Funny Hindi Stories : नौरमल डिलीवरी बस ढूंढ़ते रह जाओगे

लेखक-  संजीव झा

Funny Hindi Stories : ‘‘बधाई हो भाई, मिठाई हो जाए,’’ मैं ने कहा तो जैसे हमारे शब्दों को बाजू में सरका कर कहने लगे, ‘‘किसी अच्छे अस्पताल में दिखाना है. गांव में तो सुविधाएं थीं नहीं. हां, पखवाड़े में एक बार हाजिरी भरने के लिए आने वाली डाक्टर साहिबा ने अभी तक सबकुछ नार्मल ही बताया था पर यहां तसल्ली करना जरूरी है क्योंकि श्रीमतीजी को सीजेरियन से बहुत डर लगता है.’’

हम ने भी अपने सामान्य ज्ञान पर इठलाते हुए नजदीकी एक अस्पताल का जिक्र किया एवं शाम को साथ चलने का वादा भी कर दिया.

शाम को कतार में खड़ेखड़े डाक्टर साहिबा पर नजर पड़ते ही हम अंदर तक कांप गए. यह तो वही हैं जिन्हें 10 साल पहले अपनी बहन को इन्हीं परिस्थितियों में दिखाने हम सरकारी अस्पताल में गए थे. उस समय यह डाक्टरनी बड़ी जोर से चिल्ला पड़ी थी, ‘अभी तक जहां दिखाया है वहीं दिखाओ, अब यहां क्या करने आए हो. मेरे पास समय नहीं है.’

डाक्टर साहिबा के इस धाराप्रवाह श्री वचनों के बीच हम बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाए थे कि यह हमारी बहन है और कल ही ससुराल से आई है.

अपनी बारी आने तक हम आगे की रणनीति बनाते रहे कि हमें क्या कहना है, पर यह क्या, बर्फ की तरह ठंडी डाक्टर साहिबा ने पूरा चेकअप कर के मुसकराते हुए पूछा, ‘‘बाहर से ट्रांसफर हो कर आए हैं क्या? सब नार्मल है. चिंता की कोई बात नहीं है. हर 15 दिन पर नियमित चेकअप के लिए आते रहना.

डाक्टर साहिबा में आए इस क्रांतिकारी बदलाव को देख कर तो मानो हमारी सोचनेसमझने की क्षमता ही खत्म हो गई. आदमी इतना भी बदल सकता है? खैर, सब नार्मल है, सुन कर हम भी मित्र की खुशी में शामिल हो गए. लगेहाथ मित्र को अपने पूर्व अनुभव के आधार पर तसल्ली भी दे डाली कि इन डाक्टर साहिबा के 99 प्रतिशत केस नार्मल डिलीवरी के ही होते हैं.

निर्धारित समय के 2 दिन पहले डाक्टर साहिबा ने देख कर गंभीर आवाज में कह दिया कि भरती हो जाओ, आपरेशन करना पड़ेगा.

मित्र की आवाज, मुखमुद्रा और प्रश्नसूचक आंखों से निगाह चुराते हुए हम नर्स की शरण में पहुंचे तो वह भी बहुराष्ट्रीय कंपनी की वरिष्ठ बिक्री अधिकारी की तरह समझाने लगी, ‘‘देखिए, यह एक प्रेस्टिजियस अस्पताल है, यहां हम अपने मरीज की बेस्ट पौसिबल केयर करते हैं. हम किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेते हैं. हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हर डिलीवरी 100 प्रतिशत परफेक्ट हो और हर कस्टमर को पूरा सेटिस्फेक्शन मिले.

‘‘मैं खुद पिछले 3 सालों से यहां काम कर रही हूं पर औसतन 90-95 प्रतिशत डिलीवरी आपरेशन से होते देख रही हूं. इनफेक्ट, आजकल हमारी लाइफ स्टाइल, खानपान, रहनसहन, यहां तक कि ब्रीड ही ऐसी हो चुकी है कि नार्मल डिलीवरी में जान जाने का खतरा हमेशा बना रहता है.’’

