रील्स बनाने का चस्का ऐसा है कि कई लोग सोशल मीडिया पर कुछ व्यूज और लाइक्स पाने की चाह में जान की बाजी लगाने से भी नहीं हिचकते. इस चक्कर में कई लोग रील बनाते बनाते बड़े हादसे का शिकार भी हो जाते हैं. इस 18 जून को महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में एक युवती को रील बनाना इतना महंगा पड़ा कि उसे अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ा.
दरअसल कार में बैठ कर एक युवती रील बनवा रही थी. इस 23 वर्षीय युवती ने अभी हाल-फिलहाल ही कार चलाना सीखा था. युवती और उसका दोस्त शिवराज संजय मुले दोनों किसी काम से संभाजीनगर से दत्ता मंदिर इलाके में आए थे. इस जगह पर मोबाइल पर रील बनाते समय युवती ने गलती से कार को आगे ले जाने के बजाय रिवर्स गियर में डाल दिया और कार खाई में जा गिरी. कार के घाटी में गिरने से युवती की मौके पर ही मौत हो गई. रील बना रहे उसके दोस्त के मोबाइल में यह पूरी घटना कैद हो गई जो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.
आजकल सोशल मीडिया पर फेसबुक या इंस्टाग्राम रील्स का खुमार हर उम्र और वर्ग के लोगों पर दिखाई दे रहा है. ख़ासकर युवाओं में यह सब से ज्यादा लोकप्रिय है. ज्यादातर युवा रील्स देख कर समय बर्बाद कर रहे हैं और बाकी रील्स बनाने के पीछे पागल हुए बैठे हैं. जल्दी पॉपुलर बनना, ज्यादा से ज्यादा लोगों की नज़र में आ फेमस होना और अपनी फैन फॉलोइंग बढ़ा कर मोटी कमाई करना. रील्स के जरिए पूरे होने वाले ये प्रलोभन आजकल युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं. यही वजह है कि युवा वर्ग में रील्स बनाने और देखने का प्रचलन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. रील्स बना रहे युवा अधिक लाइक्स और कमैंट्स पाने की कोशिश में अजीबोगरीब घटनाओं या गतिविधियों को रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं. कई दफा उन की ये इंस्टाग्राम रील्स ही उनकी लाइफ को खतरे में डाल देती हैं.
जीवन में प्रसिद्धि हासिल करने के लिए महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम समेत कई महान ग्रंथों की रचना की. महादेवी वर्मा ने कालजयी कविताएँ लिखीं तो प्रेमचंद अपने उपन्यासों के कारण लोकप्रिय हुए. वीर सावरकर ने काला पानी की सजा काटी, झांसी की रानी ने अपना जीवन बलिदान कर दिया और तब प्रसिद्धि पायी. लेकिन आज के वक्त में प्रसिद्धि पाना इतना मुश्किल नहीं रह गया है. आज के समय में सोशल मीडिया के द्वारा फेमस होना बहुत आसान हो गया है
लोग कुछ भी विवादित बातें बोलकर या फिर कोई अश्लील डांस वीडियो बनाकर या अजीब हरकतें कर के रातों रात फेमस हो जाते हैं, वायरल हो जाते हैं. पहले लोग प्रसिद्ध होने के लिए पूरी जिंदगी मेहनत करते थे लेकिन आज के समय में प्रसिद्धि इंस्टेंट नूडल्स की तरह हो गयी है जहां केवल 60 सेकंड का वीडियो बनाकर लोग मशहूर हो जाते हैं और सेलिब्रिटी बन जाते हैं. लोग उन्हें इन्फ्लूएंसर बुलाने लगते हैं. वैसे 60 सेकेंड में सेलिब्रिटी बनने का नशा और उस 60 सेकेंड के वीडियो देखने की लत हमारे देश के युवाओं को बर्बाद कर रही है.
इंटरनेट क्रांति का नतीजा
भारत में यों तो इंटरनेट की शुरुआत वर्ष 1995 में ही हो गयी थी. परंतु कुछ वर्षों पहले ही देश में इंटरनेट क्रांति आयी है. यह वो दौर था जब शहरों के साथ भारत के गांव गांव में स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा पहुंचनी शुरू हुई. लोग फेसबुक , यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से परिचित हुए. ये वही दौर था जब जियो डेटा के खेल को बदल रहा था. डाटा सस्ता हो रहा था, केंद्र में मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया के मिशन की शुरुआत कर दी थी.
