अंधविश्वास पर लोग क्यों करते हैं विश्वास

अंधविश्वास की हद किसे कहते हैं, इस का उदाहरण है यह विज्ञापन जिस के छलावे में अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी आ जाते हैं. ससुराल में किसी तकलीफ या कष्टों से मुक्ति पाने के लिए करें ये उपाय- ‘‘किसी सुहागिन बहन को ससुराल में कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें. उपवास यानी एक बार बिना नमक का भोजन कर के उपवास रखें. भोजन में दाल, चावल, सब्जी रोटी न खाएं. दूधरोटी खा लें. शुक्ल पक्ष की तृतीया को, अमावस्या से पूनम तक शुक्ल पक्ष में जो तृतीया आती है उस को ऐसा उपवास रखें. अगर किसी बहन से यह व्रत पूरा साल नहीं हो सकता तो केवल माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया, वैशाख शुक्ल तृतीया और भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया को करें. लाभ जरूर मिलेगा.

‘‘अगर किसी सुहागिन बहन को कोई तकलीफ है तो यह व्रत जरूर करें. उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें. कुमकुम का तिलक ख़ुद को भी करें.  उस दिन गाय को भी रोटी गुड़ खिलाएं.’’

सोचने वाली बात है कि एक महिला को ससुराल में सम्मान और प्यार उस के अपने कर्मों से मिलेगा या फिर टोनेटोटकों से. अगर वह पूरे परिवार का खयाल रखती है, पति की भावनाओं को मान देती है, सास से ले कर दूसरे परिजनों से अच्छा रिश्ता कायम करती है और उन की सुविधाओं को अहमियत देती है तो जाहिर है ससुराल वाले भी उसे पूरा प्यार और स्नेह देंगे. ये रिश्ते तो परस्पर होते हैं. आप जितना प्यार दूसरों पर लुटाओगे दूसरे भी आप का उतना ही खयाल रखेंगे.

अब अगले विज्ञापन में तथाकथित महान धर्मगुरुओं और ज्योतिषियों से जानते हैं कि एक लड़की को ससुराल में तकलीफें होती क्यों हैं?

ज्योतिष के अनुसार कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति पक्ष में न होने पर लड़की को ससुराल में बारबार अपमानित होना पड़ता है. यहां जानिए उन ग्रहों के बारे में जो परेशानी की वजह बनते हैं, साथ ही उन के प्रभाव से बचने के तरीकों के बारे में भी जानिए:

मंगल: मंगल को क्रोधी ग्रह माना जाता है. क्लेश,   झगड़ा और गुस्से का कारक मंगल को ही माना जाता है. मंगल की अशुभ स्थिति जीवन में अमंगल की वजह बनती है. यदि किसी लड़की की कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति बनी हो तो उसे जीवन में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: मंगलवार की अशुभ स्थिति को शुभ बनाने के लिए आप मंगलवार के दिन हनुमान बाबा की पूजा करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. अगर संभव हो तो हर मंगल को सुंदरकांड का पाठ करें. लाल मसूर की दाल, गुड़ आदि का दान करें.

शनि: शनि अगर शुभ स्थिति में हो तो जीवन बना देता है. लेकिन शनि की अशुभ स्थिति जीवन को तहसनहस कर डालती है. अगर किसी लड़की की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक न हो तो ससुराल में उस के साथ बरताव अच्छा नहीं होता. उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

उपाय: हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनिवार के दिन सरसों का तेल, काले तिल, काली दाल, काले वस्त्र आदि का दान करें. शनि चालीसा का पाठ करें.

राहु और केतु: राहु और केतु दोनों ग्रहों को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है. जब ये अशुभ होते हैं तो मानसिक तनाव की वजह बनते हैं. साथ ही कई बार व्यक्ति को बेवजह कलंकित होना पड़ता है. राहु को ससुराल का कारक भी माना गया है. ऐसे में किसी लड़की की कुंडली में राहु और केतु की अशुभ स्थिति शादी के बाद उस के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है.

उपाय: राहु को शांत रखने के लिए माथे पर चंदन का तिलक लगाएं. महादेव का पूजन करें और घर में चांदी का ठोस हाथी रखें. वहीं केतु को शांत रखने के लिए भगवान गणेश की पूजा करें. चितकबरे कुत्ते या गाय को रोटी खिलाएं.

जरा सोचिए, अगर ग्रहनक्षत्र ही आप का जीवन चला रहे हैं तो फिर ग्रहों को शांत करने के सिवा जिंदगी में कुछ भी करने की जरूरत ही नहीं. आप हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहो और ग्रहनक्षत्रों की स्थिति सही करने के उपाय करते रहो. क्या इस तरह जिंदगी चल सकती है? क्या अपने कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता खत्म हो जाती है?

बाबाओं के पास ससुराल की समस्याएं ही नहीं बल्कि जीवन से जुड़ी हर तरह की परेशानियों के हल करने के उपाय हैं. आइए, जानते हैं उन के द्वारा सु  झाए जाने वाले ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में:

तनाव मुक्ति के लिए

तनाव से मुक्ति पाने के लिए दूध और पानी को मिला कर किसी बरतन में भर लें व सोते समय उसे अपने सिरहाने रख लें और अगले दिन सुबह उठ कर उसे कीकर की जड़ में डाल दें. ऐसा करने से आप मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करेंगे व खुद को तनावमुक्त पाएंगे.

शनि दोषों को दूर करने के लिए

शनिवार को एक कांसे की कटोरी में सरसों का तेल और सिक्का डाल कर उस में अपनी परछाईं देखें और तेल मांगने वाले को दे दें या किसी शनि मंदिर में शनिवार के दिन कटोरी सहित तेल रख कर आ जाएं. यह उपाय आप कम से कम 5 शनिवार करेंगे तो आप की शनि की पीड़ा शांत हो जाएगी और शनि की कृपा शुरू हो जाएगी.

अचानक आए कष्ट दूर करने के लिए

एक पानी वाला नारियल ले कर उस व्यक्ति के ऊपर से 21 बार वारें जिस के ऊपर संकट हो. इस के बाद उसे किसी देवस्थान पर जा कर अग्नि में जला दें. ऐसा करने से उस सदस्य पर से संकट दूर हो जाता है. यह उपाय किसी मंगलवार या शनिवार को करना चाहिए. लगातार 5 शनिवार ऐसा करने से जीवन में अचानक आए कष्ट से मुक्ति मिलती है.

आज देश को आजाद हुए 75 साल बीत चुके हैं. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है. हमारा लाइफस्टाइल बदल चुका है. मगर इन सब के बावजूद विडंबना यह है कि समाज में अंधविश्वास भी चरम पर है. देश के बहुत से हिस्सों में आज भी   झाड़फूंक, तंत्रमंत्र, भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, ज्योतिष आदि पर लोग विश्वास करते हैं और इन सब का फायदा उठा कर ओ  झा, तांत्रिक, ज्योतिषी आदि की ठगी का धंधा फूलफल रहा है. आज भी बाबामाताजी,   झाड़फूंक व तंत्रमंत्र की मदद से किसी भी बीमारी या मानवीय समस्या का समाधान करने का दावा किया जाता है.

21वीं सदी के वर्तमान दौर में भी   झारखंड समेत देश के कई राज्यों में मौजूद डायन बिसाही प्रथा एवं डायन हत्या की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं. इस की जड़ें एक ओर ओ  झा, गुनी, तांत्रिक, ज्योतिष आदि तक जाती है वहीं समाज में मौजूद पुरुष वर्चस्व वाली मानसिकता भी इस से जुड़ी है. उस पर हाल यह है कि समाज में अंधविश्वास, कुरीति, लूट एवं पाखंड फैलाने और उसे बढ़ावा देने वाले लोग अकसर कानून के शिकंजे में फंसने से बच जाते हैं या पकड़ में आने के बाद भी आसानी से छूट जाते हैं.

कैसा है अंधविश्वास का संसार

जीवन को नकारात्मक दिशा में मोड़ता है: अकसर धर्मगुरु अपनी तथाकथित विद्या के माध्यम से लोगों को भयभीत करते हैं. लोगों का जीवन अकर्मण्यता और बिखराव का शिकार हो कर अपने मार्ग से भटक जाता है. इस भटकाव के कई पहलू हैं जिन में से एक पहलू यह है कि वह खुद से ज्यादा ज्योतिषी, तांत्रिक और बाबाओं पर विश्वास करता है. ग्रहनक्षत्रों से डर कर उन की भी पूजा या प्रार्थना करने लगता है. वह अपना हर कार्य लग्न, मुहूर्त या तिथि देख कर करता है और उस कार्य के होने या नहीं होने के प्रति संदेह से भरा रहता है.

जीवनभर टोनेटोटकों में उल  झा रहता है. ऐसे में उस का वर्तमान, वास्तविक जीवन और अवसर हाथों से छूट जाता है. व्यक्ति जिंदगी भर अनिर्णय की स्थिति में रहता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति उस में होती है जो अपनी सोच से ज्ञान और जानकारी का उपयोग सही और गलत को सम  झने में कर सकता है.

मनुष्य को डरपोक बनाता है: अकसर बाबा, तांत्रिक और ज्योतिषी लोगों को सम  झाते हैं कि जीवन में कुछ भी हो रहा है वह सब ग्रहनक्षत्रों या अदृश्य शक्तियों का खेल है. उदाहरण भी दिया जाता है कि खुद राम तक ग्रहनक्षत्रों के फेर से बच नहीं पाए. राम को वनवास हुआ तो ग्रहों के कारण ही. दरअसल, ज्योतिष ग्रहनक्षत्रों के जरीए लोगों को डराने वाला ज्ञान है जिस की आज के तर्कशील समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसी तरह टोनेटोटके और धार्मिक युक्तियां आप को दिग्भ्रमित करने और डरा कर रखने का एक जरीया हैं.

सदियों पहले अंधकार काल में व्यक्ति मौसम और प्रकृति से डरता था. बस इसी डर ने एक तरफ ज्योतिष को जन्म दिया तो दूसरी तरफ धर्म को. जिन लोगों ने बिजली के कड़कने या गिरने को बिजली देव माना वे धर्म को गढ़

रहे थे और जिन्होंने बिजली को बिजली ही माना वे ज्योतिष के एक भाग खगोल विज्ञान को गढ़ रहे थे.

आज इसे व्यापार का रूप दे कर धन कमाने का जरीया बना लिया गया है. धार्मिक और ज्योतिषीय विश्वास के नाम पर किए जाने वाले इस व्यापार से सब परिचित हैं. टीवी चैनलों में बहुत से ज्योतिषशास्त्री तरहतरह की बातें कर के समाज में भय और भ्रम उत्पन्न करते हैं. स्थानीय जनता अपने क्षेत्र में मौजूद बाबा या ओ  झा तांत्रिक आदि के प्रभाव में रहती है. दीवारों तक पर इन बाबाओं के इश्तहार लिखे होते हैं. मध्यवर्गीय परिवारों को पंडित और मौलवी अपने नियमों और संस्कारों में बांधे रखते हैं.

बड़ेबुजुर्ग अंधविश्वास मानने के लिए दबाव बनाते हैं. हर समाज अपनी अच्छाइयों के साथ बुराइयां, संस्कारों के साथ कुरीतियां और तर्क के साथ अंधविश्वास अपनी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है.

अंधविश्वास की कोई तर्कसंगत व्याख्या नहीं हो सकती और ये परिवार और समाज में बिना किसी ठोस आधार के भी सर्वमान्य बने रहते हैं. आज के तकनीकी युग में भी ये लोगों के दिमाग में जगह बनाए हुए हैं. शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के परिवारों में अंधविश्वास के प्रति मान्यताएं पाई जाती हैं.

ढोंगी बाबाओं की दुकानें

इन मान्यताओं को बिना सवाल किए पालन करने की उम्मीद बच्चों से की जाती है और अगर वे सवाल करते हैं तो दबाव बना कर समाज और परिवार उन्हें इन मान्यताओं और विश्वासों को मानने की जबरदस्ती करते हैं. इन अंधविश्वासों और भय के साए में ढोंगी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

आज भी हमारे समाज में अंधविश्वास को अनेक लोग मानते हैं. बिल्ली द्वारा रास्ता काटने पर रुक जाना, छींकने पर काम का न बनना, उल्लू या कौए का घर की छत पर बैठने को अशुभ मानना, बाईं आंख फड़कने पर अशुभ सम  झना, नदी में सिक्का फेंकना ऐसी अनेक धारणाएं आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. इस के शिकार अनपढ़ों के साथसाथ पढ़ेलिखे लोग भी हो जाते हैं.

32 साल की शिप्रा बताती है कि उस की एक सहेली निभा दिल्ली में रहती थी. उस ने कई वर्षों तक आईएएस की तैयारी की. जब कई दफा कोशिश करने के बावजूद सफलता नहीं मिली तो उस की मां ने किसी वास्तु के जानकार से सलाह ली. उस जानकार ने बताया कि आप की बेटी के स्टडीरूम की खिड़की सही दिशा में नहीं खुलती है इसलिए या तो खिड़की की जगह बदलो या उसे खोलना ही छोड़ दो.

निभा ने दूसरा उपाय अपनाया और खिड़की खोलनी छोड़ दी. फिर भी सफलता नहीं मिली तो किसी बाबा ने सलाह दी कि घर के सामने नीबू का पेड़ नहीं होना चाहिए. यह कांटेदार वृक्ष है सो इसे निकलवा देना चाहिए. निभा की मां ने वह पेड़ कटवा दिया. इस के बावजूद उसे सफलता नहीं मिली तो उस की मां उसे बाबा के पास ले गई. बाबा ने उस से कई तरह के व्रत और अनुष्ठान कराए, जिस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही वह बीमार पड़ गई.

इस तरह के हजारों उदाहरण हम रोजमर्रा की जिंदगी में देखते हैं. आश्चर्य यह है कि इस प्रकार के अंधविश्वासों को न केवल अनपढ़ व ग्रामीण लोग मानते हैं बल्कि पढ़ेलिखे शिक्षित युवा व शहरी लोग भी इन की चपेट में आ जाते हैं.

सुकून और पैसे की बरबादी

कुछ साल पहले दिल्ली में एक ही परिवार के 11 लोगों ने इसी अंधविश्वास के चलते बाबाओं के बहकावे में मोक्ष के लिए सामूहिक आत्महत्या कर ली थी. यह अकेला मामला नहीं था. ऐसे बहुत से उदाहरण आए दिन दिखते रहते हैं जब लोगों ने अंधविश्वास के बहकावे में आ कर अपने परिवार बरबाद कर लिए या प्रियजनों को खो दिया. अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ कर बच्चों की बलि तक दे दी जाती है. आज भी लोग कष्ट पड़ने पर विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वासों और बाबाओं पर विश्वास करते हैं और उन के जाल में फंस कर अपना बचाखुचा सुकून और पैसा भी गंवा देते हैं.