‘‘यह बिलकुल सही कह रही हैं जनाब,’’ की आवाज के साथ एक भारी-भरकम हाथ हमारे कंधे पर आ पड़ा. मुड़ कर देखा तो वैज्ञानिक सोच वाले आधुनिक बुद्धिजीवी महाशय सामने खड़े मुसकरा रहे थे.

एक सेल्समैन की तरह पूरे आत्म-विश्वास के साथ वे पुन: बोले, ‘‘डरने की कोई बात नहीं है. इस अस्पताल में आधु-निक तकनीक का प्रयोग होता है तथा विश्व स्तर के सभी आधुनिक उपकरण यहां मौजूद हैं. रही बात खर्च की तो डाक्टर साहिबा बिल ही इस तरह से बनवा देंगी कि पूरा का पूरा आप के विभाग से आप को वापस मिल जाएगा. यह लोग इस मामले में एकदम ईमानदार हैं.’’

‘‘लेकिन साहब, डिलीवरी नार्मल हो जाए तो इस का कोई मुकाबला ही नहीं होता है. अभी तक सबकुछ ठीक ही था. डाक्टर साहिबा कोशिश करें तो डिलीवरी नार्मल भी हो सकती है. हमारे परिवार वालों के विचार भी कुछ ऐसे ही हैं,’’ हमारे मित्र कुछ घिघियाते से बोले थे.

बुद्धिजीवी बोले, ‘‘अमां यार, इस साइबर एज में भी आप बैलगाड़ी युग की बातें कर रहे हैं. मौडर्न टाइम है भाई. अभी पिछले सप्ताह ही मैं विदेश टूर कर के आया हूं. वहां तो नार्मल डिलीवरी का कंसेप्ट ही खत्म हो गया है. हजारों में शायद ही एकदो नार्मल डिलीवरी होती हैं. आदमी मंगल पर पहुंच रहा है और आप हैं कि अभी तक जमीन के अंदर धंसे हुए हैं.’’

मित्र फिर घिघियाए, ‘‘भाई साहब, हमारे पूरे खानदान में ही नहीं बल्कि श्रीमती के परिवार में भी आज तक सभी डिलीवरियां नार्मल ही हुई हैं. किसी में आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ी.’’

मित्र का मुंह लगभग दबाते हुए बुद्धिजीवी बोले, ‘‘यार, धीरे बोलो, अगर डाक्टर साहिबा ने सुन लिया कि आप ऐसे खानदान से आए हो तो आप का केस लेने से ही मना कर देंगी. अपने खानदान को कुछ तो प्रगतिशील बनाओ. जमाने के साथ चलना सीखो भाई. जिस कालोनी में आप रह रहे हैं वहां सभी ने इसी अस्पताल में डिलीवरी करवाई है, शायद ही कोई नार्मल डिलीवरी हुई हो. कम से कम अपने और अस्पताल के स्टेटस का तो खयाल करो,’’ वह एक पल को किसी मजे हुए नेता की तरह रुके फिर बोलना

शुरू किया, ‘‘यह कोई सरकारी खैराती अस्पताल तो है नहीं, एक हाइटेक अस्पताल है. अब तो इस क्षेत्र में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी कूदने वाली हैं जिन के अस्पताल को देख कर आप की आंखें चुंधिया जाएंगी. फिर तो सीजेरियन डिलीवरी पूरी तरह से स्टेटस सिंबल बन जाएगी.

‘बहुराष्ट्रीय कंपनियां’, ‘स्टेटस’ जैसे शब्द कान में पड़ने के साथ ही हम अपनी सोचनेविचारने की ‘मुंगेरी’ आदत के चलते विचारों के महासागर में गोते लगाने लगे. अगर वास्तव में बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस क्षेत्र में आ पहुंचीं तो विज्ञापनों की बाढ़ के दबाव से सीजेरियन करवाना हर आदमी की मजबूरी हो जाएगी और नार्मल डिलीवरी तो बस जिद्दी दाग की तरह ढूंढ़ते रह जाएंगे. टेलीविजन पर विज्ञापन आएगा, ‘जो बीवी से करे प्यार वह सीजेरियन से कैसे करे इंकार’ या फिर सरकार ही समाचारों से पहले दिखलाने लगे कि विमला का बेटा टेढ़ामेढ़ा इसलिए पैदा हुआ कि उस ने नार्मल डिलीवरी करवाई थी, अगर स्वस्थ सुंदर बच्चा चाहिए तो भाई साहब सीजेरियन ही करवानी चाहिए.

