ये तो हम सभी जानते हैं की एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी 15 फरवरी 2020 को एक बेटी की मां बनीं. और जब ये खबर आई कि शिल्पा ने सरोगेसी का रास्ता अपनाया तो वो सवालों से घिर गईं . शिल्पा ने सरोगेसी से बेटी क्यों पैदा की…….. वो क्यों खुद गर्भ धारण कर मां नहीं बनीं. उन्हें अपने फिगर की चिंता है. इस तरह के तमाम सवाल उनसे पूछे जाने लगे . शिल्पा ने लंबे समय बाद अब इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ी है और बताया है कि आखिर दूसरे बच्चे के लिए उन्होंने सरोगेसी का रास्ता क्यूँ चुना?
एक वेब पोर्टल से इंटरव्यू के दौरान शिल्पा ने इस बारे में दिल खोलकर बात की.उन्होंने बताया की
“ मै हमेशा से दो बच्चे चाहती थीं, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी वियान सिंगल चाइल्ड बड़ा हो. क्योंकि हम भी दो बहनें थीं. मुझे पता है कि दूसरे भाई बहन का होना कितना जरूरी होता है.”
शिल्पा शेट्टी ने अपनी प्रेग्नेंसी के कॉम्पलिकेशन के बारे में बताया. एक्ट्रेस ने कहा,” वियान के पैदा होने के बाद मैं लंबे समय से दूसरा बच्चा चाहती थी. लेकिन मुझे कुछ हेल्थ इश्यू थे. मुझे ऑटो इम्यून बीमारी थी जिसे APLA भी कहते हैं. मेरे शरीर में लगातार बनते ऑटो इम्यून APLA के कारण जब भी मै प्रेग्नेंट होतीं, ये बीमारी मुझे अपनी चपेट में ले लेती और हर बार मेरा मिसकैरेज हो जाता “.
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शिल्पा ने कहा- इसके मद्देनजर मैंने दूसरे आइडियाज पर भी गौर किया, लेकिन वे सक्सेस नहीं हुए. एक समय मैंने बच्चा गोद लेने की भी सोची, मुझे बस अपना नाम देना था, सब कुछ होने ही वाला था. लेकिन तभी क्रिश्चियन मिशिनरी बंद हो गई. मुझे चार साल तक इंतजार करना पड़ा. इसके बाद मैं बहुत इरिटेट हो गई थी. इसके बाद मैंने सरोगेरी का सहारा लेने का फैसला किया.
शिल्पा ने कहा- तीन बार कोशिश करने के बाद हमें समीशा मिली. एक बार तो ऐसा भी पल आया जब तमाम कोशिशों के बाद मुझे लगा दूसरे बच्चे का ख्याल दिमाग से निकालना पड़ेगा.
आइये जानते है की APLA यानि (ऐंटिफॉस्फोलिपिड एंटीबाडी सिंड्रोम) क्या है और इससे क्यूँ होता है महिलाओं में बार-बार गर्भपात ?
ऐंटिफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम (APS) क्या है?
जब शरीर में रोगों से लड़ने वाला प्रतिरक्षा तंत्र खून में मौजूद सामान्य प्रोटीन पर गलती से हमला करके उन्हें नष्ट करने लगता है, तब यह समस्या पैदा होती है. ऐसा करने के लिए वह कई हानिकारक प्रोटीन बनाता है, जिन्हें ऐंटीबॉडी कहते हैं. इन्हीं ऐंटीबॉडी के बढ़ते स्तर के कारण गर्भाशय में गर्भ विकसित ही नहीं हो पाता और वह नष्ट हो जाता है.
एंटीफास्फोलिपिड सिंड्रोम के कारण नसों और अंगों के भीतर खून के थक्के बन सकते हैं . इससे ग्रस्त महिला को बार बार गर्भपात या मृत बच्चा पैदा होने या फिर गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर व समय से पहले बच्चे का जन्म होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
पर डॉक्टरों का कहना है की अगर गाइनकॉलजिस्ट और रूमेटॉलजिस्ट के परामर्श को ध्यानपूर्वक माने तो ऐंटीफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम के होते हुए भी रोगियों में सफलतापूर्वक गर्भावस्था को पूरा करके शिशु को जन्म दिया जा सकता है. पर सबसे पहले ध्यान यह रखना है कि गर्भ प्लानिंग के अनुसार हो और फिर पूरे नौ महीने, पीड़िता दोनों डॉक्टरों के लगातार सम्पर्क में रहे. गाइनकॉलजिस्ट इन रोगियों में जच्चा-बच्चा, दोनों के स्वास्थ्य पर ज्यादा नजदीकी नजर रखती हैं. लेकिन उपचार के पहले कोई अन्य रोग जैसे हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा ,डायबिटीज ,अगर साथ में हो, तो उसकी रोकथाम जरूरी है.
एंटीफास्फोलिपिड सिंड्रोम से पीड़ित गर्भवती महिला में खून का थक्का बनने से रोकने के लिए ब्लड थिनर (खून को पतला करने वाली दवा )का उपयोग किया जाता है, इन्हें थक्का रोधी दवाएं भी कहा जाता है. थक्के को दोबारा विकसित होने से रोकने के लिए कुछ लोगों को खून पतला करने की दवाई लंबे समय तक खानी पड़ती है.
कुछ गर्भवती महिलाओं को खून पतला करने के इंजेक्शन लगाए जाते हैं और डिलीवरी से कुछ समय पहले तक एस्पिरिन की कम खुराक दी जाती है.
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डॉक्टर बताते हैं कि गर्भ के पूरे होने के बाद भी खतरा टल गया हो, ऐसा नहीं होता. डिलिवरी के समय और उसके बाद भी रोग के बाबत कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है और दवाओं को रोकना और बदलना पड़ता है .इस तरह की जटिल प्रेगनेंसी के बारे में सामान्य जन तो क्या, बहुत से डॉक्टरों को भी सीमित पता होता है, इसलिए ऐसी जच्चा –बच्चा की देखभाल विशेषज्ञों के हाथ में ही देनी चाहिए .बच्चे के जन्म के बाद इलाज को फिर से शुरू कर दिया जाता है.