जागृति तो सिर्फ पढ़ने से आती है

सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग यानी सादा जीवन उच्च विचार पर अमल करने वाले युवाओं की तादाद दिनोंदिन कम होती जा रही है. युवा टिपटौप रहें, अच्छे मनपसंद कपड़े पहनें, वक्त के हिसाब से फैशन करें ये बातें कतई हरज की नहीं, लेकिन उन की सोच और मानसिकता कैसी होनी चाहिए जो उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचा दे यह सबक भोपाल की 24 वर्षीय जागृति अवस्थी से लिया जा सकता है जिस ने इस साल यूपीएससी के इम्तिहान में देशभर में दूसरा स्थान हासिल किया है.

मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली दुबलीपतली लेकिन आकर्षक दिखने वाली खूबसूरत जागृति भोपाल के शिवाजी नगर स्थित सरकारी आवास में रहती है. उस के पिता सुरेश अवस्थी आयुर्वेदिक कालेज में होमियोपैथी के प्रोफैसर हैं और मां मधुलता हाउसवाइफ हैं. एकलौता भाई सुयश मैडिकल कालेज का छात्र है.

नतीजे के दिन से जागृति के घर मीडिया और बधाई देने वालों का तांता लगा है. हरकोई उस से जानना चाहता है कि उस ने यह मुकाम कैसे हासिल किया.

पड़ोसी होने के नाते इस प्रतिनिधि ने बचपन से ही उसे देखा है. जागृति शुरू से ही आम बच्चों से भिन्न रही है. उस की जिज्ञासा और मासूमियत ने उसे वहां तक पहुंचा दिया जो किसी भी युवा का सपना होता है.

इस प्रतिनिधि ने उस से लंबी अंतरंग बातचीत की तो कई अहम बातें सामने आईं जो बताती हैं कि यों ही कोई आईएएस अधिकारी नहीं बन जाता. इस उपलब्धि के लिए न केवल कड़ी मेहनत करना पड़ती है बल्कि बहुत से सुख और मौजमस्ती भी छोड़नी पड़ती है. आइए, जागृति की जबानी जानें उस के सफर की कहानी:

हाई रिस्क हाई गेन

जागृति ने जिंदगी का बहुत बड़ा जोखिम बीएचईएल की नौकरी छोड़ देने का उठाया था. भोपाल के एनआईटी से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद उस की जौब जब इस सरकारी कंपनी में लगी थी तब तक उस ने सिविल सेवाओं के बारे में सोचा भी नहीं था. क्व95 हजार महीने की खासी लगीलगाई नौकरी छोड़ना एक बहुत बड़ी रिस्क था जिस पर दोस्तों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों ने उस के इस फैसले को एक तरह से नादानी करार दिया था. कुछ की सलाह थी कि तैयारी तो नौकरी के साथसाथ भी हो सकती है यानी नौकरी छोड़ने का जोखिम मत उठाओ.

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मगर जागृति ने जोखिम उठाया और कामयाब रही. युवाओं को रिस्क लेना चाहिए. वह कहती है कि इस के लिए जरूरी है अपनेआप पर भरोसा होना कि जो लक्ष्य उन्होंने चुना है उसे हासिल कर ही दम लेंगे. अगर ठान लिया जाए और खुद को पूरी तरह झोंक दिया जाए तो दुनिया का कोईर् काम मुश्किल नहीं.

पत्रपत्रिकाएं जरूरी

जागृति के पेरैंट्स ने कभी उस के फैसलों पर एतराज नहीं जताया बल्कि हमेशा उसे प्रोत्साहित ही किया. जब बच्चे बड़े होने लगे तो मधुलता ने उस की बेहतर पढ़ाई के लिए टीचरशिप की नौकरी छोड़ दी. लेकिन अकेले पढ़ाई में अव्वल होना किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सफलता की गारंटी जागृति नहीं मानती. उस के मुताबिक आप को बहुत सा और हर तरह का साहित्य पढ़ना चाहिए जो सिर्फ पत्रपत्रिकाओं और पुस्तकों में ही मिलता है. सोशल मीडिया और टीवी, मोबाइल का युवाओं को सीमित उपयोग करना चाहिए.