कंपनियां भी ऐसा टीका विकसित कर लेंगी कि नार्मल डिलीवरी हो ही नहीं पाए. देश भर के तथाकथित क्लब और संस्थाएं पोलियो खुराक की तरह पैदा होते ही हर संतान को यह टीका लगा देगी. एक बार जनमानस पर सीजेरियन स्टेटस के रूप में स्थापित हुआ नहीं कि सामाजिक संबंधों में भूचाल सा आ जाएगा.

शादीसंबंधों में सब से पहले पूछा जाएगा कि लड़का नार्मल है या सीजेरियन. बायोडाटा के कालम में एक लाइन यह भी होगी कि क्या संतान सीजेरियन है? उच्च कुल के लोग पूरे परिवार को गर्व के साथ सीजेरियन बताएंगे. अगर कोई संतान गलती से नार्मल हुई तो मांबाप खिसियाते हुए कहेंगे बाकी भाई और बहन तो सीजेरियन ही हैं, बस, यही गलती से…

गांव से शहर लाते समय यदि रास्ते में नार्मली कुछ हो गया तो इस दुर्घटना को मातापिता छिपाएंगे या अपने बच्चे के भविष्य को देखते हुए दूर पलायन कर जाएंगे. ऐसे बच्चे बड़े होने पर ताना मारेंगे, ‘‘हमारे लिए आप ने किया ही क्या है? नार्मल डिलीवरी से दुनिया में हमें ले आए. कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

नार्मल डिलीवरी आर्थिक दिवालि-एपन या मानसिक पिछड़ेपन का प्रतीक बन कर रह जाएगी.

प्रतिक्रियास्वरूप कुछ नेता और सामाजिक संगठन इन की रक्षा के लिए आगे आएंगे. जातियों के महासागर में एक और तलैया शामिल करवाएंगे. नया वर्ग संघर्ष पैदा होगा. समाज इन्हें हेय समझेगा और नेता इन्हें अल्पसंख्यक घोषित करवा कर विकलांगों की तरह इन के लिए आरक्षण कोटा निर्धारित कराएंगे. धारा ‘3’ का सदुपयोग करने का अधिकार भी इन्हें दिलवाया जाएगा. एक वर्ग सरकारी अस्पतालों में नार्मल डिलीवरी करवाने वाले डाक्टरों के खिलाफ प्रदर्शन कर जांच आयोग बैठाने की मांग करेगा तो दूसरी ओर शबाना आजमी टेलीविजन पर आ कर कहेंगी, ‘‘नार्मल को एबनार्मल न समझें, इन्हें प्यार दें.’’

आगे बढ़ते विचारों के अश्व को अचानक डाक्टर साहिबा के सप्तम स्वर ने झटके से रोक दिया. मित्र को सुनाते हुए सफाई कर्मचारी को कह रही थीं, ‘‘सरकारी अस्पताल समझ रखा है क्या? मुझे एकदम साफ चाहिए… क्रिस्टल क्लियर, नो कंप्रोमाइज.’’

फिर बुद्धिजीवी महाशय से मैराथन तर्कवितर्क में उलझे मित्र की ओर ब्रह्मास्त्र चला दिया, ‘‘मुझे दिक्कत नहीं है पर कल को कुछ हो गया तो हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी,’’ इतना कह कर तेजी से डाक्टर साहिबा अंदर चली गईं. पीछेपीछे बुद्धिजीवी भी रुख्सत हो गए.

बस, मित्र और हम ने अभिमन्यु वाली हार मान ली. मैं ने भी सांत्वना दी. यार करवा भी लो वरना कुछ ऐसावैसा हो गया तो नातेरिश्तेदार और यही संतान बड़ी हो कर 100-100 ताने मारेगी.

