ममा आई हेट यू : क्या आद्या की मां से नफरत खत्म हो पाई?

‘‘आद्या,तुम्हारी मम्मी का फोन है,’’ अपनी बेटी संगीता का फोन आने पर शोभा ने अपनी 10 साल की नातिन को आवाज देते हुए कहा. वह दूसरे कमरे में टैलीविजन देख रही थी. जब कोई उत्तर नहीं मिला तो वे उठ कर उस के पास गईं और अपनी बात दोहराई.

‘‘उफ, नानी मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे उन से कोई बात नहीं करनी. फिर आप क्यों मुझे बारबार कहती हो बात करने को?’’ आद्या ने लापरवाही से कहा.

शोभा उस के उत्तर को जानती थीं, लेकिन वे अपनी बेटी संगीता को खुद उत्तर न दे कर आद्या की आवाज स्पीकर पर सुनवा कर उस से ही दिलवाना चाहती थीं वरना संगीता उन पर इलजाम लगाती कि वही उस की बेटी से बात नहीं करवाना चाहती.

फोन बंद करने के बाद शोभा ने आद्या की मनोस्थिति पता करने के लिए उस से कहा, ‘‘बेटा, वह तुम्हारी मां है. तुम्हें उन से बात करनी चाहिए…’’

अभी उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आद्या चिल्ला कर बोली, ‘‘यदि उन्हें मेरी जरा भी चिंता होती तो इस तरह मुझे छोड़ कर दूसरे आदमी के साथ नहीं चली जातीं… मेरी फ्रैंड वान्या को देखो, उस की मां उस के साथ रहती हैं और उसे कितना प्यार करती हैं. जब से मैं ने मां को फेसबुक पर किसी दूसरे आदमी के साथ देखा है, मुझे उन से नफरत हो गई है, अमेरिका में ममा और पापा के साथ रहना मुझे कितना अच्छा लगता था, लेकिन ममा को पापा से झगड़ा कर के इंडिया आते समय एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया कि मेरा क्या होगा…मैं पापा के बिना रहना चाहती हूं या नहीं… पापा ने भी तो मुझे एक बार भी नहीं रोका… और फिर यहां आ कर उन्हें भी मुझ से अलग ही रहना था तो फिर मुझे पैदा करने की जरूरत ही क्या थी… मैं जब अपनी फ्रैड्स को अपने मम्मीपापा के साथ देखती हूं, तो कितना ऐंब्रैस फील करती हूं… आप को पता है? और वे सब मुझे इतनी सिंपैथी से देखती हैं. जैसे मैं ने ही कोई गलती की है… ऐसा क्यों नानी? मैं जानती हूं, ममा मुझ से फोन पर क्या कहना चाहती हैं… वे चाहती हैं कि मैं अपने अमेरिका में रहने वाले पापा से कौंटैक्ट करूं, ताकि वे मुझे अपने पास बुला लें और उन का मुझ से  हमेशा के लिए पीछा छूट जाए. उस के बाद वे मुझ से मिलने के बहाने अमेरिका आती रहें, क्योंकि आप को पता है न कि अमेरिका में रहने के लिए ही उन्होंने एनआरआई से लवमैरिज की थी. हमेशा तो फोन पर मुझ से यही पूछती हैं कि मैं ने उन से बात की या नहीं, लेकिन नानी मैं उन के पास नहीं जाना चाहती. मैं तो आप के पास ही रहना चाहती हूं. मैं ममा से कभी बात नहीं करूंगी, ममा आई हेट यू… आई हेट हर… नानी.

आद्या ने एक ही सांस में सारा आक्रोश उगल दिया और किसी अपने बिस्तर पर औंधी हो कर रोने लगी.

शोभा अवाक उस की बातें सुनती रह गईं कि इतनी छोटी उम्र में आद्या को हालात ने कितना परिपक्व बना दिया था.

आद्या के तर्क को सुनने के बाद शोभा गहरे सोच में डूब गईं. इतना समझाने के बाद भी कि अमेरिका में इतनी दूर रहने वाले लड़के के चरित्र के बारे में क्या गारंटी है, विवाह का निर्णय लेने के लिए सिर्फ फेसबुक की जानपहचान ही काफी नहीं है. लेकिन उन की बेटी संगीता ने एक नहीं सुनी और जिद कर के उस से विवाह किया था

विवाह के सालभर बाद ही आद्या पैदा हो गई. उस के पैदा होने के समय शोभा अमेरिका गई थी, लेकिन सुखसुविधा की कोई कमी न होते हुए भी घर में हर समय कलह का वातवरण ही रहता था, क्योंकि राहुल की आदतें बहुत बिगड़ी हुई थीं. उस के विवाह करने का एकमात्र उद्देश्य तो पत्नी के रूप में अनपेड मेड लाना था.

एक दिन ऐसा आया जब संगीता 4 साल की आद्या को ले कर भारत उन के पास लौट आई, लेकिन संगीता को अमेरिका के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने की इतनी आदत पड़ गई थी कि उस का अपनी आईटी कंपनी की नौकरी से गुजारा ही नहीं होता था.

4 साल बीततेबीतते उस ने अपने मातापिता को बताए बिना किसी बड़े बिजनैसमैन से दूसरी शादी कर ली. वह उस से विवाह करने के लिए इसी शर्त पर राजी हुआ कि वह अपनी बेटी को साथ नहीं रखेगी.

धीरेधीरे उम्र के साथ आद्या को सारे हालात समझ में आने लगे और उस का अपनी मां के लिए आक्रोश भी बढ़ने लगा, जिस की प्रतिक्रिया औरौं पर भी दिखने लगी. वह कुंठित हो कर अपनी स्थिति का अनुचित लाभ उठाने लगी. अपनी नानी से भी हर बात में तर्क करने लगी थी. स्कूल से आने के बाद वह घर में टिकती ही नहीं थी. उस की अपनी कालोनी में ही 2-3 लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. उन के साथ ही सारा दिन रहती थी.

वहां रहने वाले परिवारों के लोग भी उस की बदसलूकी की उस की नानी से शिकायत करने लगे तो शोभा को बहुत चिंता हुई, लेकिन वह समझाने से भी कुछ समझना नहीं चाहती थी उस का व्यवहार जब सीमा पार करने लगा तो शोभा उसे एक काउंसलर के पास ले गईं. उस ने आद्या से बहुत सारे प्रश्न पूछे. उस का जीवन के प्रति नकारात्मक सोच देख कर उन्होंने शोभा को समझाया कि जोरजबरदस्ती उस से कोई कार्य न करवाया जाए और डांटने से स्थिति और बिगड़ जाएगी. जहां तक हो उसे प्यार से समझाने की कोशिश की जाए.

काउंसलर के कथन का भी आद्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. उस के बाद से वह शोभा को इमोशनली ब्लैकमेल करने लगी. जब भी शोभा उसे कुछ समझातीं तो वह तुरंत कहती, ‘‘आप को डाक्टर साहब ने क्या कहा था. कि मेरे मामलों में ज्यादा दखलंदाजी न करें. मेरी तबीयत ठीक नहीं है… आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ कि ममापापा ने मुझे अपने से अलग कर दिया है. आखिर मेरा कुसूर क्या है? इतना कह कर वह रोने लगती और फिर खाना छोड़ कर खुद को कमरे में बंद कर लेती.

अपरिपक्व उम्र की होने के कारण

उसे इस बात की समझ ही नहीं थी कि उस के इस तरह के व्यवहार से उस की नानी कितनी आहत होती हैं, वे कितनी असहाय हैं, उस की इस स्थिति की दोषी वे तो बिलकुल नहीं है.

शोभा ने उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे संभालने के लिए, बहुत सारे बच्चों को तो कोईर् देखने वाला भी नहीं होता और अनाथाश्रम में पलते हैं. इस के जवाब में आद्या बोलती कि अच्छा होता वह भी अनाथाश्रम में पलती, कम से कम उसे अपने मातापिता के बारे में तो पता नहीं होता कि वे स्वयं तो मौज की जिंदगी काट रहे हैं और उसे दूसरों के सहारे छोड़ दिया है.

शोभा आद्या का व्यवहार देख कर बहुत चिंतित रहती थीं, उन्हें अपनी बेटी संगीता पर बहुत गुस्सा आता कि विवाह करने से पहले एक बार तो उस ने अपनी बेटी के बारे में सोचा होता कि वह क्या चाहती है? आखिर वह उसे दुनिया में लाई है, तो उस के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी बनती है. कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है. उस के गलत कदम उठाने की सजा उन्हें और आद्या को भुगतनी पड़ रही है. जवाब में वह कहती कि वह आद्या के लिए कुछ भी करेगी. बस अपने साथ ही तो नहीं रख सकती.

ज्यादा समस्या है तो उसे होस्टल में डाल देगी.

शोभा को उस की बातें इतनी हास्यास्पद लगतीं कि उस की बेटी की इतनी भी समझ नहीं है कि पहले के जमाने की उपेक्षा नए जमाने के बच्चे को पालना कितना जटिल है और वह भी ऐसे बच्चे को, जो सामान्य वातावरण में नहीं पल रहा.

किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे की सही परवरिश उस के मातापिता ही कर सकते हैं और मांबाप में अलगाव की स्थिति में किसी एक के द्वारा उसे प्यार और उस की देखभाल के लिए उसे समय देना जरूरी है वरना बच्चा दिशाहीन हो कर भटक सकता है. केवल भौतिक सुख ही उस के सही पालनपोषण के लिए पर्याप्त नहीं होते.

जिन बच्चों के मातापिता उन्हें बचपन में ही किसी न किसी कारण अपने से अलग कर देते हैं, वे अधिकतर बड़े होने पर सामान्य व्यक्तित्व के न हो कर दब्बू, आत्मविश्वासहीन और अपराधिक प्रवृत्ति के बन जाते हैं, क्योंकि बच्चे जितना अपने मातापिता की परवरिश में अनुशासित बन सकते हैं उतना किसी के भी साथ रह कर नहीं बल्कि स्थितियों का लाभ उठा कर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं और दया का पात्र बन कर ही आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं. मातापिता की जिम्मेदारी है कि विशेष स्थितियों को छोड़ कर अपने किसी स्वार्थवश बच्चों को किसी के सहारे न छोड़े, नानीदादी के सहारे भी नहीं. बच्चा पैदा होने के बाद उन का प्राथमिक कर्तव्य बच्चों का पालनपोषण ही होना चाहिए, क्योंकि वे ही उन्हें प्यार दे सकते हैं.

बहूबेटी : क्यों बदल गए सपना की मां के तेवर

जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ पोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए. शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती. यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’ ‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है. हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी. ‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’ ‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी. ‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया. उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’ ‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’ ‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’ ‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं. अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं. ‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया. रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं. ‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं. सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’ ‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें. कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’ आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

सुबह 10 बजे : मेघा की मां क्यों थी शादी के खिलाफ

मेघा आज फिर जाम में फंस गई थी. औफिस से आते समय उस के कई घंटे ऐसे ही बरबाद हो जाते हैं, प्राइवेट नौकरी में ऐसे ही इतनी थकान हो जाती है, उस पर इतनी दूर स्कूटी से आनाजाना.

मेघा लोअर व टौप ले कर बाथरूम में घुस गई, कुछ देर बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. उस के कानों में अभी भी सड़क की गाडि़यों के हौर्न गूंज रहे थे. तभी उस ने लौबी में अपनी मां को कुछ पैकेट फैलाए देखा, वे बड़ी खुश दिख रही थीं. मेघा भी उन के पास बैठ गई. मम्मी उत्साह से पैकेट से साड़ी निकाल कर उसे

दिखाने लगीं, ‘‘यह देखो अब की अच्छी साड़ी लाई हूं.’’ पर मम्मी अभी कुछ दिन पहले ही तो 6 साडि़यों का कौंबो मैं ने और 6 का रिया ने तुम्हें औनलाइन मंगा कर दिया था.’’

