लेखिका: साधना श्रीवास्तव
पिछले दिनों से थकेहारे घर के सभी सदस्य जैसे घोड़े बेच कर सो रहे थे. राशी की शादी में डौली ने भी खूब इंज्वाय किया लेकिन राजन की पत्नी बन कर नहीं बल्कि उस की मित्र बन कर.
अमेरिका में स्थायी रूप से रह रहे राजन के ताऊ धर्म प्रकाश को जब खबर मिली कि उन के भतीजे राजन ने आई.टी. परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो उन्होंने फौरन फोन से अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश को कहा कि वह राजन को अमेरिका भेज दे…यहां प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण के बाद नौकरी का बहुत अच्छा स्कोप है.
चंद्र्र प्रकाश भी तैयार हो गए और बेटे को अमेरिका के लिए पासपोर्ट, वीजा आदि बनवाने में लग गए. लेकिन उन की पत्नी सरोजनी के मन को कुछ बहुत अच्छा नहीं लगा. कुल 2 बच्चे राजन और उस से 5 साल छोटी 8वीं में पढ़ रही राशी. अब बेटा सात समुंदर पार चला जाएगा तो मां को कैसे अच्छा लगेगा. उस ने तो पति से साफ शब्दों में मना भी किया.
चंद्र प्रकाश ने पत्नी को समझाया, ‘‘बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए अमेरिका की शिक्षा बहुत उपयोगी साबित होगी और मांबाप होने के नाते कुछ त्याग हमें भी तो करना ही पड़ेगा. रही बात आंखों से दूर जाने की, तो साल में एक बार तो आएगा न.’’
राशी भी भाई के अमेरिका जाने से दुखी थी. आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘भैया, तुम इतनी दूर चले जाओगे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा. मैं रक्षाबंधन के दिन किसे राखी बांधूंगी? नहीं, तुम मत जाओ, भैया,’’ कहने के साथ ही राशी रो पड़ी.
राजन ने बहन को धैर्य बंधाया, ‘‘रोते नहीं राशी. मैं जल्दी आऊंगा और तेरे लिए खूब सारी चीजें अमेरिका से लाऊंगा. रही राखी की बात, तो वह थोड़ा पहले भेज दिया करना…मैं ताऊ की लड़की से बंधवा लूंगा…फिर उस दिन अपनी प्यारीप्यारी बहन से फोन पर बात भी करूंगा.’’
बहरहाल, सब को समझाबुझा कर, खास लोगों से मिल कर राजन निर्धारित समय पर अमेरिका चला गया. वहां उस को ताऊजी के पास अच्छा लगा. परिवार के सभी सदस्यों का बातव्यवहार उस के साथ बिलकुल अपनों जैसा ही था.
मां का पत्र अकसर आ जाता…कभीकभी राशी का पत्र भी उस में रहता. मां तो बारबार यही लिखतीं कि तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता. घर सब तरफ से सूनासूना लगता है.
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अमेरिका में प्रशिक्षण पूरा होते ही एक कंपनी ने राजन का चयन कर लिया. तो ताऊजी ने खुशीखुशी अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश और सरोजनी को राजन के नौकरी पर लगने की सूचना भेजी. साथ में यह भी बताया कि जल्द ही वह 1 माह का अवकाश ले कर भारत जाएगा.
राजन को अमेरिका में नौकरी मिलने का समाचार सुन कर सरोजनी को तनिक भी अच्छा नहीं लगा. क्या अपने देश में उसे नौकरी नहीं मिलती? क्या हर भारतीय युवक का भविष्य विदेश में ही जा कर संवरता है? राशी भी दुखी हुई. बड़ी उम्मीद लगा रखी थी कि अब भैया के आने के दिन आ रहे हैं.
राजन जिस आफिस में काम करता था उस में इटली की डौली नाम की एक लड़की रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करती थी. डौली शक्लसूरत से बेहद आकर्षक थी. डौली की एक खासियत यह भी थी कि यदि वह पाश्चात्य पहनावे में न हो तो चेहरे से बिलकुल भारतीय लगती थी.
एक ही आफिस में साथसाथ काम करने, आनेजाने पर आपस में बातचीत से राजन और डौली एकदूसरे से काफी प्रभावित हुए. बाद में वे एकदूसरे की चाहत व पसंद बन गए, लेकिन बिना बड़ों की आज्ञा के राजन ऐसा कोई कदम उठाने के पक्ष में नहीं था जिस से उस के व परिवार के सम्मान को ठेस पहुंचे.
