फ्लर्टनैस नहीं स्मार्टनैस

विद्या आजकल घर में बहुत बोर हो रही थी. दिन तो औफिस के काम में बीत जाता पर लौकडाउन में घर में बंद होने से उलझन होने लगी थी. ग्रौसरी लेने जाने में भी रिस्क लगता. वह अकेले ही इस फ्लैट में 4 महीने से किराए पर रह रही थी. किसी को जानती भी न थी. मुंबई में सुबह निकल कर जाना, फिर शाम को आ कर आसपड़ोस में झंकने की फुरसत भी कहां रहती है.

वह यों ही शाम को उठ कर बालकनी में आई, तो बराबर वाले फ्लैट का एक लड़का बालकनी में ऐक्सरसाइज कर रहा था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए. विद्या का कुछ टाइम पास हुआ. अब धीरेधीरे यह रूटीन ही हो गया. दोनों शाम को हायहैलो करते. फिर नाम पूछे गए.

बालकनी में कुछ दूरी थी, तो लड़के अवि ने फोन नंबर का इशारा किया. अब दोस्ती आगे बढ़ी. दोनों ही इस लौकडाउन में बोर हो रहे थे.

उसे अकेले देख अवि की हिम्मत बढ़़ी, कहा, ‘‘बाहर जाना तो सेफ है नहीं, मैं मम्मी की लिस्ट ले कर जाता हूं. आप को भी जो सामान मंगवाना हो, बता देना.’’

विद्या ने मजाक किया, ‘‘सोशल डिस्टैसिंग का टाइम है, आप से कैसे सामान मंगवाऊं?’’

‘‘अरे, कोई बात नहीं. अभी ला देता हूं सामान. शौप वाला अभी होम डिलीवरी नहीं कर रहा है.’’

‘‘नहींनहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘दोस्त समझ कर अपनी लिस्ट व्हाट्सऐप पर भेज दीजिए, मैं आप के डोर पर सामान रख दूंगा,’’ अवि नहीं माना. तो विद्या ने लिस्ट उसे दे दी.

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सामान ला कर अवि ने बैग उस के डोर पर रख कर घंटी बजाई. दोनों कुछ देर दूर से ही हंसीमजाक करते रहे. फिर तो यह नियम बन गया. अवि ही उस के सारे काम करने लगा. विद्या को तो कहीं निकलना ही नहीं पड़ा. विद्या अपनी दोस्त रुचि को फोन पर सब बता रही थी.

रुचि खूब हंसती, कहती, ‘‘ये लड़के भी न, लड़की देख कर सब डिस्टैसिंग भूल जाते हैं. ठीक है, तेरा क्या जा रहा है. फिलहाल काम करवा उस से, बाद में देखते हैं.’’

बहुत तेज बारिश हो रही थी. मुंबई की बारिश का वैसे भी कुछ पता नहीं होता कि कब रुकेगी. पोवई से अंधेरी जाने में अच्छेअच्छों की हालत खराब हो जाती. पर आरती आराम से तैयार हो रही थी. उस की रूममेट रूपा ने कहा भी, ‘‘यार, आज बहुत बारिश है, वर्क  फ्रौम होम ले ले.’’

आरती ने हंस कर कहा, ‘‘अनिल आता ही होगा कार से लेने. औफिस उसी के साथ जा रही हूं. आजकल लोकल ट्रेन के धक्कों से बच जाती हूं. आजकल टैक्सी में बैठने से तो डर ही लगता है, कोई वायरस न छोड़ गया हो. उस से अच्छा वायरस अनिल ही रहेगा, कोरोना से तो कम ही परेशान करेगा.’’

रूपा हंसी, ‘‘वाह, यह कब हुआ? वह तो सीनियर है न काफी तुम से?’’

‘‘हां, मैरिड है. उसे मेरी कंपनी चाहिए, मुझे आराम से आनाजाना. दोनों का काम हो जाता है. बदले में उसे झेलना पड़ता है, बस. वह फ्लर्ट करने की कोशिश कर रहा है. जानती हूं ऐसे पुरुषों को. मैरिड है, पर एक लड़की की कंपनी के लिए मरे जाते हैं. हद है, यार. पर ठीक है, मैं कौन सी मूर्ख हूं. आराम से कार में आनाजाना हो रहा है. इन जैसों का फायदा क्यों न उठाया जाए. जैसे ही लिमिट क्रौस करने की कोशिश करेगा, एक डिस्टैंस मैंटेन करना शुरू कर दूंगी. बहानों की कमी तो होती नहीं है,’’ कह कर वह हंसते हुए निकल गई.

ट्विंकल राठी ने एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की. 3 महीने में उसे समझ आ गया कि यहां उस के एक सीनियर अतुल का सिक्का चलता है.