इसी दौरान भारत में विशाल इंटरनेट मार्केट को देखते हुए चीनी कंपनी टिकटॉक ने भारत में एंट्री की. साल 2019-20 में टिक टॉक दुनिया भर में सबसे बड़े रील प्लेटफॉर्म के रूप में उभरा. टिक टॉक ने भारत में वीडियो देखने के तरीके को ही बदलकर रख दिया. जहां पहले लोग लंबे लंबे वीडियो देखा करते थे वहीँ टिक टॉक के आते ही लोगों को 60 सेकेंड में शॉर्ट वीडियो देखने की लत लग गयी. महज 60 सेकेंड के अंदर यह लोगों का भरपूर मनोरंजन करने लगी जिस के कारण बड़ी संख्या में भारतीय युवा इस ओर आकर्षित हुए. देखते ही देखते टिक टॉक अन्य मशहूर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को पीछे छोड़ने लगा. देश में कुछ महीनों के भीतर ही इसे 61.1 करोड़ बार डाउनलोड किया गया. यह संख्या चीन से भी ज्यादा थी. देश में टिक टॉक के एक्टिव यूजर्स की संख्या भी 20 करोड़ पार कर गई. लॉकडाउन के दौरान इस ऐप ने युवा पीढ़ी को तेजी से आकर्षित किया और इसी दौर में युवाओं को रील का चस्का लगा. लेकिन इसके कंटेंट और चीन के मूल का होने की वजह से इसे शक की निगाह से देखा गया. टिक टॉक पर वीडियो बनाने के लिए युवा कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो गए. बाद में भारत सरकार ने इसे देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए वर्ष 2020 में बैन कर दिया.
टिकटॉक तो भारत से चला गया परंतु शॉर्ट वीडियो की बीमारी दे गया. टिक टॉक की लोकप्रियता से प्रभावित सोशल मीडिया कंपनियों ने लोगों की इस लत का फायदा उठाया. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर रील्स का कॉन्सेप्ट आ गया. फेसबुक और इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी मेटा की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड के दौरान 2021 में देश में रोज तकरीबन 60 लाख रील्स बन रही थीं.आज बड़ी संख्या में इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भारतीय युवा रील्स बना रहे हैं और बाकी लोग घंटों इन रील्स को देखने में समय बर्बाद कर अपने भविष्य को अंधकार की तरफ लेकर जा रहे हैं.
हमारी युवा पीढ़ी का एक बड़ा समय इन रील्स को देखने में समय खराब कर रहा है. जब वे वीडियो को देखने के लिए बैठता है तो उसका घंटों का समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता. जबकि इस समय का उपयोग युवा अपने भविष्य को बनाने के लिए कर सकते थे.
शॉर्ट वीडियो की लत युवाओं को ले डूबेगी
किसी व्यक्ति को जैसे सिगरेट, शराब या फिर जुए की लत लगती है ठीक वैसे ही आज लोगों को शॉर्ट वीडियो या रील्स देखने की लत लग गई है. जो बहुत चाहने के बाद भी छूट नहीं पाती. रील्स बनाने के लिए युवा आज किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार हैं. रील्स के माध्यम से अश्लीलता को बढ़ावा देने के प्रयास भी होने लगे हैं. वीडियो पर महज व्यूज़ हासिल करने के उद्देश्य से शॉर्ट वीडियो के जरिए अश्लील और बेहद ही घटिया कॉन्टेंट परोसा जा रहा है जो वीडियो बनाने वाले और देखने वाले दोनों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. कई लोग तो व्यूज बढ़ाने के लिए गन्दी हरकतें करने लगते हैं. कोई अपनी पत्नी की खूबसूरती परोसने लगता है तो कुछ लड़कियां खुद ही आधे अधूरे कपड़ों में अश्लील गानों पर नाचने लगती हैं. कुछ लोग तो अपने छोटे छोटे बच्चों को भी रील्स पर एक्सपोज़ कर देते हैं. उर्फी, राखी सावंत और सोफिया अंसारी जैसी बालाओं ने रील्स के लिए बेशर्मी की हदें पार कर रखी हैं. साधारण घर की औरतें भी अक्सर अश्लील कंटेंट परोसने में सीमा पार कर जाती हैं. दरअसल लोगों ने शार्ट वीडियोज़ को जल्द पैसे कमाने का माध्यम बना लिया है. भले ही उस के लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े. पुनीत सुपरस्टार जैसे अजीबोगरीब हरकतें करने वाला शख्स रील्स से मिली पहचान के जरिए फेमस रियलिटी शो ‘बिग बॉस’ का हिस्सा भी बन गया. इस तरह के लोगों के भी सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स हैं और उन्हें करोड़ों व्यूज मिलते हैं.