डौली के साथ अपनी दोस्ती के बारे में ताऊजी को बताने के साथ ही राजन ने यह भी कहा कि हम एकदूसरे क ो पसंद करते हैं और विवाह भी करना चाहते हैं.
भतीजे की इच्छा को खुशीखुशी स्वीकार करते हुए धर्म प्रकाश ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिताजी को सूचित करता हूं और उन से कहूंगा कि शादी की कोई तारीख तय कर लें.’’
चंद्र प्रकाश और सरोजनी को जब राजन के प्रेम और शादी का पता चला तो दोनों को बेटे का यह कदम अखर गया. उन्होंने बड़े भाई से साफ शब्दों में कह दिया कि राजन वहां किसी लड़की से विवाह करने का विचार छोड़ दे, क्योंकि उस के इस तरह विवाह करने से उस की बहन की शादी में अड़ंगा खड़ा हो सकता है. और यदि वह नहीं मानता है तो कम से कम अपनी शादी की खबर भारत में किसी को न दे.
मातापिता की बात से राजन को अपनी गलती का एहसास हुआ. अभी तक उस के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि अंतर्जातीय विवाह, वह भी ईसाई लड़की से करने के कारण बहन की शादी में रुकावट आ सकती है.
इस के बाद राजन ने फोन पर कई बार घर पर सब से बात की, उन का हालचाल पूछा लेकिन अपने विवाह से संबंधित कोई बात न तो उस ने छेड़ी और न मातापिता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया हुई.
राजन की नौकरी लगे अब 1 साल हो गया था. उस के मन में भारत आने और मातापिता से मिलने की बड़ी इच्छा हो रही थी. वह दफ्तर में 1 माह के अवकाश का आवेदन कर भारत जाने के प्रबंध में लग गया. एअरटिकट मिलते ही राजन ने भारत फोन कर के मां को बताया कि वह फलां तारीख को भारत आ रहा है.
राजन घर पहुंचा तो दबे मन से ही सही पर सब ने उस का स्वागत किया. राजन को कुछ ही सालों में सबकुछ बदलाबदला सा लग रहा था. मां पहले से कुछ कमजोर दिख रही थीं. पिताजी के बाल आधे सफेद हो गए थे और राशी? वह तो कितनी बड़ी लग रही थी. उस के सिर पर हाथ रख कर राजन ने स्नेह से कहा, ‘‘कितनी बड़ी हो गई, राशी तू? तेरे लिए ढेरों चीजें ले आया हूं.’’
राशी कुछ नहीं बोली लेकिन मां ने कहा, ‘‘अब इस के विवाह की चिंता है. जल्दी कहीं बात बन जाती तो कर के हम जिम्मेदारी से मुक्त हो लेते.’’
मां की बात सुन कर राजन को लगा कि मां उस पर कटाक्ष कर रही हैं, फिर भी राजन ने हंस कर राशी से कहा, ‘‘कहीं पसंद किया हो तो बता दे, राशी… पिताजी का ढूंढ़नेभागने का समय बच जाएगा.’’
राशी ने पलट का जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं, भैया, जो घर वालों की इच्छा के खिलाफ जा कर विवाह रचा लूं.’’
बहस बढ़ती देख कर मां ने दोनों को रोका और राशी से बोलीं, ‘‘बहस बंद कर और जा भाई के लिये चायनाश्ते का प्रबंध कर.’’
सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने राजन से उस की अमेरिका में की हुई शादी के बारे में कोई बात नहीं की. वे लोग बिलकुल नहीं चाहते थे कि इतने सालों बाद बेटा घर आया है तो कोई तकरार हो. लेकिन राजन ने खुद ही बात छेड़ कर मातापिता को अपने द्वारा लिए निर्णय से अवगत कराते हुए कहा, ‘‘मां, आप कैसे सोचती हैं कि आप लोगों की इजाजत लिए बिना मैं अपनी शादी रचा लेने का साहस कर लेता…इस से तो आप लोगों की प्रतिष्ठा और ममता का अपमान होता. मैं ने निश्चय कर लिया है कि बहन की शादी के बाद ही मैं अपने विवाह के बारे में विचार करूंगा.’’
सरोजनी और चंद्र प्रकाश को बेटे की बात से बड़ी राहत मिली. उन्हें ऐसा लगा जैसे सिर पर लदा कोई बहुत बड़ा बोझ हट गया हो.
