लेखक- जैनुल आबेदीन खां
शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.
शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.
‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन
का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.
‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.
‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’
‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद
ने कहा.
‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’
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‘‘वह तो तुम जानती हो...
5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’
‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.
जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात
हो गई.
‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.
‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.
‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’
‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.