सदियों से दुनिया ने औरत को सात परदों में छिपा कर और चारदीवारी में घेर कर रखा है. उस पर हर पल नजर रखी गई कि कहीं वह समाज के ठेकेदारों द्वारा स्त्री के लिए विशेषरूप से रची गई मर्यादाओं का उल्लंघन तो नहीं कर रही. उस की हर सीमा का निर्धारण पुरुष ने किया. उस के तन और मन को कब किस चीज की जरूरत है, उस को कब और कितना दिया जाना चाहिए, हर बात को पुरुष ने अपनी सुविधानुसार तय किया. मगर हर बात की एक सीमा होती है. आखिर यह दबावछिपाव भी कहीं तो जा कर रुकना था.
शिक्षा ने औरत को मजबूती दी. लोकतंत्र ने उसे जमीन दी खड़े होने की. सोचने विचारने और अपने अधिकारों को जानने का अवसर दिया. बीते कई दशकों में स्त्री ने कभी बागी हो कर, कभी घरेलू परिस्थितियों से तंग आ कर, कभी घर की लचर परिस्थितियों में आर्थिक संबल बनने के लिए चारदीवारी से बाहर कदम निकाला. बीती 2 सदियों में आर्थिक मजबूती के साथ स्त्री वैचारिक स्तर पर भी काफी मजबूत हुई है. उस को मात्र जिस्म नहीं, बल्कि एक इंसान के रूप में पहचान मिली है.
बेड़ियों से आजाद नारी देह
आज की औरत अपनी इच्छाओं का इजहार करने से झिझकती नहीं है. वह कुछ ऊंचनीच होने पर नतीजा भुगतने को भी तैयार है. अपनी पर्सनैलिटी और समझ से वह उन दरवाजों को भी अपने लिए खोल रही है, जो अभी तक औरतों के लिए बंद थे. सब से बड़ी क्रांति तो देह के स्तर पर आई है. स्त्री देह जिस पर मर्द सदियों से अपना हक मानता आता है, उस देह को उस ने उस की नजरों की बेडि़यों से स्वतंत्र कर लिया है.
धार्मिक व सामाजिक मर्यादाएं जो उस के जिस्म को जकड़े हुए थीं, उन को काट कर उस ने दूर फेंक दिया है. अब वह अपनी शारीरिक जरूरत के लिए खुल कर बात करती है. पहले जहां एक औरत अपनी इच्छाओं का इजहार करने में संकोच करती थी, वहीं अब बैडरूम में बिस्तर पर लाश की मानिंद पड़े रहने के बजाए वह अपनी इच्छाओं के उछाल से मर्द को हक्काबक्का कर देती है.
उस का बैडरूम हर रोज नई उत्तेजना से भरा होता है. शादी से पहले सहमित से सैक्स संबंध बनाने में भी उसे कोई झिझक नहीं है.
इस नई उन्मुक्त स्त्री की हलचल कई दशक पहले से सुनाई देनी शुरू हो गई थी. विवाह की असमान स्थितियों में कैद, नैतिक दुविधाओं से ग्रस्त और अपराधबोध के तनाव से उबर कर अब एक नई स्त्री का पदार्पण हो चुका है, जो अपना भविष्य खुद लिखती, खुद बांचती है, जो अपने मनपसंद कपड़े पहन कर देर रात पार्टियां अटैंड करती है. बड़ेबड़े सपने देखती है और उन्हें पूरा करने का माद्दा रखती है.
मेरी जिंदगी मेरी शर्तें
एक सर्वे के मुताबिक वर्ष 2003 में जहां पोर्न देखने की आदत को सिर्फ 9 फीसदी महिलाओं ने कबूल किया था, वहीं यह संख्या अब 40 फीसदी पर पहुंच गई है. अब औरत अपनी चाहत का, प्यार का गला नहीं दबाती, बल्कि बेझिझक अपने प्रेमी से शारीरिक संबंध स्थापित करती है, फिर चाहे वह शादी के पहले ही क्यों न हो. अब यह उस की इच्छा पर है कि वह किस पुरुष से शादी करना चाहती है. उस की इच्छा पर है कि वह कब मां बनना चाहती है. अगर वह शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहती तो उस के बिना भी वह अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने और मां बनने के लिए स्वतंत्र है.
