Raksha Bandhan: तोबा मेरी तोबा- अंजली के भाई के साथ क्या हुआ?

मेरे सिगरेट छोड़ देने से सभी हैरान थे. जिस पर डांटफटकार और समझानेबुझाने का भी कोई असर नहीं हुआ वह अचानक कैसे सुधर गया? जब मेरे दोस्त इस की वजह पूछते तो मैं बड़ी भोली सूरत बना कर कहता, ‘‘सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक है, इसलिए छोड़ दी. तुम लोग भी मेरी बात मानो और बाज आओ इस गंदी आदत से.’’

मुझे पता है, मेरे फ्रैंड्स  मुझ पर हंसते होंगे और यही कहते होंगे, ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली. बड़ा आया हमें उपदेश देने वाला.’ मेरे मम्मीडैडी मेरे इस फैसले से बहुत खुश थे लेकिन आपस में वे भी यही कहते होंगे कि इस गधे को यह अक्ल पहले क्यों नहीं आई? अब मैं उन से क्या कहूं? यह अक्ल मुझे जिंदगी भर न आती अगर उस रोज मेरे साथ वह हादसा न हुआ होता.

कालेज में कदम रखते ही मुझे सिगरेट की लत पड़ गई थी. जब मौका मिलता, हम यारदोस्त पांडेजी की दुकान पर खड़े हो कर खूब सिगरेट फूंकते और फिर हमारे शहर में सिगरेट पीना मर्दानगी की निशानी समझी जाती थी. कालेज के जो लड़के सिगरेट पी कर खांसने लगते, हम उन का मजाक उड़ाते. हां, लेकिन घर लौटने से पहले मैं पिपरमिंट की गोलियां चूस लेता ताकि किसी को तंबाकू की बू न आए. वजह यह नहीं थी कि मैं घर में किसी से डरता था. वजह सिर्फ यही थी कि घर के लोग किसी भी बात पर लेक्चर देना शुरू कर देते जिस से मुझे बड़ी चिढ़ होती थी.

मेरी बड़ी बहन अंजली की नाक बड़ी तेज थी. हमारे किचन में अगर कुछ जल रहा हो तो गली में दाखिल होते ही अंजली दीदी को उस की बू आ जाती. एक दिन मैं घर पहुंचा तो दरवाजा उसी ने खोला. वे बिल्ली की तरह नाक सिकोड़ कर बोलीं, ‘‘सिगरेट की बदबू कहां से आ रही है? तुम ने पी है क्या?’’

मैं पहले तो सहम गया लेकिन फिर गुस्से से बोला, ‘‘आप क्यों हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती हैं? हमारा चौकीदार दिन भर बीड़ी फूंकता है. जब हवा चलती है तो उस का धुआं यहां तक आ जाता है. यकीन न आए तो बाहर जा कर देख लीजिए. वह इस वक्त जरूर बीड़ी पी रहा होगा.’’

मुझे गलत साबित करने के लिए अंजली दीदी फौरन बरामदे में चली गईं. संयोग से चौकीदार उस समय वाकई बीड़ी पी रहा था. मुझे शक भरी नजरों से देखती हुई वे उस समय तो वहां से चली गईं लेकिन उस दिन के बाद मैं ने नोट किया कि वे मुझ पर नजर रखने लगी थीं. मैं जब बाहर से लौट कर अपने कमरे में आता तब यह बात फौरन समझ में आ जाती कि मेरे कमरे की तलाशी ली गई है. अलमारी और मेज की दराजें सब टटोले गए हैं. मुझे यकीन हो गया कि अंजली दीदी जरूर कोई सुराग ढूंढ़ रही होंगी ताकि मुझ पर हमला किया जा सके. पर मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. अपने कमरे में सिगरेट और माचिस की डब्बी मैं भूल से भी नहीं रखता था.

एक दिन मुझ से गलती हो गई. मैं महल्ले के लड़कों के साथ नुक्कड़ पर खड़े हो कर गपशप कर रहा था. एक दोस्त ने सिगरेट सुलगाई तो मैं ने उस के हाथ से ले कर एक कश लगा लिया. उसी समय अंजली दीदी सब्जी ले कर घर लौट रही थीं. उन की नजर मुझ पर पड़ी और मैं रंगेहाथों पकड़ा गया. वे तीर की तरह घर की तरफ भागीं और मैं ने घबराहट में सिगरेट का एक और ऐसा दमदार कश लगाया कि मुझे चक्कर आने लगे. दोस्तों के सामने मैं ने शेखी बघारी कि मैं किसी से नहीं डरता. सिगरेट पीता हूं तो क्या हुआ? कोई चोरी तो नहीं की, डाका तो नहीं डाला. मेरे दोस्तों ने मेरी पीठ ठोंक कर मुझे शाबाशी दी. मेरी हिम्मत वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने खुश हो कर सब को एक इंपोर्टेड सिगरेट पिला दी. फिर मैं घर जाने के लिए मुड़ा, लेकिन कुछ सोच कर रुक गया. घर पहुंचते ही कैसा हंगामा होगा, इस का अंदाजा था मुझे. यही सब सोच कर दिनभर घर लौटने की मेरी हिम्मत न हुई.

पूरा दिन अपनी साइकिल पर सवार शहर के चक्कर काटता रहा. सोचा कि चलो लगेहाथ फिल्म देख डालें. लेकिन जब जेब में हाथ डाला तो पता चला कि टिकट के पैसे नहीं हैं. दोस्तों को इंपोर्टेड सिगरेट जो पिला दी थी.

शाम को अंधेरा होने के बाद मैं डरतेडरते घर में दाखिल हुआ. मम्मी और डैडी बड़े कमरे में बैठे थे. उन के गंभीर चेहरों से साफ जाहिर था कि उन को अंजली दीदी से पता चल गया था कि मैं सिगरेट पीता हूं. वे मेरी राह देख रहे थे. मम्मी के पीछे अंजली दीदी खड़ी थीं और उन के होंठों पर चिपकी हुई जहरीली मुसकान, नुकीले कांटे की तरह चुभ रही थी मुझे. मैं समझ रहा था कि डैडी अभी उठ कर मेरे पास आएंगे और दोचार भारीभरकम थप्पड़ रसीद करेंगे मुझे. लेकिन उन्होंने शांत आवाज में मुझे अपने पास बुला कर बिठाया. हमारे परिवार में कोई किसी किस्म का भी नशा नहीं करता था, न सिगरेट न शराब और न ही तंबाकू वाला पान. फिर मुझे यह लत कैसे लगी, इस बात का बड़ा अफसोस था उन्हें.

काफी देर तक वे मुझे सिगरेट के नुकसान समझाते रहे. यह कह कर डराया भी कि एक सिगरेट पीने से इंसान की उम्र 15 दिन कम हो जाती है. मैं बड़ी विनम्रता से सिर झुकाए उन की बातें सुनता रहा. मन ही मन यह भी सोचता रहा कि अंजली दीदी से बदला कैसे लिया जाए? जब अदालत का समय समाप्त हुआ तब मैं ने डैडी को वचन दिया कि आज के बाद मैं सिगरेट छुऊंगा तक नहीं. डैडी ने खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाई और 500 रुपए का नोट मेरे हाथ में थमा कर कहा, ‘इस के फल खरीद कर ले आओ और रोज खाया करो. अपनी सेहत का खयाल रखो.’

अंजली दीदी ने मिर्च लगाई, ‘डैडी, आप देख लेना, 500 रुपए यह धुएं में उड़ा देगा.’ अब मैं ने अपनेआप को वचन दिया, ‘अंजली दीदी को सबक सिखा के रहूंगा.’ लेकिन वे इतनी चालाक थीं कि हर बार बच कर निकल जातीं.

मुश्किल से 3 दिन मैं ने अपने वादे पर अमल किया. मेरे दोस्त सिगरेट फूंकते तो उस की खुशबू सूंघ कर ही मैं इत्मिनान कर लेता. लेकिन फिर मुझ से सब्र न हुआ और चौथे दिन पूरी डब्बी खरीद कर फूंक डाली. सिगरेट पीने वाले जानते हैं कि जब तलब लगती हैं तब इंसान बेचैनी से कैसे फड़फड़ाता है.

कालेज की छुट्टियां शुरू हो गईं. गरमियों के दिन थे और लू चलती थी, इसलिए बाहर जाने का मन नहीं करता था. एक दिन दोपहर में जब सब सो रहे थे, मौका देख कर मैं चुपचाप बाथरूम में गया, अंदर से कुंडी लगाई और सिगरेट सुलगा ली. बड़े आराम से कमोड पर बैठ कर सिगरेट पीता रहा और सोचा, ‘वाह, क्या जगह ढूंढ़ निकाली है मैं ने.’ लेकिन जब बाथरूम से निकलने के लिए दरवाजा खोलने लगा तो दिल धक से रह गया. किसी ने बाहर से कुंडी लगा दी थी. हमारे बाथरूम का एक दरवाजा आंगन की तरफ खुलता था, मैं ने वह खोलना चाहा लेकिन उस की भी बाहर से कुंडी लगी हुई थी. दरवाजा खटखटा कर मैं ने जोर से पुकारा तो बाहर से अंजली दीदी की आवाज आई, ‘बदतमीज, तुम कभी नहीं सुधरोगे. तुम्हारी यह हिम्मत कि घर में भी सिगरेट पीना शुरू कर दिया. अब डैडी ही आ कर खोलेंगे यह दरवाजा.’

मैं ने बहुत मिन्नत की, माफी मांगी, कसमें भी खाईं लेकिन दीदी का दिल नहीं पसीजा. मदद के लिए मैं ने मम्मी को पुकारा लेकिन उन्हें भी मुझ पर तरस नहीं आया. चीख कर बोलीं, ‘तेरी यही सजा है.’

शाम को डैडी ने घर लौट कर जब दरवाजा खोला तब तक मैं बाथरूम की गरमी से निढाल हो चुका था. तिस पर डैडी ने आव देखा न ताव, गिन कर पूरे 4 थप्पड़ मेरे मुंह पर जड़ दिए. 1 घंटे तक मम्मी की डांट सुननी पड़ी सो अलग. सिर्फ अंजली दीदी ही नहीं, पूरा घर मेरा दुश्मन बन चुका था. उन्होंने सोचा कि इतने थप्पड़ खाने के बाद अब मैं सुधर जाऊंगा, लेकिन मैं भी बहुत जिद्दी हूं. तपती हुई धूप में घर से बाहर जा कर सिगरेटें फूंकता रहता.

एक दिन डैडी ने मुझे रास्ते के किनारे सिगरेट पीते हुए देख लिया. उसी वक्त मुझे गाड़ी में बिठा कर अपने साथ ले गए और घर से थोड़े फासले पर गाड़ी रोक कर बोले, ‘लोग सारी जिंदगी सिगरेट पीने के बाद भी यह आदत छोड़ देते हैं. फिर तुम क्यों नहीं छोड़ सकते यह गंदी आदत? तुम्हें जो चाहिए वह तुम्हें मिलेगा, बस तुम सिगरेट पीना छोड़ दो.’

उसी समय सामने वाली सड़क पर चमचमाती हुई मोटरबाइक आ कर रुकी. ललचाई नजरों से बाइक को देखते हुए मैं ने डैडी से कहा, ‘मुझे मोटरबाइक दिला दीजिए, मैं सिगरेट पीना छोड़ दूंगा.’ मुझे पूरा यकीन था कि डैडी इनकार कर देंगे. लेकिन मैं हैरत से चक्कर खा गया जब डैडी ने बड़े ही शांत लहजे में कहा, ‘अगर तुम इसी शर्त पर सिगरेट छोड़ोगे तो मुझे तुम्हारी यह शर्त भी मंजूर है.’

जिस दिन मोटरबाइक मेरे हाथ आई उस दिन अपने 2 यारों को साथ बिठा कर पूरे शहर में उड़ता फिरा और फिर जश्न मनाने हम पांडेजी की दुकान पर पहुंच गए. कोल्ड ड्रिंक के बाद सिगरेट और पान के बाद फिर सिगरेट. बुरा भी लग रहा था कि डैडी को धोखा दे रहा हूं लेकिन फिर अपने मन को समझाया कि बस यह आखिरी सिगरेट है, इस के बाद नहीं पीऊंगा. लेकिन फिर हर सिगरेट आखिरी सिगरेट बनती गई और यह सिलसिला चलता रहा.