‘‘वे तो डेली यूज की हैं. कहीं आनेजाने पर उन्हें पहनूंगी क्या? लोग कहेंगे कि 2-2 बेटियां कमा रही हैं और कैसी साडि़यां पहनती हैं,’’ कह कर उन्होंने प्यार से मेघा के गाल पर धीरे से एक चपत लगा दी. मेघा मुसकरा दी.

तभी वे फिर बोलीं, ‘‘और देख यह बिछिया… ये मैचिंग चूडि़यां और पायलें… अच्छी हैं न?’’

‘‘हां मां बहुत अच्छी हैं. आप खुश रहें बस यही सब से अच्छा है, अब मैं बहुत थक गई हूं. चलो खाना खा लेते हैं. मुझे कल जल्दी औफिस जाना है,’’ मेघा बोली.

‘‘ठीक है तुम चलो मैं आई,’’ कह कर मम्मी अपना सामान समेटने लगीं.

उन के चेहरे पर खिसियाहट साफ दिखाई दे रही थी. सभी ने हंसीमजाक करते हुए खाना खाया. फिर अपनेअपने बरतन धो कर रैक में रख दिए. उन के घर में शुरू से ही यह नियम है कि खाना खाने के बाद हर कोई अपने जूठे बरतन खुद धोता है.

खाना खा कर मेघा लेटने चली गई, पर आंखों से नींद कोसों दूर थी, वह सोचने लगी कि हर नारी अपने को किसी के लिए समर्पित करने में ही सब से बड़ी खुशी महसूस करती है. कल की ही बात है. मेघा की दोस्त सोनल उस से कह रही थी कि यार तू भी 30 पार कर रही है. क्या शादी करने का इरादा नहीं है? मगर मेघा उसे कैसे बताती कि जब से उस ने नौकरी शुरू की है घर थोड़ा अच्छे से चलने लगा है.

अब कोई उस की शादी की बात उठाता ही नहीं, क्योंकि उन्हें उस से ज्यादा घर खर्च की चिंता रहती है… छोटी बहनों की पढ़ाई कैसे होगी… वे 4 बहनें हैं. पापा का काम कुछ खास चलता नहीं है. इसलिए उन्होंने बचपन अभाव में काटा है. जब से मेघा से छोटी रिया भी सर्विस करने लगी है, मम्मी अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर पा रही हैं वरना तो घर खर्च की खींचतान में ही लगी रहती थीं.

मेघा की दोस्त सोनल की 2 साल पहले ही शादी हुई है. औफिस में वह मेघा की कुलीग है. उसे खुश देख कर मेघा को बड़ा अच्छा लगता है. कभीकभी उस का मन कहता है, मेघा क्या तू भी कभी यह जीवन जी सकेगी?

आज सोनल ने फिर बात उठाई थी, ‘‘मेघा पिछले साल हम लोग औफिस टूर पर बाहर गए थे तो मयंक तुझ से कितना मिक्स हो गया था… यार तेरी ही कास्ट का है. तुझ से फोन पर तो अकसर बात होती रहती है. अच्छा लड़का है… क्यों नहीं मम्मी से कह कर उस से बात चलवाती हो? अगर बात बन गई तो दहेज का भी चक्कर नहीं रहेगा. फिर मयंक की तुझ से अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी है. अच्छा ऐसा कर तू पहले मयंक से पूछ. अगर वह तैयार हो जाता है, तो अपने घर वालों को उस के घर भेज देना.’’ मेघा को सोनल की बात में दम लगा.

1-2 दिन पहले ही उस की मयंक से बात हुई थी, तो वह बता रहा था कि घर वाले उस की शादी के मूड में हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई रिश्ता ले कर आ रहा है.

मेघा सोचने लगी, ‘कल मयंक से बात करती हूं. यह तो मुझे भी महसूस होता है कि शादी करना जीवन में जरूरी होता है, पर कोई अच्छा लड़का मिले. मुझे जीवन में खुशियां देने के साथसाथ मेरे घर वालों को भी सपोर्ट करे, तो इस से अच्छी और क्या बात होगी,’ सोचतेसोचते उसे नींद आ गई.

सुबह नींद खुली तो 7 बज रहे थे. उसे 8 बजे औफिस पहुंचना था. वह जल्दी से फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर भागी. जब तक वह तैयार हुई तब तक मम्मी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. टिफिन भी वहीं रख दिया. मेघा ने दौड़तेभागते 2 ब्रैड पीस खा कर चाय पी और फिर स्कूटी निकाल औफिस के लिए निकल गई. काम के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा.

लंच के समय सोनल ने फिर वही बात छेड़ी तो उसे कल रात की बात याद आई. लंच खत्म कर के उस ने मयंक को फोन लगाया.

सोनल सामने ही बैठी थी. वह इशारे से कह रही थी कि शादी के लिए पूछ. मेघा ने हिम्मत कर के पूछा तो मयंक हंस दिया, ‘‘अरे यार तुझे पा कर कौन खुश नहीं होगा भला… तुम ने मुझे अपने लायक समझा तो संडे को अपने मम्मीपापा को मेरे घर भेजो, बाकी सब मैं देख लूंगा.’’

‘‘ठीक है कह कर मेघा ने फोन काट दिया और फिर सोनल को सब बताया तो वह भी बहुत खुश हुई.

‘‘पर सोनल मैं अपनी शादी के बारे में अपने मम्मीपापा से कैसे बात कर पाऊंगी?’’

मेघा को परेशान देख कर सोनल बोली, ‘‘तू घर पहुंच उन से मेरी बात करा देना.’’

मेघा शाम 4 बजे ही औफिस से चल दी. घर पहुंच चाय पी कर बैठी ही थी कि सोनल का फोन आ गया. उसे दिन की सारी बातें याद आ गई. उस ने फोन मम्मी की ओर बढ़ा दिया. सोनल ने मम्मी को सब बता उन्हें संडे को मयंक के घर जाने के लिए कहा.

मम्मी के चेहरे पर मेघा को कुछ खास खुशी की झलक नहीं दिख रही थी. वे केवल हांहां करती जा रही थीं.

फोन कटने पर वे मेघा की तरफ घूम कर बोलीं, ‘‘हम लोगों के पास तो दहेज के लिए पैसे नहीं हैं. फिर हम रिश्ता ले कर कैसे जाएं? तुम्हें पहले मुझ से बात करनी चाहिए थी.’’

यह सुन कर मेघा हड़बड़ा गई. बोली, ‘‘मैं ने कुछ नहीं कहा. सोनल ने ही मयंक से बात की थी… आप और पापा उस के घर हो आओ… देखो घर में और लोग कैसे हैं… मयंक तो बहुत सुलझा हुआ है.’’

तभी पापा भी आ गए. जब उन्हें सारी बात पता लगी तो उन के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए, ‘‘ठीक है हम लोग संडे को ही मयंक के घर जाएंगे,’’ कह उन्होंने खुशी से मेघा की पीठ थपथपाई.

फिर सब बहनों ने मिल कर आगे की प्लानिंग की. यह तय हुआ कि सोनल के हसबैंड, मम्मीपापा और छोटी बहन मयंक के घर चले जाएंगे. छोटी बहन के मयंक के घर जाने से वहां क्या बात हुई, कैसा व्यवहार रहा, सब पता लग जाएगा. मम्मी से तो पूछते नहीं बनेगा. पापा से भी पूछने में संकोच होगा.

मेघा की छोटी तीनों बहनें मन से उस की शादी के लिए सोचती रहती थीं, पर आज की महंगाई और दहेज के बारे में सोच कर चुप हो जाती थीं. मयंक के बारे में सुन कर सब को जोश आ गया था.

‘‘मैं अब अपना पैसा बिलकुल खर्च नहीं करूंगी,’’ यह रिया की आवाज थी.

‘‘मुझे भी कुछ ट्यूशन बढ़ानी पड़ेंगी, तो बढ़ा लूंगी,’’ यह तीसरे नंबर की ज्योति बोली.

‘‘मैं भी अब कोई फरमाइश नहीं करूंगी,’’ छोटी कैसे पीछे रहती.

‘‘ठीक है ठीक है, सब लोगों को जो करना है करना पर पहले मयंक के घर तो हो आओ,’’ कह कर मेघा टीवी खोल कर बैठ गई.

संडे परसों था, पापा समय बरबाद नहीं करना चाहते थे. उन्होंने जाने की पूरी तैयारी कर ली. मम्मी ने भी कौन सी साड़ी पहननी है, छोटी क्या पहनेगी सब तय कर लिया.

दूसरे दिन शनिवार था. मेघा ने सोनल को बता दिया कि उस के हसबैंड को साथ जाना पड़ेगा.

वह तैयार हो गई. बोली, कोई इशू नहीं. एक अंकल का स्कूटर रहेगा एक इन की मोटरसाइकिल हो जाएगी… आराम से सब लोग मयंक के घर पहुंच जाएंगे.

मेघा ने फोन कर के मयंक से उस के पापा का फोन नंबर ले लिया. शाम को पापा ने मयंक के पापा को फोन कर के संडे को उन के घर पहुंचने का समय ले लिया. सुबह 10 बजे मिलना तय हुआ.

मेघा की मम्मी बड़ी उलझन में थी कि अगर वे लोग तैयार हो गए तो कैसे मैनेज करेंगे. कुछ नहीं पर अंगूठी तो चाहिए ही. मेरे सारे जेवर तो धीरेधीरे कर के बिक गए… बरात की खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी.

मेघा की मां को परेशान देख उस के पापा बोले, ‘‘अभी से क्यों परेशान हो? पहले वहां मिल तो आएं.’’

रविवार सुबह ही चुपके से मेघा ने मयंक को फोन मिला कर कहा, ‘‘मयंक, तुम घर में ही रहना… कोई बात बिगड़ने न पाए… सब संभाल लेना.’’

‘‘हांहां ठीक है. मेरे मम्मीपापा बहुत सुलझे हुए हैं… उन्हें अपने बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं चाहिए… जिस में मैं खुश उस में वे भी खुश.’’ मेघा बेफिक्र हो कर अंदर आ गई. देखा मम्मी तैयार हो गई थीं.

‘‘चलो, जल्दी लौट आएंगे वरना आज दुकान बंद रह जाएगी.’’ मेघा की मां बोली.

कुछ दिन पहले ही मेघा के पापा ने एक दुकान खोली थी. करीब 12 बजे सभी लौट आए. पापा बहुत खुश थे. सभी बातें कायदे से हुई थीं. बस मयंक के पापा कुंडली मिला कर बात आगे बढ़ाना चाहते थे. वे पापा से बोले कि आप बिटिया की कुंडली भिजवा देना.

जब सब लोग खाना खा कर लेट गए तो सब बहनों ने छोटी को बुला कर वहां का सारा हाल पूछा. छोटी ने वहां की बड़ी तारीफ की. बताया कि अगर कुंडली मिल गई तो शादी पक्की हो जाएगी.

मम्मी ने तो वहां साफसाफ कह दिया कि हम लोग पैसा नहीं दे सकते. किसी तरह जोड़ कर बरात की खातिरदारी कर देंगे. दहेज देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है.

सुन कर रिया गुस्सा गई. बोली, ‘‘ये सब कहने की पहले ही दिन क्या जरूरत थी? आगे बात चलती तो बता देतीं.’’

‘‘दूसरे दिन मेघा की तबीयत ठीक नहीं थी. औफिस से छुट्टी ले कर जल्दी घर आ गई. दवा खा कर चादर ओढ़ कर लेट गई. थोड़ी देर बाद रिया और मम्मी की आवाज उस के कानों में पड़ी. रिया बोली, ‘‘दीदी की शादी फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए. मयंक अच्छा लड़का है. एक बार मैं भी उस से मिली हूं.’’

