family story in hindi
family story in hindi
दिल्ली की ऐसी पौश आवासीय सोसाइटी जहां लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते. पड़ोसियों का कभी एकदूसरे से सामना हो जाता है तो आधुनिकता का लबादा ओढ़े लेडीज, ‘हाय, हाऊ आर यू’ कहती हुई आगे निकल जाती हैं. जैंट्स को तो वैसे भी आसपड़ोस से ज्यादा कुछ लेनादेना नहीं होता. सुबह घर से काम के लिए निकलते हैं तो शाम तक, यदि बिजनैसमैन हुए तो रात तक, घर लौटते हैं. घर की जिम्मेदारी उन की पत्नियां उठाती हैं. मतलब, घर उन्हीं की देखरेख में चल रहा होता है.
10 साल बीत चुके थे स्मिता को शादी कर दिल्ली की इस हाई सोसाइटी में रहते हुए. आज सुबह से सोसाइटी में सुगबुगाहट थी. सोसाइटी के व्हाट्सऐप ग्रुप में स्मिता के पति सुमित की मौत की खबर सब को मिल चुकी थी. ज्यादातर लोग सुमित और स्मिता को जानते थे.
वक्त की किताब के पन्ने उलटें, तो अभी की बात लगती है.
स्मार्ट, पढ़ीलिखी, सुंदर स्मिता चंड़ीगढ़ में पैदा हुई. वहीं उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की. फैशन के मामले में चंड़ीगढ़ की लड़कियां दिल्ली की लड़कियों से पीछे नहीं हैं. छोटे शहरों में लड़कियां खूब स्कूटी चलाती हैं क्योंकि वहां दिल्ली की तरह यातायात के साधन खास नहीं होते. एक तरह से वे पूरी तरह सैल्फ इंडिपैंडैंट होती हैं, इतनी तो दिल्ली की लड़कियां भी तेज नहीं होतीं. मतलब इस सब का यही है कि स्मिता आत्मविश्वास से भरी, लोगों से मेलमिलाप रखने वाली, खुशमिजाज लड़की थी जब उस की शादी सुमित से हुई थी.
सुमित तो जैसे दीवाना ही हो गया था स्मिता को देख कर जब पहली बार उन की मुलाकात हुई थी. हुआ यों था कि सुमित के दोस्तों के ग्रुप में उदय की शादी सब से पहले तय हुई थी. सब के लिए बरात में जाने, डांस करने, मस्ती मारने का अच्छा मौका था. और बरात जा रही थी चंड़ीगढ़.
एकदूसरे से सुमित और स्मिता वहीं मिले थे. शीना स्मिता की बैस्ट फ्रैंड थी. शीना ने स्मिता से पहले ही बोल दिया था कि शादी के एक हफ्ते पहले ही वह अपना ताम झाम ले कर उस के घर आ जाएगी और शादी होने के बाद ही घर वापस जाएगी. स्मिता भी कम उत्साहित नहीं थी शीना के विवाह को ले कर. स्मिता शीना का पूरा हाथ बंटा रही थी शादी की खरीदारी करने में. शीना की बात मानते हुए वह एक हफ्ते पहले ही शीना के घर रहने आ गई थी. दोनों सहेलियां रात में शादी के बाद हनीमून और उदय को ले कर खूब मस्ती, छेड़छाड़भरी बातें करतीं.
वह दिन भी आ गया जब बरात द्वार पर खड़ी थी. स्मिता कई सहेलियों के साथ द्वार पर दूल्हे से रिबन कटवाने के लिए खड़ी थी.
‘जीजाजी, इतनी भी क्या जल्दी है, फटाफट से 10 हजार रुपए का नेग दीजिए, रिबन काटिए, और फिर अंदर आइए. और हां, शीना से मिलने की इतनी जल्दी है तो नेग डबल कर दीजिए. हम हैं न, शौर्टकट से सब मामला सैट कर देंगे.’
‘उस की कोई जरूरत नहीं, वो देखिए, सामने से अंकलआंटी और सब आ रहे हैं. खुद ही हमें प्यार से अंदर ले जाएंगे,’ उस तरफ से सुमित बोला.
और वाकई अंकलआंटी ने आते ही कहा, ‘अरे बेटा, क्यों रोक रखा है दूल्हेराजा को?’
‘अंकलजी, बिना नेग लिए ये अंदर कैसे आ सकते हैं?’ स्मिता इठलाते हुए बोली.
‘बेटा, नेग क्या कहीं भागा जा रहा है. पहले ही बहुत देर हो गई. सब को आने दो. चलो, सब साइड हो जाओ. तुम्हारी आंटी को दूल्हे का तिलक करना है.’