मम्मी और डैडी अंजली दीदी की शादी को ले कर काफी चिंतित रहा करते थे. मैं भी दुआएं मांगता था कि यह बला जल्दी टले ताकि मुझे भी आजादी मिले. चंद महीनों की तलाश के बाद एक मुनासिब रिश्ता आया और अंजली दीदी का ब्याह तय हो गया. हमारे घर में यह पहली शादी थी इसलिए खूब धूम मची हुई थी. ब्याह के लिए जेवरात और कपड़ों की खरीदारी शुरू हो गई. उस गहमागहमी और खुशी के माहौल में मेरा जुर्म सब भूल गए. अंजली दीदी भी मुझ से हंसहंस कर बात करने लगीं. छोटेबड़े हर काम के लिए मेरी खुशामद करतीं, कभी चंदू भाई टेलर तो कभी मगन भाई सुनार के पास जाना होता और मैं दौड़दौड़ कर वे सारे काम कर देता. अब वे अपनेआप में इतनी मगन रहतीं कि मैं अपने कमरे में बैठ कर सिगरेट फूंकता तब भी उन्हें पता न चलता.

घर के आंगन में बरातियों के लिए शामियाना लगाया गया. रौनक बढ़ाने के लिए रंगबिरंगे फूल और नीलेपीले बल्ब भी लगाए गए. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आने लगा, रिश्तेदारों और मेहमानों की चहलपहल बढ़ने लगी. कोई सहारनपुर से तो कोई भोपाल से. अंजली दीदी की सहेलियों ने तो घर पर धावा ही बोल दिया था. स्कूल से ले कर कालेज तक की सारी सहेलियां मौजूद थीं. दिन भर उन के हंसने और खिलखिलाने की आवाजें घर में गूंजती रहतीं. मैं शादी की भागदौड़ में मसरूफ रहता, लेकिन इस बीच जब कोई सुंदर चेहरा नजर आता तब थोड़ी सी थकान दूर हो जाती.

जिस कमरे में अंजली दीदी हलदी की रस्म के बाद बैठी थी, वहां से नाचगाने और ढोलक की आवाजें आतीं और मैं छिप कर झरोखे से उन्हें निहारता रहता. लड़कियां झूमझूम कर नाचतीं और मधुर गीत गातीं. उन सब में एक लड़की बहुत सुंदर थी. पता चला कि उस का नाम बांसुरी है. वह भोपाल से आई है और डैडी के एक दोस्त की बेटी है. उस का कद लंबा था, रंग सांवला, लंबीलंबी पलकें, बहुत ही आकर्षक चेहरा, छुईमुई जैसी इतनी प्यारी कि छू लेने को दिल चाहे.

रोज की तरह उस दिन भी जोरजोर से नए फिल्मी गाने बज रहे थे और आंगन में बच्चे नाच रहे थे. बच्चों ने जिद की तो मैं भी उन के साथ नाच में शामिल हो गया. नाचतेनाचते मैं खो गया और मन की आंखों से सोचने लगा कि बांसुरी इन गानों पर नाचती हुई कैसी दिखेगी. अचानक किसी की आवाज आई, ‘ओ भाईसाब, यह क्या हो रहा है?’

मैं ने आंखें खोल कर देखा तो चौंक पड़ा. बांसुरी मेरे सामने खड़ी थी. मैं ने सोचा कि मैं सपना देख रहा हूं और मैं ने फिर से आंखें बंद कर लीं. इस बार उस ने मेरे कंधे पर हलकी सी चपत लगाई और बोली, ‘नींद में हो क्या? मैं तुम से कह रही हूं.’

मैं ने बहुत नरमी से पूछा, ‘कुछ काम है मुझ से?’ वह तुनक कर बोली, ‘ये कैसे गाने लगा रखे हैं जिन की एक लाइन भी समझ में नहीं आती. यों लगता है जैसे दीवाली के पटाखों से डर कर कोई कुत्ता भौंक रहा है. मीठेमीठे पुराने गाने बजाओ. और ये जो नए गाने हैं न, ये तुम अपनी शादी में बजाना.’

वह पलट कर जाने लगी तो मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘एक शर्त पर, जिस दिन मेरा ब्याह तुम्हारे साथ होगा उस दिन तुम्हारी पसंद के गाने बजेंगे, बल्कि तुम कहो तो मैं तुम्हें पुराने गाने गा कर भी सुनाऊंगा.’

उस ने घूर कर देखा और मेरा हाथ झटक कर वह भाग गई, लेकिन फिर दरवाजे के पास जा कर मुड़ी और मुसकरा कर मुझे देखने लगी. मेरा दिल इतने जोर से धड़का जैसे अभी उछल कर बाहर आ जाएगा. यह दिल कम्बख्त है ही ऐसी चीज. जरा सी खुशी मिली नहीं कि धड़कने लगता है, वह भी जोरों से.

जब पुराने गीत बजने लगे तब मैं उसे झरोखों से छिपछिप कर देखता रहा. वह बारबार कनखियों से मुझे देखती और लहरालहरा कर नाचती रही. उस ने महफिल में ऐसा रंग जमाया कि मम्मी ने कहा, ‘तेरा ब्याह जल्द हो जाए और ऐसा पति मिले जो तुझे हमेशा खुश रखे.’ वह मेरी ओर देख कर धीरे से मुसकराई और उस रात मैं उसी के सपने देखता रहा. सपने में वह मेरी दुलहन थी और मैं उस का दूल्हा.

अगले दिन बड़ी चहलपहल थी. अंजली दीदी का ब्याह होना था. घर के पिछवाड़े हलवाई खाना बना रहे थे. डैडी ने मेरी ड्यूटी वहां लगा दी थी. बांसुरी अचानक वहां आ धमकी और मुझे देख कर बोली, ‘अंजली दीदी का संदेशा लाई हूं तुम्हारे लिए. उन्होंने कहा है, नमकमिर्च का खयाल रखना, अगर जरा भी ऊंचनीच हो गई न, तो तुम्हारी खैर नहीं.’

बांसुरी की आवाज में ऐसी खनक थी कि वह गाली भी दे तो मीठी लगे. मैं ने मुसकरा कर पूछा, ‘तुम्हें खाना पकाना आता है या नहीं?’

उस की भवें तन गईं, ‘क्यों पूछ रहे हो?’

मैं शरारत से बोला, ‘बड़ी खास वजह है इसीलिए पूछ रहा हूं. वैसे तुम्हें यह भी बता दूं कि अगर तुम्हें खाना पकाना नहीं आता हो तब भी चिंता की कोई बात नहीं. जब हमारा ब्याह हो जाएगा तब इन बेचारे हलवाइयों को अपने घर में नौकरी दे देंगे तो इन की रोजीरोटी का बंदोबस्त भी हो जाएगा.’

वह जोर से हंसी, ‘तुम से ब्याह करे मेरी जूती.’

बैंड बाजे के साथ बरात आई तो हर कोई दूल्हे को देखने बरामदे में आ गया. धक्कामुक्की और आपाधापी में पता ही नहीं चला कि बांसुरी चुपके से आ कर कब मेरे पास खड़ी हो गई. नरमनरम गुदाज जिस्म मेरी बांह से टकराया तो मैं ने चौंक कर उसे देखा. लेकिन वह ऐसी अनजान बन गई जैसे उस ने मुझे देखा ही न हो. मौके का फायदा उठा कर मैं ने उस का हाथ मजबूती से अपने हाथ में पकड़ लिया. पहले तो उस ने अपने दोनों हाथ अपने दुपट्टे में छिपा लिए फिर मेरे बाजू पर ऐसी खतरनाक चुटकी काटी कि मेरे मुंह से आह निकल गई.

समय अपनी गति से चलता रहा. शामियाने में पंडितजी के मंत्र गूंजने लगे. ब्याह के फेरों का समय हो चला था. अपनी सहेलियों से घिरी अंजली दीदी धीरेधीरे शामियाने की ओर बढ़ने लगीं. जरीदार साड़ी और गहनों में लिपटी हुई कितनी सुंदर लग रही थीं मेरी दीदी. मैं उन्हें एकटक देखता रहा और यह सोच कर कि अब वे इस घर से चली जाएंगी, मेरी आंखें डबडबा गईं. उन्होंने मुझे मम्मीडैडी से बहुत डांट खिलवाई थी, पिटवाया भी था मुझे, ताने भी दिए थे, लेकिन हैं तो आखिर मेरी बहन. अचानक डैडी की आवाज मेरे कानों में गूंजी, ‘यह क्या हुलिया बना रखा है तुम ने? अभी तक तैयार नहीं हुए? जाओ, कपड़े बदल कर आओ.’ मैं सरपट अपने कमरे की तरफ भागा.

कमरे में दाखिल होते ही मैं ठिठक गया. बांसुरी अलमारी के आईने के सामने खड़ी हो कर जेवर पहन रही थी. मुझे देख कर वह जरा भी नहीं चौंकी बल्कि डांट कर बोली, ‘यह क्या मुंह उठाए चले आ रहे हो? इतनी भी तमीज नहीं कि दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आओ.’ उसे वहां देख कर मेरे होशोहवास तो जैसे गुम हो गए थे. वह बला की हसीन लग रही थी, जैसे आसमान से उतर कर कोई अप्सरा धरती पर आ गई हो. मैं बेशर्मी से उसे घूरता रहा और मैं ने पहली बार देखा कि वह भी कुछ सकपका सी गई है. मैं धीरेधीरे उस के नजदीक गया और घुटी हुई आवाज में बोला, ‘तुम कितनी सुंदर हो, मैं ने आज तक इतनी सुंदरता कहीं नहीं देखी.’

अपनी तारीफ सुन कर उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गई. वह अपनी जगह से नहीं हिली, बस मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे देखती रही. बेखुदी के आलम में मैं उस की ओर खिंचता चला गया, इतने पास कि उस की गर्म सांसें अपने गालों पर महसूस करने लगा. उस के होंठ धीरे से खुले और उस ने अपनी आंखें मूंद लीं. मेरे शरीर में कंपकंपी सी होने लगी. ऐसी कैफियत मैं ने पहले कभी महसूस नहीं की थी. मैं ने अपने दोनों हाथ उस के कंधों पर रखे और मैं उस के होंठों को चूमने ही वाला  था कि वह अचानक पीछे हटी, ‘तुम सिगरेट पीते हो?’

पहले तो मेरी समझ में नहीं आया कि वह बोल क्या रही है. मैं हक्काबक्का सा उसे देखता रहा और वह गुस्से से बोली, ‘दूर हटो मुझ से. नफरत है मुझे सिगरेट पीने वालों से. कितनी गंदी बदबू आ रही है तुम्हारे मुंह से.’

मैं इस अचानक हमले से संभल भी नहीं पाया था कि वह कमरे से बाहर चली गई और मैं सिर झुकाए शर्मिंदा सा वहीं खड़ा रह गया.

अगले दिन वह भोपाल वापस चली गई.

वह दिन और आज का दिन, मैं ने सिगरेट कभी नहीं पी. आज भी जब कोई मेरे सामने सिगरेट सुलगाता है तो मेरा मन करता है कि उस के हाथ से सिगरेट छीन कर दो कश लगा लूं, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं, क्योंकि उस हादसे के बाद जब मैं बांसुरी से मिलने भोपाल पहुंचा तो बांसुरी इसी शर्त पर मुझ से शादी करने के लिए राजी हुई कि मैं सिगरेट कभी नहीं पीऊंगा. अब आप ही बताइए, जिस लड़की को पाने की खातिर मैं ने अपना दिल-ओ-जान कुरबान कर दिया था, उस की खातिर क्या मैं सिगरेट की कुरबानी नहीं दे सकता?

Raksha Bandhan: भाई के लिए कुछ बनाना चाहती हैं स्पैशल, तो ट्राई करें ये टेस्टी रसकदम

भाई बहन का सबसे बड़ा त्योहार, रक्षाबंधन. ऐसा दिन जब भाई-बहन अपने सारे तकरार भूल प्यार के रंग में रंग जाते हैं. यही वह दिन है जिसका एक बहन को बेसब्री से इंतजार होता है. यूं तो हर रक्षाबंधन आप अपने भाई का मुंह मीठा कराती होंगी, अपने भाई के लिए बाजार से मिठाई लाती होंगी. इस रक्षाबंधन आप कुछ अलग करें.

