्स  मुझ पर हंसते होंगे और यही कहते होंगे, ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. बड़ा आया हमें उपदेश देने वाला.’ मेरे मम्मीडैडी मेरे इस फैसले से बहुत खुश थे लेकिन आपस में वे भी यही कहते होंगे कि इस गधे को यह अक्ल पहले क्यों नहीं आई? अब मैं उन से क्या कहूं? यह अक्ल मुझे जिंदगी भर न आती अगर उस रोज मेरे साथ वह हादसा न हुआ होता.

कालेज में कदम रखते ही मुझे सिगरेट की लत पड़ गई थी. जब मौका मिलता, हम यारदोस्त पांडेजी की दुकान पर खड़े हो कर खूब सिगरेट फूंकते और फिर हमारे शहर में सिगरेट पीना मर्दानगी की निशानी समझी जाती थी. कालेज के जो लड़के सिगरेट पी कर खांसने लगते, हम उन का मजाक उड़ाते. हां, लेकिन घर लौटने से पहले मैं पिपरमिंट की गोलियां चूस लेता ताकि किसी को तंबाकू की बू न आए. वजह यह नहीं थी कि मैं घर में किसी से डरता था. वजह सिर्फ यही थी कि घर के लोग किसी भी बात पर लेक्चर देना शुरू कर देते जिस से मुझे बड़ी चिढ़ होती थी.

मेरी बड़ी बहन अंजली की नाक बड़ी तेज थी. हमारे किचन में अगर कुछ जल रहा हो तो गली में दाखिल होते ही अंजली दीदी को उस की बू आ जाती. एक दिन मैं घर पहुंचा तो दरवाजा उसी ने खोला. वे बिल्ली की तरह नाक सिकोड़ कर बोलीं, ‘‘सिगरेट की बदबू कहां से आ रही है? तुम ने पी है क्या?’’

मैं पहले तो सहम गया लेकिन फिर गुस्से से बोला, ‘‘आप क्यों हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती हैं? हमारा चौकीदार दिन भर बीड़ी फूंकता है. जब हवा चलती है तो उस का धुआं यहां तक आ जाता है. यकीन न आए तो बाहर जा कर देख लीजिए. वह इस वक्त जरूर बीड़ी पी रहा होगा.’’

मुझे गलत साबित करने के लिए अंजली दीदी फौरन बरामदे में चली गईं. संयोग से चौकीदार उस समय वाकई बीड़ी पी रहा था. मुझे शक भरी नजरों से देखती हुई वे उस समय तो वहां से चली गईं लेकिन उस दिन के बाद मैं ने नोट किया कि वे मुझ पर नजर रखने लगी थीं. मैं जब बाहर से लौट कर अपने कमरे में आता तब यह बात फौरन समझ में आ जाती कि मेरे कमरे की तलाशी ली गई है. अलमारी और मेज की दराजें सब टटोले गए हैं. मुझे यकीन हो गया कि अंजली दीदी जरूर कोई सुराग ढूंढ़ रही होंगी ताकि मुझ पर हमला किया जा सके. पर मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. अपने कमरे में सिगरेट और माचिस की डब्बी मैं भूल से भी नहीं रखता था.

एक दिन मुझ से गलती हो गई. मैं महल्ले के लड़कों के साथ नुक्कड़ पर खड़े हो कर गपशप कर रहा था. एक दोस्त ने सिगरेट सुलगाई तो मैं ने उस के हाथ से ले कर एक कश लगा लिया. उसी समय अंजली दीदी सब्जी ले कर घर लौट रही थीं. उन की नजर मुझ पर पड़ी और मैं रंगेहाथों पकड़ा गया. वे तीर की तरह घर की तरफ भागीं और मैं ने घबराहट में सिगरेट का एक और ऐसा दमदार कश लगाया कि मुझे चक्कर आने लगे. दोस्तों के सामने मैं ने शेखी बघारी कि मैं किसी से नहीं डरता. सिगरेट पीता हूं तो क्या हुआ? कोई चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला. मेरे दोस्तों ने मेरी पीठ ठोंक कर मुझे शाबाशी दी. मेरी हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने खुश हो कर सब को एक इंपोर्टेड सिगरेट पिला दी. फिर मैं घर जाने के लिए मुड़ा, लेकिन कुछ सोच कर रुक गया. घर पहुंचते ही कैसा हंगामा होगा, इस का अंदाजा था मुझे. यही सब सोच कर दिनभर घर लौटने की मेरी हिम्मत न हुई.

पूरा दिन अपनी साइकिल पर सवार शहर के चक्कर काटता रहा. सोचा कि चलो लगेहाथ फिल्म देख डालें. लेकिन जब जेब में हाथ डाला तो पता चला कि टिकट के पैसे नहीं हैं. दोस्तों को इंपोर्टेड सिगरेट जो पिला दी थी.

शाम को अंधेरा होने के बाद मैं डरतेडरते घर में दाखिल हुआ. मम्मी और डैडी बड़े कमरे में बैठे थे. उन के गंभीर चेहरों से साफ जाहिर था कि उन को अंजली दीदी से पता चल गया था कि मैं सिगरेट पीता हूं. वे मेरी राह देख रहे थे. मम्मी के पीछे अंजली दीदी खड़ी थीं और उन के होंठों पर चिपकी हुई जहरीली मुसकान, नुकीले कांटे की तरह चुभ रही थी मुझे. मैं समझ रहा था कि डैडी अभी उठ कर मेरे पास आएंगे और दोचार भारीभरकम थप्पड़ रसीद करेंगे मुझे. लेकिन उन्होंने शांत आवाज में मुझे अपने पास बुला कर बिठाया. हमारे परिवार में कोई किसी किस्म का भी नशा नहीं करता था, न सिगरेट न शराब और न ही तंबाकू वाला पान. फिर मुझे यह लत कैसे लगी, इस बात का बड़ा अफसोस था उन्हें.

काफी देर तक वे मुझे सिगरेट के नुकसान समझाते रहे. यह कह कर डराया भी कि एक सिगरेट पीने से इंसान की उम्र 15 दिन कम हो जाती है. मैं बड़ी विनम्रता से सिर झुकाए उन की बातें सुनता रहा. मन ही मन यह भी सोचता रहा कि अंजली दीदी से बदला कैसे लिया जाए? जब अदालत का समय समाप्त हुआ तब मैं ने डैडी को वचन दिया कि आज के बाद मैं सिगरेट छुऊंगा तक नहीं. डैडी ने खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाई और 500 रुपए का नोट मेरे हाथ में थमा कर कहा, ‘इस के फल खरीद कर ले आओ और रोज खाया करो. अपनी सेहत का खयाल रखो.’

अंजली दीदी ने मिर्च लगाई, ‘डैडी, आप देख लेना, 500 रुपए यह धुएं में उड़ा देगा.’ अब मैं ने अपनेआप को वचन दिया, ‘अंजली दीदी को सबक सिखा के रहूंगा.’ लेकिन वे इतनी चालाक थीं कि हर बार बच कर निकल जातीं.

मुश्किल से 3 दिन मैं ने अपने वादे पर अमल किया. मेरे दोस्त सिगरेट फूंकते तो उस की खुशबू सूंघ कर ही मैं इत्मिनान कर लेता. लेकिन फिर मुझ से सब्र न हुआ और चौथे दिन पूरी डब्बी खरीद कर फूंक डाली. सिगरेट पीने वाले जानते हैं कि जब तलब लगती हैं तब इंसान बेचैनी से कैसे फड़फड़ाता है.

कालेज की छुट्टियां शुरू हो गईं. गरमियों के दिन थे और लू चलती थी, इसलिए बाहर जाने का मन नहीं करता था. एक दिन दोपहर में जब सब सो रहे थे, मौका देख कर मैं चुपचाप बाथरूम में गया, अंदर से कुंडी लगाई और सिगरेट सुलगा ली. बड़े आराम से कमोड पर बैठ कर सिगरेट पीता रहा और सोचा, ‘वाह, क्या जगह ढूंढ़ निकाली है मैं ने.’ लेकिन जब बाथरूम से निकलने के लिए दरवाजा खोलने लगा तो दिल धक से रह गया. किसी ने बाहर से कुंडी लगा दी थी. हमारे बाथरूम का एक दरवाजा आंगन की तरफ खुलता था, मैं ने वह खोलना चाहा लेकिन उस की भी बाहर से कुंडी लगी हुई थी. दरवाजा खटखटा कर मैं ने जोर से पुकारा तो बाहर से अंजली दीदी की आवाज आई, ‘बदतमीज, तुम कभी नहीं सुधरोगे. तुम्हारी यह हिम्मत कि घर में भी सिगरेट पीना शुरू कर दिया. अब डैडी ही आ कर खोलेंगे यह दरवाजा.’

मैं ने बहुत मिन्नत की, माफी मांगी, कसमें भी खाईं लेकिन दीदी का दिल नहीं पसीजा. मदद के लिए मैं ने मम्मी को पुकारा लेकिन उन्हें भी मुझ पर तरस नहीं आया. चीख कर बोलीं, ‘तेरी यही सजा है.’

शाम को डैडी ने घर लौट कर जब दरवाजा खोला तब तक मैं बाथरूम की गरमी से निढाल हो चुका था. तिस पर डैडी ने आव देखा न ताव, गिन कर पूरे 4 थप्पड़ मेरे मुंह पर जड़ दिए. 1 घंटे तक मम्मी की डांट सुननी पड़ी सो अलग. सिर्फ अंजली दीदी ही नहीं, पूरा घर मेरा दुश्मन बन चुका था. उन्होंने सोचा कि इतने थप्पड़ खाने के बाद अब मैं सुधर जाऊंगा, लेकिन मैं भी बहुत जिद्दी हूं. तपती हुई धूप में घर से बाहर जा कर सिगरेटें फूंकता रहता.

