Family Bond : मेरी सास की रोकटोक के कारण मैं परेशान हो गई हूं…

Family Bond : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मु झे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां सम झती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी सम झ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान सम झेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

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मेरी सास हमेशा हम पर दबाव बनाए रखती हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 32 वर्षीय विवाहिता हूं. संयुक्त परिवार में रहती हूं. मेरे सासससुर के अलावा विवाहयोग्य देवर भी है. मेरी एक ननद भी है, जो विवाहिता है. समस्या यह है कि मेरी सास हमेशा हम पर दबाव बनाए रखती हैं कि हम ननद के लिए वक्तबेवक्त उपहार देते रहें. और तो और मेरी ससुराल वाले मेरे मायके से भी लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते. घर का सारा खर्च हमें ही उठाना पड़ता है. ससुर रिटायर्ड हैं. देवर नौकरी करता है पर घरखर्च के लिए 1 रुपया नहीं देता. कभी कहो तो सुनने को मिलता है कि शादी के बाद वह भी जिम्मेदारी समझने लगेगा. इतनी महंगाई में एक व्यक्ति पर सारी गृहस्थी का बोझ डालना क्या वाजिब है? पति अपने मांबाप के सामने कभी जबान नहीं खोलते. ऐसे में मेरा उन से इस बारे में कुछ कहना क्या उचित होगा? पति को परेशान होते देखती हूं तो दुखी हो जाती हूं. बताएं क्या करूं?

जवाब-

आप के सासससुर को जीवन का लंबा अनुभव है. जब आप का देवर भी कमा रहा है, तो उस पर भी घरखर्च की जिम्मेदारी डालनी चाहिए. दोनों भाई मिल कर खर्च उठाएंगे तो किसी एक को परेशान नहीं होना पड़ेगा. इस के अलावा ननद पर भी खास मौके पर और अपनी हैसियत के अनुसार ही खर्च करें. सासससुर विशेषकर अपनी सास से शालीनता से बात कर सकती हैं कि वे देवर से भी घर की थोड़ीबहुत जिम्मेदारी उठाने को कहें. पूरे परिवार का एक व्यक्ति पर निर्भर रहना सही नहीं है. प्यार से बात करेंगी तो वे अवश्य इस विषय पर विचार करेंगी. भले ही शुरू में उन्हें आप का हस्तक्षेप अखरे और आप को आलोचना भी सुननी पड़े पर पति के भले के लिए आप इतना तो सुन ही सकती हैं.

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

सास बहू के रिश्ते में किस काम की ऐसी रस्में

अमला और सुयश का विवाह धूमधाम से संपन्न हो गया. घर में बहुत ही हंसीखुशी का माहौल था. सुयश की मां माया और पति अमला सासबहू कम, मांबेटी ज्यादा लग रही थीं.  सारे मेहमान चले गए तो माया ने कहा, ‘‘अमला, अब फ्री हुए हैं. आ जाओ, हिसाब  कर लें.’’

अमला कुछ समझी नहीं. बोली, ‘‘कैसा हिसाब? मांजी, मैं समझी नहीं.’’

‘‘अरे, वह जो तुम्हें मुंहदिखाई में कैश मिला है. सब ले आओ.’’

अमला अपना पर्स ले आई. सारा कैश निकाल कर माया को पकड़ा दिया. अमला ने सोचा, देख रही होंगी कि किस ने क्या दिया है. फिर उसी को पकड़ा देंगी.  सारा कैश गिन कर माया ने अपने पर्स में रख लिया तो अमला के मुंह से निकल गया, ‘‘मांजी, इन्हें आप रखेंगी?’’

‘‘हां, और क्या? इतने सालों से सब को दे ही तो रही हूं. यह मेरा दिया हुआ ही तो वापस आया है.’’

‘‘पर यह तो बहू का होता है न.’’

‘‘नहीं अमला, इस पर सास का हक होता है, क्योंकि मैं ही तो दे रही हूं सालों से, न देती तो कौन दे कर जाता?’’

नईनवेली बहू अमला चुप रही, पर मन ही मन सास पर इतना गुस्सा आया कि कई रिश्तेदारों, परिचितों से इस बात की शिकायत कर दी. माया को पता चला तो अमला पर बहुत गुस्सा हुईं.

रिश्ते में दरार

मांबेटी जैसा प्यार धरा का धरा रह गया. शुरुआती दिनों में ही दिलों में ऐसी कटुता जन्मी कि रिश्ता फिर मधुर हो ही नहीं पाया. माया सब से कहती कि अमला को खुद ही ये पैसे ‘उन्हीं का हक है’ कह कर खुशीखुशी दे देने चाहिए थे. उधर अमला का कहना था कि यह उन की मुंहदिखाई का उपहार है, पैसे उसे ही मिलने चाहिए थे.

एक रस्म ने सासबहू के रिश्ते में उपजी मिठास को पल भर में खत्म कर दिया. 4 दिन में ही इस रिश्ते में जो प्यार व सम्मान दिखाई दे रहा था, पैसे की बात आई तो दरार पड़ गई. माया और अमला दोनों ही सासबहू के रिश्ते को प्यार  व सम्मान से निभाने की तैयार कर रही थीं पर फिर ऐसी दरार उभरी जो कभी न भर पाई. आज  3 साल बाद भी माया और अमला को किसी के भी विवाह के समय यह बात याद आ जाती है तो आज भी बहस छिड़ जाती है.

बढ़ती हैं दूरियां

सुशीला ने अपनी बड़ी बहू नीता जो साधारण परिवार से आई थी और दहेज में भी कुछ खास नहीं लाई थी, उसे मुंहदिखाई में  100 रुपए पकड़ा दिए थे. छोटी बहू नताशा अमीर परिवार की लड़की थी जो अपने साथ बहुत  कुछ लाई थी, उस की मुंहदिखाई में सुशीला ने उसे सोने का सैट दिया तो नीता को बहुत दुख हुआ.

उस ने मुंह से तो कुछ नहीं कहा पर सास के इस भेदभाव ने उस का मन इतना आहत कर दिया कि वह उन से धीरेधीरे दूर होती चली गई. नताशा के समय मुंहदिखाई का पैसा भी सुशीला ने नहीं लिया जबकि नीता से 1-1 रुपया ले लिया था. यह बात सुशीला के बड़े बेटे रमेश ने भी नोट की तो उसे मां का यह भेदभाव अच्छा नहीं लगा. मन में दूरियां बढ़ती चली गईं.