1 माह भारत में रह कर राजन अमेरिका वापस आ गया और पहले की तरह जीवन में भागदौड़ फिर शुरू हो गई. देखते ही देखते डेढ़ वर्ष कैसे गुजर गया पता ही न चला. एक दिन मां का फोन आया कि राशी की शादी तय हो गई है. लड़के का परिवार बेहद संभ्रांत है. विवाह की तारीख तय नहीं हुई है…जैसे ही तय होगी. मैं दोबारा तुझे सूचित करूंगी. तुम कम से कम 15 दिन पहले भारत जरूर आ जाना…सारा प्रबंध तुम्हें ही करना है.
शादी की तारीख का पता चलते ही राजन भारत आने की तैयारी में लग गया. राजन ने पहले ही डौली को अपनी परिवारिक समस्याओं से अवगत करा दिया था. डौली ने भी सोचा कि जब राजन के परिवार की समस्या हल हो जाएगी तभी वह विवाह बंधन में बंधेगी.
अब जब राशी की शादी तय होने की सूचना डौली को मिली तो उस ने राजन के साथ जा कर अपनी पसंद का मेकअप का सामान, कई सुंदर साडि़यां और कुछ स्वर्णाभूषण राशी के लिए खरीदे. डौली की इच्छा थी कि वह भी भारत जाए…राशी की शादी देखे. राजन ने उस की इस इच्छा को सहज भाव से मान भी लिया.
विवाह तय होने के बाद से ही सरोजनी को बेटी के बातव्यवहार में बदलाव सा महसूस होने लगा था. हमेशा खुश रहने वाली राशी अब चुपचाप व खोईखोई सी लगती थी. शादी की बात चलते ही वह नाकभौं सिकोड़ कर चली जाती तो सरोजनी ने इसे लड़कियों का स्वाभाविक संकोच मान लिया.
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राशी सगाई की रस्म के लिए भी बड़ी मुश्किल से तैयार हुई थी, जबकि इस रस्म के समय जिस ने भी राशी और विशाल को एकसाथ देखा, भूरिभूरि प्रशंसा की.
गोद भराई की रस्म के दूसरे दिन सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने राजन को सूचना भेज दी और उस के आने की प्रतीक्षा के साथसाथ विवाह की छिटपुट तैयारी में भी लग गए.
इधर बराबर राशी को परेशान और चिंतित देख कर सरोजनी ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, बेटी, आजकल तुम बहुत परेशान सी दिखती हो…तबीयत तो ठीक है?’’
मां की बात सुन कर राशी चाैंक सी गई…जैसे उस की कोई चोरी पकड़ ली गई हो, फिर भी अपने को संयत कर सहज आवाज में बोली, ‘‘नहीं, मां…कोई ऐसी बात नहीं है. बस, आजकल सिर में हलकाहलका दर्द बना रहता है…’’
‘‘तो चलो, किसी डाक्टर को दिखा कर दवा ले आते हैं,’’ मां बोली थीं, ‘‘अधिक दिनों तक सिरदर्द का बना रहना ठीक नहीं है.’’
‘‘नहीं, मां…इतना तेज दर्द नहीं है कि डाक्टर के यहां जाने या दवा लेने की जरूरत पडे़…अपनेआप ठीक हो जाएगा,’’ राशी ने मां की बात को टालते हुए कहा.
यद्यपि कई बार राशी के मन में आया कि वह अपनी समस्या से मां को अवगत करा दे, लेकिन तभी दूसरी तरफ मन विरोध भी जाहिर करता, ‘तुम्हारा सोचना तो ठीक है लेकिन यह निश्चित है कि उस के बाद तुम्हारी आकांक्षा पूर्ण न हो सकेगी,’ और मन के इस दोहरे तर्क पर राशी जहां की तहां थम जाती.
विवाह के कुल 15 दिन शेष बचे थे. उस दिन शाम तक राजन को भी आना था. राशी को लगा कि राजन के आने से पहले उसे अपना काम कर लेना चाहिए अन्यथा भैया के आ जाने पर रुकावट पड़ सकती है. भयग्रस्त मन से ही पर दूसरे दिन दोपहर तक अपना काम पूरा कर लेने का प्रबंध राशी ने कर लिया था.
कोर्ट मैरिज के लिए उस दिन साढे़ 10 बजे के आसपास पूरे इंतजाम के साथ राशी और अरशद अपने दोस्तों के साथ कोर्ट में पहुंचे पर संयोग कुछ ऐसा बना कि उस दिन अदालत में हड़ताल हो गई और हड़ताल कब तक चलेगी यह भी पता न चल सका. राशी निराश हो कर घर लौट आई और दुखी मन से अपने कमरे में जा कर औंधे मुंह पलंग पर पड़ गई.
