रेप पर हल्ला, ‘लड़कियों का जीना हो रहा है मुश्किल’

कोलकाता में महिला डाक्टर के साथ रेप और मर्डर के बाद देशभर में हड़कंप मच गया. न्यूज चैनल हो या सोशल मीडिया, हरकोई इस मामले को ले कर अपनी राय दे रहा है. कोई मैसेज के जरीए, कोई कविता के जरीए, तो कोई प्रदर्शन कर के.

यों यह मामला सालोसाल तक चलेगा. लेकिन इस के बाद भी रेप होना बंद नहीं होने होने वाला. कोलकाता में 9 अगस्त, 2024 को जो सनसनी घटना सामने आई, उसे देखसुन कर सब का दिल सहम गया. रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन आरजी अस्पताल के सैमिनार हौल के अंदर एक लेडी महिला डाक्टर का शव मिला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद यह पता चला कि मर्डर करने से पहले लेडी डाक्टर का रेप किया गया था.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबित, रेप पीड़िता का रेप किया गया था. उस के गुप्तांगों पर भी चोट के निशान थे और फिर उस की हत्या कर दी गई थी.

इस रेप मर्डर केस का आरोपी संजय राय ने कबूल किया है कि उस ने पहले डाक्टर के साथ रेप किया और फिर उस की हत्या कर दी. खबरों के अनुसार उस ने यह भी बताया कि पीड़िता लगातार चिल्ला रही थी, इसलिए उस ने उस का गला दबा कर तब तक रखा जब तक उस ने दम नहीं तोड़ा.

तो लड़कियां काम करना छोङ दें

हमारे देश की लड़कियां आमतौर पर सुरक्षित नहीं हैं. कोलकाता रेप मामले के बाद लड़कियों को ले कर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. मसलन लङकियों को नाइट शिफ्ट में काम नहीं करना चाहिए, रात में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए… वगैरह.

मगर सवाल यह है कि क्या हौस्पिटल में नाइट ड्यूटी लगनी बंद हो जाएगी? यह कभी नहीं हो सकता, तो क्या लड़कियां काम करना छोड़ दें? यह भी नामुमकिन है, तो फिर इस गंभीर मामले को ले कर इतना हल्ला क्यों मचाना?

पता नहीं ये कौन से लोग हैं, जो सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर रेप जैसे संगीन मामले को ले कर लड़कियां और उन के मातापिता के मन में खौफ पैदा करते हैं कि लड़कियां घर में कैद हो जाएं, उन के पेरैंट्स उन्हें घर से बाहर न निकलने दें.

यह किस की साजिश है

लोग अनावश्यक इस मुद्दे पर होहल्ला मचा कर लड़कियों के हक और उन के फ्रीडम को दबा रहे हैं, क्योंकि वे कहीं बाहर जाने से डरती हैं. जितना ज्यादा इस मामले पर हल्ला मचाया जाएगा लड़कियां कमरे में कैद रहेंगी.

डर और क्राइम 2 अलगअलग चीजें होती हैं. कई बार सुनी हुई बातों के कारण भी मन में डर बैठ जाता है. ऐसे में क्या ऐसे लोगों ने यह कभी सोचा है कि रेप को ले कर जो बातें समाने आ रही हैं उस से लड़कियों के दिमाग पर क्या असर पड़ता होगा?

निर्भया कांड की आंच

निर्भया कांड को आज भी कोई नहीं भूल पाया होगा. यह हादसा साल 2012 में हुआ था. यह हैवानियत चलती बस में हुई थी. 8 साल तक निर्भया के मातापिता ने यह लड़ाई लड़ी. इस के बाद दोषी को फांसी की सजा दी गई.

12 साल पहले 16 दिसंबर, 2012 को उस रात जो घटना घटी उस से सब का दिल दहल गया. उस रात जब एक पैरा मैडिकल की छात्रा अपने दोस्त के साथ मूवी देख कर घर लौट रही थी, तो दोनों एक ही बस में सफर कर रहे थे. उस बस में ड्राइवर सहित 6 लोग थे. बस दूसरे रूट पर चलने लगी और उस में मौजूद लोगों ने दरवाजे व खिड़कियां बंद कर दिए. इस पर लड़की के दोस्त ने ऐतराज जताया। बस फिर क्या था, बस में मौजूद लोगों ने उस के साथ जम कर मारपीट शुरू कर उसे अधमरा कर दिया.

चलती बस में हैवानों ने निर्भया के साथ गैंगरेप किया और उस के प्राइवेट पार्ट में लोहे की रौड डाल दी. इस से लड़की की आंतें तक फट गई थीं. इस दर्द भरी हैवानियत के बाद अपराधियों ने चलती बस से दोनों को सड़क किनारे फेंक दिया और भाग गए.

