लेखक- निरंजन धुलेकर
मृत्य पर किसी का बस नहीं , कब किसे उठा ले पता नही.
वक़्त के साथ घरवाले /वारिस दुःख से उभरते जाते हैं और अन्य बातों पर भी बातचीत शुरू हो जाती है.
चर्चा का एक प्रमुख मुद्दा मृतक की विरासत का बँटवारा भी होता है.
मृतक के नाम पर अनेक तरह की सम्पत्तियाँ होने के साथ … ऋण की जिम्मेदारियां भी हों सकती हैं. मानव स्वभाव ऐसा होता है कि मीठा मीठा खा कर कड़वा कड़वा थूक देता है.
सम्पत्तियों की मीठी ख़ुशबू लेने के लिए सभी वारिस जमा होने लगते हैं. मृतक का यदि ऋण बकाया हो तो उसके बंटवारे के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाते , और ज़िम्मेदारी को एक दूसरे पर खिसकाने का प्रयास करते हैं.
मृतक की सम्पत्तियां
सम्पत्तियाँ दो तरह की होती हैं , चल संपत्ति और अचल सम्पत्ति. चल सम्पत्ति , जैसे वाहन , कार , बाइक , बस ट्रक , टेम्पो , जीप .. जोड़ते जाइये.
अचल सम्पत्ति की श्रेणी में .. घर , खेत , प्लाट , बिल्डिंग , बैंक में जमा धन राशि , लॉकर्स , शेयर्स , डिविडेंड आदि !
साथ ही , मृतक द्वारा किसी व्यक्ति को दिया गया वह ऋण , जिसकी वसूली होनीं बाकी है भी इसी श्रेणी में आता है.
बैंक में मृतक का धन अमूमन बचत खातों और विभिन्न प्रकार के फिक्स्ड डिपॉजिट और रिकरिंग खातों के रूप में रखा होता है … और दौलत लॉकर्स में !
मृतक के लॉकर !
लॉकर मे नोट , सोना , चांदी , हीरे , जवाहरात और प्रॉपर्टी के कागज़ात , शेयर सर्टिफिकेट , आदि , यानी आप अपनी कोई भी क़ीमती चीज़ लॉकर्स औऱ सेफ डिपॉजिट में रख सकते हैं.
लॉकर की चाभी होने भर से कोई उसका मालिक नहीं हो जाता जब तक लॉकर का वारिसाना हक़ न हो कोई उसे खोल नही सकता.
महत्वपूर्ण ये कि लॉकर में जो भी सामान रक्खा होगा उसकी पूरी जिम्मेदारी लॉकर के ग्राहक की ही होती है , बैंक किसी भी सूरत में ज़िम्मेदार नहीं.
इस संबंध में एक छोटी सी सत्य घटना बहुत कुछ बताती है :
बैंक के एक प्रतिष्ठित खातेदार .. चल बसे. पत्नी ने बैंक के तमाम बचत और मियादी खातों में रखे धन की प्राप्ति का दावा पेश किया.
मृतक का एक लॉकर बैंक में था और वो महीने में दो तीन बार उसे ऑपरेट जरूर करते , बैंक का स्टॉफ उन्हें अच्छी तरह जानता था.
बैंक ने भलमनसाहत में पत्नी को बताया कि आपने क्लेम फॉर्म में मृत पति के नाम पर एलॉट लॉकर का जिक्र नही किया है उसे भी जोड़ दीजिये !
वो चौंक गयीं !! उन्हें लॉकर की कोई जानकारी नहीं थी .
बैंक के आग्रह पर उन्होंने लॉकर पर क्लेम दर्ज कर दिया. चूंकि चाभी पत्नी के पास नही थी अतः लॉकर को पत्नी और दो गवाहों की उपस्तिथि में तोड़ कर खोला गया और .. जो माल मत्ता निकला उसमे थे ख़ालिस सोने के मंगल सूत्र , बहुत सारे गहने … और मिले किसी अन्य महिला को लिखे गए प्रेम पत्र ..! गहनों की खरीद की रसीदें भी मिलीं जिन पर उसी महिला का नाम अंकित था.
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ज़ाहिर है इस , ‘ गुप्त धन दौलत कागज़ पत्तर ‘ को देख कर आगे हुआ होगा , कल्पना आसानी से की जा सकती है.
जन्मों से अर्जित विश्वास लॉकर खुलते ही टूट गया.
खातेदार की मृत्य के बाद का सच
अक्सर खाता धारक की मृत्य होने पर घर वाले तनाव में आ जाते हैं ये सोच कर कि बैंक अब परेशान करेगा पैसा , कैसे निकलेगा आदि.