देश में कितने सारे ठग बाबा आएदिन पकड़े जाते हैं, कितनों के सच उजागर होते हैं इस के बावजूद बाबाओं और उन के भक्तों की संख्या में कमी न आना इस बात का प्रतीक है कि लोगों की मानसिकता के स्तर में बहुत फर्क नहीं पड़ता है. दरअसल, इन ढोंगियों को मीडिया का सहयोग हासिल है. अखबारों और चैनलों में तांत्रिकों, बाबाओं के विज्ञापन आते हैं. क्लेश दूर करने के ताबीज व लौकेट से ले कर घरेलू कलह दूर करने, ससुराल में सम्मान प्राप्ति बेटा पैदा करने, मनचाहा प्यार पाने और नौकरी दिलाने जैसे   झूठे दावे कर ये जालसाज लोगों को अपने जाल में फांस रहे हैं. दुनिया में किसी व्यक्ति के पास कोई भी समस्या हो उन के पास हर परेशानी का इलाज तैयार रखा होता है.

लोगों का विश्वास जीतने के लिए ये लोगों से पहली बार में ज्यादा रुपयों की मांग नहीं करते. पहले उन्हें तकलीफों से मुक्ति पाने का ख्वाब दिखाते हैं और जब इंसान अंधविश्वास में धीरेधीरे फंसने लगता है तब बहानेबहाने से बड़ी रकम ऐंठना शुरू की जाती है. तभी तो अंधविश्वास का यह कारोबार बिना कोई लागत लगाए दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है. धोखे और   झूठ की नींव पर रखी गई अंधविश्वास की दुकानों में आम जनता के मन में छिपे भय और खौफ का फायदा उठा कर खूब मुनाफा कमाया जा रहा है.

क्या कहता है कानून

चमत्कार से इलाज करना कानूनन अपराध है. भारतीय कानून में ताबीज, ग्रहनक्षत्र, तंत्रमंत्र,   झाड़फूंक, चमत्कार, दैवी औषधी आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का   झूठा दावा करना जुर्म है. तंत्रमंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ज्योतिषी, ओ  झा, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई जा सकती है. विडंबना यह है कि आज भी अनेक लोगों को कानून के बारे में सही जानकारी नहीं है. कुछ जरूरी कानूनों की जानकारी पेश है:

औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940: औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण और बिक्री को नियंत्रित करता है. इस के अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसैंस के बिना औषधियों का स्टौक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता. ग्राहक को बेची गई प्रत्येक दवा का कैश मेमो देना अनिवार्य कानून है. बिना लाइसैंस के औषधि के निर्माण और बिक्री को जुर्म माना जाएगा.

औषधी एवं चमत्कारी (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954: औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के तहत तंत्रमंत्र, गंडे, ताबीज आदि तरीकों के उपयोग, चमत्कारिक रूप से

रोगों के उपचार या निदान आदि का दावा करने वाले विज्ञापन निषेधित हैं. इस के अनुसार ऐसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रमित करने वाले विज्ञापन दंडनीय अपराध हैं जिन के प्रकाशन के लिए विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त समाचारपत्र या पत्रिका आदि का प्रकाशक व मुद्रक भी दोषी माना जाता है.

इस अधिनियम के अनुसार पहली बार ऐसा अपराध किए जाने पर 6 माह के कारावास अथवा जुरमाने या दोनों प्रकार से दंडित किए जाने का प्रावधान है जबकि इस की पुनरावृत्ति करने पर 1 वर्ष के कारावास अथवा जुरमाना या फिर दोनों से दंडित किए जाने का प्रावधान है.

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिए कोई भी सामान अथवा सेवाएं खरीदता है वह उपभोक्ता यानी क्रेता है. जब आप किसी ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा से कोई गंडा, ताबीज, ग्रहनक्षत्र खरीदते हैं तो इस से यदि आप को कोई लाभ नहीं मिलता है तो आप एक उपभोक्ता के रूप में विक्रेता ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दायर कर सकता है. इस के अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुए जीवन तथा सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो भी आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

भारतीय दंड संहिता की धारा 420: भारतीय दंड संहिता की धारा 420 में किसी भी व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है. यह एक

दंडनीय अपराध है. इस के तहत 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है. धर्म, आस्था, ईश्वर के नाम पर अकसर कुछ पाखंडी अंधविश्वास के दलदल में डूबे लोगों को कपट से लूटते हैं.

नैतिकता पर भारी पंडेपुजारी

पहले औरतों को इस तरह विवश कर दो कि वे समाज के तथाकथित नैतिकता के मानदंडों के खिलाफ जाने को मजबूर हो जाएं और फिर उन पीडि़ताओं को ही अपराधी मान लो कि वे तो गंदी मछलियां हैं, जो शुद्ध पानी को खराब कर रही हैं. चेन्नई में इंडोनेशियाई लड़की को 2 साल पहले गिरफ्तार कर लिया गया कि वह एक स्पा में काम कर रही है और इम्मोरल ट्रैफिकिंग ऐक्ट में बंद कर दिया. 26 दिनों की कैद के बाद इंडोनेशिया सरकार के दखल पर उसे रिहा कर दिया गया, क्योंकि वह वैलिड डौक्यूमैंटों से काम कर रही थी.

वह कमजोर भारतीय पाखंडों की मारी नारी नहीं थी. अत: उस ने पुलिस इंस्पैक्टर के. नटराजन को कोर्ट में घसीट लिया और चेन्नई उच्च न्यायालय ने इंस्पैक्टर पर क्व25 लाख का जुरमाना भी ठोंक दिया, जो उस की सैलरी से काटा जाना चाहिए.

इंस्पैक्टर एक तो पुरुष और ऊपर से खाकी वरदी वाला सरकार का प्रतिनिधि, वह भला क्यों जुरमाना भरेगा. अत: उस ने अपील की और स्टे ले लिया.

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अब यह इंडोनेशियाई लड़की सुप्रीम कोर्ट में है कि हाई कोर्ट की डबल बैंच का स्टे गलत है. सुप्रीम कोर्ट तक आने में उस ने कितना पैसा खर्च कर दिया होगा, यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. विशुद्ध पाखंडों की मारी भारतीय नारी तो इस अत्याचार को पिछले जन्मों का पाप समझ लेती पर यह बहादुर लड़की, जो इंडोनेशिया से भारत कुछ कमाने आई है, अभी हार मानने को तैयार नहीं है.

यहां के धर्म के दुकानदारों ने जनमानस के मन में यह बैठा रखा है कि चीनी जैसी दिखने वाली सभी लड़कियों का कैरेक्टर ढीला होता है. मणिपुर, मिजोरम, नेपाल, अरुणाचल प्रदेश आदि की भारतीय लड़कियों को भी छोड़ा नहीं जाता और उन्हें दलितों की तरह बिकाऊ मान कर चलना आम बात है. ये लड़कियां वास्तव में अपने अधिकार आम भीरु, डरपोक औरत, चाहे वह धन्ना सेठ की बेटी या बीवी ही क्यों न हो, से ज्यादा अपने अधिकारों को जानती हैं.

इंडोनेशिया जैसे मुसलिम देश में पाकिस्तानी और पश्चिमी एशिया जैसा इसलाम नहीं है. वहां काफी छूट है पर धर्म के दुकानदार औरतों को बंद कर के आदमियों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं.

औरतों पर इस तरह का लूज कैरेक्टर का आरोप लगा कर असल में मर्दों को छूट दी जाती है कि वे उन से जब चाहें सैक्स कर लें, पत्नी बना कर खाना बनवा लें, बच्चे पैदा करने की मशीन बना लें, घर की लीपापोती की चौकीदारी करवा लें. बदले में धर्म आदमी की आय का मोटा हिस्सा लेता है और उन्हें धर्म के नाम पर मरनेमारने को तैयार करता है. शासक धर्म को समर्थन देते हैं, क्योंकि तभी उन्हें वे सैनिक मिलते हैं, जो बिना कारण किसी को भी शासक के कहने पर दुश्मन मान कर उस की हत्या करने को तैयार हो जाते हैं और इस चक्कर में खुद भी चाहे मर जाते हैं.

नैतिकता का जितना ढोल पीटा जाता है वह धर्मों के दुकानदारों द्वारा पीटा जाता है, जबकि वाराणसी, उज्जैन जैसी धर्म की बड़ी मंडियां औरतों के बाजारों की मंडियां भी हैं. धर्म को औरतों की रक्षा और नैतिकता की चिंता कभी होती तो न चुड़ैलें, डायनें होतीं, न विधवाओं को सिर मुंडवा कर व सफेद कपड़ों में रहना होता, न सतीप्रथा होती और न औरतें संपत्तिविहीन होतीं. नैतिकता का हनन करने का दोषी अगर कोई है तो वह औरत नहीं जो 4 पैसों के लिए कपड़े उतारती है, वह मर्द है जो 4 पैसे देता है कि औरत कपड़े उतारे.

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इम्मोरल ट्रैफिकिंग ऐक्ट में वैसे यह बात कुछ हद तक मापी गई पर जमीनी हकीकत यही है कि औरतों के अपहरण, रेप, वेश्यावृत्ति, अश्लील फिल्मों सब के लिए दोषी पुलिस औरतों को भी मानती है.

सुप्रीम कोर्ट ने यदि कोई अच्छा निर्णय दे भी दिया तो उसे कभी लागू नहीं किया जाएगा. लागू करने की ताकत तो शासकों की पोशाक पहने धर्म के दुकानदारों और उन के रक्षकों के हाथ में ही है. 33 जजों का सुप्रीम कोर्ट चाहे जो कहता रहे 3 करोड़ पंडेपुजारी उन पर भारी पड़ेंगे. वे भी औरतों से खानापीना और शारीरिक सुख पाते हैं न, बिना नैतिकता खोए, बिना कोई कीमत चुकाए.

अंधविश्वास और बौलीवुड

अंधविश्वास हमारे समाज का एक कड़वा सच है, बौलीवुड भी इस से अछूता नहीं है. अपनी फिल्म को सफल बनाने के लिए कोई हीरो, हीरोइन, राइटर या प्रोड्यूसर कोई कसर नहीं छोड़ता, अच्छी स्क्रिप्ट, अच्छी स्टार कास्ट, अच्छी प्रमोशनल स्ट्रेटजी अपनी जगह, अपने अंधविश्वास अपनी जगह, कभी नाम से एक अक्षर हटा लिया, कभी एक ऐक्स्ट्रा अक्षर जोड़ लिया. आइए, नजर डालते हैं ऐसे कुछ फिल्म मेकर्स पर, जिन्होंने अपनी फिल्मों की सफलता के लिए कुछ अक्षरों का साथ कभी नहीं छोड़ा:

ऐक्टरडाइरैक्टर साजिद खान को विश्वास है कि एच अक्षर उन के लिए लकी है. उन्होंने पहली फिल्म ‘हे बेबी’ नाम से डाइरैक्टर की थी. फिल्म दर्शकों को पसंद आई. बस, फिर क्या था, उन्होंने सोच लिया कि अब वे अपनी फिल्म का टाइटल एच से ही रखेंगे और फिर ‘हाउसफुल,’ ‘हाउसफुल टू,’ ‘हमशकल्स’ नाम होने ही थे.

बालाजी टैलीफिल्म्स और मोशन पिक्चर्स की कोफाउंडर एकता कपूर ऐस्ट्रोलौजी और न्यूमैरोलौजी में बहुत विश्वास रखती हैं. अपने ज्योतिषी की सलाह पर उन्होंने अपने टीवी सीरियल्स के नाम ‘के’ से रखे, न सिर्फ ‘के’ से रखे, बल्कि बौक्स औफिस पर सफलता की गारंटी के लिए कई अक्षर यहां से काटे गए, वहां जोड़े गए, स्पैलिंग्स में खूब चेंज किया गया. फिल्मों के टाइटल्स भी ‘के’ से रखे गए, ‘क्योंकि मैं झठ नहीं बोलता,’ ‘कुछ तो है,’ ‘क्या कूल हैं हम’ पर कुछ सालों बाद उन्होंने ‘के’ से टाइटल रखना छोड़ दिया, वही टाइटल रखे जो फिल्म के लिए सही थे.

प्रोड्यूसरडाइरैक्टर करण जौहर जिन्हें उन के पिता यश जौहर ने ‘कुछकुछ होता है’ के डाइरैक्टर के रूप में लौंच किया था, को भी शुरूशुरू में विश्वास था कि ‘के’ अक्षर उन के लिए लकी है पर बाद में उन्होंने यह अक्षर छोड़ दिया. ‘के’ अक्षर के बिना टाइटल वाली उन की फिल्मों ने बहुत अच्छा बिजनैस किया था.

रमेश सिप्पी को भी अपनी फिल्मों के टाइटल्स को ले कर बड़ा अंधविश्वास था. उन्होंने सब से पहले 1971 में ‘अंदाज’ फिल्म डाइरैक्ट की थी पर ‘सीता और गीता’ ने उन्हें मशहूर कर दिया था. फिर तो आने वाली मूवीज के टाइटल ‘एस’ से होने ही थे और ‘शोले,’ ‘शक्ति,’ ‘सागर’. बाद में उन्होंने दूसरे अक्षरों से भी टाइटल्स रखने शुरू कर दिए, क्योंकि अब ‘एस’ उतना लकी नहीं रहा था.

प्रोड्यूसरडाइरैक्टर मोहन कुमार, जिन्होंने 1964 में अपना बैनर एमके स्थापित किया था, को अपने भाई जे ओम प्रकाश की तरह ‘ए’

अक्षर से मोह था. उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘आस की पंछी’ डाइरैक्ट की थी. उस के बाद ‘मोम की गुडि़या’ को छोड़ कर सभी फिल्में

‘ए’ से ही बनाईं. उन की मशहूर फिल्में हैं- ‘अनपढ़,’ ‘अमन,’ ‘अमीर गरीब,’ ‘अवतार,’ ‘अम्बा’ आदि.

प्रोड्यूसरडाइरैक्टर शक्ति सामंत ने लगभग 40 से ज्यादा हिंदी और बंगाली मूवीज का डाइरैक्शन किया है. ‘एन ईवनिंग इन पेरिस’ सुपरहिट होते ही इन्होंने ‘ए’ से ही काफी फिल्में प्रोड्यूस और डाइरैक्ट कीं जैसे ‘आराधना,’ ‘अमर प्रेम,’ ‘अनुराग,’ ‘अमानुष,’ ‘अनुरोध’ आदि.