एक दिन डैडी ने मुझे रास्ते के किनारे सिगरेट पीते हुए देख लिया. उसी वक्त मुझे गाड़ी में बिठा कर अपने साथ ले गए और घर से थोड़े फासले पर गाड़ी रोक कर बोले, ‘लोग सारी जिंदगी सिगरेट पीने के बाद भी यह आदत छोड़ देते हैं. फिर तुम क्यों नहीं छोड़ सकते यह गंदी आदत? तुम्हें जो चाहिए वह तुम्हें मिलेगा, बस तुम सिगरेट पीना छोड़ दो.’

उसी समय सामने वाली सड़क पर चमचमाती हुई मोटरबाइक आ कर रुकी. ललचाई नजरों से बाइक को देखते हुए मैं ने डैडी से कहा, ‘मुझे मोटरबाइक दिला दीजिए, मैं सिगरेट पीना छोड़ दूंगा.’ मुझे पूरा यकीन था कि डैडी इनकार कर देंगे. लेकिन मैं हैरत से चक्कर खा गया जब डैडी ने बड़े ही शांत लहजे में कहा, ‘अगर तुम इसी शर्त पर सिगरेट छोड़ोगे तो मुझे तुम्हारी यह शर्त भी मंजूर है.’

जिस दिन मोटरबाइक मेरे हाथ आई उस दिन अपने 2 यारों को साथ बिठा कर पूरे शहर में उड़ता फिरा और फिर जश्न मनाने हम पांडेजी की दुकान पर पहुंच गए. कोल्ड ड्रिंक के बाद सिगरेट और पान के बाद फिर सिगरेट. बुरा भी लग रहा था कि डैडी को धोखा दे रहा हूं लेकिन फिर अपने मन को समझाया कि बस यह आखिरी सिगरेट है, इस के बाद नहीं पीऊंगा. लेकिन फिर हर सिगरेट आखिरी सिगरेट बनती गई और यह सिलसिला चलता रहा.

मम्मी और डैडी अंजली दीदी की शादी को ले कर काफी चिंतित रहा करते थे. मैं भी दुआएं मांगता था कि यह बला जल्दी टले ताकि मुझे भी आजादी मिले. चंद महीनों की तलाश के बाद एक मुनासिब रिश्ता आया और अंजली दीदी का ब्याह तय हो गया. हमारे घर में यह पहली शादी थी इसलिए खूब धूम मची हुई थी. ब्याह के लिए जेवरात और कपड़ों की खरीदारी शुरू हो गई. उस गहमागहमी और खुशी के माहौल में मेरा जुर्म सब भूल गए. अंजली दीदी भी मुझ से हंसहंस कर बात करने लगीं. छोटेबड़े हर काम के लिए मेरी खुशामद करतीं, कभी चंदू भाई टेलर तो कभी मगन भाई सुनार के पास जाना होता और मैं दौड़दौड़ कर वे सारे काम कर देता. अब वे अपनेआप में इतनी मगन रहतीं कि मैं अपने कमरे में बैठ कर सिगरेट फूंकता तब भी उन्हें पता न चलता.

घर के आंगन में बरातियों के लिए शामियाना लगाया गया. रौनक बढ़ाने के लिए रंगबिरंगे फूल और नीलेपीले बल्ब भी लगाए गए. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आने लगा, रिश्तेदारों और मेहमानों की चहलपहल बढ़ने लगी. कोई सहारनपुर से तो कोई भोपाल से. अंजली दीदी की सहेलियों ने तो घर पर धावा ही बोल दिया था. स्कूल से ले कर कालेज तक की सारी सहेलियां मौजूद थीं. दिन भर उन के हंसने और खिलखिलाने की आवाजें घर में गूंजती रहतीं. मैं शादी की भागदौड़ में मसरूफ रहता, लेकिन इस बीच जब कोई सुंदर चेहरा नजर आता तब थोड़ी सी थकान दूर हो जाती.

जिस कमरे में अंजली दीदी हलदी की रस्म के बाद बैठी थी, वहां से नाचगाने और ढोलक की आवाजें आतीं और मैं छिप कर झरोखे से उन्हें निहारता रहता. लड़कियां झूमझूम कर नाचतीं और मधुर गीत गातीं. उन सब में एक लड़की बहुत सुंदर थी. पता चला कि उस का नाम बांसुरी है. वह भोपाल से आई है और डैडी के एक दोस्त की बेटी है. उस का कद लंबा था, रंग सांवला, लंबीलंबी पलकें, बहुत ही आकर्षक चेहरा, छुईमुई जैसी इतनी प्यारी कि छू लेने को दिल चाहे.

रोज की तरह उस दिन भी जोरजोर से नए फिल्मी गाने बज रहे थे और आंगन में बच्चे नाच रहे थे. बच्चों ने जिद की तो मैं भी उन के साथ नाच में शामिल हो गया. नाचतेनाचते मैं खो गया और मन की आंखों से सोचने लगा कि बांसुरी इन गानों पर नाचती हुई कैसी दिखेगी. अचानक किसी की आवाज आई, ‘ओ भाईसाब, यह क्या हो रहा है?’

मैं ने आंखें खोल कर देखा तो चौंक पड़ा. बांसुरी मेरे सामने खड़ी थी. मैं ने सोचा कि मैं सपना देख रहा हूं और मैं ने फिर से आंखें बंद कर लीं. इस बार उस ने मेरे कंधे पर हलकी सी चपत लगाई और बोली, ‘नींद में हो क्या? मैं तुम से कह रही हूं.’

मैं ने बहुत नरमी से पूछा, ‘कुछ काम है मुझ से?’ वह तुनक कर बोली, ‘ये कैसे गाने लगा रखे हैं जिन की एक लाइन भी समझ में नहीं आती. यों लगता है जैसे दीवाली के पटाखों से डर कर कोई कुत्ता भौंक रहा है. मीठेमीठे पुराने गाने बजाओ. और ये जो नए गाने हैं न, ये तुम अपनी शादी में बजाना.’

वह पलट कर जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘एक शर्त पर, जिस दिन मेरा ब्याह तुम्हारे साथ होगा उस दिन तुम्हारी पसंद के गाने बजेंगे, बल्कि तुम कहो तो मैं तुम्हें पुराने गाने गा कर भी सुनाऊंगा.’

उस ने घूर कर देखा और मेरा हाथ झटक कर वह भाग गई, लेकिन फिर दरवाजे के पास जा कर मुड़ी और मुसकरा कर मुझे देखने लगी. मेरा दिल इतने जोर से धड़का जैसे अभी उछल कर बाहर आ जाएगा. यह दिल कम्बख्त है ही ऐसी चीज. जरा सी खुशी मिली नहीं कि धड़कने लगता है, वह भी जोरों से.

जब पुराने गीत बजने लगे तब मैं उसे झरोखों से छिपछिप कर देखता रहा. वह बारबार कनखियों से मुझे देखती और लहरालहरा कर नाचती रही. उस ने महफिल में ऐसा रंग जमाया कि मम्मी ने कहा, ‘तेरा ब्याह जल्द हो जाए और ऐसा पति मिले जो तुझे हमेशा खुश रखे.’ वह मेरी ओर देख कर धीरे से मुसकराई और उस रात मैं उसी के सपने देखता रहा. सपने में वह मेरी दुलहन थी और मैं उस का दूल्हा.

अगले दिन बड़ी चहलपहल थी. अंजली दीदी का ब्याह होना था. घर के पिछवाड़े हलवाई खाना बना रहे थे. डैडी ने मेरी ड्यूटी वहां लगा दी थी. बांसुरी अचानक वहां आ धमकी और मुझे देख कर बोली, ‘अंजली दीदी का संदेशा लाई हूं तुम्हारे लिए. उन्होंने कहा है, नमकमिर्च का खयाल रखना, अगर जरा भी ऊंचनीच हो गई न, तो तुम्हारी खैर नहीं.’

बांसुरी की आवाज में ऐसी खनक थी कि वह गाली भी दे तो मीठी लगे. मैं ने मुसकरा कर पूछा, ‘तुम्हें खाना पकाना आता है या नहीं?’

उस की भवें तन गईं, ‘क्यों पूछ रहे हो?’

मैं शरारत से बोला, ‘बड़ी खास वजह है इसीलिए पूछ रहा हूं. वैसे तुम्हें यह भी बता दूं कि अगर तुम्हें खाना पकाना नहीं आता हो तब भी चिंता की कोई बात नहीं. जब हमारा ब्याह हो जाएगा तब इन बेचारे हलवाइयों को अपने घर में नौकरी दे देंगे तो इन की रोजीरोटी का बंदोबस्त भी हो जाएगा.’

वह जोर से हंसी, ‘तुम से ब्याह करे मेरी जूती.’

बैंड बाजे के साथ बरात आई तो हर कोई दूल्हे को देखने बरामदे में आ गया. धक्कामुक्की और आपाधापी में पता ही नहीं चला कि बांसुरी चुपके से आ कर कब मेरे पास खड़ी हो गई. नरमनरम गुदाज जिस्म मेरी बांह से टकराया तो मैं ने चौंक कर उसे देखा. लेकिन वह ऐसी अनजान बन गई जैसे उस ने मुझे देखा ही न हो. मौके का फायदा उठा कर मैं ने उस का हाथ मजबूती से अपने हाथ में पकड़ लिया. पहले तो उस ने अपने दोनों हाथ अपने दुपट्टे में छिपा लिए फिर मेरे बाजू पर ऐसी खतरनाक चुटकी काटी कि मेरे मुंह से आह निकल गई.