बिल की च्ंिता में मित्र के पेट में मरोड़े उठने लगे. नर्स से पूछने पर पता चला 15-20 हजार रुपए का खर्च आएगा. अपनी किसी संस्था के लिए डाक्टर साहिबा से डोनेशन का चेक ले कर वापस आ रहे बुद्धिजीवी महाशय ने फिर समझाया कि अभी तो बड़े सस्ते में निबट रहे हो, बाद में बहुराष्ट्रीय अस्पतालों में तो यही काम लाखों में होंगे.

हम फिर सोचने लगे कि अगर महाभारत काल में ही यह व्यवस्था लागू हो जाती तो बेचारे धृतराष्ट्र तो बिल चुकातेचुकाते ही राजपाट लुटवा बैठते.

खैर, मित्र महोदय ने जैसेतैसे इस प्रकरण को निबटाया फिर तुरंत कसम खाई कि अब दूसरी संतान के बारे में कभी सोचूंगा भी न

Mother’s Day Special: यह कैसी मां- क्या सच थीं मां के लिए की गई पापा की बातें

माया को देखते ही बाबा ने रोना शुरू कर दिया था और मां चिल्लाना शुरू हो गई थीं. मां बोलीं, ‘‘बाप ने बुला लिया और बेटी दौड़ी चली आई. अरे, हम मियांबीवी के बीच में पड़ने का हक किसी को भी नहीं है. आज हम झगड़ रहे हैं तो कल प्यार भी करेंगे. 55 साल हम ने साथ गुजारे हैं. मैं अपने बीच में किसी को भी नहीं आने दूंगी.’’

‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा. तुम मुझे अपने साथ ले चलो,’’ कहते हुए बाबा बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े.

‘‘मैं तुम को छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम जहां भी जाओगे मैं भी साथ चलूंगी,’’ मां बोलीं.

‘‘तुम दोनों आपस का झगड़ा बंद करो और मुझे बताओ क्या बात है?’’

‘‘यह मुझे नोचती है. नोचनोच कर पूछती है कि नीना के साथ मेरे क्या संबंध थे? जब मैं बताता हूं तो विश्वास नहीं करती और नोचना शुरू कर देती है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, दिखाओ तो कहां नोचा है? झूठ बोलते हो. नोचती हूं तो कहीं तो निशान होंगे.’’

‘‘बाबा, दिखाओ तो कहां नोचा है?’’

बाबा फिर रोने लगे. बोले, ‘‘तेरी मां पागल हो गई है. इसे डाक्टर के पास ले जाओ,’’ इतना कहते हुए उन्होंने अपना पाजामा उतारना शुरू किया.

मां तुरंत बोलीं, ‘‘अरे, पाजामा क्यों उतार रहे हो. अब बेटी के सामने भी नंगे हो जाओगे. तुम्हें तो नंगे होने की आदत है.’’

बाबा ने पाजामा नीचे कर के दिखाया. उन की जांघों और नितंबों पर कई जगह नील पड़े हुए थे. कई दाग तो जख्म में बदलने लगे थे. वह बोले, ‘‘देख, तेरी मां मुझे यहां नोचती है ताकि मैं किसी को दिखा भी न पाऊं. पीछे मुड़ कर दवा भी न लगा सकूं.’’

‘‘हांहां, मैं नोचूंगी. जितना कष्ट तुम ने मुझे दिया है उतना ही कष्ट मैं भी दूंगी,’’ इतना कहते हुए मां उठीं और एक बार जोर से बाबा की जांघ पर फिर चूंटी काट दी. बाबा दर्द से तिलमिला उठे और माया के पैरों पर गिर कर बोले, ‘‘बेटी, मुझे इस नरक से निकाल ले. मेरा अंत भी नहीं आता है. मुझे कोई दवा दे दे ताकि मैं हमेशा के लिए सो जाऊं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे मरोगे. तड़पतड़प कर मरोगे. तुम्हारे शरीर में कीड़े पड़ेंगे,’’ मां चीखीं.

24 घंटे पहले ही माया का फोन बजा था.

सुबह के 9 बज चुके थे, पर माया अभी तक सो रही थी. उस के सोने का समय सुबह 4 बजे से शुरू होता और फिर 9-10 बजे तक सोती रहती.