ऐसी रस्मों से फायदा ही क्या जो किसी का मन दुखा दें. विवाह का अवसर घर में, जीवन में खुशियां लाता है पर कुछ रस्में घर के आपसी संबंधों में कटुता उत्पन्न करती हैं. हमारा समाज आडंबरों, रीतिरिवाजों से घिरा है और आजकल तो परिवार में गिनेचुने ही लोग होते हैं. उन में भी अगर ऐसी रस्मों के चलते कड़वाहट भर जाए तो ऐसी रस्में जीवन भर कचोटती हैं. कोई भी रिश्ता किसी रस्म के चंद पैसों से बढ़ कर नहीं है.

जानें क्या है डबल बर्डन सिंड्रोम

प्रसव के डेढ़ महीने ही बीते थे कि मोनिका ने औफिस जाना शुरू कर दिया. अगले 6 महीनों तक घर पर बच्चे की देखभाल मोनिका की गैरमौजूदगी में कभी उस की सास तो कभी उस की मां करती रहीं. मगर बच्चे के साल भर के होते ही दोनों ने ही अपनीअपनी मजबूरी के चलते बच्चे को संभालने में आनाकानी शुरू कर दी.

अब बच्चे को क्रेच में डालने के अलावा मोनिका के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. वह जौब नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर बच्चे को भी क्रेच में डाल कर खुश नहीं थी. औफिस में काम के दौरान कई बार उस का मन बच्चे की ओर चला जाता तो वहीं घर में बच्चे के साथ रहने पर उसे औफिस में अपनी खराब होती परफौर्मैंस का एहसास होता.

दोनों जिम्मेदारियों के बीच मोनिका पिसती जा रही थी. चिड़चिड़ाहट और घबराहट के कारण काम करने में उस से गलतियां होने लगी थीं. घर वालों के ताने और बौस की डांट धीरेधीरे मोनिका को डबल बर्डन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बना रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब मोनिका खुद को बच्चे और अपने बौस का अपराधी समझने लगी. आखिरकार उस ने जौब छोड़ दी और गृहिणी बन कर बच्चे की परवरिश में जुट गई.

क्या कहता है सर्वे

मोनिका जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो अच्छे पद, अच्छी आमदनी होने के बावजूद प्रसव के बाद या तो बच्चे और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं या फिर अपने कैरियर से समझौता कर के घर और बच्चे तक खुद को सीमित कर लेती हैं.

केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, शादी के बाद लगभग 40% भारतीय महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं वहीं 60% महिलाएं मां बनने के बाद बच्चे की परवरिश को अधिक महत्त्व देती हैं और नौकरी छोड़ देती हैं. इस के अतिरिक्त 20% महिलाएं जो घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारियां निभा रही होती हैं, वे कभी न कभी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की मनोचिकित्सक डाक्टर मीनाक्षी मनचंदा का कहना है, ‘‘भारतीय समाज है ही ऐसा. यहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं, मगर महिलाएं जब सशक्त  होने का प्रयास करती हैं, तो यही समाज उन्हें परिवार की जिम्मेदारी की बेडि़यों में जकड़ देता है.’’

पुष्पावती सिंघानियां रिसर्च इंस्टिट्यूट की मनोचिकित्सक डाक्टर कौस्तुबि शुक्ल का मानना है, ‘‘यह सिंड्रोम महिला और पुरुष दोनों को होता है. मगर भारत में इस सिंड्रोम की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. इस की बड़ी वजह यहां की संस्कृति है, जो कहती है कि महिलाएं अपने पेशेवर जीवन में कितनी भी उन्नति कर लें, मगर घर के प्रमुख कार्यों की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी होगी. हालांकि नौकरों और आधुनिक तकनीकों की मदद से जिम्मेदारियों का बोझ कुछ हद तक हलका हो जाता है, मगर बच्चा होने के बाद इन जिम्मेदारियों का स्वरूप बदल जाता है. आधुनिक तकनीक और नौकरों के साथ मातापिता को खुद भी बच्चे की देखभाल में समय देना पड़ता है. इस स्थिति में भी बच्चे की जिम्मेदारी मां पर डाल दी जाती है और पिता खुद को आर्थिक मददगार बनने की बात कह कर बचा लेता है.’’

मगर सवाल यह उठता है कि इस से फायदा क्या है? देखा जाए तो घर के किसी सदस्य के नौकरी छोड़ने पर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के स्थान पर कमजोर ही होती है. वहीं जिम्मेदारियों का सही बंटवारा परिवार की आर्थिक जरूरतों में रुकावट भी पैदा नहीं होने देता और महिलाओं को इस सिंड्रोम का शिकार होने से भी बचा लेता है. मगर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो कैसे?

सास के साथ सही साझेदारी

मनोचिकित्सक मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘आर्थिक मददगार तो महिलाएं भी बन सकती हैं. वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को न तोड़ा हो.  मगर घरेलू काम में पतियों से सहायता लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ है.  खासतौर पर उन घरों में जहां रिश्तेदारों का दखल ज्यादा होता है.’’

रिश्तेदारों की इस सूची में सब से पहले लड़के की मां का नाम आता है. घर के कामकाज में बेटे और बहू की हिस्सेदारी का वर्गीकरण भी यही मुहतरमा करती हैं, जिस में बच्चे के कामकाज से बेटे का कोई लेनादेना नहीं होता. बहू नौकरीपेशा है तब भी बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसी की है. भले ही बहू की घर पर गैरमौजूदगी में सास बच्चे की देखरेख कर भी लें, मगर इस बात को सुनहरे शब्दों में बहू पर जताने से भी वे पीछे नहीं हटतीं.

मीनाक्षी का मानना है कि इन स्थितियों में महिलाओं को थोड़ी सूझबूझ दिखानी चाहिए. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है, मगर सास के साथ बहू की सही साझेदारी ऐसे मौकों पर बहुत काम आ सकती है. यह बात तो पक्की है कि रूढिवादी सोच वाली सास बेटे को भले ही घर के काम न करने दें, मगर बहू से सही तालमेल बैठा कर घर की कुछ जिम्मेदारियां वे खुद संभाल लेती हैं. यहां जरूरत है कि महिलाएं सास पर थोड़ा विश्वास करें. उन की दिल को चुभने वाली बातों को अनसुना कर दें. रिश्तों में थोड़ा तालमेल बैठा कर चलें ताकि घर और कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर अच्छी परफौर्मैंस दे सकें.

