किसी भी सफल फिल्म का रीमेक बनाते समय फिल्मकार उसे तहस नहस कर देते हैं. इससे पहले मराठी फिल्म ‘सैराट’ की जब हिंदी रीमेक ‘धड़क’ आयी, तो बात नहीं जमी थी. अब रोहित शेट्टी 2015 में प्रदर्षित तेलुगू की सुपर हिट फिल्म ‘‘टेम्पर’’ का हिंदी रीमेक एक्शन व हास्य प्रधान फिल्म ‘‘सिंबा’’ लेकर आए हैं, पर इस बार वह भी मात खा गए.
फिल्म ‘‘टेंम्पर’’ में जिस तरह का अभिनय जूनियर एनटीआर ने किया है, उसके सामने रणवीर सिंह फीके पड़ जाते हैं. जिन लोगों ने तेलुगू फिल्म ‘टेम्पर’ या हिंदी में डब इस फिल्म को देखा है, उन्हे ‘सिंबा’ पसंद नहीं आएगी. अन्यथा यह मनोरंजक मसाला फिल्म है, जिसमें एक्शन, हास्य, रोमांस, इमोशंस के साथ ऐसा हीरो है, जो कि वक्त पड़ने पर बीस पच्चीस लोगों को धूल चटा देता है.
संग्राम भालेराव उर्फ सिंबा (रणवीर सिंह) एक अनाथ बालक से शिवगढ़ के एसीपी बने हैं, जो कि भ्रष्ट पुलिस आफिसर है. यह वही शहर है, जहां डीसीपी बाजीराव सिंघम (अजय देवगन) की परवरिश हुई थी. बाजीराव इमानदार पुलिस अफसर रहा है, जबकि सिंबा को भ्रष्ट तरीके से जिंदगी का आनंद उठाते दिखाया गया है. वास्तव में बचपन में ही सिनेमाघर के सामने ब्लैक में टिकट बेचते हुए सिंबा समझ जाता है कि पैसा कमाने के लिए पावर चाहिए, इसीलिए वह पुलिस अफसर बनना चाहता है. पुलिस अफसर बनने के बाद सिंबा बेईमानी पूरी इमानदारी से करता है. पुलिस अफसर की ड्यूटी निभाते हुए उसका ध्यान सिर्फ जायज व नाजायज ढंग से पैसा कमाने पर ही होता है. कुल मिलाकर संग्राम उर्फ सिंबा को भ्रष्ट पुलिस अफसर की जीवनशैली जीने में ज्यादा आनंद आता है. उसे प्रदेश के गृहमंत्री का वरदहस्त हासिल है.
संग्राम भालेराव, गृहमंत्री को अपना पिता और उनकी बेटी को बहन मानता है. गृहमंत्री उसका तबादला गोवा में मीरा मार पुलिस स्टेशन में इस हिदायत के साथ करते हैं कि वह वहां पर दुर्वा रानाडे (सोनू सूद) को क्रास नही करेगा. मीरा मार पुलिस स्टेशन पहुंचने पर सिंबा का सामना हेड कांस्टेबल मोहिले (आशुतोष राणा) से होती है, जोकि बहुत इमानदार है, उसने सिंबा के बारे में सब कुछ सुन रखा है, इसलिए वह उन्हे सलाम नहीं करता है. गुस्से में सिंबा उसे अपनी गाड़ी का ड्राइवर बना लेता है. पर सब इंस्पेक्टर संतोष तावड़े (सिद्धार्थ जाधव) से सिंबा की जमती है और दोनों मिलकर हर नाजायज काम को अंजाम देते हैं. पुलिस स्टेशन के सामने ही कैटरिंग चलाने वाली शगुन (सारा अली खान) पर सिंबा लट्टू हो जाता है.
तो वहीं वह शगुन की सहेली आकृति को अपनी बहन बना लेता है. एक दिन शगुन भी सिंबा से प्यार करने की बात कबूल कर लेती है.दु र्वा रानाडे के ड्रग्स के अवैध व्यापार से अनभिज्ञ सिंबा, दुर्वा के हर अपराध में उसका साथ देता है, जिसके बदले में उसे एक बड़ी रकम मिलती रहती है. दुर्वा के ड्रग्स का व्यापार उसके दो भाई संभालते हैं. यह छोटे स्कूल जाने वाले बच्चे के बैग में ड्रग्स के पैकेट भरकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाते रहते हैं. जब इसकी भनक आकृति को लगती है, तो वह उनके अड्डे पर पहुंच जाती है, जिसके साथ बलात्कार करने के बाद दुर्वा के भाई उसकी हत्या कर देते हैं. आकृति के साथ जो कुछ होता है, वह जानकर सिंबा में परिवर्तन आता है और वह सही राह पर चलना शुरू कर देता है.अं ततः दुर्वा के दोनो भाईयों का पुलिस स्टेशन के ही अंदर इनकाउंटर होता है. मामला अदालत में पहुंचता है. डीसीपी बाजीराव सिंघम भी आते हैं और अंत में सिंबा बरी और दुर्वा को सजा हो जाती है.