माया के पति मोहन मर्चेंट नेवी में थे इसलिए अधिकतर समय उसे अकेले ही बिताना पड़ता था. अकेले उसे बहुत डर लगता था इसलिए सो नहीं पाती थी. सारी रात उस का टेलीविजन चलता था. उसे लगता था कि बाहर वालों को ऐसा लगना चाहिए कि इस घर में तो रात को भी रौनक रहती है.

सुबह 4 बजे जब दूध की लारी बाहर सड़क पर आ जाती और लोगों की चहलपहल शुरू हो जाती तो वह टेलीविजन बंद कर के नींद के आगोश में चली जाती थी. काम वाली बाई भी 11 बजे के बाद ही आ कर घंटी बजाती थी.

उस ने फोन की घंटी सुनी तो भी वह उठने के मूड में नहीं थी, उसे लगा था कि यह आधी रात को कौन उसे जगा रहा है. पर एक बार कट कर फिर घंटी बजनी शुरू हुई तो बजती ही चली गई.

अब उस ने फोन उठाया तो उधर से बाबा की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, मन्नू, तेरी मां मुझे मारती है,’’ कह कर उन के रोने की आवाज आनी शुरू हो गई. माया एकदम परेशान हो उठी.

उस के पिता उसे प्यार से मन्नू ही बुलाते थे. 80 साल के पिता फोन पर उसे बता रहे थे कि 70 साल की मां उन्हें मारती है. यह कैसे संभव हो सकता है.

‘‘आप रो क्यों रहे हो? मां कहां हैं? उन्हें फोन दो.’’

‘‘मैं बाहर से बोल रहा हूं. घर में उस के सामने मैं उस की शिकायत नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वह फिर रोने लगे थे.

‘‘क्यों मारती हैं मां?’’

‘‘कहती हैं कि नीना राव से मेरा इश्क था.’’

‘‘कौन नीना राव, बाबा?’’

‘‘वही हीरोइन जिस को मैं ने प्रमोट किया था.’’

‘‘पर इस बात को तो 40 साल हो गए होंगे.’’

‘‘हां, 40 से भी ज्यादा.’’

‘‘आज मां को वह सब कैसे याद आ रहा है?’’

‘‘मैं नहीं जानता. मुझे लगता है कि वह पागल हो गई है. मैं घर नहीं जाऊंगा. वह मुझे नोचती है. नोचनोच कर खून निकाल देती है,’’ बाबा ने कहा और फिर रोने लगे.

‘‘आप अभी तो घर जाओ. मैं मां से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, उस से कुछ मत पूछना, वह मुझे और मारेगी.’’

‘‘अच्छा, नहीं पूछती. आप घर जाओ, नहीं तो वह परेशान हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा, जाता हूं पर तू आ कर मुझे ले जा. मैं इस के साथ नहीं रह सकता.’’

‘‘जल्दी ही आऊंगी, आप अभी तो घर जाओ.’’

बाबा ने फोन रख दिया था. माया ने भी फोन रखा और अपनी शून्य हुई चेतना को वापस ला कर सोचना शुरू किया. पहला विचार यही आया कि मां को पागल बनाने वाली यह नीना राव कौन थी और वह 40 साल पहले वाले जमाने में पहुंच गई.

तब वह 12 साल की रही होगी और 7वीं कक्षा में पढ़ती होगी. तब उस के बाबा एक प्रसिद्ध फिल्मी पत्रिका के संपादक थे.

बाबा और मां का उठनाबैठना लगातार फिल्मी हस्तियों के साथ ही होता था. दोनों लगातार सोशल लाइफ में ही व्यस्त रहते थे. अपने बच्चों के लिए भी उन के पास समय नहीं था. उन की दादी- मां ही उन्हें पाल रही थीं. रात भर पार्टियों में पीने के बाद दोनों जब घर लौटते तो आधी रात हो चुकी होती थी. सुबह जब माया और राजा स्कूल जाते तब वे दोनों गहरी नींद में होते थे. जब माया और राजा स्कूल से घर लौटते तो बाबा अपने काम से और मां किटी और ताश पार्टी के लिए निकल चुकी होतीं.