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असफलता से डर

आम इंसानों से अलग समझ जाता है फिल्म स्टार्स को पर एक क्षेत्र है, जिस में ये एक आम इंसान की तरह ही व्यवहार करते हैं. वह यह कि अपनी असफलता से डरते हैं. अपनी फिल्मों को सफल बनाने के लिए अंधविश्वासों के फेर में पड़ ही जाते हैं. कोई अपने नाम की स्पैलिंग बदलता रहता है, कोई धागों, नगों में उलझ रहता है.

आइए, जानते हैं कुछ ऐसी सैलिब्रिटीज के बारे में, जिन्हें अपने अंधविश्वास पर खूब विश्वास है:

आमिर खान: परफैक्शनिस्ट आमिर खान का विश्वास दूसरों से थोड़ा अलग है. आमिर अपनी मूवीज का दिसंबर और क्रिसमस पर रिलीज होना लकी मानते हैं. वे अपने फैंस को क्रिसमस गिफ्ट देना चाहते हैं. आमिर 2007 में ‘तारे जमीन पर’ की सफलता के साथ इस परंपरा को निभाते आए हैं. ‘गजनी,’ ‘थ्री इडियट्स,’ ‘धूम थ्री’, ‘पी के’ फिल्में इस की उदाहरण हैं.

दीपिका पादुकोण: दीपिका पादुकोण अपनी फिल्म के रिलीज होने से पहले सिद्धिविनायक मंदिर जरूर जाती हैं. ‘ये जवानी है दीवानी,’ ‘चेन्नई एक्सप्रेस,’ ‘गोलियों की रासलीला,’ ‘रामलीला’ से वे इस परंपरा को निभाती रही हैं.

शाहरुख खान: बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान को नंबर्स की पावर में बहुत विश्वास है. उन की हर कार के स्पैशल डिजिट्स होते हैं-555. उन की कारों की हर प्लेट पर यह नंबर होना जरूरी है, अगर ये नंबर नहीं हो पाते हैं, तो वे कार नहीं लेते, ऐसा कहा जाता है.

कैटरीना कैफ: कैटरीना कैफ अपनी फिल्मों की सफलता का श्रेय अजमेर शरीफ को देती हैं जहां वे अपनी हर मूवी के रिलीज होने से पहले जरूर जाती हैं. एक बार वहां मिनी स्कर्ट पहनने के कारण विवादों में भी फंसी थीं, पर इस बात ने उन्हें आगे वहां जाने से नहीं रोका और वे ‘धूम थ्री,’ ‘जब तक है जान,’ ‘एक था टाइगर’ और ‘न्यूयौर्क’ के समय से जा रही हैं.

जूही चावला: कोलकाता नाइट राइडर्स की कोओनर जूही चावला मैच से पहले अपना कोई इंटरव्यू नहीं देतीं, एक बार इन्होंने मैच से पहले इंटरव्यू दे दिया था तो उन की टीम हार गई थी.

माधुरी दीक्षित, महिमा चौधरी, मीनाक्षी शेषाद्रि और मनीषा कोइराला अपने नाम के शुरुआत अक्षर ‘एम’ के अलावा भी इन सब में एक बात कौमन है कि इन सब को सुभाष घई ने डायरैक्ट दिया है. कहा जाता है कि सुभाष घई उन ऐक्ट्रैसेस को कास्ट करना पसंद करते हैं, जिन के नाम उन के लकी अक्षर ‘एम’ से शुरू होते हैं. महिमा को यह नाम सुभाष घई ने ही दिया था, उन का असली नाम ऋतु चौधरी था.

संजय दत्त: अगर आप कोई कार 4545 नंबर की देखें तो कार के अंदर एक बार झांक लें. इस कार में संजय दत्त हो सकते हैं. नंबर 9 से इन्हें खास लगाव है, इसलिए कार के नंबर में पांच और चार को जोड़ कर नौ सोचा गया है.

अमिताभ बच्चन: अमिताभ बच्चन कौरपोरेशन लिमिटेड ने अमिताभ को दिवालिया कर दिया था, एक सेफायर रिंग पहनी गई और कौन बनेगा करोड़पति शुरू हो गया. शो ने कइयों को करोड़पति बना दिया, जिन में सब से बड़े करोड़पति अमिताभ ही रहे.

रणवीर कपूर: रणवीर कपूर अपनी मां की बर्थ डेट नंबर 8 को लकी समझते हैं और कोशिश करते हैं कि उन की कारों के नंबर 8 ही हों पर लकी चार्म हमेशा काम नहीं करता, ‘बेशर्म’ मूवी याद है न आप को?

शिल्पा शेट्टी: रिपोर्ट्स कहती हैं  कि शिल्पा शेट्टी अपनी कलाई पर तब  2 घडि़यां पहनती हैं जब उन की टीम राजस्थान रौयल्स खेलती है.

अक्षय कुमार: अक्षय कुमार अपनी फिल्म के रिलीज होने से पहले विदेश चले जाते हैं,  उन्हें डर रहता है कि उन के इंडिया में रहने से उन की फिल्म के बौक्स औफिस कलैक्शन पर असर पड़ेगा.

एकता कपूर: एकता कपूर की ही तरह राकेश रोशन को भी अक्षर ‘के’ से बहुत लगाव ., ‘कोयला’ से ले कर ‘कृश थ्री’ तक उन की फिल्मों के नाम ‘के’ से ही शुरू हुए हैं.

बड़े परदे पर समयसमय पर ऐसी खूब फिल्में आई हैं, जिन्होंने समाज में अंधविश्वास फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. समाज में दिनबदिन बढ़ते अंधविश्वास को खत्म करने की कोशिश में डाक्टर नरेंद्र दाभोलकर को तो अपनी जान भी गंवानी पड़ गई. हिंदी सिनेमा दिनबदिन जहां रिएलिस्टिक भी हो रहा है वहीं मनोरंजन के नाम पर ऐसी सैकड़ों फिल्में भी बनीं, जिन्होंने अंधविश्वास और झठी मान्यताओं को फैलाने में अपना योगदान दिया, तो आज डालते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों पर एक नजर:

करण अर्जुन: ‘‘मेरे करण अर्जुन आएंगे…’’ राखी के इस डायलौग के आज तक इंटरनैट पर कई मीम्स बनते हैं. इस ऐक्शन थ्रिलर में शाहरुख और सलमान के पुनर्जन्म पर कई अंधविश्वास दिखाई दिए जो काफी हिट रहे. बौलीवुड में पुनर्जन्म पर आधारित कहानियां हमेशा से लोकप्रिय रही हैं, तर्क से वैसे भी हमें कोई लेनादेना नहीं होता, फिल्मों में तो बिलकुल भी नहीं.

व्हाट्स योर राशि: ज्योतिष शास्त्र हमारे समाज में अहम भूमिका निभाता है, यह फिल्म मधु रे के नौवेल किंबौल रेवेंसवुड पर आधारित थी. विदेश से आया हीरो राशियों के हिसाब से यहां लड़की देखता है, जब फिल्म में यह दिखा दिया गया कि एक विदेशी लड़का भी इन राशि, ज्योतिष के चक्कर में पड़ सकता है, तो बेचारे यहां के लोकल लड़कों को क्या कहा जाए जो ऐसी बातों को सुनते हुए ही बड़े होते हैं. अंत अच्छा था.

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राज 3: इस हौरर थ्रिलर में विपाशा बासु एक सफल ऐक्ट्रैस की भूमिका निभाती है, तभी उस की प्रतिद्वंद्वी ईशा गुप्ता की ऐंट्री होती है. अपने कैरियर को गिरता देख वह ईर्ष्या से ब्लैक मैजिक की शरण लेती है. तर्कहीन स्टोरी के बाद भी फिल्म पसंद की गई थी. कारण वही है जिसे ध्यान में रख कर ऐसी फिल्में बनाई जाती हैं. कुछ दर्शकगण ऐसी फिल्मों को बहुत पसंद करते हैं.

जब तक है जान: काफी मैलोड्रामैटिक ट्विस्ट्स वाली मूवी थी, कैटरीना कैफ फिल्म में इतनी अंधविश्वासी हो जाती है कि भगवान के साथ ही सौदेबाजी करने लगती है. फिल्म मनोरंजक कही गई, भगवान के साथ की गई  बातों को सहज रूप में ही लिया गया. हर इंसान यही तो करता है. इस में किसी को कोई आपत्ति थी ही नहीं, बड़ी स्टारकास्ट के साथ फिल्म हिट ही रही.

एक थी डायन: कनान अय्यर के डाइरैक्शन में बनी फिल्म में कई सुपर नैचुरल इवेंट्स दिखाए गए, यह फिल्म एक भूतनी के इर्दगिर्द घूमती है. जैसे ही फिल्म रिलीज हुई, इस पर अंधविश्वास फैलाने के आरोप लगे. इस के खिलाफ मोरचे, विरोध हुए, पर मेकर्स ने ऐसा कोई कनैक्शन होना स्वीकार नहीं किया.

हमारी फिल्मों में धर्म से जुड़ी राजनीति को खूब आधार बनाया जाता है, संस्कारी फिल्में इस तरह बनाई जाती हैं जिन में दिखाया जाता है कि सब की बात मानने वाली लड़की अच्छी है, सिगरेट पीने और ड्रिंक करने वाली लड़की बुरी. अपनी इच्छाओं को घर वालों के कहने पर कुरबान करने वाली लड़की महान है, उस का फर्ज है कि वह अपनी इच्छाओं का गला घर वालों के कहने पर घोंट दे.

‘हमराज’ फिल्म में माला सिन्हा, अशोक कुमार और सुनील दत्त थे, माला सिन्हा को संस्कृति और संस्कार के नाम पर अपने प्रेमी सुनील द॔त्त की जगह अपनी मृत बहन के प्रौढ़ पति को अपना बनाना पड़ता है, अपने प्यार की कुरबानी देनी पड़ती है.

बड़जात्या की हर फिल्म में खूब मंदिर, पूजापाठ वाले सीन होते हैं, घरों में विशाल मंदिर बने होते हैं, पूजापाठ वाले गाने होते हैं, सिर्फ ब्राह्मण लेखक ही लगातार फिल्मों के माध्यम से धर्म का प्रचार नहीं कर रहे, मुसलिम लेखक भी देखादेखी धार्मिक भावनाओं का खूब सहारा लेते आए हैं.

सलीम जावेद की ‘कुली’ में 786 का  खूब प्रचार किया गया, और भी कई फिल्मों में इस जोड़ी ने धर्म का प्रचार करने का मौका  नहीं छोड़ा था, हमारे यहां हर धर्म की एक  छवि बना ली गई है, हिंदू लड़की साड़ी पहने होगी, मुसलिम लड़की ने बुरका या स्कार्फ  पहना होगा, क्रिश्चियन लड़की या तो सैक्रेटरी होगी या उस ने एक फ्रौक पहनी होगी, पात्रों का चित्रण धर्म से जोड़ कर दिया जाता है. धर्म और संस्कृति की सीख देती फिल्मों को देख कर पुरातनपंथी सोच वाले, लकीर के फकीर दर्शक खुश होते हैं.

भारत में धर्म एक बहुत संवेदनशील मुद्दा है. इस पर बहुत बार बहुत कुछ कहा जाता है. धर्म और आस्था का संबंध उस डिवाइन पावर से पर्सनल समझ जाता है, आधुनिक समय में इस पर काफी खुल कर बोलने की कोशिश भी होती रही है, समय बहुत बदला है पर आज भी सदियों पुरानी रस्में वैसी की वैसी ही हैं. कुछ धार्मिक रस्मों के खिलाफ उठी आवाज को धर्म, संस्कृति का अपमान समझ लिया जाता है, बौलीवुड ने ऐसे मुद्दों पर भी फिल्म्स बनाई हैं, जिन्हें धार्मिक, राष्ट्रवादी कहे जाने वाले लोगों ने बैन करवाने के लिए उन की रिलीज से पहले ही कई विरोध किए. ऐसी ही कुछ फिल्में हैं-

पी के: इस हिट फिल्म में आमिर खान  ने पी के की भूमिका निभाई थी जो एक एलियन है और एक रिसर्च मिशन पर हमारे प्लैनेट पर आता है. भारत में आ कर वह कई तरह की धार्मिक आस्थाओं और समाज में फैले अंधविश्वासों को देख कर बहुत हैरान होता है. फिल्म अपने समय की बड़ी हिट रही पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की इस फिल्म को बहुत आलोचना सहनी पड़ी, क्योंकि उन्हें लगा कि इस फिल्म ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.

ओएमजी: ओह माई गौड- शायद ही कभी एक नास्तिक चरित्र को मुख्य चरित्र के रूप में किसी फिल्म में इस तरह बनाया गया हो. कांजी लाल मेहता (परेश रावल) के और उस के भगवान के विरुद्ध केस के चारों ओर घूमती है. फिल्म ‘गौडमैन’ और अंधविश्वास पर हमला करती है. धर्म के ठेकेदार राजनीतिज्ञों ने इस के लीड ऐक्टर्स के खिलाफ केस किए जो स्वाभाविक ही था. इस मूवी को यूएई में बैन भी कर दिया गया था.

माय नेम इज खान: करण जौहर ने माय नेम इज खान बना कर इसलामोफोबिया के खिलाफ बोलने का फैसला किया. 19/11 के बाद एक छोटा बच्चा इसलिए मार दिया जाता है, क्योंकि उस का लास्ट नेम खान है. रिजवान खान (शाहरुख खान) यूएसए के प्रैसिडैंट से मिलने के लिए निकल पड़ता है, यह बताने के लिए कि उस का नाम खान है और वह आतंकवादी नहीं है. फिल्म ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया पर शिव सेना ने इसे रिलीज होने से रोकने की कोशिश की.

मिस्टर ऐंड मिसेज अय्यर: फिल्म में कोंकणा सेन शर्मा एक हिंदू ब्राह्मण स्त्री हैं, मीनाक्षी एस अय्यर और राहुल बोस हैं, राजा चौधरी, एक मुसलिम युवक, उसे हिंदू नैशनलिस्ट भीड़ से बचाने के लिए मीनाक्षी पतिपत्नी होने की ऐक्टिंग करती है. जब उसे पता चलता है जिसे उस ने बचाया है और जिस के साथ पानी की बोलत शेयर कर ली है, वह एक मुसलिम है, उस का रिएक्शन देखने लायक होता है. यह दृश्य आज के समाज की एक सच्ची तसवीर पेश कर देता है कि हमारे दिल में दूसरे धर्मों के लिए किस तरह की भावनाएं रहती हैं.