दूल्हा और उस के दोस्त बड़ी शान से अंदर आए और सुमित ने साइड में खड़ी स्मिता को आंख मार दी. इस से स्मिता और भी झल्ला गई.
इस के बाद तो पूरी शादी और विदाई होने तक स्मिता और सुमित की नोक झोंक चलती रही. बरात दुलहन को ले कर वापस दिल्ली लौट रही थी, तो सारे दोस्त सुमित को छेड़ रहे थे, ‘भई, लगता है जल्दी ही दोबारा चंड़ीगढ़ बराती बन कर आना पड़ेगा.’
वाकई सुमित अपना दिल चंड़ीगढ़ में स्मिता के पास ही छोड़ आया था. मम्मी के पीछे पड़ कर उस ने स्मिता से शादी के लिए इतना जोर दिया कि एक महीने बाद स्मिता दुलहन बन कर सुमित के घर आ गई थी.
‘चट मंगनी पट ब्याह, मैं तो इसी में विश्वास रखता हूं,’ हनीमून पर सुमित स्मिता से अकसर यह बात कह उसे अपने प्यार की दीवानगी दिखाता रहा था.
खुशी के दिन पंख लगा कर उड़ जाते हैं और बुरे दिन कुछ ही दिनों के लिए आते हैं लेकिन लगता है हम मानो वर्षों से उसी में जी रहे हैं.
स्मिता 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. जिंदगी का हर लमहा खुशगवार गुजर रहा था. कोई चिंता नहीं थी उसे. सुमित का अच्छाखासा बिजनैस था. पैसे की कमी का सवाल ही नहीं था.
सोमा काकी बरसों से उन के घर पर काम कर रही थीं. एक तरह से वे घर में खानेपीने की व्यवस्था, रखरखाव, घर में आनेजाने वालों पर अपनी पूरी नजर रखती थीं. इसलिए, स्मिता घर की तरफ से बेफिक्र थी और घर के ड्राइवर शामू काका ने तो अपनी पूरी जवानी ही इस घर में गुजार दी थी. सुमित के पापा के समय के ड्राइवर थे शामू काका. पापा के गुजर जाने के बाद भी पूरी निष्ठा से इस घर की सेवा की. मम्मी को शामू पर पूरा भरोसा था. रातबेरात कहीं आनाजाना हो तो शामू के साथ कार में जाने में उन्हें पूरी तरह सुरक्षित महसूस होता था. सुमित ने बचपन से शामू काका को देखा था. स्कूल से लाना ले जाना, ट्यूशन से घर ले जाना, घर का सारा राशनपानी लाना, यहां तक कि फैक्ट्री के सामान को पूरी तरह से सुरक्षित रूप से क्लाइंट तक पहुंचाने का काम भी शामू काका बहुत निपुणता से करते.
स्मिता बहुत खुश थी अपनी जिंदगी से. शायद अपनी खुशियों पर उस की खुद की नजर लग गई थी. सुबह के 8 बज गए थे, लेकिन मम्मीजी के कमरे का दरवाजा अभी तक बंद था. ऐसा तो कभी नहीं होता. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के जब वह ऊपर अपने बैडरूम से नीचे आती थी तो मम्मीजी अकसर गार्डन में चेयर पर बैठी अखबार पढ़ती दिखतीं या फिर गार्डन में चहलकदमी करती बच्चों को बायबाय कर उन्हें प्यार से निहारती थीं. लेकिन आज क्या हुआ. बच्चों को शामू काका के साथ कार में बैठा कर स्मिता ने अंदर मम्मी के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया. सामने बैड पर मम्मी औंधेमुंह लेटी थीं और हाथ नीचे लटका हुआ था. यह देख कर स्मिता की घुटी चीख निकल गई.
‘सुमित….सुमित…,’ चिल्लाने लगी, ‘सुमित, देखो मम्मीजी को क्या हो गया.’
रात में मम्मीजी को दिल का दौरा पड़ा था. उठने की कोशिश की होगी शायद लेकिन औंधेमुंह पलंग पर गिर गईं.
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मम्मीजी की जीवनडोर टूट चुकी थी. उन का इस तरह अचानक से चले जाना स्मिता और सुमित के लिए झटके से कम नहीं था. सुमित तो जैसे पूरी तरह से टूट गया था. मां से बहुत ज्यादा लगाव था. वैसे भी, जब वह 10वीं में गया ही था, पापा की ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई थी. मम्मीजी ने अकेले उसे पालापोसा था, फैक्ट्री का काम संभाला था और इतने बड़े घर को संजो कर रखा था.