मम्मी तुरंत बोली,‘‘अरे नहीं बहुत मौडर्न परिवार है. हम उन के स्तर का खर्च ही नहीं कर पाएंगे. तभी तो मैं उस दिन सब साफ कह आई थी. अगर मयंक मेघा से शादी का इच्छुक है, तो कुछ खर्च उसे भी तो करना चाहिए. सगाई, शादी सारे खर्च को आधाआधा बांट लें… जेवर भी… मैं ने कह दिया है हमारे पास नहीं हैं… जेवर तो आप को ही लाने पड़ेंगे… फिर मेरी तो 4 लड़कियां हैं. मुझे तो सब पर बराबर ध्यान देना पड़ेगा. आप के तो केवल एक लड़का है. आप को तो बस उसी के लिए सोचना है.’’

सुनते ही रिया गुस्सा हो गई, ‘‘मम्मी, आप को इस तरह नहीं बोलना चाहिए था. इस तरह तो शादी तय ही नहीं हो पाएगी.’’

‘‘तो न हो… कौन मेरी बेटी सड़क पर खड़ी भीग रही है. वह अपने घर में अपने मांबाप के साथ है. एक मयंक ही थोड़े हैं. हजार लड़के मिलेंगे. आखिर वह सर्विस कर रही है. हजार लड़के उस के आगेपीछे घूमेंगे.’’

‘‘मम्मी यह कहना आसान है, पर ऐसा संभव नहीं होता है,’’ रिया झल्ला कर बोली और फिर वहां से चली गई. मम्मी भी भुनभुनाती हुई किचन में चली गईं.

मेघा सारी बातें सुन कर सकपका गई कि आखिर मम्मी क्या चाहती हैं? क्या लड़की की शादी की बात करने जाने पर पहली बार ही इस तरह की बातें की जाती हैं… इस से तो इमेज खराब ही होगी. फिर मयंक भी कैसे बात संभाल पाएगा.

कल ही सोनल बता रही थी कि उस ने शादी के पहले 4 साल सर्विस की थी और उस की मम्मी ने उस की ही सैलरी से 2 अंगूठियां,

1 चेन और 1 जोड़ी पायल बनवा ली थीं. हर महीने कोई न कोई सामान उस के पीछे पड़ कर औनलाइन और्डर करा देती थी. साडि़यां, पैंटशर्ट, ऊनी सूट सब धीरेधीरे इकट्ठे कर लिए थे. बरतन, मिक्सी, बैडसीट्स कुछ भी शादी के समय नहीं खरीदना पड़ा था. सोनल के घर की हालत तो उन के घर से भी बदतर थी.

आज सोनल अपनी छोटी सी गृहस्थी में बहुत खुश है. एक प्यारा सा बेटा भी है. जीजाजी भी बहुत सुलझे हुए हैं. वे सोनल के मम्मीपापा का भी बहुत खयाल रखते हैं.

इसी बीच 8-10 दिन बीत गए. न यहां से किसी ने फोन किया, न मयंक के यहां से फोन आया. सोनल ने मेघा से पूछा तो वह बोली, ‘‘बारबार मेरा कहना अच्छा नहीं लगता.’’

तब सोनल ने ही मम्मी को फोन मिला कर पूछा तो वे बोलीं, ‘‘उन लोगों ने मेघा की कुंडली मांगी है… वह तो हम ने बनवाई नहीं… हमें कुंडली में विश्वास नहीं है.’’

तब सोनल बोली, ‘‘आंटी आप किसी से कुंडली चक्र बनवा कर भेज दीजिए. आप को तो वही करना पड़ेगा जो वे चाहते हैं. आखिर वे लड़के वाले हैं.’’

‘‘तो क्या हमारी लड़की कमजोर है? वह भी कमाती है. हम उन के हिसाब से क्यों चलें? वे रिश्ता बराबरी का समझें तभी ठीक है.’’ सुन कर सोनल ने फोन काट दिया.

दूसरे दिन मयंक का फोन आया, ‘‘अरे यार अपनी कुंडली तो भिजवाओ. उस दिन तो मैं ने सब संभाल लिया था पर बिना कुंडली के बात कैसे आगे बढ़ाऊं?’’

मेघा ने पापा से कहा तो उन्होंने अगले दिन दे कर आने की बात कही. मेघा के मन में यह बात चुभ रही थी कि मम्मी के मन में क्या यह इच्छा नहीं होती कि उन की बेटियों की भी शादी हो… कल ही पड़ोस की आंटी आई थीं तो मम्मी उन से कह रही थीं, ‘‘मैं तो कहती हूं चारों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं… कमाएं और आराम से साथ रहें. क्या दुनिया में सभी की शादी होती है? अपनी कमाई से ऐश करें.’’

सुन कर मेघा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि केवल उस को ही नहीं ये तो चारों बेटियों की शादी न करने के पक्ष में है. क्या कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है? उधर पापा जन्मकुंडली बनवा कर मयंक के घर दे आए.

4-5 दिन बाद मयंक के पापा का मेघा के पापा के पास फोन आया. उन्होंने कुंडली मिलवा ली थी. मिल गई थी. आगे की बात करने के लिए पापा को अपने घर बुलाया था.

पापा ने खुशीखुशी रात के खाने पर सब को यह बात बताई तो सभी बहनें खुशी से तालियां बजाने लगीं.

‘‘तो आप लोग कब जा रहे हैं? रिया ने पूछा.’’

‘‘आप लोग नहीं अकेले मैं जाऊंगा,’’ कह कर पापा खाना खाने लगे.

मम्मी हैरानी से उन का मुंह देखने लगीं. फिर बोली, ‘‘अकेले क्यों?’’

‘‘अभी भीड़ बढ़ाने से कोई फायदा नहीं. पता नहीं बात बने या नहीं. फिर

दुकान तुम देख लेना… बंद नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘आप साफ बात कर भी पाएंगे?’’

मम्मी की आवाज सुन कर पापा खाना खातेखाते रुक गए. बोले, ‘‘हां, ऐसी साफसाफ भी नहीं करूंगा कि बात ही साफ हो जाए.’’

सुन कर हम बहनें हंस पड़ी. मम्मी गुस्सा कर किचन में चली गईं.

रात में फिर चारों बहनों की मीटिंग हुई. पापा अकेले मयंक के घर जाएंगे, इस बात से सभी बहुत खुश थीं.

Mother’s Day 2024: हसीं वादियों का तोहफा धर्मशाला

घूमने या सैरसपाटे की जब भी बात आती है तो शहरी आपाधापी से दूर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता सब को अपनी ओर आकर्षित करती है. इन छुट्टियों को अगर आप भी हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियों, चारों ओर हरेभरे खेत, हरियाली और कुदरती सुंदरता के बीच गुजारना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के उत्तरपूर्व में 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धर्मशाला पर्यटन की दृष्टि से परफैक्ट डैस्टिनेशन हो सकता है. धर्मशाला की पृष्ठभूमि में बर्फ से ढकी छोलाधार पर्वतशृंखला इस स्थान के नैसर्गिक सौंदर्य को बढ़ाने का काम करती है. हाल के दिनों में धर्मशाला अपने सब से ऊंचे और खूबसूरत क्रिकेट मैदान के लिए भी सुर्खियों में बना हुआ है. हिमाचल प्रदेश के दूसरे शहरों से अधिक ऊंचाई पर बसा धर्मशाला प्रकृति की गोद में शांति और सुकून से कुछ दिन बिताने के लिए बेहतरीन जगह है.

धर्मशाला शहर बहुत छोटा है और आप टहलतेघूमते इस की सैर दिन में कई बार करना चाहेंगे. इस के लिए आप धर्मशाला के ब्लोसम्स विलेज रिजौर्ट को अपने ठहरने का ठिकाना बना सकते हैं. पर्यटकों की पसंद में ऊपरी स्थान रखने वाला यह रिजौर्ट आधुनिक सुविधाओं से लैस है जहां सुसज्जित कमरे हैं जो पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं. बजट के अनुसार सुपीरियर, प्रीमियम और कोटेजेस के औप्शन मौजूद हैं. यहां के सुविधाजनक कमरों की खिड़की से आप धौलाधार की पहाडि़यों के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं. यहां की साजसजावट व सुविधाएं न केवल पर्यटकों को रिलैक्स करती हैं बल्कि आसपास के स्थानों को देखने का अवसर भी प्रदान करती हैं. इस रिजौर्ट से आप आसपास के म्यूजियम, फोर्ट्स, नदियों, झरनों, वाइल्ड लाइफ पर्यटन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं.

धर्मशाला चंडीगढ़ से 239 किलोमीटर, मनाली से 252 किलोमीटर, शिमला से 322 किलोमीटर और नई दिल्ली से 514 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान को कांगड़ा घाटी का प्रवेशद्वार माना जाता है. ओक और शंकुधारी वृक्षों से भरे जंगलों के बीच बसा यह शहर कांगड़ा घाटी का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त धर्मशाला को ‘भारत का छोटा ल्हासा’ उपनाम से भी जाना जाता है. हिमालय की दिलकश, बर्फ से ढकी चोटियां, देवदार के घने जंगल, सेब के बाग, झीलों व नदियों का यह शहर पर्यटकों को प्रकृति की गोद में होने का एहसास देता है.

कांगड़ा कला संग्रहालय: कला और संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह संग्रहालय एक बेहतरीन स्थल हो सकता है. धर्मशाला के इस कला संग्रहालय में यहां के कलात्मक और सांस्कृतिक चिह्न मिलते हैं. 5वीं शताब्दी की बहुमूल्य कलाकृतियां और मूर्तियां, पेंटिंग, सिक्के, बरतन, आभूषण, मूर्तियां और शाही वस्त्रों को यहां देखा जा सकता है.

मैकलौडगंज : अगर आप तिब्बती कला व संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो मैकलौडगंज एक बेहतरीन जगह हो सकती है. अगर आप शौपिंग का शौक रखते हैं तो यहां से सुंदर तिब्बती हस्तशिल्प, कपड़े, थांगका (एक प्रकार की सिल्क पेंटिंग) और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं. यहां से आप हिमाचली पशमीना शाल व कारपेट, जो अपनी विशिष्टता के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित हैं, की खरीदारी कर सकते हैं. समुद्रतल से 1,030 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मैकलौडगंज एक छोटा सा कसबा है. यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगने वाले बाजार सबकुछ हैं. गरमी के मौसम में भी यहां आप ठंडक का एहसास कर सकते हैं. यहां पर्यटकों की पसंद के ठंडे पानी के झरने व झील आदि सबकुछ हैं. दूरदूर तक फैली हरियाली और पहाडि़यों के बीच बने ऊंचेनीचे घुमावदार रास्ते पर्यटकों को ट्रैकिंग के लिए प्रेरित करते हैं.

कररी : यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल व रैस्टहाउस है. यह झील अल्पाइन घास के मैदानों और पाइन के जंगलों से घिरी हुई है. कररी 1983 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हनीमून कपल्स के लिए यह बेहतरीन सैरगाह है.

मछरियल और ततवानी : मछरियल में एक खूबसूरत जलप्रपात है जबकि ततवानी गरम पानी का प्राकृतिक सोता है. ये दोनों स्थान पर्यटकों को पिकनिक मनाने का अवसर देते हैं.

कैसे जाएं

धर्मशाला जाने के लिए सड़क मार्ग सब से बेहतर रहता है लेकिन अगर आप चाहें तो वायु या रेलमार्ग से भी जा सकते हैं.

वायुमार्ग : कांगड़ा का गगल हवाई अड्डा धर्मशाला का नजदीकी एअरपोर्ट है. यह धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंच कर बस या टैक्सी से धर्मशाला पहुंचा जा सकता है.

रेलमार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट यहां से 95 किलोमीटर दूर है. पठानकोट और जोगिंदर नगर के बीच गुजरने वाली नैरोगेज रेल लाइन पर स्थित कांगड़ा स्टेशन से धर्मशाला 17 किलोमीटर दूर है.

सड़क मार्ग : चंडीगढ़, दिल्ली, होशियारपुर, मंडी आदि से हिमाचल रोड परिवहन निगम की बसें धर्मशाला के लिए नियमित रूप से चलती हैं. उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से यहां के लिए सीधी बससेवा है. दिल्ली के कश्मीरी गेट और कनाट प्लेस से आप धर्मशाला के लिए बस ले सकते हैं.