अपने भाई के लिए अपने हाथों से रसकदम बनाइए. बेशक आपकी बनाई हुई मिठाई खा कर आपका भाई आपके तारीफों का पुल बांध देगा और आप दोनों के बीच का रिश्ता और गहरा हो जाएगा. तो इस रक्षाबंधन जरूर बनाएं रसकदम. इसे खोया कदम या क्षीरकदम भी कहते हैं.

हमें चाहिए

मावा – एक कप (250 ग्राम)

चीनी पाउडर – आघा कप से थोड़ी अधिक (100 ग्राम)

पनीर – एक कप क्रम्बल किया हुआ (200 ग्राम)

चीनी – तीन चौथाई कप (150 ग्राम)

कार्न फ्लोर – दो छोटे चम्मच

नीबू – एक नीबू का रस

पीला कलर – एक पिंच

केसर – 10-12 धागे

फूल क्रीम दूध – पांच सौ ग्राम

बनाने का तरीका

रसकदम बनाने के लिए सबसे पहले छेना बनाकर तैयार कर लीजिए. दूध गरम होने के लिए रख दीजिए. जब दूध में उबाल आ जाए तो गैस बंद कर दीजिए और दूध को थोड़ा सा ठंडा होने दीजिए. दूध के 80 प्रतिशत गरम रह जाने पर, नींबू के रस में 2 चम्मच पानी मिला कर, थोड़ा-थोड़ा डालते हुये मिलाइये. दूध पूरी तरह से फट जाए तो दूध में से पानी अलग तथा छेना अलग हो जाता है. तब आप नींबू का रस डालना बंद कर दीजिए.

छेना को एक साफ कपड़े, सूती कपड़े में डाल कर छान लीजिए, हाथ से दबा कर सारा पानी निकाल दीजिये. तथा छेना के ऊपर ठंडा पानी डाल दीजिए. ऐसा करने से इसमें से नींबू का सारा स्वाद हट जाएगा. कपड़े को चारों तरफ से हाथों से उठाकर दबाते हुए छेनाका सारा पानी निकाल दीजिए. रसगुल्ले बनाने के लिए छेना तैयार हो चुका है.

छेना को अलग थाली में निकाल लीजिए. और हाथों से मसल-मसलकर चिकना कीजिए. कार्न फ्लोर और पीला रंग डालिये और मिलाते हुए, छेना को मलिये और चिकना कर लीजिए. रसगुल्ले बनाने के लिए छेना तैयार है. छेना से छोटे-छोटे गोले बनाकर कर थाली में रखते जाइए. सारे गोले बना लीजिये.

कुकर में चीनी और 2 कप पानी डालकर उबलने के लिए रख दीजिए, चीनी को पानी में घुलने तक पका लीजिये, चाशनी में केसर के धागे डाल दीजिये और चाशनी में उबाल आने दीजिये.

उबलती चाशनी में छेना से बने हुए गोले डाल दीजिए. कुकर को बन्द कर दीजिए और 1 सीटी आने तक पकने दीजिए. सीटी आने के बाद गैस को धीमा कर दीजिए और रसगुल्लों को धीमी मीडियम आंच पर 8-10 मिनिट पकने दीजिए. इसके बाद गैस बंद कर दीजिए और कुकर का प्रैशर समाप्त होने पर रसगुल्लों को निकालें.

रसगुल्लों को 2-3 घंटे तक चाशनी में ही रहने दीजिए इसके बाद इन्हें छलनी की मदद से छान लीजिए ताकि सारी चाशनी निकल जाए. पनीर को कद्दूकस कर लीजिए और कढा़ई में डालकर लगातार चलाते हुए भून लीजिए. पनीर ड्राई होकर हल्का ब्राउन हो जाने पर गैस बंद कर दीजिए और भुने पनीर को प्लेट में निकाल लीजिये.

कद्दूकस किए हुए मावा में पाउडर चीनी डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. अब मावा से लड्डू के आकार के लगभग 11 छोटे-छोटे गोले तोड़ लीजिए. एक गोले को उठा कर इसको चपटा करके बढा़ थोड़ा बड़ा कर लीजिये. फिर इसमें एक रसगुल्ला रखकर चारों ओर खोया से बंद करके गोल लड्डू का आकार दे दीजिए.

इस गोले को भूने पनीर पर लपेट कर थाली में रख दीजिए सारे रसकदम इसी तरह बनाकर तैयार कर लीजिए. रसकदम को 1 घंटे के लिए फ्रिज में रख कर उसके बाद सर्व कीजिए.

Raksha Bandhan: मत बरसो इंदर राजाजी- क्या भाइयों ने समझा ऋतु का प्यार

भाई की चिट्ठी हाथ में लिए ऋतु उधेड़बुन में खड़ी थी. बड़ी  प्यारी सी चिट्ठी थी और आग्रह भी इतना मधुर, ‘इस बार रक्षाबंधन इकट्ठे हो कर मनाएंगे, तुम अवश्य पहुंच जाना…’

उस की शादी के 20 वर्षों  आज तक उस के 3 भाइयों में से किसी ने भी कभी उस से ऐसा आग्रह नहीं किया था और वह तरसतरस कर रह गई थी.  उस की ससुराल में लड़कियों के यहां आनाजाना, तीजत्योहारों का लेनादेना अभी तक कायम था. वह भी अपनी इकलौती ननद को बुलाया करती थी. उस की ननद तो थी ही इतनी प्यारी और उस की सास कितनी स्नेहशील.  जब भी ऋतु ने मायके में अपनी ससुराल की तारीफ की तो उस की मंझली भाभी उषा, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहती थीं, कहने लगीं, ‘‘जीजी, ससुराल में आप की इसलिए निभ गई क्योंकि आप की सासननद अच्छी हैं, हमारी तो सासननदें बहुत ही तेज हैं.’’

उषा भाभी को यह भी ज्ञान नहीं था कि वह किस से क्या कह रही थीं और छोटी बहू अलका मुंह में साड़ी दबा कर हंस रही थी.

ऋतु अंगरेजी साहित्य से एमए कर के पीएचडी कर रही थी कि उस का विवाह अशोक से हो गया था. अशोक एक निजी कंपनी में इंजीनियर था. उसे अच्छा वेतन मिलता था. पिता भी मुख्य इंजीनियर पद से जल्दी ही सेवानिवृत्त हुए थे. ऋतु देखने में सुंदर, सुसंस्कृत व परिष्कृत विचारों की लड़की थी. उस से चार बातें करते ही उस के भावी ससुर ने ऋतु के पिता से उसे मांग लिया था, ‘‘मेजर साहब, हमें आप की लड़की बहुत पसंद है…’’

इतना संपन्न परिवार पा कर ऋतु के मातापिता तो फूले नहीं समाए और फिर ऋतु बहू बन कर अशोक के घर आ गई.

ऋतु अपनी ससुराल में सुखी थी. वह जब भी मायके जाती तो एक न एक कटु अनुभव अपनी झोली में भर ले आती. उस के पिता ने सेवानिवृत्त होतेहोते एक घर बना लिया था. न जाने क्यों उस की मां की इच्छा एक बड़ा सा घर बनाने की रही और पिता ने अपनी सारी जमा पूंजी उस में लगा दी. रहीसही रकम सब से छोटी बहन उपमा की शादी में खर्च हो गई.

पिताजी कहा करते, ‘‘मेरे 3-3 बेटे हैं, दहेज तो मैं ने लिया नहीं, बुढ़ापा इन्हीं के सहारे कट जाएगा. मरूंगा तो लाखों की जायदाद इन्हें सौंपूंगा,’’ और गर्वपूर्वक अपनी दोमंजिली इमारत निहारा करते. शुरूशुरू में पिताजी की पैंशन और तीनों लड़कों का कुछ न कुछ सहारा रहा, पर धीरेधीरे उन के उत्तरदायित्वों का दायरा बढ़ गया और उन के हाथ सिमट गए.

बड़े भाई अच्छी जगह पर थे, पर उन की बीवी बेहद खर्चीली थी. जब देखो तब घर में खर्चे को ले कर कलह…भाई अम्मा से कहते, ‘‘तुम्हीं पसंद कर के लाई थीं…गोरे रंग पर लट्टू हो कर…’’

भाभी को शिकायत होती, ‘‘मैं गंवारों की तरह रहना पसंद नहीं करती.’’ इशारा मेरठ जैसे छोटे शहरवासियों की ओर था. भाभी का मायका दिल्ली में था. भाई की मोटी तनख्वाह भाभी की फरमाइशों की सूची के सामने कम पड़ जाती. सोने पर सुहागा बेटा पढ़ाई में जीरो, पर मोटरसाइकिल उसे 9वीं कक्षा में ही चाहिए थी और अब 20वें साल में पहुंच कर तो मारुति के बिना शान कम.

मंझला भाई फौज में कर्नल था पर भाभी मगज से कुछ फिरी हुई थी, वह अपनी ससुराल में कभी 2 दिन से ज्यादा ठहरी ही नहीं…या तो मां घर के बाहर अनशन पर या बहू टैक्सी ले कर मायके रवाना हो जाती.

शुरूशुरू में बेटे का मन करता कि उस की पत्नी मांबाप की सेवा करे, सो कहसुन कर छुट्टियों में घर ले आता, पर आते ही घर में जो महाभारत छिड़ती तो मां कहतीं, ‘‘मेरी सेवा का खयाल छोड़…तू अपनी बीवी को ले कर जा.’’

हताश भैया बिना खुला बोरियाबिस्तर ढो कर चल देते. 5-7 वर्ष प्रयत्न किया फिर लगभग लाना ही छोड़ दिया. भाभी आतीं तो बस इतनी देर को मानो पड़ोसियों से मिलने आई हों.

कुसूर मां का भी था, उन का परहेज उन्हें डरा देता, ‘‘और तो सब मंजूर है पर यह गंदे कपड़ों में ठाकुरद्वारे में घुस कर मेरा धरम खराब कर देती है. तब रहा नहीं जाता,’’ ऋतु के सामने मां कहतीं.

इतना सुनते ही उषा भाभी बिफर पड़तीं और कुछ अंगरेजी में तो कुछ हिंदी में भैया से कहतीं. भाभी की बेशर्मी मां को आगबबूला कर देती और भैया उन्हें ले कर चले जाते.

अकसर ऋतु मां को समझाती, ‘‘अम्मा, इन्हें अपनाने से ही घर में सुख मिलेगा. तुम और पिताजी यहां अकेले रहते हो…बहू और बच्चे आएंगे तभी तो चहलपहल होगी.’’

कोशिश तो दोनों पक्ष करते, आगे बढ़ते, पर कहते हैं कि जब संस्कार ही मेल न खाते हों तो कोई क्या कर सकता है.

छोटी बहू ऋतु से लगभग 10 साल छोटी थी. ऋतु उसे छोटी बहन के समान प्यार करती. छोटा भाई डाक्टर था और अच्छी- खासी प्रैक्टिस जमी थी. पैसे का अभाव नहीं था. मेरठ से कुल 1 घंटे का रास्ता था. मोदीनगर में उस का अपना दवाखाना था. पिताजी ने चाहा था कि मोहन मेरठ में प्रैक्टिस करे पर उस की पत्नी अलका वहीं स्थानीय कालेज में प्रवक्ता थी, अत: वहीं पर किराए का एक मकान ले कर रहता था. उस की 2 प्यारी सी बेटियां थीं जो बड़ी बूआ की लाड़ली थीं.

ऋतु का स्नेह इस परिवार से कुछ अधिक ही था. ये लोग यदाकदा आ भी जाते थे और अपने बच्चों को भेज भी देते थे. बड़े भाई के बेटे को तो शायद ठीक से अपनी दोनों बूआ के बच्चों के नाम व उम्र भी ज्ञात नहीं थी. मंझले भैया फौजी नौकरी में कभी पूना, कभी असम तो कभी कश्मीर, इतने छितर गए थे कि 5-5 साल हो जाते भाईबहनों को मिले.

सब से छोटी थी बहन उपमा, जो शादी के हफ्ते भर बाद ही अमेरिका चली गई थी. उस के ससुराल वाले भी वहीं जा बसे थे. जब तक पिताजी जिंदा थे, ऋतु को मायके की इतनी चिंता नहीं थी, पर 2 साल पहले वे चल बसे. इतने बड़े घर में मां अकेली रह गईं. ऋतु अपने पिता की सब से चहेती संतान थी और ऋतु के आंसू आज तक सूखे नहीं थे.