एक तरह से आज वह जो भी था, मम्मी के हाथों गड़ा मजबूत व्यक्तित्व था. उन के जाने से वह भीतर से टूट गया था.
फैक्ट्री का काम तो उस ने बीबीए की पढ़ाई के बाद ही संभाल लिया था लेकिन मम्मी के होते बिजनैस की ओर से वह ब्रेफिक्र था क्योंकि इंपौर्टेंट डिसीजन तो वही लेती थीं.
खैर, वक्त के साथसाथ सब सामान्य हो जाएगा, यह सोच कर स्मिता सुमित को हर तरह से खुश रखने की कोशिश करती. सुमित एक शाम फैक्ट्री से आया तो हलका बुखार महसूस कर रहा था.
स्मिता घबरा सी गई. पिछले महीने से पूरे देश में मंडराती कोरोना वायरस की महामारी ने सभी को दहशत में डाल दिया था.
सरकार द्वारा लोगों को पूरी एहतियात बरतने की सलाह दी जा रही थी. टीवी चैनलों में यही न्यूज छाई हुई थी. मानव से मानव में होने वाली इस बीमारी की चपेट में पूरा विश्व आ गया था.
बच्चों के स्कूल तो बंद हो गए थे. स्मिता ने सुमित को फैक्ट्री जाने से मना किया था. लेकिन सुमित का कहना था कि हो सकता है देशभर में लौकडाउन की स्थिति बन जाए, इसलिए वह फैक्ट्री का काम काफी हद तक समेटना चाहता है ताकि आगे दिक्कत न हो, लेकिन इंसान अपनेआप को कितना ही बचा ले, प्रकृति के आगे उस की एक नहीं चलती.
दिल्ली में जैसे ही लौकडाउन का ऐलान हुआ, उस से एक दिन पहले सुमित कोरोना वायरस की चपेट में आ चुका था.
स्मिता ने बच्चों को ऊपर के फ्लोर में ही रहने की हिदायत दे दी थी. सोमा काकी थीं, तो स्मिता को बच्चों की फिक्र करने की जरूरत नहीं थी. सुमित की बिगड़ती हालत देखते हुए उसे अस्पताल में भरती करा दिया गया.
अस्पताल जाने से पहले सुमित बोला था, ‘सुमि, लगता है अब तुम्हें, बच्चों को, इस घर को दोबारा नहीं देख पाऊंगा. सुमि, मैं तुम से, बच्चों से, इस घर से बहुत प्यार करता हूं. मु झे मरना नहीं है, प्लीज, मु झे बचा लो. मैं तुम सब को छोड़ कर जाना नहीं चाहता. सुमि, मु झे लग रहा है मौत मु झे बुला रही है. नहीं सुमि, नहीं, मु झे नहीं छोड़ना तुम्हारा साथ.’
स्मिता का रोरो कर बुरा हाल था. सुमित की यह हालत उस से भी नहीं देखी जा रही थी. लेकिन करती भी क्या वह, उस के हाथ में हो तो अपनी जिंदगी उस के नाम लिख देती.
अस्पताल में एक बार मरीज को भरती कराने के बाद उस से मिलना मुश्किल था. सुमित के साथ वहां अस्पताल में क्या हो रहा है, कुछ दिनों तक तो पता ही नहीं चला. टीवी पर अस्पताल के बुरे हालात, मरीज के साथ बरती जाने वाली लापरवाही और मरीजों की मौत के बाद उन के शरीर के साथ अमानवीयता देख स्मिता सिहर उठती थी. फोन की हर घंटी किसी आशंका का संकेत देती थी और वाकई उस की आशंका सच में बदल गई. सुमित नहीं बच पाया था.
यह सुनते ही स्मिता जैसे पत्थर हो गई थी. सोमा काकी न होतीं तो शायद आज वह भी जिंदा न होती.
मम्मीजी की मौत को 2 महीने भी नहीं हुए थे, और सुमित का उसे यों अचानक छोड़ कर चले जाना. ऊपर से लौकडाउन की वजह से कोई घर नहीं आ सकता था. कोई पास आ कर उसे गले नहीं लगा सकता था. कोई पास नहीं था कि वह उस के कंधे पर सिर रख कर रो सके. बस, एक सोमा चाची थीं जिन की गोद में वह सिर रख सकती थी. वे ममता की मूरत बन स्मिता को संभाले हुए थीं. बच्चे तो कुछ सम झ नहीं पा रहे थे कि सब क्या हो रहा है. 8 साल का अवि कुछकुछ सम झ रहा था लेकिन 2 साल की परी तो अभी नादान थी.