राजन की फ्लाइट 9 बजे ही आ गई थी पर वह डौली का इंतजाम करने में लग गया. सब से पहले तो उस ने डौली को एक अच्छे से होटल में ठहराया क्योंकि उस ने पहले ही सोच रखा था कि डौली के भारत आने की खबर वह राशी की शादी से पहले किसी को नहीं देगा. उस के रहने और सुरक्षा का पूर्ण प्रबंध कर राजन घर आया.
बंगले के दरवाजे के अंदर अभी वह अपना सामान रखवा ही रहा था कि राशी की सहेली ताहिरा आ गई. ताहिरा ने उसे पहचान कर आदाब किया फिर घबराई आवाज में बोली, ‘‘भाईजान, आप से कुछ जरूरी बात करनी है,’’ और इसी के साथ राजन को खींच कर आड़ में ले गई तथा बिना किसी भूमिका के उस ने वह सब राजन को बता दिया, जिसे अब तक राशी घर वालों से छिपाती आ रही थी. ताहिरा ने राजन को बताया कि मेरी सहेली होने के नाते राशी अकसर मेरे घर आती रहती थी. मेरे बडे़ भाई अरशद, जो डाक्टर हैं, से राशी का प्रेम काफी दिनों से चल रहा था…यह बात तो मुझे पता थी. लेकिन वे दोनों शादी करने पर आ जाएंगे…यह मुझे आज ही पता चला है जब दोनों कोर्ट से निराश हो कर लौटे हैं.
थोड़ा सा रुक कर ताहिरा ने साफ कहा, ‘‘यकीन मानिए भाई साहब, उन दोनों के शादी करने की बात का पता मुझे अभी चला है. अत: आप सभी को बता कर आगाह करना मैं ने अपना कर्तव्य समझा है. इतना अच्छा दूल्हा और इतने हौसले से किया जा रहा सारा इंतजाम, अगर आज उन की शादी कोर्ट में हो गई होती तो सब मटियामेट हो जाता. यह तो अच्छा हुआ कि अदालत में हड़ताल हो गई. आप सब बदनामी से अपने को बचा लें यही सोच कर मैं इस समय आप को सूचित करने आई हूं. अब आप को ही सब कुछ संभालना होगा, राजन भाई. हां, इतना जरूर ध्यान रखिएगा कि मेरा कहीं नाम न आए.’’
इतना बताने के बाद ताहिरा जिस तेजी के साथ आई थी उसी तेजी के साथ वापस चली गई.
ताहिरा से मिली सूचना से राजन को जैसे काठ मार गया. वह सोचने लगा कि आज यदि सचमुच वह सब हो गया होता जो ताहिरा ने बताया है तो मांपिताजी की क्या हालत होती. शायद उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो जाता. शायद दोनों आत्मसम्मान के लिए आत्महत्या भी कर लेते पर शुक्र है कि यह अनहोनी होने से पहले ही टल गई. अब मैं राशी को समझा लूंगा, इस विश्वास के साथ राजन ने घर के अंदर प्रवेश किया.
सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने मुसकरा कर बेटे का स्वागत किया. मां ने अधिकार के साथ सहेजा, ‘‘बेटा, आ गया तू, अब सबकुछ तुझे ही संभालना है.’’
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‘‘हां…हां…मां. अब आप लोग निश्ंिचत रहिए, मैं सब संभाल लूंगा. पर मां, राशी कहां है…दिखाई नहीं पड़ रही.’’ राजन ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए पूछा.
‘‘अपने कमरे में होगी…आवाज दूं?’’
‘‘रहने दो, मां,’’ राजन बोला, ‘‘बहुत दिन से उस का कान नहीं उमेठा है,’’ कहते हुए राजन राशी के कमरे में पहुंचा. भाई को आया देख कर चेहरे पर बनावटी हंसी बिखेरती राशी उठ खड़ी हुई.
राजन ने गर्मजोशी के साथ पूछा, ‘‘ठीक है, राशी? अच्छा बता, तू ने हमारे होने वाले जीजाजी से इस दौरान बात की थी या नहीं?’’
राजन यह कहते हुए वहीं राशी के करीब बैठ गया. अनेक प्रकार की इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने राशी से पूछा, ‘‘सच बताना राशी, यह शादी तेरी पसंद की तो है?’’
राशी चाैंकी…राजन भैया ऐसा क्यों पूछ रहे हैं… क्या उन्हें मेरे बारे में कुछ पता चल गया है? राशी सावधानी से अपने को सहज बनाती हुई धीमी आवाज में बोली, ‘‘हां, भैया, पसंद है…लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’’
‘‘मुझ से झूठ मत बोल, राशी. यदि यह शादी तुझे पसंद है तो तू आज दोपहर में कहां गई थी?’’ राजन की आवाज में तल्खी थी.