स्कूल में भी सब को पता था कि उस के पिता फिल्मी लोगों के साथ ही घूमते हैं इसलिए जब भी कोई अफवाह किसी हीरोहीरोइन के बारे में उड़ती तो उस की सहेलियां उसे घेर लेती थीं और पूछतीं, ‘क्या सच में राजेंद्र कुमार तलाक दे कर मीना कुमारी से शादी कर रहा है?’ दूसरी पूछती, ‘क्या देवआनंद अभी भी सुरैया के घर के चक्कर लगाता है?’ तीसरी पूछती, ‘सच बता, क्या तू ने नूतन को देखा है? सुना है देखने में वह उतनी सुंदर नहीं है जितनी परदे पर दिखती है?’

ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर माया के पास नहीं होता था, क्योंकि उस की दादीमां बच्चों को फिल्मी दुनिया की खबरों से दूर ही रखती थीं. पर एक बार ऐसा जरूर हुआ जब मां उसे अपने साथ ले गई थीं. कार किनारे खड़ी कर के उन्होंने कहा था, ‘देखो, उस घर में जाओ. बाबा वहां हैं. तुम थोड़ी देर वहां बैठना और सुनना नीना और बाबा क्या बातें कर रहे हैं और कैसे बैठे हैं.’

वह पहला अवसर था जब वह किसी हीरोइन के घर जा रही थी. उस ने अपनी फ्राक को ठीक किया था, बालों को संवारा था और कमरे के अंदर चली गई थी. उस ने बस इतना सुना था कि कोई नई हीरोइन है और अगले ही महीने एक प्रसिद्ध हीरो के साथ एक फिल्म में आने वाली है.

नमस्ते कह कर वह बैठ गई थी. बाबा ने पूछा था, ‘कैसे आई हो? मां कहां हैं?’

उस ने उत्तर दिया था, ‘मां बाजार गई हैं. अभी थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

बाबा ने बैठने का इशारा किया था और फिर नीना से बातें करने में व्यस्त हो गए थे. माया के कान खड़े थे. मां ने कहा था कि सब बातें ध्यान से सुनना और फिर उसे यह भी देखना था कि बाबा और नीना कैसे बैठे हुए हैं. उस ने ध्यान से देखा था कि नीना ने बहुत सुंदर स्कर्ट ब्लाउज पहना हुआ था और वह आराम से सोफे पर बैठी थी. उस के हाथ में एक सिगरेट थी जिसे वह थोड़ीथोड़ी देर में पी रही थी. बाबा पास ही एक कुरसी पर बैठे थे और दोनों लगातार फिल्म पब्लिसिटी की ही बात कर रहे थे.

आधा घंटे बाद मां ने ड्राइवर को भेज कर उसे बुलवा लिया था. बाबा वहीं रह गए थे. उन दिनों वह नीना को प्रमोट करने का काम भी कर रहे थे. किसी भी नए हीरो या हीरोइन को प्रमोट करने के काम के लिए बाबा को काफी रुपए मिलते थे और मां को ऐसे धन की आदत पड़ गई थी. उन का जीवन ऐशोआराम से भरा था. आएदिन नए शहरों में जाना, पांचसितारा होटलों में रुकना, रंगीन पार्टियों का मजा लेना उन की आदत में शुमार हो गया था. तब उन्होंने भी यह उड़ती सी खबर सुनी थी कि बाबा उस हीरोइन पर ज्यादा ही मेहरबान हैं, पर उस के द्वारा जो धन की वर्षा हो रही थी उस ने मां के दिमाग को बेकार बना दिया था.

मां को तो बस, भरे हुए पर्स से मतलब था. जब मां को तनाव होना चाहिए था तब तो कुछ नहीं हुआ, पर कुछ साल बीत जाने के बाद उन्होंने बाबा को कुरेदना शुरू किया था. वह कहतीं, ‘अच्छा, सचसच बताना नीना को तुम प्यार करने लगे थे क्या?’