अस्पताल से सुमित के पार्थिव शरीर को ले कर अंतिम संस्कार करना था. शामू काका स्मिता के साथ थे, वरना अभी तक तो स्मिता की हिम्मत टूट चुकी थी. कोई अपना सगासंबंधी नहीं था. लौकडाउन की हालत में चंड़ीगढ़ से किसी का आना मुश्किल था. अड़ोसीपड़ोसी फोन पर ही अफसोस जता रहे थे. सुमित का दोस्त उदय जरूर काफी मदद कर रहा था. सुमित उस का बचपन का दोस्त था, वह स्मिता को क्या दिलासा देता, उस के भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.
स्मिता असहाय महसूस कर रही थी अपने को. सामान्य दाहसंस्कार तो दूर की बात थी, स्मिता सुमित के शरीर को छू भी नहीं सकती थी, वह सुमित जिस के बिना वह जीने की कल्पना नहीं कर सकती थी. कितनी बेबस थी वह, चीखचीख कर रोना चाहती थी, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था.
किसी तरह शवदाहगृह में क्रियाकर्म हुआ. अचानक सब क्या हो गया था. स्मिता की तो दुनिया ही बदल गई थी.
3 महीने गुजर गए थे सुमित को गुजरे हुए लेकिन स्मिता सदमे से उबरी नहीं थी. अवि और परी उस के पास आते और कहते, ‘मम्मी, खेलो न हमारे साथ,’ तो स्मिता खोईखोई आंखों से, बस, उन्हें देख कर सिर पर हाथ फेर फिर न जाने कहां खो जाती.
कोशिश कर रही वह खुद को संभालने की, लेकिन हो नहीं पा रहा था. ऐसे में सोमा काकी ही एक मां की तरह उसे संभाल रही थीं. गांव से तो उन का नाता कब का टूट गया था. पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने उन्हें एक तरह से घर से निकाल दिया था. आस न आलौद. शहर आईं तो इस घर में उन्हें ऐसा आसरा मिला, कि यहीं की हो कर रह गईं.
रोज चंड़ीगढ़ से मम्मीपापा का फोन आता था. मम्मी रोतीं उसे तसल्ली देतीं. मम्मी के पैरों में दर्द रहता था और पापा की हार्टसर्जरी हो चुकी थी, इसलिए स्मिता ने उन्हें सख्त मना कर दिया कि कोई जरूरत नहीं दिल्ली आने की. अपनी सेहत का खयाल रखो. आ कर भी अब क्या हो जाएगा, सुमित वापस तो नहीं आ जाएगा.
स्मिता ने अब कभीकभी फैक्ट्री जाना शुरू कर दिया था. अनलौक की प्रक्रिया काफी हद तक शुरू हो गई थी. उन का टेप का बिजनैस था. छोटी से ले कर बड़ी हर तरह की टेप बनती थी उन की फैक्ट्री में. कोरोनाकाल में पीपीई किट के लिए टेप का इस्तेमाल होता है. फैक्टी का मैनेजर विशाल बिजनैस माइंडेड इंसान था.
टेप तो फैक्ट्री में बन ही रही है क्यों न पीपीई किट खुद ही अपनी फैक्ट्री में बनाई जाए. बस, काम चल पड़ा था. विशाल ने स्मिता को सजेशन दिया कि मार्केटिंग के लिए कोई नया व्यक्ति चुन लिया जाए, क्योंकि यह काम पहले सुमित देखता था.
स्मिता ने यह काम विशाल को सौंप दिया और सबकुछ देखभाल कर रजत को मार्केटिंग हैड नियुक्त किया गया. रजत ने काफी अच्छी तरह से काम संभाल लिया था. स्मिता कभीकभी फैक्ट्री जाती थी पैसों का हिसाबकिताब देखने. स्मिता ने कौमर्स पढ़ा था इसलिए अकाउंट्स वह देख लेती थी.
स्मिता नोट कर रही थी कि जब भी वह फैक्ट्री जाती रजत किसी न किसी बहाने से उस के नजदीक आने की कोशिश करता. वैसे रजत बुरा इंसान नहीं था लेकिन इस का ऐसा बरताव स्मिता को कुछ अटपटा लगता.
रात के 8 बज रहे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो सोमा काकी ने दरवाजा खोला.
‘‘स्मिता मैडम हैं?’’ रजत 2-3 फाइल हाथ में पकड़े खड़ा था.
‘‘हां, लेकिन आप?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘मैं रजत, फैक्ट्री का न्यू मार्केटिंग हैड’’ रजत अपना परिचय दे ही रहा था तब तक स्मिता दरवाजे तक आ गई.
‘‘आप, इस वक्त, क्या बात है?’’ स्मिता ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मैडम, जरूरी कागज पर साइन चाहिए थे. क्लाइंट से बात हो चुकी है. बस आप के अप्रूवल की जरूरत थी.’’