ऐसा नहीं है कि रील्स में गन्दी चीजें ही दिखती हैं बल्कि बहुत से वीडियोज बड़े काम के भी दिख जाते हैं. फैशन, कुकरी, ब्यूटी , एक्टिंग, डांसिंग, सिंगिंग से लेकर कुकिंग और पेरेंटिंग के ज्ञान से जुड़े अच्छे खासे वीडियोज़ भी दिखते रहते हैं. हंसी ठहाकों यानी कॉमेडी के रील्स भी भरे मिलेंगे. आजकल रील के जरिए पेरेंटिंग और रिलेशनशिप ट्रेंड्स दिखाने का भी चलन बढ़ा है. सामाजिक पारिवारिक प्राकृतिक हर कैटेगरी के रील्स उपलब्ध हैं. बस आप एक बार अपने पसंद के वीडियोज़ देखना शुर कीजिए फिर आप के आगे उसी तरह के वीडियोज की बहार आ जायेगी. एक के बाद एक देखते हुए आप कब अपने दो तीन घंटे बर्बाद कर बैठेंगे आप को पता ही नहीं चलेगा. आप की नस पकड़ ली जाती है कि आप क्या देखना पसंद करते हैं. फिर उसी मिजाज के वीडियोज सामने परोसे जाने लगते हैं.
यहां तक कि ज्यादा रील देखने की समस्या जानकर अगर इस की लत से बाहर निकलने की सोच रहे हैं तो इसके लिए भी रील की शरण में ही जा सकते हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे वीडियो प्लेटफॉर्म पर हजारों ऐसी रील मौजूद हैं जिसमें ‘रील’ की लत से छुटकारा पाने के नुस्खे बताए गए हैं. कई नामी साइकोलॉजिस्ट और दुसरे डॉ भी रील बनाकर ही लोगों को इस बारे में सलाह दे रहे हैं.
कमाई का जरिया
मौजूदा वक्त में रील बनाने वाले लोग खुद को कंटेंट क्रिएटर और इन्फ्लुएंसर्स कहलाना पसंद करते हैं. कई शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म दावा करते हैं कि उनके यहां ‘कंटेंट क्रिएटर्स’ अच्छी कमाई कर रहे हैं.
कुछ समय पहले ‘कलारी कैपिटल’ की एक स्टडी के मुताबिक देश में फिलहाल 8 करोड़ से ज्यादा लोग प्रोफेशनल कंटेंट क्रिएटर्स हैं. यानी वे इसी को अपना करियर और कमाई का जरिया बनाना चाहते हैं. ये 8 करोड़ लोग ऑनलाइन कंटेंट बनाकर दौलत और शोहरत कमाने में लगे हैं. स्टडी के मुताबिक 8 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स में से सिर्फ 1.5 लाख लोग ही कमाई कर पाते हैं. उनमें से भी अधिकतर की कमाई महज कुछ हजार रुपए महीने ही है.
इन 8 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स में से 1% से भी कम ऐसे हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या 10 लाख से ज्यादा है. इनकी कमाई लाखों-करोड़ों में है. ऑनलाइन कंटेंट क्रिएटर्स की कमाई का बड़ा हिस्सा उन मेगा इन्फ्लुएंसर्स को मिल रहा है जिनके फॉलोअर्स 10 लाख या इस से ज्यादा हैं.
हर दिन 2.5 घंटे फोन पर एंटरटेनमेंट, पौन घंटे सिर्फ रील
‘रेडसीर स्ट्रैटजी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर स्मार्टफोन यूजर औसतन 2.5 घंटे एंटरटेनमेंट के लिए मोबाइल स्क्रीन स्क्रॉल करता है. इस दौरान लगभग 40 मिनट का समय सिर्फ रील देखने में जाता है. जेनरेशन Z यानी 1995 के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी में शॉर्ट वीडियो ‘रील’ देखने का औसत 1 घंटे से भी ज्यादा का है. जबकि रील की लत से परेशान लोग 5 से 6 घंटे तक रील देख लेते हैं.
इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी ‘मेटा’ के मुताबिक ऐप पर आने वाले लोग अपना 20% समय शॉर्ट वीडियो यानी रील्स देखने में बिताते हैं. जबकि इंस्टाग्राम की शुरुआत एक फोटो शेयरिंग ऐप के बतौर की गई थी और इसका रील वर्जन भी 2020 में ही आया.
रील्स देखने और बनाने के साइड इफेक्ट्स
रील्स एडिक्ट बच्चों का बिगड़ जाता है कॉग्निटिव फंक्शन
बच्चों के दिमाग पर रील्स का असर खतरनाक होता है. रील्स देखने से बच्चों का ‘अटेंशन स्पैन’ तेजी से कम होता है. जिसकी वजह से वे भुलक्कड़ हो जाते हैं और उनकी सीखने की रफ्तार भी धीमी हो जाती है. दरअसल, ‘अटेंशन स्पैन’ वह समय है जितनी देर कोई शख्स बिना भटकाव किसी भी काम में ध्यान लगा पाता है. सामान्य स्थिति में अटेंशन स्पैन 12-15 सेकेंड होता है. लेकिन हर दिन 4-5 घंटे शॉर्ट वीडियोज देखने वाले बच्चों का अटेंशन स्पैन घटकर 5 सेकेंड ही रह जाता है. कई रिसर्च के मुताबिक साल 2000 के आसपास बच्चों का औसत अटेंशन स्पैन 12 सेकेंड था जो अब घटकर 8 सेकेंड रह गया है. ज्यादा रील्स देखने वाले बच्चों का अटेंशन स्पैन 8 सेकेंड से भी कम होता है.
रील्स का नशा सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर ‘सेल्फाइटिस’
रील्स देखने के अलावा इसे बनाने की भी लत हो सकती है. फेम और लाइक-कमेंट के लिए रील बनाने वाले सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर यानी ‘सेल्फाइटिस’ का शिकार हो सकते हैं. इस तरह के मेंटल डिसऑर्डर का शिकार व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है. उसे लगता है कि लोगों को उसके बारे में और जानना चाहिए. लोगों को उसकी तारीफ भी करनी चाहिए. इसलिए लोग खूब सारी रील्स बनाने लगते हैं. लाइक-कमेंट के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं, लेकिन जब उन्हें ‘लाइक्स’ नहीं मिलते, तो उनके मन में असंतोष पनपने लगता है जो उन्हें धीरे-धीरे डिप्रेशन की ओर ले जाता है.
रील्स में खो रही है रियल लाइफ
मौजूदा वक्त में रियल लाइफ रील में खोती जा रही है. पहले भी किताब, सिनेमा और गाने जैसे एंटरटेनमेंट के माध्यम सोसाइटी पर अपना असर छोड़ते रहे हैं. लेकिन इनमें से किसी की भी पहुंच रील जितनी सहज, आसान और सस्ती नहीं रही और न ही इन में कभी आम आदमी को अपना टेलैंट दिखाने का मौका मिला. 5 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक आज रील के जरिए अपना हुनर और शौक दिखाने की कोशिश में लगे हैं. लोग उन्हें देख रहे हैं और पसंद भी कर रहे हैं. मगर फिल्मों, किताबों और दूसरे मीडियम की तरह इस पर निगरानी न के बराबर है. यही वजह है कि अक्सर रील्स प्लेटफॉर्म्स पर पोर्नोग्राफी, चाइल्ड अब्यूज,अश्लीलता और हिंसा को बढ़ावा देने वाले रील्स भी नजर आते हैं. कोई बच्चे पेरेंट्स से छिप कर रील्स देख रहा है मगर क्या देख रहा है और कितनी देर देख रहा है, यह बात मायने रखती है. पढ़ाई, मनोरंजन और दुनिया भर की जानकारी का जरिया भी रील्स हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कभी-कभी रील्स की वजह से अश्लीलता, हिंसा और भाषा के भद्देपन की बाढ़ आती भी दिखती है.
रील्स की वर्चुअल दुनिया लोगों की याददाश्त को कमजोर कर रही है .
एक सर्वे के मुताबिक भारत में प्रतिदिन 60 लाख से भी अधिक रील्स बनाए जाते हैंं. ये सभी रील्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किए जाते हैं. रील्स के माध्यम से बड़ी संख्या में युवा काल्पनिक दुनिया मे जीने लगते हैं. उनको यही दुनिया पसंद आ रही है और यहीं सुख-दुख ढूंढ रहे हैं. नतीजा यह है कि वे मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं और उनकी याददाश्त भी कम होते जा रही है.