समय अपनी गति से चलता रहा. शामियाने में पंडितजी के मंत्र गूंजने लगे. ब्याह के फेरों का समय हो चला था. अपनी सहेलियों से घिरी अंजली दीदी धीरेधीरे शामियाने की ओर बढ़ने लगीं. जरीदार साड़ी और गहनों में लिपटी हुई कितनी सुंदर लग रही थीं मेरी दीदी. मैं उन्हें एकटक देखता रहा और यह सोच कर कि अब वे इस घर से चली जाएंगी, मेरी आंखें डबडबा गईं. उन्होंने मुझे मम्मीडैडी से बहुत डांट खिलवाई थी, पिटवाया भी था मुझे, ताने भी दिए थे, लेकिन हैं तो आखिर मेरी बहन. अचानक डैडी की आवाज मेरे कानों में गूंजी, ‘यह क्या हुलिया बना रखा है तुम ने? अभी तक तैयार नहीं हुए? जाओ, कपड़े बदल कर आओ.’ मैं सरपट अपने कमरे की तरफ भागा.

कमरे में दाखिल होते ही मैं ठिठक गया. बांसुरी अलमारी के आईने के सामने खड़ी हो कर जेवर पहन रही थी. मुझे देख कर वह जरा भी नहीं चौंकी बल्कि डांट कर बोली, ‘यह क्या मुंह उठाए चले आ रहे हो? इतनी भी तमीज नहीं कि दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आओ.’ उसे वहां देख कर मेरे होशोहवास तो जैसे गुम हो गए थे. वह बला की हसीन लग रही थी, जैसे आसमान से उतर कर कोई अप्सरा धरती पर आ गई हो. मैं बेशर्मी से उसे घूरता रहा और मैं ने पहली बार देखा कि वह भी कुछ सकपका सी गई है. मैं धीरेधीरे उस के नजदीक गया और घुटी हुई आवाज में बोला, ‘तुम कितनी सुंदर हो, मैं ने आज तक इतनी सुंदरता कहीं नहीं देखी.’

अपनी तारीफ सुन कर उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गई. वह अपनी जगह से नहीं हिली, बस मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे देखती रही. बेखुदी के आलम में मैं उस की ओर खिंचता चला गया, इतने पास कि उस की गर्म सांसें अपने गालों पर महसूस करने लगा. उस के होंठ धीरे से खुले और उस ने अपनी आंखें मूंद लीं. मेरे शरीर में कंपकंपी सी होने लगी. ऐसी कैफियत मैं ने पहले कभी महसूस नहीं की थी. मैं ने अपने दोनों हाथ उस के कंधों पर रखे और मैं उस के होंठों को चूमने ही वाला  था कि वह अचानक पीछे हटी, ‘तुम सिगरेट पीते हो?’

पहले तो मेरी समझ में नहीं आया कि वह बोल क्या रही है. मैं हक्काबक्का सा उसे देखता रहा और वह गुस्से से बोली, ‘दूर हटो मुझ से. नफरत है मुझे सिगरेट पीने वालों से. कितनी गंदी बदबू आ रही है तुम्हारे मुंह से.’

मैं इस अचानक हमले से संभल भी नहीं पाया था कि वह कमरे से बाहर चली गई और मैं सिर झुकाए शर्मिंदा सा वहीं खड़ा रह गया.

अगले दिन वह भोपाल वापस चली गई.

वह दिन और आज का दिन, मैं ने सिगरेट कभी नहीं पी. आज भी जब कोई मेरे सामने सिगरेट सुलगाता है तो मेरा मन करता है कि उस के हाथ से सिगरेट छीन कर दो कश लगा लूं, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं, क्योंकि उस हादसे के बाद जब मैं बांसुरी से मिलने भोपाल पहुंचा तो बांसुरी इसी शर्त पर मुझ से शादी करने के लिए राजी हुई कि मैं सिगरेट कभी नहीं पीऊंगा. अब आप ही बताइए, जिस लड़की को पाने की खातिर मैं ने अपना दिल-ओ-जान कुरबान कर दिया था, उस की खातिर क्या मैं सिगरेट की कुरबानी नहीं दे सकता?

Raksha Bandhan: भाई के लिए कुछ बनाना चाहती हैं स्पैशल, तो ट्राई करें ये टेस्टी रसकदम

भाई बहन का सबसे बड़ा त्योहार, रक्षाबंधन. ऐसा दिन जब भाई-बहन अपने सारे तकरार भूल प्यार के रंग में रंग जाते हैं. यही वह दिन है जिसका एक बहन को बेसब्री से इंतजार होता है. यूं तो हर रक्षाबंधन आप अपने भाई का मुंह मीठा कराती होंगी, अपने भाई के लिए बाजार से मिठाई लाती होंगी. इस रक्षाबंधन आप कुछ अलग करें.

अपने भाई के लिए अपने हाथों से रसकदम बनाइए. बेशक आपकी बनाई हुई मिठाई खा कर आपका भाई आपके तारीफों का पुल बांध देगा और आप दोनों के बीच का रिश्ता और गहरा हो जाएगा. तो इस रक्षाबंधन जरूर बनाएं रसकदम. इसे खोया कदम या क्षीरकदम भी कहते हैं.

हमें चाहिए

मावा – एक कप (250 ग्राम)

चीनी पाउडर – आघा कप से थोड़ी अधिक (100 ग्राम)

पनीर – एक कप क्रम्बल किया हुआ (200 ग्राम)

चीनी – तीन चौथाई कप (150 ग्राम)

कार्न फ्लोर – दो छोटे चम्मच

नीबू – एक नीबू का रस

पीला कलर – एक पिंच

केसर – 10-12 धागे

फूल क्रीम दूध – पांच सौ ग्राम

बनाने का तरीका

रसकदम बनाने के लिए सबसे पहले छेना बनाकर तैयार कर लीजिए. दूध गरम होने के लिए रख दीजिए. जब दूध में उबाल आ जाए तो गैस बंद कर दीजिए और दूध को थोड़ा सा ठंडा होने दीजिए. दूध के 80 प्रतिशत गरम रह जाने पर, नींबू के रस में 2 चम्मच पानी मिला कर, थोड़ा-थोड़ा डालते हुये मिलाइये. दूध पूरी तरह से फट जाए तो दूध में से पानी अलग तथा छेना अलग हो जाता है. तब आप नींबू का रस डालना बंद कर दीजिए.

छेना को एक साफ कपड़े, सूती कपड़े में डाल कर छान लीजिए, हाथ से दबा कर सारा पानी निकाल दीजिये. तथा छेना के ऊपर ठंडा पानी डाल दीजिए. ऐसा करने से इसमें से नींबू का सारा स्वाद हट जाएगा. कपड़े को चारों तरफ से हाथों से उठाकर दबाते हुए छेनाका सारा पानी निकाल दीजिए. रसगुल्ले बनाने के लिए छेना तैयार हो चुका है.

छेना को अलग थाली में निकाल लीजिए. और हाथों से मसल-मसलकर चिकना कीजिए. कार्न फ्लोर और पीला रंग डालिये और मिलाते हुए, छेना को मलिये और चिकना कर लीजिए. रसगुल्ले बनाने के लिए छेना तैयार है. छेना से छोटे-छोटे गोले बनाकर कर थाली में रखते जाइए. सारे गोले बना लीजिये.

कुकर में चीनी और 2 कप पानी डालकर उबलने के लिए रख दीजिए, चीनी को पानी में घुलने तक पका लीजिये, चाशनी में केसर के धागे डाल दीजिये और चाशनी में उबाल आने दीजिये.

उबलती चाशनी में छेना से बने हुए गोले डाल दीजिए. कुकर को बन्द कर दीजिए और 1 सीटी आने तक पकने दीजिए. सीटी आने के बाद गैस को धीमा कर दीजिए और रसगुल्लों को धीमी मीडियम आंच पर 8-10 मिनिट पकने दीजिए. इसके बाद गैस बंद कर दीजिए और कुकर का प्रैशर समाप्त होने पर रसगुल्लों को निकालें.

रसगुल्लों को 2-3 घंटे तक चाशनी में ही रहने दीजिए इसके बाद इन्हें छलनी की मदद से छान लीजिए ताकि सारी चाशनी निकल जाए. पनीर को कद्दूकस कर लीजिए और कढा़ई में डालकर लगातार चलाते हुए भून लीजिए. पनीर ड्राई होकर हल्का ब्राउन हो जाने पर गैस बंद कर दीजिए और भुने पनीर को प्लेट में निकाल लीजिये.

कद्दूकस किए हुए मावा में पाउडर चीनी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. अब मावा से लड्डू के आकार के लगभग 11 छोटे-छोटे गोले तोड़ लीजिए. एक गोले को उठा कर इसको चपटा करके बढा़ थोड़ा बड़ा कर लीजिये. फिर इसमें एक रसगुल्ला रखकर चारों ओर खोया से बंद करके गोल लड्डू का आकार दे दीजिए.

इस गोले को भूने पनीर पर लपेट कर थाली में रख दीजिए सारे रसकदम इसी तरह बनाकर तैयार कर लीजिए. रसकदम को 1 घंटे के लिए फ्रिज में रख कर उसके बाद सर्व कीजिए.