समय की रफ्तार ने मां को एकाकी बना दिया और मोहन व अलका में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया था. पैसा कमाने की अंधी भूख ने डाक्टर मोहन का समय खा लिया था. 30 वर्ष की उम्र में ही सिर के सारे बाल पक गए थे, उधर अलका बेटियों के लिए धन से खुशियां खरीदने की खातिर रुपयों की चिनाई कर रही थी. उस का तर्क था, ‘‘अपनी बेटी को संपन्न घर व योग्य वर दिलवाने में कम से कम 5-10 लाख तो चाहिए ही. डाक्टरों के बेटेबेटी के विवाह में इतना ही खर्च आता है, अपने स्तर के अनुकूल ब्याहना…’’

यह दलील मां को अरुचिकर लगती और ऋतु के कानों में सीसा उड़ेल जाती. बेटी तो उस की भी 2 हैं पर उस ने तो 10-5 लाख न जोड़े हैं न जोड़ेगी. वह अलका से कहती, ‘‘विवाह स्नेह बंधन है, व्यापार नहीं. बेटी के लिए घरवर खरीदा नहीं, तलाशा जाता है.’’

ऋतु आजकल सारा दिन उद्विग्न रहती. उसे बेचैन व छटपटाता देख कर अशोक व उस की सास कहते, ‘‘जाओ, मेरठ हो आओ,’’ पर वह कम से कम मेरठ जाती. पिछली बार जब वह गई तो 2 पीढ़ी से काम कर रही आया की लड़की शकु उस के पैरों के पास आ कर बैठ गई थी. अम्मा ने ऊपर का हिस्सा किराए पर चढ़ा दिया था. हजार रुपए वह और पिताजी की आधी पेंशन, अम्मा के नियमित जीवन के लिए काफी थी. अभाव था तो स्नेह बेल के फूलों की महक का, जो उस चारदीवारी से रूठ गई थी.

आया का परिवार वहीं गैरेज में रहता था, वही उन का घर था. बूढ़ी आया तो मर गई थी, पर उस की बेटी शकुंतला, दामाद कन्हैया अम्मा की सेवाटहल किया करते थे. यही दोनों अब अम्मा की आंख, कान, हाथ और पैर थे.

शकु ने बताया, ‘‘जीजी, इस बार बड़े भैया गैरेज खाली करने को कह गए हैं.’’

ऋतु तो सकते में रह गई यह सुन कर. शकु और बाहर जमा हुआ जामुन का पेड़ एक ही उम्र के थे. उन सब ने मिल कर खट्टी कमरख, मीठे लंगड़े आम के बिरवे रोपे थे. उन्हें यहां से निकालने का अर्थ… ऋतु ने साफ समझा…गैरेज के सामने ईंटों की सड़क के नीचे तक जमी जड़ें उखाड़ने में कोठी की नींव हिल जाएगी.

‘‘मां से कहा,’’ ऋतु ने पूछा.

‘‘नहीं जीजी, मैं ने तो उन्हें कुछ नहीं बताया. तुम्हारा इंतजार कर रही थी…’’

‘‘अच्छा, मैं बात करूंगी,’’ आश्वासन दे दिया था ऋतु ने.

बड़े भैया से जिक्र किया तो वे बोले, ‘‘जानती हो 200 गज जमीन पर पैर फैलाए बैठे हैं ये लोग, हथिया लेंगे. मां तो कुछ देखती ही नहीं, नुकसान तो हमारा होगा…’’ इतनी हमदर्दी जमीन के टुकड़े से और मां के बचेखुचे जीवन के प्रति कितने उदासीन. ऋतु का मन फट गया. पिताजी के दुख में जब उपमा अमेरिका से आई थी तो चलतेचलते उस ने रोरो कर कहा था, ‘‘देख लेना जीजी, हमारे भाई मां के दिल पर बोझ ही बोझ डालेंगे.’’

उपमा मुंहफट थी. जब भी अमेरिका से आती भाईभाभियों से कहासुनी हो ही जाती. पिताजी के जीतेजी एक बार जब वह सपरिवार आई तो मां ने उसे लाड़प्यार से, उपहारों से लाद दिया. सूटकेस में कपड़े सजाते हुए बडे़ भाई व भाभी को मां की दी साड़ी दिखा कर बोली, ‘‘यह सिल्क की साड़ी देख कर मेरी सहेलियां जल जाएंगी, हाय कितनी सुंदर है,’’ पर बड़ी भाभी के मुख पर छिटक आई नफरत की बदली ऋतु ने देख ली थी.

भाई ने अचानक कह दिया, ‘‘मां को चाहिए कि दीवाली की साड़ी सिर्फ अपनी बेटियों को न दे कर तीनों बहुओं को भी दिया करें.’’

उपमा के हाथों से साड़ी गिरतेगिरते बची. सहज हो कर उस ने कटाक्ष किया, ‘‘तब तो मां ने जो 3 हिस्सों में जेवर बांटा है हमें भी मिलना चाहिए था.’’

‘‘उपमा, बड़े भाई से ऐसे बात की जाती है?’’ ऋतु ने डांटा था.

‘‘बड़ा भाई भी छोटी बहन को मां से मिली स्नेहगठरी पर तीर नहीं चलाता,’’ और उपमा ने अच्छाखासा हंगामा खड़ा किया. बात मां तक जातेजाते बची वरना मां बहुत गरममिजाज थीं. हवाईअड्डे पर उपमा बहुत रोई थी, ‘‘जीजी, मां की याद आती है…’’

और अभी कुछ दिन पहले उपमा की चिट्ठी ने ऋतु का सुखचैन छीन लिया था. उस ने लिखा था, ‘‘जीजी, पिछले साल की राखी और भैयादूज दोनों पर टीके भेजे पर किसी भाई ने जवाब नहीं दिया. मां भी न रहीं तो मैं तो वैसे ही विदेशी हूं. मेरा बचपन, मेरा घरआंगन छिन जाएगा. तुम मेरी तरफ से मां से कहना कि बराबर का हिस्सा नहीं लेकिन एक कमरा और बाथरूम मेरे नाम लिख दें, मेरे तो ससुराल वाले भी घर और खेत बेच कर अमेरिका आ गए हैं. मैं नहीं चाहती कि भारत से मेरी जड़ें ही उखड़ जाएं.’’

ऋतु जितनी बार यह चिट्ठी पढ़ती, उतनी बार बेचैन हो उठती. वह जानती थी कि मां चाहें अपनी बेटियों को कितना भी प्यार करें पर जहां तक पुश्तैनी मकान व पिता की संपत्ति का संबंध है, वहां उत्तराधिकारी उन के बेटेपोते ही हैं. जायदाद में हिस्सा मांगने वाली बेटी, अम्मा के समाज में ‘नालायक’ समझी जाती है.

पड़ोस वाली चाची कह तो रही थीं एक दिन. वे सदैव ऋतु से बातें करती थीं, ‘‘कैसा जमाना आ गया है, 20 नंबर वाले राजन बाबू की चारों बेटियों ने बाप से हिस्सा मांग लिया. यह भी नहीं सोचा कि इकलौता भाई दिल का मरीज है, 4-4 बच्चों का बाप, ऊपर से स्कूल के अध्यापक की तनख्वाह… बेचारा, बाप के मकान के सहारे जिंदगी गुजार रहा था.’’

‘‘सच, यह तो बड़ा बुरा किया राजन बाबू की लड़कियों ने. चारों इतने रईस घर गई हैं, एकएक पर दोदो कारें हैं,’’ ऋतु को राजन बाबू के लड़के पर बड़ी दया आई. भाई के समान ही तो थे बस्ती के सभी लड़के. पासपड़ोस की बातें करते ऋतु को यह भी याद नहीं रहा कि दीमक तो इस घर में भी लग रही है. आखिर उस ने मेरठ जाने का मन बना ही लिया.

इलाहाबाद से मेरठ तक ऋतु खयालों में डूबतीउतराती रही. शकु की बेटी जो ऋतु की बेटी अनु की हमउम्र थी, उस ने अनु से कहा था, ‘‘अनु, पता है, मंझली उषा भाभी क्या कहती थीं…कहती थीं, बड़ी ननद अपनी मां को इसलिए मक्खन लगा रही हैं कि बेटेबहुओं का पत्ता साफ कर यह कोठी हजम कर जाएं.’’

‘‘अनु, नौकरों की बात न सुनने की होती है और न विश्वास करने योग्य,’’ ऋतु ने अपनी बेटी के मुख से सुनी बात पर डांटा था. उषा भाभी फौजी की पत्नी हो कर मक्खन की लिपाई से आगे सोच ही क्या सकती हैं? ऋतु का मन आक्रोश से भर गया. पर कहते हैं न कि बिना आग के धुआं नहीं होता, अवश्य कुछ तो सुलग रहा था इस घर में. उपमा की चिट्ठी तो इस आग में घी का काम करेगी.  और मां बारबार ऋतु से कहतीं, ‘‘बैठ कर इस घर के हिस्से बंटवा जा, तेरे भाईबहन तो किसी काम के हैं नहीं.’’  उधर अशोक की हिदायतें कि मायके वालों के जमीनजायदाद के बीच मत पड़ना, वरना तुम्हारा मेरठ जाना बंद. करे तो क्या करे?

मेरठ पहुंची तो मन खुशी से भर गया. स्टेशन पर भाईभाभियां, भतीजेभतीजियां सभी आए थे. उपमा होती तो पूछ लेती, ‘‘क्या मामला है, आज गाड़ी में पैट्रोल क्या मां ने डलवाया है, वरना इतनी मेहरबानी कैसे?’’  पर ऋतु उस स्नेह की छाया में तृप्त हो गई. आज पहली बार पिताजी के बिना घर घर लग रहा था. थकेहारे बुढ़ापे के सहारे की जगह नहीं. खूब फलमिठाई और बरसों से संभाल कर रखी मां की कटलरी क्रौकरी से खाने की मेज सजी. उपमा की राखी भी मेरठ के पते पर पहुंच गई थी.  रात को सब के सोने के बाद अम्मा चुपके से ऋतु को उठा कर अपनी पूजा की कोठरी में ले गईं. घर के बंटवारे की चिंता मां को सोने नहीं देती थी.  पूजाघर में मां ने जो एक प्रस्ताव बना कर कागज पर लिखा था, उसे देख कर ऋतु को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो.

‘‘यह क्या मां, 3 की जगह, बराबर- बराबर 5 हिस्से. नहींनहीं, मुझे तुम्हारी संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं चाहिए.’’

‘‘अशोक क्या कहेंगे? मेरे ससुर ने अपने ताऊ से करोड़ों की भागीदारी में भी कुछ नहीं कहा, उन्होंने उन्हें मकान का बाहरी हिस्सा दिया. वे उसी में रहते रहे… सेवानिवृत्त होने तक.’’

ऋतु का चेहरा फक पड़ गया, ‘‘तब तो पगली भाभी की बात ठीक निकली…नहीं मां, इसे तुम बेटों में ही बांटो…’’

‘‘अरी, मुझ से ही माल लेंगी और मुझ से ही सीधे मुंह बात नहीं करेंगी.’’

‘‘जो भी हो, वे ही तुम्हारे वंशज हैं. हां, चाहो तो उपमा को…’’ और ऋतु ने उपमा  की चिट्ठी के अंश मां को सुना दिए.

‘‘ठीक है, बेटी मां से नहीं मांगेगी तो किस से मांगेगी.’’

रात भर मां और ऋतु यादों की गंगायमुना में तैरती रहीं. पिताजी को याद कर दोनों रोती रहीं. अपनी शादी से आज तक के खट्टेमीठे अनुभव याद करतेकरते कब भोर हो गई पता ही नहीं चला. पौ फटने से पहले ऋतु ने बंटवारे के कागजों का रुख मोड़ दिया था. उपमा के लिए बाहर का एक कमरा व बरामदा तथा शेष पूरा घर, दिल्ली की जमीन तीनों भाइयों में बराबर बंट गई.

‘‘और तू?’’ मां ने पूछा.

‘‘मुझे तुम्हारी यह गोद मिली रहे…और मां, मैं चाहती हूं कि जब मेरी बेटियों का ब्याह हो और औरतें मंगलाचार गाएं तो मेरे घर की दहलीज पर भाईभाभी, भतीजे- भतीजियों की बरात लग जाए. मैं भी औरतों की टोली में बैठ कर गा सकूं, ‘मत बरसो इंदर राजाजी, मेरी मां का जाया भीजै’.’’