पार्टनर से बात करें

सास के साथ ही अपने पति को भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बताएं. दरअसल, भारतीय समाज की इस रूढिवादी मानसिकता के चलते ही कई औरतें स्वीकार कर लेती हैं कि सहूलत से यदि बच्चे की देखभाल और नौकरी के बीच संतुलन बैठाया जा सकता है, तो ठीक है नहीं तो मानसिक तौर पर वे खुद को नौकरी छोड़ने और बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार कर लेती हैं.

इस बाबत डाक्टर कौस्तुबि कहती हैं,  ‘‘आजकल महिलाएं शादी से पूर्व अपने कैरियर को अधिक महत्त्व देती हैं. फिर अब शादी भी

देर से ही होती है. ऐसे में महिलाओं की रीप्रोडक्टिव लाइफ छोटी हो जाती है. उन्हें यह फैसला जल्दी लेना पड़ता है कि वे मां कब बनना चाहती हैं.  अब यदि यह कहा जाए कि कैरियर के लिए मां बनने की ख्वाहिश ही छोड़ दें, तो शायद यह सही नहीं होगा. लेकिन मां बनने के लिए नौकरी छोड़ दें, यह भी कोई हल नहीं है. इसलिए महिलाओं को अपने पार्टनर से पहले ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र कर लेना चाहिए और उस के हिसाब से भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए.’’

आज का दौर पढ़ेलिखों का है. पतिपत्नी इस बात को बखूबी समझते हैं कि महंगाई के इस जमाने में दोनों की कमाई से ही परिवार रूपी गाड़ी खींची जा सकती है. इसलिए आपस में समझौता कर लेना ही सही निर्णय है. इस समझौते में बहुत सारी बातों का जिक्र किया जा सकता है, जो महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी के बोझ और बेरोजगारी दोनों से बचा सकता है.

मनोचिकित्सक कौस्तुबि ऐसे ही कुछ समझौतों के बारे में बताती हैं:

– आज के वर्क कल्चर में शिफ्ट में काम करना चलन में है और यह गलत भी नहीं है.  नौकरीपेशा दंपती अपनी सहूलत के हिसाब से शिफ्ट का चुनाव कर सकते हैं और बारीबारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं.

– यदि कंपनी में वर्क फ्रौम होम की सुविधा है, तो कभीकभी पतिपत्नी इस सुविधा का फायदा भी उठा सकते हैं. इस से घर और कार्यालय दोनों का ही काम बाधित नहीं होता.

– कुछ कार्यक्षेत्रों में फ्रीलांसिंग काम भी किया जा सकता है और इस में भी अच्छी आमदनी की गुंजाइश होती है. पति या पत्नी में से कोई एक अपनी फुलटाइम नौकरी छोड़ कर फ्रीलांसिंग में भी हाथ आजमा सकता है.

दांपत्य जीवन में थोड़ी सूझबूझ से फैसले लिए जाएं, तो आपसी मनमुटाव डबल बर्डन सिंड्रोम से बचा जा सकता है.

प्यार का है सास-बहू का रिश्ता

अकसर लड़कों को बड़े होते देख मातापिता उन के विवाह के सपने देखने लगते हैं. फिर किसी की बेटी को अपने कुल की शोभा बना कर अपने परिवार में ले आते हैं. इसी तरह लड़की को बड़ी होती देख उस के विवाह की कल्पनामात्र मातापिता को भावुक बना देती है. यही नहीं, स्वयं लड़की भी अपने विवाह की कल्पना में उमंगों से सराबोर रहती है. वह केवल पत्नी नहीं, बहू, भाभी, चाची, ताई, देवरानी, जेठानी जैसे बहुत सारे रिश्ते निभाती है.

शादी के कुछ समय बाद न जाने कौन से बदलाव आते हैं कि ससुराल वालों को बहू में दोष ही दोष नजर आने लगते हैं. उधर लड़की भी ससुराल वालों के प्रति अपनी सोच और रवैया बदल लेती है. कुछ परिवारों में तो 36 का आंकड़ा हो जाता है. लड़की के ससुराल पक्ष के लोग परिवार की हर मुसीबत की जड़ बहू और उस के परिवार वालों को ही मान लेते हैं. एकदूसरे को समझें जरूरी है कि आप एकदूसरे की भावनाओं को समझें. जब हम किसी की बेटी को अपने परिवार में लाते हैं, तो उसे अपने पिता के घर (जहां वह पलीबढ़ी) की अपेक्षा बिलकुल जुदा माहौल मिलता है. बात रहनसहन और खानपान की हो या फिर स्वभाव की, सब अलग होता है.

इस के अलावा पतिपत्नी के संबंधों को समझने में भी उसे कुछ समय लगता है. ऐसे में यदि परिवार के लोग अपेक्षाएं कम रखें और बहू को अपना मानते हुए समझ से काम लें, तो शायद परेशानियां जन्म ही न लें.

बहू के घर आने से पहले ही सासें बहुत सारी अपेक्षाएं रखने लगती हैं जैसे बहू आएगी तो काम का बोझ कम हो जाएगा. वह सब की सेवा करेगी इत्यादि.

दूसरी तरफ शादी के बाद तो लड़के का प्यार घर के अन्य सदस्यों के साथसाथ अपनी पत्नी के लिए भी बंटने लगता है, तो घर वालों को लगता है कि बेटा जोरू का गुलाम हो गया.

बहू का घर के कामों में परफैक्ट न होना या काम कम करना बहुत बड़ा दोष बन जाता है. हर सास यह भूल जाती है कि पहली दफा ससुराल में आने पर जैसे उसे पति का साथ भाता था, वैसा ही बहू के साथ भी होता होगा.

सम्मान दे कर सम्मान पैदा करें

सासबहू के संबंध मधुर बने रहें, इस के लिए सास के व्यवहार में उदारता, धैर्य और त्याग के भाव होने आवश्यक हैं. अपने प्रियजनों को छोड़ कर आई बहू से प्यार भरा व्यवहार ही उसे नए परिवार के साथ जोड़ सकता है, उसे अपनेपन का एहसास करा सकता है और उस के मन में सम्मान और सहयोग की भावना उत्पन्न कर सकता है. बहू को सिर्फ काम करने वाली मशीन न समझ कर परिवार का सदस्य माना जाए.

बहू के विचारों व भावनाओं को महत्त्व दिया जाए. उस से परिवार के हर फैसले में सलाह ली जाए, तो परिवार में सुखशांति बनी रहे और समृद्धि भी हो.