कभी फ्लर्टिंग की है? यह पूछने पर वह अपने बारे में खुल कर बताती है, ‘‘हमारे बौस अतुल की सब बात सुनते हैं. उस की रिकमैंडेशन पर ही औफिस में प्रमोशन होते हैं. मैं नईनई थी. अतुल साहब मेरे आसपास मंडराने लगे. पुरानी लड़कियों ने भी उन की इस आदत के चर्चे मुझ से खूब किए थे. कभी मुझे कौफी के लिए कैंटीन ले जाते, कभी मुझे घर तक ड्रौप करने के लिए कहते. मुझे क्या परेशानी होती. मैं औटो के धक्कों से बच जाती.

‘‘वे मेरी बड़ी अच्छी रिपोर्ट्स आगे पहुंचाते. मेरे प्रोमोशंस धड़ाधड़ होते रहे. मुझ में काबिलीयत थी, पर अतुल के सपोर्ट से मैं खूब आगे बढ़ी. वे मैरिड थे. उन के बच्चे थे. मुझ से हंसबोल कर, मेरे आगेपीछे घूम कर वे एंजौय कर रहे थे. तो मेरा भी कुछ नुकसान तो हो नहीं रहा था. फिर मेरा दूसरे औफिस में ट्रांसफर हो गया. फिर यह भी सुना कि अब वे नई लड़की के आगेपीछे घूम रहे हैं. ऐसे पुरुष आप को हर जगह मिल जाएंगे. उन की ऐसी आदतों का फायदा उठाना गलत कहां से हो गया.’’

स्मार्ट बन कर काम निकलवाना

एक लेखिका हैं मंजू शर्मा. अपने वाक कौशल और अदाओं पर उन्हें पूरा भरोसा है. उन का मानना है कि वे जहां भी अपनी कोई रचना भेज कर संपादकों से बात कर लेती हैं. उन की रचना फिर अस्वीकृत होने का कोई चांस ही नहीं है. सारे पुरुष संपादक उन से बात करने के लिए लालायित रहते हैं. उन्हें व्हाट्सऐप में मैसेज भेजते रहते हैं. उन की सुंदरता के कसीदे पढ़ते रहते हैं. उन्हें अपना काम निकालना आता है. उन्हें अपनी रचनाएं छपवानी हैं, इसलिए वे थोड़ीबहुत लिफ्ट दे देती हैं. उन का काम हो जाता है. जहां कोई पुरुष संपादक उन की रचना को रचनात्मकता की कसौटी पर ही परख कर छापता है, वहां वे अपना समय खराब नहीं करतीं. उन का मानना है कि अगर किसी पुरुष संपादक को लिफ्ट दे कर बिना ज्यादा मेहनत किए मेरी रचनाएं छप जाती हैं, तो बुरा क्या है.

खुशबू सिन्हा जब औफिस में कहीं किसी प्रैजेंटेशन में अटक जाती है, तो कुछ देर पहले से ही किसी न किसी से मीठी बातें कर के उसे हैल्प के लिए तैयार कर ही लेती है. उस का कहना है, ‘‘यह जरा भी मुश्किल नहीं, किसी भी यंग लड़की की हैल्प करने के लिए पूरा औफिस लगभग तैयार रहता ही है. तो ठीक है, दो मीठीमीठी मासूम बातें कर के इन लड़कों से काम निकलवाना बुरा तो नहीं है.

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चतुर लड़कियां आजकल फ्लर्ट समझती हैं. वे जानती हैं कि लड़कों से काम कैसे निकलवाया जा सकता है. लड़के तो यही समझते हैं कि वे बहुत स्मार्ट हैं, सामने वाली लड़की तो बहुत सीधी है, उस के साथ फ्लर्ट किया जा सकता है. पर अपने को होशियार समझ रहे लड़के होशियार लड़कियों के हाथों बुद्धू बन रहे होते हैं. उन्हें पता भी नहीं चलता और वे मेल ईगो को सैटिस्फाई कर के खुश हो रहे होते हैं. लड़कियां कामकाजी हों, तो वे ऐसे पुरुषों की नसनस खूब पहचानने लगती हैं.

चालाक तो बनना ही पड़ेगा

एक औफिस में काम करने वाली नीरा बताती हैं, ‘‘मीटिंग में पहले औफिस से निकलने में देर होती थी. तो अकेले घर पहुंचने की बड़ी चिंता रहती थी. पर देखा कि औफिस के एक 40 वर्षीय मिस्टर गुप्ता को लड़कियों से पूछने का बड़ा शौक है कि लेट हो रहा है तो मैं छोड़ दूं? उन के इस शौक का लड़कियां खूब फायदा उठाती हैं. अब यह किसी लड़की को ही कहने वाली बात तो नहीं है. भाई, जब आप लड़की की कंपनी के लिए मरे जा रहे हैं तो हमें भी क्या परेशानी है. आराम से चिपकू गुप्ताजी की कार में जाती हैं लड़कियां. इतनी देर में, भीड़ में, ट्रैफिक में उन्हें इस शौक में क्या आनंद आता है, वही जानें.’’