अगर उन्हें मृतक के खातों का पता नही हो तो घर के लोग मृतक की तिजोरी , अलमारी खंगालते हैं ताकि पास बुक या अन्य कागज़ातो के ज़रिए मृतक द्वारा बैंको में रखी धन दौलत की जानकारी ले कर उसे पा सकें.
पर अगर मृतक ने पारदर्शिता और स्पष्टता रखी है तो चिंता की कोई बात नहीं.
बैंक के नियम.
यदि खातेदार ने बैंक को , उसके जमा धन के वारिसाना हक़ की सूचना नहीं दी हो तो , जो भी व्यक्ति अपने आप को कानूनन मृतक का वारिस सिद्ध कर देगा .. मृतक का उस बैंक में रखा माल उसका.
बैंक , ग्राहक को खाता खोलते समय ही ये पूछता है कि क्या वो नॉमिनेशन करवाना चाहेंगे ? यदि हाँ तो उसका नाम फॉर्म में भर दें.
आवश्यक सावधानियां
जन साधारण को चाहिए कि वो अपने तमाम खातों में निम्न बातें , अवश्य सुनिश्चित करें :
हर खाते में नामांकन ज़रूर करवायें , और चाहें तो नामित व्यक्ति को इसकी सूचना भी अवश्य दें कर रखें.
नामित व्यक्ति का पूरा नाम मय वल्दियत लिखें ताकि किसी तरह का असमंजस न रहे.
अगर संभव हो तो नामित व्यक्ति का भी एक बचत खाता बैंक की उसी शाखा में खुलवा दें.
एक रजिस्टर या डायरी में विभिन्न बैंक वार खातों का विवरण लिख कर उसे अपडेट करते रहें और इसकी जानकारी निकटतम संबंधी .. पति / पत्नी को अवश्य दे कर रखें.
बैंको के लॉकर्स को भी ‘ आइदर सर्वाइवर ‘ की सुविधा के साथ ही लेना चाहिए.
लॉकर में रखे गए सामान की सूची बना कर इसकी जानकारी पति/पत्नी या वारिस को दे कर रखें.
जमा खाता , हमेशा संयुक्त रूप में खोलना बेहद समझदारी का काम होगा.
इन खातों में बैंक को ये निर्देश दीये हों कि खाते से आहरण ” दोनों में से कोई भी एक या जीवित ” , मतलब ‘ आइदर ऑर सर्वाइवर ‘ के अनुसार होगा.
अपने हर खाते को आधार कार्ड से लिंक करवा दें.
अन्क्लेमेड डिपॉजिट्स !
अगर किसी व्यक्ति ने अपने खातों की जानकारी घर वालों को नही दी और पासबुक चेकबुक आदि भी घर मे न रखी तो उसका पैसा घर वालों के काम नही आ पायेगा , क्यूंकि वो जानकारी के अभाव में , दावा पेश नहीं कर पाएंगे.
बैंक ऐसे खातों की सुरक्षा के लिए सजग होते हैं जिनका कोई वारिस सामने नही आता क्योंकि ऐसे अचालित खातों में फ्रॉड होने की सभावना अधिक होती है.
एक निश्चित अवधि के बाद ऐसे खातों की रकम जिसे अन्क्लेमेड डिपॉजिट्स भी कहते हैं को , शाखा से निकाल कर बैंक अपने हेड ऑफीस ट्रांसफर कर देता है.
भविष्य में यदि कोई दावेदार सामने आता है तो बैंक उसकी कानूनी हक़ की सारी जानकारी ले कर हेड ऑफिस से राशि वापस मंगवा भी सकता है.
खातेदार की मृत्य होने पर वारिस क्या करे ?
पहली बात , मृतक का मृत्य प्रमाण पत्र शीघ्रताशीघ् बनवा लें और उसकी फोटोकॉपियाँ निकाल लें.
दूसरी बात , जिन जिन बैंको में मृतक का किसी भी प्रकार का खाता हो , उन सभी को लिखित में सूचित करें ताकि वो जमा धन की सुरक्षा हेतु उचित कदम उठाएं , सूचना पत्र के साथ मृत्य प्रमाणपत्र की प्रति अवश्य लगाएं.
संयुक्त खातों में भी मृत्य सूचना देना आवश्यक है ताकि बैंक खातेदार के टाइटिल को बदल सके.
मृतक के ऋण खातों वाले बैंकों में भी ऐसा ही पत्र देना ज़रूरी है.