यदि सास घर के सारे काम बहू को न सौंप कर खुद भी कुछ काम करती रहे, तो सास का स्वास्थ्य तो बेहतर रहेगा ही, परिवार का वातावरण भी मधुर बना रहेगा.

दूसरी तरफ शादी के बाद लड़की के भी कुछ फर्ज हैं, जो उसे निभाने चाहिए. लड़की यह नहीं समझ पाती कि किसी भी सदस्य द्वारा समझाया जाना टोकाटाकी नहीं है. घर का थोड़ाबहुत काम भी उसे बोझ लगने लगता है.

उसे लगता है कि पति सिर्फ उस का है. वह किसी और सदस्य को समय देता है, तो वह उसे अपनी अपेक्षा समझती है. दूसरे शब्दों में ससुराल में अधिकार क्या हैं, यह तो उसे मालूम है पर कर्तव्यपालन को बोझ समझने लगती है.

ससुराल में बेटी जैसे अधिकार मिलें, यह तो जरूरी है पर किसी के टोकने पर वह यह भूल जाती है कि मायके में भी तो ऐसी परिस्थितियां आती थीं. डांट तो मायके में भी पड़ जाती थी. माना कि उस का ससुराल में किसी से (अपने बच्चों को छोड़ कर) खून का रिश्ता नहीं है पर इनसानियत और प्यार का रिश्ता तो है.

उसे भी इस सच को दिल से स्वीकार करना चाहिए कि थोड़ी सी मेहनत से सब का मन जीत कर वह सब को अपना बना सकती है. जौब पर जाने वाली लड़कियों को परिवार के साथ रहने का अधिक समय भले ही न मिलता हो, लेकिन समय निकाला तो जा सकता है और फिर परिवार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिए कुछ कर्तव्य तो उस के भी हैं.

परिवार वालों को स्नेह और सम्मान दे कर वह अपने पति के दिल को जीत सकती है.

वर्चस्व की लड़ाई से बचें

दरअसल, वर्चस्व की लड़ाई ही सासबहू के बीच टकराव पैदा करती है. किसी भी संयुक्त परिवार में सास और बहू ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ व्यतीत करती हैं. उन के ऊपर ही घर के कामकाज की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में घर में अशांति का मुख्य कारण भी सास और बहू के कटु संबंध होते हैं.

आज टीवी पर अधिकतर धारावाहिक सासबहू के रिश्तों पर मिलते हैं. अधिकांश में दोनों में से कोई एक चालें चल रही होती है, कुछ में रिश्तों को व्यंग्यात्मक तरीके से पेश किया जाता है. विभिन्न सर्वेक्षणों व शोधों में यह बात सामने आई है कि संयुक्त परिवारों में तनाव का 60% कारण सासबहू के बीच का रिश्ता होता है.

जिन घरों में बहुत ही चाव से उन धारावाहिकों को देखा जाता है वहां विवाद ज्यादा होते हैं. वे घंटों उस पर डिस्कस भी करते हैं कि वह सास कितना गलत कर रही है या उस सीरियल की बहू कैसी शातिर है. तभी यह सास और बहू के मन में बैठ जाता है कि धारावाही के पात्रों की तरह ही दूसरी है और टीवी पर जाना जीवन में उतरने लगता है. जब बात खुद पर आती है तो हम भी वैसा ही करते हैं.

हम सभी किसी न किसी फिल्म या धारावाही के पात्रों से स्वयं को जुड़ा महसूस करते हैं और उस के जैसा ही बनना चाहते हैं. आप कैसी सास बनना पसंद करेंगी? ‘कुछ रंग प्यार के’ सीरियल की ईश्वरी देवी जैसी या फिर ‘बालिका वधू’ की दादीसा जैसी?

बहू का कौन सा किरदार आप को सूट करता है? आप सासबहू के किसी भी किरदार के रूप में ढलें, पर एक सवाल अपनेआप से जरूर करें कि क्या घर के किसी भी सदस्य को दुख पहुंचा कर आप खुश रह सकती हैं? क्या परिवार के सदस्यों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने से आप का जमीर आप को धिक्कारता नहीं? परिवार एक माला की तरह है और सदस्य मोती हैं. फिर क्या आप इस माला के बिखरने से खुश रह सकेंगी?

बहुओं के लिए जरूरी है कि वे बुजुर्गों के साथ कभी बहस न करें. किसी भी टकराव की स्थिति से बचें. अपनी बात उन के सामने जरूर रखें पर शांतिपूर्ण तरीके से.

इन सब से ऊपर लड़के की समझदारी भी जरूरी है. समझदारी एक अच्छे पति, बेटे और दामाद के रूप में.

मुंबई में रहने वाली वाणी का कहना है, ‘‘मैं तमिल परिवार से हूं और मेरी शादी एक पंजाबी परिवार में हुई है. मुझे सास का बहुत डर था. मेरी सहेली और रिश्तेदारों ने मुझे सास नाम से डरा दिया था. हमारी शादी अलग धर्म में हुई थी. रहनसहन, खानपान सब अलग था, लेकिन जितना मैं डर रही थी, उस का उलटा ही हुआ.

‘‘मेरी सास ने मुझे प्यार से सब कुछ बनाना सिखाया, हिंदी बोलना सिखाया. वे मुझे सास कम और दोस्त ज्यादा लगीं.’’

दिल्ली की मधु कहती हैं, ‘‘मैं सिर्फ 16 साल की उम्र में खुशीखुशी अपनी ससुराल आ गई. मेरे मन में किसी तरह का डर और पूर्वाग्रह नहीं था. मैं ने सोच रखा था कि कोई उलटा जवाब नहीं दूंगी. फिर कोई मुझ से नाराज क्यों होगा?

‘‘सासूजी वैसे तो बात बड़े प्यार से करती थीं, लेकिन मन ही मन न जाने क्यों उन्हें अपने बेटे के बदल जाने का डर था, जिस की वजह से वे मेरे हर काम में कोई न कोई कमी निकालती रहतीं. मैं कोई वादविवाद नहीं करती, फिर भी बात धीरेधीरे बढ़ने लगी.

‘‘सासूजी अब बाहर के लोगों के सामने भी मेरी बेइज्जती करने लगीं. वे हर समय मेरी बुराई करतीं. मेरी भी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी. मैं उन्हें पलट कर बातें सुनाने लगी. इन सब बातों से घर का वातावरण खराब होने लगा. पति हर समय तनाव में रहते. वे न तो मां को समझा पाते और न ही मुझ को.