पिछले दिनों एक ऐसा वीडियो सामने आया जिसमें एक बच्चा सोते हुए भी अपने हाथों को ऐसे चला रहा है, जैसे वह मोबाइल में कुछ स्क्रोल कर रहा हो. ऐसे भी मामले सामने आए जहां रील्स की वजह से किसी की जान चली गई तो किसी ने किसी की जान ले ली. ऐसी घटनाएं बताती हैं कि रील्स की आदत हमारी जिंदगी पर कितना बुरा प्रभाव डाल रही हैं. इंसोम्निया, स्लीप डिसऑर्डर, एंग्जाइटी की समस्या और स्ट्रेस काफी बढ़ गया है.
वर्चुअल दुनिया में रहकर हो गए अकेले
कहते हैं कि किसी भी चीज में अति नुकसान की वजह बन जाती है. रील्स भी आपके जीवन में ऐसा ही रोल निभा रही हैं. लोग असल दुनिया में ना रहकर वर्चुअल दुनिया में इतना घुस गए हैं कि उनको अहसास तक नहीं हो पा रहा है कि वो कितने अकेले हो गए हैं. पहले लोग एक-दूसरे से मिलते थे, बाहर जाकर समय बिताते थे, वो अब बंद हो गया है. अब सब ऑनलाइन ही बोलचाल तक सीमित हो गया है. आज के बच्चों में परिवार और दूसरे लोगों से बातचीत करना पसंद नहीं कर रहे हैं. इस वजह से एंग्जाइटी और आइसोलेशन की समस्या खड़ी हो रही है.
कंपेयरिंग की समस्या
बच्चों में भी खासतौर पर लड़कियों में कंपेयरिंग की समस्या खड़ी हो रही है. वह रील्स में देखकर सोचती हैं कि मैं इतनी गुड लुकिंग क्यों नहीं हूं. इस कारण उनमें ईटिंग डिसऑर्डर तक पनप रहा है. बहुत सारे बच्चे नींद में सोशल मीडिया के बारे में बात करते हैं. रील्स का प्रयोग इतना बढ़ गया है कि बच्चे का ब्रेन सोने और जागने के टाइम में फर्क नहीं कर पा रहा. लोग रील्स की वजह से टाइम मैनेजमेंट नहीं कर पा रहे हैं. जिसके कारण उनके दूसरे कामों पर फर्क पड़ रहा है.
गर्दन, कमर टेढ़ी होने के बढ़ रहे मामले
रील्स की लत कुछ ऐसी है कि हम एक ही पोजिशन में कई घंटे बैठे और लेटे हुए उसे देखते रहते हैं. ज्यादातर लोग उसी पोजिशन में रहते हैं जो उनको आराम महसूस कराए. मम्मी-पापा बोलते रह जाते हैं लेकिन हम उनको भी नजरअंदाज करते रहते हैं. इसका असर आप की हड्डियों पर भी पड़ रहा है. बहुत से लोगों में गर्दन में दर्द और टेढ़ेपन की परेशानियां देखने को मिल रही हैं. अंगूठे में टेढ़ापन, दर्द, जॉइंट ब्रेक होने की शिकायतें भी आ रही हैं. पहले इस तरह की समस्या को ब्लैकबेरी सिंड्रोम या कम्प्युटर डिजीज कहते थे, जिसमें अंगूठा मुड़ कर रह जाता था. इसे अब ट्रिगर फिंगर भी कहते हैं. वहीं कमर की शिकायत करने वाले भी कई मरीज आते हैं. अगर समय रहते इन समस्याओं का पता ना चले तो रील्स या सोशल मीडिया की वजह से आप को हड्डियों से जुड़ी ऐसी समस्याएं भी हो सकती हैं जो कभी ठीक नहीं होतीं.
क्या कहती है स्टडी
एक स्टडी में शामिल ज्यादातर मरीजों ने यह माना कि डेढ़ साल से ज्यादा समय से वे रील्स देख रहे हैं. ये लोग सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सोशल मीडिया पर रील्स स्क्रॉल करते रहते हैं. अधिकतर मरीजों ने माना कि वे दिन आधे से एक घंटे तक लगातार रील्स देखते हैं. इन मरीजों ने सोशल मीडिया पर अपना कोई वीडियो या रील शेयर नहीं किया है. सिर्फ दूसरों के रील्स देखने के आदी हैं.