वाटर: दीपा मेहता की इस फिल्म में हमारे समाज में बालविवाह और विधवाओं के साथ हुए व्यवहार की झलक देखने को मिली. आज भी देश के कई भागों में विधवा विवाह की अनुमति नहीं है और उन्हें अपना बाकी का जीवन अपने अतीत से पूरी तरह कट कर किसी आश्रम में बिताना पड़ता है. फिल्म के रिलीज होने से पहले ही निर्माताओं को बड़े विवाद झेलने पड़े, फिल्म सैट्स को नष्ट किया गया, सुसाइड प्रोटैस्ट की धमकियां दी गईं.

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आंखों देखी चीजों का असर इंसान पर ज्यादा पड़ता है. आज के इस मौडर्न एवं टैक्नोलौजी भरे युग में अंधविश्वास फैलाने वाली फिल्में लोगों को पीछे धकेल देती हैं. कुछ लोग इन अंधविश्वासों और अजीबोगरीब घटनाओं को सच भी मान लेते हैं, जो उन के जीवन पर गलत असर डालती हैं.

अंधविश्वास हमारे समाज के वे विश्वास हैं जो तर्क से परे होते हैं. किसी दिन कोई काम हो गया, वह दिन लकी हो गया, किसी चीज को पहनने से कोई काम हो गया, वह चीज शुभ हो गई. कहीं जाने से कोई काम हो गया, वह जगह शुभ हो गई, हम लोग दिमाग पर कम जोर डालते हैं, अपने विश्वासों पर अधिक. पर यह बात भी स्पष्ट है कि कोई सैलिब्रिटी हो या आम इंसान, असफलता का डर सब को सताता है और फिर इंसान मुड़ जाता है कई तरह के अंधविश्दवासों की तरफ.

अंधविश्वास की दलदल में फंसते लोग

फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने कहा कि फेसबुक पर हर रोज 200 करोड़ बार ‘जय श्री राम” लिखा जाता है. उस पर एक यूजर ने लिखा कि कृपया इसमें कुछ हजार और जोड़े “जय श्री राम जय श्री राम. लेकिन यह दावा गलत बताया जा रहा है, क्योंकि “जय श्री राम” लिखे जाने के संबद्ध में मार्क जकरबर्ग ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. यह दावा सच्च है या झूठ, यह तो हम नहीं जानते. लेकिन यह बात एकदम सच है कि सोशल मीडिया पर भगवान की फोटो डालकर कहा जाता है कि अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आप “जय श्री राम” जरूर लिखेंगे. भगवान गणेश के सच्चे भक्त जरूर शेयर करें. 24 घंटे के अंदर आपको शुभ समाचार सुनने को मिलेगा, वरना आपके साथ अशुभ होगा. फेसबुक पर ऐसे कई पोस्ट रोजाना देखने को मिल जाती है. कुछ लोग इसे इगनोर कर देते हैं. लेकिन कुछ लोग लाइक, कमेट्स और शेयर करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं. लेकिन जरा सोचिए, भगवान अगर हैं तो क्या आपके लाइक, कमेट्स और शेयर करने से खुश हो जाएगे, वरना आपकी किस्मत खराब कर देंगे या शुभ समाचार को अशुभ बना देंगे ? आज पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है. कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए पूरे विश्व के वैज्ञानिक वैक्सीन ढूँढने में लगे हैं. वहीं बिहार में कोरोना मायी की पुजा होने लगी. महिलाएं झुंड के झुंड बनाकर कोरोना मायी की पुजा करने जाने लगीं. आश्चर्य तो इस बात की है कि सिर्फ अनपढ़ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इस पुजा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगीं. पुजा के दौरान कोई सोशल डिस्टेन्स नहीं, कोई मास्क नहीं.

रिंकी नाम की एक महिला का कहना था कि कोरोना मायी की पुजा की जानकारी उसे सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप के वीडियो के माध्यम से मिली थी. उस महिला का कहना था कि वह कोरोना मायी की पुजा घर, बच्चे, परिवार और पूरे विश्व को कोरोना की कहर से बचाने के लिए कर रही है. कोरोना मायी जल्द ही इस बीमारी से हमलोगों को निजात दिलाएँगी. एक महिला का कहना था कि कोरोना माता की पुजा के बाद हवा आएगी और वायरस को भस्म कर देगी. लोग कोरोना को बीमारी के बजाय दैवीय प्रकोप मानने लगे थे. अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है, जिसका कोई उचित कारण नहीं होता, फिर भी लोगों का इस पर अटूट विश्वास बन जाता है. हम बचपन से ही जिन परम्पराओं, मान्यताओं में पले-बढ़े होते हैं, आगे जाकर भी हम अक्षरश: उसी का पालन करते हैं. यह अंधविश्वास हमारे मन-मस्तिष्क में इतना गहरा समा जाता है कि हम जीवन भर उससे बाहर नहीं निकल पाते हैं. अंधविश्वास अधिकतर कमजोर व्यक्तित्व, कमजोर मनोविज्ञान व कमजोर मानसिकता वाले लोगों में देखने को मिलता है. जीवन में असफल रहे लोग ही अंधविश्वास पर विश्वास रखने लगते हैं. उन्हें लगता है ऐसा करने से शायद वे जीवन में सफल हो जाएंगे.

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अंधविश्वास केवल अनपढ़ और मध्यम या निम्न वर्ग के लोगों में ही नहीं होता, बल्कि यह काफी शिक्षित, उच्च वर्ग के लोगों में भी देखने को मिलती है. आजकल ज्योतिष को विज्ञान भी कहा जाने लगा है. लेकिन अधिकतर ज्योतिष द्वारा बताई गयी बातें झूठ ही निकलती है. भूत-प्रेत में विश्वास रखना एक बहुत बड़ा अंधविश्वास ही है. आमतौर पर लोग भूत-प्रेत से मिलने या देखने की बात करते हैं. ये सिर्फ लोगों को भरमाते हैं. उसी तरह मासिक धर्म के दौरान महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित एंव पुजा करना, धूप-दीप जलाना मना होता है क्योंकि यह माना गया है कि उस समय महिला अपवित्र होती है. जबकि यह एक अंधविश्वास के सिवा और कुछ नहीं है. बहुत से लोग मंगल और शनिवार के दिन बाल-दाढ़ी नहीं बनवाते, हाथ का नाखून भी नहीं काटते, क्योंकि यह हनुमान जी का दिन होता है. वहीं महिलाएं गुरुवार के दिन बाल नहीं धोती, क्योंकि यह गुरुभगवान का दिन होता है. यह सिर्फ अंधविश्वास नहीं तो और क्या है. सिर्फ आम इंसान ही नहीं, बल्कि देश के नेता अभिनेता भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी अपनी कलाई पर उल्टी घड़ी पहनते हैं. इसे वह लकी मानते हैं.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पारंपरिक तौर पर राफेल की नींबू –नारियल से पुजा की थी. उस पर मलिल्कार्जुन ने इसे तमाशा और ड्रामा कहा था. एक मंत्री ने तो यहाँ तक बोल दिया कि देश की रक्षा के लिए राफेल खरीदा गया और राफेल की रक्षा के लिए नींबू. तो इससे तो अच्छा यही होता कि दुश्मनों के बॉर्डर पर नींबू रख दिया जाता, तो अपने आप दुशमनों के दांत खट्टे हो जाते. मोदी जी के कहने पर कोरोना वायरस को भागने के लिए लोगों ने जमकर ताली पीटा, शंख फूँकें, दिये जलाए. यहाँ तक की बीजेपी की एक महिला ने खुशी जाहीर करते हुए पिस्तौल फायरिंग भी कर डाली. यही नहीं, कई जगहों पर लोगों ने जुलूस निकाले और ‘’गो कोरोना गो’ और कोरोना गो बैक के नारे भी लगाए. एक जगह पर तो कोरोना का पुतला भी जलाया गया. लेकिन क्या यह सब करने से कोरोना भाग गया ? नहीं, बल्कि आज कोरोना की स्थिति और भी भयावान हो रही है. ये सब देखकर प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने ये निष्कर्ष निकाला कि हिन्दुत्व की शक्तियों ने लोगों की वैज्ञानिक चिंतन का नाश कर दिया. जिस समय भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर का मुक़ाबला कर रही थी, लोग मर रहे थे.

बड़ी संख्या में लोग शहरों से पलायन हो रहे थे, उस समय भारत के लोगों द्वारा कोरोना को उत्सव में बदल देना एक भद्दा तमाशा ही था. इसी बात पर स्तंभकार सारिका घोष ने ट्वीट कर व्याख्या दी थी कि ‘भारत अंधविश्वास और मूर्खता के जिस गर्त में जा रहा है, वह इतना अंधकारमय और पतनशील है कि ये कहना मुश्किल है कि वहाँ से निकल पाना कभी संभव हो पाएगा या नहीं.‘ आज भी बहुत से घरों में सूर्य डूबने पर झाड़ू नहीं लगाए जाते, क्योंकि एक मान्यता है कि ऐसा करने से घर से लक्ष्मी चली जाती है. एक अंधविश्वास है जो विश्वास के रूप में फल रहा है. पर लोगों को यह नहीं पता कि पहले के जमाने में लाइटिंग की समस्या होती थी. सफाई के समय कुछ छोटी-मोटी कीमती चीजें गिर कर धूल के साथ भूल से फेंका न जाए, इसलिए लोग रात के समय घर में झाड़ू नहीं लगाते थे. लेकिन लोगों में यह अंधविश्वास बैठ गया कि रात में झाड़ू लगाने से घर से लक्ष्मी चली जाती है. कई लोग बिल्ली का रास्ता काटने को अशुभ मानते है तो कोई छींकना शुभ नहीं मानते. कई लोग बुरी नजर से बचने के लिए अपने पैरों में काला धागा बांध कर रखते है. तो कई लोग बुरी नजर से बचने के लिए घोड़े के नाल की अंगूठी बनवाकर सीधे हाथ की बीच की उंगली में पहनते हैं. 13 तारीख को कई लोग अशुभ मानते हैं. देखा होगा आपने कई होटलों में 13 नंबर का कमरा या तेरहवाँ तल नहीं होता है. बाहर के बाद सीधे 14 नंबर होता है. हमारे समाज में ऐसा माना जाता है कि काली बिल्ली अगर रास्ता काट दे तो अशुभ होता है. क्योंकि काली बिल्ली में भूत का वाश होता है. जाते समय पीछे से अगर कोई टोक दे तो उसे अशुभ मानते हैं. खड़ी हुई सीढ़ी के नीचे से निकलने को भी लोग दुर्भाग्य मानते हैं. जबकि यह केवल एक अंधविश्वास है. टीवी सीरियलों में भी शीशे का टूटना, पुजा के समय दिया का बुझना अशुभ दिखाया जाता है. ऐसे अंधविश्वास हमारे समाज में काफी प्रचलित हैं.

बॉलीवुड सितारों में भी अंधविश्वास——–
बॉलीवुड सितारे भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. गुड लक के लिए कई टोने-टोटके आजमाते हैं, आइए जानते हैं.

1. शायरा बनो उतारती हैं दिलीप कुमार की नजरें——

अपने जमाने के दिलीप कुमार को कौन नहीं जानता है. उनके बार में यह बात कई बार सुनी है कि उन्हें बचपन में नजर बहुत जल्दी लग जाती थी. इसके लिए उनकी दादी उनकी नजरें उतारा करती थीं. फिर उनकी माँ उनकी नजरें उतारने लगीं. आज भी उन्हें जल्द नजर लग जाती है इसलिए उनकी नजर उतारने के लिए उनकी पत्नी शायरा बनो सदका करती हैं. वह गरीबों को अनाज, पकड़े और जरूरतों का सामान कुछ दे देती हैं ताकि दिलीप कुमार बुरी नजरों से बचें रहें.

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2. रणवीर सिंह——

रणवीर सिंह बुरी नजरों से बचने के लिए अपने पैरों में काले धागे बांधते हैं. दरअसल, कुछ समय पहले रणवीर सिंह बीमार रहने लगें थे और उन्हें अक्सर चोटें भी लगती रहती थी. ऐसा न हो, वह बुरी नजरों से बचें रहें, इसलिए वह अपने पैरों में काला धागा बांध कर रखते हैं.

3. शिल्पा शेट्ठी——–

शिल्पा शेट्टी मानती हैं कि वो अपनी आईपीएल टीम ‘राजस्थान रॉयल’ के मैच के दौरान जब अपनी कलाई पर दो घड़ियाँ पहनती हैं तो उसकी टीम जीत जाती है. अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी अंधविश्वास में विश्वास रखती हैं. वे अपनी उँगलियों में अंगूठियाँ भी पहनती हैं और मंदिर भी जाती हैं.

4. दीपिका पादुकोण——

दीपिका पादुकोण अपनी फिल्मों की सफलता के लिए सिद्धिविनायक मंदिर जाती हैं.

5. क्रिकेट मैच नहीं देखते अभिताभ बच्चन——-

अभिताभ बच्चन को क्रिकेट मैच देखना बहुत पसंद है. लेकिन वो कभी भी भारत का क्रिकेट मैच लाइव नहीं देखते. उनका मानना है कि अगर वो टीवी के सामने बैठ जाते हैं तो भारत के विकेट गिरने शुरू हो जाते हैं.

6. सलमान का लकी ब्रेसलेट——

बॉलीवुड के दबंग, यानि सलमान खान रियल ज़िंदगी में बहुत अंधविश्वासी हैं. अपने हाथ में हमेशा
वो फिरोजी रंग का ब्रेसलेट पहने रहते हैं, क्योंकि उसे वह अपना लकी चार्म मानते हैं. यह ब्रेसलेट सलमान खान को उनके पिता ने दी थी.

7. शाहरुख खान के सभी गाड़ियों का नंबर एक जैसा——-

शाहरुख खान का कहना है कि वह अंधविश्वास पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं. लेकिन वो अंक ज्योतिष या न्यूमरोलॉजी पर इतना ज्यादा भरोसा करते हैं कि उन्होंने अपनी सभी गाड़ियों का नंबर ‘555’
रखा है. इतना ही नहीं, कोलकाता नाइट राइडर्स की हार से परेशान होकर उन्होंने ज्योतिष के कहने पर अपनी टीम की जर्सी रंग भी बैंगनी करावा लिया था.

8. कैटरीना कैफ जाती हैं अजमेर शरीफ———

फिल्म ‘नमस्ते लंदन’ के प्रमोशन के दौरान कैटरीना अजेमर शरीफ गईं थी और उस फिल्म ने अच्छा बिजनेस किया था. तब से लेकर अब तक कैटरीना कैफ अपनी हर फिल्म रिलीज के पहले अजमेर शरीफ दरगाह जाकर दुआ मांगती हैं.

