Travel Special: चलिए टॉय ट्रेन के मजेदार सफर पर

खूबसूरत वादियों में कभी घने जंगल, तो कभी टनल और चाय के बगानों के बीच से होकर गुजरती टॉय ट्रेन की यात्रा आज भी लोगों को खूब रोमांचित करती है. अगर आप फैमिली के साथ किसी ऐसी ही यात्रा पर निकलने का प्लान बना रहे हैं, तो विश्व धरोहर में शामिल शिमला, ऊटी, माथेरन, दार्जिलिंग के टॉय ट्रेन से बेहतर और क्या हो सकता है?

कालका-शिमला टॉय ट्रेन

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वैली हमेशा से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही है. लेकिन कालका-शिमला टॉय ट्रेन की बात ही कुछ और है. इसे वर्ष 2008 में यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. कालका शिमला रेल का सफर 9 नवंबर, 1903 को शुरू हुआ था. कालका के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए करीब 2076 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन शिमला पहुंचती है. यह दो फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर चलती है.

इस रेल मार्ग में 103 सुरंगें और 861 पुल बने हुए हैं. इस मार्ग पर करीब 919 घुमाव आते हैं. कुछ मोड़ तो काफी तीखे हैं, जहां ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है. शिमला रेलवे स्टेशन की बात करें, तो छोटा, लेकिन सुंदर स्टेशन है. यहां प्लेटफॉर्म सीधे न होकर थोड़ा घूमा हुआ है. यहां से एक तरफ शिमला शहर और दूसरी तरफ घाटियों और पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं.

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (टॉय ट्रेन) को यूनेस्को ने दिसंबर 1999 में वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. यह न्यू जलापाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है. इसके बीच की दूरी करीब 78 किलोमीटर है. इन दोनों स्टेशनों के बीच करीब 13 स्टेशन हैं. यह पूरा सफर करीब आठ घंटे का है, लेकिन इस आठ घंटे के रोमांचक सफर को आप ताउम्र नहीं भूल पाएंगे. ट्रेन से दिखने वाले नजारे बेहद लाजवाब होते हैं. वैसे, जब तक आपने इस ट्रेन की सवारी नहीं की, आपकी दार्जिलिंग की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

शहर के बीचों-बीच से गुजरती यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई, पहाड़ों में बसे छोटे -छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है. इसकी रफ्तार भी काफी कम होती है. अधिकतम रफ्तार 20 किमी. प्रति घंटा है. आप चाहें, तो दौड़ कर भी ट्रेन पकड़ सकते हैं. इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी आपको अंग्रेजों के जमाने की याद ताजा कराते हैं.

दार्जिलिंग से थोड़ा पहले घुम स्टेशन है, जो भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है. यह करीब 7407 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां से आगे चलकर बतासिया लूप आता है. यहां एक शहीद स्मारक है. यहां से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था. पहाड़ों की रानी के रूप में मशहूर दार्जिलिंग में पर्यटकों के लिए काफी कुछ है. आप दार्जिलिंग और आसपास हैप्पी वैली टी एस्टेट, बॉटनिकल गार्डन, बतासिया लूप, वॉर मेमोरियल, केबल कार, गोंपा, हिमालियन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट म्यूजियम आदि देख सकते हैं.

नीलगिरि माउंटेन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की तरह नीलगिरि माउंटेन रेल भी एक वल्र्ड हेरिटेज साइट है. इसी टॉय ट्रेन पर मशूहर फिल्म ‘दिल से’ के ‘ चल छइयां-छइयां’ गाने की शूटिंग हुई थी. आपको जानकर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है कि मेट्टुपालियम-ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है. यह लगभग 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है. कहीं-कहीं पर तो इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो जाती है. आप चाहें, तो आराम से नीचे उतर कर कुछ देर इधर-उधर टहलकर, वापस इसमें आकर बैठ सकते हैं. मेट्टुपालियम से ऊटी के बीच नीलगिरि माउंटेन ट्रेन की यात्रा का रोमांच ही कुछ और है. इस बीच में करीब 10 रेलवे स्टेशन आते हैं.

मेट्टुपालियम के बाद टॉय ट्रेन के सफर का अंतिम पड़ाव उदगमंदलम है. यह टॉय ट्रेन हिचकोले खाते हरे-भरे जंगलों के बीच से जब ऊटी पहुंचती है, तब आप 2200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुंच चुके होते हैं. मेट्टुपालियम से उदगमंदलम यानी ऊटी तक का सफर करीब 46 किलोमीटर का है. यह सफर करीब पांच घंटे में पूरा होता है. अगर इतिहास की बात करें, तो वर्ष 1891 में मेट्टुपालियम से ऊटी को जोड़ने के लिए रेल लाइन बनाने का काम शुरू हुआ था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस रेल मार्ग पर 1899 में मेट्टुपालियम से कन्नूर तक ट्रेन की शुरुआत हुई. जून 1908 इस मार्ग का विस्तार उदगमंदलम यानी ऊटी तक किया गया. देश की आजादी के बाद 1951 में यह रेल मार्ग दक्षिण रेलवे का हिस्सा बना. आज भी इस टॉय ट्रेन का सुहाना सफर जारी है.