बाबा बोलते, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम्हें पता है कि पब्लिसिटी के लिए क्याक्या कहानियां बनानी पड़ती हैं. तुम तो लगातार मेरे साथ थीं फिर अब क्यों पूछ रही हो?’

अब तक बाबा का काम कम हो गया था. बाजार में और भी कई फिल्मी पत्रिकाएं आ चुकी थीं. जवान और चालाक सेके्रटरी हीरोहीरोइनों को संभालने के लिए आ चुके थे. ऐसे भी कभीकभी ही थोड़ा सा काम मिलता था. पैसे की भी काफी तंगी हो गई थी. जवानी में बाबा ने पैसा बचाया नहीं और अब पुरानी आदतें छूट नहीं पा रही थीं इसलिए मां और बाबा में भी आपस में कहासुनी होनी शुरू हो गई थी.

अब तक माया विवाह योग्य हो चुकी थी और उस ने अपना जीवनसाथी स्वयं ही चुन लिया था. राजा भी काम की तलाश में अमेरिका पहुंच गया था. बुरी आदतें और अनियमित दिनचर्या के कारण बाबा की सेहत भी डगमगाने लगी थी. चारों तरफ से दबाव ही दबाव था. अब मां के गहने बिकने शुरू हो गए थे. ऐसे में जब भी मां का कोई गहना बिकता, अपना गुस्सा इसी प्रकार से बाबा से प्रश्न कर के निकालतीं.

कभी पूछतीं, ‘अच्छा उस साल दीवाली पर तुम ने रात नीना के घर गुजारी थी न? घर में और भी कोई था या तुम दोनों अकेले थे?’

बाबा जो भी उत्तर देते, उस पर उन्हें विश्वास नहीं होता. ढलती उम्र, बालों में फैलती सफेदी और कमजोर होते अंगप्रत्यंग उन्हें अत्यंत शंकालु बनाते जा रहे थे. तब तक केवल मां की जबान ही चलती थी. फिर माया का विवाह हो गया और वह विदेश चली गई. उस के पति की नौकरी अच्छी थी इसलिए वह हर महीने मां और बाबा के लिए भी पैसे भेजती थी. घर उन का अपना था इसलिए आधा घर किराए पर दे दिया था. वहां से भी हर महीने पैसा मिल जाता था. इस प्रकार दोनों का गुजारा भली प्रकार से चल रहा था.

बीचबीच में माया का चक्कर मुंबई का लगता रहता था पर तब उस ने कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया था कि दोनों का आपस में झगड़ा किस बात को ले कर होता है. मां कभीकभी उसे भी जलीकटी सुना देती थीं, बोलतीं, ‘अरे, बाबा ने जवानी में बहुत मस्ती मारी है. अभी वैसा नहीं है इसलिए झुंझलाए रहते हैं. अब इस बूढ़े को कौन मुंह लगाएगा.’

‘मां, चुप हो जाओ. बाबा के लिए ऐसे कैसे बोलती हो? तुम भी तो मस्ती मारती थीं.’

‘नहींनहीं, मैं तो सिर्फ ताश खेलती थी, इन की मस्तियां तो हाड़मांस की होती थीं.’

माया डांट कर मां को चुप करा देती थी. उस ने तो दोनों को जवानी में मौजमस्ती करते ही देखा था. अगर दादी नहीं होतीं तो उन दोनों भाईबहनों का बचपन पता नहीं कैसे बीतता.

कुछ सालों बाद माया भारत लौट आई थी. उस ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चेन्नई को चुना था. माया के पति साल में 2 ही बार छुट्टी पर चेन्नई आते थे. अब साल में एक बार वह भी मांबाबा को बुला लेती थी. एक माह बिताने के बाद वे मुंबई लौट जाते थे. जितने दिन बेटी के पास रहते बहुत सुखसुविधा में रहते पर उन की जड़ें तो मुंबई में थीं इसलिए उन्हें वहां लौटने की भी जल्दी होती थी.