9.  एकता कपूर का हर काम से पहले ज्योतिष की राय——–

छोटे पर्दे की सीरियल क्वीन एकता कपूर अंधविश्वास पर सबसे ज्यादा विश्वास करती हैं. वह अपने हर काम के पहले ज्योतिष की राय जरूर लेती हैं. वह इतनी ज्यादा अंधविश्वासी हैं कि शूटिंग की तारीख से लेकर शूटिंग की जगह तक ज्योतिष से सलाह लेकर करती हैं. वह अपनी उँगलियों में ढेर सारे रत्न अंगूठियाँ, ताबीज और काला घागा पहनती हैं.

10. ‘क’ अक्षर से शुरू होती है करना जौहर की फिल्में

——— कारण जौहर की ज़्यादातर फिल्में ‘क’ अक्षर से शुरू होती हैं क्योंकि
उनका मानना है कि उनकी ‘क’ अक्षर से बनी फिल्में सफल होती है.

11. अमीर खान की फिल्में दिसंबर में रिलीज—–

मिस्टर परफेक्शनिस्ट यानि अमीर खान भी अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं. अमीर खान दिसंबर महीने को लकी मानते हैं इसलिए वह अपनी फिल्मों को दिसंबर में रिलीज करते हैं. वास्तव में अंधविश्वास केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में है. जहां भी मानव जाति फली-फुली है, वहाँ अपने आप अंधविश्वास पैदा होता चले गए.

एक प्रगतिशील समाज का ध्येय अंधविश्वास को खत्म कर वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करना होता है. आज विज्ञान का युग है. विज्ञान के तमाम गैजेट हमारे जीवन का भिन्न अंग बन चुके हैं. हम विज्ञान की खोजों तथा आविष्कारों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. लोग चाँद तक पहुँच चुके हैं, लेकिन फिर भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है. इनमें गरीब-अमीर, अशिक्षित और शिक्षित सभी तरह के लोग शामिल हैं. ये लोग झाड-फूँक, जादू-टोना, और टोनोटोटकों से लेकर तरह-तरह के भ्रमों और सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करते हैं. गाहे-बगाहे अंधविश्वास के इनसे भी भयानक रूप सामने आते हैं, जैसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए ‘समूहिक आत्महत्या तक कर लेते हैं लोग. ऐसा नहीं है कि समाज में जागरूकता नहीं है. परंतु अंधविश्वास का स्तर इतना अधिक है कि इस समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आज टीवी पर ही देख लीजिये, ‘इच्छाधारी नाग-नागिन, चमत्कार, असंभव घटनाओं पर आधारित कहानियाँ-किस्से और अस्तित्व दिखाकर तथा ज्योतिषियों की अवैज्ञानिक व्याख्याएँ प्रसारित करके अंधविश्वास परोसा जाता है. यह सब देखकर लोग आगे नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि और पीछे खिसक रहे हैं. ऐसे अंधविश्वास से भरी टीवी सीरियल आग में घी का काम कर रहे हैं. अंधविश्वास की जड़ें इतनी मजबूत है कि इसे एकदम से खत्म नहीं किया जा सकता है. लेकिन धीरे-धीरे इस जहरीली पेड़ को उखाड़ा जरूर जा सकता है. हमें समझना होगा कि हमारे हाथों की आड़ी-तिरछी रेखाएँ या अंगूठियों से भरी उँगलियाँ, गंडे-ताबीज, तंत्र-मंत्र हमारा भविष्य तय नहीं कर सकती. बल्कि हमें स्वयं अपने कर्म और मेहनत से अपना भविष्य संवारना होगा. भविष्यवाणियाँ, एक तरह से अंधेरे में चलाए जाने वाले तीर हैं. आज भी बहुत सी जगहों पर बीमारी ठीक करने या मनोकामना पूर्ति के लिए पशुओं की बलि दी जाति है.बच्चों की शादी सफल रहे, इसके लिए माता-पिता अपने बच्चों की कुंडली मिलान करवाते हैं, लेकिन इसके बावजूद तलाक के मामले बढ़ रहे हैं.

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समाज में आए दिन, किस्मत बदल देने, गड़ा हुआ धन दिलाने, पैसा, सोना-चाँदी दुगुन्ना कर देने वाले ढोंगी बाबा मिल जाते हैं. इसका कारण वैज्ञानिक सोच की कमी है. अंधविश्वास और धर्मान्धता इतनी है कि विगत कुछ वर्षों में गाय के नाम पर न जाने कितने मौत के घाट उतार दिये गए. बाबाओं को अपना भगवान मनाने वाले, उसी बाबाओं के हाथों महिलाएं शोषण का शिकार होती रहीं. लेकिन कई अंधे भक्त उसी आरोपित बाबा को सही साबित करने के लिए हल्ला-गुल्ला मचाते हैं, शहर के शहर जला देते हैं,गाडियाँ फूँक देते हैं. सच पूछिये तो वह उस बाबा को नहीं बचा रहे होते हैं, बल्कि अपने अंधविश्वास का विश्वास बनाएँ रखना चाहते हैं. आज हमें खुद यह बात समझनी होगी और अपने बच्चों को भी समझना होगा, ताकि वह अपने आने वाली पीढ़ी को यह बता सके कि हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं, इसलिए हमें अंधविश्वास का साथ नहीं, बल्कि विज्ञान के सच और तर्क के प्रकाश में जीना चाहिए. हमें सुनी सुनाई या आसआपस की घटनाओं को भेड़-बकरियों की तरह चुपचाप नहीं सुन और मान लिया चाहिए. बल्कि सोचना और तर्क करना चाहिए. तभी फर्क समझ में आयेगा.

अंधविश्वास के शिकार आप तो नहीं

लेखक-धीरज कुमार

यात्रियों से भरी बस झारखंड से बिहार जा रही थी. अचानक सुनसान सड़क के दूसरी तरफ से सियार पार कर गया.

ड्राइवर ने तेज ब्रेक लगाए. झटका खाए यात्रियों ने पूछा, ‘‘भाई, बस क्यों रोक दी गई?’’बस के खलासी ने जवाब दिया, ‘‘सड़क के दूसरी तरफ सियार पार कर रहा है, इसलिए बस रोक दी गई है.’’

सभी यात्री भुनभुनाने लगे. कुछ लोग ड्राइवर की होशियारी की चर्चा करने लगे. उस अंधेरी रात में जब तक दूसरी गाड़ी सड़क पार नहीं कर गई, तब तक वह बस खड़ी रही. लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि यह अंधविश्वास है. इस से कुछ होता नहीं है. सड़क है तो कोई भी जीवजंतु इधरउधर पार कर सकता है. यह सामान्य बात है. इस में बस रोकने जैसी कोई बात नहीं है, जबकि कई लोग मन ही मन अनहोनी होने से डरने लगे थे. रास्ते के इस पार से उस पार कुत्ता, बिल्ली, सियार जैसे जानवर आ जा सकते हैं. इसे अंधविश्वास से जोड़ा जाना उचित नहीं है. इस के लिए मन में किसी अनहोनी होने का डर आदि पालना बिलकुल गलत है.

बिहार के रोहतास जिले के डेहरी में बाल काटने वाले सैलून तो सातों दिन खुले रहते हैं. सोनू हेयर कट सैलून के मालिक से इस बारे में पूछे जाने पर वे बताते हैं,

‘‘ग्राहकों की भीड़ सप्ताह में सिर्फ 4 दिन ही होती है. 3 दिन तो हम लोग खाली बैठे रहते हैं. यहां के अधिकतर हिंदू लोग मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल नहीं कटवाते    हैं. इन 3 दिनों में इक्कादुक्का लोग बाल कटवाने आते हैं, जिन का ताअल्लुक दूसरे धर्म से रहता है.’’

बदली नहीं हमारी सोच

भले ही हम लोग 21वीं सदी के विज्ञान युग में जी रहे हैं. लेकिन आज भी हमारी सोच 18वीं सदी वाली ही है. यहीं के रहने वाले विनोद कुमार पेशे से कोयला व्यापारी हैं. उन का एक बेटा है. इसलिए सोमवार को बाल, दाढ़ी नहीं कटवाते हैं. पूछे जाने पर हंसते हुए कहते हैं, ‘‘ऐसी मान्यता है कि जिन के 1 बेटा होता है. उन के पिता सोमवार को दाढ़ीबाल नहीं कटवाते हैं. इस के पीछे कोई खास वजह नहीं है. गांव, घर में पहले के ढोंगी ब्राह्मणों ने यह फैला दिया है तो आज भी अंधविश्वास जारी है. दरअसल, लोगों के मन में सदियों से इस प्रकार की फालतू बातें बैठा दी गई हैं, इसीलिए आज भी चलन में हैं. पहले के सीधसादे लोग होते थे. इस तरह के पाखंडी ब्राह्मणों ने जो चाहा वह सुविधा अनुसार अपने फायदे के लिए समाज में फैला दिया.’’

आज भी गांव में भूत, प्रेत, ओझा, डायन के बारे में लोग खूब बातें करते हैं. आज भी लोगों को विश्वास है कि गांव में डायन जादूटोना करती है.

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औरंगाबाद के गांव के रहने वाले रणजीत का कहना है कि उन की पत्नी 2 सालों से बीमार है. उन की पत्नी की बीमारी की वजह कुछ और नहीं,

बल्कि डायन के जादूटोने के कारण है. इसीलिए वे किसी डाक्टर को दिखाने के बजाय कई सालों से ओझा को दिखा रहे हैं. कई सालों से वे मजार पर चादर चढ़ाते हैं.

रोहतास जिले के एक गांव में एक लड़की को जहरीले सांप ने काट लिया था. उस के परिजन बहुत देर तक झाड़फूंक करवाते रहे. झाड़फूंक करते जब मामला बिगड़ गया तो उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे बचाया नहीं जा सका, जबकि आए दिन अखबारों में भी इस के बारे में प्रचारप्रसार किया जाता है कि किसी व्यक्ति को सांप काटने पर झाड़फूंक नहीं, बल्कि अस्पताल ले जाएं. अगर समय रहते उस लड़की को अस्पताल ले जाया गया होता तो बचाया जा सकता था. किंतु आज भी लोग अंधविश्वास के कारण झाड़फूंक में ज्यादा विश्वास करते हैं. अभी भी लोग इलाज कराने के बजाय सांप काटने पर झाड़फूंक करवाना ही उचित समझते हैं.

अंधविश्वास पर भरोसा

आज भी लोग झाड़फूंक, मंत्र, जादूटोना पर विश्वास करने के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं. वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि झाड़फूंक करवाने से कुछ नहीं होता है. इस से कोई फायदा होने वाला नहीं है. अगर समय रहते  सांप काटने वाले व्यक्ति का अस्पताल ले जाया जाए तो उस की जान बचाई जा सकती है.

बिहार के कई शहरों में अधिकतर दुकानदार शनिवार को अपनी दुकान के आगे नीबूमिर्च लटकाते हैं. प्रत्येक शनिवार की सुबह नीबूमिर्च को एकसाथ धागे में पिरो कर दुकानदुकान बेचने वाले मिल जाते हैं. लगभग सभी दुकानदार खरीदते हैं. पुरानी लटके नीबू और मिर्च को सड़क पर फेंक देते हैं. लोगों के पांव उन पर न पड़ जाएं, इसलिए लोग बच कर चलते हैं. कई बार तो दोपहिया वाहन वाले भी अपनी गाड़ी के पहिए के नीचे आने से बचते हैं. कभीकभी दुर्घटना होने से बालबाल बचते हैं. कुछ लोगों का माना है कि पांव के नीचे या वाहन के नीचे अगर फेंका हुआ नीबू और मिर्च आ जाए तो जीवन में परेशानी बढ़ सकती है. कुछ दुकानदारों का मानना है कि नीबूमिर्च लटकाने से बुरी नजर से बचाव होता है. दुकान में बिक्री खूब होती है. यानी फालतू में नीबू और मिर्च आज भी बरबाद किए जा रहे हैं, जबकि इस तरह के नीबूमिर्च लटकाने का कोई फायदा नहीं है. आज भी बहुत से गरीब लोग हैं जो पैसे के अभाव में नीबूमिर्च खरीदने की सोचते हैं. अत: इस प्रकार से नीबू और मिर्च की बरबादी है. ऐसा कहने वाला कोई भी धर्मगुरु, पंडित, पुजारी, मौलवी नहीं होता है. दरअसल, यह देखादेखी अंधविश्वास आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. ऐसी बातें बहुत पहले से ही पाखंडी ब्राह्मणों, पंडेपुजारियों ने आम लोगों में फैला रखी हैं. इसीलिए ऐसा अंधविश्वास आज भी जारी है. विज्ञान के युग में भी ऐसी फालतू की बातों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं है.

औरंगाबाद की रहने वाली मंजू कुमारी शिक्षिका हैं. उन का कहना है कि वे एक बार पैदल परीक्षा देने जा रही. उन्होंने परीक्षा स्थल तक जाने के लिए शौर्टकट रास्ता चुना था. अभी परीक्षा केंद्र काफी दूर था कि एक बिल्ली उन का रास्ता काट गई. काफी देर तक इंतजार की लेकिन उस रास्ते से कोई गुजरा नहीं. उन्हें ऐसा लगा कि उन की परीक्षा छूट जाएगी, इसलिए जल्दीजल्दी उस रास्ते से हो कर परीक्षा केंद्र तक पहुंचीं. उन के मन में आशंका हो रही थी कि आज परीक्षा में कुछ न कुछ गड़बड़ होगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि उन का पेपर उस दिन बहुत अच्छा हुआ. उस दिन से वे इस तरह के अंधविश्वासों से बहुत दूर रहती हैं. वे स्वीकार करती हैं कि अगर वे अंधविश्वास में रहतीं तो परीक्षा छूटनी निश्चित थी.’’

वैज्ञानिक सोच जरूरी

दरअसल, बचपन से ही घर के लोगों के द्वारा यह सीख दी जाती है कि ब्राह्मणों, पोंगा पंडितों, साधुओं, पाखंडियों, धर्मगुरुओं के द्वारा दी गई सीख जो सदियों से चली आ रही है तुम्हें भी इसी रूप में माननी है. बचपन से लड़केलड़कियों को ये सब धर्म से जोड़ कर बताया जाता है. विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वास के प्रति उन के विश्वास को मजबूत कर दिया जाता है. यही कारण है कि पीढ़ीदरपीढ़ी आज भी अंधविश्वासों को लोग ढोते आ रहे हैं. विज्ञान यहां विकसित नहीं है. लेकिन अंधविश्वास खूब फूलफल

रहा है. इस की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि कोई काट ही नहीं सकता है. यहां के लोग पर्यावरण, पेड़पौधों की रक्षा करने के बजाय अंधविश्वास  की रक्षा करते हैं. वे उसी को विकसित होने  देते हैं तो स्वाभाविक है फूलफल भी इसी  के मिलेंगे.