खुद जागृति के घर टीवी नहीं है जो पढ़ाई में बाधक ही होता. वह बताती है कि परीक्षा की तैयारी के लिए उस ने तरहतरह की किताबें पढ़ीं जिस से उस का ज्ञान बढ़ा. वह बचपन में बड़े चाव से चंपक पढ़ा करती थी और अब सरिता, गृहशोभा सहित कारवां पत्रिका भी जरूर पढ़ती है. पत्रपत्रिकाओं के अध्ययन ने उसे व्यावहारिक और तार्किक बनाया.

आईएएस ही क्यों

जागृति जब बीएचईएल में नौकरी करती थी तब उस ने देखा कि छोटे स्तर के कर्मचारी अपने छोटेछोटे कामों के लिए कलैक्टर के दफ्तर भागते थे. कुछ के काम हो जाते थे और कुछ के नहीं. इन लोगों की परेशानी देख उस के मन में भी आईएएस बनने का खयाल आया. वह कहती है कि वह खुद बुदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर के छोटे से गांव से है, लिहाजा बचपन में ही उस ने देहाती जिंदगी की दुश्वारियों को देखा है. अब वह महिला और बाल विकास विभाग को प्राथमिकता में रखते हुए काम करेगी.

राजनीतिक हस्तक्षेप

ब्यूरोक्रेट्स को अकसर राजनीतिक दबाव में फैसले लेने पड़ते हैं. अगर ऐसी नौबत कभी आई तो क्या करोगी? इस सवाल पर वह पूरे आत्मविश्वास से बोली कि उसे नहीं लगता कि राजनीतिक दबाव में वह कोई फैसला लेगी. देश में एक संविधान है. उस के दायरे में ही फैसले लेगी. जागृति का मानना है कि कोई भी फैसला आम और वंचित लोगों के भले के लिए संस्थागत तरीके से लिया जाना चाहिए. देश टैक्स के पैसे से चलता है किसी खैरात से नहीं, यह बात सभी को ध्यान में रखनी चाहिए. ऐसा ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ट्रांसफर कर दिया जाएगा, जिन की परवाह नहीं.

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महिला आरक्षण

जागृति का ध्यान पिछले दिनों चीफ जस्टिस एनवी रमण के उस बयान जिस में उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण की जोरदार वकालत की थी पर खींचने पर वह बोली कि आरक्षण होना चाहिए, लेकिन यह देखा जाना जरूरी है कि वह कैसे दिया जा रहा है. आरक्षण के मसले पर हमें महिलाओं को विभिन्न तबकों में बांटना होगा क्योंकि सभी की हालत एक सी और ठीक नहीं है जिसे सुधारने के लिए महिला शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान दिया जाना जरूरी है.

डाक्टर भीमराव अंबडेकर ने जातिगत आरक्षण दे कर उस तबके का भला ही किया था जो सदियों से शिक्षा से वंचित था. शहरों में तो स्थिति ठीकठाक है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में काफी कुछ काम इस दिशा में होना बाकी है.

शादी के बारे में

जागृति का नजरिया शादी के बारे में बहुत स्पष्ट है. वह हंसते हुए कहती है कि बहुत से चीजों को देखते हुए किसी समकक्ष से ही शादी करेगी लेकिन उस में मम्मीपापा की रजामंदी होगी. उन्होंने उसे इस बारे में भी फैसला लेने की छूट दे रखी है. ऐसा जीवनसाथी पसंद करेगी जिस में आदमी को आदमी समझने का जज्बा हो और जो जमीनी सोच रखता हो.

युवा धैर्य और समझ से काम लें

अब बहुतों की रोल माडल बन चुकी जागृति मौखिक इंटरव्यू में एक मामूली से सवाल पर लड़खड़ा गई. यह सवाल था मध्य प्रदेश का पिनकोड 4 से शुरू होता है और किस राज्य का पिनकोड 4 से शुरू होता है. जबाव बहुत आसान था कि छत्तीसगढ़ का क्योंकि वह मध्य प्रदेश से अलग हो कर ही बना था. वह कहती है अकसर इंटरव्यू में ऐसा होता है कि उम्मीदवार मामूली से सवालों के जवाब मालूम होते हुए भी नहीं दे पाता.

जागृति की नजर में यह घबराहट हालांकि स्वाभाविक है, लेकिन युवाओं को न केवल किसी इंटरव्यू बल्कि जिंदगी की हर लड़ाई में धैर्य और अपनी समझ बनाए रखनी चाहिए. आज का युवा कई अनिश्चितताओं में जी रहे हैं पर आत्मविश्वास एक ऐसी पूंजी है जो उन्हें कभी दरिद्र नहीं होने देती.

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