Raksha Bandhan: मत बरसो इंदर राजाजी- क्या भाइयों ने समझा ऋतु का प्यार

भाई की चिट्ठी हाथ में लिए ऋतु उधेड़बुन में खड़ी थी. बड़ी  प्यारी सी चिट्ठी थी और आग्रह भी इतना मधुर, ‘इस बार रक्षाबंधन इकट्ठे हो कर मनाएंगे, तुम अवश्य पहुंच जाना…’

उस की शादी के 20 वर्षों  आज तक उस के 3 भाइयों में से किसी ने भी कभी उस से ऐसा आग्रह नहीं किया था और वह तरसतरस कर रह गई थी.  उस की ससुराल में लड़कियों के यहां आनाजाना, तीजत्योहारों का लेनादेना अभी तक कायम था. वह भी अपनी इकलौती ननद को बुलाया करती थी. उस की ननद तो थी ही इतनी प्यारी और उस की सास कितनी स्नेहशील.  जब भी ऋतु ने मायके में अपनी ससुराल की तारीफ की तो उस की मंझली भाभी उषा, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहती थीं, कहने लगीं, ‘‘जीजी, ससुराल में आप की इसलिए निभ गई क्योंकि आप की सासननद अच्छी हैं, हमारी तो सासननदें बहुत ही तेज हैं.’’

उषा भाभी को यह भी ज्ञान नहीं था कि वह किस से क्या कह रही थीं और छोटी बहू अलका मुंह में साड़ी दबा कर हंस रही थी.

ऋतु अंगरेजी साहित्य से एमए कर के पीएचडी कर रही थी कि उस का विवाह अशोक से हो गया था. अशोक एक निजी कंपनी में इंजीनियर था. उसे अच्छा वेतन मिलता था. पिता भी मुख्य इंजीनियर पद से जल्दी ही सेवानिवृत्त हुए थे. ऋतु देखने में सुंदर, सुसंस्कृत व परिष्कृत विचारों की लड़की थी. उस से चार बातें करते ही उस के भावी ससुर ने ऋतु के पिता से उसे मांग लिया था, ‘‘मेजर साहब, हमें आप की लड़की बहुत पसंद है…’’

इतना संपन्न परिवार पा कर ऋतु के मातापिता तो फूले नहीं समाए और फिर ऋतु बहू बन कर अशोक के घर आ गई.

ऋतु अपनी ससुराल में सुखी थी. वह जब भी मायके जाती तो एक न एक कटु अनुभव अपनी झोली में भर ले आती. उस के पिता ने सेवानिवृत्त होतेहोते एक घर बना लिया था. न जाने क्यों उस की मां की इच्छा एक बड़ा सा घर बनाने की रही और पिता ने अपनी सारी जमा पूंजी उस में लगा दी. रहीसही रकम सब से छोटी बहन उपमा की शादी में खर्च हो गई.

पिताजी कहा करते, ‘‘मेरे 3-3 बेटे हैं, दहेज तो मैं ने लिया नहीं, बुढ़ापा इन्हीं के सहारे कट जाएगा. मरूंगा तो लाखों की जायदाद इन्हें सौंपूंगा,’’ और गर्वपूर्वक अपनी दोमंजिली इमारत निहारा करते. शुरूशुरू में पिताजी की पैंशन और तीनों लड़कों का कुछ न कुछ सहारा रहा, पर धीरेधीरे उन के उत्तरदायित्वों का दायरा बढ़ गया और उन के हाथ सिमट गए.

बड़े भाई अच्छी जगह पर थे, पर उन की बीवी बेहद खर्चीली थी. जब देखो तब घर में खर्चे को ले कर कलह…भाई अम्मा से कहते, ‘‘तुम्हीं पसंद कर के लाई थीं…गोरे रंग पर लट्टू हो कर…’’

भाभी को शिकायत होती, ‘‘मैं गंवारों की तरह रहना पसंद नहीं करती.’’ इशारा मेरठ जैसे छोटे शहरवासियों की ओर था. भाभी का मायका दिल्ली में था. भाई की मोटी तनख्वाह भाभी की फरमाइशों की सूची के सामने कम पड़ जाती. सोने पर सुहागा बेटा पढ़ाई में जीरो, पर मोटरसाइकिल उसे 9वीं कक्षा में ही चाहिए थी और अब 20वें साल में पहुंच कर तो मारुति के बिना शान कम.

मंझला भाई फौज में कर्नल था पर भाभी मगज से कुछ फिरी हुई थी, वह अपनी ससुराल में कभी 2 दिन से ज्यादा ठहरी ही नहीं…या तो मां घर के बाहर अनशन पर या बहू टैक्सी ले कर मायके रवाना हो जाती.

शुरूशुरू में बेटे का मन करता कि उस की पत्नी मांबाप की सेवा करे, सो कहसुन कर छुट्टियों में घर ले आता, पर आते ही घर में जो महाभारत छिड़ती तो मां कहतीं, ‘‘मेरी सेवा का खयाल छोड़…तू अपनी बीवी को ले कर जा.’’

हताश भैया बिना खुला बोरियाबिस्तर ढो कर चल देते. 5-7 वर्ष प्रयत्न किया फिर लगभग लाना ही छोड़ दिया. भाभी आतीं तो बस इतनी देर को मानो पड़ोसियों से मिलने आई हों.

कुसूर मां का भी था, उन का परहेज उन्हें डरा देता, ‘‘और तो सब मंजूर है पर यह गंदे कपड़ों में ठाकुरद्वारे में घुस कर मेरा धरम खराब कर देती है. तब रहा नहीं जाता,’’ ऋतु के सामने मां कहतीं.

इतना सुनते ही उषा भाभी बिफर पड़तीं और कुछ अंगरेजी में तो कुछ हिंदी में भैया से कहतीं. भाभी की बेशर्मी मां को आगबबूला कर देती और भैया उन्हें ले कर चले जाते.

अकसर ऋतु मां को समझाती, ‘‘अम्मा, इन्हें अपनाने से ही घर में सुख मिलेगा. तुम और पिताजी यहां अकेले रहते हो…बहू और बच्चे आएंगे तभी तो चहलपहल होगी.’’

कोशिश तो दोनों पक्ष करते, आगे बढ़ते, पर कहते हैं कि जब संस्कार ही मेल न खाते हों तो कोई क्या कर सकता है.

छोटी बहू ऋतु से लगभग 10 साल छोटी थी. ऋतु उसे छोटी बहन के समान प्यार करती. छोटा भाई डाक्टर था और अच्छी- खासी प्रैक्टिस जमी थी. पैसे का अभाव नहीं था. मेरठ से कुल 1 घंटे का रास्ता था. मोदीनगर में उस का अपना दवाखाना था. पिताजी ने चाहा था कि मोहन मेरठ में प्रैक्टिस करे पर उस की पत्नी अलका वहीं स्थानीय कालेज में प्रवक्ता थी, अत: वहीं पर किराए का एक मकान ले कर रहता था. उस की 2 प्यारी सी बेटियां थीं जो बड़ी बूआ की लाड़ली थीं.

ऋतु का स्नेह इस परिवार से कुछ अधिक ही था. ये लोग यदाकदा आ भी जाते थे और अपने बच्चों को भेज भी देते थे. बड़े भाई के बेटे को तो शायद ठीक से अपनी दोनों बूआ के बच्चों के नाम व उम्र भी ज्ञात नहीं थी. मंझले भैया फौजी नौकरी में कभी पूना, कभी असम तो कभी कश्मीर, इतने छितर गए थे कि 5-5 साल हो जाते भाईबहनों को मिले.

सब से छोटी थी बहन उपमा, जो शादी के हफ्ते भर बाद ही अमेरिका चली गई थी. उस के ससुराल वाले भी वहीं जा बसे थे. जब तक पिताजी जिंदा थे, ऋतु को मायके की इतनी चिंता नहीं थी, पर 2 साल पहले वे चल बसे. इतने बड़े घर में मां अकेली रह गईं. ऋतु अपने पिता की सब से चहेती संतान थी और ऋतु के आंसू आज तक सूखे नहीं थे.

समय की रफ्तार ने मां को एकाकी बना दिया और मोहन व अलका में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया था. पैसा कमाने की अंधी भूख ने डाक्टर मोहन का समय खा लिया था. 30 वर्ष की उम्र में ही सिर के सारे बाल पक गए थे, उधर अलका बेटियों के लिए धन से खुशियां खरीदने की खातिर रुपयों की चिनाई कर रही थी. उस का तर्क था, ‘‘अपनी बेटी को संपन्न घर व योग्य वर दिलवाने में कम से कम 5-10 लाख तो चाहिए ही. डाक्टरों के बेटेबेटी के विवाह में इतना ही खर्च आता है, अपने स्तर के अनुकूल ब्याहना…’’

यह दलील मां को अरुचिकर लगती और ऋतु के कानों में सीसा उड़ेल जाती. बेटी तो उस की भी 2 हैं पर उस ने तो 10-5 लाख न जोड़े हैं न जोड़ेगी. वह अलका से कहती, ‘‘विवाह स्नेह बंधन है, व्यापार नहीं. बेटी के लिए घरवर खरीदा नहीं, तलाशा जाता है.’’

ऋतु आजकल सारा दिन उद्विग्न रहती. उसे बेचैन व छटपटाता देख कर अशोक व उस की सास कहते, ‘‘जाओ, मेरठ हो आओ,’’ पर वह कम से कम मेरठ जाती. पिछली बार जब वह गई तो 2 पीढ़ी से काम कर रही आया की लड़की शकु उस के पैरों के पास आ कर बैठ गई थी. अम्मा ने ऊपर का हिस्सा किराए पर चढ़ा दिया था. हजार रुपए वह और पिताजी की आधी पेंशन, अम्मा के नियमित जीवन के लिए काफी थी. अभाव था तो स्नेह बेल के फूलों की महक का, जो उस चारदीवारी से रूठ गई थी.

आया का परिवार वहीं गैरेज में रहता था, वही उन का घर था. बूढ़ी आया तो मर गई थी, पर उस की बेटी शकुंतला, दामाद कन्हैया अम्मा की सेवाटहल किया करते थे. यही दोनों अब अम्मा की आंख, कान, हाथ और पैर थे.

शकु ने बताया, ‘‘जीजी, इस बार बड़े भैया गैरेज खाली करने को कह गए हैं.’’