एक राहगीर ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी. जिंदगी और मौत से जूझती हुई लड़की ने 29 दिसंबर की रात दम तोड़ दिया.

दिल्ली की सड़कों पर विरोधप्रदर्शन कई महीनों तक जारी रहा. हरकोई गुस्से में था, आखिर ऐसी हैवानियत कोई कैसे कर सकता है. इस घटना के बाद कानूनी सुधार और यौन हिंसा को कम करने के लिए कई तरह के नियम लागू किए गए. लेकिन फिर भी लड़कियां सुरक्षित नहीं हुईं और रेप के मामले बढ़ते ही गए. हां, इस घटना का फर्क पड़ा तो बस यही कि लड़की को रात में किसी लड़के के साथ नहीं घूमने जाना चाहिए, छोटे ड्रैस नहीं पहनना चाहिए वगैरहवगैरह. क्या रेप के डर से लड़की जीना छोड़ दे, वह बाहर न निकले?

इन मामलों पर शोशेबाजी कर न सिर्फ लड़कियों को घर में बंद करने की साजिश रची जाती है, उन पर कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी जाती हैं. बेमतलब का होहल्ला मचा कर लङकियों का जीना मुश्किल कर देना कहां तक उचित है?

आज भी याद है 1978 की वह घटना

साल 1978 में ऐसे ही एक घटना की वजह से पूरी दिल्ली दहशत में आ गई थी. रंगा और बिल्ला नाम के कुख्यात अपराधियों ने 2 भाईबहनों को किडनैप किया था. साल 1978 में नौसेना के अधिकारी मदन चोपड़ा के बच्चे गीता और संजय थे. उस समय उन की उम्र काफी कम थी. गीता की उम लगभग 16 साल थी, तो वहीं संजय की उम्र 14 साल थी. इस घटना में बहन का रेप एक भाई के सामने किया गया था और फिर दोनों की बेदर्दी से हत्या कर दी गई थी.

जब इस मामले की जानकारी सामने आई तो पूर देश दहल गया था. कई सालों तक इस घटना पर चीखनाचिल्लाना हुआ, लेकिन हत्या और रेप के मामले में कुछ खास सुधार नहीं किए गए.

ये हादसे पहले भी हो चुके हैं और इस पर खूब होहल्ला भी मचाया जाता है. मगर परिणाम यही निकलता है कि लड़कियों को पहनावे पर ध्यान देना चाहिए, रात में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. दरअसल, लोगों को लगता है कि हल्ला मचा कर रेप के मुद्दे को दबाया जा सकता है. लेकिन सचाई यही है कि इस से लड़कियों के मन में डर बैठता है और वे कहीं अकेले बाहर जाने से भी कतराती हैं. अलबत्ता, कोई पुरुष मदद करने के लिए आगे आता भी है, तो इसे भी शक की निगाहों से ही देखा जाता है.

रेप दिखावे का प्रदर्शन क्यों ? ‘बेकार है न्याय की उम्मीद’

बलात्कार समाज का एक वह घिनौना सच है जो हमारे समाज में पौराणिक, ऐतिहासिक काल से ले कर आधुनिक काल तक फलफूल रहा है. जहां एक ओर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से बच्ची से ले कर जवान और बूढ़ी औरत तक शोषित हो कर शारीरिक और मानसिक पीड़ा सह कर घायल और छलनी हो जाती है, वहीं दूसरी ओर जानवररूपी आदमी किसी लड़की का बलात्कार करने को ले कर या तो इसे मर्दानगी का नाम देते हैं या फिर शारीरिक भूख को शांत करने की हवस.

असल में तो आदमी के रूप में छिपे ऐसे भेड़िए को जानवर कहना भी गलत होगा क्योंकि ऐसा घिनौना काम जानवर भी नहीं करते. ज्यादातर देखा गया है कि जानवर छोटे बच्चे पर वार नही करते. लेकिन इंसान के रूप में जानवर से भी बदतर बलात्कारी छोटी बच्चियों तक का बलात्कार करने से भी बाज नहीं आते.

बेकार है न्याय की उम्मीद

बलात्कार नामक यह दीमक सिर्फ समाज में ही नहीं, घरघर में घुसा हुआ है। कभी करीबी रिश्तेदार के रूप में तो कभी गुंडेमवाली या भ्रष्ट नेता या भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के रूप में. कई बार गैंगरैप करने वाले गुनहगार सजा नहीं पा पाते क्योंकि बलात्कारी का कनैक्शन किसी बड़े नेता, अभिनेता या बड़े पुलिस अधिकारियों तक होता है. ऐसे में अपराधी को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है क्योंकि बलात्कार पीड़ित लड़की या औरत कानूनी तौर पर अगर गुनहगार को सजा दिलाना भी चाहे तो कोर्ट का फैसला आने तक उस को सालों रुकना पड़ता है और हर डेट पर सब के सामने उसी बलात्कार की चर्चा बारबार होने के तहत बेइज्जत और शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.