‘‘आइए, बैठिए, लाइए पेपर दीजिए,’’ स्मिता ने रजत से पेपर ले लिए.
रजत की आंखें घर का मुआयना कर रही थीं. साइड टेबल पर फ्रेम में अवि और परी की फोटो देख कर बोला, ‘‘बहुत प्यारे बच्चे हैं आप के मैडम.’’
‘‘हूं,’’ स्मिता बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. पेपर साइन कर के रजत की ओर बढ़ा दिए.
सोमा काकी को रजत की आंखों में लालच नजर आया था. शामू काका से सोमा काकी को पता तो चला था कि फैक्ट्री में नया आदमी आया है और काफी अच्छा काम कर रहा है. आज देख भी लिया, लेकिन रजत सोमा को कुछ ठीक सा नहीं लगा. इंसान को देख कर पहचान लेती थीं वे. जिंदगी ने इतनी ठोकरें दी थीं कि अच्छेबुरे की पहचान कर सकती थीं.
‘‘नहींनहीं, स्मिता बिटिया को इस से बचाना होगा,’’ सोमा काकी के दिमाग में एक उपाय सू झा.
घर के पीछे बने गैराज में गईं. शामू काका वहीं रहते थे. खानापीना, नहानाधोना सब इंतजाम कर रखे थे उन के लिए.
‘‘क्या बात है, इस वक्त यहां?’’ शामू काका दूध गरम कर रहे थे. खाना तो उन्हें घर से मिल ही जाता था.
‘‘शामू, तु झे फैक्ट्री में आए नए आदमी… क्या नाम है… हां, रजत उस पर नजर रखनी है. मु झे उस के इरादे ठीक नहीं लग रहे.’’
‘‘हूं… कभीकभी मु झे भी ऐसा लगता है. जिस तरह से वह स्मिता बिटिया को देखता है मु झे बुरा लगता है. फैक्ट्री में कितने आदमी हैं लेकिन यह बिटिया के आसपास मंडराता रहता है.’’
अगले दिन जब रजत फैक्ट्री से निकला, शामू काका ने गाड़ी उस के गाड़ी के पीछे लगा दी. उस ने गाड़ी मौल की पार्किंग में खड़ी कर दी. शामू काका भी गाड़ी पार्क कर उस के पीछे हो लिए. शामू काका ने अपना हुलिया बदला हुआ था. रजत उन्हें आसानी से पहचान नहीं सकता था.
रजत मौल के फूड कोर्ट में पहुंचा. वहां कोने की टेबल पर एक लड़की उस का इंतजार कर रही थी.
‘‘मिल आए अपनी स्मिता मैडम से?’’ लड़की ने ताना देते हुए कहा.
‘‘यार, तुम भी न. सब अपने और तुम्हारे लिए तो कर रहा हूं. हाथ में आ गई तो वारेन्यारे हो जाएंगे. तुम बस मेरा कमाल देखती जाओ.’’
शामू काका एक टेबल छोड़ कर बैठे थे. लेकिन उन के कान पीछे लगे थे. अब रजत की असलियत सामने थी.
शामू ने सोमा के सामने घर पहुंचते ही रजत का फरेब सामने रख दिया.
सोमा काकी ने भी स्मिता को रजत का कमीनापन बताने में देर नहीं लगाई.
स्मिता को रजत की हरकतों पर पहले ही शक था. शामू काका की बात पर यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था.
अगले ही दिन स्मिता ने मैनेजर विशाल से बात कर के एक प्लान के तहत रजत का फैक्ट्री से हिसाब ऐसे किया कि उसे यह पता नहीं चला कि स्मिता को उस की सचाई पता चल चुकी है.
स्मिता जान चुकी थी कि अब उसे कदमकदम पर फरेब करने वाले, झूठी हमदर्दी दिखा कर अपनेपन का दिखावा करने वाले और प्यार करने का दावा करने वाले लोग मिलेंगे. उसे हर कदम फूंकफूंक कर उठाना है.
शामू काका और सोमा काकी ने भी यह ठान लिया था कि स्मिता की, इस घर की और बच्चों की हर हाल में रखवाली करेंगे. खून का न सही, दिल का रिश्ता जुड़ा था उन का इन सब से.
रजत की तरह ही स्मिता को काम के सिलसिले में ऐसे लोग मिल जाते थे जिन्हें स्मिता की धनदौलत से बेशक मतलब न था लेकिन उस जैसी सुंदर, स्मार्ट, अकेली औरत को देख कर उसे पाने की उन्होंने कोशिशें कीं कि शायद दांव लग जाए. लेकिन स्मिता ने अपने दिल में सुमित को बैठा रखा था. कोई दूसरा उस में घुस नहीं सकता था.