तो आगे से किसी लड़की को फ्लर्ट करने से पहले एक बार जरूर सोच लें कि फ्लर्ट है कौन, लड़की फ्लर्ट नहीं होशियार है, जो लड़के के अहं और घमंड को धता बता रही है और लड़के को पता भी नहीं. लड़के अब तक लड़कियों को बहुत ठगते आए हैं. उन का हमेशा नाजायज फायदा उठाते आए हैं. अब हवा बदली है. लड़कियां किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं रहीं. आप उन की अदाओं पर मरते रहिए, उन के काम आने के लिए अपनेआप को पेश करते रहिए. वे आप की सेवाएं खुशीखुशी लेती रहेंगी. उन्हें भी तो आप के बनाए समाज में रहना है, चतुर तो होना ही पड़ेगा.

स्मार्ट वाइफ: सफल बनाए लाइफ

पतिपत्नी का रिश्ता बहुत संवेदनशील और भावनात्मक होता है. पहले जब संयुक्त परिवारों का चलन होता था तो उस समय इस रिश्ते में थोड़ा उतारचढ़ाव चल जाता था. मगर अब संयुक्त परिवारों के टूटने के बाद से पूरे परिवार का बोझ केवल पति और पत्नी के ऊपर ही आ गया है. ऐसे में अब पत्नी का छुईमुई बने रहना घरपरिवार के लिए ठीक नहीं होता है. आज के समय में पत्नी की जिम्मेदारियां पति से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं.

पति के पास सही मानों में केवल पैसा कमा कर लाने का ही काम होता है. पैसे का सही ढंग से उपयोग कर के घरपरिवार, बच्चे, नातेरिश्तेदार और पड़ोसियों तक से सहज रिश्ता रखने का काम पत्नी का होता है. स्मार्ट पत्नी महंगाई के इस दौर में पति के कमाए पैसों को सहेज कर रखने का और बचत की नईनई योजनाओं की जानकारी देने का भी काम करती है. आज की स्मार्ट वाइफ केवल हाउसवाइफ बन कर रहने में ही संतोष महसूस नहीं करती, वह अच्छी हाउस मैनेजर भी बन गई है.

गृहस्थी की गाड़ी की सफल ड्राइवर

भावना और भूपेश शादी के बाद रहने के लिए अपने छोटे से शहर गाजीपुर से लखनऊ आए थे. यहां भूपेश को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली थी. करीब ₹15 हजार उसे वेतन मिलता था. भूपेश ने ₹2 हजार प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिया. 1-2 महीने बीतने के बाद भावना को लगने लगा कि किराए के मकान में रहना समझदारी का काम नहीं है. मगर वह भूपेश से कुछ कहते हुए संकोच कर रही थी. वह पढ़ीलिखी थी. अत: उस ने सरकारी योजनाओं में मिलने वाले मकानों पर नजर रखनी शुरू कर दी. अपने आसपास के लोगों को भी इस बारे में जानकारी देने के लिए कहा.

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1 माह में ही भावना को पता चल गया कि सरकार की आवास योजना में कई मकान ऐसे हैं, जिन्हें कुछ लोगों ने बुक तो करा दिया था, लेकिन उन्हें वे खरीद नहीं पाए. सरकार ऐसे मकानों को दोबारा बेचने के लिए तैयारी कर रही थी. उस के लिए मकान की कुल कीमत का 25 फीसदी पहले देना था. बाकी की रकम किश्तों में अदा की जा सकती थी.

भावना ने भूपेश को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘सब से छोटे मकान की कीमत ₹3 लाख से ऊपर है. इस हिसाब से हमें ₹75 हजार तत्काल देने होंगे. इस के बाद हर माह किश्त अलग से देनी होगी. इतना पैसा कहां से आएगा?’’

इस पर भावना बोली, ‘‘परेशानी केवल शुरू के 75 हजार की है. इस के बाद की मासिक किश्त तो केवल ₹2 हजार के आसपास आएगी. इतना तो किराया हम अभी भी देते ही हैं. 75 हजार की व्यवस्था में 50 हजार का इंतजाम मैं कर सकती हूं. ₹25 हजार का इंतजाम तुम कर लो तो हमारा भी इस शहर में अपना एक मकान हो जाएगा.’’

भूपेश ने भावना की बात मान ली. कुछ ही दिनों में उन का अपना मकान हो गया. नए मकान को थोड़ा सा ठीक करा कर दोनों रहने लगे.