‘‘इस बीच मेरी सास बीमार हुईं पर जब मैं ने उन की खूब सेवा की तो उन का मन मेरे प्रति बदल गया और वे मुझे प्यार करने लगीं. मुझे नहीं मालूम कि उन का मन परिवर्तन मेरी सेवा से हुआ या मेरी समझदारी से. महत्त्वपूर्ण यह है कि आज घर का माहौल शांत है.’’

इन 2 मामलों से बिलकुल अलग एक मामला है मोहिनी का. वे बताती हैं, ‘‘मेरी शादी के बाद से ही परेशानियों का दौर शुरू हो गया था. पूरे घर में सास और ननद का वर्चस्व था. कहने को तो ननद शादीशुदा थीं पर शुरू से ही मेरी काट करती रहतीं. मैं सासससुर और ननद के त्रिकोण में फंसी थी.

‘‘पति हमेशा चुप रहते. उन दोनों की कुटिल चालों से हमारे अलग होने तक की नौबत आ गई. फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि हालात ने करवट बदल ली. पति अब समझ गए हैं कि कमी कहां है.

‘‘ननद अपनी हरकतों के कारण मायके में ही है. सासूजी को भी अब मेरी उपयोगिता पता चल गई है. बेटी और बहू के बीच एक बहुत बारीक सी रेखा होती है. जरूरत सिर्फ उसे खत्म करने की होती है. पीछे मुड़ कर देखती हूं तो बहुत दुख होता है, क्योंकि जो गोल्डन पीरियड था वह खत्म हो गया था. फिर भी एक सुकून है कि चलो देर आए दुरुस्त आए.’’

पराई नहीं अपनी बेटी मानें

कुछ घरों में सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है जबकि कुछ घरों में हालात बहुत खराब होते हैं. कमी न मां में होती है न बहू में, कमी तो उन की समझ, उन के प्यार में होती है.

सवाल यह है कि आखिर सास बहू को पराया क्यों मानती है? कहने को अगर घर की बात है तो हम हमेशा यही सुनना पसंद करेंगे कि घर उस का है. लेकिन घर के साथ जिम्मेदारियां भी होती हैं.

वहीं दूसरी ओर कुछ बहुएं ऐसी भी होती हैं, जो सिर्फ अपने पति की या बच्चों की ही जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं, सासससुर की नहीं. इसे घर संभालना नहीं कहते.

घर में तो सभी लोग होते हैं. सब के बारे में सोचना चाहिए जैसे वह अपने मायके में सब के लिए सोचती है.

वस्तुत: घर पूरे परिवार का होता है. हर सदस्य को अलगअलग अपनी जिम्मेदारियां उठानी चाहिए. घर को सिर्फ सास का कहना या बेटे और उस की पत्नी का कहना गलत होगा, क्योंकि घर में बाकी लोग भी तो रहते हैं. किसी एक इनसान से घर नहीं बनता. घर तो पूरे परिवार से बनता है.

छोटीछोटी बातों का ध्यान रखा जाए, तो परिवार का वातावरण सहज, सुखद एवं शांतिपूर्ण बन सकता है.

सास कमाऊ-बहू घरेलू तो कैसे निभाएं

कुमकुम भटनागर 55 साल की हैं पर देखने में 45 से अधिक की नहीं लगतीं. वे सरकारी नौकरी में हैं और काफी फिट हैं. स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं और आत्मविश्वास के साथ चलती हैं.

करीब 25 साल पहले अपने पति के कहने पर उन्होंने सरकारी टीचर के पद के लिए आवेदन किया. वे ग्रैजुएट थीं और कंप्यूटर कोर्स भी किया हुआ था. इस वजह से उन्हें जल्द ही नौकरी मिल गई. कुमकुमजी पूरे उत्साह के साथ अपने काम में जुट गईं.

उस वक्त बेटा छोटा था पर सास और पति के सहयोग से सब काम आसान हो गया. समय के साथ उन्हें तरक्की भी मिलती गई. आज कुमकुम खुद एक सास हैं. उन की बहू प्रियांशी पढ़ीलिखी, सम झदार लड़की है. कुमकुम ऐसी ही बहू चाहती थीं. उन्होंने जानबू झ कर कामकाजी नहीं बल्कि घरेलू लड़की को बहू बनाया क्योंकि उन्हें डर था कि सासबहू दोनों औफिस जाएंगी तो घर कौन संभालेगा?

प्रियांशी काफी मिलनसार और सुघड़ बहू साबित हुई. घर के काम बहुत करीने से करती. मगर प्रियांशी के दिल में कहीं न कहीं एक कसक जरूर उठती थी कि उस की सास तो रोज सजधज कर औफिस चली जाती है और वह घर की चारदीवारी में कैद है.

वैसे जौब न करने का इरादा उस का हमेशा से रहा था, पर सास को देख कर एक हीनभावना होने लगी थी. कुमकुम अपने रुपए जी खोल कर खुद पर खर्च करतीं. कभीकभी बहूबेटे के लिए भी कुछ उपहार ले आतीं. मगर बहू को हमेशा पैसों के लिए अपने पति की तरफ देखना पड़ता. धीरेधीरे यह असंतोष प्रियांशी के दिमाग पर हावी होने लगा. उस की सहेलियां भी उसे भड़काने लगीं.

नतीजा यह हुआ कि प्रियांशी चिड़चिड़ी होती गई. सास की कोई भी बात उसे अखरने लगी. घर में  झगड़े होने लगे. एक हैप्पी फैमिली जल्द शिकायती फैमिली में तबदील हो गई.

आज लड़कियां ऊंची शिक्षा पा रही हैं. कंपीटीशन में लड़कों को मात दे रही हैं. भारत में आजकल ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं कामकाजी ही हैं खासकर नई जैनरेशन की लड़कियां घर में बैठना पसंद नहीं करतीं. ऐसे में यदि घर की सास औफिस जाए और बहू  घर में बैठे तो कई बातें तकरार पैदा कर सकती हैं. ऐसे आवश्यकता है इन बातों का खयाल रखने की:

रुपयों का बंटवारा

यदि सास कमा रही हैं और अपनी मनमरजी पैसे खर्च कर रही हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं बहू को यह बात चुभेगी जरूर. बहू को रुपयों के लिए अपने पति के आगे हाथ पसारना खटकने लगेगा. यह बहू के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात होगी. वह मन ही मन सास के साथ प्रतियोगिता की भावना रखने लगेगी.