अगले दिन, राखी टीके से पहले भाई ने ऋतु से ‘अपना हिस्सा न मांगने वाले’ कानूनी दस्तावेज पर दखत करा लिए, दस्तखत करते हुए उसे कहीं से एक राहत भरी गहरी निश्वास सुनाई पड़ी. तीनों भाभियों ने राखी के उपलक्ष्य में ऋतु को सुंदर साडि़यां भेंट कीं. उपमा की राखी भी ऋतु ने बांध दी थी. उपमा के हिस्से वाली बात मांबेटी छिपा गई थीं, इस डर से कि कहीं विदेशी बहन के भेजे स्नेहधागे तिरस्कृत न हो जाएं.

Raksha Bandhan 2024 : भाई बहन का प्यार है मीठी तकरार, रिश्ते को इस तरह बनाएं मजबूत

रिया और रोहित दोनों भाई बहन हैं पर लड़ाई के वक़्त ऐसा लगता है कि एक दूसरे से बड़ा उनका कोई दुश्मन नही है.अभी कुछ दिनों से दोनों में बोलचाल बंद है.आज रिया का प्रेसेंटेशन है उसे जल्दी कॉलेज पहुंचना है पर गाड़ी स्टार्ट ही नहीं हो रही तभी रोहित ने आवाज़ दी कि चलो छोड़ो अपनी खटारा देर हो रही है रिया तो जैसे समझ ही नही पाई और जल्दी से चल दी .कॉलेज पहुँचकर उसने रोहित को थैंक्स कहा और एक छोटी सी पहल में उनका झगड़ा ख़त्म हो गया.

अमूमन भाई बहन के रिश्ते में ये आम बात है किंतु कई बार ये आपसी मनमुटाव इतना बढ़ जाता है कि इतना प्यारा रिश्ता भी खराब सा हो जाता है.तब ये समझ नहीं आता कि किस तरह सब फिर से पहले जैसा किया जाए .अभी भाई बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक राखी का त्यौहार भी आने वाला है ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं कुछ ऐसे सुझाव जिनकी मदद से आप आपसी मनमुटाव को दूर कर इस स्नेहिल रिश्ते को खूबसूरत बना सकते हैं और अपनों को करीब ला सकते हैं.

1. पहल करने में संकोच न करें

कई बार झगड़ा बहुत ही बढ़ जाता है और तू तू मै मैं इतनी हो जाती है कि दोनों ही का मन खट्टा हो जाता है.लड़ाई बेहद हो जाने पर भी मन की भावनाएँ एक दूसरे के लिए पहले की तरह ही रहती हैं बस दोनों का अहम एक दूसरे से बात करने को रोकता है .ऐसे में आप अपना अहम तुरंत छोड़ कर स्वयं बातचीत की पहल करें फिर देखिए चुटकियों में बात बन जाएगी.

2. नए सिरे से शुरू करें

इसके लिए सबसे पहले ये सोचना बंद करना होगा कि मैं ही सही हूँ क्योंकि किसी भी लड़ाई में थोड़ी थोड़ी ग़लती दोनों पक्षों की होती है.ऐसे में बजाय दूसरे की कमी पर ध्यान रखने के अपनी कमी को पहचानने का प्रयास करें .उसके बाद मन मे ये पक्का करें कि अब ये ग़लती नहीं करेंगे ऐसे में आपका रिश्ता और मजबूत होगा.

3. राज को राज रहने दें

भाई बहन एक दूसरे के सबसे बड़े राजदार होते हैं ऐसी कई बातें होती हैं जो वो सिर्फ एक दूसरे से शेयर करते हैं पर कई बाद क्रोध या आवेश में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए वो राज की बात किसी के सामने भी बोल देते हैं .ऐसा करने से कुछ समय को तो मानसिक संतुष्टि होती है पर बाद में अपराधबोध होने लगता है.इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि ये लड़ाई तो कुछ समय की है पर रिश्ता तो जीवन भर का है इसलिए लड़ाई के झोंके में एक दूसरे के राज सार्वजनिक करने से बचें .इस से रिश्ते में गहराई बनी रहेगी और विश्वास भी मजबूत होगा.

4. कारण जानने का प्रयास

कई बार लड़ाई इतनी लम्बी खिंच जाती है कि हम ये ही भूल जाते हैं कि आखिर ये शुरू क्यों हुई थी .अगर हम ये जानने का प्रयास करें कि झगड़े का मूल कारण क्या था तो उसे सुलझाना आसान हो जाएगा.कारण जानने के बाद यदि लगे कि इसे खत्म किया जा सकता है तो उसका हल करने में देर न करें .एक बात हमेशा ध्यान रखिये कि बड़ा से बड़ा कारण भी भाई बहन के पवित्र रिश्ते के सामने बहुत छोटा है.

5. दें प्यार भरा उपहार

किसी भी रिश्ते को यदि फिर से पहले की तरह स्नेहसिक्त करना है तो उपहार से अच्छा कुछ नहीं हो सकता है.आप अचानक एक सरप्राइज गिफ्ट दे सकते हैं .गिफ्ट महंगा हो जरूरी नही बस प्यार भरा होना चाहिए. जैसे एक दूसरे की पसंदीदा चॉकलेट , कोई पसंदीदा गैजेट, एक ड्रेस या एक फूल भी दिया जा सकता है.या कोई पसंदीदा डिश अगर आपको बनानी आती है तो वो बनाकर खिलाया जा सकता है.

6. जताना भी है ज़रूरी

एक दूसरे को ये जताते रहना भी जरूरी होता है कि वो आपके लिए कितना मायने रखता है. ये रिश्ता आपके लिए अनमोल है और चाहे कितनी भी लड़ाई हो पर अगर कोई मुश्किल आती है तो आप हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े होंगे ये विश्वास कायम रखना भी आप ही की जिम्मेदारी है.

अगर आप ये सब बातें जीवन मे अपनायेंगे तो निश्चित ही आपके इस प्यार भरे रिश्ते में चार चाँद लग जाएँगे और ये अटूट बंधन और मजबूत हो जाएगा.

Raksha Bandhan 2024 : चमत्कार- क्या बड़ा भाई रतन करवा पाया मोहिनी की शादी?

‘‘मोहिनी दीदी पधार रही हैं,’’ रतन, जो दूसरी मंजिल की बालकनी में मोहिनी के लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठा था, एकाएक नाटकीय स्वर में चीखा और एकसाथ 3-3 सीढि़यां कूदता हुआ सीधा सड़क पर आ गया.

उस के ऐलान के साथ ही सुबह से इंतजार कर रहे घर और आसपड़ोस के लोग रमन के यहां जमा होने लगे.

‘‘एक बार अपनी आंखों से बिटिया को देख लें तो चैन आ जाए,’’ श्यामा दादी ने सिर का पल्ला संवारा और इधरउधर देखते हुए अपनी बहू सपना को पुकारा.

‘‘क्या है, अम्मां?’’ मोहिनी की मां सपना लपक कर आई थीं.

‘‘होना क्या है आंटी, दादी को सिर के पल्ले की चिंता है. क्या मजाल जो अपने स्थान से जरा सा भी खिसक जाए,’’ आपस में बतियाती खिलखिलाती मोहिनी की सहेलियों, ऋचा और रीमा ने व्यंग्य किया था.

‘‘आग लगे मुए नए जमाने को. शर्म नहीं आती अपनी पोशाक देख कर? न गला, न बांहें, न पल्ला, न दुपट्टा और चली हैं दादी की हंसी उड़ाने,’’ ऋचा और रीमा को आंखों से ही घुड़क दिया. वे दोनों चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं.

लगभग 2 साल पहले सपना ने अपने पति रामेश्वर बाबू को एक दुर्घटना में गंवा दिया था. श्यामा दादी ने अपना बेटा खोया था और परिवार ने अपना कर्णधार. दर्द की इस सांझी विरासत ने परिवार को एक सूत्र में बांध दिया था.

‘‘चायनाश्ते का पूरा प्रबंध है या नहीं? पहली बार ससुराल से लौट रही है हमारी मोहिनी. और हां, बेटी की नजर उतारने का प्रबंध जरूर कर लेना,’’ दादी ने लाड़ जताते हुए कहा था.

‘‘सब प्रबंध है, अम्मां. आप तो सचमुच हाथपैर फुला देती हैं. नजर आदि कोरा अंधविश्वास है. पंडितों की साजिश है,’’ सपना अनचाहे ही झल्ला गई थी.

‘‘बुरा मानने जैसा तो कुछ कहा नहीं मैं ने. क्या करूं, जबान है, फिसल जाती है. नहीं तो मैं कौन होती हूं टांग अड़ाने वाली?’’ श्यामा दादी सदा की तरह भावुक हो उठी थीं.

‘‘अब तुम दोनों झगड़ने मत लगना. शुक्र मनाओ कि सबकुछ शांति से निबट गया नहीं तो न जाने क्या होता?’’ मोहिनी के बड़े भाई रमन ने बीचबचाव किया तो उस की मां सपना और दादी श्यामा तो चुप हो गईं पर उस के मन में बवंडर सा उठने लगा. क्या होता यदि मोहिनी के विवाह के दिन ऊंट दूसरी करवट बैठ जाता? वह तो अपनी सुधबुध ही खो बैठा था. उस की यादों में तो आज भी सबकुछ वैसा ही ताजा था.

‘भैया, ओ भैया. कहां हो तुम?’ रतन इतनी तीव्रता से दौड़ता हुआ घर में घुसा था कि सभी भौचक्के रह गए थे. वह आंगन में पड़ी कुरसी पर निढाल हो कर गिरा था और हांफने लगा था.

‘क्या हुआ?’ बाल संवारती हुई अम्मां कंघी हाथ में लिए दौड़ी आई थीं. रमन दहेज के सामान को करीने से संदूक में लगवा रहा था. उस ने रतन के स्वर को सुन कर भी अनसुना कर दिया था.

शादी का घर मेहमानों से भरा हुआ था. सभी जयमाला की रस्म के लिए सजसंवर रहे थे. सपना और रतन के बीच होने वाली बातचीत को सुनने के लिए सभी बेचैन हो उठे थे. पर रतन के मुख से कुछ निकले तब न. उस की आंखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे.

‘अरे, कुछ तो बोल, हुआ क्या? किसी ने पीटा है क्या? हाय राम, इस की कनपटी से तो खून बह रहा है,’ सपना घबरा कर खून रोकने का प्रयत्न करने लगी थीं. सभी मेहमान आंगन में आ खड़े हुए थे.

श्यामा दादी दौड़ कर पानी ले आई थीं. घाव धो कर मरहमपट्टी की. रतन को पानी पिलाया तो उस की जान में जान आई.

‘मेरी छोड़ो, अम्मां, रमन भैया को बुलाओ…वहां मैरिज हाल में मारपीट हो गई है. नशे में धुत बराती अनापशनाप बक रहे थे.’’

सपना रमन को बुलातीं उस से पहले ही रतन के प्रलाप को सुन कर रमन दौड़ा आया था. रतन ने विस्तार से सब बताया तो वह दंग रह गया था. वह तेजी से मैरिज हाल की ओर लपका था उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उस के साथ थे.

रमन मैरिज हाल पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. करीने से सजी कुरसियांमेजें उलटी पड़ी थीं. आधी से अधिक कुरसियां टूटी पड़ी थीं.

‘यह सब क्या है? यहां हुआ क्या है, नरेंद्र?’ उस ने अपने चचेरे भाई से पूछा था.

‘बराती महिलाओं का स्वागत करने घराती महिलाओं की टोली आई थी. नशे में धुत कुछ बरातियों ने न केवल महिलाओं से छेड़छाड़ की बल्कि बदतमीजी पर भी उतर आए,’ नरेंद्र ने रमन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था.

रमन यह सब सुन कर भौचक खड़ा रह गया था. क्या करे क्या नहीं…कुछ समझ नहीं पा रहा था.

‘पर बराती गए कहां?’ रमन रोंआसा हो उठा था. कुछ देर में स्वयं को संभाला था उस ने.