ऋतु तो सकते में रह गई यह सुन कर. शकु और बाहर जमा हुआ जामुन का पेड़ एक ही उम्र के थे. उन सब ने मिल कर खट्टी कमरख, मीठे लंगड़े आम के बिरवे रोपे थे. उन्हें यहां से निकालने का अर्थ… ऋतु ने साफ समझा…गैरेज के सामने ईंटों की सड़क के नीचे तक जमी जड़ें उखाड़ने में कोठी की नींव हिल जाएगी.

‘‘मां से कहा,’’ ऋतु ने पूछा.

‘‘नहीं जीजी, मैं ने तो उन्हें कुछ नहीं बताया. तुम्हारा इंतजार कर रही थी…’’

‘‘अच्छा, मैं बात करूंगी,’’ आश्वासन दे दिया था ऋतु ने.

बड़े भैया से जिक्र किया तो वे बोले, ‘‘जानती हो 200 गज जमीन पर पैर फैलाए बैठे हैं ये लोग, हथिया लेंगे. मां तो कुछ देखती ही नहीं, नुकसान तो हमारा होगा…’’ इतनी हमदर्दी जमीन के टुकड़े से और मां के बचेखुचे जीवन के प्रति कितने उदासीन. ऋतु का मन फट गया. पिताजी के दुख में जब उपमा अमेरिका से आई थी तो चलतेचलते उस ने रोरो कर कहा था, ‘‘देख लेना जीजी, हमारे भाई मां के दिल पर बोझ ही बोझ डालेंगे.’’

उपमा मुंहफट थी. जब भी अमेरिका से आती भाईभाभियों से कहासुनी हो ही जाती. पिताजी के जीतेजी एक बार जब वह सपरिवार आई तो मां ने उसे लाड़प्यार से, उपहारों से लाद दिया. सूटकेस में कपड़े सजाते हुए बडे़ भाई व भाभी को मां की दी साड़ी दिखा कर बोली, ‘‘यह सिल्क की साड़ी देख कर मेरी सहेलियां जल जाएंगी, हाय कितनी सुंदर है,’’ पर बड़ी भाभी के मुख पर छिटक आई नफरत की बदली ऋतु ने देख ली थी.

भाई ने अचानक कह दिया, ‘‘मां को चाहिए कि दीवाली की साड़ी सिर्फ अपनी बेटियों को न दे कर तीनों बहुओं को भी दिया करें.’’

उपमा के हाथों से साड़ी गिरतेगिरते बची. सहज हो कर उस ने कटाक्ष किया, ‘‘तब तो मां ने जो 3 हिस्सों में जेवर बांटा है हमें भी मिलना चाहिए था.’’

‘‘उपमा, बड़े भाई से ऐसे बात की जाती है?’’ ऋतु ने डांटा था.

‘‘बड़ा भाई भी छोटी बहन को मां से मिली स्नेहगठरी पर तीर नहीं चलाता,’’ और उपमा ने अच्छाखासा हंगामा खड़ा किया. बात मां तक जातेजाते बची वरना मां बहुत गरममिजाज थीं. हवाईअड्डे पर उपमा बहुत रोई थी, ‘‘जीजी, मां की याद आती है…’’

और अभी कुछ दिन पहले उपमा की चिट्ठी ने ऋतु का सुखचैन छीन लिया था. उस ने लिखा था, ‘‘जीजी, पिछले साल की राखी और भैयादूज दोनों पर टीके भेजे पर किसी भाई ने जवाब नहीं दिया. मां भी न रहीं तो मैं तो वैसे ही विदेशी हूं. मेरा बचपन, मेरा घरआंगन छिन जाएगा. तुम मेरी तरफ से मां से कहना कि बराबर का हिस्सा नहीं लेकिन एक कमरा और बाथरूम मेरे नाम लिख दें, मेरे तो ससुराल वाले भी घर और खेत बेच कर अमेरिका आ गए हैं. मैं नहीं चाहती कि भारत से मेरी जड़ें ही उखड़ जाएं.’’

ऋतु जितनी बार यह चिट्ठी पढ़ती, उतनी बार बेचैन हो उठती. वह जानती थी कि मां चाहें अपनी बेटियों को कितना भी प्यार करें पर जहां तक पुश्तैनी मकान व पिता की संपत्ति का संबंध है, वहां उत्तराधिकारी उन के बेटेपोते ही हैं. जायदाद में हिस्सा मांगने वाली बेटी, अम्मा के समाज में ‘नालायक’ समझी जाती है.

पड़ोस वाली चाची कह तो रही थीं एक दिन. वे सदैव ऋतु से बातें करती थीं, ‘‘कैसा जमाना आ गया है, 20 नंबर वाले राजन बाबू की चारों बेटियों ने बाप से हिस्सा मांग लिया. यह भी नहीं सोचा कि इकलौता भाई दिल का मरीज है, 4-4 बच्चों का बाप, ऊपर से स्कूल के अध्यापक की तनख्वाह… बेचारा, बाप के मकान के सहारे जिंदगी गुजार रहा था.’’

‘‘सच, यह तो बड़ा बुरा किया राजन बाबू की लड़कियों ने. चारों इतने रईस घर गई हैं, एकएक पर दोदो कारें हैं,’’ ऋतु को राजन बाबू के लड़के पर बड़ी दया आई. भाई के समान ही तो थे बस्ती के सभी लड़के. पासपड़ोस की बातें करते ऋतु को यह भी याद नहीं रहा कि दीमक तो इस घर में भी लग रही है. आखिर उस ने मेरठ जाने का मन बना ही लिया.

इलाहाबाद से मेरठ तक ऋतु खयालों में डूबतीउतराती रही. शकु की बेटी जो ऋतु की बेटी अनु की हमउम्र थी, उस ने अनु से कहा था, ‘‘अनु, पता है, मंझली उषा भाभी क्या कहती थीं…कहती थीं, बड़ी ननद अपनी मां को इसलिए मक्खन लगा रही हैं कि बेटेबहुओं का पत्ता साफ कर यह कोठी हजम कर जाएं.’’

‘‘अनु, नौकरों की बात न सुनने की होती है और न विश्वास करने योग्य,’’ ऋतु ने अपनी बेटी के मुख से सुनी बात पर डांटा था. उषा भाभी फौजी की पत्नी हो कर मक्खन की लिपाई से आगे सोच ही क्या सकती हैं? ऋतु का मन आक्रोश से भर गया. पर कहते हैं न कि बिना आग के धुआं नहीं होता, अवश्य कुछ तो सुलग रहा था इस घर में. उपमा की चिट्ठी तो इस आग में घी का काम करेगी.  और मां बारबार ऋतु से कहतीं, ‘‘बैठ कर इस घर के हिस्से बंटवा जा, तेरे भाईबहन तो किसी काम के हैं नहीं.’’  उधर अशोक की हिदायतें कि मायके वालों के जमीनजायदाद के बीच मत पड़ना, वरना तुम्हारा मेरठ जाना बंद. करे तो क्या करे?

मेरठ पहुंची तो मन खुशी से भर गया. स्टेशन पर भाईभाभियां, भतीजेभतीजियां सभी आए थे. उपमा होती तो पूछ लेती, ‘‘क्या मामला है, आज गाड़ी में पैट्रोल क्या मां ने डलवाया है, वरना इतनी मेहरबानी कैसे?’’  पर ऋतु उस स्नेह की छाया में तृप्त हो गई. आज पहली बार पिताजी के बिना घर घर लग रहा था. थकेहारे बुढ़ापे के सहारे की जगह नहीं. खूब फलमिठाई और बरसों से संभाल कर रखी मां की कटलरी क्रौकरी से खाने की मेज सजी. उपमा की राखी भी मेरठ के पते पर पहुंच गई थी.  रात को सब के सोने के बाद अम्मा चुपके से ऋतु को उठा कर अपनी पूजा की कोठरी में ले गईं. घर के बंटवारे की चिंता मां को सोने नहीं देती थी.  पूजाघर में मां ने जो एक प्रस्ताव बना कर कागज पर लिखा था, उसे देख कर ऋतु को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो.

‘‘यह क्या मां, 3 की जगह, बराबर- बराबर 5 हिस्से. नहींनहीं, मुझे तुम्हारी संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं चाहिए.’’

‘‘अशोक क्या कहेंगे? मेरे ससुर ने अपने ताऊ से करोड़ों की भागीदारी में भी कुछ नहीं कहा, उन्होंने उन्हें मकान का बाहरी हिस्सा दिया. वे उसी में रहते रहे… सेवानिवृत्त होने तक.’’

ऋतु का चेहरा फक पड़ गया, ‘‘तब तो पगली भाभी की बात ठीक निकली…नहीं मां, इसे तुम बेटों में ही बांटो…’’

‘‘अरी, मुझ से ही माल लेंगी और मुझ से ही सीधे मुंह बात नहीं करेंगी.’’

‘‘जो भी हो, वे ही तुम्हारे वंशज हैं. हां, चाहो तो उपमा को…’’ और ऋतु ने उपमा  की चिट्ठी के अंश मां को सुना दिए.

‘‘ठीक है, बेटी मां से नहीं मांगेगी तो किस से मांगेगी.’’

रात भर मां और ऋतु यादों की गंगायमुना में तैरती रहीं. पिताजी को याद कर दोनों रोती रहीं. अपनी शादी से आज तक के खट्टेमीठे अनुभव याद करतेकरते कब भोर हो गई पता ही नहीं चला. पौ फटने से पहले ऋतु ने बंटवारे के कागजों का रुख मोड़ दिया था. उपमा के लिए बाहर का एक कमरा व बरामदा तथा शेष पूरा घर, दिल्ली की जमीन तीनों भाइयों में बराबर बंट गई.