ऐसे में सास को चाहिए कि अपनी और बेटे की कमाई एक जगह रखें और इस धन को कायदे से 4 भागों में बांटें. एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करें, एक हिस्सा घर के खर्चों के लिए रखें, एक हिस्सा बच्चे की पढ़ाई और किराए आदि के लिए रख दें और बाकी बचे हिस्से के रुपए बहू, बेटे और अपने बीच बराबरबराबर बांट लें. इस तरह घर में रुपयों को ले कर कोई  झगड़ा नहीं होगा और बहू को भी इंपौर्टैंस मिल जाएगी.

काम का बंटवारा

सास रोज औफिस जाएगी तो जाहिर है कि बहू का पूरा दिन घर के कामों में गुजरेगा. उसे कहीं न कहीं यह चिढ़न रहेगी कि वह अकेली ही खटती रहती है. उधर सास भी पूरा दिन औफिस का काम कर के जब थक कर लौटेंगी तो फिर घर के कामों में हाथ बंटाना उन के लिए मुमकिन नहीं होगा. ऐसे में उन की बहू से यही अपेक्षा रहेगी कि वह गरमगरम खाना बना कर खिलाए.

इस समस्या का समाधान कहीं न कहीं एकदूसरे का दर्द सम झने में छिपा हुआ है. सास को सम झना पड़ेगा कि कभी न कभी बहू को भी काम से छुट्टी मिलनी चाहिए. उधर बहू को भी सास की उम्र और दिनभर की थकान महसूस करनी पड़ेगी.

जहां तक घर के कामों की बात है तो सैटरडे, संडे को सास घर के कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर बहू को आराम दे सकती हैं. वे बहू को बेटे के साथ कहीं घूमने भेज सकती हैं या फिर बाहर से खाना और्डर कर बहू को स्पैशल फील करवा सकती हैं. इस तरह एकदूसरे की भावनाएं सम झ कर ही समस्या का समाधान निकाला जा सकता है.

फैशन का चक्कर

कामकाजी सास की बहू को कहीं न कहीं यह जरूर खटकता है कि उस के मुकाबले सास ज्यादा फैशन कर रही हैं. वह खुद तो सुबह से शाम तक घरगृहस्थी में फंसी पड़ी है और सास रोज नए कपड़े पहन और बनसंवर कर बाहर जा रही हैं. औफिस जाने वाली महिलाओं का सर्कल भी बड़ा हो जाता है. सास की सहेलियां और पौपुलैरिटी बहू के अंदर एक चुभन पैदा कर सकती है.

ऐसे में सास का कर्तव्य बनता है कि फैशन के मामले में व बहू को साथ ले कर चलें. बात कपड़ों की हो या मेकअप प्रोडक्ट्स की, सैलून या फिर किट्टी पार्टी में जाने की, बहू के साथ टीमअप करने से सास की खुशी और लोकप्रियता बढ़ेगी और बहू भी खुशी महसूस करेगी.

वैसे भी आजकल महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू, टिपटौप और स्मार्ट बन कर रहना समय की मांग है. हर पति यही चाहता है कि जब वह घर लौटे तो पत्नी का मुसकराता चेहरा सामने मिले. पत्नी स्मार्ट और खूबसूरत होगी तो घर का माहौल भी खुशनुमा बना रहेगा.

प्रोत्साहन जरूरी

यह आवश्यक नहीं कि कोई महिला तभी कामकाजी कहलाती है जब वह औफिस जाती है. आजकल घर से काम करने के भी बहुत सारे औप्शन हैं. आप की बहू घर से काम कर सकती है. वह किसी औफिस से जुड़ सकती है या फिर अपना काम कर सकती है. हर इंसान को प्रकृति ने कोई न कोई हुनर जरूर दिया है. जरूरत है उसे पहचानने की.

यदि आप की बहू के पास भी कोई हुनर है तो उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें. वह कई तरह के काम कर सकती है जैसे पेंटिंग, डांस या म्यूजिक टीचर, राइटर, इवेंट मैनेजर, फोटोग्राफर, ट्रांसलेटर, कुकिंग ऐक्सपर्ट या फिर कुछ और. इन के जरीए एक महिला अच्छीखासी कमाई भी कर सकती है और समाज में रुतबा भी हासिल कर सकती है.

घर में सास का रुतबा

पैसे के साथ इंसान का रुतबा बढ़ता है. बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी. जाहिर है जब पत्नी घरेलू हो और मां कमाऊ तो पति भी अपनी मां को ही ज्यादा भाव देगा. घर के हर फैसले पर मां की रजामंदी मांगी जाएगी. पत्नी को कोने में कर दिया जाएगा. इस से युवा पत्नी का कुढ़ना स्वाभाविक है.

ऐसे में पति को चाहिए कि वह मां के साथसाथ पत्नी को भी महत्त्व दे. पत्नी युवा है, नई सोच और बेहतर सम झ वाली है. वैसे भी पतिपत्नी गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. पत्नी को इग्नोर कर वह अपना ही नुकसान करेगा.

उधर मां भी उम्रदराज हैं और वर्किंग हैं. उन के पास अनुभवों की कमी नहीं. ऐसे में मां के विचारों का सम्मान करना भी उस का दायित्व है.

जरूरत है दोनों को आपस में तालमेल बैठाने की. घर की खुशहाली में घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है, इस बात को सम झ कर समस्या को जड़ से ही समाप्त किया जा सकता है.

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सास नहीं मां बनें

आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.

समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.

बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.

सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.

हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.

एटीएम न मिलने का दुख

12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.

पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई

भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.

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हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.

मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.

ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.

मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.

एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’

इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’

बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.

रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.

संयुक्त परिवार नहीं चाहिए

25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह  बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.

‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.

‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’

‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.

‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.

‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.

‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.

‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’

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रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.

सारी सासें एक सी

योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.

मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.

3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.

जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.

उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.

सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.

कैसे पटेगा एकतरफा सौदा

सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती  है?

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इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?

यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.

मैं अपनी सासूमां से परेशान हूं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मुझे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां समझती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान समझेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

सास-बहू मजबूत बनाएं रिश्तों की डोर

सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित भी हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के.

संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं, बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

बहुत कुछ बदलने की जरूरत

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती, बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन  2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं:

– आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथ आत्मनिर्भर भी है, मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

– आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

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– बहुओं का आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

– गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

– बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

– सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविश्वासी व बिंदास रूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

– पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

– बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है.

छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज की सीनियर प्रोफैसर राइटर और मनोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50% मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55% बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं, जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही  घर में अलगथलग कर दिया.

दुनिया के सभी रिश्तों से कहीं ज्यादा जटिल रिश्ता है सासबहू का. भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इसे कठिन रिश्ता माना गया है. भारत में यह समस्या ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां परिवार व बड़ेबुजुर्गों को अहमियत दी जाती है.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच:

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह बाद अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलांदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है.

आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच:

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा ?ोला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है.

वहीं बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना सरल नहीं हो रहा है जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर:

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है सास में ‘पावर इनसिक्योरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्योरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते है.

बेटेबहू का रिश्ता मजबूत बनाने में मां की अहम भूमिका: विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत है.

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है जिस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकरा कर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

बहू को बेटे की पत्नी व अपनी बहू मानने से पहले एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करे. उस के विचारों, फ्रैंड सर्कल, उस के काम को भी उतना ही महत्त्व दे जितना बेटे को देती है. युवा लड़कों में अपनी कामकाजी पत्नी को ले कर बहुत बदलाव आया है, लेकिन अकसर देखने को मिलता है कि मां बेटे के इस भाव को पोषित नहीं कर पाती.

बहू बेटे की पीढ़ी की व उसी के समकक्ष शिक्षित है, नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है. बेटा और बहू की कई आपसी बातें, सलाहें उन की अपनी पीढ़ी के अनुसार हैं जो अकसर सास को समझ नहीं आतीं और वह खुद को उपेक्षित महसूस करती है. बेटेबहू के आपसी रिश्ते को सहजता से लेने की जरूरत है, जैसे बेटीदामाद का लेते हैं. क्या वे मां को सबकुछ बता देते हैं?

निजी जिंदगी में हस्तक्षेप नहीं: बेटे बहू के बीच छोटीमोटा झगड़ा होना आम बात है. वे दोनों इसे खुद ही सुलझ लेते हैं. लेकिन उन दोनों के बीच पड़ कर यह सोचना कि बहू गलती मान कर सुलह कर ले, छोटे से झगड़े को बड़ा कर देता है.

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एकदूसरे से जलन क्यों:

सास और बहू के बीच जलन यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाए, किसी मसले पर उन से सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाले तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थी. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का ले वरना तटस्थ बनी रहे.

बच्चों के रिश्ते को बचाए रखने की जिम्मेदारी दोनों परिवारों की: यह सही है कि बहू का असली घर उस के पति का ही घर माना जाता है. इसलिए उस के ससुराल वालों पर बच्चों के विवाह को मजबूत बनाने की और अलगाव की स्थिति में बचाने की जिम्मेदारी ज्यादा आती है. जो बेटा जितना अपनी मां के करीब होगा वह मां और भी इस के लिए प्रयासरत रह सकती है क्योंकि बेटा अपनी मां की सलाह सुन लेता है.

मगर आज के समय लड़की के मातापिता भी इस के लिए कम कुसूरवार नहीं हैं. वे भी छोटीछोटी बातों में बेटी को उकसा कर तिल का ताड़ बना देते हैं. बेटी पर कोई अत्याचार हो रहा है तो जरूर साथ दें, लेकिन छोटीछोटी बातों, परिस्थितियों में बेटी को समझतावादी नजरिया रखने को कहें क्योंकि एक विवाह टूट कर दूसरा इतना सरल नहीं होता.

तलाक सिर्फ एक रास्ता है, मंजिल नहीं है खास कर जब बच्चे हों, क्योंकि तलाक पतिपत्नी का होता है, मातापिता का नहीं होता. बच्चों को दोनों की जरूरत होती है.

हर छोटी सी बात को मानसम्मान का प्रश्न बना लेना कोई समझदारी नहीं है. ससुराल वालों को भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है.

बहू के रूप में आई लड़की के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना सीखें. ‘तारीफ करने की आदत’ व ‘स्वीकार करने’ का स्वभाव किसी भी रिश्ते को टूटने से ही नहीं बचाता, अपितु मजबूत भी बनाता है.

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आज की सास बहू, मिले सुर मेरा तुम्हारा

संडे था. फुटबौल का मैच चल रहा था. विपिन टीवी पर नजरें जमाए बैठा था. रिया ने कई बार कोशिश की कि विपिन टीवी छोड़ कर उस के साथ मूवी देखने चले पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था.

बीचबीच में इतना कह देता था, ‘‘मैच खत्म होने दो, फिर बात करता हूं.’’ वहीं पास बैठी पत्रिका पढ़ती मालती बेटेबहू के बीच चलती बातें सुन चुपचाप मुसकरा रही थीं. सुधीश यानी उन के पति भी मैच देखने में व्यस्त थे. मालती को अपना अनुभव याद आ गया. सुधीश भी टीवी पर मैच देखना ही पसंद करते थे. मालती को भी मूवीज देखने का बहुत शौक था. बड़ी जिद कर के वे सुधीश को ले जाती थीं पर अच्छी से अच्छी फिल्म को भी देख कर वे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते थे, उसे देख कर मालती हमेशा पछताती थीं कि क्यों ले आई इन्हें.

मालती ने चुपचाप रिया को अंदर चलने का इशारा किया तो रिया चौंकी. फिर मालती के पीछेपीछे वह उन के बैडरूम में जा पहुंची. पूछा, ‘‘मम्मीजी, क्या हुआ?’’

‘‘कौन सी मूवी देखनी है तुम्हें?’’

‘‘सुलतान.’’

मालती हंस पड़ीं, ‘‘टिकट मिल जाएंगे?’’

‘‘देखना पड़ेगा जा कर, पर विपिन पहले हिलें तो.’’

‘‘उसे छोड़ो, वह नहीं हिलेगा. तुम तैयार हो जाओ.’’

‘‘मैं अकेली?’’

‘‘नहीं भई, मुझे भी तो देखनी है.’’

‘‘क्या?’’ हैरान हुई रिया.

‘‘और क्या भई, मुझे भी बहुत शौक है. इन बापबेटे को मैच छुड़वा कर जबरदस्ती मूवी ले गए तो वहां भी ये दोनों ऐंजौय थोड़े ही करेंगे. हमारा भी उत्साह कम कर देंगे. चलो, निकलती हैं, मूवी देखने और फिर डिनर कर के ही लौटेंगी.’’

रिया मालती के गले लग गई. खुश होते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू मम्मीजी, कितनी बोर हो रही थी मैं. संडे को पूरा दिन विपिन टीवी से चिपके रहते हैं.’’

