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लेखक- राजेंद्र कुमार पाण्डेय

सुप्रिया ने कंप्यूटर औन कर के इंटरनैट से कनैक्ट किया. अभी सुबह के 4 बजने में 1 मिनट शेष था. शीघ्र ही कंप्यूटर स्क्रीन पर बीकौम का परिणाम उस की आंखों के समक्ष उभर आया. मैरिट लिस्ट देखते ही वह सब से पहले उसे गौर से पढ़ने लगी, लेकिन आशा के विपरीत मैरिट लिस्ट में चौथे स्थान पर अपना रोल नंबर देखते ही वह प्रसन्नता से झूम उठी.

एक ही सांस में वह पूरी लिस्ट पढ़ती चली गई, लेकिन यह क्या? दुनिया का 8वां आश्चर्य, अमित, जिसे वह अकसर ‘बुद्धू’ व ‘नालायक’ कह कर पुकारती रही, का नाम भी मैरिट लिस्ट में 11वें स्थान पर नजर आया तो सहसा उसे विश्वास ही नहीं हुआ. उसे यह उम्मीद तो थी कि शायद उस का प्रेमी जो उस की प्रेरणा के कारण दिनरात पढ़ाई में जुटा रहता है, जीवन में पहली बार प्रथम श्रेणी अवश्य प्राप्त कर लेगा, परंतु वह एकदम सोच से परे छलांग लगा कर मैरिट लिस्ट में अपना नाम लिखवा लेगा, यह उसे एकदम स्वप्न सा प्रतीत हो रहा था.

सुप्रिया ने उसी समय अमित को फोन लगाया. उधर से ‘हैलो डार्लिंग’ का मधुर स्वर सुनते ही वह खुशी से बोल उठी, ‘‘क्यों बुद्धूराम, तुम मैरिट लिस्ट में आ गए हो, लेकिन कैसे?’’

‘‘मुझे मालूम है, मैं भी परीक्षा परिणाम ही देख रहा हूं.’’

‘‘सचसच बताओ, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘जानेमन, तुम्हारी जिद थी कि अगर इस परीक्षा में मैं ने प्रथम श्रेणी प्राप्त नहीं की तो तुम न तो मेरी गुस्ताखी को कभी माफ करोगी और न ही भविष्य में मेरे संग प्रेमपथ पर अपने कदम आगे बढ़ाओगी. बस, तभी से मैं ने भी तुम्हारी तरह जिद पकड़ ली कि प्रथम श्रेणी तो ले कर ही रहूंगा. यही समझ लो कि तुम्हारी इच्छा और मेरी जिद ने यह करिश्मा कर दिखाया. अच्छा, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो. बहुत गहरी नींद आ रही है,’’ कहते हुए अमित ने फोन काट दिया.

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