जब देश में रफाल आता है और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नारियल फोड़ कर पूजा करते हुए मीडिया के माध्यम से दिखाया जाते हैं, तो देश में एक संदेश जाता है कि आम लोग ही नहीं अंधविश्वास में पड़े हुए हैं, बल्कि यहां के खास लोग भी अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं, जबकि वहीं कोरोना काल में देशभर के मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे सभी बंद थे. लोगों को भगवान के अस्तित्व के बारे में समझ आने लगा है. लोगों को विश्वास हो गया है देवीदेवताओं की दया से यह बीमारी ठीक होने वाली नहीं है, बल्कि वैज्ञानिकों के द्वारा जब दवा बनाई जाएगी तभी यह जाएगी.

लोगों में ईश्वर, भगवान, अल्लाह के प्रति आस्था कम हुई है, तो दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री राम मंदिर में सीधे लोट जाते हैं और यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि सबकुछ भगवान ही हैं. मीडिया का एक वर्ग तो उस समय यही सबकुछ दिखाने की कोशिश कर रहा था कि प्रधानमंत्री कितनी ही देर तक लोटपोट होते रहे, कितनी बार सांसें लीं, उस समय उन की दाढ़ी कितनी थी. एक टीवी चैनल तो प्रमुखता से दिखाया कि उस समय उन्होंने ‘राम’ का नाम कितनी बार लिया. इसीलिए देश के कुछ हिस्सों में कोरोना जैसी महामारी को बीमारी कम समझा गया. इसे दैविक प्रकोप समझने की भूल की गई. इतना ही नहीं देश के कुछ हिस्सों में पूजापाठ से दूर करने का प्रयास तक किया गया.

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ऐसे बढ़ेगा देश

देश में कोरोना कहर बरपा रहा था तो बिहार के कुछ भागों में कोरोना माता की पूजा की जा रही थी. रोहतास जिले के डेहरी औन सोन में सोन नदी के किनारे कई दिनों तक महिलाओं ने आ कर पूजापाठ किया. नदियों के किनारे महिलाएं झुंड में पहुंच कर 11 लड्डू, 11 फूल चढ़ा कर पूजा कर रही थीं. घर के पुरुषों द्वारा महिलाओं को मना करने के बजाय उन्हें प्रोत्साहन दिया जा रहा था. तभी तो वे अपनी गाड़ी में बैठा कर उन्हें नदियों के किनारे पहुंचा रहे थे. ऐसी परिस्थिति में भी यहां के मंदिरों में पूजा करने वाले स्थानीय पाखंडियों, धर्मगुरुओं, पुजारियों के द्वारा लोगों को मना नहीं किया गया, बल्कि उन के द्वारा मौन समर्थन किया गया ताकि उन का धंधा लौकडाउन में भी फूलफल सके. इस तरह के अंधविश्वास मोबाइल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से फैलते हैं.

ऐसे में अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है. उन्हें शुरू से ही यह बताने की आवश्यकता है कि विज्ञान से बदलाव किया जा सकता है. विज्ञान हमारी जरूरतों को पूरा कर रहा है. इस प्रकार के अंधविश्वास से हम सब पिछड़ जाएंगे. देश को आगे बढ़ाना है तो विज्ञान के महत्त्व को स्वीकारना होगा. तभी अंधविश्वास भी दूर होंगे.

आज भी अंधविश्वास में फंसे हैं लोग

लेखक- धीरज कुमार

यात्री से भरी बस झारखंड से बिहार की तरफ आ रही थी. अचानक सुनसान सड़क के दूसरी तरफ से सियार पार कर गया. ड्राइवर ने तेज ब्रेक लगाया. झटका खाए यात्रियों ने पूछा,”भाई बस क्यों रोक दी गई?”
बस के खलासी ने जवाब दिया,”सड़क के दूसरी तरफ सियार पार कर गया है इसलिए बस कुछ देर के लिए रोक दी गई है.”
सभी यात्रीगण भुनभुनाने लगे. कुछ लोग ड्राइवर की होशियारी की चर्चा करने लगे. उस अंधेरी रात में दूसरी गाड़ी सड़क पर पार नहीं कर गई, तब तक वह बस खड़ी रही. लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि यह अंधविश्वास है. इससे कुछ होता जाता नहीं है .सड़क है तो दूसरी तरफ से कोई भी जीव जंतु इधर से उधर पार कर सकता है. यह सामान्य बात है. इसमें बस रोकने जैसी कोई बात नहीं है. जबकि कई लोग मन ही मन अनहोनी होने से डरने लगे थे. रास्ते के इस पार से उस पार कुत्ता, बिल्ली, सियार जैसे जानवर आ जा सकते हैं. इसे अंधविश्वास से जोड़ा जाना उचित नहीं है. इसके लिए मन में किसी अनहोनी होने का डर आदि पालना भी बिल्कुल गलत है.

बिहार के रोहतास जिला के डेहरी में बाल काटने वाले सैलून तो सातों दिन खुला रहते हैं. लेकिन सोनू हेयर कट सैलून के मालिक से पूछे जाने पर यह बताते हैं,” ग्राहकों की भीड़ पूरे सप्ताह में सिर्फ 4 दिन ही होते हैं. तीन दिन तो हम लोग खाली खाली बैठे रहते हैं. यहां के अधिकतर हिन्दू लोग मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल नहीं कटवाते हैं. इन तीन दिनों में इक्का-दुक्का लोग बाल कटवाने आते हैं. जिनका ताल्लुक दूसरे धर्म से रहता है.”

भले ही हम लोग 21वीं सदी के विज्ञान युग में जी रहे हैं. लेकिन आज भी हमारी सोच 18 वीं सदी वाली ही है. यहीं के रहने वाले विनोद कुमार पेशे से कोयला व्यापारी हैं. उनका एक बेटा है. इसलिए सोमवार को बाल दाढ़ी नहीं कटवाते हैं. पूछे जाने पर हंसते हुए कहते हैं,” ऐसी मान्यता है कि जिनके एक पुत्र होते हैं. उनके पिता सोमवार को दाढ़ी बाल नहीं कटवाते हैं.इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है. गांव घर में पहले के ढोंगी ब्राह्मणों ने यह फैला दिया है तो आज भी अंधविश्वास जारी है. दरअसल लोगों के मन में सदियों से इस प्रकार की फालतू बातें बैठा दी गई है इसीलिए आज भी चलन में है. पहले के लोग सीधे-सादे लोग होते थे.इस तरह के पाखंडी ब्राह्मणों ने जो चाहा, वह सुविधा अनुसार अपने फायदे के लिए समाज में फैला दिया.”

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आज भी गांव में भूत, प्रेत, ओझा, डायन के बारे में लोग खूब बातें करते है. आज भी लोगों को विश्वास है कि गांव में डायन जादू टोना करती है. औरंगाबाद के गांव के रहने वाले रणजीत का कहना है कि उनकी पत्नी 2 सालों से बीमार रह रही है.उनकीपत्नी की बीमारी की वजह कुछ और नहीं, बल्कि डायन के जादू टोने के कारण है. इसीलिए वे किसी डॉक्टर के दिखाने के बजाय कई सालों से ओझा के पास दिखा रहे हैं. कई सालों से वे मजार पर जाते हैं और चादर चढ़ाते रहें हैं.

रोहतास जिले के एक गांव में एक लड़की को जहरीले सांप ने काट लिया था. उसके परिजन बहुत देर तक झाड़ फूंक करवाते रहें. झाड़-फूंक के बाद मामला जब बिगड़ गया तो उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे बचाया नहीं जा सका. जबकि अखबार में भी इसके बारे में प्रचार प्रसार किया जाता रहा है कि किसी व्यक्ति को सांप काटने पर झाड़-फूंक नहीं बल्कि अस्पताल ले जाएं.अगर समय रहते उस लड़की को अस्पताल ले जाया गया होता तो बचाया जा सकता था. किंतु आज भी लोग अंधविश्वास के कारण झाड़-फूंक में ज्यादा विश्वास करते हैं अभी भी लोग इलाज कराने के बजाय सांप काटने पर झाड़ फूंक करवाना ही उचित समझते हैं.

आज भी लोग झाड़-फूंक, मंत्र, टोना, जादू पर विश्वास करने के कारण अपनी जान गवा रहे हैं वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि झाड़-फूंक करवाने से कुछ नहीं होता है. इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है. अगर समय रहते सांप काटने वाले व्यक्ति की इलाज कराया जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती थी.

बिहार के कई शहरों में अधिकतर दुकानदार शनिवार को अपने दुकान के आगे नींबू मिर्च लटकाते हैं. प्रत्येक शनिवार की सुबह कुछ लोग नींबू मिर्च को एक साथ धागे में पिरोकर दुकान दुकान बेचते वाले भी मिल जाते हैं. लगभग सभी दुकानदार खरीदते हैं.पुरानी लटकी हुई नींबू और मिर्च को सड़क पर फेंक देते हैं. लोगों ‌के पांव उस पर न पड़ जाए, इसलिए लोग बचकर चलते हैं. कई बार तो दोपहिया वाहन वाले भी अपने गाड़ी के पहिए के नीचे आने से बचाते हैं. कभी-कभी दुर्घटना होने से बाल-बाल बचते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पांव के नीचे या वाहन के नीचे अगर फेका हुआ नींबू और मिर्च आ जाए तो जीवन में परेशानी बढ़ सकती है. कुछ दुकानदारों का मानना है कि नींबू मिर्च लटकाने से बुरी नजर से बचाव होता है. दुकान में बिक्री खूब होती है. इस प्रकार देखा जाए तो फालतू में नींबू और मिर्च आज भी बर्बाद किए जा रहे हैं जबकि इस तरह के नींबू मिर्च लटकाने का कोई फायदा नहीं है. आज भी बहुत से गरीब लोग हैं जो पैसे के अभाव में नींबू मिर्च खरीदने के लिए सोचते हैं. अतः इस प्रकार से नींबू और मिर्च की बर्बादी है. ऐसा कहने वाला कोई भी धर्मगुरु, पंडित, पुजारी, मौलवी नहीं होता है. दरअसल यह देखा देखी अंधविश्वास आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. ऐसी बातें बहुत पहले से ही पाखंडी ब्राम्हणों, पंडे, पुजारियों ने आम लोगों ने फैला रखी है. इसीलिए ऐसा अंधविश्वास आज भी जारी है. विज्ञान के युग में भी ऐसी फालतू बातों को कोई रोकने टोकने वाला नहीं है.

औरंगाबाद के रहने वाली मंजू कुमारी एक शिक्षिका है. उनका कहना है,” वे एक बार पैदल परीक्षा देने जा रही थी. उन्होंने परीक्षा स्थल तक जाने के लिए शॉर्टकट रास्ता चुना था. अभी परीक्षा केंद्र काफी दूर था कि एक बिल्ली उनका रास्ता काट गई. काफी देर तक इंतजार की लेकिन उस रास्ते से कोई गुजरा नहीं.उन्हें ऐसा लगा कि उनकी परीक्षा छूट जाएगी. इसलिए जल्दी-जल्दी उस रास्ते से होकर परीक्षा केंद्र तक पहुंची. उनके मन में आशंका हो रही थी कि आज परीक्षा में कुछ न कुछ गड़बड़ होगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बल्कि उनका परीक्षा उस दिन बहुत अच्छा हुआ. बाद में उस विषय में अच्छे नंबर भी मिले थे.उस दिन से वे इस तरह के अंधविश्वासों से बहुत दूर रहती हैं. वे स्वीकार करती हैं कि अगर मैं अंधविश्वास में रहती तो मेरा परीक्षा छूटना निश्चित था.‌”

दरअसल बचपन से ही घर के लोगों के द्वारा यह सीख दी जाती है कि ब्रह्मणों, पोंगा पंडितों, साधुओं, पाखंडियों, धर्मगुरुओं के द्वारा दी गई सीख जो सदियों से चली आ रही है तुम्हें भी इसी रूप में मानना है. बचपन से लड़के लड़कियों को यह सब धर्म से जोड़कर बताया जाता है. उन्हें विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वास के प्रति विश्वास को मजबूत कर दिया जाता है. यही कारण है कि पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी अंधविश्वासों को लोग ढोते आ रहे हैं. विज्ञान यहां विकसित नहीं है. लेकिन अंधविश्वास खूब फल फूल रहा है. इसकी जड़े इतनी मजबूत है कि कोई काट ही नहीं सकता है. यहां के लोग पर्यावरण, पेड़ पौधे की रक्षा करने के बजाए अंधविश्वास की रक्षा करते हैं. लोग उसी को विकसित होने देते हैं तो स्वाभाविक है फल, फूल भी इसी के मिलेंगे.

जब देश में रफाल आता है और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नारियल फोड़कर पूजा करते हुए मीडिया के माध्यम से दिखाया जाता है तो देश में एक संदेश जाता है कि आम लोग ही नहीं अंधविश्वास में पड़े हुए हैं बल्कि यहां के खास लोग भी अंधविश्वास को बढ़ावा देना चाहते हैं. जबकि वही करोना काल में देशभर के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे सभी बंद थे. लोगों को भगवान के अस्तित्व के बारे में समझ आने लगा था. लोगों को विश्वास हो गया है ,देवी देवताओं के दया से यह बीमारी ठीक होने वाला नहीं है, बल्कि वैज्ञानिकों के द्वारा जब दवा बनाया जाएगा तभी यह बीमारी जाएगी.

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लोगों में ईश्वर,भगवान ,अल्लाह के प्रति आस्था कम हुई है तो दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री राम मंदिर में सीधे लोट जाते हैं और यह संदेश देने की कोशिश करते हैं सब कुछ भगवान ही हैं. मीडिया का एक वर्ग उस समय यही सब कुछ दिखाने की कोशिश कर रहा था. प्रधानमंत्री कितने देर तक लोटपोट होते रहे. कितनी बार सांसे लिए, उस समय उनकी दाढ़ी की लंबाई कितनी थी. एक टीवी चैनल वाला तो प्रमुखता से दिखाया कि उस समय उन्होंने ‘राम’ का नाम कितनी बार लिया. इसीलिए देश के कुछ हिस्सों में कोरोना जैसे महामारी को बीमारी कम समझा गया. इसे दैविक प्रकोप समझने की भूल ही गई. और इतना ही नहीं देश के कुछ हिस्सों में पूजा पाठ से दूर करने का प्रयास किया गया.