स्मिता की मम्मी का आएदिन फोन आता और दबी जबान में उन की यही ख्वाहिश होती थी कि बेटी अपनी जिंदगी के बारे में एक बार फिर से सोचे. अभी उम्र ही क्या थी उस की. महज 34 साल की थी. लेकिन स्मिता बात को दूसरी तरफ मोड़ देती थी.
स्मिता के पीछे पड़ने वाले भौंरों की कमी न थी. एक बड़े होलसेल डीलर, जो लाखों का और्डर देते थे, स्मिता से मिलने के बाद 2 करोड़ रुपए के माल खरीदने का और्डर दे गए और कच्चा माल उधार में दिलवा दिया अलग. वे अब हर दूसरेतीसरे दिन आने लगे, तो शामू काका को शक हुआ. उन्होंने बाहर खड़ी डीलर की गाड़ी के ड्राइवर को बुला कर चाय पिलाना शुरू कर दिया. ड्राइवर ने बताया कि साहब की पत्नी कई साल से अलग रह रही है क्योंकि ये इधरउधर मुंह मारते रहते हैं.
एक बार फिर शामू काका ने स्मिता को संकट से निकाला. शामू काका ने कहा था कि बड़े मालिक ने उन्हें 10 साल की उम्र से रखा हुआ है और अब भी उन का अपना कोई नहीं है. वे बचपन में कब अनाथ हो गए थे, उन्हें नहीं मालूम. बस, इतना मालूम है कि उन के गांव के चाचा बड़े मालिक के पास किसी पुराने कर्मचारी की सिफारिश पर छोड़ गए थे.
सोमा काकी अकसर स्मिता को अकेले में बैठी आंसू बहाते देखती थीं. वे भी चाहती थीं कि स्मिता को अपने जीवन की खुशियां मिलें, लेकिन वे क्या कर सकती थीं अपनी इस बिटिया के लिए.
‘‘मम्मी, संडे को मेरी क्लास में चिराग का बर्थडे है. उस के पापा ने पार्टी रखी है. उस ने मु झे भी इन्वाइट किया है,’’ अवि बोला.
‘‘ठीक है, शामू काका तुम्हें ले जाएंगे.’’
संडे को अवि तैयार हो कर शामू काका के साथ चिराग के घर चला गया. उसे कार में बैठा स्मिता जब घर के अंदर आई तो टीवी खोल कर बैठ गई. अचानक साइड टेबल पर नजर गई तो गिफ्ट तो वहीं रखा हुआ था. वैसे तो शामू काका को फोन कर के वापस बुला सकती थी लेकिन काफी देर हो चुकी थी और वह नहीं चाहती कि शामू काका अवि को वहां अकेला छोड़ कर आएं.
स्मिता ने सोचा, क्यों न वह ही दे आए, लौटते हुए बुटीक से अपने कपड़े भी लेती आएगी. कई बार फोन आ चुका था कि उस के सूट सिल कर रेडी हैं.
स्मिता ने फटाफट कपड़े बदले और दूसरी गाड़ी निकाल कर चिराग के घर पहुंच गई. चिराग के घर का पता उस ने शामू काका को लिख कर दिया था, इसलिए उसे याद था.
चिराग का घर वाकई खूबसूरत था. वह लौन की तरफ गई, जहां सिर्फ 10-12 बच्चे थे. बच्चों को दूरदूर बैठा कर फन एक्टिविटी कराई जा रही थी. वह नजरें घुमा कर अवि को देख रही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हैलो, आप शायद अवि की मदर हैं.’’ स्मिता ने पलट कर देखा, लगभग 35-37 वर्षीय पुरुष, जिस का व्यक्तित्व आकर्षक कहा जाए तो गलत न होगा, खड़ा था.
‘‘जी, और आप?’’ स्मिता ने पूछा.
‘‘मैं चिराग का पापा अनुराग. आप को कई बार पेरैंट्स मीटिंग में देखा है अवि के साथ.’’
‘‘अच्छा, तभी सोच रही थी, कैसे मु झे पहचाना. वह क्या है कि अवि चिराग का गिफ्ट घर पर भूल आया था, देने चली आई. इधर कुछ काम भी था, सोचा, वह भी कर लूंगी.’’
‘‘गिफ्ट कोई इतना जरूरी तो नहीं था.’’
‘‘क्यों नहीं, बर्थडे पर बच्चों को अपने गिफ्ट देखने का ही शौक होता है.’’