‘‘और तू?’’ मां ने पूछा.

‘‘मुझे तुम्हारी यह गोद मिली रहे…और मां, मैं चाहती हूं कि जब मेरी बेटियों का ब्याह हो और औरतें मंगलाचार गाएं तो मेरे घर की दहलीज पर भाईभाभी, भतीजे- भतीजियों की बरात लग जाए. मैं भी औरतों की टोली में बैठ कर गा सकूं, ‘मत बरसो इंदर राजाजी, मेरी मां का जाया भीजै’.’’

अगले दिन, राखी टीके से पहले भाई ने ऋतु से ‘अपना हिस्सा न मांगने वाले’ कानूनी दस्तावेज पर दखत करा लिए, दस्तखत करते हुए उसे कहीं से एक राहत भरी गहरी निश्वास सुनाई पड़ी. तीनों भाभियों ने राखी के उपलक्ष्य में ऋतु को सुंदर साडि़यां भेंट कीं. उपमा की राखी भी ऋतु ने बांध दी थी. उपमा के हिस्से वाली बात मांबेटी छिपा गई थीं, इस डर से कि कहीं विदेशी बहन के भेजे स्नेहधागे तिरस्कृत न हो जाएं.

Raksha Bandhan : इस राखी पर पाना चाहती हैं परफैक्ट लुक, तो एक्सपर्ट के इन टिप्स को करें फौलो

Raksha Bandhan : भाई-बहन के अटूट रिश्ते का फैस्टिवल रक्षाबंधन अब करीब ही है. इस दिन खास दिखने के लिए बहने पहले से ही तैयारियां करती हैं, लेकिन कुछ बहने काम की वजह से समय न मिलने के कारण पहले से कुछ तैयारी नही कर पाती हैं. ऐसे में वो बहने अपने रूप को निखारने के लिए एक्सपर्ट के टिप्स अपना कर रक्षाबंधन पर परफैक्ट दिख सकती हैं.

एस स्टूडियो अकेडमी की औनर मेकअप एक्सपर्ट एण्ड एंटरप्रेन्योर सावी बर्तवाल रक्षा बंधन के दिन खास दिखने के लिए ऐसे ब्यूटी टिप्स बता रही हैं जिसे आप भी अपना कर बेस्ट दिख सकती हैं.

रक्षाबंधन ब्यूटी टिप्स

सबसे पहले आप अपने दिन की शुरुआत कुछ इस तरह से करें, कोई भी फ्रेगरेंस वाला बौडी वाश, बौडी पर अच्छे से लगा कर फ्रेश वाटर से शावर ले. इससे आप फ्रेश फील करेंगी. फिर पूरी बौडी में फ्रेगरेंस वाला बौडी लोशन अच्छे से लगाए.

फ्लौलेस मेकअप लुक बनाएं

मेकअप करते समय आप अपनी स्किन टोन को ध्यान में रख कर ही मेकअप करें.

फेस क्लीन

सबसे पहले फेस क्लीन करें. फिर फेस पर बर्फ से मसाज करे. इसके लिए आप एक कपड़े में कुछ बर्फ के टुकड़े लेकर फेस पर हल्के हाथों से राउंडराउंड घुमा कर मसाज कर सकती हैं. बर्फ की मसाज से पसीना कम आता है और स्किन को ठंडक मिलती है. इससे फेस पर मेकअप लंबे समय तक टिका रहता है.

टोनर और प्राइमर का इस्तेमाल

बर्फ की मसाज के बाद आप अपनी स्किन के अनुसार फेस पर टोनर लगाएं. यह स्किन को डिटॉक्स करता है और स्किन को ऑयल फ्री बनता है. टोनर के बाद आप अपनी स्किन से मैच करता फेस पर प्राइमर जरूर लगाए.

फेस फाउंडेशन

अब अपनी स्किन के अनुसार मैच करता हुआ फाउंडेशन लगाए. आप फाउंडेशन ब्रश की सहायता से या फिंगर टिप से या स्पोंज से भी लगा सकती है. इसको फेस पर अच्छे से मर्ज करना जरूरी है नही तो पैच दिखने लगते है. अगर आपके डार्क सर्कल है तो कंसीलर लगा कर अच्छी तरह ब्लेंड करें. फिर लूज़ पाउडर ब्रश की सहायता से पूरे फेस पर लगाए. एक्स्ट्रा पाउडर झाड़ दे.

आईज और लिप्स

आप दिन के समय लाइट आई शैडो का इस्‍तेमाल करें .इसके लिए पीच बेस कलर ही लगाए. ये बेस्ट होते है मस्करा वाटरप्रूफ ही लगाए. लिपस्टिक ड्रेस के अकार्डिंग हमेशा मैट चुनें क्योंकि ये फैलती नहीं हैं. आईब्रो पर पेंसिल से फिनिशिंग दे और काजल और आई लाइनर लगा कर परफेक्ट लुक पाए.

नेलपेंट

सबसे पहले हाथों में लोशन लगा कर मसाज करें. जिससे हाथों की ड्राईनेस कम हो और वो सॉफ्ट रहे. फिर सौफ्ट टावल से हाथों को ड्राई कर बढ़े हुए नेल्स कट करके शेप में लाएं. फिर बेस कोट लगा उसमें नेल पेंट लगाएं. ये आपके हाथों को खूबसूरत दिखाएंगे.

हेयर स्टाइल

रक्षा बंधन के विशेष दिन आपकी हेयर स्टाइल भी खास होनी चाहिए इसके लिए आप मार्केट से रेडीमेड हाइलाइट वाली फंकी कलरफुल स्ट्रीक्स लेकर लगा सकती हैं ये आपके लुक को डिफरेंट दिखाएगी. इसके अलावा फेस के अनुसार हेयर को कर्ल करे या स्ट्रेट, ये आपके लुक को बेहतर बनाएंगे.

खास आउटफिट

रक्षाबंधन के दिन पहनें कुछ ऐसा खास आउटफिट जिसमें आप कॉन्फिडेंस और इजी फील कर सके करें. फिर चाहे आप ट्रेडिशनल इंडियन ड्रेस पहने या स्टाइलिश वेस्टर्न ड्रेस लुक को बेहतर दिखाने के लिए एक्ससरीज पहनना न भूलें. इसके लिए आप ड्रेस से कॉन्ट्रास्ट इयररिंग,नैकलेस और बैंगल्स, ब्रेसलेट ही पहने ये आपके लुक में ग्लैमर को बढ़ाएंगे.

माइल्ड परफ्यूम

पूरी तैयार होने के बाद अपनी पसंदीदा परफ्यूम का स्प्रे करना न भूलें, इससे आप फ्रेश फील करेंगी साथ ही लोगो पर अपनी खास इमेज भी बना सकती हैं. याद रखें, रक्षाबंधन के दिन सेल्फ लव करके, आप न केवल रेशमी मुलायम स्किन पा कर खूबसूरती पाएंगी बल्कि अपना कौन्फिडेंस भी बढ़ाएगी.

Raksha Bandhan : अभी तक नहीं लिया है भाईबहन के लिए कोई गिफ्ट, तो फौलो करें ये बजट फ्रैंडली आइडियाज

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन का खास त्यौहार है, इस दिन को मनाने के लिए बहने पूरे साल इंतजार करती है, भाई भी अपनी कलाई पर राखी बंधवाकर ख़ुशी का अनुभव करता है. इसके बाद होती है गिफ्ट का आदान-प्रदान, जो भाई-बहन एक दूसरे को देते है. यहां कुछ गिफ्टिंग आईडियाज लाये हैं, जो बजट फ्रेंडली होने के साथ-साथ आपके गिफ्टिंग सर्च  को आसान बनाने वाली है.

भाई के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • रिस्टवाच, एक सुंदर आप्शन है, रिस्टवाच बजट के अनुसार भाई को दिया जा सकता है, जो दिखने में सुंदर और एलीगेंट हो.
  • डिज़ाइनर कप मग पर भाई का नाम लिखवाकर राखी के साथ दिया जा सकता है.
  • फोटो फ्रेम में भाई बहन के बचपन के कई तस्वीरों के कोलाज बनाकर लगाने से एक यादगार और अलग गिफ्ट हो सकता है.
  • प्रेरणादायक बुक्स भी एक अच्छा आप्शन भाई के लिए होता है.
  • कस्टमाइज्ड वालेट जिसपर भाई का नाम लिखवाकर गिफ्ट किया जा सकता है.
  • आजकल के लड़के हेयर स्टाइल करते है, इसलिए हेयर ड्रायर भी उनके लिए अच्छा साबित होगा.
  • संगीत के प्रेमी भाई के लिए इयर बड्स काफी अच्छा गिफ्ट है, इसे ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
  • फिटनेस लवर भाई को ग्रूमिंग किट्स, जिम के सब्सक्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर, डेकोरेटिव पीस, सुंदर टीशर्ट आदि है.
  • इसके अलावा कई तरह के परफ्यूम या बौडी स्प्रे भी एक अच्छा आप्शन गिफ्ट के लिए है.

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली राखियाँ गार्गी डिजाईनर्स ने निकाले है, ये राखियाँ प्लास्टिक मुक्त, और रीसाइकल्ड डेनिम राखियाँ है.