देश में कोरोना कहर बरपा रहा था तो बिहार के कुछ भागों में कोरोना माता की पूजा की जा रही थी. रोहतास जिला के डेहरी ऑन सोन में सोन नदी किनारे कई दिन तक महिलाओं ने आकर पूजा-पाठ किया. नदियों किनारे महिलाएं झुंड में पहुंचकर 11 लड्डू 11 फूल चढ़ाकर पूजा कर रही थी. घर के पुरुषों द्वारा महिलाओं को मना करने के बजाय उन्हें प्रोत्साहन दिया जा रहा था. तभी तो वे अपनी गाड़ी में बैठा कर उन्हें नदियों किनारे पहुंचा रहे थे. ऐसी परिस्थिति में भी यहां के मंदिरों में पूजा करने वाले स्थानीय पाखंडिओं, धर्मगुरुओं, पुजारियों के द्वारा लोगों को मना नहीं किया गया.बल्कि उनके द्वारा मौन समर्थन किया गया ताकि उनका धंधा लॉकडाउन में फलफूल सके. इस तरह के अंधविश्वास मोबाइल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से फैलता है.

अतः जरूरी है कि अभिभावकों के द्वारा अपने बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है. उन्हें शुरू से ही यह बताने की आवश्यकता है कि विज्ञान से बदलाव किया जा सकता है. विज्ञान हमारी जरूरतें पूरा कर रहा है. इस प्रकार के अंधविश्वास से हम सभी पिछड़ जाएंगे. देश को आगे बढ़ाना है तो विज्ञान के महत्व को स्वीकारना होगा. तभी अंधविश्वास भी दूर होंगे.

कोरोना से बेहाल उस पर अंधविश्वास के जाल

हाल ही में एक धार्मिक नेता जिन्होंने गे मैरिज को कोरोना की वजह बताई उन्हें खुद कोरोना हो गया. 91 साल के पैट्रिआर्क फिलारेट को कोरोना से पीड़ित होने पर अस्पताल में एडमिट किया गया.

कीव के यूक्रेनियम ऑर्थोडॉक्स चर्च के हेड फिलारेट देश के जानेमाने धार्मिक गुरु हैं जिन के 15 मिलियन फॉलोअर्स हैं. कोरोनावायरस को ले कर उन के विचार बेहद हास्यास्पद हैं. एक टीवी इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि यह महामारी भगवान के द्वारा दिया गया है जो इंसानों को उन के द्वारा किए गए पापों की वजह से भोगना पड़ रहा है. पापों की फ़ेहरिस्त में उन्होंने सब से पहला नाम सेम सेक्स मैरिज यानी समलिंगी विवाह को रखा. जाहिर है कि उन के इस बयानबाजी के कारण इस समुदाय के लोगों के विरुद्ध सामान्य लोगों के मन में घृणा पैदा होगी और आवेश में आ कर लोग इन्हें नुकसान भी पहुंचा सकते हैं. दुनिया के और भी बहुत से धार्मिक गुरुओं ने एलजीबीटी समुदाय यानी( लेस्बियन गे बायोसेक्सुअल एंड ट्रांसजेंडर ) को इस महामारी का जिम्मेदार बताया है.

कोरोना महामारी को ले कर अक्सर हमारा सामना ऐसी बेवकूफी भरी सोचों से होता रहता है. लोग अपनीअपनी मानसिकता और दायरे के हिसाब से अफवाहें फैलाते रहते हैं.

हाल ही में यूके में सोशल मीडिया के जरिए एक खबर बड़ी तेजी से फैली कि कोरोना वायरस जैसी महामारी 5 जी इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण पनप रही है. इस के बाद वहां लोग घबड़ा कर 5जी टावर्स को आग के हवाले करने लगे. कोई वैज्ञानिक तथ्य मौजूद न होने के बावजूद इस अफवाह के फैलते ही लोगों ने 5जी मोबाइल टावर्स में आग लगाने के साथ 5जी इंस्टॉलेशन के लिए फाइबर ऑप्टिक केबल को बिछाने का काम कर रहे मजदूरों को भी प्रताड़ित किया. बहुत से दावों में यह कहा गया कि वायरस वुहान में इसलिए पैदा हुआ क्योंकि चीन के शहर ने पिछले साल 5G नेटवर्क को विस्तार दिया था.

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कुछ लोग तो कोरोना से बचने के लिए रामचरितमानस के पन्ने पलट बाल की खोजबीन में भी लग गए. हुआ यह कि कोरोना वायरस से बचने के लिए सोशल मीडिया में यह खबर तेजी से वायरल हुई कि रामायण के बाल कांड में बाल मिल रहा है. यह बाल पवित्र है और इस को साधारण पानी के साथ या फिर पानी में उबाल कर और गंगा जल मिला कर पीने से कोरोना वायरस ठीक हो जाता है या होता ही नहीं है. सोशल मीडिया में ऐसे कई वीडियो भी आ गए जिस में लोग दीप जला कर या हाथपैर धो कर पन्ने को पलटते हुए बाल कांड के पन्नों में पहुंच कर बाल मिलने का दावा करने लगे. बस बहुत से लोग बिना कुछ सोचेसमझे बालकांड के बाल की तलाश में लग गए.

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने का एक नमूना यूपी के कुछ शहरों में दिखा है. यहां के मेडिकल स्टोर्स पर कोरोना शट आउट/गेट आउट कार्ड बिकता हुआ पाया गया. दावा यह किया गया कि इस कार्ड को गले में पहनने से कोरोना का संक्रमण नहीं होेता.
100 रुपये से ले कर 150 से 180 रुपये तक में बिकने वाले इस कार्ड के भीतर शक्कर के दाने के बराबर पत्थर जैसे भरे होने के साथ इन से एक गंध निकलती है. इसे बेचने वालों को भी इस की कंपनी का नाम नहीं पता मगर लोगों ने बड़ी संख्या में इस की खरीददारी की.

मध्य प्रदेश के रतलाम के नयापुरा में तो हद ही हो गई जब एक झाड़फूंक करने वाले बाबा द्वारा हाथ चूम कर कोरोना ठीक करने की अफवाह उड़ी तो लोगों का हुजूम वहां इकठ्ठा होने लगा. नतीजा यह हुआ कि हाथ चूम कर कोरोना ठीक करने का दावा करने वाले बाबा की कोरोना से ही मौत हो गई और दूसरे 19 लोग भी इस से संक्रमित हो गए. बाबा की मौत होने पर इस  अंधविश्वास का खुलासा हुआ पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

कोरोना के कारण अंधविश्वास और अफवाहों का बाजार भी लगातार गर्म रहा है. खासतौर पर यह अंधविश्वास का जाल महिलाओं पर इस कदर हावी रहा है कि वायरस भगाने के नाम पर वे रात दिन पूजापाठ लगी रहती है. बिहार के कैमूर और गोपालगंज में महिलाओं ने कोरोना को देवी मान कर पूजा की गुड़हल के नौ फूल, गुड़ की नौ डली, नौ लौंग और सिंदूर की नौ लकीर के साथ कोरोना माता को दूर करने के प्रयत्न किये.

उत्तर प्रदेश में अंधविश्वास का प्रकोप कुछ इस कदर दिखा कि लोगों ने दिये जला कर और कुएं में पानी डाल कर कोरोना महामारी के इलाज का दावा करना शुरू कर दिया. किसी ने कहा कि कोरोना से बचने के लिए गांव में जितने पुरुष हैं उतने आटे के दिये जलाएं तो किसी ने  दियों को शाम के समय घर की देहरी पर रखना शुरू किया.

कई जगह तो मोदी के तर्ज पर घर की बड़ीबूढ़ी औरतें अब भी हर रोज थालियां बजाती हैं और कोरोना को भगाने का प्रयास करती हैं. कई लोगों ने कोरोना से बचने के लिए घर में हर रोज नियमित पूजा पाठ करना, नीम के पेड़ के पास दिया जलाना और पेड़ को दो लोटा जल चढ़ाना शुरू किया हुआ है .

कोरोना को ले कर फिरोजाबाद में एक अलग ही अंधविश्वास नजर आया. वहां यह अफवाह उड़ी कि जितना हो सके हल्दी का पानी कुंए में डाले इस से कोरोना जैसी बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है. इस के बाद बिना कुछ सोचे समझे सैकड़ों महिलाओं ने बंद पड़े कुओं में हल्दी का पानी डालना शुरू कर दिया

वहीँ मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में यह अफ़वाह भी फैली कि हरी चूड़ी पहनने और घर के बाहर गोबर व लेप का पंजा बनाने से कोरोना नहीं आएगा और परिवार सुरक्षित रहेगा.

गांव के कुछ लोगों ने इस बीमारी के इलाज के तरहतरह के नुस्खे बताने भी शुरू किये हैं. लोगों का विश्वास है कि गुड़ की चाय पीने और उस में एक जोड़ा लौंग की फलियां डाल कर पीने से कोरोना खत्म हो जाता है.

गावों के कुछ लोगों ने कोरोना का कारण सूर्यग्रहण भी माना उन के मुताबिक़ सूर्यग्रहण की वजह से सभी नक्षत्र बिगड़े हैं और यह सब शनि का प्रकोप है. कुछ लोगों ने कोरोना से बचने के लिए आटे के दिए जलाने भी शुरू किये.

इन सब के साथ कोरोना के नाम पर ठगी का धंधा भी चालू है. कई जगह लोगों ने कोरोना के नाम पर चंदा उगाहना शुरू किया. लोगों को डराया गया कि जो लोग चंदा नहीं देंगे उन्हें कोरोना मार देगा. कुछ लोग सुबहशाम पीपल में जल दे रहे हैं क्यों कि उन का मानना है कि सभी देवता इस में बसते हैं और ये देवता सब ठीक कर देंगे.

दरअसल हमारे समाज में तर्कशील बौद्धिक चेतना का विकास नहीं हो पाया है जिस का कारण एक तो धार्मिक अंधविश्वासों का मौजूद होना है और दूसरा कारण है लोगों का अशिक्षित होना. लोग बहुत आसानी से पाखंडियों, जालसाजों और ठगों की जाल में फंस जाते हैं और यह सोचने का प्रयास भी नहीं करते कि ऐसा वे कर क्यों रहे हैं.

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पूरी दुनिया इस समय भी कोरोना वायरस की चपेट में है और इस का केवल एक ही इलाज है और वह है घर पर रहना यानी सामाजिक दूरी को बना कर रखना. कोरोना पूरी तरह तभी भागेगा जब इस की वैक्सीन आएगी. तब तक जितने भी पापपुण्य या अंधविश्वासों के चक्कर में पड़े रहो कुछ होने वाला नहीं सिवा अपनी आर्थिक मानसिक और शारीरिक  क्षति के. यही नहीं यदि अंधविश्वास के नाम पर ऐसे ही लोगों का मजमा लगना कायम रहा तो कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती ही जाएगी.

#coronavirus: कोरोना के कोहराम से भी नहीं टूट रही अंधविश्वास की आस्था

कहा जाता है कि भय हमें झकझोर देता है,मौत हमारी आँखें खोल देती है. लेकिन लगता है हिंदुस्तानी इस मुहावरे को भी गलत कर देंगे.क्योंकि ‘कोविड-19 के दौर में जीवन’ शीर्षक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिंकडिन पर एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने अन्य बातों के अतिरिक्त इस तथ्य पर बल दिया है कि ‘हमला करने से पहले कोविड-19 नस्ल, धर्म, रंग, जाति, समुदाय,भाषा या सीमा नहीं देखता है’.

इसलिए, उन्होंने कहा, “हमारी प्रतिक्रिया और व्यवहार एकता व भाईचारे को प्राथमिकता दे,इसमें हम सब साथ साथ हैं.” इसी भाईचारे व आपसी सहयोग के कारण केरल अब कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राष्ट्रव्यापी मॉडल बन चुका है. केरल ने देश में सबसे पहला कोविड-19 रोगी रिपोर्ट किया था,लेकिन इस लेख के लिखे जाने तक इस दक्षिणी राज्य में संक्रमण के सिर्फ 400 मामले हैं और अब तक केवल तीन मौतें हुई हैं; जैसा कि केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय के डाटा से मालूम होता है.केरल की इस सफलता का सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई बिना किसी भेदभाव के, एकजुट प्रयास में, एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं.

लेकिन देश के कुछ बड़े राज्यों में इस आपसी भाईचारा व एकजुटता का काफी हद तक अभाव देखने को मिल रहा है.शायद इसलिए इनमें कोविड-19 से संक्रमण व मौतों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय के डाटा के मुताबिक़ 22 अप्रैल सुबह 11.10 तक कोविड-19 से जो कुल 645 मौतें हुईं उनमें सबसे ज्यादा (251) महाराष्ट्र में हुई हैं और इसके बाद गुजरात (90), मध्य प्रदेश (76),  दिल्ली (47) ,राजस्थान 25 और तेलंगाना (23) हैं. देश में कुल कोविड-19 संक्रमितों की संख्या भी 20,111 से अधिक हो गई है.कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री ‘एकता व भाईचारे’ को प्राथमिकता देने के अतिरिक्त सोशल डिस्टेंसिंग (दैहिक दूरी) बनाये रखने और लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने पर भी ज़ोर दे रहे हैं.लेकिन तर्क पर आस्था इतनी भारी पड़ रही है कि सब गुड़ गोबर होता जा रहा है.ध्यान देने की बात यह है कि तर्क पर आस्था सिर्फ भारत में ही भारी नहीं पड़ रही है बल्कि लगभग सभी देशों (और सभी समुदायों व सभी वर्गों) में यह ‘बीमारी’ मौजूद है.

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कर्नाटक में कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते की शादी हुई, जिसमें सैंकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया.इनमें से किसी के चेहरे पर न तो मास्क था और न ही किसी ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन के कारण बहुत से लोगों ने अपने विवाह आयोजन,जो पहले से ही तय थे,स्थगित कर दिए हैं या दो चार लोगों की मौजूदगी में सादगी से विवाह कर लिया है या किसी एप्प के ज़रिये फोन पर ही निकाह सम्पन्न कर लिया है.लेकिन देवगौड़ा ने अपने पारिवारिक ज्योतिषी के द्वारा बताये गये ‘शुभ मुहूर्त’ को किसी भी सूरत में निकलने नहीं दिया ; क्योंकि यह आस्था की बात है.भले ही महामारी के दौर में भीड़ का जमा होना कोरोना वायरस फैलने की बड़ी वजह बन जाये जैसा कि दिल्ली में तब्लिगी जमात के सम्मेलन के चलते हुआ.

अमेरिका में गेनपीस डॉट कॉम की तरफ से बड़े बड़े होर्डिंग जगह जगह पर लगाए गये हैं जिन पर कोरोना वायरस व अन्य संक्रमणों से बचने के संदर्भ में पैगम्बर मुहम्मद की हदीस (कथन) को इस क्रम में लिखा गया है –

1.बार बार हाथ धोते रहो; 2. जहां हो वहीं रुके रहो; और 3. संक्रमित क्षेत्र में मत जाओ.