‘‘यह तो आप सही कह रही हैं. अब आ ही गई हैं तो केक खा कर जाइए.’’ वेटर केक रख कर ले आया था.
‘‘थैंक्स, मैं चलती हूं. अवि अभी यहीं हैं. काफी एंजौय कर रहा है.’’
‘‘लाइफ में एंजौयमैंट बहुत जरूरी है, बच्चों के लिए भी और बड़ों के लिए भी,’’ अनुराग ने कुछ गंभीर हो कर कहा तो स्मिता ने एक बार उस की तरफ देखा. आंखें जैसे कहीं शून्य में खो गई थीं.
‘‘जी?’’
‘‘जी, कुछ नहीं. आइए आप को बाहर तक छोड़ देता हूं.’’
‘‘जी शुक्रिया, आप मेहमानों को देखिए. अच्छा, नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते.’’
अवि और चिराग वीडियो कौलिंग करते थे. कभीकभी स्कूल के असाइनमैंट वर्क को ले कर अनुराग स्मिता से बात कर लेता था. अनुराग पेशे से प्रोफैसर था. पत्नी से तलाक हो चुका था. उस की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं थीं जिन्हें पूरा करने के लिए उस ने पति और बेटे को पीछे छोड़ दिया था. चिराग की पूरी देखभाल अनुराग के सिर थी और अनुराग की मां भी चिराग का पूरापूरा खयाल रखती थीं.
एक दिन अनुराग अपने पुत्र चिराग को अवि से मिलवाने के लिए ले कर आया था. स्मिता घर पर ही थी. अनुराग को देख उस के चेहरे पर मुसकराहट आ गई थी जिसे सोमा काकी ने पढ़ लिया था. स्मिता ने अपने भाव छिपाते हुए अनुराग को बैठने के लिए कहा. चिराग और अवि खेलने ऊपर के कमरे में चले गए थे.
‘‘आप के लिए कुछ लाऊं?’’ सोमा काकी के चेहरे पर उत्साह की झलक थी.
‘‘जी नहीं, मैं ठीक हूं,’’ अनुराग ने जवाब दिया.
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है कि आप बिना कुछ लिए चले जाएं. मैं दोनों के लिए ही चाय बना कर लाती हूं,’’ बीच में ही सोमा काकी बड़े अधिकार से बोलीं और किचन की ओर बढ़ गईं.
‘‘आज काकी को न जाने क्या हो गया है. वे तो किसी को मेरे पास फटकने नहीं देतीं,’’ स्मिता का यह कहनाभर था कि अनुराग के चेहरे पर मुसकान आ गई, जिसे देख स्मिता को अच्छा लगा.
‘‘क्या कर रही हैं आजकल आप, कुछ नया?’’ अनुराग ने प्रश्न किया.
‘‘कुछ खास नहीं, फैक्ट्री का काम अच्छा चल ही रहा है, तो कोई दिक्कत नहीं.’’
‘‘मैं आप के बारे में पूछ रहा था फैक्ट्री के नहीं,’’ अनुराग ने स्मिता की आंखों में देखते हुए कहा.
‘‘मेरे बारे में जानने जैसा कुछ है ही नहीं,’’ स्मिता ने नजरें अनुराग के चेहरे से हटाते हुए कहा.
‘‘मु झे ऐसा नहीं लगता.’’
सोमा काकी चाय ले आईं. सोमा काकी वहीं पास खड़ी थीं और लगातार अनुराग को ताक रही थीं. उन्हें अनुराग के चेहरे पर एक अपनापन नजर आया था जो उन्होंने किसी और पुरुष के चेहरे पर नहीं देखा था. अनुराग का व्यक्तित्व उस के अच्छे इंसान होने की गवाही दे रहा था. सोमा काकी कमरे से बाहर गईं तो शामू काका से अनुराग को ले कर चर्चा करने लगीं.
‘‘प्रोफैसर साहब को ले कर तुम्हारा क्या खयाल है?’’ सोमा काकी ने पूछा.
‘‘अच्छे इंसान मालूम पड़ते हैं,’’ शामू काका ने जवाब दिया.
‘‘मु झे भी. बिटिया का चेहरा कितने दिन बाद इतना खिला हुआ दिख रहा है, है न?’’
‘‘पता नहीं, लेकिन तुम कह रही हो तो ऐसा ही होगा.’’
‘‘हां.’’
अनुराग चिराग को ले कर जाने लगा तो उस के चेहरे पर स्मिता से मिलने की चाह साफ नजर आ रही थी. अनुराग के जाते ही स्मिता सोफे पर बैठी हुई थी जब सोमा काकी उस के पास आ कर बैठ गईं.
