मिथिला आर्ट को दुनियाभर में चर्चित किया : डा. रानी झा

Dr. Ranji Jha : रानी  झा मिथिला फोक आर्टिस्ट व स्कौलर हैं. उन्होंने कई महिलाओं को आर्ट सिखाया और उन्हें सशक्त बनाया. उन्हें जानने वाली महिलाएं उन से प्रेरणा लेती हैं. 20 मार्च को गृहशोभा इंस्पायरिंग अवार्ड में उन के साथ बातचीत की गई.

कौटन साड़ी, माथे पर बिंदी, आम भारतीय वेशभूषा में 20 मार्च को गृहशोभा इंस्पाइरिंग अवार्ड में शामिल हुईं रानी  झा भारत की उन करोड़ों महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही थीं जिन का जीवन कड़े संघर्षों से बीता है मगर उन्होंने हार नहीं मानीं. यही कारण भी था कि उन के उल्लेखनीय काम के लिए उन्हें गृहशोभा फोक हैरिटेज अवार्ड से सम्मानित किया गया.

रंग लाई मेहनत

उन्होंने कहा, ‘‘मैं लगभग 45 सालों से मधुबनी आर्ट कर रही हूं. मेरी दादी, दीदी भी यही करती थीं. मैं ने उन्हीं से सीखा है. गांव में कोई छोटाबड़ा फंक्शन होता है तो यह आर्ट किया जाता है. आज से 50 साल पहले तक लड़कियों की शादी की मैरिट उस के ‘लिखिया’ (मधुबनी आर्ट) आने को ले कर माना जाता था और भगवती का गीत आता है या नहीं यह पूछा जाता था. यह हर लड़की सीखती थी कम या ज्यादा. मु झे ज्यादा उत्सुकता थी. मैं ने अपनी चचेरी दादी (बिंदु देवी) से यह सीखा. मेरी अपनी दादी भी बहुत बड़ी मधुबनी कलाकार थीं. उन की बनाई पेंटिंग का फोटोग्राफ ब्रिटिश लाइब्रेरी, लंदन में लगा है.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘मेरा स्कूल ही मेरी दादी, नानी, मामी हुआ करती थीं. जैसे भूमिचित्र में चावल के घोल से उंगलियों को कैसे घुमाया जाता है, यह सीखने के लिए मैं अपनी चचेरी दादी के पास बैठती थी. यही मेरा ककहरा था. परिवार की सारी महिलाएं एकसाथ ये चित्र बनाया करती थीं.’’

रानी  झा ने 2010 में एलएमएनयू दरभंगा से मिथिला पेंटिंग और लिटरेचर में महिलाओं का योगदान में पीएचडी की. उन्होंने अपने आर्ट को और गहराई तक समझने और महिलाओं के प्रति ज्यादा जवाबदेह बनाने के चलते अपनी पीएचडी की. कोई भी आर्ट बिना सोशल मैसेज के खोखला लगता है. देशदुनिया में जितने भी कलाकार उभरे हैं उन्होंने सामाजिक संदेशों को अपने आर्ट के केंद्र में रखा और रानी  झा भी इन्हीं में से रहीं.

चित्र के माध्यम से अपनी बात

वे कहती हैं, ‘‘2004 तक मैं पारंपरिक चित्र बनाती थी लेकिन मेरे मन में महिलाओं को ले कर कई सवाल उठने लगे जैसे क्यों लड़कियों को कोख में मार दिया जाता है, क्यों हम धड़ल्ले से दरवाजे पर नहीं जा सकते, क्यों पढ़ाई से रोका जाता है, इन छटपटाहटों को मैं ने अपने चित्रों में दिखाने की कोशिश की.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं समाज के जो भी मुद्दे उठाती हूं पहले उसे लिखती हूं, फिर गाती हूं मंचों से, फिर चित्र बनाती हूं.’’

डिसीजन मेकिंग

रानी  झा का मानना है कि जो काम महिला उत्थान के लिए सरकार नहीं कर पाई वह मधुबनी आर्ट ने किया. उन्होंने कहा, ‘‘सरकार की कोई भी स्कीम इतनी सफल नहीं हुई जितनी मिथिला पेंटिंग महिलाओं के लिए सफल हुई. मिथिला पेंटिंग ने महिलाओं का सशक्तीकरण किया. ये पेंटिंग महिलाएं बनाती हैं, उन की पेंटिंग्स बाजारों में बिकती हैं और उन्हें अपने आर्ट की कीमत पता चली है, अपनी कीमत पता चली है.

‘‘आज हम घर की कमाऊ सदस्य बन गईं, घर में हमारा महत्त्व बढ़ गया, डिसीजन मेकिंग में हमारा रोल बढ़ गया. कभी हमें इग्नोर किया जाता था निर्णय लेने में, अब हम निर्णय लेने लगी हैं. मिथिला की बहुत सारी महिलाएं इस के दम पर अपना घर चला रही हैं, बच्चों को पढ़ा रही हैं, देशविदेश जा रही हैं और पद्मश्री ले रही हैं.’’

यह आर्ट और महिलाओं तक कैसे पहुंचे इस के लिए उन्होंने बताया कि सरकार को कलाकारों तक सीधे पहुंचना चाहिए, पूरी पारदर्शिता होनी चाहिए. सरकार कर रही है

मगर थ्योरी पर काम नहीं कर रही. चित्र तो बन रहे हैं मगर जरूरी है कि लिटरेचर को डैवलप किया जाए.

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