वारिस प्रमाणपत्र
मृतक द्वारा नॉमिनेशन न करवाने या संयुक्त खाता न होने की स्तिथि में दावेदार को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज लाना होगा , जिसे कहते हैं … ‘ वारिस प्रमाण पत्र ‘ !
इसे वकील की मदद से कोर्ट आर्डर के रूप में प्राप्त करना होता है इसलिए इसे बनाने में वक्त लग सकता है.
एकल और बिना नॉमिनेशन वाले खातेदार की मृत्य से पैदा हुई असमंजस की स्तिथि में , बैंक जानना चाहेगा कि खाते की राशि पर कानूनन वारिसाना हक़ किस का है.
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मृतक का बैंकों में ऋण और बंधक ज़मीन !
यदि मृतक का ऋण खाता है तो भी मृत्य सूचना बैंक को देना आवश्यक है ताकि बैंक ऋण दस्तावेज़ों का दुरुस्तीकरण / नवीनीकरण कर के या तो वारिसों के नाम पर ऋण को चढ़ा दे अथवा तत्काल पूरे ऋण की वसूली के उपाय करें.
अक्सर ये देखने मे आता है कि मृतक द्वारा लिए ऋण की सिक्योरिटी के रूप में घर , प्लॉट , बिल्डिंग आदि गिरवी या मोर्टगेज रखी होती है , जिसका बँटवारा भी वारिसों में होता है परंतु मालिकाना हक के कागज़ात वारिस नही बना पाते क्यूंकी मूल रजिस्ट्री के पेपर्स बैंक में बंधक रखे होते हैं.
अब अगर इस मूल रजिस्ट्री के कागजात उन्हें वापस चाहिए हों तो बैंक का ऋण खाता बन्द करना होगा.
बैंक , ऐसी परिस्तिथि में वारिस को ऋण अदायगी का पूरा मौका देते हैं और वारिस की आर्थिक स्तिथि के अनुसार ऋण अदायगी का समय भी बढ़ा सकते हैं.
इंडेमनिटी बॉन्ड
वारिसाना हक़ साबित होने पर बैंक दावेदारों से कुछ फॉर्म भरवातें है इनमें एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है ‘ इंडेमनिटी बॉन्ड. ‘
इस बॉण्ड के ज़रिए दावेदार बैंक को , भविष्य में उस खाते से प्राप्त राशि सम्बन्धी किसी भी तरह की दावेदारी या मुकदमे बाज़ी आदि से मुक्त कर देता है.
मृतक के खाते के धन का वारिसों में बँटवारा
यदि एक से ज्यादा व्यक्तियों की दावेदारी सिद्ध हो जाती है तो बैंक उन सभी को कहता है कि खाते की धनराशि , आपस मे किस अनुपात में बाँटी जाए इस बाबत बैंक को निर्देश एक संयुक्त पत्र के माध्यम से दें.
इस तरह का कोई निर्देश न मिलने की स्तिथि में मृतक के खाते में जमा धनराशि को बैंक , कानूनी वारिसों में बराबर बराबर बाँटने का अधिकार रखता है.
न्यायालय , दावे और बैंक
बैंक , न्यायालय के अधीन होते हैं अतः उक्त प्रक्रिया के बीच यदि कोई व्यक्ति मृतक के खाते पर अपना कानूनन हक़ जताते हुए कोर्ट का स्टे लाता है तो बैंक उसका पालन करने को बाध्य हैं और कोर्ट का अंतिम निर्णय आने तक बैंक आगे की कार्यवाही रोक देता है.
ऐसे बहुत से मामले आते हैं जिनमे दूर दराज बैठे वो वारिस , जिन्होंने जीते जी खातेदार की कोई खबर नहीं ली , मृत्य होते ही खातों से हिस्सा लेने आ धमकते हैं और कानूनी दाव पेंच भी चालू हो जाते हैं.
कानूनी कार्यवाहियों के पूरा होते ही बैंक , मृत का एकल खाते की रकम मय ब्याज के दावेदार को दे कर खाता बन्द कर देता है.
दावेदारी में पेचीदगियां जितनी कम होंगी उतनी ही जल्दी मृतक के खाते का पैसा वारिस को मिल जाएगा. अनहोनी कभी भी हो सकती है पर उसके बाद की स्तिथि से निपटने की तैयारी तो हम जीते जी कर के रख ही सकते हैं.
सारी धन दौलत यहीँ धरी रह जाती है , पर मृत्य से पूर्व उसे सही हाथों में सौपने की पक्की व्यवस्था करना भी तो एक ज़िम्मेदारी है.
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