इस अध्ययन में शामिल 150 लोगों में से 30 मरीजों ने बताया कि जब कभी भी वे रील्स नहीं देख पाते तो उन्हें बेचैनी होने लगती है. रील्स न देखने से किसी भी काम में मन नहीं लगता है और सिर में तेज दर्द भी होता है. कई बार तो इस चक्कर में बीपी में उतार-चढ़ाव भी देखने को मिला है. 20 प्रतिशत मरीजों का कहना है कि रील्स देखने की वजह से उनकी नींद टूट जाती है और जब तक 10 से 15 मिनट तक रील नहीं देख लेते, तब तक उन्हें नींद नहीं आती है. इसकी वजह से उलझन भी महसूस होती है.
इस अध्ययन में शामिल 60 परसेंट लोगों ने माना कि नींद जाने से उनकी दिनचर्या प्रभावित होती है. न पढ़ने में मन लगता है और ना ही जॉब में. जो मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं, उनमें सिरदर्द, आंखों में दर्द, सोते सम आंखों में चमक, खाने का समय खराब होना जैसी समस्याएं हैं.
दरअसल रील्स देखना आपके लिए मनोरंजन का साधन हो सकता है, लेकिन जिसे आप सिर्फ मनोरंजन के लिए घंटों देखते रहते हैं वही रील्स चुपचाप शरीर को ऐसी-ऐसी बीमारियां और परेशानियां दे रहा है जो आगे लाइलाज हो सकती हैं;
सिरदर्द हो सकता है
अगर आप सोने से पहले लेटे-लेटे मोबाइल पर स्क्रीन स्क्रॉल करते हैं तो इससे आपको सिरदर्द हो सकता है. कई लोग नींद आने के बावजूद जबरन जगर रील्स देखते हैं. ऐसा करने से सिर पर दबाव पड़ता है जो कि एक समय बाद सिरदर्द में बदल जाता है.
आंखों पर असर पड़ सकता है
रात को अगर आपके कमरे की लाइटें बंद हैं और अंधेरे में आप रील्स स्क्रॉल कर रहे हैं, तो इसका नेगेटिव असर आपकी आंखों पर पड़ सकता है. दरअसल स्क्रीन की लाइट सीधे आंखों पर पड़ती है. आमतौर पर मोबाइल आंखों के बहुत करीब होता है. ऐसे में लगातार रील्स स्क्रॉल करने की वजह आंखों में दर्द हो सकता है और आंखों की रोशनी कमजोर भी हो सकती है.
नींद की क्वालिटी खराब हो सकती है
अगर आप रोजाना रात को सोने से पहले करीब 30 मिनट तक रील्स स्क्रॉल करते हैं तो इससे आपकी नींद की क्वालिटी खराब हो सकती है. यही नहीं रात को सोने से पहले रील्स का दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. वहीं खराब नींद का सेहत पर भी बुरा असर पड़ सकता है. व्यक्ति अगली सुबह लो एनर्जी महसूस कर सकता है.
एडिक्शन हो सकता है
अगर कोई व्यक्ति रोज रात को सोने से पहले मोबाइल स्क्रॉल करता है तो उसे इसकी आदत हो सकती है. एक समय बाद यह आदत लत में बदल सकती है. यह बात हम सभी जानते हैं कि लत किसी भी चीज की सही नहीं होती है. रील स्क्रॉल करने का एडिक्शन हो जाए तो व्यक्ति न सिर्फ रात के समय बल्कि दिन के समय भी रील्स देखने लगता है. इससे काम की प्रोडक्टिविटी भी इफेक्टेड होती है. साथ ही सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है.
ऐसे पा सकते हैं छुटकारा
रील्स देखने में जो समय बिता रहे हैं वह दोस्तों के साथ गुजारें. कहीं घूमने जाएं. खूबसूरत यादें बनाएं.
किताबें और मैगज़ीन पढ़ें. ये ऑथेंटिक नॉलेज का जरिया हैं. फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं. खेलकूद में समय बिताएं. इस से हेल्थ भी सही रहता है.
मोबाइल से दूर रहे. कभी कभी मोबाइल दिन भर टच ही न करें यानी मोबाइल उपवास रखें.
बच्चों के सामने बड़े खुद भी कम से कम मोबाइल का इस्तेमाल करें.