कब जाएं

धर्मशाला में गरमी का मौसम मार्च से जून के बीच रहता है. इस दौरान यहां का तापमान 22 डिगरी सैल्सियस से 38 डिगरी सैल्सियस के बीच रहता है. इस खुशनुमा मौसम में पर्यटक ट्रैकिंग का आनंद भी ले सकते हैं. मानसून के दौरान यहां भारी वर्षा होती है. सर्दी के मौसम में यहां अत्यधिक ठंड होती है और तापमान -4 डिगरी सैल्सियस के भी नीचे चला जाता है जिस के कारण रास्ते बंद हो जाते हैं और विजिबिलिटी कम हो जाती है. इसलिए धर्मशाला में घूमने के लिए जून से सितंबर के महीने उपयुक्त हैं.

Mother’s Day 2024: मुंबई का मसालेदार स्वाद ‘बेक्ड वड़ा पाव’

मदर्स डे के मौके पर अगर आप अपनी मां या बच्चों के लिए टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो मुंबई की फेमस डिश वड़ा पाव की रेसिपी ट्राय करें. ‘बेक्ड वड़ा पाव’ आसान और टेस्टी डिश है, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए आसानी से बना सकती हैं.

सामग्री ब्रैड की

–  2 छोटे चम्मच सूखा खमीर

–  1 बड़ा चम्मच पिसी चीनी

–  1/4 कप कुनकुना पानी

–  2 कप मैदा

–  1 बड़ा चम्मच मिल्क पाउडर

–  1/2 कप कुनकुना दूध

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

–  2 चम्मच तेल

–  1 चुटकी हींग

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा

–  1/2 छोटा चम्मच सरसों

–  1 छोटा चम्मच साबूत धनिया दरदरा कुटा हुआ

–  8-10 करीपत्ते

–  1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन बारीक कटा हुआ

–  1 हरीमिर्च बारीक कटी हुई

–  4 आलू उबले और मसले हुए

–  1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

–  1 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

–  2 बड़े चम्मच धनिया पत्ती कटी हुई

–  1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक कटोरी में सूखा खमीर, चीनी और कुनकुना पानी डाल कर मिलाएं. 20 मिनट एक तरफ रख दें. जब इस में झाग आ जाए तब इस में नमक, मैदा और मिल्क पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. थोड़ाथोड़ा कुनकुना दूध डालते हुए नर्म आटा गूंध लें. अब इसे ढक कर किसी गरम जगह पर तब तक रखें जब तक कि यह फूल कर डबल न हो जाए.

भरावन की विधि

कड़ाही में 2 चम्मच तेल गरम कर हींग, जीरा, सरसों और धनिया डाल कर चटकने दें. अब इस में अदरक व लहसुन डाल कर भून लें. फिर इस में नमक, लालमिर्च, धनिया पाउडर व हलदी पाडर डाल कर 1 मिनट भूनें. अब इस में आलू, हरीमिर्च डाल कर अच्छी तरह मिला लें. 5 मिनट बाद आंच बंद कर दें. नीबू का रस और धनियापत्ती डाल कर मिला लें और फिर ठंडा होने दें. आटे से लोईयां तोड़ें और थोड़ा मोटा और गोल बेल के बीच में

2-3 चम्मच भरावन (आलू का मिक्सर) रखें. इसे बंद कर गोल आकार दे दें. बेकिंग ट्रे पर रख कर किसी गरम जगह पर तब तक रखें जब तक कि यह फूल न जाए. फिर 180 डिग्री पर पहले से गरम ओवन में 10 मिनट बेक कर लें. बेक होने के बाद ऊपर मक्खन लगाएं और गरमगरम सर्व करें.

  • व्यंजन सहयोग: रीटा अरोड़ा

Mother’s Day 2024: शैंपू करते समय न करें ये गलतियां

आज के समय में चारों तरफ इतना प्रदूषण बढ़ गया है कि सेहत के साथ-साथ स्वास्थ्य और सौंदर्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. खाने-पीने की समस्याओं की बात करें तो हम कुछ भी खाकर अपनी भूख तो मिटा लेते हैं. लेकिन वो खाना स्वास्थ्य के लिए सही है या गलत इस बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते हैं. जिसके कारण शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है और कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं.

पोषक तत्वों की कमी से शरीर का हार्मोनिक संतुलन बिगड़ जाता है. जिसके कारण बालों संबंधी कई समस्या हो जाती है. जिससे बालों का झड़ना और रुसी होना आम समस्या है. यह हर दूसरे व्यक्ति की समस्या है. इससे निजात पाने के लिए हम कई तरह के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं कि इस समस्या से निजात पा लें. हम कई तरह के शैंपू भी इस्तेमाल करते हैं.

ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल महिलाओं को हो बल्कि पुरुष भी समस्या से बच नहीं पाए हैं. जिसके कारण पुरुष भी अपने बालों पर अधिक ध्यान देते हैं. कई लोग बाल गिरने के कारण इतने परेशान हो जाते हैं कि तनाव में आ जाते हैं.

इसी समस्या के कारण हम अधिक समय तक एक शैंपू का इस्तेमाल नहीं करते हैं. जिसके कारण ये समस्या और बढ़ जाती है. कई बार हम शैंपू करते समय ऐसी गलतियां कर देते है जो कि हमारे बालों के लिए हानिकारक साबित होती हैं. साथ ही सेहत के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती हैं.  जानिए ऐसी कौन सी गलतियां है जो शैंपू करते समय कभी नहीं करनी चाहिए.

  1. हमेशा बालों में शैंपू करने के बाद कंडीशनर जरुर करना चाहिए. इससे बाल रुखे नहीं होंगे.
  2. बालों को रुखापन से बचाना है तो हमेशा बालों की लंबाई के बजाय जड़ों की सफाई करें.
  3. कभी भी अधिक शैंपू का यूज नहीं करना चाहिए. इससे आपके बाल रुखे हो जाते हैं.
  4. बालों में केमिकल वाला शैंपू का इस्तेमाल न करें, क्योंकि बाल रुखे हो जाते हैं और चमक चली जाती है.
  5. हमेशा सही शैंपू का चुनाव करें. जिससे आपके बालों में किसी भी तरह की समस्या न हो.

Mother’s Day 2024: बंद लिफाफा – आखिर निर्णायक ने लिफाफे में क्या लिखा था

केशव को दिल्ली गए 2 दिन हो गए थे और लौटने में 4-5 दिन और लगने की संभावना थी. ये चंद दिन काटने भी रजनी के लिए बहुत मुश्किल हो रहे थे. केशव के बिना रहने का उस का यह पहला अवसर था. बिस्तर पर पड़ेपड़े आखिर कोई करवटें भी कब तक बदलता रहेगा. खीज कर उसे उठना पड़ा था. रजनी ने घड़ी में समय देखा, 9 बज गए थे और सारा घर बिखरा पड़ा था. केशव को इस तरह के बिखराव से बहुत चिढ़ थी. अगर वह होता तो रजनी को डांटने के बजाय खुद ही सामान सलीके से रखना शुरू कर देता और उसे काम में लगे देख कर रजनी सारा आलस्य भूल कर उठती और स्वयं भी काम में लग जाती. केशव की याद आते ही रजनी के गालों पर लालिमा छा गई. उस ने उठ कर घर को संवारना शुरू कर दिया.

बिस्तर की चादर उठाई ही थी कि एक बंद लिफाफे पर रजनी की नजर टिक गई. हाथ में उठा कर उसे कुछ क्षणों तक देखती रही. मां की चिट्ठी थी और पिछले 10 दिन से इसी तरह तकिए के नीचे दबी पड़ी थी. केशव ने तो कई बार कहा था, ‘‘खोल कर पढ़ लो, आखिर मां की ही तो चिट्ठी है.’’ पर रजनी का मन ही नहीं हुआ. वह समझती थी कि पत्र पढ़ कर उसे मानसिक तनाव ही होगा. फिर से उस लिफाफे को तकिए के नीचे दबाती हुई वह बिस्तर पर लेट गई और अतीत में विचरण करने लगी:

मां का नाराज होना स्वाभाविक था, परंतु इस में भी कोई शक नहीं कि वे रजनी को बहुत प्यार करती थीं. मां कहा करतीं, ‘मेरी रजनी तो परी है,’ अपनी खूबसूरत बेटी पर उन्हें बड़ा नाज था. पासपड़ोस और रिश्तेदारों में हर तरफ रजनी की सुंदरता के चर्चे थे. सिर्फ सुंदर ही नहीं, वह गुणवती भी थी. मां ने उसे सिलाईकढ़ाई, चित्रकला और नृत्य की भी शिक्षा दिलाई थी. रजनी के लिए तब से रिश्ते आने लगे थे जब वह बालिग भी नहीं हुई थी. पिताजी सिर्फ रजनी की पढ़ाई की ही चिंता करते, पर मां का तो सारा ध्यान लड़के की तलाश में लगा था.

यह तो अच्छा था कि उस के लिए जो भी रिश्ते आए, उन में से कोई भी लड़का मां को पसंद नहीं आया था. आसपड़ोस और रिश्तेदारों के सामने रजनी की सुंदरता का बखान करते हुए मां कहतीं, ‘कुंआरी बेटी छाती पर बोझ होती है और वह अगर सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी हो तो बोझ दोगुना हो जाता है. रजनी के लिए योग्य वर ढूंढ़ना बड़ा कठिन काम है. हम अकेले क्या कर लेंगे? आप भी ध्यान रखिएगा.’

बारबार मां के यही कहते रहने से उन की मुंहबोली बहन सुलभा अपने रिश्ते के एक लड़के का प्रस्ताव रजनी के लिए लाई लेकिन लड़के का फोटो देखते ही मां सुलभा पर बरस पड़ीं, ‘अरी सुलभा, तेरी आंखों को क्या हो गया है जो मेरी बेटी के लिए काना दूल्हा ढूंढ़ कर लाई है.’ ‘काना? यह तू क्या कह रही है, कमला. लड़के की एक आंख दूसरी से थोड़ी छोटी है तो क्या वह काना हो गया,’ सुलभा मौसी भी चिढ़ गईं.

‘और नहीं तो क्या…एक छोटी, दूसरी बड़ी, काना नहीं तो और क्या कहूं?’ मां हाथ नचाती बोलीं, ‘मेरी बेटी में कोई खोट नहीं, फिर मैं क्यों ब्याहने लगी इस से…’ मां का क्रोध दोगुना हो गया था. उस दिन मां ने सुलभा मौसी से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ दिया. इस घटना के बाद मां रिश्तेदारों में इस बात को ले कर मशहूर होती गईं कि उन्हें अपनी बेटी की सुंदरता पर बड़ा घमंड है, इसीलिए बेटी के लिए जो भी रिश्ता आता है, बस लड़के के दोष ही ढूंढ़ कर निकालती रहती हैं. मां का तनाव बढ़ रहा था पर रजनी और पिताजी मां की पीड़ा से अनभिज्ञ थे. रजनी जल्दी से जल्दी एम.ए. कर लेना चाहती थी. उसे स्वयं भी इस बात का डर था कि अगर मां को कोई अच्छा लड़का मिल जाएगा तो उस की पढ़ाई पूरी न हो पाएगी.

आखिर रजनी की एम.ए. की पढ़ाई भी हो गई पर मां अपनी तलाश में असफल ही रहीं. रजनी नौकरी करना चाहती थी तो पिताजी ने चुपके से उसे इजाजत भी दे दी. उस ने आवेदनपत्र भेजने शुरू कर दिए. इस बीच उस के लिए रिश्ते भी आते रहे. अब तो उस की सुंदरता के साथसाथ पढ़ाई को भी ध्यान में रखा जाने लगा, जिस से मां की परेशानी और बढ़ गई.

जब रजनी के लिए कानपुर के एक कालेज से व्याख्याता पद के लिए नियुक्तिपत्र आया तो मां और पिताजी के बीच जम कर झगड़ा हुआ और अंत में मां का निर्णयात्मक स्वर उभरा, ‘रजनी नहीं जाएगी.’ ‘क्यों नहीं?’ मां के निर्णय का खंडन करते हुए पिताजी का प्रश्न सुनाई दिया.