तेलगू फिल्म ‘टेम्पर’ की यह आधिकारिक रीमेक है, मगर रोहित शेट्टी ने थोड़ा सा बदलाव करते हुए इसे मसालेदार बनाने की कोशिश की है. फिल्म में गाने काफी डाले गए हैं. इंटरवल से पहले फिल्म की कहानी ह्यूमर व हास्य के साथ एक भ्रष्ट पुलिस अफसर की कहानी है. इंटरवल से पहले हास्य का तगड़ा डोज है. मगर इंटरवल के बाद कहानी का केंद्र लड़की के साथ बलात्कार व बलात्कारियों को सजा देने की तरफ मुड़ जाता है. इंटरवल के बाद फिल्म निर्देशक रोहित शेट्टी के हाथ से फिसल सी जाती है. क्योंकि उन्होंने देश के लोगों के मिजाज को भुनाने का ही प्रयास किया है.
जिसके चलते फिल्म काफी बोरिंग हो जाती है. फिल्म में अदालत के दृष्य प्रभाव नहीं डालते. निर्भया केस के साथ फिल्म को जोड़कर उपदेशात्मक बना दिया है, जो कि बहुत बोर करता है. यह एक बलात्कार पर आधारित मैलोड्रैमेटिक फिल्म बनकर रह गयी है.
बौलीवुड की सबसे बड़ी कमजोरी है कि कोई भी फिल्मकार फिल्म में मनोरंजन के साथ उपदेश नहीं परोस पाते हैं. इस कमजोरी के शिकार रोहित शेट्टी भी नजर आए. समस्या का निराकरण तलाशने की बजाय हवाई समाधान देना इनका हक बन गया है. पुलिस स्टेशन में एनकाउंटर/मुठभेड़ का दृष्य अवास्तविक लगता है. अंत में अजय देवगन को लाकर एक्शन दृष्यों की मदद से निर्देशक ने फिल्म को संभालने का असफल प्रयास किया है.
पटकथा के स्तर पर तमाम कमियां हैं. कई दृष्यों में अजीब सा विरोधाभास है. एक तरफ बलात्कार की शिकार आकृति का पिता दुःखी व सदमे में है, तो उसी क्षण वह एक कप चाय की मांग करता है. अदालती दृष्य तो बेवकूफी से भरे हैं. जिस तरह की भाषणबाजी अदालती दृष्य मे है, वह गले नहीं उतरती. जज के चैंबर में अपराधी, पुलिस व वकीलों के साथ ही राज्य के गृहमंत्री की मौजूदगी तो लेखक के दिमागी सोच की पराकास्ठा है.
जहां तक अभिनय का सवाल है तो इंटरवल से पहले हास्य के दृश्यों में रणवीर सिंह ने पूरा जोश दिखाया है, मगर वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आए हैं. कई दृश्यों में उनका अभिनय देखकर फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ की याद आ जाती हैं. कई दृष्यों में रणवीर सिंह ने जूनियर एनटीआर की नकल की है, तो कई जगह वह ओवरएक्टिंग करते हुए नजर आते हैं. शगुन के किरदार में सारा अली खान सिर्फ सुंदर लगी हैं, अन्यथा उनके हिस्से में करने के लिए कुछ है ही नहीं. दुर्वा रानाडे के किरदार में सोनू सूद जरुर प्रभावित करते हैं. एक अति ईमानदार हेड पुलिस कौंस्टेबल की भ्रष्ट अधिकारी के साथ काम करने की बेबसी को पेश करने में आशुतोष राणा काफी हद तक कामयाब रहे हैं. संतोष तावड़े के किरदार में सिद्धार्थ जाधव भी अपना असर छोड़ जाते हैं.
फिल्म में गीतों की भरमार है, मगर वह गीत संगीत असरदार नहीं है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि अब धर्मा प्रोडकशन मौलिक बेहतरीन गीत संगीत रचने में असमर्थ हो गया है.
दो घंटे 40 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सिंबा’’ का निर्माण करण जौहर, हीरू जौहर, अपूर्वा मेहता व रोहित शेट्टी ने किया है. फिल्म के निर्देशक रोहित शेट्टी हैं. तेलुगू फिल्म ‘‘टेम्पर’’ की हिंदी रीमेक वाली इस फिल्म के पटकथा लेखक युनूस सेजावल व साजिद सामजी, संवाद लेखक फरहाद सामजी, संगीतकार तनिष्क बागची, कैमरामैन जोमोन टी जौन तथा इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं – रणवीर सिंह, सारा अली खान, सोनू सूद, अजय देवगन, वृजेष हीरजी, आषुतोष राणा, सिद्धार्थ जाधव, अरूण नलावड़े, सुलभा आर्या, अष्विनी कलसेकर, विजय पाटकर, सौरभ गोखले, अषोक समर्थ, वैदेही परषुरामी, सुचित्रा बांदेकर के अलावा मेहमान कलाकार के तौर पर तुषार कपूर, कुणाल खेमू, श्रेयस तलपड़े, अरशद वारसी व करण जौहर.