नरेल-माथेरान टॉय ट्रेन

महाराष्ट्र में स्थित माथेरान छोटा, लेकिन अद्भुत हिल स्टेशन है. यह करीब 2650 फीट की ऊंचाई पर है. नरेल से माथेरान के बीच टॉय ट्रेन के जरिए हिल टॉप की जर्नी काफी रोमांचक होती है. इस रेल मार्ग पर करीब 121 छोटे-छोटे पुल और करीब 221 मोड़ आते हैं. इस मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होती है. माथेरान करीब 803 मीटर की ऊंचाई पर इस मार्ग का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. यह रेलवे की विरासत का एक अद्भुत नमूना है.

माथेरान रेल की शुरुआत 1907 में हुई थी. बारिश के मौसम में एहतियात के तौर पर इस रेल मार्ग को बंद कर दिया जाता है. पर मौसम ठीक रहने पर एक रेलगाड़ी चलाई जाती है. माथेरन का प्राकृतिक नजारा बॉलीवुड के निर्माताओं को हमेशा से आकर्षित करता रहा है.

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समर वेकेशन के लिए बेस्ट है दार्जिलिंग

गरमियां शुरू होते ही आपके बच्चे आपसे किसी हिल स्टेशन पर जाने की जिद्द तो जरूर करते होंगे. और आपके पास औप्शन भी बहुत होंगे घूमने के लिए. उन्ही जगहों में से एक है दार्जिलिंग. यह भारत के सबसे पौपुलर वेकेशन प्लेस में से एक है. दार्जिलिंग में कंचनजंगा पर्वत पर ट्रेकिंग करने और दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए अनगिनत चीजें हैं. दार्जिलिंग में दर्शनीय स्थलों की यात्रा के साथ साथ ऊंचे-उंचे पहाड़ भी हैं जो आपकी छुट्टियों को पूरा कर देंगे. और अगर आप गरमियों में दार्जिलिंग का प्लैन बनाएं तो यह प्लेस जरूर घूंमें…

आपका दिन बना देगा टाइगर हिल से सनराइज सीन

लगभग 2590 मीटर की ऊंचाई पर और दार्जिलिंग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित टाइगर हिल से सूर्योदय देखना रोमांचित कर देनेवाला अनुभव फोटोग्राफी के लिए परफेक्ट जगह है. भारत में जिन जगहों का सनराइज पौपुलर है उनमें से एक टाइगर हिल है. यहां से कंचनजंगा की चोटियों का मनोहर दृश्य आप इंजौय कर सकते हैं. फोटोग्राफी के लिए आपको यहां सीनरी और फ्रेम के भरपूर विकल्प मिलेंगे. टाइगर हिल पर बादलों के साथ मस्ती करना मजेदार रहता है.

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सबसे खूबसूरत रेलवे लाइन में एक है बस्तासिया लूप का रेलवे ट्रैक

बस्तासिया लूप का रेलवे ट्रैक दार्जिलिंग की सबसे खूबसूरत रेलवे लाइन कही जा सकती है. इसका अनूठा डिजाइन यहां का शानदार आकर्षण केंद्र है. यह ट्रैक एक पहाड़ी से सुरंग के माध्यम से निकलता है और फिर पहाड़ी को चारों ओर से यह ट्रैक घेरे हुए है. बस्तासिया लूप के सबसे करामाती पहलुओं में से एक है इसकी बेजोड़ नेचुरल सुंदरता.

टौय ट्रेन के नाम से मशहूर है दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, जिसे डीएचआर भी कहा जाता है, अपने सैलानियों को एक मजेदार सफर कराती है. इसकी ट्रेन को प्यार से ‘टॉय ट्रेन’ कहा जाता है. यह 2 फीट की नैरो गेज ट्रेन है, जो भारत के पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच चलती है. लगभग 88 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर सवारी करना कभी न भूलने वाला एक्सपीरिएंस होता है. वहीं पहाड़ियों और जंगल के आंखों के जरिए दिल में उतर जाते हैं.

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विशाल शिव प्रतिमा और म्यूजिकल फाउंटेन बढ़ाता है शोभा श्रुब्बेरी नाइटिंगेल पार्क  की

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दार्जिलिंग के मंत्रमुग्ध करने वाले नजारों के बीच नाइटिंगेल पार्क में चहलकदमी और आउटडोर गेम्स का अपना मजा है. यहां से कंचनजंघा पर्वतमाला के भव्य दृश्यों को देखने के मन बार-बार मचलता है. यहां पिकनिक का मजा लेना आपको ताजगी से भर देगा. इस पार्क का आर्किटेक्चर और बनावट शानदार है. नाइटिंगेल पार्क थोड़ी ऊंचाई वाले इलाके में है इसलिए आपको इस हरे-भरे मैदान में प्रवेश करने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़नी होंगी. इस पार्क में विशाल शिव प्रतिमा और म्यूजिकल फाउंटेन अलग ही दिव्यता प्रदान करते हैं.

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edited by- rosy

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