एक दिन भूपेश और भावना को एक शादी की पार्टी में जाना था. भावना को बिना गहनों के तैयार होता देख कर जब भूपेश ने पूछा कि तुम्हारे गहने कहां गए? तो भावना बोली कि उन्हें बेच कर ही तो मकान के लिए ₹50 हजार का इंतजाम किया था. यह सुनते ही भूपेश ने भावना को बांहों में भर लिया. उसे लगा कि सही मानों में भावना ही स्मार्ट वाइफ है.

बचत से संवरती है जिंदगी

महंगाई के इस युग में गृहस्थी की गाड़ी चलाने का मूलमंत्र बचत ही है. जिन परिवारों में अनापशनाप पैसा आता है, वहां भी पैसों की बचत का पूरा खयाल रखना चाहिए. एक स्मार्ट वाइफ को वित्तमंत्री की तरह अपने घर का बजट तैयार करना चाहिए. पूरा माह होने वाले खर्चों को एक जगह लिखना चाहिए ताकि माह के अंत में यह पता चल सके कि माह में कितना खर्च हुआ. इस से यह भी पता चल जाता है कि कहां पर खर्च कम कर के पैसा बचाया जा सकता है. हर माह एक निश्चित रकम इमरजैंसी में होने वाले खर्चों के लिए बचा कर जरूर रखनी चाहिए ताकि इमरजैंसी में होने वाले खर्च के समय परेशानी न उठानी पड़े.

हर माह तय रकम बैंक या डाकघर में जरूर जमा करें. सालभर के बाद इसे बैंक में फिक्स डिपौजिट कराया जा सकता है. आजकल म्यूचुअल फंड में भी जमा कर के अच्छा रिटर्न हासिल किया जा सकता है. स्मार्ट वाइफ हर माह के तय खर्च में भी कुछ न कुछ बचत कर के दिखा देती है. इस तरह वह पति को सहयोग भी दे देती है.

पति, परिवार और बच्चों की सेहत अच्छी रहती है तो दवा का खर्च भी कम हो जाता है. यह भी एक तरह की बचत होती है. बहुत सारी बीमारियों को साफसफाई के द्वारा दूर रखा जा सकता है. घर की खरीदारी समझदारी से करें तो भी बचत हो सकती है. पूरी खरीदारी एक बार में ही करें. सामान ऐसी जगह से खरीदें जहां कम कीमत पर अच्छा मिलता हो. आजकल मौल कल्चर आने से कई तरह का सामान सस्ता मिल जाता है.

स्मार्ट वाइफ बनाए समाज में पहचान

अब बहुत सारे लोग शहरों में अपने नातेरिश्तेदारों से अलग रहते हैं. ऐसे में उन के पास दोस्तों से मिलने का समय ज्यादा होता है. इन्हीं लोगों के बीच दुखदर्द और हंसीखुशी का बंटवारा भी होता है. आपस में मिलनेजुलने के लिए लोग पार्टियों का आयोजन किसी न किसी बहाने करते रहते हैं. यहां पर पत्नियों के बीच एक अघोषित प्रतिस्पर्धा सी होती है, जिस के चलते एकदूसरे के बारे में कई तरह के सवाल भी उठते रहते हैं. किस की पत्नी कैसी दिख रही है? उस ने किस तरह के कपड़े पहन रखे हैं? उस का व्यवहार कैसा है? उस के बच्चे कितने अनुशासित हैं? स्मार्ट पत्नी वही कहलाती है जो इन सवालों पर खरी उतरे.

पार्टी में जान डालने के लिए पार्टी के तौरतरीकों को समझना और उन के हिसाब से काम करना पड़ता है. इस तरह की पार्टियों में कई बार बहुत अच्छे रिश्ते भी बन जाते हैं, जो आगे बढ़ने में भी मदद करते हैं. स्मार्ट पत्नी को काफी सोशल होना चाहिए. कई बार पति चाहते हुए भी सोशल रिश्तों को बेहतर ढंग से नहीं निभा पाता है.

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स्मार्ट पत्नी इस कमी को पूरा कर के पति को तरक्की की राह में आगे बढ़ने में मदद करती है. स्मार्ट वाइफ को पति के दोस्तों, औफिस के सहयोगियों की घरेलू पार्टियों में जरूर जाना चाहिए. इस से आपस में बेहतर रिश्ते बनते हैं. आजकल आपस में बातचीत करते रहना मोबाइल, इंटरनैट और फोन के जरीए और भी आसान हो गया है. इस का लाभ उठाना चाहिए. हर जगह रिश्तों की मर्यादा का पूरा खयाल रखना चाहिए. कभीकभी रिश्ते बनते कम और बिगड़ते ज्यादा हैं.

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