‘जाएंगे कहां? बात अधिक न बढ़ जाए इस डर से हम ने उन्हें सामने के दोनों कमरों में बंद कर के ताला लगा दिया,’ नरेंद्र ने क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोल कर नजरें झुका ली थीं.

‘यह क्या कर दिया तुम ने. क्या तुम नहीं जानते कि मैं ने कितनी कठिनाई से पाईपाई जोड़ कर मोहिनी के विवाह का प्रबंध किया था. तुम लोग क्या जानो कि पिता के साए के बिना जीवन बिताना कितना कठिन होता है,’ रमन प्रलाप करते हुए फूटफूट कर रो पड़ा था.

‘स्वयं को संभालो, रमन. मैं क्या मोहिनी का शत्रु हूं? तुम ने यहां का दृश्य देखा होता तो ऐसा नहीं कहते. तुम्हें हर तरफ फैला खून नजर नहीं आता? यदि हम करते इन्हें बंद न तो न जाने कितने लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते,’ नरेंद्र, उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयत्न करने लगे थे.

किसी प्रकार साहस जुटा कर रमन उन कमरों की ओर गया जिन में बराती बंद थे. उसे देखते ही कुछ बराती मुक्के हवा में लहराने लगे थे.

‘तुम लोगों का साहस कैसे हुआ हमें इस तरह कमरों में बंद करने का,’ कहता हुआ एक बराती दौड़ कर खिड़की तक आया और गालियों की बौछार करने लगा. एक अन्य बराती ने दूसरी खिड़की से गोलियों की झड़ी लगा दी. रमन और उस के साथी लेट न गए होते तो शायद 1-2 की जान चली जाती.

दूल्हा ‘राजीव’ पगड़ी आदि निकाल ठगा सा बैठा था.

‘समझ क्या रखा है? एकएक को हथकडि़यां न लगवा दीं तो मेरा नाम सुरेंद्रनाथ नहीं,’ वर के पिता मुट्ठियां हवा में लहराते हुए धमकी दे रहे थे.

चंद्रा गार्डन नामक इस मैरिज हाल में घटी घटना का समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया था. समस्त मित्र व संबंधी घटनास्थल पर पहुंच कर विचारविमर्श कर रहे थे.

चंद्रा गार्डन से कुछ ही दूरी पर जानेमाने वकील और शहर के मेयर रामबाबू रहते थे. रमन के मित्र सुनील के वे दूर के संबंधी थे. उसे कुछ न सूझा तो वह अनिल और प्रभाकर के साथ उन के घर जा पहुंचा.

रामबाबू ने साथ चलने में थोड़ी नानुकुर की तो तीनों ने उन के पैर पकड़ लिए. हार कर उन को उन के साथ आना ही पड़ा.

रामबाबू ने खिड़की से ही वार्त्तालाप करने का प्रयत्न किया पर वरपक्ष का कोई व्यक्ति बात करने को तैयार नहीं था. वे हर बात का उत्तर गालियों और धमकियों से दे रहे थे.

रामबाबू ने प्रस्ताव रखा कि यदि वरपक्ष शांति बनाए रखने को तैयार हो तो वह कमरे के ताले खुलवा देंगे पर लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. साथ ही सब को गोलियों से भून कर रख देने की धमकी भी मिली.

इसी ऊहापोह में शादी के फूल मुरझाने लगे. बड़े परिश्रम और मनोयोग से बनाया गया भोजन यों ही पड़ापड़ा खराब होने लगा.

‘जयमाला’ के लिए सजधज कर बैठी मोहिनी की आंखें पथरा गईं. कुछ देर पहले तक सुनहरे भविष्य के सपनों में डूबी मोहिनी को वही सपने दंश देने लगे थे.

काफी प्रतीक्षा के बाद वह भलीभांति समझ गई कि दुर्भाग्य ने उस का और उस के परिवार का साथ अभी तक नहीं छोड़ा है. मन हुआ कि गले में फांसी का फंदा लगा कर लटक जाए, पर रमन का विचार मन में आते ही सब भूल गई. किस तरह कठिन परिश्रम कर के रमन भैया ने पिता के बाद कर्णधार बन कर परिवार की नैया पार लगाई थी. वह पहले ही इस अप्रत्याशित परिस्थिति से जूझ रहा था और एक घाव दे कर वह उसे दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

उधर काफी देर होहल्ला करने के बाद बराती शांत हो गए थे. बरात में आए बच्चे भूखप्यास से रोबिलख रहे थे. बरातियों ने भी इस अजीबोगरीब स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी.

अत: जब मेयर रामबाबू ने फिर से कमरों के ताले खोलने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते कि बराती शांति बनाए रखें तो वरपक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

अब तक अधिकतर बरातियों का नशा उतर चुका था. पर रस्सी जलने पर भी ऐंठन नहीं गई थी. वर के पिता सुरेंद्रनाथ तथा अन्य संबंधियों ने बरात के वापस जाने का ऐलान कर दिया. रामबाबू भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन के इशारा करते ही कालोनी के युवकों ने बरातियों को चारों ओर से घेर लिया था.

‘देखिए श्रीमान, मोहिनी केवल एक परिवार की नहीं सारी कालोनी की बेटी है. जो हुआ गलत हुआ पर उस में बरातियों का दोष भी कम नहीं था,’ रामबाबू ने बात सुलझानी चाही थी.

‘चलिए, मान लिया कि दोचार बरातियों ने नशे में हुड़दंग मचाया था तो क्या आप हम सब को सूली पर चढ़ा देंगे?’ वरपक्ष का एक वयोवद्ध व्यक्ति आपा खो बैठा था.

‘आप इसे केवल हुड़दंग कह रहे हैं? गोलियां चली हैं यहां. न जाने कितने घरातियों को चोटें आई हैं. आप के सम्मान की बात सोच कर ही कोई थानापुलिस के चक्कर में नहीं पड़ा,’ रमन के चाचाजी ने रामबाबू की हां में हां मिलाई थी.

‘तो आप हमें धमकी दे रहे हैं?’ वर के पिता पूछ बैठे थे.

‘धमकी क्यों देने लगे भला हम? हम तो केवल यह समझाना चाह रहे हैं कि आप बरात लौटा ले गए तो आप की कीर्ति तो बढ़ने से रही. जो लोग आप को उकसा रहे हैं, पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएंगे.’

‘अजी छोडि़ए, इन सब बातों में क्या रखा है. अब तो विवाह का आनंद भी समाप्त हो गया और इच्छा भी,’ लड़के के पिता सुरेंद्रनाथ बोले थे.

‘आप हां तो कहिए, विवाह तो कभी भी हो सकता है,’ रामबाबू ने पुन: समझाया था.

काफी नानुकुर के बाद वरपक्ष ने विवाह के लिए सहमति दी थी.

‘इन के तैयार होने से क्या होता है. मैं तो तैयार नहीं हूं. यहां जो कुछ हुआ उस का बदला तो ये लोग मेरी बहन से ही लेंगे. आप ही कहिए कि उस की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. माना हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है पर हम इतने गएगुजरे भी नहीं हैं कि सबकुछ देखसमझ कर भी बहन को कुएं में झोंक दें,’ तभी रमन ने अपनी दोटूक बात कह कर सभी को चौंका दिया था और फूटफूट कर रोने लगा था.

कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रह गए थे. रामबाबू से भी कुछ कहते नहीं बना था. पर तभी अप्रत्याशित सा कुछ घटित हो गया था. भावी वर राजीव स्वयं उठ कर रमन को सांत्वना देने लगा था, ‘मैं आप को आश्वासन देता हूं कि आप की बहन मोहिनी विवाह के बाद पूर्णतया सुरक्षित रहेगी. विवाह के बाद वह आप की बहन ही नहीं मेरी पत्नी भी होगी और उसे हमारे परिवार में वही सम्मान मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए.’

‘ले, सुन ले रमन, अब तो आंसू पोंछ डाल. इस से बड़ी गारंटी और कोई क्या देगा,’ रामबाबू बोले थे.

धीरेधीरे असमंजस के काले मेघ छंटने लगे थे. नगाड़े बज उठे थे. बैंड वाले अपनी ही धुन पर थिरक रहे थे. रमन पुन: बरातियों के स्वागतसत्कार मेें जुट गया था.

रमन न जाने और कितनी देर अपने दिवास्वप्न में डूबा रहता कि तभी मोहिनी ने अपने दोनों हाथों से उस के नेत्र मूंद दिए थे.

‘‘बूझो तो जानें,’’ वह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोली थी.

रमन ने उसे गले से लगा लिया. सारा घर मेहमानों से भर गया था. सभी मोहिनी की एक झलक पाना चाहते थे.

मोहिनी भी सभी से मिल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी. तभी रामबाबू ने वहां पहुंच कर सब के आनंद को दोगुना कर दिया था. रमन कृतज्ञतावश उन के चरणों में झुक गया था.

‘‘काकाजी उस दिन आप ने बीचबचाव न किया होता तो न जाने क्या होता,’’ वह रुंधे गले से बोला था.

‘‘लो और सुनो, बीचबचाव कैसे न करते. मोहिनी क्या हमारी कुछ नहीं लगती. वैसे भी यह हमारे साथ ही दो परिवार के सम्मान का भी प्रश्न था,’’ रामबाबू मुसकराए फिर

राजीव से बोले, ‘‘एक बात की बड़ी उत्सुकता है हम सभी को कि वे लोग थे कौन जिन्होंने इतना उत्पात मचाया था? मुझे तो ऐसा लगा कि बरात में 3-4 युवक जानबूझ कर आग को हवा दे रहे थे.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, चाचाजी,’’ राजीव बोला, ‘‘वे चारों हमारे दूर के संबंधी हैं. संपत्ति को ले कर हमारे दादाजी से उन का विवाद हो गया था. वह मुकदमा हम जीत गए, तब से उन्होंने मानो हमें नीचा दिखाने की ठान ली है. सामने तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं पर पीठ पीछे छुरा भोंकते हैं,’’ राजीव ने स्पष्ट किया.

‘‘देखा, रमन, मैं न कहता था. वे तो विवाह रुकवाने के इरादे से ही बरात में आए थे, पर उस दिन राजीव, तुम ने जिस साहस और सयानेपन का परिचय दिया, मैं तो तुम्हारा कायल हो गया. मोहिनी बेटी के रूप में हीरा मिला है तुम्हें. संभाल कर रखना इसे,’’ रामबाबू ने राजीव की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

राजीव और मोहिनी की निगाहें एक क्षण को मिली थीं. नजरों में बहते अथाह प्रेम के सागर को देख कर ही रमन तृप्त हो गया था, ‘‘आप ठीक कहते हैं, काका. ऐसे संबंधी बड़े भाग्य से मिलते हैं.’’

वह आश्वस्त था कि मोहिनी का भविष्य उस ने सक्षम हाथों में सौंपा था.

Raksha Bandhan Special : स्किन के मुताबिक करें मेकअप, नहींं हटेगी देखने वालों की नजर

फेस्टिवल्स का समय हो और महिलाएं मेकअप न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता. इस समय तो हर महिला स्टाइलिश एथनिक ड्रेसेस और जूलरी के साथ ब्राइट मेकअप लुक को तरजीह देती है. मगर फेस्टिवल्स के दौरान काम भी बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में स्वाभाविक है कि मेकअप के दौरान कुछ गलतियां या चूक हो जाती हैं, जिस से खूबसूरती निखारने के बजाय बिगड़ भी सकती है. आइये ऐल्प्स ब्यूटी क्लिनिक की फाउंडर भारती तनेजा से जानते हैं कि ऐसी गलतियों से कैसे बचा जा सकता है;

ट्रेंडी बनें

गलती 1 : फेस्टिव सीजन के हिसाब से ट्रेंडी ड्रेस और मेकअप सेलेक्ट न करना .

समाधान : फेस्टिव मेकअप करते समय सब से बड़ी गलती जो हम अक्सर कर जाते हैं वह ये कि हम बहुत डार्क और हेवी मेकअप कर लेते हैं. पर जरुरी यह है कि मेकअप करते समय हमें लेटेस्ट ट्रेंड की जानकारी हो. आप महफिल में आउट आफ प्लेस नज़र न आएं इस के लिए मेकअप हमेशा ट्रेंड के हिसाब से ही करें.