गौरतलब है कि अगर कोई लड़की बलात्कार के दौरान मर जाती है तो उस को शहिद का दरजा दे दिया जाता है. उस के लिए कैंडल जलाई जाती है, मोरचा निकाला जाता है. उस को बहादुर लड़की होने तक का खिताब दिया जाता है. वहीं दूसरी और अगर कोई लड़की बलात्कार के बाद जीवित रह जाती है तो उसे पूरी तरह गुनहगार माना जाता है और उसे समाज में और खुद उस के ही घरपरिवार में गुनहगार की नजरों से देखा जाता है. न तो ऐसी लड़की की शादी हो पाती है और न ही कोई उस को कोई सच्चे मन से स्वीकार करता है. यह बहुत दुख की बात है लेकिन कड़वा सच भी है.

अछूत नहीं होती पीङिता

हर साल कोई न कोई बड़ा हादसा किसी मासूम लड़की के दर्दनाक बलात्कार से जुड़ा लोगों के सामने आता है. उस के बाद जम कर विरोध होता है, मोमबत्ती ले कर कई सारी लड़कियां कैंडल मार्च करती हैं, न्यूज चैनल वाले टीआरपी बढ़ाने के लिए और सोशल मीडिया अपने फौलोवर्स बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इस खबर को चलाते हैं. कुछ समय बात सब कुछ फिर से वैसे ही शांत हो जाता है. सिर्फ रोते हैं तो उस लड़की के घर वाले, जिस लड़की का बलात्कार कर के पूरी तरह प्रताड़ित कर के उस मासूम लड़की को मौत के घाट उतार दिया जाता है. फिर कुछ महीनों या सालों बाद फिर से ऐसा ही एक और बलात्कार से संबंधित कांड चर्चा में आता है जैसेकि हाल ही में कोलकाता में एक डाक्टर को बलात्कार कर के बुरी तरह मार डाला गया.

तमाशबीन लोग

इस पर भी काफी समय से होहल्ला हो रहा है लेकिन सजा अभी तक किसी को नहीं हुई है. ऐसे में यह कहना भी गलत न होगा कि हमारे देश का कानून खासतौर पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को ले कर उतना कड़क नहीं जितना की अन्य देशों में बलात्कार के अपराध को ले कर सख्त कानून बने हुए हैं. शायद यही वजह है कि बच्ची हो या जवान, बलात्कारी बिना किसी डर के औरत की इज्जत तारतार कर देता है क्योंकि उसे अंजाम की परवाह नहीं होता और कानून पर पूरा भरोसा होता है कि वह इस अपराध से बच ही जाएगा.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि बलात्कार जैसी घातक घटना किसी के साथ भी हो सकती है तो क्या ऐसे में क्या ऐसा कुछ संभव है कि बलात्कार होने से पहले ही लड़कियां सचेत हो जाएं और अलर्ट हो सकें ताकि बलात्कार होने से पहले ही इस से बचा जा सके.

बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से बचा जा सकता है थोड़ी सतर्कता बरती जाए :

किसी लड़की का बलात्कार होना एक बुरी घटना है, लेकिन इस से बचने का उपाय ढूंढ़ना एक लड़की के लिए सतर्क होना, साहसी होना और दिमागी तौर पर मजबूत होने का संकेत दर्शाता है. आदमी भले ही शारीरिक तौर पर मजबूत होता है लेकिन औरत उस से कहीं ज्यादा दिमागी तौर पर मजबूत होती है. तभी तो वह अकेली पूरा घर सारे मर्दों को संभालने की ताकत और बतौर नेता सारे देश को संभालने की ताकत रखती है.

कहने का तात्पर्य यह है कि आने वाली मुसीबत जिस के बारे में हमें पता नहीं है उस से बचा नहीं जा सकता लेकिन अगर पहले से ही हम दिमागी तौर पर सतर्क और निडर रहें, ऐसी जगह जाने से बचें या ऐसे लोगों से दूरी बनाएं जिस से हमें खतरा हो तो इस मुसीबत को टाला भी जा सकता है.

ऐसे बचाएं खुद को

जैसेकि सड़क पर चलते समय ऐक्सीडेंट होने के डर से हम किनारे चलते हैं, उसी तरह हमें ऐसी जगह जाने से बचना चाहिए जहां हमारी इज्जत और जान को खतरा हो. और अगर ऐसी जगह जा रहे हैं तो बेकार की निडरता न दिखाते हुए किसी को साथ ले कर जाएं.