‘‘मु झे तो प्रोफैसर साहब अच्छे लगे, और बिटिया तुम्हें?’’
‘‘हां, मु झे भी,’’ कहते ही स्मिता को खयाल आया कि उस ने अचानक क्या कह दिया. ‘‘क्या? ऐसा तो कुछ नहीं है, मेरा मतलब, हां, अच्छे व्यक्ति हैं,’’ कह कर उस ने नजरें दूसरी तरफ कर लीं.
‘‘मेरी तो हां हैं और शामू की भी,’’ कह कर सोमा काकी उठ कर जाने लगीं.
स्मिता उन की बात सुन कर झेंप गई, बोली, ‘‘कुछ भी कहती हो आप.’’
अवि और चिराग आपस में बात करना चाहते थे तो स्मिता के फोन पर अनुराग का मैसेज आ जाता था. पर अब वह चिराग और अवि की बात कराने के लिए नहीं बल्कि खुद स्मिता से बात करने के लिए मैसेज करने लगा. धीरेधीरे अनुराग ने स्मिता से मोबाइल पर बात करनी शुरू कर दी. दो दुखी दिल, दो तन्हा इंसान ही एकदूसरे की पीड़ा सम झ सकते हैं. अनुराग ने अपनी पत्नी से तलाक के बाद दूसरी शादी के बारे में सोचा तक नहीं था. लेकिन, अपनी तरह ही स्मिता को देख वह उस के प्रति आकर्षित होने लगा था.
स्मिता और अनुराग जब बात करते थे, उन्हें लगता था उन के मन की पीड़ा कम हो गई है. दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे. अनुराग का यह कहना, ‘स्मिता, तुम फिक्र मत करो. मैं हूं न. सब ठीक हो जाएगा,’ स्मिता की सब पीड़ा हर लेता.
सोमा काकी ने महसूस किया था जब से अनुराग स्मिता की जिंदगी में आया है, स्मिता के जीवन में आया खालीपन भरने लगा था. दोनों अपनीअपनी तकलीफ एकदूसरे से बांट कर जिंदगी की उल झनों को सुल झा रहे थे. बेशक वे एकदूसरे से दूर रहे थे लेकिन मन का जुड़ाव हो चुका था. मन से मन का मिलन कुछ कम तो नहीं होता.
दोनों की अपनीअपनी जिंदगी थी. दोनों पर अपने बच्चों की जिम्मेदारी थी. वे उन्हें अच्छी तरह निभा रहे थे. लेकिन दोनों के पास आज एकदूसरे का मानसिक संबल था जो शारीरिक संबल से भी जरूरी है. वक्त की धारा में दोनों बह रहे थे.
‘‘स्मिता बिटिया, किस सोच में हो, तुम्हारा खूबसूरत भविष्य तुम्हारा इंतजार कर रहा है. शादी के बारे में क्यों नहीं सोचतीं,’’ सोमा काकी ने एक दिन कहा.
‘‘डर लग रहा है काकी. समाज क्या कहेगा, बच्चे क्या सोचेंगे कि उन की मां को शादी की पड़ी है.’’
‘‘बच्चे छोटे हैं स्मिता, वे पिता की कमी महसूस करते हैं जो प्रोफैसर साहब पूरी कर सकते हैं. वे भी तुम से शादी करना चाहते हैं, उन की बातों से, उन की आंखों से साफ झलकता है.’’
‘‘पूछा था अनुराग ने मु झ से, मैं ने ही मना कर दिया था.’’
शामू काका भी वहां आ चुके थे.
‘‘स्मिता बिटिया, सोमा सही कह रही है, समाज हमारे साथ ऐसा करता ही क्या है जो हम उस के बारे में सोचें, अपने दिल की सुनो बिटिया. बच्चों को पिता भी मिल जाएगा.’’
शामू काका और सोमा काकी के जाने के बाद स्मिता सोच में डूब गई. सुमित को याद करने लगी, अपने वे दिन याद करने लगी जब लोगों की नजरें उसे तारतार करने की कोशिश करती थीं. अनुराग से मिलने से पहले कितना दर्द था उस के दिल में. सब स्मिता की आंखों के आगे नाचने लगा.
स्मिता ने फोन उठाया और अनुराग को कौल किया.
‘‘हैलो, अनुराग.’’
‘‘हां स्मिता, कहो?
‘‘मैं तुम्हारा हाथ थाम कर आगे बढ़ना चाहती हूं. ऐसा लगता है कि हम साथ होंगे तो सब उलझनें सुलझ जाएंगी.’’
‘‘स्मिता, मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा कभी.’’ अनुराग के इन शब्दों से स्मिता का रोमरोम पुलकित हो उठा था.
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