बहन के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • बहन के लिए को ट्रेंडी ज्वेलरी रियल या आर्टिफिसियल, जो हर बजट में उपलब्ध है, अपने पॉकेट के अनुसार दिया जा सकता है, एलीगेंट चैन के साथ लॉकेट, ब्रेसलेट्स, इयररिंग्स आदि स्टाइलिश और ट्रेंडी होने के साथ-साथ आकर्षक भी होते है.
  • वैसे तो घडी पहनने का ट्रेंड ख़त्म हो चुका है, लेकिन स्टाइलिश, ट्रेंडी घडियां जो दिखने में ब्रेसलेट्स की तरह सुंदर होती है, गिफ्ट के रूप में दिया जा सकता है.
  • स्किनकेयर और ब्यूटी प्रोडक्ट भी महिलाओं की पसंद का होता है, इसमें उन्हें पार्लर या जिम के सबस्क्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर एक अच्छा आप्शन है. रक्षा बंधन पर मिलाप कास्मेटिक का ट्रू ब्लैक मस्कारा गिफ्ट किया जा सकता है.
  • बुक्स पढने की शौकीन महिलाओं को बुक्स या किसी महिला मैगज़ीन के सबस्क्रिप्शन भी दिए जा सकते है.
  • प्लांट के शौकीन बहनों के लिए कलरफुल प्लांट्स भी एक अच्छा गिफ्ट आप्शन है. इसके अलावा हेड फ़ोन, विंड बेल, डेकोरेटिव पीस, परफ्यूम आदि भी एक अच्छा गिफ्ट है.
  • फैशन एक्सेसरीज महिलाओं की खास पसंदीदा है, जिसे वे अपने अनुसार प्रयोग कर सकती है. फैशन और एक्सेसरीज डिज़ाइनर केमेलिया दलाल कहती है कुछ पर्सनलाइज्ड गिफ्ट जो खास बहन की मनपसंद हो, उसे भी दे सकते है, जिसमे हैण्ड बैग्स या बटुआ, डिज़ाइनर शूज आदि अच्छा आप्शन है, जो हैण्डमेड होने के साथ-साथ कलरफुल बीड्स, जिप्सी एम्ब्रायडरी, बोहो स्टाइल के होते है, जो यूनिक होते है और किसी भी पार्टी या अवसर पर एक अलग लुक देती है.

Raksha Bandhan 2024: सांझा दुख- क्यों थी भाई-बहन के रिश्ते में कड़वाहट

कोरोनाकाल चल रहा है. हम सब अपनेअपने घरों में लौकडाउन का पालन करते हुए भी डरे हुए हैं. पता नहीं कब किस को क्या हो जाए. एक ही तरह की दिनचर्या निभाते हुए मन की उल?ान और बढ़ती ही जा रही है. कब, कहां, और कैसे? हर मौत पर दिमाग में ये सवाल कौंध रहे हैं.

अरे, अभी उन से 10 दिनों पहले ही तो बात हुई थी और आज… विवशता, हताशा और पीड़ा का मिलाजुला रूप हम सब पर भारी है. कैसी महामारी है कि हम अपनों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं जब उन को हमारी सब से ज्यादा जरूरत है.

स्पर्श, प्यार के दो बोल और सेवा के लिए तड़पते हमारे अपने, अकेले में किस से गुहार कर रहे होंगे? तकलीफ को सांझ कर मन शांत हो जाता है. हम ऐसी डरावनी बीमारी के खौफ से घिरे हैं कि उस के पास हम बैठ भी नहीं सकते जिस से हमारा जीवनभर का नाता है.

दूर से अपनों की परेशानी देख मन तड़प जाता है और एक टीस कि काश.. ऐसा नहीं होता. हमारे अपने बिछुड़ रहे हैं और ऐसी बिछुड़न, कि हम फिर से मिलने की आस भी नहीं संजो पा रहे हैं.

मेरे दिल में यही सब बातें चल रही थीं कि मां आ कर मेरे पास खड़ी हो गईं. नम आंखें बहुतकुछ कह रही थीं. मुझे सीने से लगाते हुए बोलीं, ‘‘शरद नहीं रहा, बिट्टू. कोरोना के काल ने उस को अपनी चपेट में ले लिया.’’

मैं स्तब्ध मां का चेहरा देखती रही. खामोशी के बीच हमारे अंदर दिल चीर डालने वाला दुख सांझ हो रहा था. आंखें उमड़ रही थीं.

मां के जाते ही औंधेमुंह बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह ढह गई मैं. आंसू हमारे सुखदुख की साथी तकिया को भिगोते रहे.

शरद भैया से मेरा खून का रिश्ता नहीं था, पर खून के रिश्तों पर हमेशा भारी रहा है यह आत्मिक रिश्ता. बचपन से ही वे हमारे लिए रोलमौडल रहे. भैया के कंधे पर बैठ हम कहांकहां की सैर कर आते थे. मैं छोटीछोटी समस्याओं पर उन के पास पहुंच, रोते हुए और अपनी फ्रौक से आंसू पोंछते हुए उन की गोद में सिर रख कर शिकायतों का पुलिंदा खोल दिया करती थी. कभी मां सा, कभी भाई सा, तो कभी सहेलियों सा बरताव करते.

वे हंसते हुऐ कहते, ‘थोड़ा रूक जा बिट्टू. जब मैं डाक्टर बन जाऊंगा, तब इन सब को इंजैक्शन लगा कर दर्द का एहसास करवाऊंगा.’

खूब हंसती मैं, और तरहतरह की ऐक्टिंग कर के बताती कि दर्द के कारण वे सब कैसे बिलबिलाएंगे. थोड़ी बड़ी हुई. उन के आने पर चाय मैं ही बनाती थी, क्योंकि उन को मेरे हाथ की बनी चाय पसंद थी.

चाय पीते हुए वे कहते, ‘चाची, बिट्टू की शादी हम इसी शहर में कराएंगे, ताकि हम सब को उस के हाथ की बनी चाय हमेशा मिलती रहे.’

बनावटी गुस्सा दिखाती हुई मैं भैया को मारने लगती. वे मुझे सीने से लगाते हुए कहते, ‘इस को कभी भी अपनेआप से दूर नहीं जाने दूंगा.’

मेरी हर समस्या का समाधान था भैया के पास. मेरे स्कूल से ले कर कालेज तक के सफर में भैया हमेशा मार्गदर्शक रहे मेरे.

एक दिन हंसते हुए मैं उन से बोली, ‘आप की अपनी कोई बहन नहीं है न, इसीलिए आप मु?ा से बहुत प्यार करते हैं.’

मु?ो आज भी याद है वह दिन. उन्हें बिलकुल भी बुरी नहीं लगी मेरी बात. उलटे, उन्होंने मेरी नाक पकड़ कर बोला था, ‘बिट्टू, तुम हर जन्म में मेरी बहन हो, और रहोगी. अपना और पराया क्या होता है? जहां प्रेम की लौ जगी, वही अपना है.’

कुछ वर्षों बाद भैया मैडिकल की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चले गए. मैं बहुत रोई थी. जैसे, मेरी दुनिया बेरंग हो गई हो. सुबह के उजाले से ले कर देररात तक उन के साथ की यादें मु?ो और उदास कर जातीं.

फोन पर जब मैं अपनी समस्याएं बताने लगती तो वे कहते, ‘इतनी समस्याओं का, बस, एक समाधान है तेरी शादी. दूल्हा आ जाएगा तेरी जिंदगी में, तब जा कर इस निरीह भाई को राहत मिलेगी.’

गुस्से से कहती मैं, ‘अच्छा, तो आप मु?ा से छुटकारा चाहते हैं. इतनी जल्दी नहीं छोड़ने वाली मैं आप को. और वैसे भी, पहले आप की शादी होगी, तब मेरी.’

भैया के डाक्टर बनते ही उन की शादी हो गई. खूब नाची थी मैं. खुशी मेरे दामन में नहीं समा रही थी.

बाद के दिनों में वे मुझे चिढ़ाते, ‘चाची, मेरी शादी में नागिन डांस के लिए तो इस को पद्मश्री अवार्ड मिलना चाहिए था.’

वक्त के साथ हम सब बदलते गए. मेरी भी शादी हो गई. जिम्मेदारियों ने पैरों में बेडि़यां डाल दीं. मां की आवाज सुन कर मैं आंसू पोंछते हुए बैठ गई.

अपनी गोद में मेरा सिर रख कर प्यार से हाथ फेरते हुए मां बोलीं, ‘‘बिट्टू, तुम्हारे अंदर एक जीव पल रहा है, वह भी तो तुम्हारे खाने का इंतजार कर रहा है.’’

पेट पर हाथ रख कर सोचने लगी मैं, ‘काश, भैया मेरी कोख में आ जाते. मैं मां बन कर उन का खूब खयाल रखती और अपने से कभी भी दूर न जाने देती.’

बहुत प्रयास करने के बाद मैं ने खुद को संयत कर भाभी को कौल किया. उन के रोने की आवाज मेरे कानों में पिघले सीसे की तरह आहत कर रही थी.

‘‘शरद बगैर मुझ से कुछ बोले चले गए, बिट्टू. मैं अब किस को प्यार करूंगी? किस के सहारे रहूंगी? चारों तरफ अंधेरा दिख रहा है? मेरे तो सिर का ताज ही बिखर गया, बिट्टू.’’

‘‘समय के सामने हम सब विवश हैं, भाभी. धैर्य रखिए. अमन का खयाल रखिए. उस पर इन दुखों का असर नहीं होना चाहिए. टूट जाएगा तो बिखरे को समेटना बहुत मुश्किल होगा, भाभी.’’

तभी अमन की आवाज ने मेरी बची हुई हिम्मत को भी तोड़ कर रख दिया, ‘‘मैं पापा के साथ खेलना चाहता हूं. पापा से मिले हम को एक महीना हो गया है बूआ. सब के पापा हैं, तो मेरे पापा हमें छोड़ कर क्यों चले गए? बताओ बूआ?’’

सांत्वना के शब्द यहीं पर खत्म हो गए थे मेरे. मैं शून्य में निहारते हुए बोली, ‘‘इस का जवाब किसी के पास भी नहीं होगा, अमन बेटा.’’