बौलीवुड हीरोइन तापसी पन्नू ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे दिल्ली की बसों में ट्रैवल करते वक्त अपने साथ एक पिन या सुई रखती थीं और उस भीड़ में अगर कोई उन्हें गलत टच करने की कोशिश करता था तो वह चुपके से वह पिन या सुई चुभा देती थीं. कहने का मतलब यह है कि बाहर ट्रैवल करने वाली अकेली लड़कियों को अपने साथ कोई तेज औजार जैसेकि सुई, पिन, छोटा चाकू आखों में डालने वाला स्प्रे, अगर ये सब नहीं ले सकते तो मिर्चपाउडर अपने पास रखना चाहिए ताकि मुश्किल वक्त में इन का इतेमाल किया जा सके.

जो डर गया वह…

इस से भी ज्यादा जरूरी है आप का बेधड़क हो कर उन गलत हालातों का सामना करना जिस में आप फंस चुकी हैं, क्योंकि बहुत सालों पहले फिल्म ‘शोले’ में गब्बर सिंह ने कहा था कि जो डर गया समझो वह मर गया…’

यह एक साधारण सा डायलौग है लेकिन इस के माने बहुत मजबूत हैं. मुश्किल वक्त में अगर आप हिम्मत से काम लेती हैं, दिमाग का इस्तेमाल कर के बचने की कोशिश करती हैं तो तो आप रेप जैसे मुश्किल दौर से भी निकल सकती हैं.

बौलीवुड में कई ऐसी फिल्में बनी हैं जिस में एक अकेली लड़की को चार गुंडों से बलात्कार होने से बचते हुए दिखाया गया है। ऐसे वक्त पर लड़कियों ने शेरनी की तरह दहाड़ कर और उन पर वार कर के न सिर्फ उन को मारा है बल्कि अपनेआप को बचाया भी है।

फिल्म ‘इन कार’ में एक लड़की जो 4 क्रिमिनल द्वारा किडनैप हो जाती है और बलात्कार के लिए सुनसान जगह पर ले जाई जाती है, वहां पर भी वह अपने दिमाग का इस्तेमाल कर के बहादुरी के साथ न सिर्फ गुंडों का खात्मा करती है बल्कि अपनेआप को बचा भी लेती है.

डर नहीं सामना करें

ऐसी ही कई फिल्में हैं जैसे ‘मिर्च मसाला’, ‘दामिनी’, ‘पिंक’ आदि। श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मोम,’ फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’, ‘मिर्च मसाला’ आदि जिन में लड़कियों को बलात्कारियों के सामने निर्बल हो कर डरने के बजाय उन का सामना करते दिखाया गया है.

असल जिंदगी में भी अगर कोई लड़की रेप होने के बजाय सामने वाले को मारने या सजा देने की ताकत रखती है तो उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में कई लड़कियां अकेली रहती हैं और खुद की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्क भी रहती हैं ताकि उन के साथ कोई बुरी घटना न हो. अगर किसी गलत इंसान के चंगुल में फंसने के बाद डर के मारे आप कुछ भी न कर पाएं तो उस इंसान से बचने के लिए इतना जोर से चिल्लाएं कि उस बलात्कारी के कान के परदे ही फट जाएं या आप की आवाज सुन कर कोई आप को बचाने आ जाए.

अगर फिर भी बुरे से बुरे हालातों के चलते आप का रेप हो जाता है और आप अपनेआप को संभालने की स्थिति में नहीं हैं तो यह बात आप सिर्फ उन को बताएं जो विश्वास के लायक है और आप को न्याय दिलाने का दमखम रखता है.

बेकार का बवाल

अपने साथ हुए बलात्कार का बवाल न करें क्योंकि लोग सिर्फ तमाशबीन होते हैं. उन को आप के दर्द का एहसास नही होगा बल्कि अपने साथ हुए रेपकांड को सब को बताने के बाद आप ही बदनाम होंगी, बलात्कारी को कोई फर्क नही पड़ेगा। इसलिए ऐसे शैतानों से निबटने के लिए और उसे सजा दिलाने के लिए उचित कदम उठाएं. इस के अलावा आजकल पुलिस की मदद के भी कई सारे हैल्पलाइन नंबर हैं, उसे अपने मोबाइल में सेव कर के रखे.

गौरतलब है कि खासतौर पर औरतों का सिक्स सेंस अर्थात छठी इंद्री पावरफुल होती है जो आने वाली मुसीबत से बचने की आप को चेतावनी देती है.

इस बात में कोई दोराय नहीं है कि जो इस बुरी स्थिति से गुजरता है वही इस दर्द का एहसास कर सकता है. लेकिन किसी के साथ भी ऐसी जघन्य अपराध न हो इसलिए इस से बचने के लिए सतर्कता, निडरता और चतुराई होना बहुत जरूरी है.

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