आजकल ट्रेड वाइफ बनने का चलन सुर्खियों में है. ट्रेड वाइफ यानी वह ट्रैडिशनल या पारंपरिक बीवी जिसे घर की जिम्मेदारी संभालना पसंद हो. यह चलन पश्चिमी देशों से शुरू हुआ है. जिस तरह 50 के दशक की महिलाएं घर में रह कर अपनी किचन के काम करने, बच्चों को संभालना और पति को खुश रखने में अपनी खुशी समझती थी वही दौर अब फिर से दोहराया जाने लगा है.
लेकिन यदि कोई महिला अपना कैरियर भी साथ में संभालना चाहती है, मगर दोहरी जिंदगी का तनाव सहतेसहते थक जाती है तो मजबूरन उसे अपने कैरियर के साथ सम?ाता करना पड़ता है जो कतई सही नहीं है क्योंकि 21वीं सदी के इस दौर में आज भी जब हम बात करते हैं महिलाओं के कामकाजी या गृहिणी होने के बारे में तो अधिकतर पुरुषों का रु?ान गृहिणी होने पर अधिक होता है और यदि कामकाजी होना भी बेहतर माना जाता है तो उस के लिए अच्छी गृहिणी होने का गुण सर्वप्रथम माना जाता है.
तभी गृहिणी एक बेहतर स्त्री होने का सम्मान मिलता है वरना समाज की नजरों में यह सम्मान पाने का उस का सपना सपना ही रह जाता है. कई बार महिलाएं ऐसी सोच के चलते अपना अच्छाखासा कैरियर छोड़ कर घर में रहना ही पसंद करती हैं क्योंकि वे दोहरी जिंदगी जीतेजीते ऊब जाती हैं. कठपुतली नहीं है औरत
एक पढ़ीलिखी महिला होने के बावजूद अधिकतर महिलाओं को अपने पति या ससुराल वालों के हाथों की कठपुतली बनते आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि शादी के बाद उन्हें कई चीजों के साथ सम?ाता करना पड़ता है और शादी के बाद उन का ध्यान खुद से हट कर अपनी गृहस्थी को संवारने में लग जाता है.
शादी से पहले जैसे खिलखिलाती चिरैया की तरह चहकते रहना उन्हें पसंद हुआ करता था वहीं अब वह हसीं सिर्फ मुसकराहट में बदल जाती है.
शादी के बाद कहीं भी आनेजाने से पहले सासससुर और पति की इजाजद लेना उन की मजबूरी बन जाती है. छोटी से छोटी बात में भी उन की मरजी जाननी पड़ती है. कोई भी निर्णय लेने के लिए वे उन सभी पर डिपैंड होने लगती हैं.
एक महिला अपना जैसे वजूद ही भूलने लगती है. यदि कोई महिला कामकाजी हो तो उस से उम्मीद की जाती है कि वह अपने काम के साथसाथ एक सफल गृहिणी का भी पूरा फर्ज अदा करे. यदि ऐसा करने में वह असफल हो जाए या वह पूरा समय अपने परिवार को न दे पाए तो उसे कई बार मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता है.
दांव पर कैरियर
शादी के बाद लड़की की प्राथमिकता उस के पति, सास, ससुर और बच्चों की खुशी बनने लगती है. वह उन की पसंद का खयाल रखती है. वह खुद से पहले परिवार की चिंता करती है. यहां तक कि औफिस और घर के कामकाज में सारा दिन खटने के बाद भी वह कई बार घर वालों की आलोचनाओं का सामना करतेकरते थक जाती है और अंत में अपने कैरियर के साथ समझता कर परिवार की खुशी को अपनी खुशी मानने लगती है और खुद को ट्रेड वाइफ के टैग से नवाजने लगती है.
असल में यह एक महिला की खुद की पसंद है कि उसे घर के कामों मे व्यस्त रह कर खुश रहना है या वह अपने कैरियर को संवारते हुए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करती है. मगर कई बार ट्रेड वाइफ बनना उस की मजबूरी बन जाती
है और मजबूरी अपने ग्रहस्थ जीवन को बेहतर बनाने की.
इसीलिए वह भी एक जिम्मेदारी निभा कर सुकून में रहना पसंद करने लगती है. उसे इस बात का कोई पछतावा भी नहीं होता क्योंकि वह इसी में खुश होती है. पहले जहां कैरियर को ले कर उत्सुकता बनी रहती थी वहीं अब उसे किट्टी पार्टियों या भजनकीर्तनों को समय देना रास आने लगता है.
अधिकतर घरों में आज भी शादी के बाद लड़कियों का यही हाल है. आज भी हमारे समाज में लड़कियों के लिए शादी समझौते का दूसरा नाम है.