‘बेकार सवाल मत कीजिए. मैं अपनी खूबसूरत और जवान बेटी को अकेली दूसरे शहर जा कर नौकरी करने की इजाजत नहीं दे सकती और अगर इसे नौकरी करनी ही है तो यहीं शहर में करे.’ ‘कमला, समझने की कोशिश करो. रजनी अब छोटी बच्ची नहीं रही…और फिर अच्छी नौकरी बारबार नहीं मिलती. तुम यह न समझना कि मैं उस का पक्ष ले रहा हूं. वह अपना फैसला खुद कर चुकी है और हमें उस के निर्णय में दखलंदाजी का हक नहीं है,’ पिताजी ने मां को समझाते हुए कहा.

‘क्यों नहीं है हक? क्या हम उस के कोई…’ अब मां का स्वर भीग गया था. रजनी का दिल भर आया. मां उस की दुश्मन नहीं थीं पर रजनी भी हाथ आया मौका खोना नहीं चाहती थी. धीरे से उस ने मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मां, मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं. मुझे मत रोको.’

रजनी के हाथों को अपने कंधों से झटकते हुए मां पिताजी पर ही बरस पड़ीं, ‘देख लीजिएगा, आप की लाड़ली हमारी नाक कटवा कर ही मानेगी. दूसरे शहर में कोई रोकटोक न रहेगी. अपनी मनमानी करती फिरेगी. घर की इज्जत मिट्टी में मिल गई तो सिर पीटने से कोई फायदा नहीं होगा.’ मां अनापशनाप कहे जा रही थीं और पिताजी सिर थामे सोफे पर चुप बैठे थे. रजनी उन्हें अकेला छोड़ कर कमरे से निकल गई थी.

मां की लाख कोशिशों के बावजूद पिताजी ने एक बार भी रजनी को जाने से मना नहीं किया. नए शहर, नए माहौल और एक नई व्यस्तता भरी जिंदगी में वह अपनेआप को ढालने का प्रयास करने लगी. देखने में रजनी स्वयं एक छात्रा सी लगती थी. अपने से ऊंचे कद के लड़कों को पढ़ाते समय प्राय: वह घबरा सी जाती थी. लड़के उस के इसी शांत और डरेडरे से स्वभाव का फायदा उठा कर उसे छेड़ बैठते और तब बेबस रजनी का मन होता कि नौकरी ही छोड़ दे. कभीकभी तो वह अपनेआप को बेहद अकेली महसूस करती. कालेज के अन्य प्राध्यापकों से वह वैसे भी घुलमिल नहीं पा रही थी. बस, अपने काम से ही मतलब रखती थी. एक दिन कुछ शरारती छात्रों ने कालेज से लौट रही रजनी को रास्ते में रोक लिया. हलकी सी बूंदाबांदी भी हो रही थी और लग रहा था कि कुछ ही मिनटों में जोरों की बारिश शुरू हो जाएगी. ऐसे में अपनेआप को इन लड़कों से घिरा पा कर उसे कंपकंपी छूटने लगी.

‘मैडम, आज आप ने जो कुछ पढ़ाया, वह हमारी समझ में नहीं आया. कृपया जरा समझा दीजिए,’ एक छात्र ने उस के समीप आ कर कहा. ‘क्यों, कक्षा में क्या करते रहते हैं आप लोग?’ चेहरे पर क्रोध भरा तनाव लाने का असफल प्रयास करते हुए रजनी ने पूछा.

‘दरअसल मैडम, हम कोशिश तो करते हैं कि पढ़ाई में ध्यान दें, पर आप हैं ही इतनी सुंदर कि पढ़ाई भूल कर बस आप को ही देखे चले जाते हैं…’ दूसरे छात्र ने कहा और जैसे ही उस ने अपना हाथ रजनी के चेहरे की ओर बढ़ाया, एक मजबूत हाथ ने उसे रोक लिया. प्रोफेसर केशव को पास पा कर रजनी को तसल्ली हुई. ‘कल सवेरे आप सब प्रिंसिपल साहब के कक्ष में मुझ से मिलिएगा. अब फूटिए यहां से…’ प्रोफेसर केशव के धीमे किंतु आदेशात्मक स्वर से सभी छात्र वहां से खिसक गए. रजनी चुपचाप केशव के साथ चल पड़ी. वैसे रजनी कई बार उन से मिल चुकी थी, पर ज्यादा बातचीत कभी नहीं हुई थी.

‘कहां रहती हैं आप?’ केशव ने चलतेचलते पूछा. ‘होस्टल में,’ रजनी ने धीमे से कहा.

‘पहले कहां थीं?’ ‘जयपुर में.’

 

फिर दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी छा गई. वे चुपचाप चल रहे थे कि केशव ने कहा, ‘आप में अभी तक आत्म- विश्वास नहीं आया है. आप पढ़ाते समय इतना ज्यादा घबराती हैं कि छात्रछात्राओं पर गहरा प्रभाव नहीं छोड़ पातीं.’ ‘जी, मैं जानती हूं, पर यह मेरा पहला अवसर है.’

‘कोई बात नहीं,’ प्रोफेसर केशव मुसकरा दिए थे, ‘पर अब यह कोशिश कीजिएगा कि आत्मविश्वास हमेशा बना रहे. वैसे उन छात्रों से मैं निबट लूंगा. अब वे आप को कभी परेशान नहीं करेंगे.’ रजनी ने एक बार सिर उठा कर उन्हें देखा था. आकर्षक व्यक्तित्व वाले केशव के सांवले चेहरे का सब से बड़ा आकर्षण था उन की लंबी नाक. रजनी प्रभावित हुए बिना न रह सकी.

उस रात रजनी ढंग से सो भी न सकी. लड़कों की शरारत और केशव की शराफत का खयाल दिमाग में ऐसे कुलबुलाता रहा कि वह रात भर करवटें ही बदलती रही. उसे लगा कि वह केशव की मदद को आजीवन भूल न सकेगी.

दूसरे दिन रजनी केशव से मिली तो केशव के चेहरे पर उस घटना की याद का जैसे कोई चिह्न ही नहीं था. रजनी के नमस्कार का जवाब दे कर वे आगे बढ़ गए थे. धीरेधीरे रजनी का केशव के प्रति आकर्षण बढ़ता चला गया. केशव ने कभी भी यह जताने की कोशिश नहीं की थी कि रजनी की मदद कर के उन्होंने कोई एहसान किया हो. रजनी जब भी केशव को देखती, अपलक उन्हें देखती रह जाती. उसे इस प्रकार अपनी ओर देखते हुए पा कर केशव धीरे से मुसकरा देते और यही मुसकराहट एक तीर सी रजनी के हृदय को भेद जाती. धीरेधीरे रजनी का यह आकर्षण प्रेम बन कर फूटने लगा तो उस ने निर्णय लिया कि वह केशव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखेगी.

एक दिन रजनी ने प्रोफेसर केशव को दोपहर के खाने का आमंत्रण दे दिया. होटल में रजनी केशव के सामने यही सोच कर झेंपी सी बैठी रही कि वह इस बात को कहेगी कैसे. सोचतेसोचते वह परेशान सी हो गई.

‘क्या बात है, रजनी?’ केशव ने बातचीत में पहल की, ‘तुम खामोश क्यों हो?’ रजनी चुप रही.

‘कुछ कहना चाहती हो?’ ‘हां…’

‘क्या बात है? क्या फिर किसी ने परेशान किया?’ केशव ने शरारत और आत्मीयता से भरा प्रश्न किया तो रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे. प्रेम की विवशता और शर्म की खाई के बीच सिर्फ आंसुओं का ही सहारा था, जो शायद उस के प्रेम की गहराई को स्पष्ट कर पाते. वह धीरे से बोली, ‘मैं आप से प्रेम करती हूं और शादी भी करना चाहती हूं.’ ‘शादीब्याह में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं,’ केशव ने कहा तो सुन कर रजनी चौंक गई. क्या केशव उस के प्यार को ठुकरा रहा है?

‘तुम मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानतीं,’ केशव ने आगे कहा, ‘पहले जान लो, फिर निर्णय लेना. ‘शादी के बाद शायद मैं तुम पर बोझ बन जाऊं,’ कहते हुए केशव ने अपनी पैंट को घुटने तक खींच लिया. उस का घुटने से नीचे नकली पैर लगा था.

देखते ही रजनी की चीख निकल गई. वह धीरे से बोली, ‘यह कैसे हुआ?’ ‘सड़क दुर्घटना से…’

रजनी की आंखों से अश्रुधारा बह चली थी. उस के निर्णय में एकाएक परिवर्तन आया. पल भर में ही उस ने सोच लिया कि वह शादी के बाद ही मां और पिताजी को सूचना देगी. वह जानती थी कि मां एक अपाहिज को अपने दामाद के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं कर पाएंगी. एक सादे से समारोह में रजनी ने केशव से विवाह कर लिया. मां को पत्र लिखने के कुछ ही दिन बाद उन का जवाब आ गया. पर रजनी लिफाफा खोल न सकी. वह सोचने लगी कि मां का दिल अवश्य ही टूटा होगा और पत्र भी उन्होंने उसे कोसते हुए ही लिखा होगा. रजनी को हमेशा पिताजी का खयाल आता था. मां इस घटना के लिए पिताजी को ही जिम्मेदार ठहराती होंगी. पिताजी को भी शायद अब पछतावा ही होता होगा कि रजनी को यहां क्यों भेजा.

अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि नौकरानी की आवाज सुनाई दी तो वह अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. ‘‘मालकिन, आप की माताजी आई हैं.’’

‘‘मां?’’ रजनी चौंक गई, ‘‘कब आईं?’’ ‘‘अभी कुछ देर पहले. नहा रही हैं.’’

रजनी के मन में कई तरह के विचार आने लगे. मां के आने से उस का मन शंकित हो उठा. न जाने वे क्या सोच कर आई हैं और केशव के साथ कैसा व्यवहार करेंगी? अचानक उसे लिफाफे का खयाल आया. दौड़ते हुए गई और तकिए के नीचे दबे लिफाफे को खोल कर पढ़ने लगी :

‘बेटी रजनी, नहीं जानती कि अगर तू ने शादी के पहले मुझे यह बताया होता कि केशव अपाहिज है तो मैं क्या निर्णय लेती, पर बाद में पता चला तो थोड़ी सी पीड़ा सिर्फ यह सोच कर हुई कि अपने हाथों से तुझे दुलहन न बना सकी.

धीरेधीरे मैं यह महसूस करने लगी हूं कि तू ने गलत निर्णय नहीं लिया है बल्कि अपने इस निर्णय से यह साबित कर दिया है कि तू अपनी मां की तरह शारीरिक सुंदरता को महत्त्व देने वाली नहीं, वरन हृदय की सुंदरता को पहचानने वाली पारखी है. तेरे निर्णय पर मुझे नाज है. मैं तुझ से मिलने आ रही हूं. तुम्हारी मां.’

रजनी को लगा कि मारे खुशी के वह पागल हो जाएगी. उसी तरह लिफाफे को तकिए के नीचे रख कर वह जोर से स्नानघर का दरवाजा पीटने लगी, ‘‘जल्दी आओ न मां, तुम्हें देखने को आंखें तरस गई हैं.’’ ‘‘इतनी बड़ी हो गई है, पर अभी बचपना नहीं गया,’’ मां का बुदबुदाता सा स्वर सुनाई दिया.

रजनी को लगा कि मां जल्दीजल्दी से शरीर पर पानी डालने लगी हैं.

Mother’s Day 2024: सैल्फी- आखिर क्या था बेटी के लिए निशि का डर?