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दोनों सासबहू तैयार हो गईं.

सुधीश और विपिन ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हैं?’’

‘‘मूवी देखने.’’

दोनों को करंट सा लगा. सुधीश ने कहा, ‘‘अकेले?’’

मालती हंसीं, ‘‘अकेले कहां, बहू साथ है. चलो, बाय. खाना रखा है. तुम दोनों का. हम डिनर बाहर करेंगी,’’ कह कर मालती रिया के साथ जल्दी से निकल गईं.

सासबहू ने 2 सहेलियों की तरह ‘सुलतान’ फिल्म का आनंद उठाया. कभी सलमान की बौडी की बात करतीं, तो कभी किसी सीन पर खुल कर ठहाके लगातीं. खूब अच्छे मूड में मूवी देख कर दोनों ने बढि़या डिनर किया. रात 10 बजे दोनों खिलीखिली घर पहुंचीं. बापबेटे का मैच खत्म हो चुका था. दोनों बोर हो रहे थे.

इस के बाद तो मालती और रिया के बीच सासबहू का रिश्ता 2 सहेलियों में बदल गया. जब भी सुधीश और विपिन कोई प्रोग्राम बनाने में जरा भी आनाकानी करते, दोनों दोबारा पूछती भी नहीं. शौपिंग पर भी साथ जाने लगीं, क्योंकि दोनों पुरुष लेडीज शौपिंग में बोर होते थे. दोनों को अब किसी फ्रैंड की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. रिया भी औफिस जाती थी. छुट्टी वाले दिन वह बाहर जाना चाहती, तो विपिन और सुधीश मैच देखना चाहते, दोनों फुटबौल के दीवाने थे. रिपीट मैच भी शौक से देखते थे. उन्हें मूवीज, शौपिंग का शौक था ही नहीं. रिया और विपिन में अब इस बात पर कोई मूड भी नहीं खराब करता था. चारों अपनाअपना शौक पूरा कर रहे थे.

एकदूसरे के साथ समय बिताने से एकदूसरे के स्वभाव, पसंदनापसंद जानने के बाद दोनों एकदूसरे की हर बात का ध्यान रखती थीं.

अब तो हालत यह हो गई थी कि विपिन कभी फ्री होता तो रिया कह देती, ‘‘तुम रहने दो, मम्मीजी के साथ चली जाऊंगी. तुम तो शौप के बाहर फोन में बिजी हो जाते हो. बोरियत होती है.’’

विपिन हैरान रह जाता था. सुधीश के साथ भी यही होने लगा था. रिया फ्री होती तो मालती रिया की ही कंपनी पसंद करतीं. सासबहू की बौंडिंग देख कर पितापुत्र हैरान रह जाते थे.

कई बार कह भी देते थे, ‘‘तुम दोनों हमें भूल ही गईं.’’

घर का माहौल हलकाफुलका, खुशनुमा रहता.

हर घर में सासबहू 2 सहेलियां बन जाएं तो जीने का मजा ही कुछ और होता है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए एकदूसरे के सुखदुख, पसंदनापसंद को दिल से महसूस करना होगा. जरूरी नहीं है कि पतिपत्नी के शौक एकजैसे हों. दोनों का अपना मन मारना ठीक नहीं होगा. अगर पितापुत्र के शौक सासबहू से नहीं मिलते और सासबहू की पसंदनापसंद आपस में मिलती है तो क्यों न अपने मन के अनुसार जीने के लिए एकदूसरे का साथ दे कर घर का माहौल तनावमुक्त रखा जाए.

एक और उदाहरण देखते हैं. एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मी व पलीबढ़ी सुमन जब एक मुसलिम लड़के समीर से अंतर्जातीय विवाह कर ससुराल पहुंची, तो सास आबिदा बेगम ने यह पता चलने पर कि सुमन शाकाहारी है, केवल शाकाहारी खाना बनातीं.

सुमन समीर के साथ लखनऊ में रहती थी. वह जितने भी दिन ससुराल कानपुर रहती, उतने दिन सिर्फ शाकाहारी खाना बनता. इस बात ने सुमन के मन में सासूमां के लिए प्यार और आदर का ऐसा बीज बोया कि समय के साथ सुमन के दिल में उस की इतनी गहरी जड़ें मजबूत हुईं कि दुनिया 2 अलगअलग माहौल में पलीबढ़ी सासबहू के बीच बैठे तालमेल को देख वाहवाह कर उठी.

आबिदा बेगम जो बहुत शांत और गंभीर सी दिखती थीं जब खुशमिजाज सुमन के साथ हंसतीबोलती, खिलखिलाती बाहर जातीं, तो उन के पति और बेटा हैरान हो जाते.

आज की अधिकतर सासें पुरानी फिल्मों की ललिता पवार जैसी सासें नहीं हैं. वे भी बहू के साथ हंसीखुशी से जीना चाहती हैं, जीवन में छूटे शौक को, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती हैं, वे बहू का प्यार भरा साथ पा कर जी उठती हैं.

आज की अधिकांश बहुएं भी पढ़ीलिखी, समझदार हैं. वे अपने कर्तव्यों, अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे कामकाजी हैं. छुट्टी वाले दिन रिलैक्स होना चाहती हैं. सास का प्यार भरा साथ मिल जाए तो वे भी उत्साह से भर उठती हैं.

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आज की सासबहुएं दोनों ही जानती हैं कि हंसीखुशी एकसाथ मिल कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है, लड़झगड़ कर अपना और दूसरों का जीना मुश्किल करने से कोई फायदा नहीं है. इस से दोनों पक्षों के लिए मुश्किलें ही बढ़ेंगी.

10 चीजें सासबहू साथसाथ कर सकती हैं:

1.     ब्यूटीपार्लर में जाना.

2.     बचाए पैसे को ढंग से खर्चना.

3.     घर की डैकोरेशन में साथ देना.

4.     अलग घरों में रह रही हैं तो एकदूसरे के साथ रात बिताना, बिना पतिबच्चों के.

5.     एक के मेहमान आएं तो दूसरी उन का आवभगत करना.

6.     एक ही किट्टी पार्टी में जाना.

7.     कई बार एक ही रंग की पोशाक पहनना.

8.     दोनों का अपनी सहेलियों को एक ही दिन बुलाना, जिस में कई सासें, बहुएं और सहेलियां हों.

9.     पेंटिंग, कुकिंग क्लासें जौइन करना.

10.   पति, ससुर को साथ मिल कर मजाक में तंग करना.

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