आज की नारी अपने साथ हुए अन्याय पर भी बोलने लगी है. छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, हिंसा, बलात्कार पर वह खुद को गुनाहगार नहीं समझती, बल्कि जिस ने उस के साथ ये गुनाह किए हैं उस को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की हिम्मत रखती है. ‘मीटू’ कैंपेन इस का ताजा उदाहरण है. इंटरनैट सेवाओं ने औरत को काफी सपोेर्ट दिया है और सोशल मीडिया ने उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने का प्लेटफौर्म दिया है.
स्त्री और पुरुष दोनों ही कमोबेश एकदूसरे के प्रति एक ही तरह की वासना से प्रेरित होते हैं. अपनी शारीरिक खूबसूरती का एहसास आज की स्त्री को बखूबी है और वह उसे और ज्यादा सजानेतराशने की कोशिश प्रतिपल करती रहती है. अपनी इस खूबी का प्रयोग उसे कब, कहां और कितना करना है, यह भी वह बखूबी जानती है.
वर्कप्लेस पर बौस को खुश कर के नौकरी में तरक्की पाने के लिए उस का शरीर उस का खास हथियार बन गया है. मीडिया इंडस्ट्री, फिल्म इंडस्ट्री, टीवी या मौडलिंग के क्षेत्र में स्त्री का जिस्म उस के टेलैंट से ज्यादा माने रखता है और उस की सफलता के रास्ते तैयार करता है. तरक्की के लिए सैक्स को आधार बनाने में अब उसे कोई आपत्ति नहीं है. इस यौन आजादी ने स्त्री को पुरुष के समकक्ष और कहींकहीं उस से भी आगे खड़ा कर दिया है.
यह सच अब समाज को स्वीकार कर लेना चाहिए कि सैक्स की जरूरत और अहमियत जितनी पुरुष के लिए है, उतनी ही स्त्री के लिए भी है. अगर पुरुष अपनी पत्नी के अलावा दूसरी स्त्रियों से संबंध रख सकता है, उन से भावनात्मक और यौन संबंध बना सकता है, विवाहेत्तर संबंध रख सकता है और उन के साथ खुशी महसूस कर सकता है, तो फिर एक स्त्री ऐसा क्यों नहीं कर सकती? स्त्री क्यों जीवनपर्यंत एक ही पुरुष से जबरन बंधी रहे? क्यों वह अपनी अनिच्छा के बावजूद उस की शारीरिक जरूरतें पूरी करती रहे? अगर उस का पति उस की भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में अक्षम है तो दूसरे पुरुष से वह नाता क्यों नहीं जोड़ सकती?
यह चिंता करने की बात है कि तनुश्री दत्ता के बाद जो भी मामले ‘मीटू’ के सामने आए हैं किसी में भी सताने वाले पुरुष ने यह नहीं कहा कि औरत ने अपने को समर्पित किया था. वे यही कहते हैं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं.
सुरक्षित आर्थिक भविष्य
आर्थिक आजादी ने स्त्री को पुरुष की गुलामी से मुक्त किया है. उस में चुस्ती और खूबसूरती को बढ़ाया है. आज उन के खूबसूरत शरीर और हसीन चेहरे वर्कप्लेस को भी ताजगी दे रहे हैं. पुरुष सहयोगियों के मुकाबले स्त्रियां अपने वर्कप्लेस पर ज्यादा खुश नजर आती हैं. आज सचाई यह है कि स्त्रियों के लिए सुरक्षित आर्थिक भविष्य के साथ संतोषजनक रिश्ते का बेहतर माहौल जैसा आज है, वह पहले कभी नहीं था.