निशि पत्रिका के पेज पलटे जा रही थी, परंतु कनखियों से बेटी कुहू को देखे जा रही थीं. आधे घंटे से कुहू अपने फोन पर कुछ कर रही थी. देखतेदेखते निशि अपना धैर्य खो बैठीं तो डांटते हुए बोलीं, ‘‘कुहू, क्यों अपना भविष्य अंधकारमय कर रही हो? हर समय फोन से खेलती रहती हो… आखिर तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? यदि नंबर अच्छे नहीं आए तो किसी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिलेगा,’’ और उन्होंने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

‘‘मम्मा, देखो भी मैं ने फेसबुक पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. 100 लाइक्स थोड़ी सी देर में ही मिल गए और कौमैंट तो देखिए, मजा आ गया. कोई हौट, लिख रहा है, तो कोई सैक्सी… यह तो कमाल हो गया,’’ कह कुहू प्यार से मां से लिपट गई.

‘‘कुहू छोड़ो भी मुझे… तुम तो पागल कर के छोड़ोगी… फेसबुक पर अपना फोटो क्यों डाला?’’

‘‘तो क्या हुआ? मेरी सारी फ्रैंड्स डालती हैं, तो मेरा भी मन हो आया.’’

‘‘अच्छा, अब बहुत हो गया. उसे तुरंत डिलीट कर दो.’’

‘‘मम्मा, आप पहले कमैंट्स तो पढ़ो, मजा आ जाएगा.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब अक्ल आएगी,’’ निशि सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

तभी निधि की सास सुषमाजी कमरे में घुसती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ निशि, क्यों बेटी को डांट रही हो? क्या किया इस ने?’’

‘‘मम्मीजी, आप इसे समझाती क्यों नहीं. इस ने फेसबुक पर अपना फोटो डाला है. 18 साल की हो चुकी है, लेकिन बातें हर समय बच्चों वाली करती है… आजकल समय बहुत खराब है.’’

‘‘निशि, मैं तुम्हें बारबार समझाती हूं… पर तुम कुछ ज्यादा ही इसे ले कर परेशान रहती हो.’’

‘‘क्या करूं मम्मीजी, टीवी, पत्रपत्रिकाएं सभी लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों से भरे होते हैं. अब तो हद हो गई है… रास्ते में चलती लड़कियों को कार वाले खींच कर ले जाते हैं… अपनी दिल्ली अब लड़कियों के लिए कतई सुरक्षित नहीं रह गई है. जब से दामिनी वाला हादसा हुआ है मेरा तो दिल हर समय डर से कांपता रहता है.

‘‘कल शाम को मेरी सहेली पूजा आई थी. कह रही थी कि उस का मैनेजर उसे रोज शाम को काम के बहाने रोक लेता था और फिर कभी कौफी, तो कभी डिनर के लिए चलने को कहता. फिर एक दिन तो उस ने उस का हाथ भी पकड़ लिया. बस उसी दिन से इस्तीफा दे कर वह घर बैठ गई. अब दूसरी नौकरी ढूंढ़ रही है.

‘‘मम्मीजी, हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे होते जा रहे हैं… 2-3 दिन पहले मुंबई से ईशा का फोन आया था कि जूनियर लोगों की प्रोमोशन होती जा रही है, परंतु उस की प्रोमोशन रुकी हुई है, क्योंकि वह लड़की है… लड़के अपने बौस की विदेशी दारू से सेवा करते हैं… लड़की हो तो उन की डिमांड को समझो… मम्मीजी, मुझे अपनी कुहू को देख कर बहुत डर लगता है.’’

‘‘निशि, जो डरा सो मरा. इसलिए बहादुरी से जीवन जीओ… सब की लड़कियां बड़ी होती हैं और लड़के भी बड़े होते हैं. उसे अपने पास बैठा कर अच्छेबुरे की पहचान करना सिखाओ.

‘‘यदि उस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर दिया तो इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. आजकल सभी बच्चे ये सब करते रहते हैं.’’

छोटे शहर और साधारण परिवार से संबंध रखने वाली निशि अपनी सुंदरता के कारण नेताजी के लड़के साथ ब्याह कर दिल्ली जैसे महानगर में आ गई थीं. नेताजी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलते रहते और उन का बेटा रंगीनमिजाज नीरज सुरा और साकी दोनों ही बदलता रहता. इन सब कारणों से वह अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं.

‘‘मम्मीजी, कुहू कुछ समझने को ही तैयार नहीं… अपने कमरे में शीशे के सामने मेकअप करेगी, म्यूजिक चैनल पर डांस देखदेख कर वैसे ही डांस करती है.’’

‘‘निशि, तुम समझदार बनो… यह तो उस की उम्र है. इस समय मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी? तुम अपना भूल गई… तुम भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ फिल्मी पत्रिकाएं और फैशन की बातें छिपछिप कर करती रही होंगी.’’

‘‘मम्मीजी, आप सही कह रही हैं, मैं भी एक बार स्कूल कट कर पिक्चर देखने गई थी…’’

‘‘नीरज कह रहे हैं कि यह को-एड कालेज में ही पढ़ेगी. आप क्यों नहीं मना करती हैं? यह इतनी सुंदर है और साथ ही भोली और नाजुक भी है. कैसे लड़कों की निगाहों को झेल पाएगी?’’

‘‘माई डियर मम्मा, लो गरमगरम चाय पीओ. मैं ने बनाई है. आप खुश रहा करो… तब आप बहुत प्यारी लगती हो. आप की बेटी किसी भी लफड़े में नहीं पड़ेगी, इतना तो आप पक्का समझो.’’ कह कुहू अंदर चली गई.

‘‘निशि, मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकती हूं कि तुम नीरज के रोजरोज के नएनए स्कैंडल से परेशान रहती हो, परंतु बेटी सब से अच्छा उपाय है कि तुम अपनी बेटी पर विश्वास करो. मैं ने भी तुम्हारे पापाजी की राजनीति में रहने के कारण बड़ी विषम परिस्थितियों को झेला है.’’

तभी निशि की बचपन की सहेली स्नेहा आ गई. बोली, ‘‘क्या बात है, चाय पर सासबहू में क्या चर्चा हो रही है?’’

सुषमाजी उठती हुई बोलीं, ‘‘मेरी तो मीटिंग है, इसलिए मैं चलती हूं… अपनी सहेली को समझा कर जाना.’’

‘‘कुहू, स्नेहा के लिए 1 कप चाय बना दो.’’

‘‘नो मम्मा. मेरा आज का चाय बनाने का कोटा फिनिश हो गया… अब मैं स्नेहा आंटी से बातें करूंगी.’’

स्नेहा एक कंपनी में मार्केटिंग हैड है, इसलिए निशि हमेशा उसे अपना आदर्श मानती हैं और अपने दिल का बोझ उस के सामने हलका कर लिया करती हैं.

स्नेहा ने कुहू को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘माई स्वीटी, लुकिंग वैरी नाइस.’’

‘‘थैंक्यू आंटी. मम्मा ने तो मुझे परेशान कर रखा है.’’

‘‘क्या हुआ? निशि बड़ी परेशान दिख रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं… यह बड़ी हो रही है… इसे वही समझाने की कोशिश करती रहती हूं, पर इस ने तो मानो न समझने का प्रण कर रखा है.’’

‘‘दिन भर टीवी पर रेप की खबरें देखदेख कर जी दहल जाता है. जराजरा सी बात पर मुंह पर ऐसिड फेंक देते हैं.’’

‘‘निशि, सड़क पर ऐक्सीडैंट हो जाते हैं, यह सोच कर न तो गाडि़यां चलनी बंद होती हैं और न ही इनसानों का चलना. हर समय परेशान रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता… कुहू को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे क्लास जौइन कराओ.’’

‘‘आंटी, मम्मा तो चाहती हैं कि मैं रातदिन किताबों के सामने से न हटूं… बताइए क्या यह संभव है? बालकनी में खड़ी हो कर बाल सुलझाने लगूं तो लंबा लैक्चर दे डालेंगी. यदि किसी दिन ट्यूशन से आने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो हंगामा कर देंगी… आंटी, मेरी सारी फ्रैंड्स के बौयफ्रैंड हैं. सब साथ मूवी देखने जाते हैं, कैफे जाते हैं… खूब मस्ती करते हैं. लेकिन मैं कहीं नहीं जा सकती… सब मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मम्माज डौटर.’’

निशि किसी काम से अंदर गई हुई थीं.

‘‘आंटी, मुझे तो खुद ही लड़कों से दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन हर समय टोकाटाकी से मैं परेशान हो जाती हूं,’’ कुहू की आंखें भर आई थीं.

तभी निशि कमरे में आ गईं. वे कुहू को डांटते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी शिकायतें पूरी हो गई हों तो जाओ… तुरंत पढ़ने बैठ जाओ.’’

‘‘मम्मा, प्लीज ठहरिए. मुझे आंटी से बात कर लेने दीजिए. मैं 15 मिनट बाद जा कर पढ़ने बैठ जाऊंगी.’’

स्नेहा प्यार से कुहू के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘कुहू, अपने कालेज फ्रैंड़स के बारे में बताओ?’’

कुहू ने चुपके से निशि की ओर इशारा किया तो स्नेहा बोलीं, ‘‘निशि चाय पीने का मन है… चाय बना लाओ.’’

मजबूरन निशि को वहां से जाना पड़ा.

निशि के जाते ही कुहू बोली, ‘‘आंटी, मम्मा मुझ पर शक करती हैं… मेरे फोन के मैसेज छिपछिप कर चैक करती हैं… मेरा लैपटौप खंगालती रहती हैं.’’

‘‘यह तो गलत बात है. अपनी बेटी पर शक नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आंटी, एक मजे की बात बताऊं? मैं ने अपना फोटो पोस्ट किया तो मुझे 50 फ्रैंड रिक्वैस्ट आईं… मैं ने भी मस्ती के लिए एक को क्लिक कर चैटिंग करने लगी… उस ने लिखा था कि तुम बहुत सुंदर हो… मुझ से दोस्ती करोगी? मैं ने जवाब में लिखा कि मैं तो बहुत भद्दीमोटी और काली हूं… आई एम टोटली अगली गर्ल… इसलिए मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है. इस पर उस ने लिखा कि फिर भी मैं तुम से दोस्ती करूंगा, क्योंकि तुम लड़की तो हो ही… मस्ती के लिए लड़की चाहिए… गोरीकाली कोई भी चलेगी… बताओ कल शाम 5 बजे कहां मिलोगी?

‘‘आंटी, मुझे बहुत गुस्सा आया. अत: मैं ने लिख दिया कि मस्ती के लिए गंदे नाले में डूब मरो.

‘‘आंटी, मैं मम्मा से कहती हूं, पुरातनपंथी बातें छोड़ कर मेरी तरह मौडर्न बनो. मुझ से मेरी कालेज की बातें सुना करो, पर वे मुझे डांट देती हैं.’’

‘‘तुम्हारे पापा के स्कैंडल्स की वजह से वे परेशान रहती हैं.’’

‘‘हां, मैं समझती हूं… इसीलिए तो मैं उन्हें और भी हंसाना और खुश रखना चाहती हूं.’’

छोटी सी लड़की के दिमाग में इतना कुछ भरा हुआ है, सोच कर स्नेहा को बहुत अच्छा लग रहा था.

‘‘आंटी, परसों मेरा बर्थडे था… मम्मीपापा रात को डिनर के लिए बाहर ले जा रहे थे… मैं ने जींस के साथ शौर्ट टौप पहना… बस मम्मा ने डांटना शुरू कर दिया कि टौप बहुत छोटा है… तेरा पेट दिखाई दे रहा है. फिर पापा ही बोले कि ठीक है निशि, बच्ची है हर बात में टोका न करो.’’

निशि ने कुहू की बात सुन ली थी. आगे क्यों नहीं बताया कि मौल में किसी लड़के ने कुहनी मारी… फिर पापा से लड़ाई होने लगी… वह तो मौल के गार्ड के बीचबचाव से मामला शांत हो गया… मेरा तो मूड ही खराब हो गया था.