राशी को तो मानो काटो तो खून नहीं…जरूर भैया को सब बातों की जानकारी हो गई है…लेकिन वह कुछ बोली नहीं. राजन ने फिर कहा, ‘‘खुद सोच कर देख राशी कि मुसलमान लड़के से शादी…’’
भाई की बात को बीच में काट कर राशी व्यंग्यात्मक आवाज में बोली, ‘‘भैया, क्या आप ने ईसाई लड़की से शादी नहीं की, जो आप मुझे सबक दे रहे हैं?’’
‘‘तुझे मेरे बारे में गलत पता है राशी. मैं ने शादी नहीं की है. मां ने शायद तुझे बताया नहीं. तुम्हारी शादी में कोई रुकावट खड़ी न हो इस के लिए मैं ने अपनी मनचाही शादी रोक दी. और अब तुम्हारे विवाह के बाद भी जो कुछ करूंगा मांपिताजी की आज्ञा व इच्छा के अनुसार ही करूंगा,’’ इतना कह कर राजन चुप हो गया और फिर नाश्ता करने व घर में काम देखने के लिए चला गया.
राशी को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि राजन भैया ने अभी तक विवाह नहीं किया सिर्फ उस के लिए, लेकिन मां ने तो उस से कभी इस बारे में कोई जिक्र ही नहीं किया. वह अपने बड़े भाई से कहे शब्दों की आत्मग्लानि से छटपटाने लगी.
रात में राजन फिर उसे समझाने उस के कमरे में आया तो राशी ने सबसे पहले अपने दिन के व्यवहार के लिए भाई से माफी मांगी फिर दुखी मन से भारी आवाज में बोली, ‘‘भैया, मैं और अरशद एकदूसरे को बहुत चाहते हैं…इस हालत में तुम्हीं बताओ, शादी न करने की बात कैसे मेरी समझ में आए.’’
‘‘तेरी बात अपनी जगह ठीक है, राशी. लेकिन ऐसा कदम उठाते समय तुझे यह ध्यान नहीं आया कि मम्मीपापा को तेरे इस कदम से कितना बड़ा सदमा पहुंचेगा?’’
‘‘भैया,’’ आंसू भरी नजरों से भर्राए स्वर में राशी बोली, ‘‘मुझे सबकुछ पता था और मैं इस बारे में सोचती भी थी पर पता नहीं अरशद को देखने के बाद मुझे क्या हो गया कि मैं प्यार भी कर बैठी और घर से विद्रोह करने पर उतारू हो गई…’’
राशी की बात बीच में ही काटते हुए राजन बोला, ‘‘होता है, राशी…प्यार में ऐसा ही सबकुछ होता है. पर देख मेरी बहना, अभी समय है.. मांपिताजी को इतना बड़ा सदमा न दे कि वे झेल ही न पाएं. अपने मन पर तू नियंत्रण रख कर डाक्टर अरशद को भुलाने की कोशिश कर जो सपना मांपिताजी ने तुझे तेरी शादी को ले कर देखा है उसे पूरा होने दे…बहन, इसी में इस परिवार व हम सब की भलाई है,’’ इतना कहतेकहते राजन की आंखें भी भर आईं.
‘‘एक बात और है राशी,’’ राजन बहन के प्रति आशान्वित हो कर बोला, ‘‘जैसे सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो वह भूला नहीं कहलाता, बस, यही कहावत मुझे प्यारी बहन पर भी लागू हो जाए. मेरी बस, तुझ से यही उम्मीद है. यह भी तुझे ध्यान में रखना होगा राशी कि यह राज की बात हमेशा राज ही बनी रहे.’’
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राशी ने स्वीकृति में गरदन हिला दी, जैसे भाई की बात उस की समझ में अच्छी तरह से आ गई है. अभी तक राशी ने इतनी गहराई से बिलकुल नहीं सोचा था…सचमुच मां इतना बड़ा सदमा शायद ही झेल पातीं और इस के आगे राशी कुछ न सोच सकी. और अगले ही पल भाई की गोद में आंसुओं से तर चेहरा छिपा लिया.
राजन ने भी झुक कर तृप्तमन से बहन का सिर चूम लिया. राजन को लगा कि वह समय से आ गया… तो सबकुछ ठीक हो गया, यदि 1-2 दिन की भी देरी हो जाती तो सबकुछ बिगड़ कर कोई बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा.