सुंदरता 2 तरह की होती है- एक आंतरिक और दूसरी बाह्य. नैननक्श, रंगरूप मिल कर बाह्य सौंदर्य का निर्माण करते हैं, जो उम्र के साथसाथ ढलता जाता है. फिर भी महिलाएं इसी सुंदरता को बनाए रखने के लिए किसी भी सौंदर्यप्रसाधन को इस्तेमाल करने पर आतुर रहती हैं. नगरों में बढ़ते ब्यूटीपार्लर इस का एहसास कराते हैं, जो जम कर तरहतरह के कैमीकल्स इस्तेमाल करते हैं.

इंगलैंड के प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी

डा. आर.एन.थिन और बर्लिन यूनिवर्सिटी के त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. गुटर स्टुटजन लंबे समय से शोध कार्य में लगे हैं. इन दोनों विशेषज्ञों के सम्मिलित प्रयासों से विटामिन ए ऐसिज नामक औषधि की खोज हुई जो त्वचा रोगों के निवारण में सहायक सिद्ध होती है.

त्वचा संबंधी रोग

दोनों विशेषज्ञों के अनुसार कृत्रिम रूप से तैयार किए गए जेवरात पहनने और सिंथैटिक बिंदी लगाने से कई तरह के त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो सकते हैं. बालों को लंबे समय तक रंगने से रक्त कैंसर जैसे रोगों को सामना करना पड़ सकता है. सिंथैटिक कपड़ों को खूबसूरती बढ़ाने का माध्यम मानना आम बात हो गई है, जबकि इन में से निरंतर होने वाला स्टैटिक इलैक्ट्रिक प्रवाह यदि हृदय के विद्युत प्रवाह में प्रवेश करने लगे तो परिणाम घातक ही होंगे. शरीर से अधिक रगड़ खाने के कारण ब्लड की बीमारी का शिकार बनना पड़ता है.

चर्मरोग विशेषज्ञों के अनुसार सौंदर्य प्रसाधनों का अत्यधिक प्रयोग करने से ऐलर्जी की शिकायत होना तो सामान्य बात है. चेहरे पर लाली, खुजली और उभरते चकत्तों को देख कर इस का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. समय रहते इस की रोकथाम न की जाए तो सफेद दाग भी दिखने लगते हैं.

जिस आंतरिक सौंदर्य की आवश्यकता समाज को है उस की वह उपेक्षा करता है और कृत्रिम सौंदर्य की ओर भागता है. इस से शरीर की स्वाभाविक सुंदरता तो नष्ट होती ही है, बनावटीपन का आवरण भी हर समय ओढ़े रहना पड़ता है.

स्वास्थ्य पर असर

सौंदर्य रसायन शरीर पर दुश्प्रभाव छोड़ते हैं. आईब्रो पैंसिल में लेड की मात्रा होती है. अत: इस का अधिक प्रयोग अंधेपन का शिकार बना सकता है. सफेद क्रीम में अमीनो मरक्यूरिक क्लोराइड के मिले रहने से किडनियों पर गलत असर पड़ता है. परफ्यूम में वगामोट होने से त्वचा को विशेष हानि पहुंचती है, पलकों के बाल झड़ने लगते हैं और रूसी हो जाती है.

आंखों से पानी आने लगता है और उन में सूजन भी आ जाती है. डर्माटाइटिस जैसे त्वचा रोग की संभावना अधिक हो जाती है. लिपस्टिक में टाईटेनियम डाई औक्साइड और बैंजोहक ऐसिड के मिले होने से होंठ काले पड़ने लगते हैं और उन में सूजन भी आ जाती है. यही नहीं कैंसर जैसे रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती है.

हेयर डाई में हाइड्रोजन पैरा औक्साइड, अमोनिया ऐसिड लेड ग्रेफाइट आदि का मिश्रण होने से बाल बड़ी तेजी से झड़ने लगते हैं, ऐक्जीमा और खुजली की शिकायत भी होती है. फाउंडेशन में वरमामोट होने से रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और त्वचा को चर्म रोगों का शिकार बना कर कई तरह के रोग हो जाते हैं. नेलपौलिश और हेयर स्प्रे में पैराफिनायलीन डाजमीन नामक रसायन तत्त्व घुलामिला होता है जो आंखों में जलन व खुजली करता है और माइग्रेन रोग का शिकार बना देता है.

वैक्सिंग में एक प्रकार का ऐसिड प्रयुक्त होता है जो त्वचा के रंग को काला कर देता है. कृत्रिम सौंदर्यप्रसाधनों की इन हानियों को जानने के बाद भी महिलाएं इन का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं.

आंतरिक सौंदर्य की खूबियों को जानते हुए भी आज की महिलाएं कृत्रिम सौंदर्य को सबकुछ मान बैठती हैं, जबकि यह नहीं भूलना चाहिए कि दर्पण आंख, कान, नाक, चेहरे की आकृति और बनावट तो बता सकता है, पर वास्तविक स्वरूप का पता तो आंतरिक आईने में झंकने से ही चलता है.

 

 

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