स्त्री की आजादी को उच्चतम न्यायालय ने भी खूब सपोर्ट किया है. चाहे लिवइन रिलेशनशिप की बात हो या विवाहेत्तर संबंधों की, अदालत ने स्त्री के पक्ष में ही अपने तमाम फैसले सुनाए हैं. इस से औरतों में जोश और उत्साह का माहौल है. बंदिशों को तोड़ कर ताजी हवा में सांस ले रही औरत अपनी सुरक्षा के प्रति आज खूब जाग्रत है. ‘मीटू’ कैंपेन इस का ताजा उदाहरण है.
10-20 साल पहले जो औरतें अपने साथ हुई अश्लीलता पर अनेक सामाजिक बंधनों में बंधी होने और आर्थिक रूप से ज्यादा सक्षम न होने की मजबूरी के चलते चुप्पी साध कर बैठी थीं, आज सोशल मीडिया पर अपना दर्द चीखचीख कर बता रही हैं, बकायदा एफआईआर भी दर्ज करा रही हैं और आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.
पुरुषों ने समझ रखा है कि औरतों के साथ चाहे जो कर लो, वे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए मुंह नहीं खोलेंगी. कुछ को सैक्स के बदले पद या पैसा दे कर उन्हें लगने लगा था कि हर स्त्री देह बिकाऊ है. हर औरत गाय है जब मरजी दूह ले और फिर लात मार कर चला जाए.
ये ‘मीटू’ कैंपेन का नतीजा है कि देश के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर को न सिर्फ अपना पद गंवाना पड़ा, बल्कि दुनिया भर में उन के नाम की छीछालेदर हुई. उन की ओछी आपराधिक हरकतों से राजनीतिक जगत और मीडिया जगत दोनों शर्मसार हैं.
जागरूक है आधी आबादी
आज औरत अगर अपनी आजादी के प्रति जागरूक है तो अपने प्रति होने वाले अपराध के प्रति भी. इस से पुरुषों में भय पैदा हुआ है. वर्कप्लेस पर, घर में, पार्टी में, सार्वजनिक स्थलों पर पहले जहां औरतों के साथ छेड़छाड़ और अश्लील हरकतें करना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे और उन के खिलाफ कोई काररवाई नहीं होती थी, अब वह समय खत्म हो गया है. अब वह अपने गलत कृत्य पर ऐक्सपोज कर दिया जाएगा, उस के खिलाफ बकायदा मुकदमा दर्ज होगा, उसे सजा होगी और वह सब इसलिए होगा क्योंकि औरत जागरूक हो चुकी है.
‘मीटू’ कैंपेन का असर दूरगामी होगा. मगर इस के कुछ साइडइफैक्ट भी होंगे. जैसे औरतों को कार्यालयों में काम मिलना कुछ हद तक प्रभावित हो सकता है. उन के सहकर्मी उन से हंसीमजाक करते वक्त थोड़ा रिजर्व रहेंगे. मगर इस से डर कर या घबरा कर कदम पीछे खींचने की हरगिज जरूरत नहीं है. यह इफैक्ट कुछ समय का ही होगा.
जब शारीरिक संबंधों में औरत की रजामंदी को शामिल किया जाने लगेगा, तब यह अपराध के दायरे से निकल कर आंनद की पराकाष्ठा छू लेगा. जिस दिन औरत की ‘हां’ का मतलब ‘हां’ और ‘न’ का मतलब ‘न’ होना पुरुष की समझ में आ जाएगा, उस दिन पुरुषस्त्री संबंध इस धरती पर नई परिभाषा रचेंगे और खूबसूरत रूप में सामने आएंगे.
देह की स्वतंत्रता का मतलब है कि जो सहमति से प्यार चाहे उसे ही उपलब्ध है. स्त्री खिलौना नहीं है कि खेलो और छोड़ कर चल दो.