स्किन के मुताबिक करें मेकअप

गलती 2 : स्किन के मुताबिक मेकअप नहीं करने से मेकअप का रिजल्ट कम दिखाई देता है

समाधान : प्रोडक्ट्स खरीदते समय स्किनटोन ही काफी नहीं, इस के लिए स्किन टाइप को भी ध्यान में रखना जरूरी होता है. अगर आप की स्किन औयली है तो फेस पाउडर ऐसा चुनें जिस में सिर्फ टैल्क या टैलकम हो क्यों कि यह चेहरे से औयल अब्जौर्ब कर आप को परफेक्ट फिनिश देता है. वहीं ड्राई स्किन वालों को हाइड्रोनिक एसिड और हाइड्रेटिंग प्रॉपर्टीज़ के साथ आने वाले फेस पाउडर का चुनाव करना बेहतर रिजल्ट देता है. यदि आप की त्वचा ड्राइ है तो फेस क्लीनिंग के लिए हमेशा क्लींजिंग मिल्क का प्रयोग करें. साथ ही मेकअप के लिए क्रीमी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकतें हैं. जबकि ऑयली स्किन  वालों को फेस क्लीन करने के लिए एसिट्रंजेंट का प्रयोग करना चाहिए और मेकअप के लिए वाटर बेसड प्रोडक्ट इस्तेमाल करें.

ब्लशर का प्रयोग ज्यादा न हो

गलती 3 : ब्लशर के ज्यादा होने से सुंदरता बढ़ने के बजाय घट जाती है.

समाधान : अगर ब्लशर करने के बाद आपको महसूस हो कि यह ज्यादा दिख रहा है तो एक साफ ब्लश-ब्रश से एक्स्ट्रा ब्लश साफ कर दें. टिश्यू पेपर से स्क्रब न करें, इससे त्वचा को नुकसान हो सकता है. ब्लश इस्तेमाल करना हो तो फाउंडेशन जरूर लगाना च‍ाहिए. ब्लशर लगाते हुए यह पता होना चाहिए कि इसकी सही मात्रा क्या है और फिर इसे मेकअप बेस के साथ ब्लेंड करने के लिए क्लौकवाइज और एंटीक्लौकवाइज लगाये. साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि कौम्पेक्ट के साथ मिलने वाले ब्रश छोटे होते हैं. हमेशा फुल साइज ब्लश ब्रश का इस्तेमाल करें.

अंडर आई डार्क सर्कल के लिए कंसीलर

गलती 4 : काले घेरों को छिपाने के लिए कंसीलर लगाना स्वाभाविक नहीं लगता.

समाधान: आई क्रीम या आंखों का सीरम आवश्यक है लेकिन कंसीलर लगाने से पहले इसे त्वचा में अब्जॉर्ब होने देना चाहिए.वरना कंसीलर जल्दी क्रीज हो कर अन-नैचुरल लगने लगता है. आंखों के नीचे कंसीलर को रगड़ना नहीं थपथपाना चाहिए. रंगडने से यह चारों और फैल जाता है.

विंग्ड आईलाइनर का सही प्रयोग

गलती 5 : आंखों की सुंदरता को कम कर देता है टेढा-मेढा आईलाइनर लगना.

समाधान: आजकल विंग्ड आईलाइनर लगाना फैशन में है. अधिकतर महिलाएं विंग्ड आईलाइनर लगाना पसंद करती हैं, लेकिन इसे लगाने में थोड़ी दिक्कत और सावधानी की भी ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में विंग्ड आईलाइनर लगाने में आप का काफी समय बर्बाद होता है. कई बार तो इसे लगाना बहुत ही मुश्किल भरा लगता है और बाद में आप अपना आईलाइनर सामान्य तरीके से ही लगा लेते हैं. लेकिन आप की इस समस्या का भी समाधान है. आप बौबी पिन के उपयोग से विंग्ड आईलाइनर आसानी से लगा सकते हैं. बौबी पिन के अंतिम सिरे पर आईलाइनर लगाएं और अपनी आखों के छोर पर रखें. आईलाइनर के इस्तेमाल से विंग को भरें और इस के बाद आगे से सामान्य तरीके से आईलाइनर लगाएं.

Raksha Bandhan Special: फैस्टिवल में घर पर बनाएं अंजीर ड्राईफ्रूट बर्फी, नोट करें ये रेसिपी

गर्म और मीठी चीज खाने का अलग ही मजा है. तो इस फेस्टिवल ट्राय करें अंजीर ड्राईफ्रूट बर्फी. अंजीर ड्राईफ्रूट बर्फी बनाने की रेसिपी.     

सामग्री

100 ग्राम सूखे अंजीर

50 ग्राम चीनी

1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

2 बड़े चम्मच छोटे टुकड़ों में कटे काजू व बादाम

1 बड़ा चम्मच देशी घी

विधि

अंजीर को 3 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. बीच में पलट दें ताकि दोनों तरफ से फूल जाएं. इन्हें मिक्सी में पीस लें.

एक नौनस्टिक कड़ाही में गरम कर के अंजीर का मिश्रण और चीनी अच्छी तरह चलाती रहें ताकि मिश्रण एकदम सूखा सा हो जाए.

इसमें काजू व बादाम हलका सा रोस्ट कर के मिला दें. साथ ही इलायची पाउडर भी. एक घी लगी थाली में जमा दें. और फिर मनपसंद आकार के टुकड़े काट लें.

व्यंजन सहयोग: नीरा कुमार

Raksha Bandhan: इस रक्षा बंधन पर अपनी बहन को दें ये खास गिफ्ट

अक्सर ये देखा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहनों को गिफ्ट्स दे कर खुश करने की कोशिश करते हैं और जब भाईयों को कुछ समझ नही आता कि उन्हे क्या देना चाहिए तो वे उन्हे कैश दे देते हैं ताकि उन्हे जो पसंद हो वे खुद लें. हर भाई चाहता है कि वे अपनी बहन को हमेशा खुश रख सके और बहनों की खुशी के लिए वे हर वो चीज़ सोचते है जो कोई और नही सोच सकता.

ज्यादातर लोग रक्षा बंधन के दिन अपनी बहनों के लिए या तो चौक्लेट्स खरीदते हैं या फिर कुछ मिठाइयां. आज हम आपको बताएंगे कि अपनी बहनों को क्या गिफ्ट देना चाहिए जिससे कि उनके चहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ सके.

1. इयरिंग्स करें गिफ्ट

एसा देखा जाता है कि लड़कियां छोटी-छोटी चीजों से काफी खुश हो जाती हैं और ज्यादा तब जब वो चीज़ उनका खुद का भाई ले कर आए. लड़कियों को ज्वैलरी पहनने का बहुत शौक होता है और खासकर इयरिंग्स पहनना. इस रक्षा बंधन आप भी अपनी बहनों को इयरिंग्स गिफ्ट कर खुश कर सकते हैं.

 

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2. कस्टमाइज्ड टी-शर्ट है ट्रेंड

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आजकल लड़कियों को टी-शर्ट पहनना बेहद अच्छा लगता है और खासकर तब तब टी-शर्ट पर उनके मन पसंद का कुछ लिखा हो. जी हां अब एसी बहुत सी वेब-साइट्स और दुकानों पर इस तरह की सुविधा उप्लब्ध है जहां आप अपनी मर्ज़ी का डिज़ाईन या टैक्सट टी-शर्ट पर लिखवा सकते हैं. तो आप इस रक्षा बंधन अपनी बहन के पसंदीदा डिज़ाईन और टैक्सट के अनुसार उन्हे टी-शर्ट गिफ्ट कर सकते हैं.

3. कौस्मेटिक आइटम्स रहेगा बेस्ट औप्शन

 

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हर उम्र की महिला को मेक-अप करने का शौक जरूर होता है फिर चाहे वे आपकी बहन हो या पत्नी. महिलाओं के अनुसार मेक-अस उनकी सुंदरता को और निखार देता है तभी उन्हे मेक-अप करना बहुत अच्छा लगता है. इस रक्षाबंधन अपनी बहन को उनकी पसंदीदा मेक-अप किट या कौस्मेटिक आइटम्स गिफ्ट कर सकते हैं.

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4. फिटनेस बैंड से रहेगी हेल्थ फिट

आजकल हर कोई अपनी फिटनेस का काफी ध्यान रखता है फिर चाहे वे पुरूष हो या महिलाएं. स्मार्ट वौच और फिटनेस बैंड के जरिए हम कहीं भी अपनी हेल्थ की जानकारी रख सकते है. इस बैंड के जरिए हम अपनी ‘हार्ट-बीट’, ‘कैलरीज’ ‘कार्डियो स्टैप्स’ जैसी बहुत सी चीज़े देख सकते हैं. तो अगर आपकी बहन भी है फिटनेस फ्रीक और अपनी हेल्थ का काफी ध्यान रखती हैं तो उन्हे फिटनेस बैंड जैसा गिफ्ट जरूर दें.

Raksha Bandhan: राखी का उपहार

इस समय रात के 12 बज रहे हैं. सारा घर सो रहा है पर मेरी आंखों से नींद गायब है. जब मुझे नींद नहीं आई, तब मैं उठ कर बाहर आ गया. अंदर की उमस से बाहर चलती बयार बेहतर लगी, तो मैं बरामदे में रखी आरामकुरसी पर बैठ गया. वहां जब मैं ने आंखें मूंद लीं तो मेरे मन के घोड़े बेलगाम दौड़ने लगे. सच ही तो कह रही थी नेहा, आखिर मुझे अपनी व्यस्त जिंदगी में इतनी फुरसत ही कहां है कि मैं अपनी पत्नी स्वाति की तरफ देख सकूं.

‘‘भैया, मशीन बन कर रह गए हैं आप. घर को भी आप ने एक कारखाने में तबदील कर दिया है,’’ आज सुबह चाय देते वक्त मेरी बहन नेहा मुझ से उलझ पड़ी थी. ‘‘तू इन बेकार की बातों में मत उलझ. अमेरिका से 5 साल बाद लौटी है तू. घूम, मौजमस्ती कर. और सुन, मेरी गाड़ी ले जा. और हां, रक्षाबंधन पर जो भी तुझे चाहिए, प्लीज वह भी खरीद लेना और मुझ से पैसे ले लेना.’’

‘‘आप को सभी की फिक्र है पर अपने घर को आप ने कभी देखा है?’’ अचानक ही नेहा मुखर हो उठी थी, ‘‘भैया, कभी फुरसत के 2 पल निकाल कर भाभी की तरफ तो देखो. क्या उन की सूनी आंखें आप से कुछ पूछती नहीं हैं?’’

‘‘ओह, तो यह बात है. उस ने जरूर तुम से मेरी चुगली की है. जो कुछ कहना था मुझ से कहती, तुम्हें क्यों मोहरा बनाया?’’

‘‘न भैया न, ऐसा न कहो,’’ नेहा का दर्द भरा स्वर उभरा, ‘‘बस, उन का निस्तेज चेहरा और सूनी आंखें देख कर ही मुझे उन के दर्द का एहसास हुआ. उन्होंने मुझ से कुछ नहीं कहा.’’ फिर वह मुझ से पूछने लगी, ‘‘बड़े मनोयोग से तिनकातिनका जोड़ कर अपनी गृहस्थी को सजाती और संवारती भाभी के प्रति क्या आप ने कभी कोई उत्साह दिखाया है? आप को याद होगा, जब भाभी शादी कर के इस परिवार में आई थीं, तो हंसना, खिलखिलाना, हाजिरजवाबी सभी कुछ उन के स्वभाव में कूटकूट कर भरा था. लेकिन आप के शुष्क स्वभाव से सब कुछ दबता चला गया.

‘‘भैया आप अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में इतने अनुदार क्यों हो जबकि यह तो भाभी का हक है?’’

‘‘हक… उसे हक देने में मैं ने कभी कोई कोताही नहीं बरती,’’ मैं उस समय अपना आपा खो बैठा था, ‘‘क्या कमी है स्वाति को? नौकरचाकर, बड़ा घर, ऐशोआराम के सभी सामान क्या कुछ नहीं है उस के पास. फिर भी वह…’’

‘‘अपने मन की भावनाओं का प्रदर्शन शायद आप को सतही लगता हो, लेकिन भैया प्रेम की अभिव्यक्ति भी एक औरत के लिए जरूरी है.’’