संभवत: इसी को मद्देनज़र रखते हुए अरब देशों में मस्जिदों को बंद कर दिया गया है और आज़ान में कुछ शब्द जोड़कर यह हिदायत दी जाती है कि सामूहिक नमाज़ की जगह अपने घर में ही व्यक्तिगत नमाज़ अदा करें.इसी कारण से सऊदी अरब ने इस वर्ष के हज को रद्द कर दिया है.लेकिन पाकिस्तान का हाल कुछ अलग ही है.यहां मुल्लाओं का कहना है कि संकट के समय अल्लाह को अधिक से अधिक याद करना चाहिए,इसलिए मस्जिदों में ‘सामूहिक नमाज़ जारी रहेंगी’. मुल्लाओं की इस आस्था भरी ज़िद के आगे पाकिस्तान की सरकार भी झुक गई है और उसने रमज़ान माह में सामूहिक नमाज़ की अनुमति दे दी है.

हैरत की बात यह है कि ‘संकट के समय ईश्वर को अधिक याद करने’ व एकत्र होने की आस्था भरी बेतुकी दलील केवल मुल्लाओं तक सीमित नहीं है, पुजारी, पादरी, ग्रंथी आदि की सोचने की सीमा भी इतनी ही है.इसलिए राम नवमी पर सोशल डिस्टेंसिंग व लॉकडाउन को अंगूठा दिखाते हुए पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों में मंदिरों के बाहर लोगों लम्बी कतारें देखी गईं.पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि मंदिरों के बाहर लोग हाथ से पानी पीते हैं, प्रसाद खाते हैं लेकिन उन्हें कुछ नहीं होता क्योंकि उन पर ईश्वर की कृपा होती है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समीति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजिन्द्र सिंह मेहता ने बीबीसी से कहा कि ‘स्वर्ण मंदिर में मर्यादा न कभी बंद हुई, न कभी होगी’.

कोविड-19 से अपनी मृत्यु से पहले ग्रंथी बलदेव सिंह ने सिख उत्सव होला मोहल्ला में हिस्सा लिया था, जिससे 20 गांवों के लगभग 40,000 लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा और बलदेव सिंह के 19 रिश्तेदार कोरोना पॉजिटिव पाए गये.इंग्लैंड में इस्कॉन के हज़ारों सदस्य एक शव यात्रा में शामिल हुए जिसमें से 21 को संक्रमण हुआ.इनमें से अब तक पांच की मृत्यु हो चुकी है.श्रीलंका में बौद्ध भिक्षु सप्ताह भर की सामूहिक पूजा कोविड-19 से ‘मुक्ति’ पाने के लिए कर रहे हैं. केरल में चालाकुडी चर्च में सामूहिक धार्मिक आयोजन किया गया,जिसके लिए पादरी व 50 अन्यों को गिरफ्तार किया गया है.

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सिर्फ धार्मिक मामलों में ही तर्क पर आस्था हावी नहीं है बल्कि इस प्रकार के संदेशों पर विश्वास करना कि 5 जी नेटवर्क से वायरस फैलाता है, हैंड ड्रायर से वायरस मर जायेगा, विटामिन सी या गौ मूत्र से कोविड-19 रोगी ठीक हो जायेगा … भी इसी मानसिकता के कारण है .संसाधनों के अभाव में भी व्यक्ति गैर-विज्ञान बातों में आस्था रखने लगता है, लेकिन धार्मिक अंधविश्वास इसका मूल कारण है. अखिल भारतीय कैथोलिक यूनियन के पूर्व अध्यक्ष जॉन दयाल कहते हैं,“हर धर्म में हर प्रकार के लोग होते हैं, तार्किक सोच से लेकर दकियानूसी विचार रखने वालों तक, लेकिन धर्म के मूल में विश्वास रखना उस समय तक दुरुस्त है जब तक वह रूढ़िवादी न हो.”

पीरियड्स का नाम लेकर भोली जनता को क्यों डराते हैं स्वामी जी?

अब तक पीरियड्स को लेकर समाज में अंधविश्वास बना हुआ है. आज भी हमारे समाज में पीरियड्स के खून को गंदा माना जाता है. लड़कियां इसे छिपाने की पूरी कोशिश करती हैं. पीरियड्स के समय पर एक अजीब सी टेंशन उनके मन में बैठी रहती है. कहीं बैठने और उस जगह से उठने के बाद कई बार पीछे मुड़कर वह अपने कपड़े को चेक करती है कि अगर दाग लग जाए और किसी ने देख लिया तो क्या होगा? लोग क्या कहेंगे जैसे की उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो. जिस खून से नन्हीं सी जान का निर्माण होता है भला वो गंदा कैसे हो सकता है…

अगर किसी लड़की को पीरियड ना हो तो भी लोग उसे भला बुरा बोलते हैं, यहां तक की उसकी शादी में भी अड़चने आती हैं और अगर पीरियड्स हो तो भी उन दिनों उसे कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है.

पीरियड्स से जुड़ी अजीबो-ग़रीब बातें…

पीरियड्स से जुड़ी कई अजीबो-ग़रीब बातें हमारे सामने आई हैं. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी और मेरी एक सहेली को उसके घर ट्यूशन क्लास के लिए सुबह लेने गई तो देखा कि कड़ाके की ठंड में वह जमीन पर सोई थी. पूछा तो उसने बताया कि पीरियड के दिनों में उसे जमीन पर सोना पड़ता है. ऐसे ही कई और बातों से हम लड़कियों का पाला पड़ा होगा जैसे किचन में नहीं जाना है, खाना नहीं बनना है, मंदिर नहीं जाना है और हां उन दिनों तो आप पूजा भी नहीं कर सकते. यहां तक की खाने का समान भी जैसे अचार छूना भी मना होता है. क्या हम महिलाएं पीरियड्स के समय सो कॉल्ड अछूत हो जाती हैं? कई जगहों पर तो आपको अपने पति और बच्चों से भी दूर रहना पड़ता है, बस पड़े रहो घर के किसी कोने में.

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हालांकि कुछ लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं लेकिन कुछ अंधविश्वासी और पाखंडी बाब इसे धर्म से जोड़ने का काम करते हैं और लोगों के मन में डर पैदा करते हैं कि अगर पीरियड्स में आपने ऐसा नहीं किया वैसा नहीं किया तो आपके साथ कुछ गलत हो जाएगा. ढोंगी बाबाओं का काम है धर्म के नाम पर डाराना और लोगों को लूटना.

स्वामी जी की छोटी सोच…

ऐसा ही एक कुछ कहा है गुजरात के स्वामीनारायण भुज मंदिर के स्वामी कृष्णस्वरूप दास का कि, अगर पीरियड्स में महिला अपने पति के लिए खाना बनाती है तो अगले जन्म में वह ‘कुतिया’ (Bitch) बनकर पैदा होगी. ये वही मंदिर है जिसके अनुयायी की ओर से चलाए जा रहे स्कूल के हौस्टल में कुछ दिनों पहले पीरियड की जांच करने के लिए लड़कियों के अंडरवियर उतरवाने का मामला सामने आया था. लड़कियों को मजबूर किया गया था कि इस जांच के लिए वो अपने कड़ते उतारें. मामला सामने आने के बाद प्रशासन की ओर से जांच की बात भी कही गई.

दरअसल, स्वामीनारायण भुज मंदिर का अपना यूट्यूब पेज है जहां दास जी के कई वीडियो अपलोड किए गए हैं. वहीं एक वीडियो में स्वामी का कहना है कि अगर पुरुष माहवारी से गुजर रही महिला के हाथ का बना खाना खा ले तो अगले जन्म वह बैल बनेगा. ज्ञान देने वाले दास यहीं नहीं रूकते, वो आगे कहते हैं कि ये नियम शास्त्रों में लिखा है. बाकी आपको जो समझना है आप समझें. हैरानी इस बात की है कि देश के कई हिस्सों में आज भी इन बेतुके नियमों को माना जाता है.

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दास जी को हम महिलाएं बताना चाहती हैं कि पीरियड में इतना दर्द होता है कि खड़े होना मुश्किल होता है खाना बनाना, घर के काम करना तो दूर की बात है. कितना अच्छा होता कि, पुरुष इस बात को समझते और इमोशनली व फिजिकली रूप से घर की महिलाओं को सपोर्ट करते ताकि हम सहेलियां एक-दूसरे को हैपी पीरियड का संदेश भेज सकतीं.

नजर: अंधविश्वास या इसके पीछे है कोई वैज्ञानिक तर्क, जानें यहां

बुरी नजर (Evil Eye) कई लोग इस पर पूरा विश्वास करते हैं और कुछ लोग ऐसे है जो मन ही मन इस पर विश्वास करते तो है पर दिखाते नहीं.

हमारे आसपास इतनी सारी चीज़े होती है जिससे कई बार हमें बुरी नजर की उपस्तिथि पर विश्वास हो जाता है जैसे कभी-कभी बच्चे अचानक बीमार पड़ जाते हैं या दिनभर रोने लग जाते हैं. हमारे बड़े बुजुर्ग हमसे कहते है की इन्हें नजर लग गयी है. वो हमें नजर उतारने के कुछ नुस्खे बताते है और जब हम वो नुस्खे बच्चों पर अपनाते है.

लोग सुन्दर सुन्दर घर बनवाते है और उसके आगे कभी काला मुखौटा, तो कभी जूता आदि भद्दी चीज़ें लटका देते है .जिससे की घर बिलकुल परफेक्ट न दिखे नहीं तो उसे नजर लग जाएगी.

असल में बात तो यह है की परफेक्शन आते ही Insecurity आ जाती है.अगर कोई भी चीज़ हमारे जीवन में अच्छी घटित होती है तो सबसे पहले हमारे मन में Insecurity का भाव आता है. हमें तुरंत उसको खोने का डर  शुरू हो जाता है और वही से ये अन्धविश्वास हमारे मन में घर कर जाता है की हमें नजर लग गयी है और जो हमको कम पसंद है हम उस आदमी को ज़िम्मेदार भी बनाना चाहते है की इसने नजर लगा दी होगी.

नजर कुछ नहीं ये सिर्फ आपकी सोच है. क्योंकि आपके जीवन में जो भी Positive हो रहा है वो आपके मन की उत्पत्ति है और जो Negative हो रहा है वो भी आपके मन की उत्पत्ति है.

अगर किसी की नजर से कुछ बिगड़ना शुरू हो जाये तो ये बहुत आसान है की हर देश अपने  बौर्डर पर बुरी नजर वाले लोग बैठा दे. नजर से ही देश तबाह हो जायेंगे.

आज हम इसके बारें में विस्तार से जानेंगे की क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क है या ये सिर्फ एक अन्धविश्वास है.

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क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक तर्क-.

जापान के मशहूर Dr.Masaru Emoto  ,इन्होने इस टॉपिक पर कई किताबें लिखी हैं. उन्होंने अपनी किताबों में “Power of thought “ के बारे में बताया है. उन्होंने एक Experiment किया था. उन्होंने कांच के 3 गिलास लिए .हर गिलास में उन्होंने पानी और चावल को बराबर बराबर मात्रा में डाला.फिर उन्होंने पहले गिलास के सामने जाकर बोला ,“I Love You. You Are The Best. I am very greatful .”

फिर उन्होंने दूसरे गिलास के सामने जाकर बोला,” i hate you .you are useless. you are ugly .” और फिर उन्होंने तीसरे गिलास के सामने कुछ नहीं बोला.

15 दिन बाद जो पहला गिलास था उसके  चावल fermint (फूलने ) होने लगते है और एक दम सफ़ेद रंग के हो जाते हैं.

दूसरे गिलास के चावल काले हो जाते हैं और तीसरे के आधे काले और आधे सफ़ेद हो जाते हैं.

YouTube पर उन लोगों के बहुत सारे videos पड़े है जिन्होंने ये experiment अपने घर पर किया .आप चाहे तो आप भी ये अपने घर पर करके देख सकते है.

Dr. Emoto का कहना है की हमारे शब्दों में और हमारे विचारों में बहुत सारी energy होती है और पानी पर positive energy  और negative energy  का बहुत प्रभाव पड़ता है.

तभी तो  हमारी गंगा नदी चाहें जितनी भी मैली हो वो हमेशा पवित्र रहेगी क्योंकि जब -जब भक्त उसमे डुबकी लेते हैं  ‘They Feel Blessed’.और Blessed बहुत ही Positive इमोशन होता है.

अब आप सोच रहे होंगे की पानी पर प्रभाव पड़ता होगा पर हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा.तो जरा सोचिये की आपके शरीर में कितने प्रतिशत पानी है ?

आपके शरीर में 70% पानी है ,आपके ब्रेन में 80 % पानी है और आपकी स्किन में 64% पानी है.जब हमारा शरीर पानी से ही बना है तो प्रभाव तो पड़ेगा ही.

इसलिए जो लोग आपसे जलते है वो निश्चित रूप से आप पर प्रभाव तो डालते ही है.

जो छोटे बच्चे होते है वो बहुत सेंसिटिव होते है उन पर positive energy और Negative Energy  का प्रभाव बहुत जल्दी होता है.

पर जो adults होते है उनकी positivity पर निर्भर  करता है की उन पर प्रभाव पड़ेगा की नहीं.अगर आपकी positive energy  सामने वाले की negative energy   से ज्यादा है तो आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा .

positive  energy  कैसे बढती है?

1- self confidence से -positive energy बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है आपकी positive सोच .और आपकी सोच तब positive होती है जब आपके अन्दर आत्मविश्वास होता है.अगर आपके अन्दर आत्मविश्वास है तो आपकी positivity अपने आप बढ़ेगी .

2- positive भाषा का प्रयोग

हम ये तो जानते ही है की हमारे शब्दों में और हमारे  विचारों में बहुत energy होती है .इसलिए हमें हमेशा positive भाषा का उपयोग करना चाहिए.इससे हमारे आस-पास का माहौल बेहतर होता है.

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3-powerful descipline बनाये

powerful descipline से भी positive energy बढती है.अगर आपके घर में किसी भी चीज़  का कोई रूटीन या टाइम टेबल नहीं हैं तो यकीन मानिये ये भी एक बहुत बड़ा कारण है negativity का .

4- नकारात्मक सोच वालों से बचें

हम सब ये जानते है की हर किसी का एक औरा होता है .जब हमारा औरा किसी नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के संपर्क में आता  है तो हम अपनी ऊर्जा खोने लगते  है और हमारे अन्दर negativity आ जाती है और जब हमारा औरा किसी सकारात्मक  सोच वाले व्यक्ति के संपर्क में आता  है तो हम अपने आप में  एक अलग energy महसूस करते है और हमारे अन्दर positivity आ जाती है.  इसलिए जितना हो सके नकारात्मक सोच वालों से दूरी बना कर रखें.

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