‘‘आप मम्मा को समझाइए कि अब मैं बड़ी हो गई हूं. चौकलेट मुझे पसंद है, इसलिए खाती हूं. जैसे ही मैं ड्रैसअप होती हूं, मुझे देखते ही डांटना शुरू कर देती हैं कि फिर तुम ने इस टौप को पहन लिया… कानों में ये क्या लटका लिए… किस के साथ जा रही हो? कहां जा रही हो? कब आओगी…? मेरी सारी फ्रैंड्स मेरा मजाक उड़ाती हैं.

‘‘भैया सारे घर में तौलिया पहन कर घूमता रहेगा… कोई कुछ नहीं बोलेगा. सारी बंदिशें मेरे लिए ही. स्लीवलैस टौप नहीं पहनोगी, शौर्ट्स नहीं पहनोगी, लिपस्टिक क्यों लगा ली? किस का फोन था? किस का मैसेज था? किस के संग बैठ कर पढ़ोगी… जैसे उन के हजार प्रश्नों से मैं तंग हो चुकी हूं. प्लीज आंटी मम्मा को समझाइए.’’

निशि के कमरे में घुसते ही कुहू पल भर में वहां से उड़नछू हो गई थी पर आंखोंआंखों से स्नेहा से रिक्वैस्ट कर गई थी.

‘‘निशि तुम ने चाय बहुत अच्छी बनाई है… क्या बात है, तुम्हारे चेहरे पर परेशानी और चिंता झलक रही है?’’

‘‘स्नेहा, मैं कुहू के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. नीरज को तो जानती ही हो, उन की अपनी दुनिया है, इसलिए हर पल मैं किसी अनिष्ट की आशंका से डरती रहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी क्या है? अच्छीभली है तुम्हारी बेटी… पढ़ने में होशियार है… समझदार है… सुंदर है. तुम्हारे पास पैसा भी है. फिर किस बात का डर तुम्हें सताता रहता है?’’

‘‘मेरे घर का माहौल तो तुम जानती ही हो. पापाजी नेता हैं. सैकड़ों लोग आतेजाते रहते हैं… उन के कुछ दोस्त अकसर आते हैं, जिन्हें कुहू दादू कहती है… यह उन के पास बैठ कर बातें करती है, ठहाके लगाती है तो मेरा खून खौल उठता है… घर में पीनेपिलाने वाली पार्टियां होती रहती हैं… बापबेटा दोनों साथ बैठ कर पीते हैं. मैं अपने मन का डर आखिर किस से कहूं? अगले साल इसे अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाए, तो होस्टल भेज दूंगी… मगर होस्टल का नाम सुनते ही मुझ से चिपक कर सिसकने लगती है.

‘‘जब टीवी या पेपर में रेप या ऐसिड अटैक की घटना सुनती हूं तो डर से कांपने लगती हूं. ऐसा मन करता है इसे अपने पल्लू में छिपा लूं. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… इसे पढ़नालिखना है, भविष्य में आगे बढ़ना है, अपने पैरों पर खड़े होना है…’’

‘‘निशि, जब तुम ये सब समझती हो तो क्यों परेशान रहती हो?’’

‘‘जैसे ही मैं इसे डांटती हूं तो तुरंत मुझे जवाब देती है कि मम्मा आप बैकवर्ड हो… आप से अच्छी तो दादी हैं… वे मौडर्न हैं… आप मुझ से न जाने क्या चाहती हैं? ऐसा मन करता है कि एक दिन इस की पिटाई कर दूं.’’

एक ओर मासूम कुहू की बातें तो दूसरी ओर निशि के दिल का डर, सब कुछ मन में गड्डमड्ड होने लगा था. दोनों अपनीअपनी जगह सही थीं. फिर स्नेहा निशि का हाथ अपने हाथ में ले कर बोलीं, ‘‘निशि, मैं तुम्हारे डर को महसूस कर रही हूं… हर मां इस दौर से गुजरती है. मेरी भी बेटी बड़ी हो रही है. जब वह ड्राइवर के साथ गाड़ी में स्कूल जाती है, तो मुझे भी मन में बुरेबुरे खयाल आते हैं, लेकिन स्कूल भेजना बंद तो नहीं हो जाएगा? कुहू उम्र के ऐसे दौर में है जब सब कुछ इंद्रधनुष की तरह आकर्षक और सतरंगा दिखाई पड़ता है.

‘‘आजकल के बच्चे हम लोगों से ज्यादा होशियार और समझदार हैं… सब से पहली बात यह कि अपनी बेटी पर विश्वास करो. अपने मन से शक का कीड़ा निकाल फेंको.

‘‘तुम दिन भर घर में रहती हो. नीरज की अपनी दुनिया है. इन सब कारणों से तुम्हारे मन में नकारात्मक विचारों ने अपना घर बना लिया है… तुम्हें इस से उबरना पड़ेगा… तुम घर से बाहर निकलो. अनेक हौबी क्लासेज है… अपनी रुचि की क्लास जौइन कर लो… तुम्हें पहले घर सजाने का बड़ा शौक था… तुम इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन करो. इस समय तुम खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हो.

‘‘जब तुम रोज घर से निकलोगी. 10-20 लोगों से मिलोगी, उन की समस्याओं और बातों को सुनोगी तो तुम्हें समझ में आएगा कि दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. अपने को व्यस्त रखोगी तो दिन भर कुहू के लिए होने वाली चिंता अपनेआप कम हो जाएगी.

‘‘तुम कुहू की सहेली बनने का प्रयास करो. वह 21वीं शताब्दी की लड़की है. वह अपने भविष्य के लिए पूरी तरह जागरूक है.

‘‘मेरी वह निशि कहां खो गई है, जो बड़ीबड़ी बहसों में सब को हरा कर प्रथम आती थी? यदि मेरी बात कुछ समझ में आई हो तो दोनों मांबेटी मिल कर फेसबुक के कौमैंट्स पर ठहाके लगा कर देखो, कितना मजा आता है. अच्छा निशि, बातों में समय का पता ही नहीं लगा… चलती हूं… किसी दिन मेरे घर आना.’’

पीछेपीछे कुहू भागती हुई आई… शायद वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. उस की आंखों की मासूम चमक देख अच्छा लग रहा था. वह मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्स आंटी.’’

Mother’s Day 2024: रिश्तों की बदलती परिभाषा

‘‘कविता क्या हुआ, परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं पूजा, मेरी सास आजकल न तो कुछ ठीक से खातीपीती हैं और न ही पहले की तरह खुश रहती हैं. उन का स्वास्थ्य दिनबदिन गिरता जा रहा है. वे कभीकभी छोटीछोटी बातों पर या तो गुस्सा करने या फिर रोने लगती हैं, जिस से घर का माहौल खराब हो जाता है. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘तू ने इस बारे में अपने पति सुरेश और ननद रीतू से बात की?’’

‘‘हां, उन दोनों से बात की. उन का कहना है कि तुम बेकार में परेशान हो रही हो, बुढ़ापे में ये सब बातें आम होती हैं. लेकिन मैं जानती हूं पूजा, मेरी सास को कोई न कोई गम अंदर ही अंदर खाए जा रहा है, क्योंकि पहले उन का हंसमुख स्वभाव घर की रौनक होता था. उन के उस व्यवहार ने हमें सासबहू के रिश्ते में नहीं, बल्कि मांबेटी के रिश्ते में बांध रखा था, लेकिन अब उन का बातबात पर भड़क उठना मुझे परेशान कर जाता है.’’

अकेलेपन की टीस

कविता की यह समस्या भले छोटी नजर आती हो, लेकिन हकीकत में यह उस मकड़जाल की तरह है, जो समाज में व्याप्त होते हुए भी यदाकदा ही नजर आता है. दरअसल, हम आज भी पुरानी सोच की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं, जहां अपने और पराए में हमेशा से ही भेदभाव रहा है. आज भी हम असहाय बुजुर्गों को देख कर यही सोचते हैं कि जरूर इन की दुर्गति में बहू की ही गलती रही होगी. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि एक पराई (बहू) है तो बाकी तो अपने हैं. लेकिन जब ये अपने ही स्वार्थ की वेदी पर संस्कारों, प्यार और रिश्तों की तिलांजलि देते हुए पराए हो जाते हैं, तब ही बुजुर्ग सही माने में असहाय नजर आते हैं. यह विडंबना ही तो है कि जिस औलाद को मां अपना दूध पिला कर बड़ा करती है, बड़ा होने पर वही औलाद उसे अकेलेपन और तिरस्कार की अंधेरी खोह में धकेल देती है.

बदलता दौर और हकीकत

बदलाव जीवन का एक विशेष पहलू है. जिस तरह मौसम बदलते हैं, इंसान बदलते हैं, उसी तरह आज रिश्तों की परिभाषाएं भी बदलने लगी हैं. सासबहू का जो रिश्ता हमेशा वैमनस्य का प्रतीक माना जाता रहा है, वह अब बदलते दौर में प्रेम का प्रतीक बनता नजर आने लगा है. आज की पढ़ीलिखी, समझदार और जागरूक बहुओं ने सास और मां के बीच के फर्क को मिटाया है, तो अपनों के व्यवहार से दुखी बुजुर्गों ने भी उन्हें सहर्ष अपनाया है.

समय की ऊष्मा से पनपते रिश्ते

तिनकातिनका जोड़ कर बनाई हुई गृहस्थी को जब सास एक पल में खुशीखुशी बहू के हवाले कर देती है, तो यह बहू का कर्तव्य बनता है कि वह सास को हर हाल में खुश रखे. माना कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब पतिपत्नी दोनों ही नौकरीपेशा हैं, तो समय का अभाव होगा ही, लेकिन 24 घंटों में से अगर कुछ क्षण भी आप अपनी सास के साथ व्यतीत करती हैं, तो यह आप के और उन के रिश्ते को ऊष्मा प्रदान करने के साथसाथ आप के भविष्य को भी मजबूत करेगा, क्योंकि आज जो आप बोएंगी वह कल आप के बच्चों के रूप में सामने आएगा. इसलिए ध्यान रखें कि जिस तरह बीता समय और मुंह से निकले शब्द वापस नहीं आते, उसी प्रकार समयचक्र की गति में विलुप्त हुए रिश्ते भी अपना वजूद खो देते हैं. जरा सी समझदारी से समय के अभाव का समाधान ढूंढ़ा जा सकता है, जैसे दैनिक कार्य करते हुए अगर सास को भी साथी बना लें, तो उन की मदद से न सिर्फ किचन का कार्य जल्दी निबट जाएगा, उन के अनुभवी हाथों से बनाए गए व्यंजनों का स्वाद भी मिल जाएगा. लेकिन इस के बाद उन की तारीफ करना न भूलें और साथ ही उन से पाककला सीख कर उस में पारंगत होने का मौका भी न खोएं ताकि उन्हें भी घर में अपनी विशेष उपस्थिति का आभास होता रहे.

राय का उपयोग

सास को खुश रखने के लिए आप समयसमय पर उन की राय जरूर लें ताकि उन्हें एहसास हो कि उन की राय आप की जिंदगी में कितनी अहमियत रखती है. इस से आप के और उन के रिश्ते को मजबूत आधार मिलने के साथसाथ उन के जीवन के अनुभवों से आप का ज्ञान भी बढ़ेगा. शौपिंग करने जाते समय कभीकभी सास को भी अपने साथ ले जाएं और खरीदारी करते समय उन की राय को अहमियत दें. कोई नया काम शुरू करने जा रही हैं या घर की साजसज्जा में कोई परिवर्तन लाना चाहती हैं, तो उन की सलाह जरूर लें. यकीन मानिए, आप की यह छोटी सी पहल उन्हें खुशी से सराबोर कर देगी.

सरप्राइज वैकेशन प्लान

हर साल आप छुट्टियों में अपने पति और बच्चों की पसंद के अनुसार घूमने जाने का प्रोग्राम बनाती हैं. लेकिन इस बार आप अपनी सास की पसंद की जगह, चाहे वह उन का पुराना शहर हो या फिर कोई नई जगह, जहां वे जाना तो चाहती हैं, लेकि न पारिवारिक व्यस्तता के चलते नहीं जा पा रही हैं, जाने का प्रोग्राम बना कर उन्हें सरप्राइज दें और उन की नीरस जिंदगी में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार करें.