जितने दिन वे दोनों बेटी के पास होते उतने दिन उन में झगड़ा नहीं होता था. पर माया ने देखा था कि मां का व्यवहार थोड़ा अजीब होता जा रहा है. बाबा को दुखी देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगता था. यदि बाबा को कोई चोट लग जाती तो वह तालियां बजाने लगती थीं. उन की इस बचकानी हरकत पर माया को बहुत गुस्सा आता था और वह मां को डांट भी देती थी.

लेकिन आज के फोन ने माया को हिला कर रख दिया था. इतने बूढ़े पिता को उन की जीवनसंगिनी ही मार रही है और वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. उस ने कुछ सोचा और मुंबई अपने मामा को फोन मिलाया. वह फोन पर बोली, ‘‘मामा, मां और बाबा कैसे हैं? इधर आप का चक्कर उन के घर का लगा था?’’

‘‘नहीं, मैं एक महीने से उन के घर नहीं गया हूं. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं कहीं भी आताजाता नहीं हूं. क्यों, क्या बात है? उन का हालचाल जानने के लिए उन को फोन करो.’’

‘‘सुबह बाबा का फोन आया था. रो रहे थे. मुझे बुला रहे हैं. आप जरा देख कर आइए क्या बात है? इतनी दूर से आना आसान नहीं है.’’

‘‘तुम कहती हो तो आज ही दोपहर को चला जाता हूं. तुम मुझ से वहीं बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 बजे फोन करूंगी,’’ कह कर माया ने फोन रख दिया.

अब किसी भी काम में माया का दिल नहीं लग रहा था. समय बिताने के लिए उस ने पुराना अलबम उठा लिया. उस के बाबा और मां की फोटो हर हीरो-हीरोइन के साथ थी. नीना राव के साथ एक फोटो में उस ने मांबाबा को देखा. नीना राव कितनी खूबसूरत थी. माया ने तो उसे पास से भी देखा था. उस की गुलाबी रंगत देखते ही बनती थी. नीना राव की सुंदरता के आगे मां फीकी लग रही थीं. इस फोटो में बाबा ने दोनों औरतों के गले में बांहें डाली हुई थीं.

नीना की सुंदरता देख कर माया ने सोचा तब मां को जरूर हीन भावना होती होगी, पर बाबा का काम ही ऐसा था कि वह उन के काम में बाधा नहीं डाल सकती थीं. जब नीना को प्रमोट किया जा रहा था तब बाबा का अधिक से अधिक समय उस के साथ ही बीतता था. तब मां अपनी किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थीं. हर जगह वह बाबा के साथ नहीं जा सकती थीं. तब का मन में दबाया हुआ आक्रोश अब मानसिक विकृति बन कर उजागर हो रहा था. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मानसिक अवसाद कितना घिनौना रूप ले सकता है.

2 बजते ही माया ने मुंबई फोन मिलाया. मामा ने फोन उठाया और बोले, ‘‘तुम जल्दी आ जाओ. यहां के हालात ठीक नहीं हैं. मैं तुम्हें फोन पर कुछ भी नहीं बता सकता हूं.’’

फोन रखते ही माया ने शाम की फ्लाइट पकड़ी और रात के 10 बजे तक  घर पहुंच गई थी.

उन दोनों की हालत देख कर माया भी रो पड़ी. अकेले वह दोनों को नहीं संभाल सकती थी. उस ने अपने बड़े बेटे को फोन कर के बंगलौर से बुला लिया. उस ने भी दोनों की हालत देखी और दुखी हो गया. दोनों मांबेटे ने बहुत दिमाग लगाया और इस फैसले पर पहुंचे कि मां और बाबा को अलगअलग रखा जाए, माया बाबा को अपने साथ ले गई और मां को एक नर्स और एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया.

मां को बहुत समझाया और साथ ही धमकी भी दे डाली, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो मैंटल हास्पिटल में डाल देंगे. तुम्हारा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा.’’

एक छोटे बच्चे की तरह बाबा माया का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकले और तेजी से जा कर कार में बैठ गए. उस अप्रत्याशित मोड़ ने मां को स्तंभित कर दिया था. वह शांत हो कर अपने बिस्तर पर बैठी रहीं और नर्स ने उन्हें नींद की गोली दे कर लिटा दिया. कल से ही उन का इलाज शुरू होगा.

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