मां के हाथों में खाने की थाली दिखी, तो आंखों ने सवाल किया और जबान पूछ बैठी, ‘‘मां, पीर पराई है या अपनी है?’’

‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे,’’ गाती हुई मां वहां से चली गईं.

Raksha Bandhan 2024 : मुझे जवाब दो- क्या शोभा अपने भाई को समझा पाई

‘‘प्रिय अग्रज, ‘‘माफ करना, ‘भाई’ संबोधन का मन नहीं किया. खून का रिश्ता तो जरूर है हम दोनों में, जो समाज के नियमों के तहत निभाना भी पड़ेगा. लेकिन प्यार का रिश्ता तो उस दिन ही टूट गया था जिस दिन तुम ने और तुम्हारे परिवार ने बीमार, लाचार पिता और अपनी मां को मत्तैर यानी सौतेला कह, बांह पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया था. पैसे का इतना अहंकार कि सगे मातापिता को ठीकरा पकड़ा कर तुम भिखारी बना रहे थे.

‘‘लेकिन तुम सबकुछ नहीं. अगर तुम ने घर से बाहर निकाला तो उन की बांहें पकड़ सहारा देने वाली तुम्हारी बहन के हाथ मौजूद थे. जिन से नाता रखने वाले तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारी नजर में अक्षम्य अपराध किया था और यह उसी का दंड तुम ने न्यायाधीश बन दिया था.

‘‘तुम्हीं वह भाई थे जिस ने कभी अपनी इसी बहन को फोन कर मांपिता को भेजने के लिए मिन्नतें की थीं, फरियाद की थी. बस, एक साल भी नहीं रख पाए, तुम्हारे चौकीदार जो नहीं बने वो.

‘‘तुम से तो मैं ने जिंदगी के कितने सही विचार सीखे. कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम बुरी संगत में पड़, ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए अपने खून के रिश्तों की जड़ें काटने पर तुल जाओगे.

‘‘एक ही शहर में, दो कदम की दूरी पर रहने वाले तुम, आज पत्र लिख अपने मन की शांति के लिए मेरे घर आना चाहते हो. क्यों, क्या अब तुम्हारे परिवार को एतराज नहीं होगा?

‘‘अब समझ आया न. पैसा नहीं, रिश्ते, अपनापन व प्यार अहम होते हैं. क्या पैसा अब तुम्हें मन की शांति नहीं दे सकता? अब खरीद लो मांबाप क्योंकि अपनों को तो तुम ने सौतेला बना दिया था.

‘‘तुम्हीं ने छोटे भाईभावज को लालच दिया था अपने बिजनैस में साझेदारी कराने का लेकिन इस शर्त पर कि मातापिता को बहन के घर से बुला अपने पास रखो, घर अपने नाम करवाओ और इतना तंग किया करो कि वे घर छोड़ कर भाग जाएं. तुम ने उन से यह भी कहा था कि वे बहन से नाता तोड़ लें. इतनी शर्तों के साथ करोड़ों के बिजनैस में छोटे भाई को साझेदारी मिल जाएगी, लेकिन साझेदारी दी क्या?

‘‘हमें क्या फर्क पड़ा. अगर पड़ा तो तुम दोनों नकारे व सफेद खून रखने वाले पुत्रों को पड़ा. पुलिस व समाज में जितनी थूथू और जितना मुंह काला छोटे भाईभावज का हुआ उतना ही तुम्हारा भी क्योंकि तुम भी उतने ही गुनाहगार थे. मत भूलो कि झूठ के पैर नहीं होते और साजिश का कभी न कभी तो परदाफाश होता है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो कि इतना सब होने के बाद भी मांपिताजी ने तुम्हें व छोटे को माफ कर दिया था. सो, अब हम भी कर दें, यह चाहते हो? वो तो मांबाप थे ‘नौहां तो मांस अलग नईं कर सकदे सी’, (नाखूनों से मांस अलग नहीं कर सकते थे.) पर, हम तुम्हें माफ क्यों करें?

‘‘क्या तुम अपने बीवीबच्चों को घर से बाहर निकाल सकते हो? नहीं न. क्या मांबाप लौटा सकते हो?

‘‘अब तुम भी बुढ़ापे की सीढ़ी पर पैर जमा चुके हो. इतिहास खुद को दोहराता है, यह मत भूलना. अब चूंकि तुम्हारा बेटा बिजनैस संभालने लगा है तो तुम्हारी स्थिति भी कुछकुछ मांपिताजी जैसी होने लगी है. अगर बबूल बोओगे तो आम नहीं लगेंगे. सो, अपने बुरे कृत्यों का दंश व दंड तो तुम्हें सहना ही पड़ेगा. क्षमा करना, मेरे पास तुम्हारे लिए जगह व समय नहीं है.

‘‘बेरहम नहीं हूं मैं. तुम मुझे मेरे मातापिता लौटा दो, मैं तुम्हें बहन का रिश्ता दे दूंगी, तुम्हें भाई कहूंगी. मुझे पता है उन के आखिरी दिन कैसे कटे. आज भी याद करती हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वो दशरथ की तरह पुत्रवियोग में बिलखतेविलापते, पर तुम राम न बन सके. निर्मोही, निष्ठुर यहां तक कि सौतेला पुत्र भी ऐसा व्यवहार नहीं करता होगा जैसा तुम ने किया.

‘‘तुम लिखते हो, ‘बेहद अकेले हो.’ फोन पर भी तो ये बातें कर सकते थे पर शायद इतिहास खुद को दोहराता… तुम उन के फोन की बैटरी निकाल देते थे. खैर, जले पर क्या नमक छिड़कना. जरा बताओ तो, तुम्हें अकेला किस ने बनाया? तुम्हें तो बड़ा शौक था रिश्ते तोड़ने का. अरे, ये तो मांपिताजी के चलते चल रहे थे. तुम तो रिश्ते हमेशा पैसों पर तोलते रहे. बहन, बूआ, बेटी, ननद इन सभी रिश्तों की छीछालेदर करने वाले तुम और तुम्हारी पत्नी व बेटी अब किस बात के लिए शिकायत करती फिर रही हैं. जो रिश्तेनाते अपनापन जैसे शब्द व इन की अहमियत तुम्हारी जिंदगी की किताब में कभी जगह नहीं रखते थे, उन के बारे में अब इतना क्यों तड़पना. अब इन रिश्तों को जोड़ तो नहीं सकते. उस के लिए अब नए समीकरण बनाने होंगे व नई किताब लिखनी होगी. क्या कर पाओगे ये सब?

‘‘ओह, तो तुम्हें अब शिकायत है अपने बेटेबहू से कि वे तुम्हें व तुम्हारी पत्नी को बूढ़ेबुढि़या कह कर बुलाते हैं. ये शब्द तुम ही लाए थे होस्टल से सौगात में. चलो, कम से कम पीढ़ीदरपीढ़ी यह सम्मानजनक संबोधन तुम्हारे परिवार में चलता रहेगा. बधाई हो, नई शुरुआत के लिए और रिश्तों को छीजने के लिए.

‘‘खैर, छोड़ो इन कड़वी बातों को. मीठा तो तुरंत मुंह में घुल जाता है पर कड़वा स्वाद काफी देर तक रहता है और फिर कुछ खाने का मन भी नहीं करता. सो, अब रोना काहे का. कहां गई तुम्हारी वह मित्रमंडली जिस के सामने तुम मांपिता को लताड़ते थे. क्यों, क्या वे तुम्हारे अकेलेपन के साथी नहीं या फिर आजकल महफिलें नहीं जमा पाते. बेटे को पसंद नहीं होगा यह सब?

‘‘छोड़ो वह राखीवाखी, टीकेवीके की दुहाई देना, वास्ता देना. सब लेनदेन बराबर था. शुक्र है, कुछ बकाया नहीं रहा वरना उसी का हिसाबकिताब मांग बैठते तुम.

‘‘अपने रिश्ते तो कच्चे धागे से जुड़े थे जो कच्चे ही रह गए. खुदगर्जी व लालच ही नहीं, बल्कि तुम्हारे अहंकार व दंभ ने सारे परिवार को तहसनहस कर डाला.

‘‘अब जुड़ाव मत ढूंढ़ो. दरार भरने से भी कच्चापन रह जाता है. वह मजबूती नहीं आ पाएगी अब. इस जुड़ाव में तिरस्कार की बू ताजा हो जाती है. वैसे, याद रखना, गुजरा वक्त कभी लौट कर नहीं आता.

‘‘वक्त और रिश्ते बहुत नाजुक व रेत की तरह होते हैं. जरा सी मुट्ठी खोली नहीं कि वे बिखर जाते हैं. इन्हें तो कस कर स्नेह व खुद्दारी की डोर में बांध कर रखना होता है.

‘‘कभी वक्त मिले तो इस पत्र को ध्यान से पढ़ना व सारे सवालों का जवाब ढूंढ़ना. अगर जवाब ढूंढ़ पाए तो जरूर सूचना देना. तब वक्त निकाल कर मिलने की कोशिश करूंगी. अभी तो बहुतकुछ बाकी है भा…न न…भाई नहीं कहूंगी.

‘‘मुझ बहन के घर में तो नहीं, पर हमारे द्वारा संचालित वृद्धाश्रम के दरवाजे तुम्हारे जैसे ठोकर खाए लोगों के लिए सदैव खुले हैं.

‘‘यह पनाहघर तुम्हारी जैसी संतानों द्वारा फेंके गए बूढ़े व लाचार मातापिता के लिए है. सो, अब तुम भी पनाह ले सकते हो. कभी भी आ कर रजिस्ट्रेशन करवा लेना.

‘‘तुम्हारी सिर्फ चिंतक शोभा.’’

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