जिम्मेदारी का अनुभव

अगर आप कामकाजी महिला हैं, तो सारी जिम्मेदारियां सास पर छोड़ कर खुद निश्चिंत न रहें, बल्कि औफिस के दिनों में न सही, लेकिन छुट्टी वाले दिन अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए उन्हें घर के कामों से मुक्त कर के खुद गृहस्थी को संभालें. इस से आप को अपने घर की हर चीज का ज्ञान होने के साथसाथ आप की सास को भी उन के प्रति आप की आत्मीयता का एहसास होगा.

खास मौकों पर खास पहल

सासससुर के जन्मदिन, शादी की सालगिरह और मदर्स डे पर उन्हें मुबारकबाद और गिफ्ट जरूर दें. हमउम्र सहेलियों को बुला कर छोटा सा गैटटुगैदर करें और उन की पार्टी का हिस्सा भी बनें. उस दिन आप को उन की जो बातें पसंद हैं उन्हें सब के सामने शेयर करें तथा पार्टी में अपने पति व बच्चों को भी जरूर शामिल करें. याद रखें, गिफ्ट के मूल्य से ज्यादा उन के लिए आप की भावनाएं माने रखती हैं.

स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें

बुजुर्ग खाने की चीजों को देख कर खुद को रोक नहीं पाते. परिणामस्वरूप उन का स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है. अगर आप की सास भी कुछ इसी तरह की हैं, तो उन की इच्छा को मान देते हुए उन्हें उन की पसंद का मीठा या नमकीन खाने तो दें, लेकिन एक सीमा तक. बाद में उन्हें प्यार से उन के स्वास्थ्य के प्रति सचेत करना न भूलें. भूल से भी कटु वचनों का प्रयोग न करें. समयसमय पर उन का डाक्टर से चैकअप जरूर करवाती रहें. स्वस्थ तन और मन ही खुशहाल परिवार की निशानी हैं.

संपर्कसूत्र स्थापित करें

सास को कभी भी अकेले घर में छोड़ कर न जाएं. नौकरों के साथ तो कभी भी नहीं. अगर कभी जरूरी कार्य से जाना भी पड़ जाए तो अपनी ननद, बच्चों या देवर से उन का खयाल रखने को जरूर कहें. फोन के जरिए निरंतर उन का हालचाल पूछती रहें.

संस्कारों की नींव

बच्चों को अच्छे संस्कार दें. ध्यान रहे कि वे दादादादी, नानानानी सभी को पूरा सम्मान दें. उन की बातों की अवहेलना न करें. इस के लिए जरूरी है कि आप भी सासससुर की डांटडपट को सहजता से लें. गृहिणी रेखा गुप्ता कहती हैं, ‘‘सास हमारी मार्गदर्शिका हैं. उन की डांटडपट में भी हमारा हित छिपा होता है. मेरी सास मुझे बहुत प्यार करती हैं, लेकिन समयसमय पर मेरी गलतियों पर मुझे डांटने से परहेज भी नहीं करतीं ताकि अपनी गलतियों से सीख कर मैं परिवार में वह स्थान प्राप्त कर सकूं जोकि मेरी सास को बड़ी मुश्किलों से प्राप्त हुआ है. लेकिन इस मर्म को समझने के लिए हमें सास और मां के बीच के फर्क को मिटाना होगा.’’

समाधान

सास के एकाकीपन को दूर करने के कई आसान तरीके हैं, जैसे दोनों साथ सिनेमा देखने जाएं या फिर घर पर ही साथ बैठ कर टीवी देखते हुए सीरियलों पर हलकाफुलका हंसीमजाक या फिर चर्चा करें. विश्वास मानिए, यह चर्चा, हंसीमजाक उन के साथसाथ आप को भी खुश कर देगा और आप दोनों के रिश्ते को और पास लाएगा.          

आप अच्छी बहू हैं?

कुछ प्रश्नों के उत्तर देने से पता चल जाएगा कि आप कैसी बहू हैं… कहते हैं कि वर्तमान की नींव पर ही भविष्य की इमारत बुलंद होती है. कल आप का भविष्य कैसा होगा, यह बहुत कुछ आप के आज पर निर्भर करता है. तो आइए, देखें कि आप ने अपने वर्तमान में कैसे जी कर भविष्य के लिए क्या कुछ संजोया है:

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1. क्या अपनों की अवहेलना से आहत सास को आप ने:

क. स्नेह और सम्मान से जीवन जीने को प्रेरित किया है.

ख. कोशिश तो की पर कामयाबी नहीं मिली.

ग. यह उन के बेटेबेटियों का मामला है,मुझे क्या?

2. क्या आप अपनी सास को उपहार देती रहती हैं:

क. सास नहीं, वे मेरी मां हैं. उपहार पा कर जब वे खुश होती हैं, तो अच्छा लगता है.

ख. कोई खास मौका हो तो उपहार देती हूं.

ग. सास कोई बच्ची तो नहीं.

3. घर की साजसज्जा में बदलाव लाते समय आप:

क. सास की सलाह अवश्य लेती हैं.

ख. उन्हें बताना ही काफी है.

ग. यह मेरा घर है मैं जो चाहे करूं.

4. आप सास का जन्मदिन और शादी की सालगिरह याद रखती हैं:

क. उन्हें सब से पहले मुबारकबाद दे कर चरणस्पर्श करती हूं.

ख. कभीकभी याद रहता है, तो मुबारकबाद दे देती हूं.

ग. सच कहूं तो इग्नोर ही करती हूं.

5. क्या आप अपनी हर खुशी में सास को शामिल करती हैं:

क. जरूर, उन के बिना हर खुशी अधूरी है.

ख. सास ही नहीं, सब को खुशी में शामिल करती हूं. सब बराबर हैं.

ग. सास को शामिल करना जरूरी नहीं समझती.

6. क्या आप सास के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहती हैं:

क. समयसमय पर उन की दवा और खानपान का पूरा ध्यान रखती हूं.

ख. कभीकभी उन से दवा लेने और खानेपीने को कह देती हूं.

ग. मुझे और भी काम हैं. कम से कम अपनी तबीयत का खयाल तो वे खुद रख ही सकती हैं.

7. क्या आप अपनी सास को समय देती हैं:

क. हां, हम रोज एकदूसरे के साथ कुछ समय बिताना पसंद करते हैं.

ख. कभीकभी शाम को बात कर लेती हूं.

ग. समय ही नहीं मिल पाता. हां, तबीयत के बारे में पूछ लेती हूं.

8. आप के बच्चे दादी को सम्मान देते हैं:

क. बिलकुल. दादी उन की बैस्ट फ्रैंड हैं.

ख. थोड़ाबहुत.

ग. दादी उन्हें ओल्डटाइप लगती हैं. भई, जेनरेशनगैप है.

9. मायके वालों के आने पर:

क. सास और मायके वालों के साथ बैठ कर हंसीखुशी बातचीत करती हूं.

ख. मायके वालों को अपने कमरे में ले जा कर खुशीखुशी बातें करती हूं.

ग. मायके वालों को अलग ले जा कर सास की बुराई करती हूं.

10. औफिस से पति के आने पर:

क. उन्हें सास के साथ समय बिताने को कहती हूं.

ख. पति के साथ खुद समय बिताना पसंद करती हूं.

ग. पति से सास की चुगली करती हूं.

11. आप की सास आप के लिए क्या हैं:

क. मां से बढ़ कर, जिन की छत्रछाया में जिंदगी खुशहाल है.

ख. घर की जिम्मेदारियों से कुछ हद तक छुटकारा पाने का जरिया.

ग. सिर्फ पुरातन सोच ओर बोझ की बेडि़यां.

12. क्या आप खुशीखुशी घर के उत्सवों और त्योहारों में शामिल होती हैं:

क. हां, बिलकुल. त्योहार और उत्सव घर में खुशियां लाते हैं.

ख. हां. समाज में रहते हुए यह सब करना पड़ता है.

ग. अपने हिसाब से त्योहार मानती हूं.

यदि आप के अधिकतम उत्तर ‘क’ हैं तो:

आप एक आदर्श और कुशल बहू हैं. आप और आप की सास का रिश्ता वाकई में एक मिसाल है. आप मानती हैं कि रिश्तों की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें आदर और स्नेह से सींचना जरूरी है और आप की इसी सेवा और त्याग का परिणाम भविष्य में आप के बच्चों के रूप में सामने आएगा. वे भी आप के गुणों को अपने जीवन में उतारने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे, क्योंकि आप ही उन की प्रथम गुरु हैं.

यदि आप के अधिकांश उत्तर ‘ख’ हैं तो:

आप अपनी सास को मान तो देती हैं, लेकिन दिल से नहीं और यह कहीं न कहीं आप के व्यवहार से जाहिर भी होता है. इसलिए कोशिश कर के कभी सास की निरीह आंखों में झांक कर देखें, जहां कितने ही आंसू मौन रूप से बाहर निकलने से पहले ही उन के मन पर गिर कर जज्ब हो रहे हैं. इन आंसुओं को आप नहीं देख पा रही हैं. इस का प्रभाव आगे चल कर आप के बच्चों में दिखेगा, जब वे भी आप को उचित सम्मान नहीं देंगे. इसलिए समय रहते संभल जाएं.

यदि आप के अधिकतर उत्तर ‘ग’ हैं तो:

बुरा न मानें. कहीं से भी आप एक अच्छी बहू साबित नहीं हो पा रही हैं. यह आप भी जानती हैं. इस से रिश्ते मजबूत होने के बजाय बिखरेंगे ही. माना कि आप रिश्तों में स्पेस पसंद करती हैं, लेकिन स्वतंत्रता और बहिष्कार में अंतर होता है यह जानना जरूरी है वरना इस उक्ति के आप पर चरितार्थ होते समय नहीं लगेगा कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय.

Mother’s Day Special: डिनर में परोसें गरमागरम गट्टे का पुलाव

पुलाव तो आपने कई तरह के बनाए होंगे, लेकिन क्या आपने कभी गट्टे के पुलाव के बारे में सुना है. गट्टे की सब्जी अक्सर लोगों के घर में बनती होगी पर आज हम आपको गट्टे के पुलाव की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली और दोस्तों को खिला सकते हैं. ये हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी होता है.

हमें चाहिए

–  2 कप बेसन

–  थोड़ा सा दही

–  1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च

–  1 बड़ा चम्मच प्याज चौकोर कटा

– 2 प्याज पिसे

–  4-5 कलियां लहसुन पिसा

–  1 इंच टुकड़ा अदरक का कसा हुआ

–  4-5 बड़ी इलायची

–  4-5 छोटी इलायची

–  2 छोटे टुकड़े दालचीनी

–  4-5 लौंग

–  5-6 साबूत कालीमिर्च

–  चुटकीभर हींग

–  2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़ी सी हरीमिर्च कटी हुई

–  2-3 तेजपत्ते

–  घी या तेल आवश्यकतानुसार

–  1/4 कप घी

–  1 कप चावल

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

बेसन को छान कर उस में नमक, लालमिर्च, अजवाइन और इच्छानुसार चौकोर कटा प्याज डाल कर पानी की मदद से बेसन का रोल बना कर भाप में पकाएं.

पानी से निकाल कर अलग रखें व ठंडा होने पर गोलगोल कतले काटें. घी गरम करें व सुनहरा लाल होने तक तल कर अलग रखें. घी गरम करें व लालमिर्च व साबूत खड़ा गरममसाला डाल कर चटकाएं.

दही में सारा पाउडर मसाला व नमक डालें. पिसा प्याज, लहसुन व अदरक डाल कर अच्छी तरह भूनें. दही में मिला मसाला डाल कर अच्छी तरह भूनें.

गट्टों वाला उबला पानी लगभग 21/2 प्याले डाल कर उबालें व गट्टे गलाएं. 1 बड़ा चम्मच तेल या घी गरम करें. तेजपत्ते डाल कर करारे करें फिर चावल और गट्टे डाल कर ढक कर पुलाव तैयार करें. हरीमिर्चों व धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

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