‘‘पर नेहा, क्या तुम यह चाहती हो कि मैं अपना सारा काम छोड़ कर स्वाति के पल्लू से जा बंधूं? अब मैं कोई दिलफेंक आशिक नहीं हूं, बल्कि ऐसा प्रौढ हूं जिस से अब सिर्फ समझदारी की ही अपेक्षा की जा सकती है.’’ ‘‘पर भैया मैं यह थोड़े ही न कह रही हूं कि आप अपना सारा कामधाम छोड़ कर बैठ जाओ. बल्कि मेरा तो सिर्फ यह कहना है कि आप अपने बिजी शैड्यूल में से थोड़ा सा वक्त भाभी के लिए भी निकाल लो. भाभी को आप का पूरा नहीं बल्कि थोड़ा सा समय चाहिए, जब आप उन की सुनें और कुछ अपनी कहें. ‘‘सराहना, प्रशंसा तो ऐसे टौनिक हैं जिन से शादीशुदा जीवन फलताफूलता है. आप सिर्फ उन छोटीछोटी खुशियों को समेट लो, जो अनायास ही आप की मुट्ठी से फिसलती जा रही हैं. कभी शांत मन से उन का दिल पढ़ कर तो देखो, आप को वहां झील सी गहराई तो मिलेगी, लेकिन चंचल नदी सा अल्हड़पन नदारद मिलेगा.’’

अचानक ही वह मेरे नजदीक आ गई और उस ने चुपके से कल की पिक्चर के 2 टिकट मुझे पकड़ा दिए. फिर भरे मन से बोली, ‘‘भैया, इस से पहले कि भाभी डिप्रेशन में चली जाएं संभाल लो उन को.’’ ‘‘पर नेहा, मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा कि वह इतनी खिन्न, इतनी परेशान है,’’ मैं अभी भी नेहा की बात मानने को तैयार नहीं था.

‘‘भैया, ऊपरी तौर पर तो भाभी सामान्य ही लगती हैं, लेकिन आप को उन का सूना मन पढ़ना होगा. आप जिस सुख और वैभव की बात कर रहे हो, उस का लेशमात्र भी लोभ नहीं है भाभी को. एक बार उन की अलमारी खोल कर देखो, तो आप को पता चलेगा कि आप के दिए हुए सारे महंगे उपहार ज्यों के त्यों पड़े हैं और कुछ उपहारों की तो पैकिंग भी नहीं खुली है. उन्होंने आप के लिए क्या नहीं किया. आप को और आप के बेटों अंशु व नमन को शिखर तक पहुंचाने में उन का योगदान कम नहीं रहा. मांबाबूजी और मेरे प्रति अपने कर्तव्यों को उन्होंने बिना शिकायत पूरा किया, तो आप अपने कर्तव्य से विमुख क्यों हो रहे हैं?’’

‘‘पर पगली, पहले तू यह तो बता कि इतने ज्ञान की बातें कहां से सीख गई? तू तो अब तक एक अल्हड़ और बेपरवाह सी लड़की थी,’’ मैं नेहा की बातों से अचंभे में था.

‘‘क्यों भैया, क्या मैं शादीशुदा नहीं हूं. मेरा भी एक सफल गृहस्थ जीवन है. समर का स्नेहिल साथ मुझे एक ऊर्जा से भर देता है. सच भैया, उन की एक प्यार भरी मुसकान ही मेरी सारी थकान दूर कर देती है,’’ इतना कहतेकहते नेहा के गाल शर्म से लाल हो गए थे. ‘‘अच्छा, ये सब छोड़ो भैया और जरा मेरी बातों पर गौर करो. अगर आप 1 कदम भी उन की तरफ बढ़ाओगे तो वे 10 कदम बढ़ा कर आप के पास आ जाएंगी.’’

‘‘अच्छा मेरी मां, अब बस भी कर. मुझे औफिस जाने दे, लेट हो रहा हूं मैं,’’ इतना कह कर मैं तेजी से बाहर निकल गया था. वैसे तो मैं सारा दिन औफिस में काम करता रहा पर मेरा मन नेहा की बातों में ही उलझा रहा. फिर घर लौटा तो यही सब सोचतेसोचते कब मेरी आंख लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मैं उसी आरामकुरसी पर सिर टिकाएटिकाए सो गया.

‘‘भैया ये लो चाय की ट्रे और अंदर जा कर भाभी के साथ चाय पीओ,’’ नेहा की इस आवाज से मेरी आंख खुलीं.

‘‘तू भी अपना कप ले आ, तीनों एकसाथ ही चाय पिएंगे,’’ मैं आंखें मलता हुआ बोला.

‘‘न बाबा न, मुझे कबाब में हड्डी बनने का कोई शौक नहीं है,’’ इतना कह कर वह मुझे चाय की ट्रे थमा कर अंदर चली गई. जब मैं ट्रे ले कर स्वाति के पास पहुंचा तो मुझे अचानक देख कर वह हड़बड़ा गई, ‘‘आप चाय ले कर आए, मुझे जगा दिया होता. और नेहा को भी चाय देनी है, मैं दे कर आती हूं,’’ कह कर वह बैड से उठने लगी तो मैं उस से बोला, ‘‘मैडम, इतनी परेशान न हो, नेहा भी चाय पी रही है.’’ फिर मैं ने चाय का कप उस की तरफ बढ़ा दिया. चाय पीते वक्त जब मैं ने स्वाति की तरफ देखा तो पाया कि नेहा सही कह रही है. हर समय हंसती रहने वाली स्वाति के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी, जिसे मैं आज तक या तो देख नहीं पाया था या उस की अनदेखी करता आया था. जितनी देर में हम ने चाय खत्म की, उतनी देर तक स्वाति चुप ही रही.

‘‘अच्छा भाई. अब आप दोनों जल्दीजल्दी नहाधो कर तैयार हो जाओ, नहीं तो आप लोगों की मूवी मिस हो जाएगी,’’ नेहा आ कर हमारे खाली कप उठाते हुए बोली.

‘‘लेकिन नेहा, तुम तो बिलकुल अकेली रह जाओगी. तुम भी चलो न हमारे साथ,’’ मैं उस से बोला.

‘‘न बाबा न, मैं तो आप लोगों के साथ बिलकुल भी नहीं चल सकती क्योंकि मेरा तो अपने कालेज की सहेलियों के साथ सारा दिन मौजमस्ती करने का प्रोग्राम है. और हां, शायद डिनर भी बाहर ही हो जाए.’’ फिर नेहा और हम दोनों तैयार हो गए. नेहा को हम ने उस की सहेली के यहां ड्रौप कर दिया फिर हम लोग पिक्चर हौल की तरफ बढ़ गए.

‘‘कुछ तो बोलो. क्यों इतनी चुप हो?’’ मैं ने कार ड्राइव करते समय स्वाति से कहा पर वह फिर भी चुप ही रही. मैं ने सड़क के किनारे अपनी कार रोक दी और उस का सिर अपने कंधे पर टिका दिया. मेरे प्यार की ऊष्मा पाते ही स्वाति फूटफूट कर रो पड़ी और थोड़ी देर रो लेने के बाद जब उस के मन का आवेग शांत हुआ, तब मैं ने अपनी कार पिक्चर हौल की तरफ बढ़ा दी. मूवी वाकई बढि़या थी, उस के बाद हम ने डिनर भी बाहर ही किया. घर पहुंचने पर हम दोनों के बीच वह सब हुआ, जिसे हम लगभग भूल चुके थे. बैड के 2 सिरों पर सोने वाले हम पतिपत्नी के बीच पसरी हुई दूरी आज अचानक ही गायब हो गई थी और तब हम दोनों दो जिस्म और एक जान हो गए थे. मेरा साथ, मेरा प्यार पा कर स्वाति तो एक नवयौवना सी खिल उठी थी. फिर तो उस ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया था. हम दोनों थोड़ी देर सो कर सुबह जब उठे, तब हम दोनों ने ही एक ऐसी ताजगी को महसूस किया जिसे शायद हम दोनों ही भूल चुके थे. बारिश के गहन उमस के बाद आई बारिश के मौसम की पहली बारिश से जैसे सारी प्रकृति नवजीवन पा जाती है, वैसे ही हमारे मृतप्राय संबंध मेरी इस पहल से मानो जीवंत हो उठे थे.

रक्षाबंधन वाले दिन जब मैं ने नेहा को उपहारस्वरूप हीरे की अंगूठी दी तो वह भावविभोर सी हो उठी और बोली, ‘‘खाली इस अंगूठी से काम नहीं चलेगा, मुझे तो कुछ और भी चाहिए.’’

‘‘तो बता न और क्या चाहिए तुझे?’’ मैं मिठाई खाते हुए बोला. ‘‘इस अंगूठी के साथसाथ एक वादा भी चाहिए और वह यह कि आज के बाद आप दोनों ऐसे ही खिलखिलाते रहेंगे. मैं जब भी इंडिया आऊंगी मुझे यह घर एक घर लगना चाहिए, कोई मकान नहीं.’’

‘‘अच्छा मेरी मां, आज के बाद ऐसा ही होगा,’’ इतना कह कर मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया. मेरा मन अचानक ही भर आया और मैं भावुक होते हुए बोला, ‘‘वैसे तो रक्षाबंधन पर भाई ही बहन की रक्षा का जिम्मा लेते हैं पर यहां तो मेरी बहन मेरा उद्धार कर गई.’’ ‘‘यह जरूरी नहीं है भैया कि कर्तव्यों का जिम्मा सिर्फ भाइयों के ही हिस्से में आए. क्या बहनों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? और वैसे भी अगर बात मायके की हो तो मैं तो क्या हर लड़की इस बात की पुरजोर कोशिश करेगी कि उस के मायके की खुशियां ताउम्र बनी रहें.’’ इतना कह कर वह रो पड़ी. तब स्वाति ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया

Raksha Bandhan: बनाएं स्वादिष्ट गुलाब जामुन

अगर आप अपनी फैमिली के लिए घर पर कोई आसान और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो आज हम आपको टेस्टी गुलाब जामुन की आसान रेसिपी बताएंगे.

सामग्री

काजू  (01 बडा चम्मच, बारीक कतरा हुआ)

– पिस्ता (01 बड़ा चम्मच बारीक कटा हुआ)

– खाने वाला सोडा  (1/4 छोटा चम्मच)

– इलाइची पाउडर (1/4 छोटा चम्मच

– मावा/खोया ( 300 ग्राम)

– शक्कर ( 600 ग्राम)

– मैदा (02 बड़े चम्मच)

– घी (तलने के लिये)

बनाने की विधि

– सबसे पहले एक बड़े बर्तन में मावा (खोया), खाने वाला सोडा,  इलाइची पाउडर और मैदा को मिला लें और उसे आटे की तरह गूंथ कर नरम और चिकना बना लें.

– इसके बाद इस मिश्रण को गीली कपड़े से ढक कर रख दें और चाशनी तैयार कर लें.

– चाशनी बनाने के लिए एक भगोने में शक्कर और दो बड़े कप पानी मिलाकर गैस पर चढ़ाएं.

– पानी में शक्कर घुलने के बाद उसे लगभग 10 मिनट तक मध्यम आंच पर पकाएं.

– थोड़ी देर बाद शक्कर के घोल की दो-चार बूंदें चम्मच में निकाल कर ठण्डा करें और उंगलियों पर चिपका    कर देखें.

– अगर उंगलियों के बीच एक तार जैसा बनने लगे, तो इसका मतलब चाशनी तैयार है, अब इसे गैस से   उतार लें.

– अब गुलाब जामुन बनाने की बारी है, इसके लिए मावा (खोया) मिश्रण से थोड़ा सा मिश्रण लें और उसे     चपटा करके उसके बीच में काजू और पिस्ते के पांच-छ: टुकडें रख लें और उसे चारों ओर से बंद करके   गोल  बना लें.

– इसके बाद एक कढ़ाई में तेज आंच पर घी गर्म करें और जब घी गर्म हो जाए, तो आंच को धीमा कर दें     और उसमें गुलाब जामुन के गोले डाल कर तलें.

– इन्हें तलते समय गोलों के ऊपर कलछुल से गरम-गरम घी डालें पर ध्यान रहे कि गोलों में कलछुल न      लगे, नहीं तो उनका आकार खराब हो जाएगा.

– जब ये गोले ब्राउन कलर के हो जाएं, इन्हें घी से निकाल लें और शक्कर की चाशनी में डाल दें.

– अब आपकी गुलाब जामुन बनाने की विधि कम्प्लीट हुई.

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